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तुला संक्रांति, जिसे सूर्य के तुला राशि में प्रवेश का समय कहा जाता है. तुला सूर्य संक्रमण का वो खास समय होता है जब सूर्य दक्षिणायन की गति में आरंभ होता है. इस दिन को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है इसे हिंदू धर्म
सिंह संक्रांति का समय अगस्त माह के मध्य समय पर आता है. सिंह संक्रांति सूर्य के सिंह राशि में गोचर करने के समय को कहा जाता है. सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश ही सूर्य संक्रांति होता है. सूर्य संक्रांति के समय पर पूजा
वारुणी योग एक अत्यंत ही शुभ एवं उत्तम गति प्रदान करने वाला समय होता है. हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत ही पावन शुभ समय मुहूर्त भी है. यह उन शुभ मुहूर्तों की ही तरह है जो अबूझ मुहूर्त के महत्व को दर्शाते हैं. वारुणी योग के
मंगल एक उग्र व अग्नि युक्त ग्रह हैं. सभी ग्रहों में से मंगल को ही ऎसे कार्यों का सौंपा जाता है जिनमें शक्ति और साहस का परिचय दिया जा सके. यह एक योद्धा की भांति है जिसमें अदम्य साहस है विपत्तियों से लड़ने का. मंगल ग्रह
आश्विन मास जो श्राद्ध कार्य के लिए अत्यंत ही शुभ और महत्वपूर्ण मास बताया गया है. अधिक मास के रुप में इस साल का समय आश्विन मास में होना इस समय को अत्यधिक उत्तम बनाने जैसा है. इस समय पर चंद्र आश्विन मास “अधिक” पुरुषोत्तम
सभी मासों में पुरुषोत्तम मास का बहुत गहरा और गंभीर असर देखने को मिलता है. पुरुषोत्तम मास सभी 12 मासों से अलग होता है. यह प्रत्येक वर्ष में आने वाले मासों से इसलिए भिन्न है क्योंकि यह हर वर्ष नहीं आता है. यह केवल तीन
सूर्य का मिथुन राशि से निकल कर कर्क राशि में जाना ही “कर्क संक्रांति” कहलाएगा. 16 जुलाई 2023 को सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे. कर्क राशि वालों के लिए सूर्य उनकी राशि में ही गोचर करेंगे. सूर्य राशि द्वारा सूर्य का
वर्ष 2020 में आने वाले अधिक मास के समय पर, एक मास में दो अमावस्या का योग बन रहा है. दो अमावस्या का योग आश्विन मास पर बनने के कारण ये समय श्राद्ध और तर्पण कार्यों के लिए अत्यंत ही विचारणीय हो जाता है. दर्शद्व यमतिक्रम्य
इस साल भी बुध अस्त होने वाले हैं बुध के अस्त होने के कारण कई खास कार्यों पर लग सकती है. बुध का प्रभाव व्यक्ति को बौद्धिकता की उत्तम प्रवीणता देता है. बुध का प्रभाव ही वनस्पतियों पर असर डालता है. बुध जब अस्त होंगे तो उस
अधिक मास अर्थात मास की अधिकता को ही अधिकमास कहा जाता है. मास का अर्थ माह से होता है. हिंदू पंचांग गणना में तिथि, दिन मास की स्थिति को समझने के लिए जिस वैदिक गणना आधार लिया जाता है, उसके अंतर्गत ही अधिक मास की कल्पना की
17 जुलाई को मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी इस दिन के बाद से सभी प्रकार के विवाह, सगाई, गृह प्रवेश मुहूर्त इत्यादि शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी. आषाढ़ मास की एकादशी के दिन से इन मांगलिक कार्यों पर रोक का आरंभ होगा. ऎसा
नए और अच्छे वाहन की चाहत तो सभी के मन में रहती है, पर इसके साथ ही जो वस्तु हम ले रहे हैं वो सही रहे कोई दिक्कत न आई और हमारे लिए शुभदायक हो यह सभी बातें मन में चलती ही रहती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब उस समयावधि को संक्रान्ति कहते हैं. भचक्र में कुल 12 राशियाँ होती हैं. इसलिए सूर्य संक्रान्ति भी बारह ही होती है. इन बारह संक्रान्तियों को
भगवान शिव की आराधना का एक विशेष दिन होता है शिवरात्रि. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. इस तरह से यह शिवरात्रि मासिक होती है जो हर माह आती है. पौराणिक मान्यता अनुसार चतुर्दशी
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की