निरयण संक्रान्ति प्रवेश काल और पुण्यकाल 2025

वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब उस समयावधि को संक्रान्ति कहते हैं. भचक्र में कुल 12 राशियाँ होती हैं. इसलिए सूर्य संक्रान्ति भी बारह ही होती है. इन बारह संक्रान्तियों को हमारे ऋषियों ने चार भागों में बाँटा है – अयनी संक्रान्ति, विषुवी संक्रान्ति, षडशीतिमुखी संक्रान्ति और विष्णुपदी संक्रान्ति.

  • सूर्य जब मिथुन राशि से कर्क राशि में और धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब यह अयनी संक्रान्ति कहलाती है.
  • मेष तथा तुला राशि पर सूर्य के संक्रमण को विषुवी संक्रान्ति कहते हैं.
  • मिथुन, कन्या, धनु तथा मीन राशि पर सूर्य के संक्रमण को षडशीतिमुखी संक्रान्ति कहते हैं.
  • वृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुंभ राशियों पर सूर्य के संक्रमण को विष्णुपदी संक्रान्ति कहते हैं.

ज्योतिष में तथा शुभ कार्यों के सन्दर्भ में उत्तरायण को अधिक शुभ माना जाता है. उत्तरायण से दिन बढ़ने अर्थात बडे़
होने आरम्भ हो जाते हैं. दक्षिणायन में दिन घटने अर्थात छोटे होने आरम्भ हो जाते हैं. उत्तरायण से दिन बढ़ने आरम्भ होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं. दक्षिणायन में दिन छोटे होकर न्यूनता को प्राप्त होता है. इसलिए प्रकाश की न्यूनता-अधिकता के कारण ही दक्षिणायन की तुलना में उत्तरायण को अधिक महत्व दिया गया है.

सायन गणना के अनुसार आधुनिक समय में 22 दिसम्बर से सूर्य उत्तरायण और जून दक्षिणायन होना आरम्भ हो जाते हैं. संक्रान्तिकाल दान-पुण्य, स्नानादि का महत्व माना गया है सभी 12 संक्रान्तियों मकर संक्रान्ति को अत्यधिक पुण्यदायक है.

संक्रान्ति प्रवेशकाल वर्ष 2025 | Niryan Sankranti Beginning time 2025

संक्रान्ति का नाम दिनाँक तथा वार प्रवेशकाल पुण्यकाल समय
माघ संक्रान्ति 14 जनवरी, मंगलवार 26:43 घण्टे घण्टे  दोपहर 15:19 तक
फाल्गुन संक्रान्ति 12 फरवरी, बुधवार 21:56 घण्टे घण्टे  मध्याह्न बाद से होगा
चैत्र संक्रान्ति 14 मार्च, शुक्रवार 18:50 घण्टे घण्टे सूर्य उदय के बाद सारा दिन
वैशाख संक्रान्ति 14 अप्रैल, सोमवार 21:04 घण्टे घण्टे 09:45 तक
ज्येष्ठ संक्रान्ति 14 मई, बृहस्पतिवार 05:44 घण्टे घण्टे 07:46 तक
आषाढ़ संक्रान्ति 15 जून, रविवार  24:27 घण्टे घण्टे 13:08 तक
श्रावण संक्रान्ति 16 जुलाई, बुधवार 11:19 घण्टे घण्टे 17:30 पर आरंभ होगा
भाद्रपद संक्रान्ति 17 अगस्त, रविवार 19:44 घण्टे प्रात:काल 08:16 बाद तक
आश्विन संक्रान्ति 17 सितम्बर, बुधवार   19:43 घण्टे  08:11 तक
कार्तिक संक्रान्ति 17 अक्तूबर, शुक्रवार  07:42 घण्टे दोपहर 14:06 तक
मार्गशीर्ष संक्रान्ति 16 नवम्बर, रविवार 07:32 घण्टे शाम 07:12 तक
पौष संक्रान्ति 16 दिसम्बर, मंगलवार  22:10 घण्टे  10:43 तक
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साल 2025 में अमृत सिद्धि योग

किसी भी मुख्य कार्य को करने के लिए ज्योतिष में शुभ मुहूर्त विचार के बारे में बताया गया है. कई बार परिस्थिति वश अथवा समय के अभाव के चलते उपयुक्त समय न मिल पाने के कारण कोई सुनिश्चित या निर्धारित मुहूर्त नही मिल पाता है, तब उस समय अमृत सिद्धि योग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

इस योग में अभीष्ट कार्यों को करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है. अक्सर देखा जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ ही अमृत सिद्धि योग का संयोग बनता है, ऐसे में यह समय बहुत उपयुक्त होता है. इन दोनों ही योगों के बनने पर अगर आप कोई काम आरंभ करते हैं अथवा कुछ सफलता की आशा रखते हैं तो आपको सकारात्मक फलों की प्राप्ति होती है. इस बार 2025 में बनने वाले अमृत सिद्धि योगों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की जा रही है यदि आप अपने काम की शुरूआत इस समय पर करेंगे तो आपको बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं.

इस वर्ष 2025 में बनने वाले अमृत सिद्धि योग तिथियां इस प्रकार हैं

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
07 जनवरी 17:50 08 जनवरी 07:15
11 जनवरी 07:15 11 जनवरी 12:29
19 जनवरी 17:30 20 जनवरी 07:14
04 फरवरी 07:08 04 फरवरी 21:49
16 फरवरी सूर्योदयकाल 17 फरवरी सूर्योदयकाल
16 मार्च 06:30 16 मार्च 11:45
19 मार्च 20:50 20 मार्च 16:25
16 अप्रैल 05:55 17 अप्रैल 05:54
14 मई सूर्योदयकाल 14 मई 11:47
23 मई 16:02 24 मई सूर्योदयकाल
20 जून 05:24 20 जून 09:45
21 जुलाई 21:07 22 जुलाई 05:37
24 जुलाई 16:43 25 जुलाई सूर्योदयकाल
17 अगस्त 04:38 17 अगस्त 05:51
18 अगस्त 05:52 19 अगस्त 02:06
21 अगस्त 05:53 22 अगस्त सूर्योदयकाल
13 सितंबर 10:11 14 सितंबर सूर्योदयकाल
15 सितंबर 06:06 15 सितंबर 07:31
08 अक्टूबर 01:32 08 अक्टूबर 06:18
11 अक्टूबर 06:19 11 नवंबर 15:20
19 अक्टूबर 17:49 20 अक्टूबर 06:25
04 नवंबर 12:34 05 नवंबर 06:36
16 नवंबर 06:45 17 नवंबर 02:11
02 दिसंबर 06:57 02 दिसंबर 08:51
14 दिसंबर सूर्योदयकाल 14 दिसंबर 08:18

 

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द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग 2025

ज्योतिष में खरीदारी करने से संबंधित कई योगों के बारे में विवरण मिलता है. जिनमें शुभाशुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है. इन्ही योग में से ऎसे दो योग हैं द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग. इन योगों में भूमि संपति से संबंधित कार्य शुभ होते हैं. दोगुना-तिगुना लाभ पाने के लिए करें इस योग में खरीदारी बेहतर होती है. आभूषण इत्यादि की खरीददारी के लिए भी यह यह उत्तम माने जाते हैं. इसके अतिरिक्त वाहन, वस्त्र एवं नए व्यवसाय का आरंभ करने के लिए भी इन योगों के अनुरूप काम करना अनुकूल फल देने में सहायक होता है.

इन योगों में यदि किसी तरह का कोई अनिष्ट हो जाए तब वह भी दुगुना अथवा तिगुना ही होने की संभावना रहती है. त्रिपुष्कर योग की शांति के लिए तीन गायों के मूल्य का धन और द्विपुष्कर योग में दो गायों(गौओं) के मूल्य का धन तथा तिलों से बनी वस्तु का दान करना शुभ फलदायी रहता है. इस समय किया गया शुभ कार्य दोगुना और तिगुना फायदा देने वाला होता है.

<इस वर्ष 2025 में बनने वाले द्विपुष्कर और त्रिपुष्कर योग इस प्रकार रहेंगे

द्विपुष्कर योग तिथियाँ 2025 | Dwipushkar Yog Dates 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
21 जनवरी 07:14 21 जनवरी 12:39
16 मार्च  11:45 16 मार्च  04:58 
26 मार्च 14:56 27 मार्च सूर्योदयकाल
20 मई  03:16 20 मई  सूर्योदयकाल
23 जुलाई  सूर्योदयकाल 23 जुलाई 10:24
11 अगस्त   05:46 11 अगस्त  05:49
24 सितंबर सूर्योदयकाल 24 सितंबर 12:39
17 नवंबर  17:23 17 सितंबर 21:07
27 नवंबर 04:35 27 नवंबर सूर्योदयकाल
07 दिसंबर 11:07 07 दिसंबर 16:51
       

त्रिपुष्कर योग तिथियाँ 2025 | Tripushkar yog Dates 2025

प्रारंभ काल समाप्तिकाल
दिनाँक समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)
05 जनवरी 08:15  05 जनवरी 08:18
09 फरवरी 05:53  09 फरवरी 07:25 
25 फरवरी 06:50 25 फरवरी 12:47
01 मार्च  06:46 01 मार्च   11:22 
15 अप्रैल 05:56 15 अप्रैल  10:55
20 अप्रैल 11:48  20 अप्रैल  07:00
29 अप्रेल  05:42  29 अप्रैल  05:31 
03 मई सूर्योदयकाल  03 मई  12:34
18 जून 01:01  18 जून  05:23
22 जून  05:38 23 जून 01:21
01 जुलाई  10:20 02 जुलाई  05:27 
06 जुलाई  09:14  06 जुलाई  10:42
12 जुलाई  05:32  12 जुलाई  06:36 
28 अक्टूबर 03:45 29 अक्टूबर 06:31 
02 नवंबर 07:31 02 नवंबर 05:03 
16 दिसंबर 02:09  16 दिसंबर 11:57
27 दिसंबर 07:12  27 दिसंबर 09:09- 
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साल 2025 में चूड़ाकर्म संस्कार शुभ मुहूर्त समय

हमारे प्राचीन काल से भारतीय आयुर्वेद संतों ने सोलह कर्मकांडों का वर्णन दिया है। इन सभी सोलह अनुष्ठानों में शिशु के चुराकर्म संस्कार की प्रक्रिया भी शामिल है। वर्ष 2025 में ‘चूड़ाकर्म संस्कार’ अनुष्ठान के लिए निम्नलिखित शुभ तिथियां यहां दी गई हैं:

चूड़ाकर्म संस्कार शुभ मुहूर्त 2025

चूड़ाकर्म शुभ मुहूर्त जनवरी 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
15 जनवरी बुधवार पुष्य माघ कृष्णपक्ष द्वितीया मुहूर्त 10:28 तक
22 जनवरी बुधवार स्वाती माघ कृष्ण अष्टमी मुहूर्त मेष लग्न वृष लग्न  
26 जनवरी रविवार ज्येष्ठ माघ कृष्ण द्वाद्शी मुहूर्त 07:36 बाद 

चूड़ाकर्म शुभ मुहूर्त फरवरी 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
04 फरवरी मंगलवार अश्विनी माघ शुक्ल सप्तमी मेष लग्न वृष लग्न अभिजित मुहूर्त
10 फरवरी सोमवार पुनर्वसु माघ कृष्ण दशमी मुहूर्त 11:57 तक  
18 फरवरी मंगलवार स्वाती फाल्गुन कृष्ण षष्ठी मुहूर्त 07:36 बाद से
19 फरवरी बुधवार स्वाती फाल्गुन कृष्ण षष्ठी मुहूर्त 10:40 तक  

चूड़ाकर्म शुभ मुहूर्त अप्रैल 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
14 अप्रैल सोमवार स्वाती वैशाख कृष्ण प्रतिपदा मुहूर्त 09:45 बाद
21 अप्रैल सोमवार श्रवण चैत्र कृष्ण अष्टमी मुहूर्त 12:37 बाद
24 अप्रैल गुरुवार शतभिषा वैशाख कृष्ण एकादशी मुहूर्त 10:49 तक

चूड़ाकर्म शुभ मुहूर्त मई  2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
01 मई गुरुवार मृगशिरा नक्षत्र वैशाख शुक्ल चतुर्थी मुहूर्त 14:21 बाद
02 मई शुक्रवार पुनर्वसु वैशाख शुक्ल पंचमी मुहूर्त 12:37 बाद
03 मई शुक्रवार पुनर्वसु/पुष्य वैशाख शुक्ल षष्ठी मुहूर्त अभिजित तक
04 मई रविवार पुष्य वैशाख शुक्ल सप्तमी मुहूर्त 07:20 बाद
12 मई सोमवार स्वाती वैशाख पूर्णिमा मुहूर्त 06:17 बाद
15 मई गुरुवार ज्येष्ठ ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया अभिजित
19 मई सोमवार श्रवण ज्येष्ठ कृ्ष्ण षष्ठी मुहूर्त 10:19 तक
28 मई बुधवार मृगशिरा ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया मुहूर्त मिथुन और कन्या लग्न

चूड़ाकर्म संस्कार जून 2025

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दू माह शुभ समय
07 जून शनिवार स्वाती ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया मुहूर्त 09:32 बाद

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मासिक शिवरात्रि व्रत 2025

भगवान शिव की आराधना का एक विशेष दिन होता है शिवरात्रि. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. इस तरह से यह शिवरात्रि मासिक होती है जो हर माह आती है.

पौराणिक मान्यता अनुसार चतुर्दशी तिथि की रात्रि समय भगवान शिव लिंगरूप में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि उत्सव मनाने का विधान रहा है. इसके अतिरिक्त अनेक कथाओं को इस रात्रि से जोड़ा जाता है. जिसमें भगवान शिव के क्रोध की शांति का समय, प्रलय को रोकना, शिव विवाह का होना जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का संबंध इस शिवरात्रि से रहा है. इसलिए विशेष रुप से चतुर्दशी की रात्रि के समय को भगवान शिव के पूजन एवं रात्रि जागरण के रुप में संपन्न किया जाता है.

मासिक शिवरात्रि में फाल्गुन माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रुप में संपूर्ण भारत वर्ष में उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसी क्रम में सावन माह के दौरन आने वाली शिवरात्रि भी विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है.

जो भक्त भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं वह इस व्रत को करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. शिवरात्रि का व्रत करना चतुर्दशी से आरंभ होता है और रात्रि जागरण करते हुए किया जाता है. शिवरात्रि में महत्वपूर्ण कार्य रात्रि जरण एवं शिवपूजन होता है. पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है. मध्य रात्रि को निशिथ काल समय इस पूजन को करने से सभी कष्ट एवं बांधाएं दूर होती हैं. जीवन में सौभाग्य और सुख का आगमन होता है.

भगवान शिव की पूजन विधि

शिवरात्रि पूजन में शुद्ध चित्त मन के साथ इस व्रत का आरंभ करना चाहिए. भगवान शिव भोले स्वरुप हैं इसलिए आपकी साधारण सी भक्ति भी उनको तुरंत प्रसन्न करने देने वाली हो सकती है. भक्त की भक्ति और उसके निश्च्छल प्रेम से ही भगवान भोले शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.

शिवरात्रि पूजन में शुद्ध आसन पर बैठकर कर, पूजन का संकल्प करना चाहिए. भगवान गणेश एवं मां गौरी का स्मरण एवं पूजन करना चाहिए. भगवान शिव का ध्यान करने करते हुए शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक करना चाहिए. इसके साथ ही पंचामृत से भी शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए.

बिल्वपत्र, सुगंध, अक्षत, पुष्प, फल इत्यादि भगवान को अर्पित करने चाहिए. भगवान शिव को श्वेत वस्त्र एवं जनेऊ चढाना चाहिए व माता गौरी को लाल चुनरी व सिंदुर अर्पित करना चाहिए. धूप, दीप जला कर भगवान के पंचाक्षरी मंत्र का जप करना चाहिए व आरती व शिव चालिसा का पाठ करने के पश्चात भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और भक्तों में भगवान के भोग को प्रसाद रुप में बांटना चाहिए. इस प्रकार भगवान शिव के समक्ष अपने व्रत का संकल्प पूर्ण करना चाहिए.

मास शिवरात्रि व्रत 2025 की तिथियाँ | Monthly Shivratri Vrat Dates 2025

दिनाँक वार चन्द्रमास
27 जनवरी सोमवार माघ माह 
26 फरवरी बुधवार फाल्गुन माह (महाशिवरात्रि) 
27 मार्च बृहस्पतिवार चैत्र माह  
26 अप्रैल शनिवार वैशाख माह 
25 मई  रविवार  ज्येष्ठ माह
23 जून   सोमवार  आषाढ़ माह
23 जुलाई    बुधवार श्रावण माह
21 अगस्त बृहस्पतिवार भाद्रपद माह
19 सितंबर   शुक्रवार अश्विन माह
19 अक्टूबर     रविवार  कार्तिक माह
18 नवंबर  मंगलवार  मार्गशीर्ष माह
18 दिसंबर  गुरुवार  पौष माह

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गण्डमूल नक्षत्र 2025

27 नक्षत्रों में से छ: नक्षत्र ऎसे हैं जिन्हें गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है. यह नक्षत्र दो राशियों की संधि पर होते हैं, एक नक्षत्र के साथ ही राशि भी समाप्त होती है और दूसरे नक्षत्र के आरंभ के साथ ही दूसरी राशि भी आरंभ होती है. जैसे मीन राशि के अंत में रेवती नक्षत्र होता है और राशि के समाप्त होते ही मेष राशि का आरंभ होते ही आश्विनी नक्षत्र का आरंभ भी होता है. बुध व केतु के नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्रों में शामिल किया गया है. मीन-मेष, कर्क-सिंह, वृश्चिक-धनु राशियों में गण्डमूल नक्षत्र होता है.

रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्र को गंडमूल नक्षत्र माना जाता है. इन नक्षत्रों में से किसी एक में जन्म लेने पर बच्चा माता, पिता, स्वयं अथवा अन्य किसी रिश्तेदार पर भारी पड़ता है, माना गया है. इसके लिए बच्चे के जन्म के 27वें दिन शांति पूजा का विधान है.

गण्डमूल नक्षत्रों का प्रारम्भ और समाप्तिकाल (भारतीय समयानुसार) – 2025 | Starting and ending time of Gandmul Nakshatra 2025 (Indian Time) :

प्रारम्भकाल समाप्तिकाल
तिथि नक्षत्र समय (घण्टे-मिनट) तिथि नक्षत्र समय (घण्टे-मिनट)
06 जनवरी रेवती 19:07 08 जनवरी अश्विनी 16:30
15 जनवरी आश्लेषा 10:28 17 जनवरी मघा 12:45
25 जनवरी ज्येष्ठा 07:08 27 फरवरी मूल 09:02
02 फरवरी रेवती 24:53 04 फरवरी अश्विनी 09:26
11 फरवरी आश्लेषा 16:43 13 फरवरी मघा 21:07
21 फरवरी ज्येष्ठा 15:54 23 फरवरी मूल 18:43
02 मार्च रेवती 09:00 04 मार्च अश्विनी 04:30
10 मार्च आश्लेषा 24:52 13 मार्च मघा 04:06
20 मार्च ज्येष्ठा 23:32 23 मार्च मूल 03:24
29 मार्च रेवती 19:27 31 मार्च अश्विनी 13:45
07 अप्रैल आश्लेषा 06:25 09 अप्रैल मघा 09:57
17 अप्रैल ज्येष्ठा 05:55 19 अप्रैल मूल 10:21
26 अप्रैल रेवती 06:27 27 अप्रैल अश्विनी 24:39
04 मई आश्लेषा 12:54 06 मई मघा 15:52
14 मई ज्येष्ठा 11:47 16 मई मूल 10:36
23 मई रेवती 16:03 25 मई अश्विनी 11:12
31 मई आश्लेषा 21:08 02 जून मघा 22:56
10 जून ज्येष्ठा 18:02 12 जून मूल 21:57
19 जून रेवती 23:17 21 जून अश्विनी 19:50
28 जून आश्लेषा 06:36 30 जून मघा 07:21
07 जुलाई ज्येष्ठा 25:12 10 जुलाई मूल 04:50
17 जुलाई रेवती 04:51 18 जुलाई अश्विनी 26:14
25 जुलाई आश्लेषा 16:01 27 जुलाई मघा 16:23
04 अगस्त ज्येष्ठा 09:13 06 अगस्त मूल 13:00
13 अगस्त रेवती 10:33 15 अगस्त अश्विनी 07:36
21 अगस्त आश्लेषा 24:09 23 अगस्त मघा 24:59
31 अगस्त ज्येष्ठा 17:27 02 सितंबर मूल 21:51
09 सितंबर रेवती 18:07 11 सितंबर अश्विनी 13:58
18 सितंबर आश्लेषा 06:33 20 सितंबर मघा 08:06
27 सितंबर ज्येष्ठा 25:08 30 सितंबर मूल 06:18
07 अक्टूबर रेवती 04:02 08 अक्टूबर अश्विनी 22:45
15 अक्टूबर आश्लेषा 12:00 17 अक्टूबर मघा 13:58
25 अक्टूबर ज्येष्ठा 07:52 27 अक्टूबर मूल 13:28
03 नवम्बर रेवती 15:06 05 नवम्बर अश्विनी 09:40
11 नवम्बर आश्लेषा `18:18 13 नवम्बर मघा 19:38
21 नवंबर ज्येष्ठा 13:56 23 नवंबर मूल 19:28
30 नवंबर रेवती 25:11 02 दिसंबर अश्विनी 20:52
08 दिसंबर आश्लेषा 26:53 10 दिसंबर मघा 26:45
18 दिसंबर ज्येष्ठा 20:07 20 दिसंबर मूल  25:22
28 दिसंबर रेवती 08:44 30 दिसंबर अश्विनी  06:05

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जानिए क्या होते हैं प्रदोष व्रत । 2025 में कब और किस दिन होगा प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है. प्रदोष तिथि का बहुत महत्व है, इस समय की गई भगवान शिव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है.

इस व्रत को यदि वार के अनुसार किया जाए तो अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं. वार के अनुसार का अर्थ है कि जिस वार को प्रदोष व्रत पड़ता है उसी के अनुसार कथा पढ़नी चाहिए. इससे शुभ फलों में अधिक वृद्धि होती है. अलग-अलग कामनाओं की पूर्त्ति के लिए वारों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से लाभ मिलता है.

प्रदोष काल में की गई पूजा एवं व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है. इसी प्रकार प्रदोष काल व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन या त्रयोदशी तिथि में रखा जाता है. कुछ विद्वानों के अनुसार द्वादशी एवं त्रयोदशी की तिथि भी प्रदोष तिथि मानी गई है.

वर्ष 2025 में प्रदोष व्रत की तिथियाँ | Pradosh Fast Dates for 2025

दिनाँक दिन हिन्दु चांद्र मास
11 जनवरी शनिवार पौष शुक्ल पक्ष
27 जनवरी  सोमवार माघ कृष्ण पक्ष
09 फरवरी रविवार माघ शुक्ल पक्ष
25 फरवरी मंगलवार फाल्गुन कृष्ण पक्ष
11 मार्च मंगलवार फाल्गुन शुक्ल पक्ष
27 मार्च बृहस्पतिवार चैत्र कृष्ण पक्ष
10 अप्रैल बृहस्पतिवार चैत्र शुक्ल पक्ष
25 अप्रैल शुक्रवार वैशाख कृष्ण पक्ष
09 मई शुक्रवार वैशाख शुक्ल पक्ष
24 मई शनिवार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष
08 जून  रविवार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष
23 जून सोमवार आषाढ़ कृष्ण पक्ष
08 जुलाई मंगलवार आषाढ़ शुक्ल पक्ष
22 जुलाई मंगलवार श्रावण कृष्ण पक्ष
06 अगस्त बुधवार श्रावण शुक्ल पक्ष
20 अगस्त बुधवार भाद्रपद कृष्ण पक्ष
05 सितंबर शुक्रवार भाद्रपद शुक्ल पक्ष
19 सितंबर शुक्रवार आश्विन कृष्ण पक्ष
04 अक्टूबर शनिवार आश्विन शुक्ल पक्ष
18 अक्टूबर  शनिवार कार्तिक कृष्ण पक्ष
03 नवंबर सोमवार कार्तिक शुक्ल पक्ष
17 नवंबर सोमवार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष
02 दिसंबर  मंगलवार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष
17 दिसंबर बुधवार पौष कृष्ण पक्ष
     

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2025 इस वर्ष अमावस्या कब और किस दिन होगी

हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है. अमावस्या के दिन व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हैं और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध भी करते हैं. अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि कराते हैं. ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और साथ ही दान-दक्षिणा भी देते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं. पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है.

शास्त्रों के अनुसार देवों से पहले पितरों को प्रसन्न करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृ दोष हो, संतान हीन योग बन रहा हो या फिर नवम भाव में राहू नीच के होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को यह उपवास अवश्य रखना चाहिए. इस उपवास को करने से मनोवांछित उद्देश्य़ की प्राप्ति होती है. विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धा भाव से अमावस्या का उपवास रखने से पितृ्गण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते है.

वर्ष 2025 में अमावस्या तिथियाँ | Amawasya 2025 Dates

दिनाँक वार चन्द्रमास
29 जनवरी  बुधवार माघ माह
27 फरवरी  बृहस्पतिवार फाल्गुन 
29 मार्च शनिवार  चैत्र
27 अप्रैल रविवार वैशाख माह
26 मई सोमवार ज्येष्ठ माह
25 जून  बुधवार आषाढ़ माह 
24 जुलाई   बृहस्पतिवार श्रावण माह
22 अगस्त शुक्रवार भाद्रपद माह
21 सितंबर  रविवार आश्विन माह
21 अक्टूबर   मंगलवार कार्तिक माह
19 नवंबर बुधवार मार्गशीर्ष माह
20 दिसंबर   शुक्रवार पौष माह
     
     
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2025 में गणेश विनायक चतुर्थी कब और किस दिन होंगी जाने विस्तार से

हिन्दु माह के अनुसार चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन गणेश जी के व्रत व पूजा का विधान है, जो श्रद्धालु इस व्रत को करते हैं तब भगवान गणेश उनके सभी संकटों को दूर करते हैं इसलिए इन्हें विघ्नहर्ता भी कहा गया है. सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर व्रत रखने का विधान है.

सुबह व्रत रखने के पश्चात संध्या समय में फल, फूल, अक्षत, रौली, मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान गणेश को तिल से बनी वस्तुओं या तिल तथा गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए. पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करने के बाद उसी समय गणेश जी के मंत्र का जाप करना चाहिए.

संध्या समय में कथा सुनने के पश्चात गणेश जी की आरती करनी चाहिए. इस दिन व्रत रखने वाले जातक को सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है. व्यक्ति को अपने व्यवसाय में सफलता मिलती है. मानसिक शांति बनी रहती है तथा परिवार में खुशहाली का वातावरण बना रहता है.

गणेश चतुर्थी के दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है.

विनायक चतुर्थी व्रत तिथियाँ 2025 | Ganesh Chaturthi Fast Tithi 2025

दिनाँक दिन हिन्दु माह
03 जनवरी शुक्रवार पौष माह शुक्ल पक्ष
01 फरवरी शनिवार माघ माह, शुक्ल चतुर्थी
3 मार्च सोमवार  फाल्गुन माह, शुक्ल चतुर्थी
01 अप्रैल मंगलवार चैत्र माह शुक्ल पक्ष 
01 मई बृहस्पतिवार वैशाख माह शुक्ल पक्ष 
30 मई , शुक्रवार ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष 
28 जून शनिवार आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष
28 जुलाई   सोमवार  श्रावण माह शुक्ल पक्ष
27 अगस्त बुधवार भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष
25 सितंबर बृहस्पतिवार आश्विन माह शुक्ल पक्ष
25 अक्टूब्रर शनिवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष  
24 नवंबर सोमवार मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष
24 दिसंबर बुधवार पौष माह शुक्ल पक्ष

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वर्ष 2025 में कब लगेगा पंचक

पंचक का अर्थ है – पांच, पंचक चन्द्रमा की स्थिति पर आधारित गणना हैं. गोचर में चन्द्रमा जब कुम्भ राशि से मीन राशि तक रहता है तब इसे पंचक कहा जाता है, इस दौरान चंद्रमा पाँच नक्षत्रों में से गुजरता है. ऎसे भी कह सकते हैं कि धनिष्ठा नक्षत्र का उत्तरार्ध, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र ये पाँच नक्षत्र पंचक कहलाते है. बहुत से विद्वान धनिष्ठा नक्षत्र का पूरा भाग पंचक में मानते हैं तो कुछ आधा भाग मानते हैं. पंचक के समय में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है. इस समय में किया गया कार्य पाँच गुना बढ़ जाता है.

सूर्य की डिग्री के आधार पर भी पाँच तरह के पंचक बनते हैं. यह हैं :- रोग, अग्नि, नृप, चोर, मृत्यु. रोग बाण में यज्ञोपवीत नही होता, अग्नि बाण में गृह निर्माण अथवा गृह प्रवेश नहीं होता, नृप बाण में नौकरी वर्जित है, चोर बाण में यात्रा वर्जित है और मृत्यु बाण में शादी वर्जित मानी गई है.

पंचक में नहीं करने चाहिए ये काम

पंचक लगने पर उक्त कार्य करने से विलम्ब का सामना करना पड़ सकता है. राजमार्त्तण्ड के अनुसार धनिष्ठा नक्षत्र में दक्षिण दिशा की यात्रा अथवा छत डलवाना या ईंधन इकठ्ठा करने अथवा चारपाई बनाने से अग्निभय होता है. यही सभी कार्य शतभिषा नक्षत्र में करने से कलह होता है. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में करने से रोग होता है, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में करने से जुर्माना होता है और रेवती नक्षत्र में करने पर धन की हानि होती है.

आईये जानते हैं वर्ष 2025 में कब और किस दिन से लगने वाले हैं पंचक

पंचकों का प्रारम्भ तथा समाप्ति समय 2025 | Starting and ending time of Panchak 2025 (Indian time)

पंचक प्रारंभ काल पंचक समाप्ति काल
दिनाँक समय (घ.मि.) दिनाँक समय (घ.मि.)
03 जनवरी  10:47 से 07 जनवरी 05:50 तक
30 जनवरी 06:35  से 03 फरवरी 11:16 तक
27 फरवरी  04:37 से 03 मार्च 06:39 तक
26 मार्च   03:14 से 30 मार्च   04:35 तक
23 अप्रैल  12:31 से 27 अप्रेल  03:39 तक
20 मई   07:35 से 24 मई  01:48  तक
16 जून 01:10 से 20 जून  09:45 तक
13 जुलाई   06:53 से 18 जुलाई  03:39 तक
10 अगस्त 02:11 से 14 अगस्त  09:06 तक
06 सितंबर 11:21  से 10 सितंबर 04:03 तक
03 अक्तूबर 09:27 से 08 अक्तूबर 01:28 तक
31 नवंबर 06:48 से 04 नवंबर 12:34 तक
27 नवंबर  02:07 से 01 दिसंबर 11:18 तक
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