दशमेश के केन्द्र, त्रिकोण, अथवा धन भाव में स्थित होने से निर्मित होता है सिंहासन योग. जन्म कुण्डली में दशम भावाधीश केन्द्र, त्रिकोण अथवा द्वितीय इनमें से किसी एक स्थान पर भी स्थित हो तो ऎसा जातक उच्च स्थान पाता है. वह राज सिंहासन पर सुशोभित होने वाला राजा समान होता है, उसकी कीर्ति सभी ओर फैलती है तथा उसकी सेना हाथी इत्यादि सदैव परिपूर्ण रहती है.
दशमभवननाथे केन्द्रकोणे धनस्थे ।
वनिपतिबलयाने शस्तसिंहासनेषु ।।
स भवति नरनाथो विश्वविख्यात कीर्ति।
मर्दगलितकपोलै: सद् गजै: सेव्यमान:
दशमेश यदि केन्द्र, त्रिकोण या धन भाव में से किसी में भी स्थित होने पर जातक समृद्धशाली, यशस्वी और कीर्तिवान बन सकता है. व्यक्ति को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य में वृद्धि पाता है. दशमेश की शुभ स्थिति होने पर कर्म स्थान बल पाता है.
द्वितीय प्रकार का सिंहासन योग | Second type of Sinhasan Yoga
सातों ग्रहों के द्वितीय भाव तथा त्रिक भावों में स्थित होने से यह बनता है. द्वितीय, अष्टम, षष्ठ और व्यय में सब ग्रह हों तो व्यक्ति की कुण्डली में सिंहासन योग का निर्माण होता है.
आकाशवासै: सकलैर्निधाननिमीलनाराह्यवसानयातै:।
वदन्ति सिंहासन नामयोगं सिंहासनं तत्र विशेन्नृपस्य।।
ज्योतिष में सिंहासन योग का निर्माण हो तो शुभ प्रभाव जातक को अच्छी क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा देने वाला होता है. अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं यह जातक के जीवन को प्रभावशाली स्वरुप प्रदान करने में सहायक है. इस योग के द्वारा प्रदान होने वाली विशेषताएं कुछ विशेष जातकों में ही देखने को मिलती हैं. कुंडली में इस योग का निर्माण निश्चित करने के लिए कुछ अन्य तथ्यों के विषय में विचार कर लेना भी आवश्यक है. किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं.
तृतीय प्रकार का सिंहासन योग | Third type of Sinhasan Yoga
सातों ग्रहों के वृश्चिक, वृष, कन्या और मीन का राशिगत होने से या मिथुन, धनु और कुंभ राशिगत होने से इस योग की रचना होती है.
विश्वे खगा अलिवृषेत्थसिकन्यकासु ।
यद्धा नृयुग्महरि कुम्भहयेषवशेषा:।
यदि कुण्डली में वृश्चिक, वृष, मीन और कन्या इन राशियों में समस्त ग्रह हों अथवा मिथुन, सिंह, कुंभ और धनु राशियों में सभी ग्रह हों तो इस सिंहासन योग का निर्माण देखा जाता है. सिंहासन योग एक अच्छा योग मान अजाता है जो कुण्डली को बल प्रदान करने वाला होता है. इस योग में उत्पन्न जातक राजा के समान सम्मान और पद पाने वाला होता है उसे वाहनों का सुख प्राप्त होता है, इस प्रकार सिंहासन योग का स्वरुप अनेक प्रकार से देखा जा सकता है उसके
कुंडली में योग का निर्माण होने पर इस योग से संबंधित शुभ फलों में ग्रहों के अस्त हो जाने के कारण कमी आ सकती है जिससे इस योग की फल प्रदान करने की क्षमता प्रभावित होती है. कुंडली के किसी बलहीन घर में बनने वाला योग भी अपेक्षाकृत कम शुभ फल प्रदान करेगा तथा किसी कुंडली में अशुभ ग्रह का प्रभाव होने के कारण भी इस योग का शुभ फल कम हो जाता है. योग के किसी कुंडली में बनने तथा इसके शुभ फलों से संबंधित विषयों पर विचार करने से पूर्व इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों पर भली भांति विचार कर लेना आवश्यक होता है.
कुण्डली में बनने वाले सिंहासन योग के लाभ
कुण्डली में बनने वाला सिंहासन योग मुख्य तीन प्रकार से बनता है, जिसका वर्णन ऊपर दिया गया है. अब इस योग की महत्ता इस बात पर निर्भर होती है की ये योग कब व्यक्ति को फल देगा. व्यक्ति को फल की प्राप्ति उन ग्रहों के समय पर मिलती है जिन के आधार पर इस योग का निर्माण होता है. अगर जातक को दशा उन ग्रहों एवं भावों से संबंधित मिलती है तो व्यक्ति को इस योग का फल मिलता है. आईये जानते हैं की सिंहासन योग का लाभ -