लाल किताब का विवेचन करने के उपरांत हम यह पाते हैं कि इसके अनुसार हमारे पास कुण्डलियों का अध्ययन करने के लिए अनेक कुन्डलियां होती हैं जो अनेक नामों से जानी जाती हैं जैसे अंधी कुण्डली, धर्मी कुण्डली, कायम ग्रहों वाली कुंडली इत्यादि कई
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व्यक्ति का जन्म जिस दिन को हुआ हो उस दिन को जन्मदिन का दिन तथा उस दिन के ग्रह को जन्मदिन का ग्रह कहा जाता है. जातक का जन्म जिस भी समय हुआ हो उसे जन्मसमय का ग्रह कहते हैं. जन्म दिन के ग्रह को किस्मत जगाने वाला ग्रह अर्थात जिसका उपाय हो सके,
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लाल किताब में एक ग्रह का दूसरे ग्रह से संबंध वैदिक ज्योतिष के जैसा ही है. लाल किताब में भी ग्रहों के एक दूसरे के साथ सम्बन्धों का अपना अलग महत्व तथा अपना एक अलग सिद्धान्त है.वैदिक ज्योतिष के एक अन्य सिद्धान्त में नैसर्गिक ग्रहों की मित्रता
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लाल किताब के अनुसार फलादेश करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है. यहां पर इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि उम्र के कौन से वर्ष में कौन से भाव तथा कौन सी राशि के ग्रह प्रभावित करने वाले रह सकते हैं. लाल किताब कुण्डली का
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लाल किताब अनुसार यह ज्ञात किया जा सकता है कि किस आयु वर्ष में कौन सा ग्रह अपना प्रभाव विशेष प्रभाव दिखाएगा. इसी के साथ साथ इन ग्रहों को पुरुष, स्त्री एवं नपुंसक ग्रह में बांटा गया है. सूर्य ग्रह - 22 वर्ष की आयु में सूर्य का विशेष प्रभाव
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लाल किताब अनुसार बारह वर्ष तक की आयु के बच्चों का वर्ष फल बनाकर उपाय बताना सही नहीं होता. कुछ हालातों में बारह साल की आयु तक कुछ टेवे नाबालिग होते हैं ऎसी कुण्डली पर बच्चे की बारह साल की आयु तक अभी उसके पूर्व जन्म के कर्मों का ही असर
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लाल किताब कुन्डली में प्रत्येक ग्रह का अपना बनावटी ग्रह होता है. यह बनावटी ग्रह कुछ विशेष बातों पर प्रभाव डालते हैं जिसे इस प्रकार समझा जा सकता है. सूर्य - सूर्य के लिए बनावटी ग्रह बुध और शुक्र हैं. यह के स्वास्थ को प्रभावित करते हैं.
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अंधी कुंडली | Andhi Kundali लाल किताब के अनुसार कुछ कुण्डलियों को अंधी कुण्डली कहा जाता है. यदि जन्म कुण्डली के दसवें भाव में दो या दो से अधिक ऐसे ग्रह स्थित हैं जो आपस में शत्रुता रखते हों तो ऎसी कुण्डली को अंधी कुण्डली कहा जाता है. यह
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लाल किताब के अनुसार जब कोई ग्रह किसी भाव में अकेला स्थित होता है या किसी और ग्रह से दृष्ट भी नही हो तो वह शुभ प्रभाव वाला होगा. यहां अकेले ग्रह से अर्थ यह है कि उस ग्रह को कोई भी अन्य ग्रह तथा किसी दृष्टि से न देख रह अहो या ऎसा ग्रह अकेला
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लाल किताब में ग्रहों की दृष्टि के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण विचार दिए गए हैं जिनके अनुसार ग्रहों के प्रभावों को समझा जा सकता है. वैदिक ज्योतिष दृष्टि ग्रह की होती है भाव की नहीं. दूसरे पूर्ण दृष्टि ही मान्य है आधी-अधूरी नही. परन्तु लाल
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महादशा का विचार लाल किताब में उसके आधारित नियमों द्वारा किया जाता है. यहां लाल किताब में ग्रहों की महादशा का स्वरुप वैदिक ज्योतिष की भांति एक सौ बीस वर्ष का होता है. जो इसके अपने नियमों पर चलता है. महादशा के नियम | Rules for Mahadasha
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कुर्बानी के बकरे के बारे में लाल-किताब पद्धति का अपना सिद्धांत होता है जिसका अर्थ होता है कि जब कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह से पीड़ित होता है तो वह अपना कष्ट दूसरे ग्रह के फल के अशुभ हो जाने से प्रदर्शित करता है और जिस ग्रह के द्वारा वह अपना
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लाल किताब में चंद्र कुण्डली का बहुत महत्व होता है. जिस प्रकार वैदिक ज्योतिष में चंद्रकुण्डली का विवेचन किया जाता है उसी प्रकार लाल किताब पद्धति में भी चंद्र कुण्डली के द्वारा कई तथ्यों का अनुमोदन संभव होता है. लाल किताब में चंद्र कुण्डली
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लाल किताब पद्धति में राशि के स्थान पर भावों की प्रधानता रहती है. इस बात का अर्थ यह नहीं है कि इसमें राशियों का कोई महत्व नहीं है अपितु राशियों का भी अपना पूर्ण स्थान एवं महत्व है. लेकिन फलित कि गुणवत्ता एवं सफल परिणाम के लिए भावों को
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लाल किताब में निर्मित कुण्डली वैदिक ज्योतिष से भिन्न होती है. लाल किताब में लग्न मेष राशि के अंक एक से ही आरंभ होता है. अर्थात जन्म कुण्डली में चाहे कोई भी लग्न निर्मित हो रहा हो परंतु लाल किताब में सभी कुण्डलीयों का लग्न मेष राशि से ही
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लाल किताब के विषय में बहुत सी धारणाएँ फैली हुई हैं. यह विद्या कैसे आरम्भ हुई इसमें भी सभी लोगों में मतभेद है. लाल किताब की गणना वैदिक ज्योतिष से भिन्न है. लेकिन वर्तमान समय में ज्योतिष सबसे बड़ी भूल यही कर रहे हैं कि वह जन्म कुण्डली का