राहु ग्रह को विच्छेद कराने वाले ग्रह के रुप में जाना जाता है. वास्तविक रुप में राहु बिन्दू मात्र है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा पड़ता है जिस कारण इन्हें ग्रह की तरह ही माना जाता है. यह राहु व्यक्ति
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अष्टम भाव आयु भाव है इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है. आयु का निर्धारण करने के लिए इस भाव को विशेष महत्ता दी जाती है. इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है. उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान,
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जन्म कुण्डली में अष्टकवर्ग की गणना बहुत महत्व रखती है. इसके द्वारा बहुत सी बातों का विश्लेषण किया जा सकता है. जीवन खण्ड का कौन सा भाग शुभ होगा और कौन सा भाग अशुभ होगा आदि बाते देखने के साथ अष्टकवर्ग द्वारा राजयोग भी देखा जाता है. आइए
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ज्योतिष में फलकथन करने के बहुत से नियम व योग होते हैं. सभी का सूक्ष्मता से अध्ययन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए. जन्म कुण्डली की विवेचना में अष्टकवर्ग की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. अष्टकवर्ग के सिद्धांतो का सही
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कुण्डली पर ग्रहों का प्रभाव विशेष रूप से पड़ता है. इनके बिना कुण्डली कि विवेचना का आधार नहीं किया जा सकता है. व्यक्ति की कुण्डली के योग ग्रह दशाओं में फल देते है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर शुभ व अशुभ स्थितियों के विषय में जानना हो तो
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वर्ष कुण्डली का अध्ययन बहुत सी बातों के आंकलन के लिए किया जाता है. लेकिन वर्ष कुण्डली का अपना स्वतंत्र महत्व ज्यादा नहीं होता है. जन्म कुण्डली की दशा और योगो को ध्यान में रखते हुए ही वर्ष कुण्डली का अध्ययन किया जाना चाहिए. जन्म कुण्डली और
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आज के संदर्भ में शनि के विषय में जो भी धारणाएं बनाई गई हैं वह ज्योतिष की कसौटी पर कितनी उचित ठहरती है इस का अनुमोदन करने की आवश्यकता है. वर्तमान समय में कई भ्रांतियां इसके साथ जोड़ दि गई ज्योतिष शास्त्रों में शनि के विकृत रुप की व्याख्या
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आइए आज आपको वर्ष कुंडली के एक और महत्वपूर्ण पहलू मुंथा के बारे में जानकारी देने का प्रयास करें. मुंथा का उपयोग वर्ष कुंडली में किया जाता है. जन्म के समय मुंथा लग्न भाव में मौजूद होती है और एक वर्ष तक वही रहती है. उसके बाद एक भाव आगे बढ़
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ज्योतिष में ग्रहों की दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है. इन्हीं ग्रहों के द्वारा व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के उतार-चढा़व आते हैं जिससे कभी सुख व कभी दुख की धूप छांव जीवन में मौजूद रहती है तथा व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में यह
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ज्योतिष में एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत सी बातों का आंकलन किया जाता है. जन्म कुण्डली में लग्न, लग्नेश चंद्रमा और चंद्र राशिश की स्थिति देखी जाती है. अगर यह चारों बली हैं तब व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कम करना पड़ता है.
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अच्छा स्वास्थ्य सफलता की कुंजी माना जाता है. यदि व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही रुपों से स्वस्थ हैं तो वह सभी समस्याओं और कठिनाईयों से पार पा सकने में सक्षम होता है. कुण्डली के द्वारा स्वास्थ्य के विषय में अनेक बातों का अध्ययन किया जा
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अच्छे स्वास्थ्य के लिए जन्म कुण्डली में बहुत सी बातो का आंकलन किया जाता है जो निम्नलिखित है :- सबसे पहले तो लग्न, लग्नेश का बली होना आवश्यक है. यदि अशुभ भाव का स्वामी जन्म लग्न में स्थित है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानियो से होकर गुजरना पड़
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योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में उल्का दशा आती है. उल्का दशा की समय अवधि 6 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को योगिनी दशा फलों की प्राप्ति होती है. शनि से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को संघर्ष की स्थिति का सामना करना करना पड़ सकता
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भद्रिका दशा को बुध की दशा के रूप में जाना जाता है इस दशा की कुल अवधि पांच वर्ष की मानी गई है. यह दशा शुभ ग्रह की दशा होती है इसलिए इस दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. यह दशा परिवार में स्नेह एवं प्रेम की वृद्धि करती है.
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ज्योतिष में बहुत से योगो का उल्लेख मिलता है. यह सभी योग हमारे ऋषि मुनियो द्वारा हजारो वर्षो पूर्व लिख दिए गए हैं. जब यह सभी योग लिखे गए थे तब से लेकर अब तक समय में बहुत अंतर आ चुका है इसलिए इन योगो को देश, काल, पात्र के अनुसार लगाना चाहिए.
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किसी भी जन्म कुण्डली के मजबूत आधार लग्न, सूर्य तथा चंद्रमा को माना जाता है. अगर ये तीनो कुण्डली में बली है तब जीवन की बहुत सी बाधाओ पर काबू पाया जा सकता है. लग्न से व्यक्ति का व्यक्तित्व, सूर्य से आत्मा तथा चंद्रमा से मन का आंकलन किया जाता
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जन्म कुण्डली के आधार पर व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बताया जाता है. सभी का भविष्य अलग होता है. कोई सुखी तो कोई दुखी रहता है अथवा किसी को मिश्रित फल जीवन में मिलते हैं. किसी भी बात के होने में कुण्डली के योग महत्व रखते हैं
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अच्छे स्वास्थ्य के लिए जन्म कुण्डली में बहुत सी बातो का आंकलन किया जाता है जो निम्नलिखित है :- सबसे पहले तो लग्न, लग्नेश का बली होना आवश्यक है. यदि अशुभ भाव का स्वामी जन्म लग्न में स्थित है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानियो से होकर गुजरना पड़
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व्यवसाय के विषय में जानने के लिए दशम भाव का विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक माना गया है. इसी के द्वारा जातक के कार्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है. इसी के साथ यह भी जानना आवश्यक है कि कुण्डली में चंद्र, सूर्य और लग्न में से कौन सबसे अधिक
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भचक्र में शून्य से 13 अंश 20 कला तक का विस्तार अश्विनी नक्षत्र के अधिकार में आता है. अश्चिनी नक्षत्र दो "अश्विन" से उत्पन्न हुआ नक्षत्र है. यह दो सितारो का समूह है. लेकिन कुछ अन्य मतानुसार अश्विनी नक्षत्र तीन सितारो का समूह है जिनकी आकृति