योगिनी दशाओं में मंगला नामक योगिनी दशा सर्वप्रथम होती है. इस दशा की समय अवधि 1 वर्ष की मानी गई है. इस दशा में चंद्रमा की भूमिका होती है यही इस दशा का स्वामित्व रखते हैं. यह शुभ ग्रह की दशा होने के कारण मन में शीतलता व सकून का भाव लेकर आती
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माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये माँ लक्ष्मी के अष्टरुपों का नियमित स्मरण करना शुभ फलदायक माना गया है. अष्टलक्ष्मी स्त्रोत कि विशेषता है की इसे करने से व्यक्ति को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी
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योगिनी दशा की कुल अवधि 36 वर्ष की होती है. मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा, संकटा नामक आठ योगिनी दशाएं होती हैं. संख्याक्रम से मंगला एक वर्ष रहती है, पिंगला दो वर्ष, धन्या तीन, भ्रामरी चार, भद्रिका पांच, उल्का छः,
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कुण्डली के सातवें भाव में स्थित सूर्य को अलगाववादी और विच्छेदकारी कहा गया है. इसी के साथ साथ वैवाहिक जीवन के लिए भी इसे अच्छा नहीं माना गया है परंतु इन तथ्यों की सत्यता के विषय में जानने के लिए सर्वप्रथम इस बात को समझ चाहिए की कुण्डली में
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वर्ष फल कुण्डली में द्वादश भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार हैं कि यदि भाव स्व राशि स्वामी हो या शुभ
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वर्ष फल कुण्डली में एकादश भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार हैं कि यदि भाव स्व राशि स्वामी हो या शुभ
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वर्ष फल कुण्डली में दूसरे भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार हैं कि यदि भाव स्व राशि स्वामी हो या शुभ
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वर्ष फल कुण्डली जिसे ताजिक भी कहा जाता है, ज्योतिष शास्त्र की तीन शाखाओं में से एक है. वर्ष फल मुख्यत: किसी विशेष घटनाओं को अध्ययन करने के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है. फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के
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वर्ष फल कुण्डली में चतुर्थ भाव में स्थित ग्रहों के प्रभावों द्वारा जो फल प्राप्त होते हैं वह जातक के जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित करते हैं. वर्ष फल कुण्डली ज्योतिष शास्त्र की तीन शाखाओं में से एक है. वर्ष फल मुख्यत: किसी विशेष घटनाओं को
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विभिन्न भावों में ग्रह स्थिति के परिणाम पराशरी सिद्धांतों पर आधारित यह परिणाम वर्ष कुण्डली में भी उपयोगी होते हैं. ग्रह अपने विभिन्न भावों में अपने कारकतत्व राशि आधिपत्य व अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. ग्रहों द्वारा लग्न, पंचम और नवम
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वर्ष फल कुण्डली में दशम भाव में स्थित ग्रहों के प्रभाव, जातक के जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित करते हैं. वर्ष फल कुण्डली ज्योतिष शास्त्र की तीन शाखाओं में से एक है. वर्ष फल मुख्यत: किसी विशेष घटनाओं को अध्ययन करने के संदर्भ में प्रयुक्त
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ग्रह स्थिति के परिणाम पराशरी सिद्धांतों पर आधारित यह परिणाम वर्ष कुण्डली में भी उपयोगी होते हैं. ग्रह अपने विभिन्न भावों में अपने आधिपत्य व अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. सभी ग्रह चाहें वह शुभ हों अथवा अशुभ, सदा ही शुभ परिणामदायक होंगे
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ग्रह स्थिति के परिणाम पराशरी सिद्धांतों पर आधारित यह परिणाम वर्ष कुण्डली में भी उपयोगी होते हैं. ग्रह अपने विभिन्न भावों में अपने आधिपत्य व अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. ग्रहों द्वारा लग्न, पंचम और नवम भाव के स्वामी होना सदैव शुभता से
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अपनी दशा में उच्च राशि में स्थित ग्रह शुभ परिणाम देने वाले होते हैं. सूर्य मेष और सिंह राशियों में होने पर जीवन में अनेक प्रकार की सफलता मिल सकती है. यह मेष में उच्च का होने के कारण अपनी दशा में राज्य सम्मान व सुख दे सकता है. वहीं मंगल
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वर्ष फल कुण्डली में पंचम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं, उनके प्रभावों को जानने हेतु आप कई बातों का अनुसरण कर सकते हैं कि ग्रह के कारक तत्व व उसका प्रभाव वर्ष कुण्डली पर कैसा रहने वाला है. कुण्डली में ग्रहों की स्थिति बहुत मायने रखती है
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वर्ष फल कुण्डली के सातवें भाव में ग्रहों के प्रभाव का विशलेषण करके इस भाव से संबंधित फलों को जाना जा सकता है. सातवें भाव में ग्रहों का प्रभाव जातक के जीवन में कई तरह से बदलाव ला सकता है, समाज में स्थिति का सशक्त होना और जीवन में होने बदलाव
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वर्ष फल कुण्डली में छठे भाव में बैठे ग्रहों का प्रभाव जानने हेतु कई प्रकार के तथ्यों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है. ग्रहों का शुभता होने से जातक आनंद व सुख की अनुभूति कर पाता है, परंतु कमजोर होने पर समस्याओं से भी जूझना पड़ सकता
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ज्योतिष में कई प्रकार की विवेचना से आप यह जान सकते हैं कि सेहत में होने वाले बदलाव किस प्रकार आपको प्रभावित कर सकते हैं ओर आपके साथी को कौन सी स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी आपके तनाव क अकारण बन सकती है इसी में जैमनी ज्योतिष का आंकलन करके यह
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श्रीयंत्र में लक्ष्मी जी वास माना गया है. सभी यंत्रों में श्रेष्ठ स्थान पाने के कारण इसे यंत्रराज भी कहते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से बैकुंठ धाम चली जाती हैं, इससे पृथ्वी पर संकट आ जाता है तब प्राणियों के कल्याण
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बलिष्ठ लग्न दशा | Balishtha Lagna Dasha शुभ स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, सम्मान, सरकार द्वारा अनुग्रहीत कराती है. मध्यम बल दशा सामान्य प्रभाव देने वाली होती है. लाभ मिश्रीत परिणामों से युक्त होंगे. बाधाओं और मानसिक अशांति को देने वाला हो सकता है