मेष लग्न
मेष राशि का स्वामी मंगल है. बृहस्पति और मंगल नैसर्गिक मित्र हैं अत: मेष राशि गुरु की मित्र राशि होगी. मेष राशि में बृहस्पति की दशा के कारण व्यक्ति सक्षम और तेजस्वी बनता है. व्यक्ति अपने गुणों के कारण यश और कीर्ति प्राप्त करता है.उदार, नेक, धनवान और सोच-समझकर काम करने वाला होता है. नैतिक, विवेकशील, दानशील, धार्मिक और बुद्धिमान होता है. विजय और सफलता प्राप्त होती है. इस समय नकारात्मक पक्ष के रुप में क्रोध एवं अभिमान की अधिकता होती है. खर्च भी बहुत अधिक रह सकता है.
वृषभ लग्न
वृष राशि का स्वामी शुक्र है. गुरु देवताओं के गुरु हैं और शुक्र देवताओं के गुरु हैं. इस आधार पर बृहस्पति और शुक्र एक दूसरे के समान ही प्रभावशील हैं, दोनों ही शुभ और श्रेष्ठ ग्रह हैं. किंतु दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता भी है. अत: बृहस्पति के वृष लग्न की दशा का समय काफी उतारचढ़ाव लिए रहता है. इस दशा में व्यक्ज्ति अत्यंत उदार, परम, बुद्धिमान, धनवान, तेजस्वी और समर्थ बनता है. विजयी, न्याय प्रिय तथा यशस्वी होता है. व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करता है. कई गुणों से परिपूर्ण होता है. अनेक मित्र होते हैं. इस दशा में व्यक्ति ब्राह्मणों और देवताओं की श्रद्धा से पूजा करता है.
मिथुन लग्न
मिथुन लग्न का स्वामी बुध है. बुध का बृहस्पति के साथ समानता का भाव है. इसलिए बृहस्पति मिठू पर स्थित हो तो व्यक्ति का व्यवहार कुशल और लोकप्रिय होता है. जातक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और सुखी होता है. जातक मधुरभाषी, पवित्र, ईमानदार और दयालु होता है. जातक तेजस्वी, सुशील और चतुर स्वभाव का होता है. जातक के अनेक मित्र और पुत्र होते हैं तथा उसका परिवार बड़ा होता है. जातक नीति में कुशल होता है और व्यापार से लाभ प्राप्त करता है.
कर्क लग्न
कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा है. बृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है. गुरु और चंद्र दोनों ही सौम्य ग्रह हैं अत: गुरु के कर्क राशि में दशा होने पर व्यक्ति को शुभ फल मिलते हैं. व्यक्ति का शरीर सुन्दर होता है, वह गुणों से सम्पन्न, मधुर वाणी से दूसरों को वश में करने वाला तथा सज्जन व्यक्ति होता है. व्यक्ति गुणवान, धनवान, शास्त्रों का ज्ञाता और गूढ़ विद्या वाला होता है. अपने कार्यों द्वारा यश पाने में सफल होता है. कला प्रेमी भी होता है. सत्यवादी और समाज सुधारक होता है. अपनी सज्जनता, उदार चरित्र, सदाचार और विद्वता से कीर्ति प्राप्त करता है. इस दशा में नकारात्मक रुप से शत्रुओं का भय रोग का प्रभाव और खर्चों की अधिकता मुख्य रुप से परेशान करने वाली होती है.
सिंह लग्न
सिंह का स्वामी सूर्य है. सूर्य और गुरु नैसर्गिक मित्र हैं इस कारण से बृहस्पति की दशा का प्रभाव इसके लिए शुभ होता है. इस दशा में व्यक्ति चतुर, उदार और भाग्यशाली होता है. व्यक्ति उच्च पद की प्राप्ति करता है. न्यायप्रिय, परोपकारी और कार्यकुशल होता है. धर्मकर्म में आस्था रखता है और पवित्र आत्मा होता है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. प्राय: सभी से मित्रता और स्नेह को रखता है. नकारात्मक पक्ष के रुप में काम में देरी, क्रोध एवं जिद की अधिकता के साथ आपसी संबंधों को लेकर उतार-चढ़ाव अधिक रह सकता है.
कन्या लग्न
कन्या का स्वामी बुध है. बुध का गुरु के साथ सम भाव होता है गुरु की दशा का प्रभाव व्यक्ति को मिलेजुले रुप में प्राप्त होता है. के स्थित होने से जातक विद्वान, सहनशील और सुखी होता है. व्यक्ति स्वभाव से चंचल होता है, भोग-विलास में लिप्त रहता है. चित्रकला में विशेष रुचि होती है. व्यक्ति को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. ऐसे व्यक्ति को व्यापार में यश और लाभ की प्राप्ति होती है.
लेकिन यह समय उसे स्वाथ्य को लेकर चिंता रह सकती है. आपसी संबंधों में कई तरह के अटकाव भी झेलने को मिलते हैं.
तुला लग्न
तुला लग्न का स्वामी शुक्र है. गुरु देवताओं के गुरु हैं और शुक्र दैत्यों के गुरु हैं. इस आधार पर गुरु और शुक्र एक दूसरे के विपरीत पक्ष में हैं. लेकिन दोनों ही शुभ और श्रेष्ठ ग्रह हैं इसलिए गुरु के दशा प्रभाव की स्थिति भी मिलेजुले असर को दिखाने वाली होती है. व्यक्ति बुद्धिमान और सुखी होता है. व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहता है.अनेक मित्र होते हैं. पुत्र सुख की प्राप्ति होती है. लेखन और कला के कार्यों में रुचि रखता है. जातक व्यापार में भी कुशल और सफल होता है. व्यवहार कुशल, सुखी और सम्माननीय होता है. इस दशा के समय व्यक्ति को जीवन में अपने आस पास की चीजों के कारण अधिक असुविधाओं को झेलना पड़ सकता है.
वृश्चिक लग्न
वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है. मंगल और गुरु नैसर्गिक मित्र हैं इसलिए वृश्चिक के लिए गुरु दशा मित्र दशा की भांति होती है जिसके कारण व्यक्ति कार्यकुशल होता है. स्वाभिमानी, उदार, तेजस्वी और वैज्ञानिक होता है. शुभ कर्म करने वाला होता है, धन, स्त्री और पुत्र का सुख प्राप्त करता है. समर्थ और परोपकारी होता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अधिक संभल कर रहना होता है.
धनु लग्न
धनु लग्न के स्वामी स्वयं बृहस्पति हैं. गुरु दशा का प्रभाव अनुकूल होता है. गुरु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति सुंदर और आकर्षक होता है. इस दशा में धर्म का प्रचार करता है और धर्मगुरु बन सकता है. पद की प्राप्ति करता है और धनवान बनता है. अहंकारी और चतुर भी होता है. परोपकारी, प्रभावशाली, दार्शनिक और उच्च विचार रखने वाला होता है.
मकर लग्न
मकर लग्न का स्वामी शनि है. बृहस्पति शुभ और अच्छे स्वभाव का ग्रह है जबकि शनि क्रूर और प्रतिशोधी है. बृहस्पति मकर राशि में नीच का है इसलिए इस कारण से दशा में शुभ प्रभाव नहीं दे पाता है. इस दशा के प्रभाव से व्यक्ति चंचल होता है. सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती है. मेहनत व्यर्थ चली जाती है. धन संचय करने में परेशानी होती है नासमझ और व्यर्थ के काम में दुखी होता है. एकाग्रता की कमी का प्रभाव काम पर पड़ता है. व्यक्ति सदैव दूसरों के लिए कार्य करता है.
कुंभ लग्न
कुम्भ लग्न का स्वामी शनि है. बृहस्पति शुभ और अच्छे स्वभाव का ग्रह है ऎसे में इन दोनों का प्रभाव मिलेजुले असर दिखाता है. बृहस्पति के कुंभ लग्न की दशा का प्रभाव आर्थिक लाभ का समय देती है ओर साथ में स्वास्थ्य को लेकर परेशानी भी दिखाने वाली होती है. स्वास्थ्य कमजोर हो सकता है. व्यक्ति धैर्यवान होता है लेकिन चिंताओं में भी अधिक हो सकता है. काम काज में कई तरह के शार्टकट भी अपना सकता है.
मीन लग्न
मीन लग्न का स्वामी स्वयं बृहस्पति होता है. इस दशा के प्रभाव द्वारा व्यक्ति शास्त्रों का ज्ञाता होता है. व्यक्ति दूसरों के प्रति दया का भाव का रखता है. व्यक्ति व्यवहार कुशल और बुद्धिमान होता है. स्वभाव से शांत और संतुष्ट होता है. राजसी और उच्च पद की प्राप्ति करता है. साहित्य, लेखन और शास्त्रों के अध्ययन में विशेष रुचि रख सकता है.