किसी भी जन्म कुण्डली के मजबूत आधार लग्न, सूर्य तथा चंद्रमा को माना जाता है. अगर ये तीनो कुण्डली में बली है तब जीवन की बहुत सी बाधाओ पर काबू पाया जा सकता है. लग्न से व्यक्ति का व्यक्तित्व, सूर्य से आत्मा तथा चंद्रमा से मन का आंकलन किया जाता

जन्म कुण्डली के आधार पर व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बताया जाता है. सभी का भविष्य अलग होता है. कोई सुखी तो कोई दुखी रहता है अथवा किसी को मिश्रित फल जीवन में मिलते हैं. किसी भी बात के होने में कुण्डली के योग महत्व रखते हैं

अच्छे स्वास्थ्य के लिए जन्म कुण्डली में बहुत सी बातो का आंकलन किया जाता है जो निम्नलिखित है :- सबसे पहले तो लग्न, लग्नेश का बली होना आवश्यक है. यदि अशुभ भाव का स्वामी जन्म लग्न में स्थित है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानियो से होकर गुजरना पड़

व्यवसाय के विषय में जानने के लिए दशम भाव का विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक माना गया है. इसी के द्वारा जातक के कार्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है. इसी के साथ यह भी जानना आवश्यक है कि कुण्डली में चंद्र, सूर्य और लग्न में से कौन सबसे अधिक

भचक्र में शून्य से 13 अंश 20 कला तक का विस्तार अश्विनी नक्षत्र के अधिकार में आता है. अश्चिनी नक्षत्र दो "अश्विन" से उत्पन्न हुआ नक्षत्र है. यह दो सितारो का समूह है. लेकिन कुछ अन्य मतानुसार अश्विनी नक्षत्र तीन सितारो का समूह है जिनकी आकृति

ज्योतिष शास्त्र व्यवसाय एवं नौकरी का चयन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. नौ ग्रह और बारह राशियां मिलकर जातक के कैरियर या व्यवसाय का निर्धारण करती हैं तथा उनसे संबंधित कामों को दर्शाती हैं. चंद्रमा जो मन का कारक है और हमारा मन ही

ज्योतिष में नौ ग्रहों का जिक्र किया गया है. इन ग्रहों में से कोई भी ग्रह शुभ अथवा अशुभ हो सकता है क्योकि हर लग्न के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रह भिन्न होते हैं. इस लेख में पाठको को सभी बारह लग्नों के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रहो के विषय में बताया

ज्योतिष में बहुत से अच्छे अथवा बुरे योगों का उल्लेख किया गया है. इन्हीं योगो में से एक योग कालसर्प योग भी है. इस योग के बारे में बहुत सी भ्रांतिया लोगो के मध्य फैली हुई है. किन्तु सही क्या है यह कहना बहुत ही कठिन काम है. कई ज्योतिषियो का

जन्म कुण्डली में सप्तम भाव से विवाह का विश्लेषण किया जाता है. विवाह कब होगा, कैसा होगा आदि सभी बाते सप्तम भाव, सप्तमेश तथा इनसे संबंध बनाने वाले ग्रहों के आधार पर देखी जाती हैं. सबसे पहले तो सप्तम से संबंधित दशा आने पर विवाह की संभावना

ज्योतिष की मान्यता है कि प्राणपद लग्न कर्क राशि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवृति होती है. चन्द्रमा अथवा राहु पांचवे घर में स्थित हो अथवा उनमें दृष्टि सम्बन्ध बन रहे हों तो व्यक्ति उदासीन एवं निराशावादी होता है. चन्द्रमा और

लग्न में सूर्य | Sun in Ascendant लाल किताब के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के लग्न में ही अशुभ सूर्य स्थित है तब सार्वजनिक स्थलों पर प्याऊ या नल लगाना चाहिए. इससे सूर्य को बल मिलेगा. सूर्य को शुभ बनाने के लिए धार्मिक स्थान पर अनाज, नारियल,

भ्रामरी दशा योगिनि दशा में चौथे स्थान पर आती है. यह मंगल की दशा होती है. मंगल से प्रभावित इस दशा में व्यक्ति के भीतर पराक्रम एवं परिश्रम द्वारा समाज में अपना स्थान अर्जित करने की कोशिश में प्रयासरत रहता है. यह दशा व्यक्ति को भटकाव की

प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है. सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है. यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है. जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक

आधुनिक समय में इस भाग दौड़ और चमक की दुनिया में हर कोई व्यक्ति अमीर बनना चाहता है. इसके लिए वह ना जाने कैसे कैसे हथकंडे भी आजमाने की कोशिश करता है. कई बार तो मनुष्य अपनी अंदर केभले मानुष को रौंदते हुए आगे बढ़ता है. यदि कोई व्यक्ति अपनी

धान्या दशा योगिनी दशाओं में तीसरे स्थान पर आती है. इसका संबंध गुरू से है और इसके स्वामी भी वही हैं. इसकी समय अवधि 3 वर्ष की मानी गई है. धान्या संबंध गुरू से होने के कारण यह दशा शुभता देने वाली कही गई है. धान्या दशा का संबंध शुभ ग्रह से

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।1। दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।2। राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्। येन सर्वानरीन् वत्स समरे

योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में पिंगला दशा आती है. पिंगला दशा की समय अवधि 2 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को पिंगला दशा फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को कुछ हद तक संघर्ष की स्थिति का सामना करना

राहु केतु का फलकथन छाया ग्रह के रूप में किया जाता है. राहु एवं केतु आकाशीय पिंड नहीं हैं यह चंद्रमा तथा क्रांतिवृत्त के कटाव बिंदु हैं. पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र में राहु को नार्थ नोड ऑफ द मून कहा जाता है. केतु की स्थिति इस बिंदु के ठीक

नैसर्गिक रूप से कुछ ग्रहों को शुभ और कुछ को अशुभ कहा गया है. लेकिन इनका शुभ या अशुभ फल जन्म समय पर निर्धारित होता है. इसी के आधार पर फल का निर्धारण होता है परंतु साथ ही साथ भिन्न भिन्न लग्नों के लिए अलग-अलग फल निर्धारित होते हैं. भिन्न -

योगिनी दशाओं में मंगला नामक योगिनी दशा सर्वप्रथम होती है. इस दशा की समय अवधि 1 वर्ष की मानी गई है. इस दशा में चंद्रमा की भूमिका होती है यही इस दशा का स्वामित्व रखते हैं. यह शुभ ग्रह की दशा होने के कारण मन में शीतलता व सकून का भाव लेकर आती