ज्योतिष की विद्याओं में कई तरीके से कुंडली का अध्ययन किया जाता है. इसी में से एक तरीका भाव चलित कुंडली की जांच से भी देखा जाता है. ज्योतिष में कुंडली का विश्लेषण करते समय यदि चलित कुंडली से कुंडली में सभी ग्रहों के भावों पर विचार न किया जाए तो भविष्यवाणी में कमी को देखा जा सकता है. भाव चलित कुंडली ग्रहों एवं भावों की स्थिति को दर्शाती है. इसमें व्यक्ति के जीवन में आने वाली विभिन्न घटनाओं, को सूक्ष्म रुप से समझा जा सकता है. भाव चलित पर विचार करके ग्रहों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है. यह कुंडली आम तौर पर व्यवसाय, विवाह, करियर, वित्तीय स्थिति, स्वास्थ्य, यात्रा आदि से संबंधित जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है.
कुंडली के विश्लेषण में अधिकांश लोग जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही उस ग्रह के संबंधित भावों का फल बताना शुरू कर देते हैं. कुंडली में ग्रहों की स्थिति का विचार ‘भाव चलित कुंडली’ से ही किया जाता है. कई बार जन्म कुंडली में बनने वाले योग और दोष ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाते हैं और कई बार जन्म कुंडली में दिखाई देने वाले ग्रहों की युति ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाती है.
भाव चलित कुंडली कैसे बनाएं
भाव चलित कुंडली बनाने के लिए हमें ‘जन्म कुंडली’ और सभी ग्रहों के अंशों का विवरण चाहिए होता है. कुंडली का विश्लेषण करते समय हम जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखते हैं, कि कुंडली में कौन सा ग्रह किस भाव में बैठा है. अधिकांश लोग जन्म कुंडली से ही कुंडली में ग्रह के भाव पर विचार करना शुरू कर देते हैं, लेकिन ग्रह के भाव पर विचार भाव चलित कुंडली से करना चाहिए.
भावच्लित कुंडली और ग्रह युति प्रभाव
यदि जन्म कुंडली में कोई दो, तीन या चार ग्रह युति में बैठे हों और उनमें से कोई भी ग्रह भाव कुंडली में अगले या पिछले भाव में चला जाए, तो अन्य ग्रहों के साथ उसकी युति भंग हो जाती है. उदाहरण के लिए, किसी जन्म कुंडली में शुक्र, चंद्र और सूर्य पहले भाव में युति में बैठे हों और शुक्र-सूर्य ग्रह चलित कुंडली में अगले भाव में चले गए हों. तब सूर्य-शुक्र की युति चंद्रमा के साथ भंग हो जाएगी. अगर किन्हीं दो ग्रहों की अंशात्मक दूरी आठ डिग्री से कम है, तो भाव परिवर्तन होने पर भी उनकी युति पर विचार करना चाहिए.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मांगलिक योग या कोई अन्य योग बन रहा हो और भाव चलित कुंडली में भाव अस्त-व्यस्त हो जाए, तो इसे भंग माना जाना चाहिए. क्योंकि योग सदैव ग्रह-नक्षत्रों की युति से बनते हैं तथा भाव चलित कुंडली से भाव का विचार करना आवश्यक है. जब कोई ग्रह किसी ग्रह से युति तोड़ता है या कुंडली में अपना भाव बदलता है तो भी योग भंग होता है. यदि जन्म कुंडली में कोई योग बन रहा हो तो वह योग वर्तमान कुंडली में भी स्थापित रहे तो ही उस योग को मानना चाहिए.
भाव चलित कुंडली महत्व
भाव चलित कुंडली का प्रभाव कई मायनों में खास रहता है. जन्म कुंडली में बनने वाले योग चलित कुंडली में भंग हों, इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में बनने वाले दोष, कुंडली में भाव भंग हो तो उसे भंग मान लेना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि जन्म कुंडली में शनि और राहु की युति से विष योग बनता है और अगर भाव चलित कुंडली में शनि और राहु की युति भंग हो तो उस दोष को भंग मान लेना चाहिए. इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह अष्टम भाव में स्थित हो तथा भाव चलित कुंडली में वह ग्रह नवम भाव या सप्तम भाव में चला जाए तो उस ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है.
कुल मिलाकर ज्योतिष के अंतर्गत चल कुंडली और लग्न कुंडली दोनों ही व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसका मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह व्यक्ति को सफलता के लिए निर्णय लेने, योजना बनाने और आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं.