नवमांश में शुक्र का विभिन्न भावों में शुक्र का परिणाम

नवमांश कुंडली में शुक्र का प्रभाव रिश्तों और विवाह संबंधों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. शुक्र ग्रह वैवाहिक जीवन, प्रेम और रिश्तों की स्थिति को दर्शाता है. शुक्र ज्ञान में परिष्कार करने वाला होता है. यह कलात्मक प्रतिभा, रोमांस और सुंदरता के प्रति व्यक्ति के दृष्टिकोण को दिखाता है. नवमांश कुंडली में शुक्र की स्थिति यह बता सकती है कि आप प्रेम, विवाह, वित्त और खुशी के बारे में अपने विचारों को बेहतर बनाने के लिए कहाँ और किससे सलाह लेंगे. 

जन्म कुंडली और नवांश कुंडली में शुक्र का प्रभाव 

नवमांश में शुक्र  की स्थिति को देखने से पहले लग्न कुंडली में इसकी जांच कर लेना काफी अच्छा होता है. नवमांश कुंडली जो है वह लग्न कुंडली का नौवां भाग होती है जो व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. नवमांश में आपके जीवन के उतार-चढ़ाव में समाधान प्रदान करने की शक्ति है. शुक्र अगर लग्न में कमजोर है लेकिन नवांश में बली है तो इसके कारण शुक्र बलवान ही होगा. इसलिए नवांश कुंडली से ग्रहों का बल समझने में मदद मिलती है.नवमांश कुंडली में शुक्र की स्थिति यह बताती है कि व्यक्ति को प्रेम, वित्त, विवाह और खुशी के बारे में अपने दृष्टिकोण को बेहतर बनाने के लिए सुझाव कहाँ से और कौन देगा. शुक्र कफ दोष को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है जिसे जैविक शक्ति भी कहा जाता है. जब नवमांश चार्ट में ग्रह अच्छी स्थिति में होते हैं तो इन ग्रहों की सक्रियता व्यक्ति को अपने प्रियजनों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने, सकारात्मक वाइब्स को आकर्षित करने और अपने जीवन में जीवंतता लाने में सहायता करेगी.

अपनी कुंडली में शुक्र की स्थिति जानने के लिए निःशुल्क वैदिक राशिफल प्राप्त करें

नवांश शुक्र का भाव फल 

नवांश कुंडली में शुक्र का असर कैसा होगा इसे समझने के लिए आवश्यक है की हम इसकी भाव स्थिति को भी देखें जिससे इसके परिणाम जान पाने में सहायता मिलती है. शुक्र एक बोधगम्य शक्ति प्रदान करता है. शुक्र के व्यक्तित्व और कफ के प्रमुख व्यक्तित्व के कारण, आपकी उपस्थिति आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है.

नवांश कुंडली में पहले भाव में शुक्र

नवमांश में पहले भाव में शुक्र की स्थिति एक रचनात्मक और रोमांटिक व्यक्तित्व देती है. जीवनसाथी बातचीत करना पसंद करता है. पहले भाव में शुक्र की यह स्थिति व्यक्ति को कफ प्रमुख व्यक्तित्व देगी जो व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत और करियर जीवन दोनों में अपने निर्णय लेने के कौशल के माध्यम से संतुलन बनाने में सक्षम बनाएगी. शुक्र की इस स्थिति के साथ चीजों को सुंदर बनाने, बढ़िया आभूषण खरीदने और रचनात्मकता में माहिर होंगे. आप काम और भाव दोनों जगह प्रस्तुति कौशल में अच्छे हैं.

नवांश कुंडली के दूसरे भाव में शुक्र

दूसरे भाव में शुक्र की यह स्थिति व्यक्ति को अपने साथी और परिवार के साथ एक आनंदमय समय प्रदान करेगी. रचनात्मकता वरिष्ठों को पसंद आती है. जीवनसाथी भ्रमण का शौकिन होगा. कमजोर शुक्र को ग्रह का समर्थन रिश्ते की चुनौतियों पर काबू पाने को सुनिश्चित करेगा. व्यक्ति को वाणी से संबंधित समस्याओं का अनुभव हो सकता है. शुक्र दशा के दौरान स्वास्थ्य सेवा की सहायता से आप इन बाधाओं को दूर करने में मदद करेंगे.

नवांश कुंडली के तीसरे भाव में शुक्र

तीसरे भाव में शुक्र की स्थिति के साथ, तीस वर्ष की आयु के बाद विवाह सुख देती है. अपनी शादी के बाद जीवन में परिवर्तन देखने को मिलता है. शुक्र की यह स्थिति व्यक्ति को अपने साथी के साथ उपहार शेयर करने और डेट पर जाने में सक्षम बनाती है. आप प्रस्तुतिकरण और सॉफ्ट स्किल देने में अच्छे होंगे. शुक्र की इस स्थिति के साथ, आप कफ ऊर्जा की प्रमुखता का अनुभव करेंगे जो त्वचा पर चकत्ते पैदा करेगी. पीड़ित शुक्र आपके जीवनसाथी के साथ आपके संबंधों के कारण धोखा या वित्तीय नुकसान को बढ़ावा देगा और शराब की लत भी लग सकती है.

नवांश कुंडली के चौथे भाव में शुक्र

चौथे भाव में शुक्र आपकी कल्पना को बढ़ावा देगा और कला, रचनात्मक और फिल्मों में अच्छा प्रदर्शन करने में आपकी सहायता करेगा. तीस के बाद, आपका जीवन मज़ेदार और आनंद से भरा होगा. आपके चौथे भाव में शुक्र की इस स्थिति के साथ आप संपत्ति, कारों और अपने वित्त में स्थिरता के मामले में प्रचुरता का अनुभव करेंगे. मजबूत शुक्र संतुलित कफ सुनिश्चित करता है और चेहरे पर चमक और रेशमी-चिकने बालों के साथ एक आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करता है. नवमांश में शुक्र के पीड़ित होने से रिश्ते और आत्म-भोग की समस्याएं बढ़ेंगी.

नवांश कुंडली के पांचवें भाव में शुक्र

पांचवें भाव में शुक्र व्यक्ति को अपने जीवन में लोगों के विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने में मदद करता है. चुनौतीपूर्ण समय में भी निर्णय लेने में सक्षम होंगे. वैवाहिक जीवन में आनंद महसूस करेंगे. आपका जीवनसाथी और बच्चे आपकी शक्ति और समर्थन के स्तंभ होंगे. नवमांश में पीड़ित शुक्र के कारण आपके जीवन में एकाग्रता और स्थिरता की कमी हो सकती है. शुक्र हमेशा व्यक्ति को जीवन में बेहतर करने के लिए प्रेरित करेगा और व्यक्ति को एक मजबूत व्यक्ति बनाएगा.

नवांश कुंडली के छठे भाव में शुक्र

जीवन में महिला पक्ष चुनौतियों पर काबू पाने में आपका समर्थन और मार्गदर्शन करेगा. मजबूत और सकारात्मक शुक्र, व्यक्ति को रिश्तों के वास्तविक सार को समझने में सहायता करेगा. यह आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने में आपकी सहायता करेगा. आपके जीवनसाथी के पास अनुकरणीय कलात्मक कौशल होगा और इस स्थान पर उन्हें ज्वलंत सपने भी आएंगे. छठे भाव में पीड़ित शुक्र के कारण आपके जीवन में सहकर्मियों और महिलाओं के साथ विवाद हो सकता है. 

नवांश कुंडली के सातवें भाव में शुक्र 

यहां शुक्र, करियर जीवन में वृद्धि प्रदान करता है. पीड़ित शुक्र परिवार और दोस्तों पर या अपने भाव को सुंदर बनाने पर व्यर्थ के खर्च का कारण बन सकता है. इस पीड़ा के कारण आपके वैवाहिक जीवन में कुछ उतार-चढ़ाव आ सकते हैं. अपनी सुंदरता को बढ़ाने या अपने व्यक्तित्व को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे. व्यक्ति को ऐसे लोगों के साथ काम करने का अवसर भी मिलेगा, जो रचनात्मक सोच रखते हैं. 

नवांश कुंडली के आठवें भाव में शुक्र

नवमांश में आठवें भाव में शुक्र की इस स्थिति के साथ आप विस्तार से देखेंगे और दूसरों के रहस्यों को खोजने में अच्छे होंगे. यह व्यक्ति को अच्छी मात्रा में धन संचय करने की क्षमता देगा.

आपका जीवनसाथी अचल संपत्ति और विरासत से संबंधित मामलों में समृद्धि लाएगा. शुक्र व्यक्ति को तंत्र या गुप्त विज्ञान में जानकार बनने में सहायता करता है. यदि आठवें भाव में शुक्र पीड़ित है, तो अधिक सोचने के कारण आपका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.

नवांश कुंडली के नवम भाव में शुक्र

आपकी कुंडली में शुक्र की इस स्थिति से विलासिता और भाग्य आपके पक्ष में रहेगा. आपके संबंधित क्षेत्र में उच्च अध्ययन के साथ आपके जीवन में अपेक्षित वृद्धि होगी. डी9 चार्ट में 9वें भाव में शुक्र व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है और त्वचा संबंधी रोगों से बचाता है. आपके जीवनसाथी का व्यक्तित्व आकर्षक होगा, पढ़ाई में अच्छा होगा और उसका करियर स्थिर होगा और वह आपके वित्त का प्रबंधन करने में भी आपकी मदद करेगा. शुक्र की इस स्थिति के कारण आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण और अति आत्मविश्वासी होना चुनौतियों का कारण बन सकता है.

नवांश कुंडली के दसवें भाव में शुक्र

आप आमतौर पर अपने नियमों का पालन करना पसंद करते हैं जो व्यक्ति को अपने जीवन में सफल बनाता है. दशम भाव में शुक्र की यह स्थिति व्यक्ति को उच्च पद और प्रतिष्ठा प्रदान करेगी, लेकिन आपके पेशेवर जीवन में वरिष्ठों के साथ अहंकार के टकराव के कारण चुनौतियाँ पैदा कर सकती है. दशम भाव में सकारात्मक शुक्र यह सुनिश्चित करेगा कि आपके जीवनसाथी का करियर स्थिर हो. आपका जीवनसाथी व्यक्ति को काम की नई संभावनाएँ भी प्रदान करेगा और आपके पेशेवर क्षेत्र में भी आपकी मदद करेगा.

नवांश कुंडली के ग्यारहवें भाव में शुक्र

शुक्र सुनिश्चित करेगा कि आप वित्तीय या रिश्ते की चुनौतियों के दौरान उम्मीद न खोएं. आपके बड़े-बुजुर्ग और भाई-बहन वित्तीय बाधाओं को दूर करने में आपकी सहायता करेंगे और उनका मार्गदर्शन व्यक्ति को चीजों को आसान और सफल बनाने में मदद करेगा. शुक्र की इस स्थिति के साथ आपके व्यापारिक साझेदार या आपके जीवनसाथी के मार्गदर्शन के कारण आय के नए स्रोत बनने लगेंगे. इस भाव में पीड़ित शुक्र भाई-बहनों, बड़ों या दोस्तों के साथ मतभेद देगा. यहां शुक्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को धोखा भी मिल सकता है.

नवांश कुंडली के बारहवें भाव में शुक्र

इस भाव में शुक्र जीवनसाथी के प्रति गहरी भक्ति देगा और आप वैवाहिक जीवन में हमेशा समझौता करने के लिए तैयार रहेंगे. वह व्यक्ति को वित्तीय मदद और नैतिक समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार रहेगा. पीड़ित शुक्र व्यक्ति को बाहरी सुंदरता के प्रति आकर्षित करेगा और कफ दोष के असंतुलन के कारण आपके बाल झड़ सकते हैं और आपकी त्वचा रूखी हो सकती है. नवमांश में बारहवें भाव में स्थित मजबूत शुक्र आपके जीवनसाथी को विदेश में करियर देगा. यह व्यक्ति को विदेश में या अपने जन्मस्थान से दूर सफलता दिलाएगा.

Posted in Ascendant, Basic Astrology, Planets, Transit, Varga Kundli, Vedic Astrology, Yoga | Leave a comment

दाराकारक मंगल कैसे बदल सकता है आपकी किस्मत

ज्योतिष में मंगल एक विशेष प्रभावी ग्रह है, जो अग्नि तत्व युक्त है और साहस पराक्रम का कारक बनता है. मंगल अगर प्रबल हो तो व्यक्ति चुनौतियों से कैसे निपटता है और लक्ष्य कैसे प्राप्त करता है यह बातें वह बहुत अच्छे से जान सकता है. मंगल ऊर्जा, क्रिया और इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है, दृढ़ता और उपलब्धि के लिए प्रेरणा को आकार देता है. मंगल का प्रभाव बौद्धिक चुनौतियों, भावनात्मक अभिव्यक्तियों और घरेलू गतिशीलता सहित विभिन्न जीवन क्षेत्रों तक फैला हुआ है.

ज्योतिष में दाराकारक मंगल का महत्व
मंगल ज्योतिष में एक शक्तिशाली ग्रह है ज्योतिष अनुसार यह ऊर्जा, क्रिया और इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है. किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल कहां स्थित है, यह दिखा सकता है कि वे चुनौतियों से कैसे निपटने में सक्षम होता है. व्यक्ति प्रतिस्पर्धा करने में बेहतरीन होता है और अपने लक्ष्यों का पीछा करते हुए सफलता पाता है. मंगल ऊर्जा और बुनियादी प्रवृत्ति का प्रतीक है जो हमें कार्य करने के लिए प्रेरित करती है. यह खुद को मुखर करने, नई चीजें शुरू करने और बाधाओं को दूर करने की हमारी क्षमता को प्रभावित करता है. मंगल की उग्र प्रकृति साहस, दृढ़ संकल्पशक्ति और आगे रहने से जुड़ी भावना को दिखाता है. जो चाहिए उसके लिए लड़ने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है.

जैमिनी ज्योतिष और दाराकाक मंगल
मंगल अगर दाराकारक होगा तो यह विवाह पर अपना असर डालने वाला होगा. मंगल क्रोध, आवेग और आक्रामकता भी ला सकता है. जब जन्म कुंडली में मंगल के कठिन पक्ष होते हैं, तो यह संघर्ष और बिना सोचे-समझे काम करने की ओर ले जा सकता है लेकिन सकारात्मक रूप से, मंगल बहादुरी, दृढ़ता और उद्देश्य की एक मजबूत भावना लाता है. दाराकारक मंगल के प्रभाव में उत्साही मानसिकता के साथ स्वभाव से उग्रपन मिलता है. व्यक्ति के क्रोधी स्वभाव को बढ़ाता है.

यह साहस, आत्मविश्वास, नेतृत्व जैसे गुणों को नियंत्रित करता है. लेकिन दूसरी ओर, यह क्रोध, क्रोध, चिड़चिड़ापन, घृणा, आवेगी स्वभाव और असंवेदनशीलता जैसे नकारात्मक गुणों को भी जन्म दे सकता है. दाराकार्क मंगल व्यक्ति को कौशल भी प्रदान करता है और उसे प्रसिद्धि दिला सकता है.

दाराकारक मंगल की स्थिति विभिन्न राशियों में मंगल होने पर अपना अलग अलग प्रभाव देती है. इसकी ऊर्जा दाराकारक होने पर वैवाहिक जीवन, आपसी संबंधों को सहभागिता के कामों पर असर डालती है.

दाराकारक मंगल का राशि प्रभाव
मेष राशि में दाराकारक मंगल, बहुत मजबूत होता है. इस स्थिति में ऊर्जावान, गतिशील और स्वाभाविक नेता होता है. प्रतिस्पर्धा पसंद करता हैं.

वृषभ राशि में दाराकारक मंगल अपनी ऊर्जा को अधिक स्थिर रूप से प्रवाहित करता है. ये लोग अपनी सहनशक्ति और दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते हैं. वे दृढ़ निश्चयी होते हैं और अक्सर कड़ी मेहनत से सफल होते हैं.

मिथुन राशि में दाराकारक मंगल ऊर्जा को अधिक बौद्धिक और बातूनी बनाता है. व्यक्ति विचारक और अनुकूलनशील होते हैं, मानसिक चुनौतियों का आनंद लेते हैं. अपनी ऊर्जा को कम फैला सकते हैं, लेकिन उनकी जिज्ञासा और बहुमुखी प्रतिभा ताकत है.

कर्क राशि में मंगल एक कठिन स्थिति है क्योंकि कर्क राशि का भावनात्मक स्वभाव दाराकारक मंगल की आक्रामक ऊर्जा को नरम कर देता है. ये व्यक्ति सीधे क्रोध व्यक्त करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं और निष्क्रिय अथवा आक्रामक हो सकते हैं. अपने प्रियजनों के लिए बहुत सुरक्षात्मक होते हैं और अपने घर की रक्षा करने के लिए दृढ़ होते हैं. जन्म कुंडली में जिस घर में मंगल स्थित होता है, वह जीवन क्षेत्र दिखाता है जहाँ इसकी ऊर्जा सबसे अधिक महसूस की जाएगी. उदाहरण के लिए, प्रथम भाव में मंगल व्यक्ति के व्यक्तित्व औ

दाराकारक मंगल का भाव प्रभाव
दाराकारक मंगल जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करता है भाव स्थान में इसकी शक्ति विशेष होती है.

लग्न भाव में दाराकारक मंगल मुखर और क्रियाशील बनाता है.

दूसरे भाव में दारा कारक मंगल गतिशील और कभी-कभी अशांत घरेलू वातावरण का अनुभव दे सकता है और स्थिरता बनाने के लिए वे कड़ी मेहनत करते हैं.

तीसरे भाव में मंगल बेहतरीन होगा. सफलता के अवसर देगा प्रगतीशील बनाएगा.

चौथे भाव में मंगल घर और पारिवारिक जीवन में ऊर्जा लाता है.

पंचम भाव में दाराकारक मंगल भावुक और कभी-कभी विवादास्पद रिश्तों को जन्म दे सकता है.

सप्तम भाव में मंगल रिश्तों और साझेदारी को प्रभावित करता है. यह स्थिति अनियंत्रण के मुद्दे उठ सकते हैं, लेकिन यह साझेदारी मेंआच्छा परिणाम देता है.

Posted in Ascendant, Basic Astrology, Dashas, Jaimini Astrology, Planets | Tagged , , | Leave a comment

मिथुन राशि में बृहस्पति गोचर : ज्ञान और बुद्धि का संगम

गुरु का किसी भी राशि में होना उस राशि के साथ मिलकर गुण तत्वों को देने वाली स्थिति होति है. मिथुन राशि में जब बृहस्पति होता है तो ये समय बुद्धि और ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि का संकेत देता है. इसके पिछे का मुख्य कारण ये हैं कि गुरु ज्ञान है और मिथुन राशि बुध के स्वामित्व वाली राशि है जो बुद्ध का कारक बन जाती है. इसी कारण से मिथुन राशि में गुरु का होना बड़े खास समय का उदाहरण बन जाता है. 

मिथुन राशि में बुध का गोचर समय क्यों लेता है बारह वर्ष 

मिथुन राशि में बुध एक वर्ष का समय लेता है ओर जब इसमें आता है तो बारह वर्ष के बाद ही आ पाता है क्योंकि किसी भी राशि में गुरु का गोचर 1 वर्ष लगभग का समय लेता है. मिथुन राशि में बृहस्पति मिथुन राशि में बृहस्पति शुभता देता है. विकास होने के साथ सफलता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण बन जाता है. इस कारन से मिथुन राशि में जन्म समय के दौरान गुरु का होना या फिर ह्गोचर के दौरान मिथुन राशि में जाना दोनों ही बातें अपने अपने नियम अनुसार विशेष असर दिखाने वाली होती हैं. 

मिथुन राशि में गोचर जन्म कुंडली प्रभाव 

जन्म कुंडली में यदि मिथुन राशि में बृहस्पति मौजुद हे तो इसे प्रभाव व्यक्ति के जीवन को कई तरह से प्रभावित कर्ने वाले होते हैं. बातचीत से जुड़े कारकों, संचार के गुणों और संसाधनों पर इसकी अच्छी पकड़ देखने को मिलती है. किसी भी काम को करने में आगे रहने के साथ साथ प्रतिबद्धता के महत्व को भी दिखाता है. व्यक्ति का व्यावहारिक और व्यापक दृष्टिकोण होता है. 

थुन राशि में बृहस्पति मिथुन राशि में बृहस्पति की विशेषताओं में जानकारी, ज्ञान का संग्रह करने के साथ साथ ज्ञान को साझा करने के लिए भी उत्साह देता है. इसमें दूसरों की मदद करना शामिल होता है. 

मिथुन राशि की तीसरी राशि में बृहस्पति की उपस्थिति वाक्पटु बना सकती है. अच्छे तर्क देने वाली होती है. बहस करने की क्षमता देती है. मिथुन राशि में बृहस्पति और बुध का संयुक्त प्रभाव व्यक्ति को धन के अच्छे प्रबंधन का ज्ञान प्रदान करता है.  सफल करियर का मार्ग मिल पाता है.  

मिथुन राशि में बृहस्पति संचार कौशल को बढ़ाता है, जिससे इन बातों को समझने में मदद मिलती है कि कब और कैसे प्रभावी ढंग से बात करना उपयोगी होगा. व्यक्ति अपनी टीम, समुदाय या किसी समूह का प्रतिनिधित्व करने में भी आगे रह सकता है. 

इसके अलावा, बृहस्पति और मिथुन राशि की गतिशील ऊर्जा जीवन में निरंतर परिवर्तनों के लिए अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देती है, जिससे समय के साथ बेहतर प्रदर्शन होता है. मिथुन राशि में बृहस्पति गलत सूचनाओं को चुनौती देने और हाशिए पर पड़े और वंचित व्यक्तियों के कल्याण की वकालत करने की क्षमता देता है.

मिथुन राशि में बृहस्पति का विभिन्न तरह से असर

मिथुन राशि में बृहस्पति अपनी किसी न किसी अवस्था में होता है. इसमें या तो मार्गी हो सकता है या वक्री या फिर अस्त स्थिति. जन्म कुंडली में तो यह एक स्थिति को ही पाता है लेकिन गोचर में इसकी अवस्था समय समय अनुसार बदलती है और सभी को प्रभावित करती है. आइये जान लेते हैं मिथुन में बृहस्पति की विभिन्न अवस्थाओं का फल :

मिथुन राशि में बृहस्पति का वक्री प्रभाव 

मिथुन राशि में बृहस्पति के वक्री होने से स्थिति अनुकूल नहीम रह पाती है. यहां बृहस्पति को वक्रता के कारण परिपक्वता और समझ की प्राप्ति में देरी का प्रभाव व्यक्ति को झेलना पड़ सकता है. चीजों में यह स्पष्टता की कमी और बुनियादी शिक्षा में भी कुछ दिक्कत दे सकता है. व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है. इसके कारण बातचीत करने या फिर, संचार में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. दूसरों के साथ अपने विचार व्यक्त करने में कमी आती है. बृहस्पति की वक्री गति के कारण समय पर सही मदद मिलने में देरी होती है.

मिथुन में बृहस्पति का वक्री प्रभाव बातचीत में कठोरता को देता है. विचारों का टकराव हो सकता है. आर्थिक मामलों में अच्छे से अमल नहीं हो पाता है. प्रबंधन से जुड़े कार्यों को करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है. बच्चों के साथ अचानक असहमति का अनुभव हो सकता है. पारिवारिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं. वक्री प्रभाव धर्म और शास्त्रों के बारे में गहन ज्ञान और रुचि प्राप्त करने के लिए अच्छा होता है. 

मिथुन में बृहस्पति का अस्त होना 

बृहस्पति के मिथुन राशि में अस्त होने पर कई चीजों में धीमापन आने लगता है. आत्मनिरीक्षण करने और जीवन में किसी भी चुनौती का समाधान निकाल पाना विलंब को दिखाता है. अपनी सच्चाई बोलने की क्षमता भी व्यक्ति में सही से नहीं रह पाती है आत्मविश्वास कमजोर होता है. मिथुन राशि में बृहस्पति के अस्त होने से संबंधों में आक्रामकता और विचारों का टकरावअधिक देखने को मिलता है.  बृहस्पति के अस्त होने से योजनाओं को पूरा करने में देरी हो सकती है. धन संचय में देरी हो सकती है. स्वास्थ्य में मोटापे की समया प्रभाव डालने वालि होती है. रिश्तों के मामले में व्यर्थ की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. 

मिथुन राशि में बृहस्पति का भाव प्रभाव 

बृहस्पति मिथुन राशि में प्रथम भाव में : बृहस्पति मिथुन राशि में प्रथम भाव में समाज में अच्छी स्थिति, प्रसिद्धि और पहचान बनाने में मदद करता है. उच्च शिक्षा में सफलता दिलाता है. वरिष्ठों, बुजुर्गों और अपने साथी के साथ सहयोग देता है. लेकिन वक्री होने पर  भाग्य का साथ पाने में देरी कर सकता है. आपको अपने जीवन साथी के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और वरिष्ठों और पिता के साथ संबंध बनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है.

मिथुन राशि में दूसरे भाव में बृहस्पति : आप परिवार के मजबूत सहयोग देता है. आर्थिक लाभ देता है. बैंकिंग या पारिवारिक व्यवसाय में भागीदारी से लाभ के लिए शुभ संकेत देता है. परिवार के सदस्यों, ससुराल वालों और कार्यालय के सहकर्मियों के साथ अच्छे संबंध देता है लेकिन वक्री होने पर ये प्रभाव बदल जाते हैं विवाद बढ़ सकते हैं. 

मिथुन राशि में बृहस्पति तीसरे भाव में : बृहस्पति की स्थिति काम के सिलसिले में या शिक्षा के लिए आपको विदेश यात्रा के अवसर दे सकती है. सफलता, भाई-बहनों और पड़ोसियों से सहयोग मिल सकता है. लेकिन वक्री होने पर ये प्रभाव बदल जाते हैं. 

मिथुन राशि में बृहस्पति चौथे भाव में : मिथुन राशि के लिए गुरु का इस भाव में प्रभाव परिवार को सुख समृद्धि देने वाला होता है. लेकिन अगर यहां बृहस्पति वक्री होने पर ये प्रभाव बदल जाते हैं विवाद बढ़ सकते हैं. 

मिथुन राशि में बृहस्पति पंचम भाव में : यह शैक्षणिक ज्ञान की प्राप्ति को बढ़ावा देता है. रिश्तों को बेहतर बनाता है. शिक्षा, करियर या व्यावसायिक प्रयासों के लिए विदेशी संबंध हो सकते हैं. कार्यस्थल पर आपको वरिष्ठों और बुजुर्गों से समर्थन प्राप्त होता है. लेकिन वक्री बृहस्पति इन गुण धर्म में विपरित अवस्था देने वाला बन सकता है. 

बृहस्पति मिथुन राशि में छठे भाव में : मिथुन राशि में बृहस्पति आपको एक अच्छा सलाहकार बनने में मदद करेगा और आपको तार्किक उत्तर देने की क्षमता देगा लेकिन वक्री होने पर व्यर्थ के विवाद दे सकता है. 

बृहस्पति मिथुन राशि में सातवें भाव में : रिश्तों में आपको अच्छी पकड़ देता है. एक अच्छा वक्ता बनाता है. कार्यस्थल पर लोगों से मार्गदर्शन और समर्थन मिलता है. वक्री होने पर स्थिति में बदलाव दिखाई देता है. 

बृहस्पति मिथुन राशि में आठवें भाव में : मिथुन राशि में आठवें बृहस्पति के होने से पैतृक संपत्ति का लाभ मिलता है. अचानक धन प्राप्ति के योग लाता है. लेकिन वक्री होने से बुरी आदतों को जन्म दे सकता है जिससे आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. 

बृहस्पति मिथुन राशि में नवम भाव में : इस भाव में धार्मिक सुख एवं स्थिरता देता है. जीवनसाथी से वित्तीय लाभ दिलाता है. पिता और बॉस से समर्थन मिलता है.

बृहस्पति मिथुन राशि में दशम भाव में :   करियर में आगे बढ़ने में मदद मिलती है. नाम प्रसिद्धि का योग अच्छा होता है. बिना किसी चुनौती के अपनी बात आगे रखने की क्षमता मिलती है. 

बृहस्पति मिथुन राशि में एकादश भाव में : लाभ में वृद्धि होती है. अच्छे मौके जीवन में आते हैं. समाज में सफलता के योग बनते हैं. 

बृहस्पति मिथुन राशि में द्वादश भाव में : विदेश योग बनते हैं. बाहरी क्षेत्र से लाभ के मौके मिलते हैं. वक्री होने से कार्यस्थल पर सहकर्मियों के साथ अहंकार का टकराव होगा, जिससे समय पर काम पूरा करने में चुनौतियां आएंगी

Posted in Basic Astrology, Planets, Signs, Transit | Tagged , | Leave a comment

अतिचारी ग्रह और इनका प्रभाव

ग्रहों का अतिचारी होना मिलेजुले असर दिखाता है. कोई ग्रह जब अतिचारी होता है तो उसके परिणामों में भी तेजी आती है. इस समय फल की प्राप्ति होना मुश्किल होता है. इस समय ग्रह अपने प्रभाव को अनुकूल रुप में नहीं दे पाता है. ग्रह का अतिचारी होना शुभ फलों को प्रभावित करता है. यह समय परिणाम की प्राप्ति होने में विलंब भी होता है.  सूर्य के प्रभाव की स्थिति अन्य ग्रहों को अतिचारी बना सकती है  आइये जान लेते हैं अतिचारी ग्रह कैसे होते हैं प्रभावित. 

अतिचारी चंद्रमा 

 चंद्रमा हमारे अवचेतन मन, हमारे अंतर्ज्ञान और हमारी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को दर्शाता है. यह हमारे भरण- पोषण की स्थिति को दर्शाता है. भावनात्मक स्तर पर दूसरों से कैसे जुड़ सकते हैं और निकटता से कैसे जुड़ा जाए ये चंद्रमा से निर्भर होता है. चंद्रमा के अतिचारी होने पर ये सब प्रभावित होता है. चंद्रमा से मूड और भावनाएं बदलती रहती हैं. चंद्रमा हमारी भावनाओं, सहज ज्ञान और अंतर्ज्ञान को नियंत्रित करता है. यह हमारे अवचेतन मन का प्रतीक है और हमारी भावनात्मक भलाई को प्रभावित करता है. जन्म कुंडली में एक मजबूत चंद्रमा भावनात्मक स्थिरता, सहानुभूति और अंतर्ज्ञान में योगदान दे सकता है. दूसरी ओर, एक कमज़ोर या पीड़ित चंद्रमा मूड स्विंग, भावनात्मक उथल-पुथल और आंतरिक अशांति का कारण बन सकता है. अतिचारी प्रभाव से फलों की स्थिति कमजोर होगी

अतिचारी मंगल 

मंगल अतिचारी होने पर अपने गुणों को कमजोर पाता है. मंगल नवग्रहों में योद्धा है, मंगल ऊर्जा, क्रिया और इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है. यह हमारी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाता है और हमें चुनौतियों पर विजय पाने के लिए प्रेरित करता है. मंगल को ब्रह्मांडीय इंजन के रूप में सोचें जो हमारे दृढ़ संकल्प और साहस को शक्ति देता है, हमें अपने सपनों की ओर साहसिक कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है. मंगल ऊर्जा, क्रिया और साहस का ग्रह है. यह हमारी प्रेरणा, महत्वाकांक्षा और शारीरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. जन्म कुंडली में एक अच्छी स्थिति में स्थित मंगल दृढ़ता, दृढ़ संकल्प और चुनौतियों को दूर करने की क्षमता प्रदान कर सकता है. हालांकि, नकारात्मक रूप से प्रभावित मंगल आक्रामकता, आवेग और संघर्ष का कारण बन सकता है. अतिचारी होने पर इसके प्रभाव कमजोर होंगे.

अतिचारी बुध 

अतिचारी बुध का असर बुध के कारक तत्व को प्रभावित करेगा. बुध संचार, बुद्धि और विश्लेषणात्मक क्षमताओं को नियंत्रित करता है. यह हमारे सोचने के तरीके, सीखने की क्षमता और विचारों की अभिव्यक्ति को प्रभावित करता है. जन्म कुंडली में एक मजबूत बुध संचार कौशल, बुद्धि और अनुकूलन क्षमता को बढ़ाता है. इसके विपरीत, एक कमजोर या पीड़ित बुध के परिणामस्वरूप खुद को व्यक्त करने में कठिनाई, सीखने की अक्षमता और निर्णय लेने में चुनौतियां हो सकती हैं.  बुध अतिचारी होने पर सभी प्रभाव में कमजोर होता है. बुध, एक राजसिक ग्रह होने के कारण व्यवसाय, वाणिज्य और व्यापार पर शासन करता है.

विशेषता व्यक्ति को बिक्री, व्यवसाय विकास, उत्पाद प्रबंधन, विपणन और सामान्य रूप से व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में बहुत अच्छा बनाती हैं. बुध संख्या और गिनती में बहुत अच्छा है. सीखने में बहुत तेज़ होता है. यह ग्रह चीजों को दिमाग में ताज़ा रखने के लिए उत्कृष्ट स्मृति देता है बुध भाषण और संचार को नियंत्रित करता है. यह व्यक्ति को एक अच्छा संचारक बनाता है चाहे वह मौखिक हो या लिखित हो दोनों प्रभावित होते हैं. यह ग्रह व्यक्ति को कई भाषाएँ सीखने में सक्षम बनाता है और एक शानदार शिक्षक बनाता है. ऎसे में बुध का अतिचरई होना इन सभी बातों को कमजोर करने वाला होगा. 

अतिचारी बृहस्पति 

बृहस्पति बुद्धि, ज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ा है. यह विस्तार, विकास और उच्च शिक्षा का प्रतीक है. जन्म कुंडली में एक अच्छी तरह से स्थित बृहस्पति ज्ञान, आशावाद और ज्ञान की प्यास प्रदान कर सकता है. यह सफलता और प्रचुरता के अवसर भी ला सकता है. हालांकि, एक नकारात्मक रूप से प्रभावित बृहस्पति अति-भोग, अत्यधिक आशावाद या दिशा की कमी का कारण बन सकता है. अतिचारी गुरु का असर शुभ कर्मों में कमी को दर्शाता है. गुरु ज्ञान प्राप्त करना और साझा करना, सिखाना और दूसरों को सही रास्ता दिखाना गुरु के कर्म हैं. परिणामस्वरूप, बृहस्पति व्यक्ति को विविध क्षेत्रों में व्यापक रुचि प्रदान करता है और उसे कम से कम एक क्षेत्र में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है. 

बृहस्पति मंत्री, देवों के शिक्षक हैं. उनका शरीर बड़ा है, उनके बाल और आंखें गहरे पीले हैं, कफ प्रकृति के हैं, बुद्धिमान हैं और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं. देवगुरु बृहस्पति की सर्वोच्च विशेषता  ज्ञान है इसलिए,  बुद्धि, विवेक और निर्णय की कुशलता मिलती है. शांति और भाईचारे का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक व्यक्ति में इन गुणों को विकसित करते हैं, जिससे वह सभी के लिए बहुत सम्मानित और प्रिय बन जाता है. लेकिन अतिचारी होने पर इन सभी बातों पर विपरित असर दिखाई देता है. 

अतिचारी शुक्र 

अतिचारी शुक्र का असर शुभता को प्रभावित करने वाला होता है. शुक्र प्रेम, सुंदरता और संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है. यह हमारे रोमांटिक झुकाव, कलात्मक प्रतिभा और सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है. जन्म कुंडली में एक मजबूत शुक्र प्रेम, रोमांस और एक मजबूत सौंदर्य बोध ला सकता है. यह कलात्मक क्षमताओं और सामंजस्यपूर्ण सामाजिक जीवन में भी योगदान दे सकता है. पीड़ित शुक्र रिश्तों में विवाद या भौतिकवादी प्रवृत्तियों को जन्म दे सकता है.

शुक्र ग्रह व्यक्ति को चित्रकारी, ड्राइंग, सजावट आदि जैसे क्षेत्रों में बहुत अच्छा बनाता है.व्यक्ति को चीजों को डिजाइन करने में बहुत अच्छा बनाता है. शुक्र ग्रह बहुत बारीकी से चीजों को समझने की क्षमता देता है, जो कई व्यवसायों के लिए उपयोगी है, व्यक्ति बहुत ही ज्ञानी शिक्षक और आलोचक है और चीजों को बेहतर बनाने के लिए अपनी सलाह देता है. शुक्र ग्रह कभी हार न मानने या बार-बार कोशिश करने की अच्छी भावना देता है जब तक कि कोई व्यक्ति वह न पा ले जो वह चाहता है. ग्रह द्वारा आशीर्वादित लोगों में आत्म-प्रेरणा का स्तर बहुत अधिक होता है और वे दूसरों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.  लेकिन अतिचारी होने पर ये सभी बातें कमजोर पक्ष में दिखाई देती हैं. इन शुभताओं पर अतिचारी शुक्र का असर पड़ता है.

अतिचारी शनि 

अतिचारी शनि की स्थिति शनि के द्वारा मिलने वाले सभी प्रभावों को कमजोर कर सकती है. शनि अनुशासन, जिम्मेदारी और कड़ी मेहनत से जुड़ा है. यह जीवन के सबक, कर्म और धीरज का प्रतीक है. अच्छी तरह से स्थित शनि अनुशासन, दृढ़ता और बाधाओं को दूर करने की क्षमता ला सकता है. यह व्यावहारिकता और एक मजबूत कार्य नैतिकता को प्रोत्साहित करता है.नकारात्मक रूप से प्रभावित शनि सीमाओं, देरी या जीवन पर निराशावादी दृष्टिकोण को जन्म दे सकता है. ऎसे ही अतिचारी होने पर भी शनि अनुकूल परिणाम देने में कमजोर होता है.

Posted in Ascendant, Planets, Vedic Astrology | Tagged , , | Leave a comment

शुक्र का धनु राशि में गोचर 2025 : प्रतिभा में आएगा निखार

शुक्र का धनु राशि में गोचर : प्रतिभा में आएगा निखार 

शुक्र का गोचर धनु राशि में होने पर शुक्र का प्रभाव अब काफी गतिशील दिखाई देने लगता है. इस समय के दौरान नई चीजों को अपनाना आसान होता है. कुशलता अच्छी होती है. रचनात्मक हों या बौद्धिक काम हों दोनों ही बेहतर तरीके से कर पाते हैं. 

शुक्र का धनु राशि में कब होगा गोचर ? 

20 दिसंबर 2025 को सुबह 07:44 पर शुक्र का प्रवेश धनु राशि में होगा और गोचर का प्रभाव फलित होगा.  शुक्र का वृश्चिक राशि से निकल धनु राशि में जाना एकाग्रता और लक्ष्यों को पाने के लिए प्रतिभा को बढ़ाता है. 

शुक्र के धनु राशि परागमन के कारण 12 राशियों पर असर 

मेष राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

मेष राशि के लिए यह गोचर भाग्य भाव में वृद्धि देने वाला होगा. आध्यात्मिक रुप से कई क्षेत्रों में शामिल हो पाएंगे. कल्पना शक्ति अच्छी होने वाली है. किसी रचनात्मक गतिविधियों में शामिल हो पाएंगे. नवीन विचारों और विचारों को लेकर अच्छी क्षमता होने वाली है.

आपका सोशल संपर्क भी बढ़ सकता है. दूसरों के साथ आपकी बातचीत बढ़ सकती है. कुछ सकारात्मक पहलुओं के बाद भी कुछ बातों पर सजग बावजूद, सावधान रहें, क्योंकि एकाग्रता और ध्यान की कमी आपके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है. अपने कार्यों को समय पर पूरा करने के लिए विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करना और प्रभावी प्राथमिकताएँ निर्धारित करना आवश्यक है.

वृष राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

वृषभ राशि वालों के आठवें भाव में शुक्र यौन उत्तेजना को बढ़ा सकता है. मन में कई तरह की कामनाएं बढ़ सकती हैं. इस महीने जीवन के कुछ पक्षों में बाधा और देरी का प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए आत्मविश्वास बनाए रखें जिससे समाधान खोजने में सक्षम होंगे.

अपने आस-पास के लोगों के साथ बहस से बचने के लिए अपने संचार में सावधानी और विनम्रता बरतें. यदि कोई विशिष्ट मुद्दा आपको परेशान कर रहा है, तो कृपया उसे अपने तक ही सीमित रखने के बजाय खुली बातचीत करें, क्योंकि इससे व्यवहार्य समाधान निकल सकते हैं.

मिथुन राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

मिथुन राशि के लिए यह गोचर विवाह और साझेदारी के घर में होगा. अपनी बातों को आगे बढ़ाने और अधिक उत्कृष्ट स्थिरता प्राप्त करने की दिशा में अतिरिक्त प्रयास करने होंगे. इस समय पर महत्वपूर्ण मामलों पर करीबी लोगों के साथ अलग-अलग राय होने की संभावना है. कुछ क्षेत्रों में थोड़ा अधिक लचीला होना, कठोर या मुखर होने से बचने के लिए उचित है.  

कर्क राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

कर्क राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर गलत आदतों से मुक्त होने का समय होगा. स्वास्थ्य, व्यक्तित्व और सामाजिक प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाला समय होगा. व्यक्तिगत पहलुओं में कुछ नई चीजें शामिल होंगी. प्रतिस्पर्धा का समय है लेकिन साथ ही जीत की भी संभावनाएं होंगी. प्रेम संबंधों में अंतरंग मामलों पर विशेष ध्यान देने वाले हैं. इस समय गहरी समझ बढ़ेगी. दिखावे से परे जाने और वास्तविकताओं को समझने का समय होगा. 

सिंह राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

सामाजिककरण और नेटवर्किंग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनी हुई हैं; आप इन गतिविधियों में अत्यधिक व्यस्त हो सकते हैं. आर्थिक रूप से, आप कुछ उतार-चढ़ाव की उम्मीद कर सकते हैं, और तुच्छ मामलों पर फिजूलखर्ची न करने के लिए सावधान रहें. आपका आवेगी स्वभाव तत्काल वरिष्ठों के साथ संबंधों को खराब कर सकता है, इसलिए अपनी बातचीत में सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.

कन्या राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

कन्या राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर के कारण चीजें अब बदलती नजर आएंगी. अधिक मिलनसार हो सकते हैं. बाहर की चीजों से अधिक आकर्षित होंगे. अपने आस-पास के लोगों के जीवन में रुचि लेंगे. उत्साहित और रोमांचकारी महसूस करेंगे.

ऐसी चीजें जो आपकी धारणा के द्वार खोल सकती हैं और आपकी सोच को आगे ले जाने वाली होगी. नई चीजें भी आकर्षित करने लगेंगी. इधर-उधर की बातों में उलझने के बजाय, अपने दृष्टिकोण में स्पष्ट रहेंगे और सीधे मुद्दे पर अधिक ध्यान दें. 

तुला राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

यह उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक अनुकूल अवधि है जिन्हें शायद अनदेखा किया गया हो. यह गोचर विशेष रूप से विदेशी परियोजनाओं और विदेश यात्रा के लिए फायदेमंद है, जो आपको सही अवसर और सहायक व्यक्ति प्रदान करता है.

इस चरण के दौरान आपकी मानसिकता कल्पनाशील हो सकती है, विचारों में खोए रहने के क्षण हो सकते हैं. हालाँकि, सतर्क रहें, क्योंकि ध्यान की कमी से आपके काम को समय पर पूरा करने में देरी हो सकती है.

वृश्चिक राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

वृश्चिक राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर कई गतिविधियों में रुचि को बढ़ा सकता है. सामाजिक रुप से आगे रहेंगे और नए संपर्क सधेंगे. दोस्तों के सर्कल का विस्तार होने का समय होगा. इस समय कुछ ऎसे काम कर सकते हैं जो परंपरागत बातों से अलग होंगे सपनों और आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा. इस अवधि को भविष्य के लिए एक इच्छा के बीज बोने के अवसर के रूप में मानें, क्योंकि एक सपना देखना इसके साकार होने की ओर पहला कदम है. 

धनु राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

धनु राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर अवधि में आकर्षण बढ़ेगा, जिससे सकारात्मकता की भावना बढ़ेगी. अधिक आशावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाना संभव होगा. लंबी दूरी की यात्रा हो सकती है और आपको दूर के स्थानों पर स्थित परियोजनाओं की ज़िम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं. सामने आने वाले किसी भी अवसर को अपने लिए काम में लाना अच्छे परिणाम देगा.  

मकर राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

मकर राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर आत्मविश्वास से भर देने वाला होगा. चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना करेंगे, मुश्किल परिस्थितियों से कुशलता से निपटेंगे. संचार में सावधानी बरतें, क्योंकि गलतियां हो सकती हैं, जो संभावित रूप से पछतावे की स्थिति पैदा कर सकती हैं. अपने आस-पास के लोगों के साथ बहस में शामिल होने से बचना ही बेहतर होगा. 

कुंभ राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

कुंभ राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर अधिक स्वतंत्रत होकर काम करने की इच्छा देगा. आत्म-खोज की तलाश करेंगे और वास्तविक स्वरूप को पहचान पाएंगे. साथियों और वरिष्ठों दोनों से स्वीकृति की इच्छा प्रमुख होगी. दैनिक कार्यों को एक जैसा करने के बजाय, कुछ बदलाव लाना उचित होगा. अपने काम को अधिक सजगता के साथ करेंगे, सचेत रुचि लेंगे और प्रत्येक काम को सावधानीपूर्वक करना अच्छा होगा.  

मीन राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर 

मीन राशि के लिए धनु राशि में शुक्र का गोचर  दृढ़ विश्वास और आत्म-विश्वास को देने वाला होगा. दृष्टिकोण में अधिक संतुलित होना बेहतर होगा. आप सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी मोड में होंगे और अपने विरोधियों और प्रतिद्वंद्वियों को चुप कराने में सक्षम होंगे. यह एक एक्शन से भरपूर चरण होगा, और कई परिस्थितियाँ आपके ध्यान की माँग कर सकती हैं.

Posted in Planets, Rashi, Signs, Transit, Vedic Astrology | Tagged , , , | Leave a comment

वृषभ राशि में गुरु वक्री 2024 : विचारों में होगा वक्रता का असर

बृहस्पति का वक्री होना एक ज्योतिषिय घटना है. वृष राशि में गुरु का वर्की होना अच्छी स्थिति नहीं है. गुरु के वृष राशि में वक्री होने की घटना व्यक्ति के जीवन में नए बदलावों का संकेत देती है. अब जिद ओर महत्वाकांक्षाओं को लेकर इच्छा शक्ति अधिक बढ़ जाती है. अभी तक जो बातें सही लग रही थी अब उनमें संदेह बढ़ सकता है. एक महत्वपूर्ण ग्रह होने के नाते, बृहस्पति वक्री होना जीवन में कई बड़े बदलाव लाने वाला होता है. आइए जानें गुरु के वक्री होने का सभी बारह राशियों पर क्या होगा प्रभाव. 

बृहस्पति वक्री कब होगा?

बृहस्पति 9 अक्टूबर 2024 बुधवार को वक्री हो जाएगा. बृहस्पति 4 फरवरी 2025 मंगलवार को मार्गी हो जाएगा.

बृहस्पति वक्री 2024 तिथि- 9 अक्टूबर 2024  

बृहस्पति वक्री 2024 समय- 12:33    

बृहस्पति वक्री होने से प्रत्येक राशि के लिए अलग-अलग परिणाम होंगे.

वक्री होने के प्रभाव व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रह की स्थिति और स्थिति के आधार पर अलग-अलग होते हैं. अगर कोई बृहस्पति की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतरदशा से गुजर रहा है, तो जन्म कुंडली में बृहस्पति का वक्री होना मिलेजुले परिणाम देगा.

बृहस्पति वक्री होने के 2024 के लिए भविष्यवाणियां

वृषभ राशि में वक्री गुरु का मेष राशि पर असर 

मेष राशि, के लिए गुरु वक्री होने पर व्यक्तित्व, व्यवसाय और आत्म-अभिव्यक्ति को प्रभावित करेगा. इस वक्री समय अपनी पहचान को फिर से देखने और बेहतर ढंग से परिभाषित करने के लिए जोश मिलेगा. प्रतिस्पर्धी दुनिया में खुद को कैसे पेश करते हैं, इस पर सोच विचार होगा. कार्यस्थल पर, वक्री बृहस्पति के प्रभाव के कारण, काम के तरीकों और पूर्व में लिए गए निर्णयों पर सवाल उठ सकते हैं. इस समय बदलाव करने और नई दिशाओं पर विचार करने के लिए उत्साह मिलेगा. 

वृषभ राशि में वक्री गुरु का वृषभ राशि पर असर 

वृषभ राशि वालों के लिए वक्री बृहस्पति आध्यात्मिकता का नया अध्याय लाएगा. आंतरिक शांति और पूर्णता पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे. कोई व्यवसाय है, तो व्यवसाय प्रभावित हो सकता है और स्थिरता आएगी. निजी जीवन में स्वतंत्रता और अधिक स्थान की इच्छा होगी.अपने पुराने मित्रों के साथ बातचीत का दौर शुरु होगा. इस वक्री गति के दौरान, आप अपने मानसिक शांति की तलाश के लिए आध्यात्मिक मान्यताओं को स्वीकार करेंगे. गुप्त रुप से इस पर काम करना चाहेंगे. 

वृषभ राशि में वक्री गुरु का मिथुन पर असर 

मिथुन राशि वालों के लिए बृहस्पति वक्री होने से स्थिति में आएंगे नए बदलाव. आत्मनिरीक्षण का मन अधिक होगा. कार्यस्थल पर नई नीतियाँ बनाने और अपने अंतर्ज्ञान के अनुसार काम करने के लिए यह एक बेहतरीन समय होगा. शत्रुओं से सावधान रहना होगा.  निजी जीवन में, आपसी संबंध प्रभावित होंगे. अपने साथी से भावनात्मक रूप से अलग महसूस कर सकते हैं, लेकिन चल रही समस्याओं को समझने के लिए यह सचेत रूप से किया जाएगा. सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय हो सकते हैं. दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे लेकिन निजी जीवन में समस्याएं होंगी.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का कर्क राशि पर असर 

इस वक्री गुरु अवधि के दौरान, सामाजिक समूहों और समुदायों के योगदान पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. भाई बंधु आपके घर आ सकते हैं. यात्रा की योजना बना सकते हैं. कार्यस्थल पर नेटवर्किंग से लाभ होगा. समूह परियोजनाओं में आपकी भागीदारी भी बढ़ेगी. करीबी लोगों के साथ दीर्घकालिक लक्ष्यों की योजना बनाएंगे और उन्हें साझा करेंगे. कोई नया रिश्ता उम्मीदों से अलग चल रहा है  रिश्तों में कुछ नए खुलासे हो सकते हैं, जो सहज नहीं लगेंगे. सार्वजनिक छवि के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि कुछ दुश्मन या सहकर्मी आपकी प्रतिष्ठा को कम करने की कोशिश कर सकते हैं.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का सिंह राशि पर असर 

सिंह राशि के लिए बृहस्पति का वक्री होना आपके करियर मार्ग और सार्वजनिक छवि को प्रभावित करेगा. परिवार में कुछ नए मुद्दे चर्चा का विषय हो सकते हैं. इस वक्री समय के दौरान महत्वाकांक्षाओं और उन्हें प्राप्त कैसे किया जाए इस पर विचार तेज होगा. कार्यस्थल पर कार्य संस्कृति और वातावरण को लेकर वरिष्ठों और बॉस के साथ कुछ विवाद हो सकते हैं. पारिवारिक जीवन, घर में तीखी बहस के संकेत हैं. रिश्ते में पार्टनर को एक-दूसरे की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के तरीके खोजने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही एक मजबूत भावनात्मक संबंध बनाए रखना चाहिए.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का कन्या राशि पर असर 

कन्या राशि वालों के लिए बृहस्पति वक्री होने पर विचारों में बदलाव आएगा. इसका असर उच्च शिक्षा और काम के कारण यात्रा की योजनाओं पर पड़ेगा. धर्मार्थ गतिविधियों या स्वयंसेवी कार्यों में शामिल होना दूसरों की मदद करने से संतुष्टि का एहसास हो सकता है. इस वक्री स्थिति के दौरान चली आ रही मान्यताओं के बारे में सोच सकते हैं, चाहे वे व्यक्तिगत, राजनीतिक, करियर या धार्मिक हों, और समझ में नई मान्यताओं को शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं. वक्री बृहस्पति के प्रभाव के कारण, उच्च शिक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, खासकर यदि वे विदेश जाने की योजना बना रहे हैं.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का तुला राशि पर असर 

तुला राशि वालों के वक्री गुरु का प्रभाव नए मौके देने वाला होगा. नए काम में शामिल हुए हैं, तो उन्हें एक मजबूत आधार बनाने और अपने कौशल को निखारने की आवश्यकता हो सकती है. निजी जीवन में, यदि कोई समस्या या बातचीत संबंधी समस्या चल रही हैं, तो रिश्ते में शांति और स्थिरता लाने के लिए विविध दृष्टिकोणों को अपनाने और एक-दूसरे से सीखने का प्रयास करें. कार्यस्थल पर, यह आपके वरिष्ठों और बॉस के साथ अधिक जुड़ने की कोशिश से आने वाले समय में लाभ मिलेगा. प्रेम संबंध इस समय कुछ कमजोर होंगे विश्वास की कमी उत्पन्न हो सकती है.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का वृश्चिक राशि पर असर 

वृश्चिक राशि वालों के लिए वक्री गुरु व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन का वादा करता है. यह धन को प्रभावित करेगा और आपके रिश्ते में अधिक अंतरंगता लाएगा. इस वक्री गति के दौरान, उन चीजों पर काम करना शुरू कर सकते हैं जो सशक्तीकरण और विकास की भावना लाने वाली होंगी. निजी जीवन में, यह समय जीवनसाथी के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध की ओर ले जाएगा. अपने रिश्तों के साथ नए भावनात्मक आयामों और भावनाओं की खोज भी करेंगे. प्रभावशाली रुप से अधिकारों का उपयोग करना, सकारात्मक संचार करने का एक उत्कृष्ट समय हो सकता है.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का धनु राशि पर असर 

धनु राशि वालों के लिए बृहस्पति वक्री का प्रभाव संबंधों, व्यावसायिक जीवन, वाणी और लहजे को प्रभावित करेगा. इस वक्री गति के दौरान, स्वयं के रिश्तों और व्यावसायिक संबंधों में अपनी सीमाओं को आगे बढ़ा सकते हैं. नया उत्साह और अपनी प्रतिबद्धताओं के प्रति नया दृष्टिकोण होगा. कार्यस्थल पर, आराम से बातचीत करने और क्लाइंट संबंधों को बनाए रखने में कामयाब होंगे. व्यवसाय के भविष्य की संभावनाओं को लेकर व्यापारिक साझेदारों के बीच मतभेद हो सकते हैं.विवाहित लोगों को उतार-चढ़ाव का अनुभव होगा, लेकिन कोशिशों से संतुलित और पारस्परिक रूप से सहायक संबंध बनाने की कोशिश करेंगे.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का मकर राशि पर असर 

मकर राशि वालों, के लिए गुरु का वक्री प्रभाव काम करने के तरीके को बदलने वाला होगा. आप इस दौरान अपने शेड्यूल को व्यवस्थित करेंगे और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे.रिश्तों में रहने वाले अपने साझा लक्ष्यों पर चर्चा कर सकते हैं और व्यक्तिगत विकास पर काम कर सकते हैं. इस वक्री गति के दौरान समय, ऊर्जा और सेहत को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए अपने में आवश्यक बदलाव करेंगे. खुद को अपने अंतर्ज्ञान का पालन करते हुए पा सकते हैं. नौकरी में भारी बदलाव हो सकते हैं, जिसके लिए आपको तैयार रहना चाहिए.

वृषभ राशि में वक्री गुरु का कुम्भ पर असर 

बृहस्पति का वक्री होना बेहतर आत्म-अभिव्यक्ति और रचनात्मक दृष्टिकोण लाएगा. यह बुद्धि को भी प्रभावित करेगा, अपने काम में हाल ही में हुए बदलावों पर विचार करने के साथ आकलन करने से दक्षता और जीवन शक्ति प्राप्त होगी. कार्यस्थल पर आपको ज़्यादा स्वतंत्रता और दूसरों के साथ बेहतर तालमेल बनाने की कोशिश करनी होगी. निजी जीवन में, अपने साथी के साथ ज़्यादा समय बिताने से रिश्तों में दूरी कम होने लगेगी. 

वृषभ राशि में वक्री गुरु का मीन राशि पर असर 

गुरु के वक्री समय के दौरान, अपने बारे में कुछ ऐसा अनोखा खोज सकते हैं, जिस पर आपने अभी तक ध्यान नहीं दिया है. यह खुद पर ज़्यादा रचनात्मक और विश्लेषणात्मक रूप से काम करने में मदद करेगा. कार्यस्थल पर, वक्री गति की शुरुआत में, चीजों को लेकर भ्रमित महसूस कर सकते हैं. ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे, लेकिन दूसरे भाग में, बौद्धिकता का अधिक कुशलता से उपयोग करने और बेहतर समाधान और रणनीति विकसित करने में कामयाब होंगे. संतान की योजना बना रहे हैं, तो उन्हें वक्री अवधि के उत्तरार्ध तक प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि कुछ व्य्वधान अभी रह सकते हैं. बृहस्पति वक्री होने पर रिश्तों को भावनात्मक रुप से बदलेगा पारिवारिक जीवन में परिवर्तन लाएगा.

Posted in Rashi, Signs, Transit, Yoga | Tagged , , , | Leave a comment

गुरु का मिथुन राशि गोचर : सभी 12 राशियों पर प्रभाव

बृहस्पति के मिथुन राशि में प्रवेश के साथ ही बदलने वाली है राशियों की स्थिति. गुरु के राशि परिवर्तन के साथ ही कई राशियों पर रहेगा इसका प्रभाव. गुरु का मिथुन राशि समेत सभी राशियों के जातक पाएंगे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में देख पाएंगे असर.

बृहस्पति का मिथुन राशि में गोचर 2025 में होगा. बृहस्पति का प्रवेश 2025 में 14 मई को रात 11: 20 मिनट पर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे. गुरु के मिथुन राशि में जाने से सभी बारह राशियों पर असर डालने वाला होगा. मिथुन राशि में बृहस्पति के आने से नए अवसर, सम्मान में वृद्धि और अप्रत्याशित स्थिति का प्रभाव देने वाला होगा. बृहस्पति के मिथुन राशि में गोचर के दौरान कई राशि के जातकों को सौभाग्य का अनुभव होगा. यह गोचर आपके घर और आस-पास शांति और सकारात्मक ऊर्जा की भावना लाएगा,

मेष राशि राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
आप अपनी वाणी के कारण बहुत अधिक प्रभावित होंगे. साहस उत्तम रहेगा और विशेष प्रभाव मिलेंगे. कौशल की क्षमता अनुकूल होगी. इस दौरान आप कोई नई भाषा सीख सकते हैं. किसी भी काम को करने का साहस रखेंगे. विवाह के भी योग बन रहे हैं. आप अपनी संचार कला का लाभ उठा सकेंगे, क्योंकि आप ऐसी नौकरी में लग सकते हैं, जिसमें इसका अच्छा उपयोग हो. आप अपने मित्रों से संवाद करने में और भी अधिक आनंद लेंगे

वृष राशि राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
गुरु ज्ञान के कारक हैं और शुक्र भौतिक सुखों को प्रदान देते हैं. आर्थिक लाभ की प्राप्ति के योग विशेष हैं. आपको ज़रूरत के समय अनुकूल सलाह लेने में सहायक सिद्ध होंगे. व्यवसाय शुरू करने का लक्ष्य बना रहे हैं, तो सफलता बहुत अच्छी है. व्यवसाय के लिए अच्छे भागीदार मिल सकते हैं. आत्मविश्वासी और कुशल बनने में मदद करेंगे. अपने साथी के साथ अलग-अलग जगहों की खोज करने के लिए यह एक बढ़िया समय है. आपकी यात्रा फलदायी साबित होंगी और आप बहुत यात्रा करेंगे. आप अपने पिता के साथ अधिक बात कर पाएंगे सहयोग पाएंगे और अपनों की सलाह आपके लिए भाग्यशाली साबित होगी.

मिथुन राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
मिथुन राशि वालों को मिलेगा लाभ जीवन के मूल उद्देश्य पूरे होंगे. बुध बौद्धिकता के कारक हैं जबकि बृहस्पति ज्ञान का ग्रह है. मिथुन राशि में बृहस्पति की उपस्थिति लाभ प्रदान करने वाली है. इस दौरान आप अधिक भाग्यशाली बनेंगे. छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने और अपनी शिक्षा जारी रखने में सक्षम होंगे. आध्यात्मिक साहित्य पढ़ने की ओर अधिक प्रवृत्त होंगे और धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होंगे. जो लोग अविवाहित हैं, वे उत्साहपूर्वक अपने जीवनसाथी की तलाश करेंगे और एक अच्छा जीवनसाथी पाने में सफल होंगे. इस गोचर के दौरान जीवन के अनेक अनुभव प्राप्त होंगे.

कर्क राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
कर्क राशि वाले अच्छे लाभ और नए विषयों के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण पाएंगे. लाभ के अच्छे मौके होंगे. साझेदारी और विवाह से संबंधित मामलों में सुख की प्राप्ति का समय है. अपने साथ साथ दूसरों के लिए भी मददगार साबित होंगे. इस दौरान अध्यात्म, गुप्त विज्ञान का आप अनुभव पाएंगे. अधिक व्यवसायीकरण से मिलेगा लाभ. ज्योतिषी, गुप्त विद्या के अभ्यासी, शिक्षक, बैंकर, शोध कर रहे छात्रोम को मिलेगा लाभ. प्रेम संबंध होंगे मजबूत मित्रों का होगा साथ.

सिंह राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
सिंह राशि सुनहरे समय की प्रतीक्षा अब पूरी होगी. कीमती वस्तुओं की प्राप्ति होगी. बाजार के लाभ से संपन्न होंगे. आपको पहले से कहीं अधिक संपत्ति प्राप्त होगी. आपकी सलाह बहुत से लोगों के लिए मददगार साबित होगी. आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी और आपके परिवार को आप पर गर्व होगा. आप प्रतियोगी परीक्षाओं और साक्षात्कारों में अच्छा प्रदर्शन करेंगे. आपकी आवाज़ में एक चुंबकीय आकर्षण होगा जो बहुत से लोगों को आपकी ओर आकर्षित करेगा. आप अपने कार्यस्थल पर अच्छी तरह से पहचाने जाएंगे और इस दौरान अधिक सम्मान प्राप्त करेंगे.

कन्या राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
कन्या राशि के लिए बृहस्पति का यह गोचर आपके दशम भाव में होने जा रहा है. इस गोचर के काम काज में प्रगति का समय होगा. व्यवसायी लोग प्रतिस्पर्धा में सफल होंगे और भारी मुनाफ़ा कमाने में सक्षम होंगे. निवेश से नए काम बनेंगे. ऐसी नौकरी कर सकते हैं जिससे आप बहुत से लोगों से बात करेंगे. इस दौरान काम के नवीन अवसर और लाभ होंगे. अपने खर्चों के बारे में सावधान रहना होगा. यदि आप अपनी आय से लगातार निवेश कर रहे हैं, तो यह आपको बाद में वित्तीय रूप से स्थिर होने में मदद करेगा. कोई विरासत मिल सकती है जो आपके जीवन में समृद्धि लाएगी.

तुला राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
तुला राशि के लिए भाग्य में वृद्धि का संकेत है. आकस्मिक रूप से किए जाने वाले काम होंगे. व्यवसाय में विविधता लाएंगे और अधिक स्थिर बनेंगे. करियर के लिहाज से यह गोचर बहुत फायदेमंद और फलदायी साबित होगा. आपको पदोन्नति मिल सकती है या आपको कोई बेहतर नौकरी मिल सकती है. धार्मिक गतिविधियों में आप काफी अच्छे रह सकते हैं. अपने काम के प्रति नैतिकता पर अड़े रह सकते हैं क्योंकि बृहस्पति आपके काम के प्रति नैतिकता और काम के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है. आप अपनी बुद्धि के कारण अपने शत्रुओं से पहले सफल हो सकेंगे.

वृश्चिक राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
वृश्चिक राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव बहुत खास होगा. गुढ़ रहस्यमयी विज्ञानों के प्रति रुचि विकसित हो सकती है. बौद्धिक गतिविधियों की ओर अधिक झुकाव रख सकते हैं. अधिक बुद्धिमान और समझदार महसूस करेंगे. भौतिक जीवन में थोड़ा अवरोध होगा लेकिन शांत रहकर स्थिति को बेहतर कर पाएंगे. इस दौरान आप विवाह के बंधन में बंधने में भी सफल हो सकते हैं. आपके जीवनसाथी की सलाह आपको कई अजीबोगरीब स्थितियों से बचाएगी. छात्र परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करेंगे. उन्हें इस बारे में बेहतर स्पष्टता मिलेगी कि अपनी जन्मजात क्षमताओं को बनाए रखने में सफल होम्गे.

धनु राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
बृहस्पति के इस गोचर के दौरान आध्यात्मिक और भौतिक सुखों का लाभ पाएंगे. इस समय विवाह और साझेदारी के कामों में सफलता को प्राप्त कर सकते हैं. धन प्राप्ति के साथ आध्यात्मिक प्राप्ति के नए तरीके मिलेंगे. समझदारी से निवेश करेंगे. जो लोग सिंगल हैं उन्हें एक अच्छा जीवन साथी मिलेगा. सुखद जीवन जिएंगे और आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी. दोस्त आपके लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत मदद कर सकते हैं. संपर्क बढ़ेगा. पहचान मिलेगी जिससे दूसरे भी प्रगति की सराहना करेंगे. इस दौरान इच्छाओं को पूरा कर पाएंगे. आपको ऐसे कई अवसर मिलेंगे जो जीवन में आगे बढ़ने में मदद करेंगे. छोटे भाई-बहनों के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करेंगे.

मकर राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
मकर राशि वाले इस समय अपने आप को नई स्थिति में पाएंगे. अगर प्रसन्न होंगे अनुकूल स्वभाव बनाए रखेंगे और लोग आपकी ओर देखेंगे. आप अपना घर या विरासत में मिली संपत्ति बेच सकते हैं. घर पर आपके खर्चे अपेक्षा से अधिक होंगे. आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना चाहिए. आपको अच्छे मेडिकल बीमा में भी निवेश करना चाहिए. यदि आध्यात्मिक होंगे और आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेंगे तो परिस्थितियों को नियंत्रित कर सकते हैं. आप अपने माता-पिता के प्रति सम्मान रखें और ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद करें. शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने का प्रयास करें जिससे सेहत अनुकूल रहे. काम की शुरुआत का समय होगा. बौद्धिक जिज्ञासा आपको लोगों से जोड़ेगी.

कुंभ राशि के लिए बृहस्पति गोचर का प्रभाव
कुंभ राशि वालों के लिए ये समय प्रेम और समर्पण का सुखद अनुभव देने वाला होगा. आपको अपने पिता या वरिष्ठों से काम पर सहयोग मिलेगा जिससे आपको बहुत लाभ होगा. मित्रों बीच ज़्यादा लोकप्रिय हो जाएंगे और नए मित्र भी बनेंगे. जो लोग गर्भधारण करने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें सफलता मिलेगी. भाग्य और दोस्तों के सहयोग के कारण आपका व्यवसाय काफ़ी सुखद साबित होगा. छात्रों की पढ़ाई-लिखाई करने वाले लोगों से दोस्ती होगी जिससे उनका ध्यान पढ़ाई पर रहेगा. अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर पाएंगे. यात्रा करेंगे और अपने पक्ष में शांति और समृद्धि के साथ अच्छे समय का आनंद लेंगे.

Posted in Ascendant, Basic Astrology, Career, Planets, Signs, Transit | Tagged , , , | Leave a comment

नव तारा चक्र : जानें नवतारा चक्र में शुभ अशुभ तारा

वैदिक ज्योतिष में जन्म नक्षत्र उस नक्षत्र को कहते हैं जिसमें चंद्रमा जन्म के समय स्थित होता है.  सत्ताईस नक्षत्र इस प्रकार हैं : अश्विनी नक्षत्र , भरणी नक्षत्र, कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्र नक्षत्र, उत्तराभाद्र नक्षत्र और रेवती नक्षत्र.

वैदिक ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं में नक्षत्रों का उपयोग किया जाता है, जिसमें कुंडली मिलान, घटनाओं के लिए शुभ समय या मुहूर्त का निर्धारण, व्यक्तित्व लक्षणों को समझना और दशा और गोचर का उपयोग करके घटनाओं का समय निर्धारित करना शामिल है. हिंदू ज्योतिष में चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है. यह हमारी मानसिक पहचान, प्रवृत्ति, पसंद और नापसंद और गुणों को आकार देता है. इसलिए, वैदिक ज्योतिष में हमारा जन्म नक्षत्र संपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाने वाला होता है. जन्म नक्षत्र हमारे दृष्टिकोण, प्रवृत्ति और मानसिक स्थिति को दर्शाता है. जन्म नक्षत्र हमारे विचारों, भावनाओं और अनुभवों को नियंत्रित करता है. प्रत्येक नक्षत्र या तारे का एक अलग व्यक्तित्व होता है जिसमें अच्छा बुरा, पसंद, नापसंद, प्रवृत्ति और विशेषज्ञता के गुण होते हैं.  

नवतारा चक्र को कैसे समझें

किसी के जन्म नक्षत्र से गिनती करते हुए, लगातार नौ तारों को नौ अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है. उनके नाम और महत्व नीचे सूचीबद्ध हैं. 10वें और 19वें सितारों से, हम इसी तरह का वर्गीकरण करते हैं, जिससे सभी 27 नक्षत्र शामिल हो जाते हैं. इसे नवतारा चक्र कहा जाता है.

जन्म तारा (जन्म)

संपत तारा (धन)

विपत तारा (परेशानी)

क्षेम तारा (खुशी)

प्रत्यक्ष तारा (चुनौती)

साधन तारा (सफलता )

नैधन तारा (मृत्यु).

मित्र तारा (मित्र)

परम मित्र तारा (शुभचिंतक)

मुहूर्त शास्त्र में नव तारा चक्र 

मुहूर्त शास्त्र और गोचर के फलादेश को समझने के लिए जन्म नक्षत्र से 2, 4, 6, 8 और 9वें नक्षत्र अच्छे माने जाते हैं. जब कोई ग्रह किसी के जन्म नक्षत्र से किसी विशेष नक्षत्र में होता है, तो नवतारा चक्र के आधार पर अच्छे और बुरे परिणाम दिए जाते हैं. नवतारा चक्र हमारे जीवन का विश्लेषण करने और ज्योतिष के ज्ञान से लाभ उठाने की एक स्पष्ट और सुंदर विधि है.

उदाहरण के लिए, हमारे जन्म नक्षत्र से चौथे, तेरहवें और बाईसवें नक्षत्र को क्षेम तारा कहा जाता है. यह अनुकूल फल देता है. क्षेम तारा हमारे कल्याण, खुशी और स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है.

ज्योतिष में नवतारा चक्र का उपयोग

वैदिक ज्योतिष में नवतारा चक्र नौ रूप में विभाजित किया जा सकता है. सत्ताईस नक्षत्रों का नौ-नौ तारों के तीन बराबर भागों में विभाजित हैं. जन्म – जन्म नक्षत्र से शुरू होने वाले पहले नौ तारे (1 से 9) तक होंगे. अनुजन्म – जन्म नक्षत्र से दसवें तारे से शुरू होने वाले अगले नौ तारे (10 से 18) तक होंगे, त्रिजन्म – जन्म नक्षत्र से उन्नीसवें तारे से शुरू होने वाले अंतिम नौ तारे (19 से 27) तक होंगे. 

पूरे नवतारा चक्र की नींव उस नक्षत्र के आधार पर रखी गई है जिसमें चंद्रमा किसी की जन्म कुंडली में स्थित है. उस विशेष नक्षत्र को जन्म नक्षत्र कहा जाता है. उदाहरण के लिए यदि किसी का चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है, तो वह जन्म नक्षत्र होता है. अश्विनी से आश्लेषा तक के नौ तारे जन्म समूह के अंतर्गत आते हैं, इसके बाद तक के अगले नौ तारे अनुजन्म समूह का हिस्सा बनते हैं और उसके बाद के तारे त्रिजन्म समूह के अंतर्गत आते हैं. ये समूह शरीर, मन और आत्मा के त्रिपद के अंतर्गत आते हैं. 

नव तारा और उनके स्वामी ग्रह 

जन्म तारा : सूर्य अधिपति द्वारा शासित, पशु – मोर

2) संपत तारा : बुध अधिपति , पशु – घोड़ा

3) विपत तारा : राहु अधिपति , पशु – बकरी

4) क्षेम तारा : बृहस्पतिअधिपति , पशु – हाथी

5) प्रतिक तारा : केतु अधिपति, पशु – कौआ

6) साधक तारा : चंद्रमा अधिपति , पशु – लोमड़ी

7) वध तारा : शनि अधिपति , पशु – शेर

8) मित्र तारा : शुक्र अधिपति , पशु – चील

9) परम मित्र तारा : मंगल अधिपति , पशु – हंस

जन्म तारा प्रभाव 

यह जन्म नक्षत्र होता है, कुंडली में चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, यह सभी नक्षत्रों में सबसे महत्वपूर्ण होता है. जन्म तारा हमेशा अनुकूल नहीं होता है और कहा जाता है कि यह मन की चंचलता को दर्शाता है और तनाव का कारण बनता है. जन्म नक्षत्रों के दिनों में मन हमेशा अस्थिर रहता है. 

संपत तारा प्रभाव 

यह आर्थिक स्थिति से जुड़ी सभी चीजों को दर्शाता है. यह एक बहुत ही अनुकूल तारा है और इसे धन से जुड़ी सभी घटनाओं के लिए शुभ माना जाता है. यह कुंडली के दूसरे और ग्यारहवें घर से संबंधित होता है जो आय और लाभ के बारे में काफी हद तक बताता है. संपत तारा का स्वामी बुध है और इसका प्रभाव जीवन में सुख समृद्धि को दर्शाता है.

विपत तारा प्रभाव 

अपने नाम के अनुरुप इस तारा का प्रभाव कष्ट चिंता जैसी स्थिति को दिखाना है. यह जीवन में विभिन्न प्रकार के खतरों की स्थिति का सुचक बनता है. यह चोट लगने, मुद्दों में उलझने और इस तरह के सभी तरह के खतरों से संबंधित हो सकता है. विपत तारा राहु द्वारा प्रभावित होता है फर इसके प्रभाव काफी परेशानी को दिखाते हैं भ्रम की स्थिति जीवन पर अधिक असर डालती है.

क्षेम तारा

क्षेम तारा अनुकूल प्रभाव को दिखाता है. च्छे स्वास्थ्य और मन की शांति, जीवन की आरामदायक स्थिति को दर्शाता है. इसलिए यह संबंधित व्यक्ति की आवश्यक जीवन शक्ति और अच्छे व्यवहार के बारे में है. क्षेम तारा बृहस्पति द्वारा प्रभावित होने के कारण एक सकारात्मक स्थिति के लिए विशेष होता है.

प्रत्यय तारा

यह एक नकारात्मक तारा है और सभी तरह की बाधाओं को दर्शाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह मन में बहुत सी उलझनें पैदा करता है और कार्यों और गतिविधियों को पूरा करने में बाधा उत्पन्न करता है. इस तारा का स्वामी केतु है जिसके कारण अनिश्चितता का भाव अधिक रहता है. विषय वासना के प्रति ध्यान होता है और अजीब सा भय भी बना रहता है.

साधक तारा 

साधक तारा अनुकूल रहता है, इसका प्रभाव शांति स्थिरता और आत्म नियंत्रण की स्थिति को दिखाता है. यह उन सभी प्राप्तियों और लाभों के बारे में बताता है जिनकी प्राप्ति व्यक्ति अपने प्रयासों के द्वारा करता है. ऐसा माना जाता है कि यह तारा भगवान का आशीर्वाद देने वाला होता है. इस तारा पर चंद्रमा का अधिपत्य होता है. इसके कारण मानसिकता विशेष रुप से प्रभावित होती है.

वध तारा

इस तारा को खराब प्रभाव देने वाला माना गया है. यह एक अशुभ तारा है और मारक प्रकृति का होता है. यह नकारात्मकता से भरा हुआ है और सभी प्रकार के इनकार, दुर्भाग्य और परेशानी को दर्शाता है. इस तारा का स्वामी शनि है, इसके कारण जीवन में सफलता की गति भी धीमी बनी रहती है.

मित्र तारा

यह शुभ तारा होता है और इसका प्रभाव अनुकूलता देने वाला होता है. जीवन में सभी समृद्ध की प्राप्ति सफलता का सुख, अपनों का प्रेम इसके द्वारा संभव होता है.  यह जीवन में सही रास्ता दिखाता है और मन को अच्छी शुभता प्रदान करता है. मित्र तारा शुक्र के प्रभाव में होने के कारण भौतिक सुख समृद्धि को भी प्रदान करता है. 

परम मित्र तारा

यह भी एक अनुकूल फल देने वाला तारा होता है. इसे एक साधारण प्रभाव वाला तारा कहा जाता है. इसके जीवन पर मिले जुले फल देखने को मिलते हैं. परम मित्र तारा पर मंगल का प्रभाव होता है. इसके कारण साहस, जोश एवं उत्साह भी प्राप्त होता है. 

Posted in Nakshatra, Planets, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , | Leave a comment

भाव चलित कुंडली और उसका प्रभाव

ज्योतिष की विद्याओं में कई तरीके से कुंडली का अध्ययन किया जाता है. इसी में से एक तरीका भाव चलित कुंडली की जांच से भी देखा जाता है. ज्योतिष में कुंडली का विश्लेषण करते समय यदि चलित कुंडली से कुंडली में सभी ग्रहों के भावों पर विचार न किया जाए तो भविष्यवाणी में कमी को देखा जा सकता है. भाव चलित कुंडली ग्रहों एवं भावों की स्थिति को दर्शाती है. इसमें व्यक्ति के जीवन में आने वाली विभिन्न घटनाओं, को सूक्ष्म रुप से समझा जा सकता है. भाव चलित पर विचार करके ग्रहों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है. यह कुंडली आम तौर पर व्यवसाय, विवाह, करियर, वित्तीय स्थिति, स्वास्थ्य, यात्रा आदि से संबंधित जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है.

कुंडली के विश्लेषण में अधिकांश लोग जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही उस ग्रह के संबंधित भावों का फल बताना शुरू कर देते हैं. कुंडली में ग्रहों की स्थिति का विचार ‘भाव चलित कुंडली’ से ही किया जाता है. कई बार जन्म कुंडली में बनने वाले योग और दोष ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाते हैं और कई बार जन्म कुंडली में दिखाई देने वाले ग्रहों की युति ‘भाव चलित कुंडली’ में भंग हो जाती है.

भाव चलित कुंडली कैसे बनाएं

भाव चलित कुंडली बनाने के लिए हमें ‘जन्म कुंडली’ और सभी ग्रहों के अंशों का विवरण चाहिए होता है. कुंडली का विश्लेषण करते समय हम जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखते हैं, कि कुंडली में कौन सा ग्रह किस भाव में बैठा है. अधिकांश लोग जन्म कुंडली से ही कुंडली में ग्रह के भाव पर विचार करना शुरू कर देते हैं, लेकिन ग्रह के भाव पर विचार भाव चलित कुंडली से करना चाहिए.

भावच्लित कुंडली और ग्रह युति प्रभाव
यदि जन्म कुंडली में कोई दो, तीन या चार ग्रह युति में बैठे हों और उनमें से कोई भी ग्रह भाव कुंडली में अगले या पिछले भाव में चला जाए, तो अन्य ग्रहों के साथ उसकी युति भंग हो जाती है. उदाहरण के लिए, किसी जन्म कुंडली में शुक्र, चंद्र और सूर्य पहले भाव में युति में बैठे हों और शुक्र-सूर्य ग्रह चलित कुंडली में अगले भाव में चले गए हों. तब सूर्य-शुक्र की युति चंद्रमा के साथ भंग हो जाएगी. अगर किन्हीं दो ग्रहों की अंशात्मक दूरी आठ डिग्री से कम है, तो भाव परिवर्तन होने पर भी उनकी युति पर विचार करना चाहिए.

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मांगलिक योग या कोई अन्य योग बन रहा हो और भाव चलित कुंडली में भाव अस्त-व्यस्त हो जाए, तो इसे भंग माना जाना चाहिए. क्योंकि योग सदैव ग्रह-नक्षत्रों की युति से बनते हैं तथा भाव चलित कुंडली से भाव का विचार करना आवश्यक है. जब कोई ग्रह किसी ग्रह से युति तोड़ता है या कुंडली में अपना भाव बदलता है तो भी योग भंग होता है. यदि जन्म कुंडली में कोई योग बन रहा हो तो वह योग वर्तमान कुंडली में भी स्थापित रहे तो ही उस योग को मानना ​​चाहिए.

भाव चलित कुंडली महत्व
भाव चलित कुंडली का प्रभाव कई मायनों में खास रहता है. जन्म कुंडली में बनने वाले योग चलित कुंडली में भंग हों, इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में बनने वाले दोष, कुंडली में भाव भंग हो तो उसे भंग मान लेना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि जन्म कुंडली में शनि और राहु की युति से विष योग बनता है और अगर भाव चलित कुंडली में शनि और राहु की युति भंग हो तो उस दोष को भंग मान लेना चाहिए. इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह अष्टम भाव में स्थित हो तथा भाव चलित कुंडली में वह ग्रह नवम भाव या सप्तम भाव में चला जाए तो उस ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है.

कुल मिलाकर ज्योतिष के अंतर्गत चल कुंडली और लग्न कुंडली दोनों ही व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसका मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह व्यक्ति को सफलता के लिए निर्णय लेने, योजना बनाने और आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं.

Posted in Basic Astrology, Planets, Rashi, Signs, Varga Kundli, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , , | Leave a comment

कुंडली में त्रिषडाय भाव घातक भाव स्थान

ज्योतिष अनुसार जन्म कुंडली के सभी 12 भावों का जीवन पर खास प्रभाव होता है. इसी में से कुछ भाव त्रिषडाय कहलाते हैं जो कष्टदायक माने गए हैं. कुंडली का तीसरा भाव, छठा भाव और ग्यारहवां भाव त्रिषडाय/त्रिषढ़ाय कहलाता है. कुंडली में बारह भावों को अच्छे भावों और बुरे भावों के अंतर्गत समान रूप से बांटा गया है. इन अच्छे और बुरे भावों को आगे विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है. इनमें से एक भाग अनुकूलता को दिखाता है तो दूसरा भाग विपरित परिस्थितियों को दिखाता है.

अनुकूल भाग
केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10वें भावों का समूह मिलकर केंद्र बनाता है.
त्रिकोण भाव 1, 5, 9वें भावों का समूह मिलकर त्रिकोण कहलाता है
पंफर भाव 2, 5, 8 और 11वें भावों का समूह मिलकर पंफर बनाता है
अपोक्लिम: तीसरा भाव, 6वां भाव 9वां भाव और 12वां भाव मिलकर अपोक्लिम बनाते हैं
उपचय तीसरा भाव, 6वां भाव और 10वां भाव मिलकर उपचय के रूप में वर्गीकृत हैं

विपरित भाग
त्रिकोण भाव 6वें, 8वें और 12वें भावों का समूह मिलकर त्रिक भाव कहलाता है.
त्रिषदया 3, 6 और 11वें भाव को त्रिषडाय के अंतर्गत रखा गया है.

3, 6 और 11वें भाव का यह समूह तीन बुरे कारकों अर्थात इच्छा, क्रोध और लालच को दर्शाता है. त्रिषदया समूह के ये तीन भाव आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण भाव अर्थात क्रमशः 9वें भाव, 12वें भाव और 5वें भाव से बिलकुल विपरीत हैं. 11वां भाव त्रिषदया समूह का सबसे शक्तिशाली भाव है क्योंकि यह समूह का अंतिम सदस्य है,

तीसरा भाव: तीसरा भाव नियम, इच्छा, पड़ोसी, करीबी संबंध, गुप्त अपराध दर्शाता है. इसका साहस पर नियंत्रण है. यह गले, कान, छोटे भाई-बहनों और पिता की मृत्यु से भी संबंधित है. कुंडली में तीसरा भाव संचार, यात्रा, भाई-बहन, मानसिक बुद्धि, आदतें, रुचियां और झुकाव को नियंत्रित करता है. सब कुछ, जैसे कि आप शब्दों और कार्यों के माध्यम से खुद को कैसे व्यक्त करते हैं, इंटरनेट और अपने गैजेट के माध्यम से आभासी संचार, दूसरा भाव इन सभी से संबंधित है.

यह भाव शुरुआती जीवन के माहौल जैसे भाई-बहन, पड़ोसी, प्राथमिक विद्यालय और यहां तक कि दिमाग से भी संबंधित है. साथ ही, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस भाव में मिथुन राशि है और इसका स्वामी बुध है. जो संचार का ग्रह है. इस प्रकार गपशप, बातचीत और छोटी-छोटी बातें इस भाव का हिस्सा हैं. यह भाव रुचियों का पता लगाने के लिए प्रेरित करते हैं. हमारे पास जो मूल्य हैं, उनके आधार पर ऐसी चीजें होंगी जो हमें करना पसंद होगा. लेकिन साथ ही, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और विकसित होते हैं, हम नई रुचियों और चीजों की ओर आकर्षित होंगे. तीसरे भाव को काम का भाव माना जाता है.

तीसरे भाव से व्यक्ति अभिव्यक्ति को प्रेरित हता है इसलिए अपने भाई-बहनों के साथ-साथ काम और पढ़ाई के दौरान भी घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए जाना जाता है. तीसरा भाव हमारे मानसिक झुकाव और याद रखने की क्षमता को नियंत्रित करता है. तीसरा भाव भाईचारे के लिए है जो छोटे भाई या बहन के लिए विचार को दर्शाता है. यह तीसरा भाव यह भी निर्धारित करता है कि लोगों के साथ कैसे जुड़ते हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. वैदिक ज्योतिष में, तीसरे भाव को सहज भाव कहा जाता है, और इसलिए यह प्यार, बंधन, देखभाल और साझा करने से जुड़ा है. यह सब हमारे परिवार के सदस्यों विशेष रूप से छोटे भाई या बहन, दोस्तों, रिश्तेदारों, बड़े समुदाय या यहाँ तक कि प्राकृतिक परिवेश के साथ भी हो सकता है.

छठा भाव: यह भाव दुर्घटना, क्रोध, रोग, शत्रु, मानसिक क्लेश, दुख, अपमान, दुर्भाग्य और चोरी की गई संपत्ति का प्रतीक है. ग्यारहवां भाव: यह ग्यारहवां भाव लाभ, लालच, बड़े भाई, मित्र, अधिग्रहण, दुख से मुक्ति को दर्शाता है. प्रत्येक लग्न के लिए, एक ग्रह, भाव के स्वामी के आधार पर कार्यात्मक रूप से लाभकारी, कार्यात्मक रूप से अशुभ या कार्यात्मक रूप से तटस्थ हो जाता है. मंगल, शनि, राहु और केतु प्राकृतिक रूप से अशुभ हैं, सूर्य को बुरा माना जाता है, क्षीण चंद्रमा और अस्त बुध भी अशुभ हैं. बृहस्पति और शुक्र प्राकृतिक रूप से शुभ हैं. 6वें, 8वें और 12वें भाव के स्वामी कार्यात्मक रूप से अशुभ हैं.

छठा भाव त्रिकभाव, त्रिषडाय और उपचय में शामिल होता है. इसे सबसे जटिल भाव माना जाता है, ये व्यक्ति को बाधा और निराशा देते हैं. यह भाव मुख्य रूप से रोग, बीमारी, प्रतिस्पर्धा, कर्मचारी, अधीनस्थ या नौकरों को दर्शाता है. साथ ही, कर्ज, दुश्मनी, स्वच्छता, स्वच्छता, लड़ाई की भावना, दुर्घटनाएँ और दुर्भाग्य का पता चलता है. पराशर जी कहते हैं कि यह षड रिपु भाव है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में छह प्रकार के शत्रुओं का सामना कर सकता है. इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मत्स्य शामिल हैं. यह प्रारब्ध भाव या सेवाओं का भाव कहा जाता है. जीवन के वर्षों के साथ-साथ ये बेहतर परिणाम भी देते हैं. इस भाव के कारक स्वामी बुध और शनि हैं. बुध सूचना, संचार, व्यावसायिक कौशल और नेटवर्किंग की कला को दर्शाता है. शनि कड़ी मेहनत और जिम्मेदारियों का प्रतिनिधित्व करता है और इन पर काम करते हुए व्यक्ति कड़ी मेहनत, धैर्य, नियमों का पालन और जीवन की सीमाओं को स्वीकार करने का पाठ सीखता है.

त्रिषडाय के स्वामी क्यों होते हैं अशुभ
त्रिषडायेश यानी तीसरे भाव, 6वें और 11वें भाव के स्वामी को भी अशुभ माना जाता है. एक ग्रह जो एक साथ त्रिक और त्रिषय भाव का स्वामी बनता है, उसे सबसे मजबूत कार्यात्मक अशुभ कहा जाएगा. इसके अलावा, जब कोई शुभ ग्रह केंद्र का स्वामी बन जाता है तो वह केंद्राधिपति दोष के कारण शुभ परिणाम देने की अपनी शक्ति खो देता है जबकि एक पाप ग्रह कार्यात्मक रूप से शुभ हो जाता है. यदि कोई शुभ ग्रह त्रिक भावों (छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव) का स्वामी न होकर केंद्र में स्थित हो तो यह शुभ होता है और इस स्थिति में वह शुभ ग्रह शुभ परिणाम देता है.

ग्यारहवें भाव के बारे में एक बात याद रखने योग्य है कि यह उपचय समूह, लाभ और पूर्ति के भाव का भी हिस्सा है, इसलिए इस भाव में स्थित ग्रह के लिए शुभ माना जाता है. स्वास्थ्य के लिए भी एकादश भाव का स्वामी अच्छा नहीं होता है.

जब कोई शुभ ग्रह त्रिक या त्रिषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इस समूह में स्थित होता है तो वह अपने प्राकृतिक शुभ परिणाम देने की शक्ति खो देता है. जबकि जब कोई पाप ग्रह त्रिक और त्रषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इसमें स्थित होता है तो उसे अपनी प्राकृतिक अशुभ शक्ति भी खोनी पड़ती है और शुभ परिणाम देने पड़ते हैं.

Posted in Basic Astrology, Vedic Astrology, Yoga | Tagged , | Leave a comment