वर्ष कुण्डली में मुंथा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. जन्म कुण्डली में मुन्था सदैव लग्न में स्थित रहती है और प्रत्येक वर्ष मुंथा एक राशि आगे बढ़ जाती है. मुंथा नवग्रहों के समान ही महत्व रखती है. मुंथा विचार द्वारा कुण्डली के अनेक प्रभावों

शुक्र ग्रह मान सम्मान, सुख और वैभव, दांपत्य सुख एवं भोग विलासिता के प्रतीक माने जाते हैं. साधारणत: यदि यह पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों तो जातक को हंसमुख एवं विनोद प्रिय बनाते हैं. जातक मिलनसार और सभी को साथ लेकर चलने वाला होता है.

नवग्रहों में बृहस्पति ग्रह सबसे बड़ा और प्रभावशाली माना गया है. गुरू को शुभ ग्रहों के रूप में मान्यता प्राप्त है. गुरू को शुभता, सत्यता, न्याय, सद्गुण व सुख देने वाला गह माना गया है. इस ग्रह को कुण्डली में द्वितीय, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश

विभिन्न ग्रहों के रत्न | Gemstones for Different Planets सूर्य - माणिक्य, चन्द्र - मोती, मंगल - मूँगा, बुध - पन्ना, बृहस्पति - पुखराज, शुक्र - हीरा, शनि - नीलम, राहु - गोमेद, केतु - लहसुनिया. विभिन्न ग्रहों के उपरत्न | Substitute Gems For

वैदिक ज्योतिष में कई वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. कुण्डली का अध्ययन करते समय संबंधित भाव की वर्ग कुण्डली का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. जिनमें से कुछ वर्ग कुण्डलियाँ प्रमुख रुप से उल्लेखनीय है. होरा कुण्डली से जातक के पास

वक्री ग्रहों की दशा में देशाटन, व्यसन एवं अत्यधिक भागदौड. जन्मांग में जो ग्रह वक्री होता है वह अपनी दशा एवं अन्तरदशा में प्रभावशाली फल प्रदान करने वाला बनता है. बुध ग्रह के वक्री होने पर मिलेजुले प्रभावों को देखा जा सकता है. बुध के शुभ या

जैमिनी ज्योतिष शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है. जैमिनि ज्योतिषशास्त्र ऐसा ज्ञान है जो भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों को देखने की क्षमता रखता है. व्यक्ति के जीवन

वैदिक ज्योतिष अत्यधिक व्यापक क्षेत्र है. कुण्डली का विश्लेषण करना चुनौती भरा काम होता है. किसी भी कुण्डली को देखने के लिए बहुत सी बातों का विश्लेषण करके तब किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए. कुण्डली विश्लेषण में कुण्डली के योग महत्वपूर्ण होते

हल योग अपने नाम के अनुसार ही दिखाई भी देता है. हल जो भूमि को खोदकर उसमें से जीवन का रस प्रदान करता है और उसी को पाकर ही जीव अपने जीवन को बनाए रखने में सफल होता है यही हल योग जब कुण्डली में निर्मित होता है तो उसी प्रकार जातक के जीवन के शुभ

ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रह भ्रमण करते हुए विभिन्न प्रकार की गति को में चलते हैं जैसे कि तेज चलना या मंद गति से चलना, वक्री या अति वक्री, मध्यम गति या कुटिल गति इत्यादि. ग्रहों का अपने भ्रमण पथ पर उल्टी गति से चलना वक्रता कहलाता है, परंतु

ज्योतिष में हजारों योगों के विषय में उल्लेख प्राप्त होता है. कुण्डली में बनने वाले अनेक योग किसी न किसी प्रकार से जीवन को अवश्य प्रभावित करते हैं. यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव अर्थात कुण्डली के पहले चार भावों में सभी ग्रह होने पर बनता है. यह

ग्रहों का दशाफल अनेक प्रकार से अपने प्रभावों को दर्शाता है. ग्रह के दशाफल का अंतर सप्ष्टता से देखा जा सकता है क्योंकि कोई एक ग्रह यदि उच्च का है तो उसके प्रभावों में शुभता अधिक देखी जा सकती है लेकिन अगर वही ग्रह नीच का हो तो उसका प्रभाव

कुण्डली के प्रत्येक भाव की महादशा भिन्न भिन्न फल प्रदान करने वाली होती है. बारह भावों में स्थित शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं. प्रत्येक भाव अनुसार महादशा के प्रभावों का वर्णन इस प्रकार से जातक को

ज्योतिष शास्त्र के अनेक ग्रंथों में अधियोग की कल्पना को अभिव्यक्त किया गया है. अधियोग को पापाधियोग और शुभाधियोग दो भागों में विभाजित किया गया है. इस योग में यदि जन्मकालीन चंद्रमा से बुध, बृहस्पति और शुक्र षष्ठम सप्तम एवं अष्टम भाव में

संपूर्ण दशा | Sampoorna Dasha जन्म कुण्डली में जो ग्रह उच्च राशिस्थ या अतिबल (षडबल) हो उसकी दशा अन्तर्दशा संपूर्णदशा कहलाती है. इस दशा काला में मनुष्य सुख वैभव एवं समृद्धि प्राप्त कर पाता है. जातक को धन, स्वास्थ्य, भूमि, भवन मान सम्मान एवं

राहु के विषय में अनेकों कथाएँ शास्त्रो तथा पुराणों में मिलती है. राहु की जानकारी ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ऋग्वेद, महाभागवत तथा महाभारत आदि में मिलती है.राहु को ग्रहों में क्रूर स्वभाव तथा बुद्धि को भ्रमित कर देने वाले ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि, राहु केतु को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है और सूर्य को क्रूर ग्रह कहा जाता है. परंतु यहां यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि यह ग्रह शुभ फलों को प्रदान नहीं करते. अपितु हम इस तथ्य को बताने का प्रयास करना

कूर्म योग अपने नाम की सार्थकता को इस प्रकार व्यक्त करता है कि कुण्डली में बनने वाला यह योग कूर्म के समान दिखाई देता है. जिस प्रकार कूर्म के पैर अनेक दिशाओं में फैले हुए से रहते हें उसी प्रकार इस योग में ग्रह 1,3,5,6,7,और 11 भावों में फैले

दशानाथ जिस भाव का स्वामी या कारक होता है वह उसके फल अपनी दशा भुक्ति में कई प्रकार से देने का प्रयास करता है. जैसे कि कोई ग्रह जिस भाव में स्थित है उस भाव का फल वह पहले देगा, उसके पश्चात वह जिस राशि में है उस राशि के गुणों के अनुसार फल

सभी ग्रह समय - समय पर अपनी राशि परिवर्तित करते रहते हैं. सभी ग्रहों का एक राशि में भ्रमण का समय अलग ही होता है. कोई शीघ्र राशि बदलता है तो कई ग्रह लम्बी अवधि तक एक ही राशि में रहते हैं. सभी नौ ग्रहों में एक शनि ऎसा ग्रह है जो सबसे अधिक समय