ज्योतिष शास्त्र अनुसार विवाह ज्योतिष में कुछ ऎसे सूत्रों के बारे में बताया गया है जिन्हें अपनाकर वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से बचा जा सकता है. शादी विवाह में शुभता को पाने के लिए जरुरी है की मुहूर्त विचार भी सही तरह से किया जाए. इस के अलावा कुछ ऎसे योग, नक्षत्र प्रभाव होते हैं जिनमें शादी विवाह को करना उचित नहीं माना गया है. ज्योतिष सूत्रों के अनुसार नक्षत्र गणना, मुहूर्त, शुभ ग्रहों की स्थिति का विचार बेहद विशेष है. तो चलिये जान लेते हैं विवाह में किन-किन बातों का रखा जाता है ध्यान.
ज्योतिष के अनुसार कुछ विशेष ग्रह स्थिति, नक्षत्र और तिथि आदि में विवाह वर्जित माना जाता है. इन स्थितियों में विवाह करने से भविष्य में परेशानियां आ सकती हैं. इनमें से कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो शुभ फल देते हैं, लेकिन इनमें विवाह भी शुभ नहीं माना जाता है. हिंदू धर्म में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है. विवाह सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि संस्कारों में से एक है. किसी के भी विवाह के लिए शुभ मुहूर्त निकालने से पहले कई बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र, दिन, तिथि आदि. अगर इन सभी का उचित रुप से पालन किया जाए तो विवाह में आने वाली परेशानियां कभी भी हमारे सामने खड़ी नहीं दिखाई देती हैं.
विवाह के लिए विशेष ज्योतिषीय नियम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्रों में कुछ ऐसे नक्षत्र हैं, जिनमें विवाह करना वर्जित माना गया है. जैसे कि अर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति आदि. अगर इन नक्षत्रों में से कोई भी नक्षत्र हो या सूर्य सिंह राशि में बृहस्पति के नवमांश में गोचर कर रहा हो तो विवाह बिलकुल भी नहीं करना चाहिए.
पुष्य नक्षत्र और उत्तराफाल्गुनी को बेहद शुभ नक्षत्र का स्थान मिलता है लेकिन इसके बावजूद भी इन दोनों नक्षत्रों को विवाह के लिए शुभ नहीं माना गया है. कहा जाता है कि पुष्य नक्षत्र के शुभ होने पर भी उसे विवाह के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए. कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री शारदा का विवाह गुरु पुष्य में करने का निर्णय लिया था, लेकिन वे स्वयं अपनी पुत्री के रूप और सौंदर्य पर मोहित हो गए थे. कुछ विद्वानों का मानना है कि पुष्य नक्षत्र को ब्रह्मा जी का श्राप प्राप्त है, इसलिए इस नक्षत्र को विवाह के लिए वर्जित माना गया है.
माता पार्वती ने भी विवाह के समय शिव से मिले श्राप के कारण इस नक्षत्र को विवाह के लिए वर्जित माना था. हालांकि पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में श्रेष्ठ माना गया है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी नक्षत्र में माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था. ऋग्वेद में इसे वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता और आनंदकर्ता कहा गया है. मान्यता है कि इस नक्षत्र में शुरू किया गया सभी कार्य पुष्टिदायक, सर्वार्थसिद्धिदायक और निश्चित रूप से फल देने वाला होता है. इस नक्षत्र में खरीदी गई वस्तुएं भी शनि के प्रभाव के कारण स्थाई रहती हैं. चंद्र वर्ष के अनुसार हर माह में एक दिन चंद्रमा का मिलन पुष्य नक्षत्र से होता है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है. पुष्य नक्षत्र में जन्मे लोग दानशील, गुणी और बहुत भाग्यशाली होते हैं
इसी तरह उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र को भी विवाह के लिए अनुकूल नहीं माना गया है, माना गया है कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में श्री राम जी का सीता जी के साथ विवाह हुआ था लेकिन उन्हें अपने वैवाहिक जीवन में बहुत कष्ट जेलने पड़े इसी कारण इस नक्षत्र को विवाह के लिए अनुकूल नहीं माना गया है.
अपने बड़े बच्चे का विवाह विवाह तिथि को जन्म नक्षत्र से 10वें, 16वें या 23वें नक्षत्र में नहीं करना चाहिए.
नक्षत्र वेध विचार
विवाह के लिए नक्षत्र वेध विचार करना बेहद जरुरी होता है.पंचशलाका चक्र के अनुसार इसे देखा जाता है. इस नक्षत्र वेध के अनुसार जिस नक्षत्र का जिस नक्षत्र से वेध हो रहा हो उस नक्षत्र में विवाह वाले दिन अगर कोई ग्रह बैठा हुआ हो तो उस दिन विवाह करना उचित नहीं माना जाता है.
त्रिज्येष्ठा योग में विवाह वज्रित
एक योग ऐसा भी है जो विवाह के लिए वर्जित माना गया है, जिसे त्रिज्येष्ठा कहते हैं. इसमें बड़ी संतान का विवाह ज्येष्ठ माह में नहीं करना चाहिए तथा ज्येष्ठ माह में जन्मे लड़के या लड़की का विवाह भी ज्येष्ठ माह में नहीं करना चाहिए.
शुक्र ग्रह विचार
विवाह का मुख्य कारक शुक्र है, इसलिए जब शुक्र बाल अवस्था में हो या कमजोर हो तो विवाह सुख का कारण नहीं बनता. शुक्र पूर्व में उदय होने के बाद 3 दिन तक बाल अवस्था में रहता है और पश्चिम में होने पर 10 दिन तक बाल अवस्था में रहता है. शुक्र अस्त होने से पहले 15 दिन तक कमजोर अवस्था में रहता है और शुक्र अस्त होने से 5 दिन पहले वृद्ध अवस्था में रहता है. इस अवधि में विवाह नहीं करना चाहिए.
गुरु ग्रह विचार
विवाह में बृहस्पति की भी अहम भूमिका होती है, इसलिए बृहस्पति का मजबूत होना भी जरूरी है. यदि बृहस्पति बाल्यावस्था, वृद्धावस्था या कमजोर हो तो भी विवाह जैसे शुभ कार्य करना उचित नहीं होता. गुरु उदय और अस्त दोनों ही अवस्थाओं में 15-15 दिन तक बाल्यावस्था और वृद्धावस्था में रहता है. इस अवधि में विवाह करना भी उचित नहीं होता.
त्रिबल शुद्धि विचार
इसमें यदि कन्या की जन्म राशि से प्रथम, अष्टम और द्वादश भाव में गुरु ग्रह गोचर कर रहा हो तो विवाह करना शुभ नहीं होता. यदि कन्या की जन्म राशि से मिथुन, कर्क, कन्या और मकर राशि में गुरु ग्रह गोचर कर रहा हो तो यह विवाह कन्या के लिए लाभकारी नहीं होता. गुरु के अलावा सूर्य और चंद्रमा का गोचर भी शुभ होना चाहिए.
चंद्रमा के गोचर का विचार
चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए विवाह में चंद्रमा की शुभता और अशुभता पर विशेष ध्यान देना चाहिए. अमावस्या से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक चंद्रमा बाल्यावस्था में रहता है. इस समय चंद्रमा अपना फल देने में असमर्थ होता है. चतुर्थ और अष्टम भाव को छोड़कर सभी भावों में चंद्रमा का गोचर शुभ होता है. विवाह तभी करना चाहिए जब चंद्रमा पखवाड़े में बलवान, त्रिकोण में, स्वराशि में, उच्च का और मित्र भाव में हो.
गंडांत विचार
विवाह में गंडांत मूल का भी विचार करना चाहिए. उदाहरण के लिए मूल नक्षत्र में जन्मी लड़की अपने ससुर के लिए कष्टकारी मानी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्मी लड़की अपनी सास के लिए अशुभ होती है. ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी लड़की अपने बड़े भाई के लिए अशुभ होती है. इन नक्षत्रों में जन्मी लड़की से विवाह करने से पहले इन दोषों को अवश्य दूर कर लेना चाहिए.