आज के संदर्भ में शनि के विषय में जो भी धारणाएं बनाई गई हैं वह ज्योतिष की कसौटी पर कितनी उचित ठहरती है इस का अनुमोदन करने की आवश्यकता है. वर्तमान समय में कई भ्रांतियां इसके साथ जोड़ दि गई ज्योतिष शास्त्रों में शनि के विकृत रुप की व्याख्या अधिक की गई है पर वास्तविक रुप में ऎसा नहीं है. ज्योतिष शास्त्र के अलग- अलग ग्रन्थों में शनि का अलग- अलग वर्णन किया गया है.

ज्योतिष ग्रन्थों के मिले-जुले वर्णन के अनुसार शनि काफी बलवान प्रकृति के, कठोर, दुष्ट ग्रह हैं. इसके साथ साथ इस बात पर भी ग्रन्थ एकमत है कि जब व्यक्ति पर शनि की कृपा होती है तो व्यक्ति के पास इतना धन आता है कि वह संभाले नहीं संभलता है. परन्तु जब शनि रुष्ट होते है तो व्यक्ति को एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है. प्रत्येक व्यक्ति के लिये शनि समान नहीं हो सकते है. शनि के प्रभाव से मिलने वाले फल जन्म कुण्डली के ग्रह-योग व महादशा- अन्तर्दशा पर काफी हद तक निर्भर करते हैं.

शनि को लेकर कई प्रकार की कथाएं एवं मान्यताएं ज्योतिष और हिन्दु शास्त्रों में है. सभी ने शनि को पीड़ादायक और कष्टकारी ग्रह के रूप में ही बताया है. इस धारणा के कारण शनि के प्रति लोगों के मन में एक भय बना रहता है परंतु वास्तव में शनि न्याय के ग्रह हैं और जो भी कुछ वह हमें देते हैं वह हमारे किए गर कर्मों का ही फल होता है. कुण्डली बारह भावों में शनि की उपस्थिति का आंकलन इस प्रकार समझा जा सकता है.

ज्योतिष के अनुसार शनि जब लग्न में होता है तब यह शारीरिक कष्ट देता है और अनावश्य धन हानि का कारण बनता है.

कुण्डली में शनि द्वितीय भाव में होता है उन्हें राजकीय क्षेत्र से पीड़ा या उनसे परेशानी होती है, इन्हें सरकार से दंड या यातना मिलने की भी संभावना रहती है.द्वितीय भाव का शनि कार्यों में बाधा और असफलता देता है.

शनि का तीसरे भाव में होना शुभ रहता है.इस भाव में शनि धन की स्थिति को मजबूत बनाता है और आर्थिक लाभ देता है. राजकीय पक्ष में सफलता एवं सरकार से सहयोग दिलाने में तीसरे भाव का शनि मददगार होता है. शनि इस भाव में अधर्म से बचाता है और धार्मिक विचारों का संचार करता है.

चतुर्थ भाव सुख का घर कहा जाता है. चतुर्थ भाव में जिनके शनि होता है उनके जीवन का सकुन छिन जाता है. धन का व्यय होता रहता है और व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है. शारीरिक रूप से क्षीण एवं बुरी आदतों की ओर झुकाव भी देता है.

पांचवें भाव में शनि के प्रभाव स्वरूप चोरी का डर, आर्थिक तंगी और रोग से की आशंका भी बनी रहती है. पांचवां भाव संतान का भाव होता है इस भाव में शनि के होने से संतान पक्ष से व्यक्ति को कष्ट होता है.

शनि का षष्टम भाव में होना धन लाभ दिलाता है एवं शत्रु पीड़ा से बचाव करता है. कुछ मामलों में काफी सुखद स्थिति देता है. सप्तम भाव में शनि का संबंध गृहस्थ जीवन की असफलता की ओर भी संकेत करता है.

अष्टम भाव का शनि एक अपवाद है जिसमें उसे शुभ कहा जाता है पर यह शुभता व्यक्ति की आयु के संदर्भ में ही होती है जिसमें उसे लम्बी आयु की प्राप्ति होती है परंतु साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्ट भी व्यक्ति को प्राप्त होता है. आर्थिक मामलों के लिए भी इस भाव का शनि अनुकूल नहीं होता.

नवम भाव में शनि की उपस्थिति से भाई बहनों को तकलीफ होती है. पिता से तनाव भी दे सकती है. दशम भाव में स्थित शनि आर्थिक पक्ष से कमज़ोर बनाता है. धन के लिए इस भाव का शनि शुभ फलदायी नहीं होता.

एकादश भाव का शनि धन की स्थिति को मजबूत करता है और जीवन में आर्थिक कष्ट महसूस नहीं होने देता. इस भाव का शनि मित्रों से सहयोग एवं लाभ दिलाने वाला होता है.

द्वादश भाव खर्च का घर होता है इस भाव में शनि की स्थिति का मतलब अत्यधिक व्यय होना है. द्वादश भाव का शनि खर्च तो करवाता है परंतु यह कार्यों में सफलता भी दिलाता है.