नव तारा चक्र : जानें नवतारा चक्र में शुभ अशुभ तारा

वैदिक ज्योतिष में जन्म नक्षत्र उस नक्षत्र को कहते हैं जिसमें चंद्रमा जन्म के समय स्थित होता है.  सत्ताईस नक्षत्र इस प्रकार हैं : अश्विनी नक्षत्र , भरणी नक्षत्र, कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्र नक्षत्र, उत्तराभाद्र नक्षत्र और रेवती नक्षत्र.

वैदिक ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं में नक्षत्रों का उपयोग किया जाता है, जिसमें कुंडली मिलान, घटनाओं के लिए शुभ समय या मुहूर्त का निर्धारण, व्यक्तित्व लक्षणों को समझना और दशा और गोचर का उपयोग करके घटनाओं का समय निर्धारित करना शामिल है. हिंदू ज्योतिष में चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है. यह हमारी मानसिक पहचान, प्रवृत्ति, पसंद और नापसंद और गुणों को आकार देता है. इसलिए, वैदिक ज्योतिष में हमारा जन्म नक्षत्र संपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाने वाला होता है. जन्म नक्षत्र हमारे दृष्टिकोण, प्रवृत्ति और मानसिक स्थिति को दर्शाता है. जन्म नक्षत्र हमारे विचारों, भावनाओं और अनुभवों को नियंत्रित करता है. प्रत्येक नक्षत्र या तारे का एक अलग व्यक्तित्व होता है जिसमें अच्छा बुरा, पसंद, नापसंद, प्रवृत्ति और विशेषज्ञता के गुण होते हैं.  

नवतारा चक्र को कैसे समझें

किसी के जन्म नक्षत्र से गिनती करते हुए, लगातार नौ तारों को नौ अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है. उनके नाम और महत्व नीचे सूचीबद्ध हैं. 10वें और 19वें सितारों से, हम इसी तरह का वर्गीकरण करते हैं, जिससे सभी 27 नक्षत्र शामिल हो जाते हैं. इसे नवतारा चक्र कहा जाता है.

जन्म तारा (जन्म)

संपत तारा (धन)

विपत तारा (परेशानी)

क्षेम तारा (खुशी)

प्रत्यक्ष तारा (चुनौती)

साधन तारा (सफलता )

नैधन तारा (मृत्यु).

मित्र तारा (मित्र)

परम मित्र तारा (शुभचिंतक)

मुहूर्त शास्त्र में नव तारा चक्र 

मुहूर्त शास्त्र और गोचर के फलादेश को समझने के लिए जन्म नक्षत्र से 2, 4, 6, 8 और 9वें नक्षत्र अच्छे माने जाते हैं. जब कोई ग्रह किसी के जन्म नक्षत्र से किसी विशेष नक्षत्र में होता है, तो नवतारा चक्र के आधार पर अच्छे और बुरे परिणाम दिए जाते हैं. नवतारा चक्र हमारे जीवन का विश्लेषण करने और ज्योतिष के ज्ञान से लाभ उठाने की एक स्पष्ट और सुंदर विधि है.

उदाहरण के लिए, हमारे जन्म नक्षत्र से चौथे, तेरहवें और बाईसवें नक्षत्र को क्षेम तारा कहा जाता है. यह अनुकूल फल देता है. क्षेम तारा हमारे कल्याण, खुशी और स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है.

ज्योतिष में नवतारा चक्र का उपयोग

वैदिक ज्योतिष में नवतारा चक्र नौ रूप में विभाजित किया जा सकता है. सत्ताईस नक्षत्रों का नौ-नौ तारों के तीन बराबर भागों में विभाजित हैं. जन्म – जन्म नक्षत्र से शुरू होने वाले पहले नौ तारे (1 से 9) तक होंगे. अनुजन्म – जन्म नक्षत्र से दसवें तारे से शुरू होने वाले अगले नौ तारे (10 से 18) तक होंगे, त्रिजन्म – जन्म नक्षत्र से उन्नीसवें तारे से शुरू होने वाले अंतिम नौ तारे (19 से 27) तक होंगे. 

पूरे नवतारा चक्र की नींव उस नक्षत्र के आधार पर रखी गई है जिसमें चंद्रमा किसी की जन्म कुंडली में स्थित है. उस विशेष नक्षत्र को जन्म नक्षत्र कहा जाता है. उदाहरण के लिए यदि किसी का चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है, तो वह जन्म नक्षत्र होता है. अश्विनी से आश्लेषा तक के नौ तारे जन्म समूह के अंतर्गत आते हैं, इसके बाद तक के अगले नौ तारे अनुजन्म समूह का हिस्सा बनते हैं और उसके बाद के तारे त्रिजन्म समूह के अंतर्गत आते हैं. ये समूह शरीर, मन और आत्मा के त्रिपद के अंतर्गत आते हैं. 

नव तारा और उनके स्वामी ग्रह 

जन्म तारा : सूर्य अधिपति द्वारा शासित, पशु – मोर

2) संपत तारा : बुध अधिपति , पशु – घोड़ा

3) विपत तारा : राहु अधिपति , पशु – बकरी

4) क्षेम तारा : बृहस्पतिअधिपति , पशु – हाथी

5) प्रतिक तारा : केतु अधिपति, पशु – कौआ

6) साधक तारा : चंद्रमा अधिपति , पशु – लोमड़ी

7) वध तारा : शनि अधिपति , पशु – शेर

8) मित्र तारा : शुक्र अधिपति , पशु – चील

9) परम मित्र तारा : मंगल अधिपति , पशु – हंस

जन्म तारा प्रभाव 

यह जन्म नक्षत्र होता है, कुंडली में चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, यह सभी नक्षत्रों में सबसे महत्वपूर्ण होता है. जन्म तारा हमेशा अनुकूल नहीं होता है और कहा जाता है कि यह मन की चंचलता को दर्शाता है और तनाव का कारण बनता है. जन्म नक्षत्रों के दिनों में मन हमेशा अस्थिर रहता है. 

संपत तारा प्रभाव 

यह आर्थिक स्थिति से जुड़ी सभी चीजों को दर्शाता है. यह एक बहुत ही अनुकूल तारा है और इसे धन से जुड़ी सभी घटनाओं के लिए शुभ माना जाता है. यह कुंडली के दूसरे और ग्यारहवें घर से संबंधित होता है जो आय और लाभ के बारे में काफी हद तक बताता है. संपत तारा का स्वामी बुध है और इसका प्रभाव जीवन में सुख समृद्धि को दर्शाता है.

विपत तारा प्रभाव 

अपने नाम के अनुरुप इस तारा का प्रभाव कष्ट चिंता जैसी स्थिति को दिखाना है. यह जीवन में विभिन्न प्रकार के खतरों की स्थिति का सुचक बनता है. यह चोट लगने, मुद्दों में उलझने और इस तरह के सभी तरह के खतरों से संबंधित हो सकता है. विपत तारा राहु द्वारा प्रभावित होता है फर इसके प्रभाव काफी परेशानी को दिखाते हैं भ्रम की स्थिति जीवन पर अधिक असर डालती है.

क्षेम तारा

क्षेम तारा अनुकूल प्रभाव को दिखाता है. च्छे स्वास्थ्य और मन की शांति, जीवन की आरामदायक स्थिति को दर्शाता है. इसलिए यह संबंधित व्यक्ति की आवश्यक जीवन शक्ति और अच्छे व्यवहार के बारे में है. क्षेम तारा बृहस्पति द्वारा प्रभावित होने के कारण एक सकारात्मक स्थिति के लिए विशेष होता है.

प्रत्यय तारा

यह एक नकारात्मक तारा है और सभी तरह की बाधाओं को दर्शाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह मन में बहुत सी उलझनें पैदा करता है और कार्यों और गतिविधियों को पूरा करने में बाधा उत्पन्न करता है. इस तारा का स्वामी केतु है जिसके कारण अनिश्चितता का भाव अधिक रहता है. विषय वासना के प्रति ध्यान होता है और अजीब सा भय भी बना रहता है.

साधक तारा 

साधक तारा अनुकूल रहता है, इसका प्रभाव शांति स्थिरता और आत्म नियंत्रण की स्थिति को दिखाता है. यह उन सभी प्राप्तियों और लाभों के बारे में बताता है जिनकी प्राप्ति व्यक्ति अपने प्रयासों के द्वारा करता है. ऐसा माना जाता है कि यह तारा भगवान का आशीर्वाद देने वाला होता है. इस तारा पर चंद्रमा का अधिपत्य होता है. इसके कारण मानसिकता विशेष रुप से प्रभावित होती है.

वध तारा

इस तारा को खराब प्रभाव देने वाला माना गया है. यह एक अशुभ तारा है और मारक प्रकृति का होता है. यह नकारात्मकता से भरा हुआ है और सभी प्रकार के इनकार, दुर्भाग्य और परेशानी को दर्शाता है. इस तारा का स्वामी शनि है, इसके कारण जीवन में सफलता की गति भी धीमी बनी रहती है.

मित्र तारा

यह शुभ तारा होता है और इसका प्रभाव अनुकूलता देने वाला होता है. जीवन में सभी समृद्ध की प्राप्ति सफलता का सुख, अपनों का प्रेम इसके द्वारा संभव होता है.  यह जीवन में सही रास्ता दिखाता है और मन को अच्छी शुभता प्रदान करता है. मित्र तारा शुक्र के प्रभाव में होने के कारण भौतिक सुख समृद्धि को भी प्रदान करता है. 

परम मित्र तारा

यह भी एक अनुकूल फल देने वाला तारा होता है. इसे एक साधारण प्रभाव वाला तारा कहा जाता है. इसके जीवन पर मिले जुले फल देखने को मिलते हैं. परम मित्र तारा पर मंगल का प्रभाव होता है. इसके कारण साहस, जोश एवं उत्साह भी प्राप्त होता है. 

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भाव चलित कुंडली और उसका प्रभाव

ज्योतिष की विद्याओं में कई तरीके से कुंडली का अध्ययन किया जाता है. इसी में से एक तरीका भाव चलित कुंडली की जांच से भी देखा जाता है. ज्योतिष में कुंडली का विश्लेषण करते समय यदि चलित कुंडली से कुंडली में सभी ग्रहों के भावों पर विचार न किया जाए तो भविष्यवाणी में कमी को देखा जा सकता है. भाव चलित कुंडली ग्रहों एवं भावों की स्थिति को दर्शाती है. इसमें व्यक्ति के जीवन में आने वाली विभिन्न घटनाओं, को सूक्ष्म रुप से समझा जा सकता है. भाव चलित पर विचार करके ग्रहों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है. यह कुंडली आम तौर पर व्यवसाय, विवाह, करियर, वित्तीय स्थिति, स्वास्थ्य, यात्रा आदि से संबंधित जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है.

कुंडली के विश्लेषण में अधिकांश लोग जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही उस ग्रह के संबंधित भावों का फल बताना शुरू कर देते हैं. कुंडली में ग्रहों की स्थिति का विचार ‘भाव चलित कुंडली’ से ही किया जाता है. कई बार जन्म कुंडली में बनने वाले योग और दोष ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाते हैं और कई बार जन्म कुंडली में दिखाई देने वाले ग्रहों की युति ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाती है.

भाव चलित कुंडली कैसे बनाएं

भाव चलित कुंडली बनाने के लिए हमें ‘जन्म कुंडली’ और सभी ग्रहों के अंशों का विवरण चाहिए होता है. कुंडली का विश्लेषण करते समय हम जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखते हैं, कि कुंडली में कौन सा ग्रह किस भाव में बैठा है. अधिकांश लोग जन्म कुंडली से ही कुंडली में ग्रह के भाव पर विचार करना शुरू कर देते हैं, लेकिन ग्रह के भाव पर विचार भाव चलित कुंडली से करना चाहिए.

भावच्लित कुंडली और ग्रह युति प्रभाव
यदि जन्म कुंडली में कोई दो, तीन या चार ग्रह युति में बैठे हों और उनमें से कोई भी ग्रह भाव कुंडली में अगले या पिछले भाव में चला जाए, तो अन्य ग्रहों के साथ उसकी युति भंग हो जाती है. उदाहरण के लिए, किसी जन्म कुंडली में शुक्र, चंद्र और सूर्य पहले भाव में युति में बैठे हों और शुक्र-सूर्य ग्रह चलित कुंडली में अगले भाव में चले गए हों. तब सूर्य-शुक्र की युति चंद्रमा के साथ भंग हो जाएगी. अगर किन्हीं दो ग्रहों की अंशात्मक दूरी आठ डिग्री से कम है, तो भाव परिवर्तन होने पर भी उनकी युति पर विचार करना चाहिए.

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मांगलिक योग या कोई अन्य योग बन रहा हो और भाव चलित कुंडली में भाव अस्त-व्यस्त हो जाए, तो इसे भंग माना जाना चाहिए. क्योंकि योग सदैव ग्रह-नक्षत्रों की युति से बनते हैं तथा भाव चलित कुंडली से भाव का विचार करना आवश्यक है. जब कोई ग्रह किसी ग्रह से युति तोड़ता है या कुंडली में अपना भाव बदलता है तो भी योग भंग होता है. यदि जन्म कुंडली में कोई योग बन रहा हो तो वह योग वर्तमान कुंडली में भी स्थापित रहे तो ही उस योग को मानना ​​चाहिए.

भाव चलित कुंडली महत्व
भाव चलित कुंडली का प्रभाव कई मायनों में खास रहता है. जन्म कुंडली में बनने वाले योग चलित कुंडली में भंग हों, इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में बनने वाले दोष, कुंडली में भाव भंग हो तो उसे भंग मान लेना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि जन्म कुंडली में शनि और राहु की युति से विष योग बनता है और अगर भाव चलित कुंडली में शनि और राहु की युति भंग हो तो उस दोष को भंग मान लेना चाहिए. इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह अष्टम भाव में स्थित हो तथा भाव चलित कुंडली में वह ग्रह नवम भाव या सप्तम भाव में चला जाए तो उस ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है.

कुल मिलाकर ज्योतिष के अंतर्गत चल कुंडली और लग्न कुंडली दोनों ही व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसका मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह व्यक्ति को सफलता के लिए निर्णय लेने, योजना बनाने और आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं.

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कुंडली में त्रिषडाय भाव घातक भाव स्थान

ज्योतिष अनुसार जन्म कुंडली के सभी 12 भावों का जीवन पर खास प्रभाव होता है. इसी में से कुछ भाव त्रिषडाय कहलाते हैं जो कष्टदायक माने गए हैं. कुंडली का तीसरा भाव, छठा भाव और ग्यारहवां भाव त्रिषडाय/त्रिषढ़ाय कहलाता है. कुंडली में बारह भावों को अच्छे भावों और बुरे भावों के अंतर्गत समान रूप से बांटा गया है. इन अच्छे और बुरे भावों को आगे विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है. इनमें से एक भाग अनुकूलता को दिखाता है तो दूसरा भाग विपरित परिस्थितियों को दिखाता है.

अनुकूल भाग
केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10वें भावों का समूह मिलकर केंद्र बनाता है.
त्रिकोण भाव 1, 5, 9वें भावों का समूह मिलकर त्रिकोण कहलाता है
पंफर भाव 2, 5, 8 और 11वें भावों का समूह मिलकर पंफर बनाता है
अपोक्लिम: तीसरा भाव, 6वां भाव 9वां भाव और 12वां भाव मिलकर अपोक्लिम बनाते हैं
उपचय तीसरा भाव, 6वां भाव और 10वां भाव मिलकर उपचय के रूप में वर्गीकृत हैं

विपरित भाग
त्रिकोण भाव 6वें, 8वें और 12वें भावों का समूह मिलकर त्रिक भाव कहलाता है.
त्रिषदया 3, 6 और 11वें भाव को त्रिषडाय के अंतर्गत रखा गया है.

3, 6 और 11वें भाव का यह समूह तीन बुरे कारकों अर्थात इच्छा, क्रोध और लालच को दर्शाता है. त्रिषदया समूह के ये तीन भाव आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण भाव अर्थात क्रमशः 9वें भाव, 12वें भाव और 5वें भाव से बिलकुल विपरीत हैं. 11वां भाव त्रिषदया समूह का सबसे शक्तिशाली भाव है क्योंकि यह समूह का अंतिम सदस्य है,

तीसरा भाव: तीसरा भाव नियम, इच्छा, पड़ोसी, करीबी संबंध, गुप्त अपराध दर्शाता है. इसका साहस पर नियंत्रण है. यह गले, कान, छोटे भाई-बहनों और पिता की मृत्यु से भी संबंधित है. कुंडली में तीसरा भाव संचार, यात्रा, भाई-बहन, मानसिक बुद्धि, आदतें, रुचियां और झुकाव को नियंत्रित करता है. सब कुछ, जैसे कि आप शब्दों और कार्यों के माध्यम से खुद को कैसे व्यक्त करते हैं, इंटरनेट और अपने गैजेट के माध्यम से आभासी संचार, दूसरा भाव इन सभी से संबंधित है.

यह भाव शुरुआती जीवन के माहौल जैसे भाई-बहन, पड़ोसी, प्राथमिक विद्यालय और यहां तक कि दिमाग से भी संबंधित है. साथ ही, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस भाव में मिथुन राशि है और इसका स्वामी बुध है. जो संचार का ग्रह है. इस प्रकार गपशप, बातचीत और छोटी-छोटी बातें इस भाव का हिस्सा हैं. यह भाव रुचियों का पता लगाने के लिए प्रेरित करते हैं. हमारे पास जो मूल्य हैं, उनके आधार पर ऐसी चीजें होंगी जो हमें करना पसंद होगा. लेकिन साथ ही, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और विकसित होते हैं, हम नई रुचियों और चीजों की ओर आकर्षित होंगे. तीसरे भाव को काम का भाव माना जाता है.

तीसरे भाव से व्यक्ति अभिव्यक्ति को प्रेरित हता है इसलिए अपने भाई-बहनों के साथ-साथ काम और पढ़ाई के दौरान भी घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए जाना जाता है. तीसरा भाव हमारे मानसिक झुकाव और याद रखने की क्षमता को नियंत्रित करता है. तीसरा भाव भाईचारे के लिए है जो छोटे भाई या बहन के लिए विचार को दर्शाता है. यह तीसरा भाव यह भी निर्धारित करता है कि लोगों के साथ कैसे जुड़ते हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. वैदिक ज्योतिष में, तीसरे भाव को सहज भाव कहा जाता है, और इसलिए यह प्यार, बंधन, देखभाल और साझा करने से जुड़ा है. यह सब हमारे परिवार के सदस्यों विशेष रूप से छोटे भाई या बहन, दोस्तों, रिश्तेदारों, बड़े समुदाय या यहाँ तक कि प्राकृतिक परिवेश के साथ भी हो सकता है.

छठा भाव: यह भाव दुर्घटना, क्रोध, रोग, शत्रु, मानसिक क्लेश, दुख, अपमान, दुर्भाग्य और चोरी की गई संपत्ति का प्रतीक है. ग्यारहवां भाव: यह ग्यारहवां भाव लाभ, लालच, बड़े भाई, मित्र, अधिग्रहण, दुख से मुक्ति को दर्शाता है. प्रत्येक लग्न के लिए, एक ग्रह, भाव के स्वामी के आधार पर कार्यात्मक रूप से लाभकारी, कार्यात्मक रूप से अशुभ या कार्यात्मक रूप से तटस्थ हो जाता है. मंगल, शनि, राहु और केतु प्राकृतिक रूप से अशुभ हैं, सूर्य को बुरा माना जाता है, क्षीण चंद्रमा और अस्त बुध भी अशुभ हैं. बृहस्पति और शुक्र प्राकृतिक रूप से शुभ हैं. 6वें, 8वें और 12वें भाव के स्वामी कार्यात्मक रूप से अशुभ हैं.

छठा भाव त्रिकभाव, त्रिषडाय और उपचय में शामिल होता है. इसे सबसे जटिल भाव माना जाता है, ये व्यक्ति को बाधा और निराशा देते हैं. यह भाव मुख्य रूप से रोग, बीमारी, प्रतिस्पर्धा, कर्मचारी, अधीनस्थ या नौकरों को दर्शाता है. साथ ही, कर्ज, दुश्मनी, स्वच्छता, स्वच्छता, लड़ाई की भावना, दुर्घटनाएँ और दुर्भाग्य का पता चलता है. पराशर जी कहते हैं कि यह षड रिपु भाव है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में छह प्रकार के शत्रुओं का सामना कर सकता है. इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मत्स्य शामिल हैं. यह प्रारब्ध भाव या सेवाओं का भाव कहा जाता है. जीवन के वर्षों के साथ-साथ ये बेहतर परिणाम भी देते हैं. इस भाव के कारक स्वामी बुध और शनि हैं. बुध सूचना, संचार, व्यावसायिक कौशल और नेटवर्किंग की कला को दर्शाता है. शनि कड़ी मेहनत और जिम्मेदारियों का प्रतिनिधित्व करता है और इन पर काम करते हुए व्यक्ति कड़ी मेहनत, धैर्य, नियमों का पालन और जीवन की सीमाओं को स्वीकार करने का पाठ सीखता है.

त्रिषडाय के स्वामी क्यों होते हैं अशुभ
त्रिषडायेश यानी तीसरे भाव, 6वें और 11वें भाव के स्वामी को भी अशुभ माना जाता है. एक ग्रह जो एक साथ त्रिक और त्रिषय भाव का स्वामी बनता है, उसे सबसे मजबूत कार्यात्मक अशुभ कहा जाएगा. इसके अलावा, जब कोई शुभ ग्रह केंद्र का स्वामी बन जाता है तो वह केंद्राधिपति दोष के कारण शुभ परिणाम देने की अपनी शक्ति खो देता है जबकि एक पाप ग्रह कार्यात्मक रूप से शुभ हो जाता है. यदि कोई शुभ ग्रह त्रिक भावों (छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव) का स्वामी न होकर केंद्र में स्थित हो तो यह शुभ होता है और इस स्थिति में वह शुभ ग्रह शुभ परिणाम देता है.

ग्यारहवें भाव के बारे में एक बात याद रखने योग्य है कि यह उपचय समूह, लाभ और पूर्ति के भाव का भी हिस्सा है, इसलिए इस भाव में स्थित ग्रह के लिए शुभ माना जाता है. स्वास्थ्य के लिए भी एकादश भाव का स्वामी अच्छा नहीं होता है.

जब कोई शुभ ग्रह त्रिक या त्रिषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इस समूह में स्थित होता है तो वह अपने प्राकृतिक शुभ परिणाम देने की शक्ति खो देता है. जबकि जब कोई पाप ग्रह त्रिक और त्रषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इसमें स्थित होता है तो उसे अपनी प्राकृतिक अशुभ शक्ति भी खोनी पड़ती है और शुभ परिणाम देने पड़ते हैं.

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सूर्य शनि का षडष्टक योग

सूर्य और शनि से बनने वाला षडाष्टक योग परेशानी और मुश्किल स्थिति का समय बताता है. सूर्य और शनि से बनने वाले 6/8 एक्सिस को ही षडाष्टक योग कहा जाता है. ज्योतिष अनुसार कुछ योग नकारात्मक रुप से असर दिखाते हैं जिसमें से एक योग है षडाष्टक योग यह जब जिस ग्रह के साथ बनता है तो मुश्किल स्थितियों को दिखाता है.

षडष्टक योग क्या होता है
कुंडली में बनने वाला छठे भाव और आठवें भाव का संबंध षडाष्टक कहलाता है. षडाष्टक योग दो ग्रहों के मध्य बन सकता है जब एक ग्रह छठे भाव में हो और दूसरा ग्रह उस ग्रह से गिनती करने पर आठवें भाव में बैठ जाए तो षडाष्टक योग निर्मित होता है. ज्योतिष अनुसार कुंडली का छठा भाव और आठवां भाव मुश्किलों विलंब और परेशानियों का संकेत देता है इसी कारण इस योग के कारण दिक्कतें अधिक झेलनी पड़ सकती हैं.

सूर्य शनि के षडाष्टक योग का प्रभाव
सूर्य का प्रभाव अग्नि तत्व युक्त एवं पुरुष तत्व के पक्ष को दर्शाता है, शनि यह दर्शाता है कि विकास और सफलता के अनुशासन ओर संघर्ष कैसे आपको सफलता देगा. सूर्य और शनि का यह योग आपसी विरोधाभास का असर लेकर आता है. इस के प्रभाव से व्यक्ति अवसरों का लाभ उठाने से खुद को वंचित पाता है.

कुंडली में सूर्य और शनि का षडाष्टक योग और प्रत्येक भाव पर इसका असर

कुंडली के पहले भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के पहले भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव अभिमान की वृत्ति बढ़ा सकता है. सहयोग की भावना कम होती है. यह स्थिति एक गंभीर, अनुशासित और जिम्मेदार स्वभाव वाले व्यक्ति को इंगित कर सकती है. हालाँकि, वे आत्मविश्वास और उदासी की प्रवृत्ति से जूझ सकते हैं.

कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव के कारण बोलचाल में कठोरता बनी रह सकती है. सूर्य-शनि की यह स्थिति वित्तीय कठिनाइयों, आत्म-मूल्य के साथ चुनौतियों और धन प्रबंधन के प्रति सतर्क दृष्टिकोण का कारण बन सकती है.

कुंडली के तीसरे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के तीसरे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव के कारण व्यक्ति परिश्रम का सही से लाभ नहीं ले पाता है. यह स्थिति संचार समस्याओं, भाई-बहनों या पड़ोसियों के साथ कठिनाइयों और निराशावाद की प्रवृत्ति का कारण बन सकती है.

कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव के कारण घरेलू स्थिति से दूरी का अनुभव होता है. असहमति बनी रहती है. सूर्य और शनि घर और परिवार के भीतर चुनौतियों के साथ-साथ भावनात्मक दूरी या घरेलू जीवन में बोझ की भावना का संकेत दे सकते हैं.

कुंडली के पंचम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के पंचम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव जिद्द और इच्छाओं के प्रति कठोर बनाता है, मित्रों के साथ संबंध प्रभावित होते हैं. प्रेम में असफलता अथवा दूरी ही अधिक झेलनी पड़ सकती है. यह योग रचनात्मकता, रोमांटिक संबंधों और अवकाश गतिविधियों का आनंद लेने की क्षमता में बाधा डाल सकता है.

कुंडली के छठे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के छठे भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव जीवन में संघरष के लिए व्यक्ति को मजबूती देता है, सूर्य-शनि की स्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, काम या दैनिक दिनचर्या में समस्याओं और तनाव या चिंता की प्रवृत्ति में योगदान दे सकती है.

कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव दांपत्य जीवन को कमजोर करता है. यह स्थिति संघर्ष, सत्ता संघर्ष या साझेदारी और विवाह में कठिनाइयों का कारण बन सकती है.

कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव अचानक आने वाले कष्टों को दिखाता है. सूर्य और शनि अंतरंगता, साझा संसाधनों या परिवर्तनकारी अनुभवों के साथ चुनौतियों का संकेत दे सकते हैं.

कुंडली के नवम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के नवम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव में आप अपनी ही परंपराओं को लेकर काफी कठोर होंगे, दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहेंगे. बड़ों के साथ विवाद रह सकता है. यह संयोजन उच्च शिक्षा, आध्यात्मिक खोज या लंबी दूरी की यात्रा में सीमाओं का परिणाम हो सकता है.

कुंडली के दशम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के दशम भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव जीवन में करियर को अस्थिर कर सकता है. अधिकारियों के साथ विवाद लगातार असर डाल सकता है. व्यर्थ में भागदौड़ बनी रह सकती है. सूर्य-शनि की स्थिति करियर, प्रतिष्ठा या सार्वजनिक जीवन में बाधाओं का संकेत दे सकती है.

कुंडली के एकादश भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के एकादश भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव आर्थिक स्थिति को कमजोर बनाता है. इसके कारण सामाजिक स्थिति भी प्रभावित होती है. लोगों के साथ बेहतर संबंध नहीं बन पाते हैं. दोस्ती, सामाजिक संबंधों और आशाओं और सपनों की पूर्ति में बाधा डाल सकता है.

कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव
कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य शनि का षडाष्टक योग प्रभाव खर्चों को अधिक बनाने वाला होगा. बाहरी लोगों के कारण परिवार से दूरी का असर झेलना पड़ सकता है. सूर्य और शनि अलगाव, आत्म-विनाश या आध्यात्मिकता या अवचेतन के साथ कठिनाइयों की भावनाओं में योगदान कर सकते हैं.

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मीन राशि में शनि – तुला राशि पर शनि के गोचर का प्रभाव

शनि का गोचर मीन राशि में होना तुला राशि वालों के लिए रहेगा बेहद खास. तुला राशि के लिए शनि योगकारक ग्रह होते हैं. जब शनि मीन राशि में होते हैं तो तुला राशि वालों के छठे भाव को प्रभावित करने वाले होते हैं. तुला राशि वालों के लिए शनि चौथे और पांचवें भाव का स्वामी है. शनि के आपकी कुंडली में छठे भाव में गोचर करने से आप शनि के प्रभाव में रहेंगे. इस समय छठे भाव का गोचर कुछ कमजोर पक्ष को दिखा सकता है और परिश्रम की अधिकता रहेगी. आपको अपना दृढ़ संकल्प और आशावाद सर्वोच्च स्तर पर रखना चाहिए.

वैदिक ज्योतिष में नैतिकता और नियमों के स्वामी शनि जब मीन राशि में प्रवेश करेंगे उसी समय के दौरान तुला राशि वाले भी इस गोचर के कारण प्रभावित होंगे. यह करीब ढाई साल तक मीन राशि में रहेंगे. ज्योतिष में इसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह कहा जाता है क्योंकि यह पृथ्वी से बहुत दूर है. फिर भी, इसका सभी राशियों पर स्थायी प्रभाव पड़ता है.

तुला राशि के छठे भाव में शनि का गोचर
तुला राशि वालों के लिए इस बार, कुंडली के छठे भाव में शनि देव का आगमन होगा. ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव शत्रु, विरोध, दुर्घटना, ऋण, कर्ज और बाधाओं जैसे क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, गोचर मुख्य रूप से आपके जीवन के इन क्षेत्रों को प्रभावित करेगा. शनि के प्रभाव में होने से लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक काम करने की जरूरत होगी.
इस समय कुछ दीर्घकालिक वित्तीय निवेश की योजना बनाने से पूर्व जोखिमों के प्रति सजग रहें. आने वाले समय में अपने कौशल को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की ओर ध्यान देने की जरूरत है आइए जानें कि शनि का आगामी गोचर आपके लिए कैसा साबित होगा.

शनि का यह गोचर तुला राशि वालों से उनके आगे के जीवन को आगे बढ़ाने में कड़ी मेहनत और नियमों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने के लिए होगा. इस चरण में आपसे अगले ढाई वर्षों में धैर्य और सहनशीलता जैसे प्रमुख गुणों को विकसित करने की आवश्यकता होगी.

तुला राशि वालों के लिए करियर पर शनि गोचर का प्रभाव
इस गोचर के दौरान विरोधी हावी हो सकते हैं और नीचे गिराने की कोशिश कर सकते हैं. इसके कारण अधिकारियों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए, काम पर परेशान करने वाली स्थितियों से बचने और उच्च अधिकारियों के साथ संबंधों को चतुराई से संभालने की आवश्यकता है. अपने क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि सहकर्मी कम ही साथ दे पाएं. लेकिन जैसे-जैसे यह गोचर आगे बढ़ेगा, जिससे धीरे-धीरे सुधार होगा जिससे सुरक्षित महसूस करेंगे. करियर को बेहतर बनाए रखने के लिए शांत और संयमित दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी. अगर इस समय धैर्य और बुद्धि का उपयोग करते हैं, तो बाधाओं को पार कर सकते हैं और लक्ष्यों के पत्थर तक पहुंच सकते हैं.

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तुला राशि के लिए व्यावसायिक जीवन पर शनि गोचर का प्रभाव
व्यापारिक गतिविधियों के लिए, शनि की चाल के कारण चरण औसत से कम परिणाम लाने की संभावना को दिखा सकता है. लेकिन, जैसे-जैसे गोचर आगे बढ़ेगा, चीजें धीरे-धीरे अनुकूल होती दिखाई दे सकती हैं. इस समय अतिरिक्त जिम्मेदारी के लिए कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने की आवश्यकता होगी. व्यवसाय को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से चलाने के लिए पता होना चाहिए कि आपके व्यवसाय में कहाँ कमी है और आप अपनी बिक्री को और अधिक बढ़ाने के तरीके क्या हैं इसलिए नए तरीके खोजने की आवश्यकता हो सकती है.

व्यवसाय से जुड़े लोगों के साथ से लगातार मुलाकातों को करने की जरूरत होगी. नए दृष्टिकोण की योजना बनाने का भी सुझाव दिया जाता है जो आपके व्यवसाय को स्थिरता प्रदान कर सकता है और इसे और आगे बढ़ा सकता है.

आर्थिक स्थिति पर असर
इस स्मय खर्च अधिक रहेंगे. आर्थिक रूप से, आप आगे बढ़ सकते हैं लेकिन अभी उम्मीदों के अनुसार लाभ कमाने में संघर्ष रहेगा. इस समय पैसे बचाने में सक्षम नहीं होने के कारण चिंतित हो सकते हैं. धन के मामले में स्थिरता बनाए रखने के लिए बजट की योजना पहले से ही बना लेनी चाहिए. अपनी सभी वित्तीय देनदारियों को ध्यान में रखते हुए और अपने पैसे खर्च करने के बारे में व्यावहारिक रूप से निर्णय लेना आपके लिए नुकसान से बचने में फायदेमंद होगा.

प्रेम जीवन और वैवाहिक जीवन पर शनि गोचरका प्रभाव
इस अवधि के दौरान, आप ऊर्जावान महसूस करेंगे लेकिन यह ऊर्जा आपको गलत निर्णय लेने और अपनी वाणी को खराब करने के लिए मजबूर कर सकती है. अगर आपको खुद पर या अपने साथी पर गुस्सा या निराशा हो सकती है, तो प्यार दिखाने का तरीका बदलने की कोशिश करें. अपने साथी को डेट करना या अपने प्रिय के साथ पुराने प्रेम भरे दिनों को याद करने की कोशिश करना आपको सुखद अनुभव देगा. जैसे-जैसे यह गोचर आगे बढ़ेगा, शनि आपके लिए कुछ अनुकूल परिणाम लेकर आएगा और यह आपको आपकी अंतिम पड़ाव की ओर ले जाने में सहायक होगा.

शनि गोचर का स्वास्थ्य पर प्रभाव
सेहत को लेकर इस समय अधिक सजग रहने की जरुरत होगी. शनि आपको स्वस्थ रहने के लिए अपनी फिटनेस और स्वच्छता व्यवस्था का सख्ती से पालन करने की मांग कर सकता है. स्वास्थ्य को अच्छी स्थिति में रखने के लिए गरिष्ठ भोजन और जंक फूड से परहेज करना ही अनुकूल होगा जैसे-जैसे यह गोचर आगे बढ़ेगा, कई काम करने के लिए बेहतर मानसिक स्थिति में होंगे ऐसा करने के लिए, आपका उत्साह स्तर भी बहुत अधिक होगा.

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तुला संक्रांति : सूर्य के दक्षिणायन की यात्रा का समय

तुला संक्रांति, जिसे सूर्य के तुला राशि में प्रवेश का समय कहा जाता है. तुला सूर्य संक्रमण का वो खास समय होता है जब सूर्य दक्षिणायन की गति में आरंभ होता है. इस दिन को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है इसे हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. देश भर में इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा के साथ साथ पितरों के पूजन का समय भी रहता है. इस दिन सूर्य अपनी स्थिति बदलता है और तुला राशि में प्रवेश करता है. तुला संक्रांति के दौरान तुला महीने में पवित्र स्नान के साथ साथ दान को शुभ माना जाता है. इस दिन लोपामुद्रा नाम की एक लड़की की कहानी है, जो बाद में कावेरी के नाम से जानी गई और उसकी यात्रा से कोडागु के लोगों को लाभ हुआ.

तुला संक्रांति अनुष्ठान और महत्व

तुला संक्रांति के समय को सूर्य के दक्षिणायन का समय भी माना जाता है. एक वर्ष में कुल बारह संक्रांति होती हैं और लोग इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करते हैं. तुला संक्रांति का हिंदू धर्म में धार्मिक महत्व है. इस दिन को विशेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है और हिंदू सौर पंचांग में कार्तिक महीने का पहला दिन भी माना गया है. यह दिन महाष्टमी के दिन ही आता है और पूरे देश में मनाया जाता है. इस शुभ दिन पर सूर्य अपनी स्थिति बदलता है और तुला राशि में प्रवेश करता है. यह दिन ओडिशा और कर्नाटक में विशेष रूप से मनाया जाता है और उत्तर भारत में इसकी लोक परंपरा अलग ही रुप में दिखाई देती है. 

तुला संक्रांति पर लक्ष्मी पूजन 

दक्षिण भारत में इस संक्रांति पर पवित्र स्नान का आयोजन होता है. जिसे न केवल शुभ माना जाता है बल्कि संक्रांति के दिन नहीं बल्कि पूरे तुला महीने में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग पूजा की जाती है ताकि वह हर साल किसानों को अच्छी फसल प्रदान करें. किसानों का पूरा परिवार पूजा समारोह में शामिल होता है और भगवान से प्रार्थना करता है जिसके बाद वे यह विश्वास करते हुए भरपूर भोजन करते हैं कि भविष्य में उनके पास भोजन की कोई कमी नहीं होगी.

तुला संक्रांति : कावेरी नदी पूजन 

हिंदू धर्मग्रंथ, स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार लोपामुद्रा या विष्णुमाया नाम की एक लड़की थी जिसे भगवान ब्रह्मा की पुत्री माना जाता है जिसे कावेरा मुनि ने गोद लिया था और कावेरा मुनि ने बाद में उसका नाम कावेरी रखा. प्रसिद्ध ऋषि अगस्त्य उससे प्रेम करने लगे इसलिए एक दिन वह धार्मिक गतिविधियों में इतने व्यस्त थे कि वह अपनी पत्नी कावेरी के पास जाना भूल गए. उनके द्वारा उपेक्षित होने के बाद, नदी के रुप में बह निकली, जिसकी वह हमेशा अपनी शादी से पहले भी कामना करती थी. भक्त लोग इस संक्रांति के समय पर नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं. तुला संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान सूर्य के कन्या राशि से तुला राशि में संक्रमण का प्रतीक है और इस शुभ दिन लोग भगवान सूर्य, देवी लक्ष्मी और कावेरी की पूजा करते हैं.

तुला राशि में सूर्य के गोचर का अन्य सभी राशियों पर प्रभाव 

मेष राशि संक्रांति फल 

मेष राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर सप्तम भाव में रहेगा. सूर्य के कमजोर होने से आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है. कार्यस्थल पर अधिकारियों या सहकर्मियों से अनावश्यक अलगाव हो सकता है. इस समय मेहनत अधिक रहने वाली है. ऑफिस में राजनीति से बचना होगा, अन्यथा छवि कमजोर हो सकती है. किसी कारण से दांपत्य जीवन में अलगाव या दूरियां आ सकती हैं.

वृषभ राशि संक्रांति फल 

वृषभ राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर छठे भाव में रहेगा. सरकारी क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए समय अनुकूल रहेगा. कार्यस्थल पर किसी भी तरह के वाद-विवाद या संघर्ष से बचना उचित रहेगा. इस अवधि में आपको पाचन संबंधी कुछ समस्याएं, पेट दर्द, आंखों की समस्या और कमजोरी का सामना करना पड़ सकता है. इस दौरान छात्रों में आत्मविश्वास की कमी महसूस होगी.

मिथुन राशि संक्रांति फल 

मिथुन राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर पांचवें भाव में रहेगा. कुछ नए लोगों से मेलजोल होगा और नए रिश्ते प्यार में बदल सकते हैं. जो छात्र किसी रचनात्मक कार्य से जुड़े हैं, उन्हें इस समय अपनी योग्यता दिखाने का मौका मिलेगा. शिक्षा से जुड़ी गतिविधियों में छात्रों पर अधिक दबाव रह सकता है. उन्हें खुद को साबित करने और अच्छे ग्रेड प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

कर्क राशि संक्रांति फल 

कर्क राशि के लिए सूर्य चतुर्थ भाव में गोचर करेगा. काम की अधिकता रहेगी, इसलिए आपको फोकस बनाए रखना होगा. छोटी-छोटी गलतियां आपको परेशान कर सकती हैं. घर के बड़ों के साथ अधिक समय बिताएं. दांपत्य जीवन में ससुराल पक्ष से आपके संबंध मजबूत होंगे. आपको कुछ महत्वपूर्ण काम करने की अधिक जिम्मेदारियां भी मिल सकती हैं.

सिंह राशि संक्रांति फल 

सिंह राशि के लिए सूर्य आपकी राशि का स्वामी है और अभी सूर्य तीसरे भाव में रहेगा. परिवार और काम के चलते यात्रा करने की संभावना रहेगी. आप कुछ समय निकाल सकते हैं और अपनी पसंद की चीजों में अधिक रुचि ले सकते हैं. लोगों से मेलजोल बढ़ाने का समय मिलेगा, लेकिन प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए आपको लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ेगी. आर्थिक पक्ष सामान्य रहेगा, आप अपने प्रियजनों पर अधिक धन खर्च कर सकते हैं.

कन्या राशि संक्रांति फल 

कन्या राशि के लिए सूर्य दूसरे भाव में गोचर करेगा. इस समय व्यय भाव का स्वामी कमजोर अवस्था में धन भाव में रहेगा. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां आ सकती हैं, बाहर के खाने और जंक फूड से दूर रहकर स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है. आपको कुछ छोटी यात्राओं पर जाना पड़ सकता है, यात्रा के दौरान अपने सामान का ध्यान रखें, लापरवाही परेशानी का कारण बन सकती है. 

तुला राशि संक्रांति फल 

तुला राशि वालों के लिए सूर्य का प्रभाव स्वभाव, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और आपसी संबंधों पर अधिक देखने को मिल सकता है. अपने सभी कामों को पूरी लगन से करने पर आपको इसका लाभ अवश्य मिलेगा. पैसों को लेकर अधिक चिंता हो सकती है. इस समय आप अपने प्रियजनों को लेकर भी काफी गंभीर रहेंगे, उनका सहयोग पाने के लिए निरंतर प्रयास सकारात्मक परिणाम देने में सहायक होंगे. 

वृश्चिक राशि संक्रांति फल 

वृश्चिक राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर बारहवें भाव में होगा. कार्यस्थल पर आपको तनावपूर्ण माहौल का सामना करना पड़ सकता है, अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने और अपनी योग्यता साबित करने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी होगी. शरीर में कुछ दर्द और गर्दन या कंधे की मांसपेशियों में दर्द हो सकता है. इस अवधि में आप ऊर्जा और उत्साह की कमी महसूस कर सकते हैं. 

धनु राशि संक्रांति फल 

धनु राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर आय और लाभ के भाव में होगा. इस समय आपको अपने वरिष्ठों की बातें पसंद नहीं आ सकती हैं या आप सख्त निर्देशों का पालन करने के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं. पैतृक संपत्ति से संबंधित कुछ विवाद होने की भी संभावना है, इसलिए इस समय भ्रम और दूसरों की बातों में अधिक रुचि लेने से बचना उपयोगी होगा. विद्यार्थी अपनी एकाग्रता की कमी से परेशान रहेंगे.

मकर राशि संक्रांति फल 

सूर्य का गोचर मकर राशि के कार्य क्षेत्र को सबसे अधिक प्रभावित करेगा. अपनी रुचि दिखाने के साथ-साथ आप छुपी हुई प्रतिभाओं से भी परिचित होंगे. जो लोग अपना खुद का व्यवसाय करते हैं, वे आय के नए स्रोत उत्पन्न करने में सक्षम होंगे. यदि आप नौकरीपेशा हैं, तो काम में वृद्धि के साथ-साथ आय में वृद्धि के संकेत मिल सकते हैं. सहकर्मियों के साथ तालमेल बिगड़ सकता है.

कुंभ राशि संक्रांति फल 

कुंभ राशि के भाग्य भाव में सूर्य देव शुभता प्रदान करते हैं. आप आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. प्रियजनों के साथ आपके सहयोग की कई मौकों पर प्रशंसा भी मिलेगी. आप समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सक्षम होंगे. इस दौरान आप जनसंपर्क के क्षेत्र में अधिक काम कर सकते हैं.

मीन राशि संक्रांति फल 

मीन राशि के लिए सूर्य का गोचर अष्टम भाव में होता है. चीजों को हासिल करने के लिए आपको कठिन संघर्ष करना पड़ेगा. किसी का सहयोग सकारात्मक तरीके से काम करेगा. उत्साह और इच्छाएं आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होंगी. आपको किसी से अचानक धन प्राप्ति भी हो सकती है. इस समय शांति से सबकी बात समझने की कोशिश करेंगे तो चीजें सुलझ जाएंगी.

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ज्योतिष में D6 षष्ठ्यांश चार्ट क्यों है महत्वपूर्ण

ज्योतिष अनुसार लग्न कुंडली के साथ गर्ग कुंडलियों का महत्व प्रत्येक भाव को गहराई से समझने में मदद करता है. हर एक वर्ग कुंडली व्यक्ति के जीवन के किसी न किसी पक्ष को प्रभावितकरने वाली होती है. ज्योतिष में D6 चार्ट भी एक विशेष वर्ग कुंडली है. डी 6 कुंडली की मदद से व्यक्ति के स्वास्थ्य को समझ पाना आसान होता है. जीवन रोग कैसे अपना असर डाल सकते हैं. किस प्रकार की बीमारियां परेशानी दे सकती हैं इन सभी बातों को डी 6 कुंडली की सहायता से समझ पाना संभव होता है. जिस प्रकार जन्म कुंडली में छठा भाव रोग के बारे में बताता है उसी प्रकार यह डी 6 कुंडली भी रोग के सभी पहलुओं पर गहरी दृष्टि डालने वाली होती है. 

षष्ठ्यांश चार्ट विशेष रूप से, यह छठे भाग का वर्ग चार्ट है, जो राशि चक्र के 360 डिग्री को 6 से विभाजित करके बनाया जाता है. इस वर्ग कुंडली का उपयोग किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य, आदतों और दैनिक दिनचर्या में अतिरिक्त जानकारी प्रदान करने के लिए किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह किसी व्यक्ति के जीवन के छोटे-छोटे, दिन-प्रतिदिन के विवरणों और उनके नियमित गतिविधियों और जिम्मेदारियों के प्रति उनके दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है.

षष्ठ्यांश कुंडली स्वास्थ्य समस्याओं की देती है जानकारी   

डी 6 नामक वर्ग कुंडली से व्यक्ति के दैनिक जीवन उसकी आदतों एवं व्यवहार को जाना जाता है. इसके अलावा उसकी सेहत से जुड़ी सभी समस्याओं उसकी आदतों को समझ पाना संभव होता है. D6 कुंडली में ग्रह स्थिति और ग्रहों की दृष्टि के आधार पर भोजन से जुड़ी उसकी आदतें समझी जा सकती हैं, व्यायाम, नींद की स्थिति, काम की आदतों और यहां तक कि स्वच्छता जैसी बातों का उस पर क्या असर है इस बारे में भी यह भाव विशेष संकेत देता है. इन सभी चीज़ों के मामले में छठा भाव व्यक्ति की प्रवृत्तियों को इंगित कर सकते हैं. ज्योतिषी किसी व्यक्ति की सारे जीवन की परिस्थितियों और व्यवहार स्थिति की अधिक व्यापक समझ देने में सहायक होता है और जन्म कुंडली के साथ D6 कुंडली को देख कर इन सभी के बारे में गहन दृष्टिकोण मिलता है. 

जन्म कुंडली के छठे भाव का एक रूप षष्ठ्यांश कुंडली है. यह भाग्य, संपत्ति, सुरक्षा, जमा की हुई संपत्ति और घर का प्रतिनिधित्व करती है. इस वर्ग कुंडली के विभिन्न नाम बंधु-वर्ग, पद्मांश और तुर्यांश हैं. ऋषि पाराशर इसकी आदर्श तकनीक के बारे में बताते हैं. वैदिक ज्योतिष में, इसका व्यापक रूप से संसाधन सौदों या किराये, संपत्ति के दुर्भाग्य जैसी बातों का अनुमान लगाने के लिए उपयोग किया जाता है.

इस कुंडली में प्रत्येक राशि या राशि से संबंधित सात डिग्री तीस मिनट के छह भाग हैं. षष्ठ्यांश चार्ट में ग्रह जिस राशि में आते हैं, वह कुछ इसी तरह की होती है. बाद के विभाजन में ग्रह राशि के माध्यम से छठे भाव में स्थित होते हैं. तीसरे भाग में स्थित ग्रह जिस राशि में स्थित होते हैं, उससे सातवें भाव में स्थित होते हैं, जबकि छठे भाग में स्थित ग्रह जिस राशि में स्थित होते हैं, उससे दसवें भाव में स्थित होते हैं. एक विशिष्ट क्रम में, ऋषि सनक, सनंदन, सनतकुमार और सनातन इन भावों की देखरेख करते हैं.

किन किन कामों के लिए उपयोग होती है यह कुंडली 

इस कुंडली के उपयोग से किसी व्यक्ति के भाग्य, या नियति, पूर्वनिर्धारण या भाग्य को समझ सकते हैं. इस कुंडली का उपयोग माता के सुख, दिव्यदृष्टि और निजी सुरक्षा इत्यादि को समझने के  लिए भी किया जा सकता है. यह विभागीय वर्ग कुंडली जिम्मेदारी, स्थिर संपत्ति और इस महत्वपूर्ण कामों से जुड़े किसी भी दुर्भाग्य को दर्शाता है. यह विशेष रूप से संपत्ति की विरासत, घर या व्यावसायिक वातावरण के क्षेत्र और प्रकार, वाहन और अन्य विशिष्ट संपत्ति के संबंध में स्पष्ट है. 

यह कुंडली व्यक्ति की भूमि खरीदने या बेचने की क्षमता के साथ-साथ संबंधित धन प्राप्ति जैसे कि ऋण के लिए आवेदन करने की क्षमता को दर्शाता है. किराये के वेतन, संपत्ति के निवेश और घरों जैसे लाभों के साथ-साथ होम लोन और घाटे को भी जानने के लिए किया जा सकता है. घर बदलने, संपत्ति से परे खर्च करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है.

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मीन राशि में शनि : कन्या राशि पर शनि के गोचर का प्रभाव

ज्योतिष में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह शनि जब राशि बदलाव करता है तो वे बहुत ही विशेष समय माना जाता है. इसके गोचर का सभी राशियों पर स्थायी प्रभाव डालते हुए देखा जा सकता है. मीन राशि में शनि के महागोचर का समय अब कई बदलाव लाएगा और कन्या राशि वालों को इसका असर देखने को मिलेगा. मीन राशि शनि के लिए बहुत ही विशेष राशि है, इस राशि के प्रभाव में शनि सभी राशियों को किसी न किसी रुप में प्रभावित करने वाला होगा. 

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मीन राशि में शनि का गोचर 29 मार्च 2025 से शुरू होने जा रहा है, जो लगभग ढाई साल तक रहेगा. उसके बाद, शनि मेष राशि में गोचर करेगा. शनि को राशि चक्र की सभी राशियों को पार करने में लगभग 30 साल लगते हैं, इसी कारण शनि के गोचर को विशेष माना गया है.

कन्या राशि वालों के लिए, शनि उनकी कुंडली में छठे भाव और सातवें भाव का स्वामी है. अब यह गोचर में सातवें भाव में गोचर करने जा रहा है. यह वह भाव है जो विवाह, जीवनसाथी, जुनून, व्यापार में साझेदारी और यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है. गोचर का आपके जीवन के इन क्षेत्रों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. इस गोचर के दौरान शनि आपके वैवाहिक जीवन में थोड़ी अशांति ला सकता है. आपके विचारों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप अपने जीवन में शनि के असर को कैसे समझते हैं.

शनि गोचर 2025 का करियर पर प्रभाव

कन्या राशि व्यक्ति की भावनात्मक और मानसिक शक्ति को दर्शाने वाली होती है, शनि गोचर के दौरान आपका स्वभाव प्रभावित होता है. आपको परिस्थितियों का सामना मज़बूती से करना होगा. शनि गोचर की यह अवधि आपके लिए कड़ी मेहनत और सम्मान से भरी हो सकती है. आप अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को संतोषजनक ढंग से पूरा कर सकते हैं लेकिन आप पर दबाव भी होंगे. आपकी पदोन्नति की संभावनाएं बढ़ने लग सकती हैं. आपको साथियों और वरिष्ठों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए कुछ और प्रयास करने होंगे.

इस समय का उपयोग अपने पिछले कार्यों और निर्णयों पर विचार करने के साथ साथ नई चीजों को सीखने के लिए भी आगे होंगे. इस चरण में अपने करियर की स्थिति को मजबूत करने के लिए दृढ़ कदम उठाने होंगे. गोचर अवधि के दौरान नौकरी से संबंधित स्थानांतरण की संभावना है. हालांकि, स्थानांतरण का प्रभाव लंबे समय में सकारात्मक और अनुकूल रहेगा.

शनि गोचर 2025 का व्यावसायिक जीवन पर प्रभाव

आपको अपने व्यवसायिक जीवन में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा. नए ऑर्डर मिलने की संभावना है. इससे आपको अपने व्यवसाय में लाभ के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी. अपने कौशल और क्षमताओं का उपयोग करके आप सामान्य रूप से अपने व्यवसाय की संभावनाओं को आगे बढ़ा पाएंगे. अच्छा सौदा करने के लिए अधिक फॉलो-अप की आवश्यकता है. जैसे-जैसे यह गोचर अवधि आगे बढ़ेगी, आप बेहतर व्यावसायिक निर्णय लेने में सक्षम होंगे. आपको अपने कर्मचारियों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि वे पूरी तरह से सहयोग नहीं कर सकते हैं. आपको अपनी टीम के साथ परिस्थितियों को चतुराई से संभालने का सुझाव दिया जाता है. लंबे समय में लाभ मिलने की संभावना भी होगी. 

धन पर शनि गोचर 2025 का प्रभाव

मकर राशि में शनि का गोचर आपके लिए धन की वर्षा करने वाला है. आपकी मेहनत आपको प्रोत्साहन या वेतन वृद्धि के रूप में वापस देगी.  अपने कार्यालय के बाहर किसी अतिरिक्त काम के लिए लाभ प्राप्त करने की संभावना है. आपको अपने व्यवसाय में भी लाभ होने की संभावना है. आपको किसी से लंबे समय से बकाया राशि मिल सकती है. इससे आपकी वित्तीय स्थिति धीरे-धीरे बेहतर होगी. आप अपनी आय को विलासिता की चीज़ों और धार्मिक स्थलों पर खर्च करने की संभावना रखते हैं. जो आप कमाते हैं उसका सबसे अच्छा उपयोग करने में भी सक्षम होंगे. 

शनि गोचर का स्वास्थ्य पर प्रभाव 

इस समय सेहत के मामले भी आप पर असर डालेंगे. शनि छठे का स्वामी है और सातवें भाव में जिसके कारण जीवन साथी की सेहत को लेकर भी आप पर दबाव हो सकता है. इस समय संक्रमण का असर हो सकता हे पेट के नीचले हिस्से का भाग अधिक प्रभावित रह सकता है. 

शनि गोचर के उपाय 

कन्या राशि वालों को इस समय काले तिल का दान करना चाहिए. 

इस समय रुद्राभिषेक करना विशेष शुभ प्रभाव देगा. 

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चिकित्सा ज्योतिष : आपकी कुंडली में है रोग से बचाव का उपाय

ज्योतिष के अनुसार, चिकित्सा ज्योतिष एक ऐसा माध्यम है जिसमें कुंडली में ग्रहों और भावों के माध्यम से स्वास्थ्य और दीर्घायु के योगों को समझा जाता है क्योंकि नौ ग्रहों और बारह भावों में से प्रत्येक का संबंध किसी न किसी बीमारी से होता है. जिसमें ज्योतिषी कुंडली देखकर बता सकता है कि शरीर के इस अंग में इस प्रकार की बीमारी होने की संभावना है. जिसमें छठा भाव बीमारी, आठवां भाव सर्जरी, मृत्यु और खतरे का तथा बारहवां भाव अस्पताल का होता है. कुंडली में लग्न के छठे, आठवें और बारहवें भाव का संबंध होने पर व्यक्ति अपनी सेहत को लेकर तनाव में रह सकता है.

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चिकित्सा ज्योतिष में छठा भाव रोगों का मुख्य भाव होता है क्योंकि स्वास्थ्य तभी खराब होगा जब इस भाव या भाव के स्वामी की दशा चल रही हो और इसका संबंध अन्य नकारात्मक भावों और ग्रहों से हो. कौन सी बीमारी होगी यह यहां के ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करता है. दीर्घायु के लिए अष्टम भाव देखा जाता है. इसके साथ ही तृतीय भाव पर भी विचार करना आवश्यक है क्योंकि यह अष्टम से अष्टम होता है. इसे मृत्यु भाव के साथ-साथ जीवन के अंत का भाव भी कहा जाता है. बारहवां भाव अस्पताल में भर्ती होने का भाव होता है. जब छठे भाव का संबंध बारहवें भाव से बनता है तो बीमारी के बाद अस्पताल जाने के योग बनते हैं.

ग्रहों का रोग फल
सूर्य ग्रह आत्मा, सामान्य स्वास्थ्य, जीवनदायिनी और शारीरिक ऊर्जा का कारक है. चिकित्सा ज्योतिष में इसे पित्त प्रकृति का ग्रह माना गया है. इसके बलवान होने पर व्यक्ति स्वस्थ रहता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहती है. सूर्य ग्रह हृदय, पेट, हड्डियों और दाहिनी आंख का कारक है. चिकित्सा क्षेत्र में कमजोर सूर्य के कारण सिरदर्द, गंजापन, चिड़चिड़ापन, बुखार, जलन, सूजन से होने वाले रोग, यकृत और पित्ताशय के कुछ रोग, हृदय रोग, नेत्र रोग, पेट के रोग, त्वचा रोग, गिरने या हथियार से चोट लगना, जहर का सेवन, रक्त संचार संबंधी समस्याएं, मिर्गी, कुष्ठ रोग और सांप से डर जैसी समस्याएं होती हैं.

चंद्रमा ग्रह की मुख्य प्रकृति कफ है लेकिन इसमें वात के कुछ तत्व भी होते हैं. यह व्यक्ति के मन की स्थिरता और मजबूती का कारक है. यह शरीर में बहने वाले द्रव, रक्त, गुर्दे और बाईं आंख का कारक है. चंद्रमा मानसिक बीमारी से संबंधित समस्याओं जैसे मानसिक विचलन, भावनात्मक अशांति, घबराहट, हाइपरसोमनिया और सामान्य जड़ता का प्रतिनिधित्व करता है. यदि चन्द्रमा कमजोर हो तो चन्द्रमा कफ जनित रोग, क्षय रोग, जलोदर, अपच, दस्त, रक्ताल्पता, शरीर में तरल पदार्थ का जमा होना, रक्त विषाक्तता, कम्पन, ज्वर, पीलिया, जल एवं जलीय जन्तुओं से भय, पशुओं के सींगों से घाव आदि का कारण बनता है. चन्द्रमा और मंगल स्त्रियों के मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करते हैं. स्त्रियों में मासिक धर्म में गड़बड़ी तथा स्त्रियों के प्रजनन तंत्र के रोग चन्द्रमा के कारण होते हैं तथा स्त्रियों में स्तन रोग तथा माता के दूध के प्रवाह में कमी का कारण भी चन्द्रमा ही होता है.

मंगल पित्त प्रकृति का होता है. यह ग्रह आक्रामक, उत्तेजित तथा ऊर्जावान होता है. कुंडली में मंगल की स्थिति जातक के स्वास्थ्य, तेजस्विता तथा चेतना की शक्ति को दर्शाती है. मंगल सिर, अस्थि, मज्जा, पित्त, हीमोग्लोबिन, लाल रक्त कणिकाओं, कोशिकाओं, एंडोमेट्रियम {गर्भाशय की भीतरी दीवार} अर्थात वह स्थान जहां बीज प्रत्यारोपण द्वारा शिशु का निर्माण होता है, का कारक होता है. मंगल ग्रह दुर्घटना, चोट, शल्य चिकित्सा, जलन (सूर्य के प्रभाव में), रक्त विकार, नसों का फटना, उच्च रक्तचाप, पित्तजन्य सूजन और उससे होने वाला बुखार, तंत्रिका तंत्र, नाक से खून आना, मासिक धर्म, पित्ताशय की पथरी, हथियार से चोट, विषाक्तता, गर्मी से होने वाले रोग, अत्यधिक प्यास, छालों के साथ बुखार, मानसिक विचलन (विशेष रूप से आक्रामक प्रकार का), नेत्र और तिल्ली के विकार, मिर्गी, त्वचा पर खुजली, हड्डी टूटना, बवासीर, गर्भाशय के रोग, प्रसव और गर्भपात का कारण बनता है. सिर में चोट, लड़ाई में चोट और गर्दन के ऊपर के रोग भी मंगल के कारण होते हैं.

चिकित्सा ज्योतिष में बुध तीनों की प्रकृति का होता है – वात, पित्त और कफ. बुध जातक की बुद्धि से संबंधित होता है. कुंडली में इसकी स्थिति तर्क और विवेक की शक्ति को दर्शाती है. प्रतिकूल बुध और अशुभ चंद्रमा के साथ मिलकर व्यक्ति की सोच को बेचैन कर सकता है और मानसिक विचलन भी पैदा कर सकता है. बुध त्वचा, गला, जीभ, भुजाएं, रीढ़ की हड्डी, याददाश्त, नाक, फेफड़े, पित्ताशय और अग्र मस्तिष्क का कारक है. यह मानसिक विचलन, धैर्य की कमी, मानसिक अस्थिरता, मानसिक जटिलता, अभद्र भाषा, दोषपूर्ण वाणी, कठोर स्वभाव, चक्कर आना, चर्म रोग, श्वेत प्रदर, कुष्ठ रोग, नपुंसकता, कुछ नेत्र रोग, नाक-कान-गले के रोग, बहरापन, अचानक गिरना और बुरे सपने का कारक है. अपनी स्वास्थ्य रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए संपर्क करें.

चिकित्सा ज्योतिष में बृहस्पति कफ प्रकृति का है. बहुत ही शुभ ग्रह होने के कारण यह जातक को रोगों से बचाता है और कुंडली में कई परेशानियों और बुरे प्रभावों को नष्ट करता है. लेकिन वक्री बृहस्पति की शुभता कम हो जाती है. बृहस्पति लीवर, किडनी, दाहिना कान, पित्ताशय, तितलियाँ, अग्न्याशय का कुछ भाग, कान, आलस्य और शरीर में चर्बी का कारक है. बृहस्पति किडनी, लीवर विकार, पित्ताशय रोग, तितलियाँ रोग, मोटापा, एनीमिया, बुखार, बेहोशी, कान के रोग और मधुमेह का कारण है. धीमी गति से चलने वाला ग्रह होने के कारण इससे होने वाले रोग आमतौर पर दीर्घकालिक होते हैं.

चिकित्सा ज्योतिष में शुक्र वात और कफ प्रकृति का है. शुक्र व्यक्ति की यौन गतिविधियों को नियंत्रित करता है. शुक्र यदि पीड़ित हो या अशुभ स्थान पर हो तो यौन विकार और सेक्स से संबंधित रोग उत्पन्न करता है. शुक्र को चेहरा, दृष्टि, वीर्य, ​​जवान दिखना, झुर्रियाँ, स्वेद ग्रंथि, जननांग, मूत्र प्रणाली, अश्रु ग्रंथि का कारक कहा जाता है. यह पुच्छीय हड्डी और अग्न्याशय के कुछ भागों का भी कारक है. शुक्र एक जल ग्रह है और शरीर के हार्मोनल सिस्टम से संबंधित है. शुक्र यौन विकार, जननांग रोग, मूत्र प्रणाली, चेहरे के रोग, नेत्र रोग, मोतियाबिंद, दंत रोग, बाल, अश्रु ग्रंथि रोग, गुर्दे और मूत्राशय की पथरी, आलस्य, थकान और शरीर की कमजोरी, मोतियाबिंद, आंतों के विकार और हार्मोनल विकार दर्शाता है.

चिकित्सा ज्योतिष में शनि वात और कुछ कफ प्रकृति का है. शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है और इसलिए इसके कारण होने वाले रोग लाइलाज या दीर्घकालिक होते हैं. शनि पैर, पंजे, जोड़, घुटने, गठिया, नसों, बड़ी आंत के अंतिम भाग, लसीका वाहिकाओं और गुदा का कारक है और इन को रोग के रुप में प्रभावित करता है.

राहु- चिकित्सा ज्योतिष में राहु ग्रह को धीमापन, अश्लीलता, हिचकी, पागलपन, अदृश्य भय, कुष्ठ रोग, कमजोरी, बवासीर, लंबे समय तक रंग में बदलाव और छाले, असाध्य रोग, विषाक्तता, खराब दांत, मुख रोग, आत्महत्या, पागलपन, अत्यधिक मलत्याग, सर्पदंश और पैरों के रोगों का कारक बताया गया है। चिकित्सा ज्योतिष में केतु ग्रह को राहु ग्रह के रोगों की तरह ही समझना चाहिए। केतु अनिश्चित कारणों वाले रोग, महामारी, छालों के साथ बुखार, जहरीला संक्रमण, पैरों के रोग, पैर के नाखून और दरारें, गुदा, नपुंसकता, आंतों के कीड़े, बहरापन, दोषपूर्ण भाषण, रोगों का संकेत देता है.

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त्रिपाद नक्षत्र क्यों हैं अनिष्टकारी

ज्योतिष शास्त्र में कुछ नक्षत्रों को त्रिपाद नक्षत्र के रुप में जाना जाता है. इन नक्षत्रों का प्रभाव जीवन में कई तरह के उता्र-चढ़ाव देने वाला भी होता है.त्रिपाद नक्षत्र को दोष के रुप में भी जाना जाता है. इसमें चंद्रमा का प्रभाव आने पर इसकी स्थिति कुछ अधिक विशेष बन जाती है.

त्रिपाद नक्षत्र की परिभाषा दो मुख्य रुप से मिलती है जो इस प्रकार है.  कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र कहे जाते हैं. 

एक अन्य परिभाषा में त्रिपदा नक्षत्र विशिष्ट ग्रह योग का वर्णन करता है जो किसी व्यक्ति के जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। त्रिपदा नक्षत्र दोष तब बनता है जब चंद्रमा किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में स्थित होता है और तीन नक्षत्रों में से एक में होता है तब इस स्थिति को त्रिपदा दोष के रुप में भी जाना जाता है. 

त्रिपाद नक्षत्र दोष और चंद्रमा का प्रभाव 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, किसी व्यक्ति के भाग्य को प्रभावित करने के लिए ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति और दशा आवश्यक है. त्रिपद दोष भी एक ऐसी ही वैदिक ज्योतिष अवधारणा है जो किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्र की स्थिति से संबंधित है. त्रिपद नक्षत्र की अवधारणा के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो और तीन नक्षत्रों मघा, अश्विनी या मूल में से कोई भी हो, तो त्रिपद नक्षत्र दोष बनता है. 

त्रिपद नक्षत्र की उपस्थिति को अशुभ माना जाता है और इससे कई तरह की रिश्ते, स्वास्थ्य और वित्तीय समस्याएं हो सकती हैं. माना जाता है कि त्रिपद दोष को त्रिपद नक्षत्र दोष शांति पूजा और कुछ ज्योतिषीय उपायों की मदद से आसानी से समाप्त किया जा सकता है. 

त्रिपद नक्षत्र क्या है? 

त्रिपद नक्षत्र एक वैदिक ज्योतिष शब्द है जो हिंदू ज्योतिष में तीन नक्षत्रों अश्विनी, मघा और मूल को संदर्भित करता है. ज्योतिष के अध्ययन में इन तीन नक्षत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसे त्रिपाद नक्षत्र दोष के रूप में भी जाना जाता है. इन को गंडमूल के रुप में भी जाना जाता है. प्रत्येक नक्षत्र किसी विशेष देवता से जुड़ा होता है और उसकी विशेषताओं और गुणों का एक अनूठा समूह होता है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा का किसी विशिष्ट नक्षत्र के साथ योग उसके भाग्य को प्रभावित करता है और कभी-कभी त्रिपाद नक्षत्र दोष का कारण बनता है.

त्रिपाद नक्षत्र विशेष प्रभाव

त्रिपाद नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों का व्यक्तित्व अलग होता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग स्वार्थी और भौतिकवादी होते हैं. कभी-कभी ये विपरीत परिस्थितियों में आक्रामक हो जाते हैं.

 इन लोगों में हास्य की अच्छी समझ होती है और ये प्यार का इजहार करना जानते हैं. ये लोग अत्यधिक ऊर्जावान होते हैं और इनमें आंतरिक शक्ति होती है. ये अक्सर अपना आपा खो देते हैं, लेकिन इनकी नैतिक समझ इन्हें सही रास्ता चुनने में सक्षम बनाती है. रिश्तों को लेकर बहुत भावुक होते हैं. हालाँकि उनके पास दिमाग है, लेकिन उनमें निर्णय लेने की अच्छी समझ नहीं होती.

त्रिपाद नक्षत्र शांति लाभ 

हिंदी ज्योतिष के अनुसार त्रिपदा नक्षत्र दोष को अशुभ माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन में बाधाओं और कठिनाइयों को आमंत्रित करता है, जिससे आगे चलकर रिश्तों में मुश्किलें, करियर में रुकावटें, वित्तीय समस्याएं, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और कई अन्य समस्याएं होती हैं. त्रिपद नक्षत्र दोष शांति पूजा को त्रिपद दोष को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है. हिंदू ज्योतिष के अनुसार, यह दोष के हानिकारक प्रभावों को शांत करता है और लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है. पूजा अनुष्ठानों में विशिष्ट मंत्रों का जाप करते हुए देवता की प्रार्थना और प्रसाद चढ़ाना शामिल है. ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर, त्रिपद नक्षत्र दोष शांति पूजा का प्रभाव व्यक्ति को सकारात्मक प्रभाव देता है.

त्रिपद नक्षत्र शांति पूजा का महत्व

किसी व्यक्ति के जीवन से बाधाओं को दूर करके, शांति पूजा वित्तीय और करियर की संभावनाओं को बढ़ाती है, समृद्धि और सफलता को बढ़ावा देती है. पूजा नकारात्मक ऊर्जा और प्रभावों को दूर करती है, यह सद्भाव को बढ़ावा देती है, जिससे व्यक्ति के रिश्ते मजबूत होते हैं. त्रिपद नक्षत्र दोष शांति पूजा व्यक्ति के जीवन पर दोषों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करती है. पूजा नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है, व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देती है. त्रिपाद दोष के कारण होने वाली सभी स्वास्थ्य समस्याएं त्रिपाद नक्षत्र दोष शांति पूजा से समाप्त हो जाती हैं.

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