नवग्रहों में बृहस्पति ग्रह सबसे बड़ा और प्रभावशाली माना गया है. गुरू को शुभ ग्रहों के रूप में मान्यता प्राप्त है. गुरू को शुभता, सत्यता, न्याय, सद्गुण व सुख देने वाला गह माना गया है. इस ग्रह को कुण्डली में द्वितीय, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश भाव का कारक माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार यह पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों का स्वामित्व रखते हैं. यह बारह महीनों में चार महीने वक्री रहते हैं. यह अस्त होने के एक मास बाद उदित होता, इसके चार मास बाद वक्री और फिर चार महीने बाद मार्गी और फिर सवा चार मास के बाद अस्त हो जाता है. बृहस्पति ग्रह एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है और 12 राशियों का चक्र पूरा करने में लगभग तेरह वर्ष का समय लेता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति बृहस्पति से प्रभावित होते हैं वे कफ प्रकृति के होते हैं और वे मोटे होते हैं. इनकी आवाज़ भारी होती है और आंखें एवं बाल भूरे अथवा सुनहरे रंग के होते हैं. बृहस्पति से प्रभावित व्यक्ति धार्मिक, आस्थावान, दर्शनिक, विज्ञान में रूची रखने वाले एवं सत्यनिष्ठ होते हैं.
कुण्डली में बृहस्पति से पंचम, सप्तम और नवम भावों पर इसकी पूर्ण दृष्टि होती है. बृहस्पति की दृष्टि जिन भावों पर होती है उस भाव से सम्बन्धित उत्तम फल की प्राप्ति होती है लेकिन जिस भाव मे यह स्थित होता है उस भाव की हानि होती है. धनु और मीन में यह योगकारक होता है इस स्थिति में होने पर यह जिस भाव में होता है एवं जिन भावों पर दृष्टि डालता है लाभ प्रदान करता है. कन्या एवं मिथुन लग्न वालों के लिए यह बाधक माना जाता है.
वक्री गुरू का प्रभाव | Effects of Retrograde Guru
साधारणत: गुरू ज्ञान, विवेक, प्रसन्नता के स्वरुप हैं कुण्डली में गुरू का वक्री होना, व्यक्ति को अदभुत दैवी शक्ति प्रदान करने में सहायक होता है. जो कार्य अन्य लोगों के सामर्थ्य में नहीं होता वह कार्य वक्री ग्रह से प्रभावित जातक करने में सहयक होता है. असंभव कार्यों को पूर्ण करते हुए यश और सम्मान की प्राप्ति होती है.
चतुर्थ भावस्थ वक्री गुरू साथियों का मनोबल बढा़ने वाला होता है जातक दूरदृष्टि से अपने कार्यों को उचित प्रकार से निर्वाह करने का प्रयास करता है. वक्री बृहस्पति के प्रभाव स्वरुप जातक अधिकांशत: जोखिम उठाकर भी सफलता प्राप्त करता है. विपत्ति के समय उसकी विशेष क्षमता को देखा जा सकता है.
वक्री गुरू के उपाय | Remedies for Retrograde Jupiter
वक्री गुरु के प्रभावों से बचने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं. उपाय करने से पर बृहस्पति के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है. जिससे गुरु अच्छा फल देने वाले तथा सभी काम पूरे करने वाले बनेंगे. जब गुरु के वक्री शुभ फल प्राप्त न होने की स्थिति में गुरु के उपाय करना लाभकारी रहता है. गुरु सबसे शुभ ग्रह है, इसलिये इनकी शुभता की सबसे अधिक आवश्यकता होती है. गुरु धन, ज्ञान व संतान के कारक ग्रह है. इसलिये गुरु के उपाय करने पर धन, ज्ञान व संतान का सुख प्राप्त होने कि संभावनाएं बनती हैं.
प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें. घर में पीले रंग के फूल का पौधा लगाएं, प्रतिदिन विष्णु मंदिर जाएं और ब्राह्मण या अन्य किसी जरूरत मंद को धन का दान करें. गुरुवार का व्रत रखें, भगवान विष्णु को गुड़-चने की दाल का प्रसाद अर्पित करें, घी, दही, आलू और कपूर का दान करें, हल्दी एवं पीले चंदन से भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करें, केसर का तिलक लगाएं।
इस उपाय के लिये गंगाजल में पीली सरसों या शहद दोनों को मिलाकर स्नान किया जाता है, स्नान करते समय गुरु मंत्र का जाप करना लाभकारी रहता है. तथा इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कर लिया जाता है.
बृहस्पति वस्तुओं का दान करने से भी व्यक्ति को लाभ प्राप्त होते है. दान की जाने वाली वस्तुओं में नमक, हल्दी की गांठें, नींबू आदि का दान किया जा सकता है, इनमें से किसी एक वस्तु या फिर सभी वस्तुओं का दान गुरुवार को किया जा सकता है.
गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिये गुरु मंत्र का जाप किया जा सकता है. " ऊं गुं गुरुवाये नम: " इस मंत्र का जाप प्रतिदिन एक माला या एक से अधिक माला प्रतिदिन करना शुभ रहता है. इसके अलावा गुरु का जाप गुरुवार के दिन करना भी लाभकारी रहता है. जिस अवधि के लिये यह उपाय किया जा रहा है उस अवधि में हवन कार्यो में इस मंत्र का जाप किया जा सकता है.