राहु केतु का फलकथन छाया ग्रह के रूप में किया जाता है. राहु एवं केतु आकाशीय पिंड नहीं हैं यह चंद्रमा तथा क्रांतिवृत्त के कटाव बिंदु हैं. पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र में राहु को नार्थ नोड ऑफ द मून कहा जाता है. केतु की स्थिति इस बिंदु के ठीक सामने 180 डिग्री पर मानी जाती है और इस कारण से कुण्डली में केतु की स्थिति राहु से सप्तम भाव में दर्शायी जाती है. राहु की महादशा अठारह वर्ष और केतु कि सात वर्ष होती है इसलिए हम कह सकते हैं कि जातक की आयु के पच्चीस साल राहु व केतु के आधिपत्य में रहते हैं. इसके अतिरिक्त अन्य ग्रहों की महादशाओं के अंतर्गत राहु-केतु की अंतर व प्रत्यंतर भी आती है.

राहु- केतु आकस्मिक रूप से फल प्रदान करने की क्षमता रखते हैं. ऋषियों द्वारा राहु - केतु से संबंधित फल कथन के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा गया जैसे कि लग्न से राहु- केतु की स्थिति है और जहां वह स्थित हो उस भाव में कौन सी राशि पड़ रही है क्योंकि राहु- केतु की स्थिति को कुछ भावों व राशियों के लिए शुभ माना जाता है तो कुछ में अशुभ कहा गया है. राहु - केतु से प्राप्त होने वाले फलों में इन सभी का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. राहु-केतु किस भाव में और किस राशि में स्थित हैं फलकथन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.

इसी के साथ यह बात भी ध्यान रखने योग्य होती है कि यह किन ग्रहों से युति और दृष्ट संबंध बना रहे हैं. इन सभी बातों का प्रभाव राहु- केतु द्वारा दिए जाने वाले फलों में घटित होता है. यदि राहु केतु राजयोग कारक हों या योग कारक ग्रहों से इनका संबंध स्थापित हो रहा हो तो ऎसी स्थिति में राहु - केतु शुभ फलों को प्रदान करने वाले बनते हैं. यदि राहु- केतु के राशीश यदि नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह हों या दोनों परस्पर केंद्र में स्थित हों, अपनी उच्च, मूल त्रिकोण, स्वयं की या मित्र राशि में स्थित हों तब भी यह शुभ फलों की प्राप्ति में सहायक होते हैं.

वहीं दूसरी ओर  यदि राहु - केतु त्रिक भाव या भावेशों से प्रभावित हों नीच या शत्रु राशि में स्थित हो तो अशुभ फलों में वृद्धि करने वाले बनते हैं. राहु - केतु अपने अंशों के अनुसार दूसरे ग्रहों से जितने अधिक निकट होते हैं उतना ही दूसरे के प्रभावों को अपनी दशा के दौरान प्रकट करते हैं. राहु-केतु की युति किन ग्रहों से है और उन ग्रहों को किन भावों का स्वामित्व प्राप्त है तथा उनके नैसर्गिक कारकत्व क्या है तथाराहु - केतु तथा उनसे युति रखने वाले ग्रहों के मान यदि एक समान या अधिक निकट हों तो ग्रहों का प्रभाव राहु-केतु में दिखाई देता है.

राहु और शनि की युति को कष्टप्रद माना गया है, कुंडली के अन्य ग्रहों से राहु- केतु के परस्पर संबंधों का विश्लेषण भी करना चाहिए क्योंकि राहु-केतु पर पड़ने वाली अन्य ग्रहों दृष्टि भी उनसे संबंधित फलों को प्रभावित करने वाली होती है. राहु-केतु के फलों का और भी अधिक विस्तार पूर्वक विश्लेषण करने के लिए उनकी नवांश में स्थिति का भी अनुमोदन किया जाना चाहिए. नवांश में राहु केतु कि स्थिति, युति और दृष्टि का विश्लेषण जन्मकुंडली की तरह ही किया जाना चाहिए.