गुरु पुष्य और रवि पुष्य योग 2025 Guru Pushya and Ravi Pushya Yoga In 2025

वैदिक ज्योतिष में कुछ ऎसे योगों के विषय में चर्चा मिलती है जो अत्यंत ही शुभ योगों की श्रेणी में आते हैं. ऎसे ही कुछ योगों में गुरु पुष्य योग और रवि पुष्य योग का नाम आता है. यह दोनों ही योग किसी भी काम को करने में शुभता प्रदान करने वाले होते हैं. इनका उपयोग करके व्यक्ति अपनी काम करने की क्षमत अको बेहतर कर सकता है ओर जो भी वह करना चाहिए उसमें उसे अच्छे परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं.

गुरु पुष्य योग का निर्माण गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र के होने पर होता है. गुरु अर्थात ज्ञान और अत्यंत शुभ ग्रह का स्वरुप एवं पुष्य नक्षत्र जो सौम्य शुभ और महानक्षत्र कहलाता है. जिस कारण इन दोनों का संगम होने पर एक अत्यंत समय अवधि का निर्माण होता है. इस समय में काम की शुभता स्वयं ही बढ़ जाती है.

रविपुष्य योग का निर्माण रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र के होने पर होता है.

रवि पुष्य योग में किए जाने वाले काम

ज्योतिष में रवि पुष्य योग के दोरान मुख्य रुप से पारंपरिक स्वरुप में कोई दवाई इत्यादि का निर्माण करना बहुत शुभ होता है. इस समय पर बनाई गई औषधी का प्रभाव रोग को जल्द से जल्द समाप्त करने वाला होता है और रोगी को तुरंत लाभ मिलता है. आयुर्वेद में तो यह समय दवाई को बनाने के लिए बहुत ही शुभ अच्छा माना गया है. इसके अलावा विशेष रोग में रोगी को अगर इस समय पर औषद्धि खिलाई जाए तो इसका भी सकारात्मक असर पड़ता है ओर रोग की शांति भी जल्द होती है. रवि पुष्य योग में मंत्र सिद्धि एवं यंत्र इत्यादि बनाने का काम भी उपयुक्त होता है और यह शुभता को बढ़ाता है.

गुरु पुष्य योग में किए जाने वाले काम

गुरु पुष्य योग में शिक्षा ग्रहण करना अत्यंत शुभ होता है. इसके साथ ही किसी योग्य शिक्ष एवं गुरु द्वारा दीक्षा लेने के लिए इस समय का चयन किया जाना उपयुक्त कहा गया है. इस समय के दौरान तंत्र, मंत्र या किसी महत्वपूर्ण विषय के बारे में ज्ञान प्राप्ति करना शुभ होता है. इस समय पर प्राप्त किया गया व्यक्ति को सदैव स्मरण रहता है और उसका उसे लाभ भी प्राप्त होता है.

इसके साथ ही इस समय के दौरन में कोई पूजा, यज्ञ, हव अनुष्ठान इत्यादि कार्य करने भी शुभ माने गए हैं. लम्बी दूरी की यात्रा करना, स्कूल में बच्चे के लिए एडमिशन करवाने का समय या फिर उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश प्राप्ति के लिए इस मुहूर्त समय का चयन अत्यंत लाभदायक होता है.

2025 में बनने वाले गुरुपुष्य योग और रवि पुष्य योग तिथियां

गुरुपुष्य योग तिथियाँ 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
24 जुलाई  16:44 25 जुलाई  सूर्योदयकाल
21 अगस्त  सूर्योदयकाल 21 अगस्त  24:09
18 सितंबर सूर्योदयकाल 18 सितंबर 06:33
       

रवि पुष्य योग तिथियां 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
04 जनवरी  15:21 05 जून सूर्योदयकाल
01 फरवरी सूर्योदयकाल 01 फरवरी 23:58
01 मार्च  सूर्योदयकाल 01 मार्च  08:35
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Planets, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , , , | Leave a comment

द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग 2025 । Dwipushkar and Tripushkar Yoga Dates in 2025

काम की शुभता और उस शुभता में वृद्धि की इच्छा हम सभी के भीतर रहती है. कोई भी काम जो अच्छा हो मन को भाए और उससे जीवन में सुख एवं मांगल्य का वास हो, तो हम चाहेंगे की वह कार्य हमारे जीवन में बार-बार घटित हो. सुख एवं समृद्धि घर-परिवार में सदैव बनी रहे यही मनोकामना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का मूल आधार होती है. ऎसे में यदि कोई काम उस समय अवसर पर किया जाए जो अच्छा हो. उसके होने की संभावनाएं भी बार-बार हमारे सामने हों तो इससे अच्छी बात हमारे लिए ओर क्या हो सकती है.

द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग इन्हीं शुभ योग मुहूर्त में स्थान पाते हैं. क्योंकि मान्यता है की अगर इन योगों के समय किए गए किसी काम से हमें लाभ मिल रहा हो तो वह दो गुना-तीन गुना रुप से हमे प्राप्त होता है. हमारी शुभता और लाभ में वृद्धि होगी. इसलिए इस समय के दौरान में बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदारी करना अच्छा माना गया है.

द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग करने योग्य कार्य

आभूषण, भूमि-संपत्ति, वाहन इत्यादि को खरीदना द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग में बहुत अच्छा माना गया है. इसके अतिरिक्त पशुओं की खरीदारी करना अथवा कोई नए व्यवसाय का आरंभ करना भी इस योग के समय पर शुभ होता है.

इसी के साथ किसी योग की अगर अपनी शुभता है तो उसके कारण कुछ कमी भी हो सकती वह अपने समय के दौरान होने वाले कुछ खराब फलों को भी दर्शा सकता है. जैसे की यदि इस योग के दौरान घाटा हो या किसी प्रकार की परेशानी इत्यादि का सामना करना पड़े, तो ऎसे में वह परेशानी भी दुगुना-तिगुना ही होने की संभावना भी रहती है. इस समय के दोरान इन योगों की शांति करा देना अत्यंत शुभ रहता है. त्रिपुष्कर योग की शांति के लिए तीन गायों के मूल्य के समान धन या तिल से बनी वस्तु का दान करना श्रेस्कर माना गया है. इसी तरह से द्विपुष्कर योग शांति के लिए में दो गायों के मूल्य का धन तथा तिलों से बनी वस्तु का दान करना शुभ होता है.

द्विपुष्कर योग तिथियाँ 2025 | Dwipushkar Yog Dates 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
21 जनवरी सूर्योदयकाल 21 जनवरी 12:40
16 मार्च  16:06 16 मार्च  21:39
26 मार्च 14:56 27 मार्च सूर्योदयकाल
20 मई  03:16 20 मई  सूर्योदयकाल
23 जुलाई  सूर्योदयकाल 23 जुलाई 10:24
07 जून    05:24 07 जून   05:49
22 जुलाई 05: 24 सितंबर 12:39
10 अगस्त 12:10 10 अगस्त 13:53
23 सितंबर   13:40 24 सितंबर 28:52
04 अक्टूबर 06:17 04 अक्टूबर सूर्योदयकाल
06 दिसंबर 07:02 06 दिसंबर 08:49

त्रिपुष्कर योग तिथियाँ 2025 | Tripushkar yog Dates 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
03 जनवरी सूर्योदयकाल 03 जनवरी 16:26
13 फरवरी 02:27 13 फरवरी सूर्योदयकाल
21 फरवरी 05:34 22 फरवरी 05:58
26 फरवरी 03:59 26 फरवरी 24:59
17 अप्रैल 04:07 17 अप्रैल सूर्योदयकाल
22 अप्रैल सूर्योदकाल 22 अप्रैल 07:50
02 मई सूर्योदयकाल 02 अप्रैल 19:41
20 जून सूर्योदयकाल 20 जून 13:08
25 जून 10:11 26 जून 00:26
04 जुलाई 13:39 05 जुलाई सूर्योदयकाल
28 अगस्त 05:15 28 अगस्त सूर्योदयकाल
05 सितंबर 15:47 06 सितंबर सूर्योदयकाल
21 अक्तूबर 19:54 21 अक्टूबर 21:54
30 अक्टूबर 04:42 30 अक्टूबर सूर्योदयकाल
04 नवंबर सूर्योदयकाल 04 नवंबर 07:57
19 दिसंबर सूर्योदयकाल 19 दिसंबर 13:07
23 दिसंबर 21:19 24 दिसंबर 06:25
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Planets, Transit, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , | Leave a comment

क्यों होते हैं ग्रह वक्री, जानिये 2024 में ग्रहों के वक्री-मार्गी का समय

ज्योतिष में ग्रहों में होने वाले बदलाव की छोटी से छोटी घटना का भी बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है. ग्रहों के प्रभाव को बारीकी से समझने के लिए उनकी हर-पल की खबर होना अत्यंत आवश्यक होता है. ऎसे में किसी ग्रह का मार्गी अवस्था से वक्री अवस्था में जाना या फिर वक्री अवस्था से मार्गी अवस्था में जाना बहुत ही प्रभावशाली समय होता है. इस समय के दौरान प्रकृति और मनुष्य दोनों पर ही इस महत्वपूर्ण घटना का प्रभाव किसी न किसी रुप में देखने को अवश्य ही मिलता है. कई बार यह प्रभाव व्यापक स्तर पर दिखाई देता है तो कई बार सूक्ष्म रुप से, लेकिन ग्रह की यह स्थिति प्रभाव अवश्य ही डालने वाली होती है.

ग्रहों की वक्री का अवस्था को विपरित या कहें उल्टा चलने की स्थिति से जोड़ा जाता है. साधारण रुप से हम इस स्थिति को इस रुप से समझ सकते हैं की जो हमारे ग्रह हैं वह अपनी गोचर(भ्रमण) करने की क्रिया में रहते हैं ऎसे में कई बार गोचरस्थ होते हुए वह पृथ्वी से दूर हो जाते हैं तो कभी उसके काफी पास आ जाते हैं. ग्रह जब पास आने लगते हैं तो वह पृथ्वी की गति के अनुरुप न होने के कारण उलटी दिशा की और चलते दिखाई देने का आभास देते हैं.

यह नियम सांइस के समक्ष ही है की जिस प्रकार यदि एक तेज रफ़्तार वाहन में बैठे हुए उसके पास से ही उसी दिशा की ओर जाने की दिशा में कोई और वाहन धीमी गति से चल रहा हो, तो उस से धीमी रफ्तार वाहन से आगे निकलते हुए प्रतीत होता है कि मानो वो वह धीमी रफ्तार का वाहन आपसे विपरीत दिशा में जा रहा है. लेकिन ऎसा होता नहीं है क्योंकि वह धीमा वाहन भी उसी दिशा की और ही जा रहा होता है. जिस दिशा में तेज वाहन चल रहा है. बस यही स्थिति कुछ ग्रहों की भी होती ही है.

ग्रहों में केवल सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर बाकी सभी ग्रह वक्री होते हैं. इसके अतिरिक्त ग्रह कभी तेज और कभी धीमा गति के साथ चलते भी प्रतीत होते हैं जिसे ज्योतिष की भाषा में ग्रहों का अतिचारी और मंदगामी होना कहा जाता है . आईये जानते हैं कि साल 2024 में कब और किस दिन बदलेंगे ग्रह अपनी चाल.

मंगल 05 फरवरी 2024 को मकर राशि में 21:42 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 15 मार्च 2024 को कुंभ राशि में 18:08 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 23 अप्रैल 2024 को मीन राशि में 08:38 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 01 जून 2024 को मेष राशि में 15:37 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 12 जुलाई 2024 को वृष राशि में 18:58 पर गोचर करेंगे. मंगल 26 अगस्त 2024 को मिथुन राशि में 15:25 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 20 अक्टूबर 2024 को कर्क राशि में 14:22 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 06 दिसंबर 2024 को वक्री होंगे कर्क राशि में 19:01 पर.
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Planets, Transit, Vedic Astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

शुभ मुंडन मुहूर्त्त समय 2025

हिन्दुओं के 16 संस्कारों में से एक संस्कार “मुंडन” होता है. हिन्दु धर्म परंपरा में इसका अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है. मुंडन संस्कार के समय बच्चे के सिर के जन्मसमय के केश अर्थात बालों को हटाया जाता है. बच्चे के सिर के बालों को काटने का संस्कार ही मुंडन संस्कार कहलाता है. मुंडन को चूड़ाकर्म, चौलकर्म, चौल संस्कार इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है. बच्चे के मुंडन संस्कार को शुभ मुहूर्त समय देख कर ही किया जाता है.

धर्म परंपरा अनुसार जन्म या गर्भधान के तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष में मुण्डन संस्कार किया जाता है. इसके साथ ही वर्ण-कुलाचार के अनुसार इस कार्य को जन्म के पहले वर्ष के समय भी संपन्न किया जाता है. कुछ स्थानों पर यज्ञोपवीत संस्कार के समय पर भी इस कार्य को किया जाता है.

मुंडन संस्कार में बालिका(कन्या) संतान के मुण्डन संस्कार के लिए सम वर्षों को लेते हैं और बालक(पुरुष) संतान के लिए विषम वर्षों का चयन होता है.

क्यों किया जाता है “मुंडन संस्कार”

मुंडन संस्कार के पीछे मान्यता है कि बच्चे जब गर्भ में होता है तो उस समय के दौरान उसके बालों में कुछ दूषित कण भी समाए होते हैं जिन्हें मुंडन करके हटा देने से सभी प्रकार की अशुद्धि को दूर कर दिया जाता है.

इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य मान्यताएं व तर्क हैं जिसमें से एक अन्य तर्क के अनुसार बच्चे का मुंडन करने से उसके पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है और सभी प्रकार के ऋण से उसे मुक्ति प्राप्त होती है. वेदों में भी इस संस्कार के विषय में जो तथ्य बताए गए हैं वह इस संस्कार की महत्ता को दर्शाते हैं.

प्राचीन काल से, भारतीय वैदिक ज्योतिष में ऋषियों ने सोलह संस्कारों का वर्णन किया है. इन सोलह संस्कारों के अन्तर्गत बच्चे के मुण्डन संस्कार समारोह के बारे में भी उल्लेख किया गया है. वर्ष 2025 में, मुण्डन संस्कार समारोह के लिए शुभ तारीखें हैं.

मुंडन संस्कार शुभ मुहूर्त 2025

मुंडन शुभ मुहूर्त जनवरी 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
15 जनवरी बुधवार पुष्य माघ कृष्णपक्ष द्वितीया मुहूर्त 10:28 तक
22 जनवरी बुधवार स्वाती माघ कृष्ण अष्टमी मुहूर्त मेष लग्न वृष लग्न  
26 जनवरी रविवार ज्येष्ठ माघ कृष्ण द्वाद्शी मुहूर्त 07:36 बाद 

मुंडन शुभ मुहूर्त फरवरी 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
04 फरवरी मंगलवार अश्विनी माघ शुक्ल सप्तमी मेष लग्न वृष लग्न अभिजित मुहूर्त
10 फरवरी सोमवार पुनर्वसु माघ कृष्ण दशमी मुहूर्त 11:57 तक  
18 फरवरी मंगलवार स्वाती फाल्गुन कृष्ण षष्ठी मुहूर्त 07:36 बाद से
19 फरवरी बुधवार स्वाती फाल्गुन कृष्ण षष्ठी मुहूर्त 10:40 तक  

मुंडन शुभ मुहूर्त अप्रैल 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
14 अप्रैल सोमवार स्वाती वैशाख कृष्ण प्रतिपदा मुहूर्त 09:45 बाद
21 अप्रैल सोमवार श्रवण चैत्र कृष्ण अष्टमी मुहूर्त 12:37 बाद
24 अप्रैल गुरुवार शतभिषा वैशाख कृष्ण एकादशी मुहूर्त 10:49 तक

मुंडन शुभ मुहूर्त मई  2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
01 मई गुरुवार मृगशिरा नक्षत्र वैशाख शुक्ल चतुर्थी मुहूर्त 14:21 बाद
02 मई शुक्रवार पुनर्वसु वैशाख शुक्ल पंचमी मुहूर्त 12:37 बाद
03 मई शुक्रवार पुनर्वसु/पुष्य वैशाख शुक्ल षष्ठी मुहूर्त अभिजित तक
04 मई रविवार पुष्य वैशाख शुक्ल सप्तमी मुहूर्त 07:20 बाद
12 मई सोमवार स्वाती वैशाख पूर्णिमा मुहूर्त 06:17 बाद
15 मई गुरुवार ज्येष्ठ ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया अभिजित
19 मई सोमवार श्रवण ज्येष्ठ कृ्ष्ण षष्ठी मुहूर्त 10:19 तक
28 मई बुधवार मृगशिरा ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया मुहूर्त मिथुन और कन्या लग्न

मुंडन संस्कार जून 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दू माह शुभ समय
07 जून शनिवार स्वाती ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया मुहूर्त 09:32 बाद
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Planets, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , | Leave a comment

क्या होता है यमघंटक योग ? 2025 यमघंटक योग की डेट

ज्योतिष में कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है जैसे कक्रय योग, दग्ध योग, कुलिक योग और यमघण्टक इत्यादि योग. यह योग शुभ-मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने जाते हैं अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना चाहिए. यात्रा, बच्चों के लिए किए जाने वाले शुभ कार्य तथा संतान के जन्म समय में भी इस योग का विचार किया जाता है. वसिष्ठ ऋषि द्वारा दिवसकाल में यदि यमघंटक नामक दुष्ट योग हो तो मृत्युतुल्य कष्ट हो सकता है, परंतु साथ ही रात्रिकाल में इसका फल इतना अशुभ नहीं माना जाता.

यमघंटक योग में आरंभ किया गया कार्य सफलता नहीं पाता. इसी प्रकार जब रविवार को मघा नक्षत्र हो, सोमवार को आद्रा नक्षत्र हो, मंगल को विशाखा नक्षत्र, बुधवार को मूल, गुरु को स्वाति, शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र हो तथा शनिवार को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र हो तो यमघंटक नामक अशुभ योग बनता है.

किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है. हर शुभ समय का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है. शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिये. चर, स्थिर लग्नों का ध्यान रखना चाहिए. जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है.

योगों में जीवन का सारांश छुपा होता है जिसे पढ़कर व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान के संदर्भ में अनेक बातों को जान सकता है. ज्योतिष में अनेक योगों का निर्माण होता है कुछ शुभ योग होते हैं और कुछ अशुभ योग होते हैं, कौन सा योग किस प्रकार के फल देगा इस बात को तभी समझा जा सकत है जब हम समय का अवलोकन करते हैं.

यमघंटक योग 2025 | Yamghantak Yoga 2025

प्रारम्भकाल घं. मि. समाप्तिकाल घं. मि.
09 जनवरी 15:07 10 जनवरी सूर्योदयकाल
10 जनवरी 13;46 11 जनवरी सूर्योदयकाल
06 फरवरी सूर्योदयकाल 06 जनवरी 19:30
07 फरवरी सूर्योदयकाल 07 फरवरी 18:40
15 फरवरी  25:40 16 फरवरी  सूर्योदयकाल
15 मार्च 08:54 16 मार्च सूर्योदयकाल
12 अप्रैल सूर्योदयकाल 12 अप्रैल  18:08
12 मई 06:17 13 मई  सूर्योदयकाल
01 जून   21:37 02 जून   सूर्योदयकाल
09 जून   सूर्योदयकाल 09 मई   15:31
11 जून    20:11  12 जून   सूर्योदयकाल
29 जून   06:34 30 जून  सूर्योदयकाल
09 जुलाई  सूर्योदयकाल 10 जुलाई   04:50
27 जुलाई  सूर्योदयकाल 27 जुलाई  16:23
06 अगस्त  सूर्योदयकाल 06 अगस्त  13:00
19 अगस्त   सूर्योदयकाल 19 अगस्त  सूर्योदयकाल
 16 सितंबर  सूर्योदयकाल 16 सितंबर    06:46
 09 अक्टूबर    20:03 10 अक्टूबर  सूर्योदयकाल
 10 अक्टूबर   17:32  11 अक्टूबर  सूर्योदयकाल
06 नवंबर   सूर्योदयकाल 07 नवंबर    03:28
07 नवंबर सूर्योदयकाल  07 नवंबर    24:34
15 नवंबर   23:35  16 नवंबर  सूर्योदयकाल
04 दिसंबर   सूर्योदयकाल 04 दिसंबर   14:54
05 दिसंबर   सूर्योदयकाल 05 दिसंबर  11:46
13 दिसंबर   सूर्योदयकाल   14 दिसंबर  सूर्योदयकाल
        

 

Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Transit, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , , | Leave a comment

क्या होता है ज्वालामुखी योग और इस वर्ष 2025 में कब बनेगा ये योग

Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , | Leave a comment

2025 में सूर्य संक्रांति का समय और कब करें दान-पूजा (पुण्यकाल)

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्राति कहलाता है. संक्रान्ति को हिन्दू पंचांग में सूर्य राशि परिवर्तन समय कहा जाता है. इस समय के दौरान बहुत से धार्मिक कृत्य भी किए जाते हैं.

12 राशियों में सूर्य का गोचर ही संक्रान्ति होता है इसलिए सूर्य संक्रान्ति भी 12 ही होती है. राशियों के नाम से निम्न संक्रान्ति होती हैं :- मेष संक्रान्ति , वृष संक्रान्ति, मिथुन संक्रान्ति, कर्क संक्रान्ति, सिंह संक्रान्ति, कन्या संक्रान्ति, तुला संक्रान्ति, वृश्चिक संक्रान्ति, धनु संक्रान्ति , मकर संक्रान्ति , कुम्भ संक्रान्ति, मीन संक्रान्ति.


संक्रान्ति महत्व

संक्रान्ति में इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है की वह किसी दिन अर्थात कौन से वार को पड़ रही है. जिस भी वार में संक्रान्ति आती है उस वार का प्रभाव भी संक्रान्ति पर दिखाई देता है. शुभ वारों के समय संक्रान्ति होने पर शुभता का असर अधिक देखने को मिलता है . वहीं क्रूर अथवा पाप ग्रहों के वार वाले दिन संक्रान्ति होने पर आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर उथल पुथल दिखाई देती है. चुनौतियां का सना अधिक करना पड़ सकता है.

संक्रान्ति का समय हमे बताता है कि किस प्रकार जीवन में किसी भी नई वस्तु का आगमन हमारे संपूर्ण विकास को प्रभावित करने वाला होता है. इसलिए प्रत्येक संक्रान्ति के समय खान-पान, पहनावे और अनेक स्तरों पर बदलाव दिखाई देता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण समय संक्राति का मकर संक्रान्ति का होता है क्योंकि इसी से निरयण काल गणना में उत्तरायण का समय आरंभ होता है. वहीं दूसरी ओर कर्क संक्रान्ति आने पर ये समय दक्षिणायन के आगमन को दर्शाता है. तो इन दोनों ही संक्रान्ति समय विशेष पूजा-पाठ एवं अन्य कार्य संपन्न होते हैं. इसी तरह अन्य संक्रान्तियों का आना भी किसी न किसी रुप में अपना प्रभाव अवश्य ही दिखाता है.


इन सभी संक्रान्ति के काल में दान-पुण्य, स्नानादि का महत्व माना गया है. संक्रान्ति समय के दौरान गंगा स्नान एवं किसी भी धर्म स्थल एवं पवित्र नदियों में स्नान की बहुत ही महत्ता बतायी गई है. संक्रांति का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि ये समय जलवायु एवं प्रकृति के परिवर्तन को भी दर्शाता है. ऎसे में इस समये के दौरान कई तरह के कार्य किए जाते हैं और सूर्य की उपासना की जाती है.

संक्रान्ति प्रवेशकाल वर्ष 2025 | Niryan Sankranti Beginning time 2025

संक्रान्ति का नाम दिनाँक तथा वार प्रवेशकाल पुण्यकाल समय
माघ संक्रान्ति 14 जनवरी, मंगलवार 08:55 घण्टे घण्टे सूर्योदय से दोपहर 15:19 तक
फाल्गुन संक्रान्ति 12 फरवरी, बुधवार 21:56 घण्टे घण्टे मध्याह्न बाद से
चैत्र संक्रान्ति 14 मार्च, शुक्रवार 18:50 घण्टे घण्टे दोपहर 12:26 बाद से
वैशाख संक्रान्ति 13 अप्रैल, रविवार 27:21 घण्टे घण्टे अगले दिन स्बुब्ह 09:45 तक
ज्येष्ठ संक्रान्ति 14 मई, बुधवार 24:11 घण्टे घण्टे अगले दिनसुबह 06:35 तक
आषाढ़ संक्रान्ति 15 जून, रविवार 06:44 घण्टे घण्टे सूर्य उदय से दोपहर 13;08 तक
श्रावण संक्रान्ति 16 जुलाई, बुधवार 17:30 घण्टे घण्टे सुबह 11:06 बाद से
भाद्रपद संक्रान्ति 16 अगस्त, शनिवार 25:52 घण्टे अगले दिन सुबह 08:16 तक
आश्विन संक्रान्ति 16 सितम्बर, मंगलवार 25:47 घण्टे अगले दिन 08:11 तक
कार्तिक संक्रान्ति 17 अक्तूबर, शुक्रवार 13:45 घण्टे प्रात: 07:21 से शाम तक
मार्गशीर्ष संक्रान्ति 16 नवम्बर, रविवार 13:36 घण्टे सुबह 07:12 से शाम तक
पौष संक्रान्ति 15 दिसम्बर, सोमवार 28:19 घण्टे अगले दिन 10:43 तक
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Nakshatra, Planets, Transit, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , | Leave a comment

जानें, पूर्णिमा व्रत की महिमा और पूजा मुहूर्त समय

श्री सत्यनारायण व्रत कथा को मुख्य रुप से पूर्णिमा तिथि पर संपन्न किया जाता है. इसके अतिरिक्त किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने हेतु भी श्री सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण किया जाता है. मान्यथा है कि भगवान सत्यनारायण की कथा एवं व्रत का पालन करने से जीवन में आने वाले संकटों एवं परेशानियों से मिक्ति प्राप्त होती है.

परंपरा स्वरुप सत्यनारायण कथा को भारत वर्ष में बहुत श्रद्धा भाव के साथ घरों में और मंदिरों इत्यादि स्थानों में किया जाता है. श्री सत्यनारायण कथा को ब्राह्मणों द्वारा अथवा स्वयं जैसी संभव हो करना चाहिए. कहा जाता है की पूर्णिमा तिथि के समय व पूर्णिमा के व्रत में सत्यनारायण भगवान की कथा को सुनने से व्रत का मनोरथ पूर्ण होते हैं.

सत्य को नारायण का स्वरुप माना गया है. संसार की माया से मुक्ति का आधार नारायण ही हैं. इसलिए सत्यनारायण व्रत का संकल्प लेने और पूजा करने से भक्त के सभी कार्य सफल होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत को प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है, पर कई बार पंचांग तिथि गणना अनुसार यह व्रत चतुर्दशी तिथि में भी रखा जाता है. क्योंकि चन्द्रोदय कालिक एवं प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा ही व्रत के लिए ग्रहण करने के कारणवश इस व्रत को करने में तिथि भेद भी प्राप्त हो जाता है.

इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है. सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है. पूजा के उपरान्त भोजन ग्रहण किया जाता है. सत्यनारायण व्रत में स्नान, दान, जप और तप सभी का अपना विशेष महत्व होता है. आईये जानते हैं इस वर्ष कौन-कौन से दिन होगी सत्यनारायण व्रत एवं कथा.

वर्ष 2025 में इस व्रत की तिथियां निम्न रहेगी:

In 2025 the Dates of this Vrat will be as follows:

दिनाँक हिन्दु चन्द्रमास
13 जनवरी , दिन सोमवार पौष माह
12 फरवरी, दिन बुधवार माघ माह
14 मार्च, दिन शुक्रवार फाल्गुन माह
12 अप्रैल, दिन शनिवार चैत्र माह
12 मई, दिन सोमवार वैशाख माह
11 जून, दिन बुधवार ज्येष्ठ माह
10 जुलाई, दिन गुरुवार आषाढ़ माह
09 अगस्त, दिन शनिवार श्रावण माह
07 सितंबर, दिन रविवार भाद्रपद माह
07 अक्तूबर, दिन मंगलवार आश्विन माह
05 नवंबर, दिन बुधवार कार्तिक पूर्णिमा
04 दिसंबर, दिन गुरुवार मार्गशीर्ष पूर्णिमा
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Muhurta, Transit, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , , | Leave a comment

2025 के लिए शिवरात्रि तिथि व मुहूर्त पूजन समय

भगवान शिव की आराधना का एक विशेष दिन होता है शिवरात्रि. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. इस तरह से यह शिवरात्रि मासिक होती है जो हर माह आती है.

पौराणिक मान्यता अनुसार चतुर्दशी तिथि की रात्रि समय भगवान शिव लिंगरूप में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि उत्सव मनाने का विधान रहा है. इसके अतिरिक्त अनेक कथाओं को इस रात्रि से जोड़ा जाता है. जिसमें भगवान शिव के क्रोध की शांति का समय, प्रलय को रोकना, शिव विवाह का होना जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का संबंध इस शिवरात्रि से रहा है. इसलिए विशेष रुप से चतुर्दशी की रात्रि के समय को भगवान शिव के पूजन एवं रात्रि जागरण के रुप में संपन्न किया जाता है.

मासिक शिवरात्रि में फाल्गुन माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रुप में संपूर्ण भारत वर्ष में उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसी क्रम में सावन माह के दौरन आने वाली शिवरात्रि भी विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है.

जो भक्त भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं वह इस व्रत को करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. शिवरात्रि का व्रत करना चतुर्दशी से आरंभ होता है और रात्रि जागरण करते हुए किया जाता है. शिवरात्रि में महत्वपूर्ण कार्य रात्रि जरण एवं शिवपूजन होता है. पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है. मध्य रात्रि को निशिथ काल समय इस पूजन को करने से सभी कष्ट एवं बांधाएं दूर होती हैं. जीवन में सौभाग्य और सुख का आगमन होता है.

भगवान शिव की पूजन विधि

शिवरात्रि पूजन में शुद्ध चित्त मन के साथ इस व्रत का आरंभ करना चाहिए. भगवान शिव भोले स्वरुप हैं इसलिए आपकी साधारण सी भक्ति भी उनको तुरंत प्रसन्न करने देने वाली हो सकती है. भक्त की भक्ति और उसके निश्च्छल प्रेम से ही भगवान भोले शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.

शिवरात्रि पूजन में शुद्ध आसन पर बैठकर कर, पूजन का संकल्प करना चाहिए. भगवान गणेश एवं मां गौरी का स्मरण एवं पूजन करना चाहिए. भगवान शिव का ध्यान करने करते हुए शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक करना चाहिए. इसके साथ ही पंचामृत से भी शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए.

बिल्वपत्र, सुगंध, अक्षत, पुष्प, फल इत्यादि भगवान को अर्पित करने चाहिए. भगवान शिव को श्वेत वस्त्र एवं जनेऊ चढाना चाहिए व माता गौरी को लाल चुनरी व सिंदुर अर्पित करना चाहिए. धूप, दीप जला कर भगवान के पंचाक्षरी मंत्र का जप करना चाहिए व आरती व शिव चालिसा का पाठ करने के पश्चात भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और भक्तों में भगवान के भोग को प्रसाद रुप में बांटना चाहिए. इस प्रकार भगवान शिव के समक्ष अपने व्रत का संकल्प पूर्ण करना चाहिए.

मास शिवरात्रि व्रत 2025 की तिथियाँ | Monthly Shivratri Vrat Dates 2025

दिनाँक वार चन्द्रमास
27 जनवरी सोमवार माघ माह   
26 फरवरी बुधवार फाल्गुन माह (महाशिवरात्रि)  
27 मार्च गुरुवार  चैत्र माह    
26 अप्रैल शनिवार वैशाख माह  
25 मई रविवार ज्येष्ठ माह    
23 जून   सोमवार आषाढ़ माह  
23 जुलाई    बुधवार  श्रावण माह
21 अगस्त गुरुवार भाद्रपद माह
19 सितंबर   शुक्रवार अश्विन माह
19 अक्टूबर  रविवार  कार्तिक माह
18 नवंबर  मंगलवार मार्गशीर्ष माह
18 दिसंबर गुरुवार पौष माह 
     
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Vedic Astrology | Tagged , , , | Leave a comment

इस दिन है गंडमूल नक्षत्र, जानिये मूल नक्षत्र का प्रभाव कैसे बदल सकता है आप के बच्चे का जीवन

27 नक्षत्रों में से 6 नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं. ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती,मूल, मघा और अश्विनी नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशि और नक्षत्र की समाप्ति का समय और दूसरी राशि राशि और नक्षत्र का आरंभ होने के मध्य की स्थिति गण्डमूल कही जाती है.

ज्योतिष शास्त्र में जिस जातक का जन्म गण्डमूल नक्षत्रों में होता है वह जातक अपने माता-पिता, भाई-बहन, नाना पक्ष-दादा पक्ष एवं स्वयं के लिए भी कष्ट का कारण बनता है. ऎसे में गण्डमूल से होने वाले अशुभ प्रभाव से बचने के लिए मूलशांति पूजा कराना अत्यंत आवश्यक माना गया है.

मूल नक्षत्र में जन्में जातक के लिए मूल शांति करा देने पर शुभता का प्रभाव बढ़ता है. यदि बच्चा गंडमूल नक्षत्र में जन्मा है तो इस बात को लेकर घबराना और परेशान नहीं होना चाहिए. ये बच्चे के योग हैं की वह उस मूल नक्षत्र में जन्मा है इसलिए उसके लिए मूल शांति पूजा करवा लेना अनुकूल होता है.

कैसे बनते हैं गण्डमूल नक्षत्र ?

राशि और नक्षत्र के एक साथ उदय और समाप्त होने के आधार पर गंडमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है. कर्क राशि और आश्लेषा नक्षत्र का अंत साथ-साथ होता है इसलिए अश्लेषा को गण्ड और सिंह राशि का अंत और मघा नक्षत्र का उदय एक साथ होता है. इसलिए मघा को मूल संज्ञक नक्षत्र माना गया है. वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र का अंत एक साथ होने के कारण ज्येष्ठा को गण्ड संज्ञक कहा जाता है.

धनु राशि और मूल नक्षत्र की शुरुआत का समय साथ-साथ होना मूल नक्षत्र संज्ञक कहा जाता है. मीन राशि और रेवती नक्षत्र की समाप्ति साथ-साथ होती है, तो रेवती को गण्ड कहा जाता है और मेष राशि और अश्विनि नक्षत्र का आरंभ साथ में होता है इसलिए अश्विनि मूल नक्षत्र कहलाता है.

गंडमूल नक्षत्र शांति पूजा

गंडमूल नक्षत्र में जन्में जातक के जन्म के 27वें दिन में गंड मूल शांति पूजा का विधान बताया गया है. जिसमें योग्य ब्राह्मणों द्वारा पूजन होता है. इस पूजन में नक्षत्र का मंत्र जाप होता है. 27 कुओं का जल, 27 तीर्थ स्थलों की मिट्टी, समुद्र का फेन, 27 छिद्रों वाला मिट्टी का बर्तन ,27 वृक्षों के पत्ते, सप्त अनाज, इत्यादि वस्तुओं का पूजन में उपयोग होता है जिसमें मूल शांति प्रक्रिया सम्पन्न होती है. गंडमूल की विधिवत तरीके से करवाई गई शांति पूजा जातक के लिए अत्यंत उपयोगी एवं शुभ होती है.

गण्डमूल नक्षत्रों का प्रारम्भ और समाप्तिकाल (भारतीय समयानुसार) – 2025 | Starting and ending time of Gandmul Nakshatra 2024 (Indian Time) :

Starting and ending time of Gandmul Nakshatra 2025 (Indian Time) :
प्रारम्भकाल समाप्तिकाल
तिथि नक्षत्र समय (घण्टे-मिनट) तिथि नक्षत्र समय (घण्टे-मिनट)
06 जनवरी रेवती 19:07 08 जनवरी अश्विनी 16:30
15 जनवरी आश्लेषा 10:28 17 जनवरी मघा 12:45
25 जनवरी ज्येष्ठा 07:08 27 जनवरी मूल 09:02
02 फरवरी रेवती 24:53 04 फरवरी अश्विनी 21:50
11 फरवरी आश्लेषा 18:34 13 फरवरी मघा 21:07
21 फरवरी ज्येष्ठा 15:54 23 फरवरी मूल 18:43
02 मार्च रेवती 09:00 04 मार्च अश्विनी 04:30
10 मार्च आश्लेषा 24:52 13 मार्च मघा 04:06
20 मार्च ज्येष्ठा 23:32 23 मार्च मूल 03:24
29 मार्च रेवती 19:27 31 मार्च अश्विनी 13:45
07 अप्रैल आश्लेषा 06:25 09 अप्रैल मघा 09:57
17 अप्रैल ज्येष्ठा 05:55 19 अप्रैल मूल 10:21
26 अप्रैल रेवती 06:27 27 अप्रैल अश्विनी 24:29
04 मई आश्लेषा 12:54 06 मई मघा 15:52
14 मई ज्येष्ठा 11:47 16 मई मूल 16:08
23 मई रेवती 16:03 25 जून अश्विनी 11:12
31 मई आश्लेषा 21:08 02 जून मघा 22:56
10 जून ज्येष्ठा 18:02 12 जून मूल 21:57
19 जून रेवती 23:17 21 जून अश्विनी 19:50
28 जून आश्लेषा 06:36 30 जून मघा 07:21
07 जुलाई ज्येष्ठा 25:12 10 जुलाई मूल 04:50
17 जुलाई रेवती 16:01 18 जुलाई अश्विनी 26:14
25 जुलाई आश्लेषा 16:01 27 जुलाई मघा 16:23
04 अगस्त ज्येष्ठा 09:13 06 अगस्त मूल 13:00
13 अगस्त रेवती 10:33 15 अगस्त अश्विनी 07:36
21 अगस्त आश्लेषा 24:09 23 अगस्त मघा 24:55
31 अगस्त ज्येष्ठा 17:27 02 सितंबर मूल 21:51
09 सितंबर रेवती 18:07 11 सितंबर अश्विनी 13:58
18 सितंबर आश्लेषा 06:33 20 सितंबर मघा 08:06
27 सितंबर ज्येष्ठा 25:08 30 सितंबर मूल 06:18
07 अक्टूबर रेवती 04:02 08 अक्टूबर अश्विनी 22:45
15 अक्टूबर आश्लेषा 12:00 17 अक्टूबर मघा 13:28
25 अक्टूबर ज्येष्ठा 07:52 27 अक्टूबर मूल 13:28
03 नवम्बर रेवती 15:06 05 नवम्बर अश्विनी 09:40
11 नवम्बर आश्लेषा 18:18 13 नवम्बर मघा 19:38
21 नवंबर ज्येष्ठा 11:56 23 नवंबर मूल 19:28
30 नवंबर रेवती 25:11 02 दिसंबर अश्विनी 20:52
08 दिसंबर आश्लेषा 26:53 10 दिसंबर मघा 26:45
18 दिसंबर ज्येष्ठा 20:07 20 दिसंबर मूल  25:22
28 दिसंबर रेवती 08:44 30 दिसंबर अश्विनी  06:05
Posted in Basic Astrology, Hindu Calendar, Hindu Maas, Hindu Rituals, Vedic Astrology | Tagged , , , | Leave a comment