बृहस्पति के केतु के साथ योग का 12 भावों पर प्रभाव

बृहस्पति एक अत्यंत शुभ ग्रह है ओर केतु एक नकारात्मक ग्रह के रुप में पाप ग्रह माना गया है. यह छाया ग्रह है जो जब कुंडली में बृहस्पति के साथ होता है तो इसका योग बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है. बृहस्पति अंतर्दृष्टि के प्रकाश को देते हुए अज्ञानता और अंधकार को दूर करने वाला ग्रह है. यह ईमानदारी और विस्तार का ग्रह है. उच्च लक्षण और आत्मा का उत्थान बृहस्पति द्वारा हो पाता है.

गुरु चण्डाल योग और इसका असर

केतु गुरु का योग चंडाल योग भी बनाता है, धर्म में आस्था या अनास्था, विश्वास इसी से प्रकट होता है. यह व्यक्ति के धार्मिक पक्ष का विस्तार करता है. लेकिन जब केतु आता है तो व्यक्ति जीवनकाल में कई रहस्यमयी और अलौकिक विधियों में निपुण हो सकता है. क्योंकि केतु एक अलौकिक ग्रह है, जो मोक्ष और त्याग को दर्शाता है. ब्रह्मांड के सबसे सूक्ष्म खगोलीय अंदरूनी तथ्यों को केतु की स्थिति द्वारा ही समझा जाता है. केतु व्यक्ति को हमेशा शांत और एकांत में रहने की आदत देगा. केतु द्वारा रहस्यमय का बोध होता है. यह पूर्व जन्मों में किए गए कार्यों को दर्शाता है. गुरु के साथ केतु मिलकर कई प्रकार की चीजों को करता है और जीवन को बदल देने वाला समय पाता है. 

बृहस्पति और केतु की युति से संबंधित योग है

इस योग के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्ष हैं क्योंकि राहु और केतु पाप ग्रह हैं और बृहस्पति पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं. इसलिए इस योग को भी समान रूप से दोष माना जाता है क्योंकि इसके कई दुष्प्रभाव होते हैं. यह योग किसी व्यक्ति के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है. यह युति जिस भाव और राशि में स्थित है, उसके अनुसार यह बृहस्पति ग्रह और केतु से संबंधित अच्छे और बुरे परिणाम मिलते हैं.

व्यक्ति अनैतिक, अनैतिक और अवैध हो जाता है. ऐसे जातकों का व्यक्तित्व और चरित्र संदिग्ध हो सकता है. सभी कुंडली में केतु और बृहस्पति ग्रह की अलग-अलग शक्ति और कमजोरियां होती हैं, जो सभी को अलग-अलग प्रभावित करती हैं. किसी योग या दोष और लाभ के सभी परिणामों का विश्लेषण करने के लिए कुंडली को देखा जाना चाहिए और उसके अनुसार फलकथन करना उचित होता है. 

गुरु और केतु की युति को गणेश योग या योगिनी योग भी कहा जाता है. इस योग को ध्वजा योग के नाम से भी जाना गया है. बृहस्पति और केतु आध्यात्मिक प्रकृति के हैं. रहस्यवाद के लिए मौलिक मन की शांति इन दोनों के एक साथ होने पर मिलती है. बृहस्पति और केतु की युति जन्म कुण्डली में एक शुभ संयोग है. यह योग जादुई और पारलौकिक कर्मों की बात करता है, बृहस्पति संज्ञान के विकास को नियंत्रित करता है, जबकि केतु ज्ञान का प्रदर्शन करता है. इनका जुड़ाव मुक्ति या मोक्ष की ओर प्रेरित करता है.

कुंडली के प्रथम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के इस भाव में बृहस्पति और केतु की युति होने से व्यक्ति बौद्धिक रुप से अपने विचारों में काफी दृढ़ हो सकता है. धन के मामले में भाग्यशाली रहता है लेकिन दूसरों के द्वारा धन को छीन लेने का भय भी रहता है.व्यक्ति धार्मिक होता और धर्म को अधिक महत्व देता है.  

कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति और केतु की युति होने से व्यक्ति अपनी वाणी में काफी प्रभावशाली होता है. पूर्वजन्मों का उस प्र अधिक प्रभाव पड़ता है. व्यक्ति धूम्रपान और शराब जैसे पदार्थों का आदी हो सकता है. आर्थिक स्थिति में समस्या बनी रह सकती है. 

कुंडली के तीसरे भाव में गुरु और केतु  

कुडली के तीसरे भाव में गुरु और केतु की युति होने से व्यक्ति चतुर एवं कार्यशील होता है. परिवार में मानसिक तनाव हो सकता है. इस योग में भाई बंधुओं की ओर से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति लेखन कार्य में काफी सफल हो सकता है. गलत कार्यों के लिए भी उसका रुझान हो जाता है.

कुंडली के चौथे भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के चतुर्थ भाव में बृहस्पति और केतु का योग व्यक्ति को परिवार से दूर ले जाने वाला होता है. व्यक्ति बौद्धिक एवं कुशल होता है. भौतिक सुख सुविधाओं को लेकर प्रयासशील रहता है. दूसरों का सहयोग नहीं मिल पाता है. मां को दिक्कत भी हो सकती है.

कुंडली के 5वें भाव में बृहस्पति और केतु  

पंचम भाव में गुरु और केतु का एक साथ होना व्यक्ति के प्रेम एवं संतान पक्ष पर असर करता है. व्यक्ति आध्यात्मिक रुप से काफी सजग होता है. इन चीजों की ओर रुझान भी रखता है. सामान्य शिक्षा में बाधा की स्थिति परेशानी दे सकती है. 

कुंडली के छठे भाव में बृहस्पति और केतु 

कुंडली के छठे भाव में बृहस्पति और केतु का होना कष्ट  एवं गलत रास्ते पर जाने के लिए अधिक उकसा सकता है. काम के क्षेत्र में रुकावटें आ सकती हैं व्यक्ति शत्रुओं के द्वारा परेशान हो सकता है. शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. 

कुंडली के सातवें भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के सप्तम भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति के दांपत्य जीवन को कमजोर कर सकता है. समस्याएं पैदा हो सकती है और रिश्तों में दूरी का असर पड़ता है. कमर से संबंधित परेशानी रहेगी. व्यक्ति को शत्रुओं से कष्ट हो सकता है. सामाजिक रुप से लाभ प्राप्ति के योग बनते हैं. 

कुंडली के आठवें भाव में गुरु और केतु  

कुंडली के अष्टम भाव में गुरु और केतु की युति व्यक्ति को आध्यात्मिक रुप से काफी मजबूत बना सकता है. जीवन साथी से भी तनावग्रस्त स्थिति मिल सकती है. लोगों का दुष्ट स्वभाव परेशानी देता है. आर्थिक स्थिति नाजुक होने के कारण दबाव अधिक रहता है.आकस्मिक दुर्घटना, चोट, ऑपरेशन इत्यादि का सामना करना पड़ सकता है. 

कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति और केतु का होना धार्मिक गतिविधियों अलग विचार देता है. अलग संस्कृतियों के प्रति रुझान अधिक होता है. पिता से संबंध या सुख कमजोर रह सकता है. पारिवारिक जीवन में तनाव हो सकता है.  

कुंडली के दशम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के दशम भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम करता है. व्यक्ति एक से अधिक कार्यों में शामिल हो सकता है. व्यक्ति नैतिक कार्यों से अलग कई तरह के काम कर सकता है. नौकरी में उन्नति और प्रतिष्ठा पाना मुश्किल होता है. व्यापार और करियर में लगातार संघर्ष बना रह सकता है.

कुंडली के ग्यारहवें भाव में गुरु और केतु  

कुंडली के एकादश भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति को एक से अधिक आय के स्त्रोत देने वाला होता है. आर्थिक पक्ष में कई बार व्यक्ति गलत रास्तों से भी लाभ पाने में सक्षम होता है. मित्रों की संगति के साथ विरोध भी झेलना पड़ सकता है. 

कुंडली के बारहवें भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के द्वादश भाव में बृहस्पति और केतु का योग होने से व्यक्ति को विदेशी स्थान से लाभ प्राप्त करता है. आध्यात्मिक रुप से ये स्थिति अनुकूल होती है. नींद में कमी का अनुभव होता है. व्यक्ति भौतिक सुख सुविधाओं को पाने में सफल होता है. स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की जरुरत होती है. 

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