"ॐ नमः शिवाय" मंत्र भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाता है. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप भक्त के हृदय की गहराइयों में पहुंचकर उसका साक्षात्कार शिव से कराता है. यह मंत्र भक्तों का सरल लोकप्रिय मंत्र है यह मंत्र पाँच अक्षरों का प्रभुत्व दर्शाता है अतः इसे पंचाक्षर स्तोत्र कहते हैं. "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का बनता है. ॐ इस एकाक्षर मंत्र में शिव प्रतिष्ठित हैं. यह मंत्र में पंचब्रह्मरूपधारी भगवान शिव इसमें वाच्य और वाचक भाव से विराजमान हैं.
यह मंत्र शिव तथ्य है जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल है. शिव के इस निर्मल वाक्य पच्चाक्षर मंत्र का प्रणयन जीवन को पूर्ण करता है. इस विमल षड़क्षर मंत्र का सर्वज्ञ है, इसके समान अन्य कोई नहीं है. हृदय में 'ॐ नमः शिवाय' यह षड़क्षर मंत्र समाहित होने पर संपूर्ण शास्त्र ज्ञान एवं शुभ कृत्यों का अनुष्ठान स्वयं ही प्राप्त हो जाता है. यह मंत्र जिसके मन में विद्यमान हो जाए तो उसका जीवन मानो सफल हो जाता है.
जब सृष्टि का विस्तार संभव न हुआ तब शिव अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए और उन्होंने अपनी देह के अर्द्धभागसे शक्ति को अलग कर दिया यह शक्ति ही प्रकृति बनी जिन्हें निर्विकार स्वरुप ज्ञान रुप में जानते हैं.
शिव पुराण में यह उल्लेखित है कि प्राणियों के जीवन कल्याण हेतु भगवान शिव ने ‘'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का अनुमोदन किया यह षड़क्षर मंत्र समस्त ज्ञान का बीज है. अत्यंत सामान्य एवं सूक्ष्म होने पर भी यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है.
सृष्टि की रचना के लिए शिव दो भागों में विभक्त हुए. शिव पांच तरह के कार्य करते हैं जिसमें सृष्टि निर्माण, सृष्टि पालन, सृष्टि नाश, परिवर्तन एवं मोक्ष प्रदान करना. सृष्टि संचालन के लिए शिव ने अनेक रुप धारण किए हुए हैं. इसी प्रकार उनके इस मंत्र में उन्हीं का चराचरभाव समाहित दिखाई देता है. शिव और मंत्र का भाव अनादिकाल से रहा है. शिवपुराण के अनुसार, भगवान शंकर का सर्वाधिक प्रभावी एवं सरल मंत्र पंचाक्षर-नम: शिवाय है .यह पंचाक्षर मंत्र सभी के लिए फलदायी माना गया है. इस मंत्र के अक्षरों में पंचानन महादेव की समस्त शक्तियां सन्निहित हैं. इसके जाप से देह की शुद्धि होती है.
भगवान शिव जीव को सांसारिक दोषों से मुक्त करते हैं और उसे मोक्ष का मार्ग दिखलाते हैं. अतः जीव को संसार सागर से उद्धार करने वाले स्वामी अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव के इस मंत्र जाप से वह हमारे भीतर विद्यामान रहते हैं. आदि और अंत से रहित हैं, निर्मल, सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण शिव हैं. अपने इस मंत्र द्वारा सृष्टि की रचना में सौंदर्यबोध को जन्म देने में सहायक हैं. आदि गुरू शंकराचार्य ने पंचाक्षर मंत्र के प्रत्येक अक्षर की महिमा का प्रतिपादन करने के लिए श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र का निर्माण किया था. यह पच्चाक्षर मंत्र शिवस्वरूप होने के कारण सिद्धि प्रदान करने वाला माना गया है.
इस मंत्र में छहों अंगों सहित संपूर्ण वेद और शास्त्र विद्यमान हैं, इसके समान दूसरा कोई मंत्र नहीं है. यह मंत्र उसी प्रकार भिन्न है, जैसे वृत्ति से सूत्र यदि भगवान भोलेनाथ नहीं होते तो यह जगत अंधकारमय हो जाए. जीवात्मा अज्ञानी हो जाए. यह प्रकाश प्रदान र्ने वाले हैं तथा इनके मंत्र जाप द्वारा सभी बंधन छूट जाते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होने लगता है, शिव बिना प्राणियों की सिद्धि नहीं है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के अत्यंत सरल है. इस मंत्र का जाप प्रतिदिन रुद्राक्ष की माला से जप करने से भगवान आशुतोष समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं. भगवान शंकर का पंचाक्षर मंत्र - ॐ नमः शिवाय मंत्र अमोघ फलदायी है,