कुण्डली में सूर्य गोचर में कैसा फल प्रदान करेंगे इस विषय के बारे में समझने के लिए यह समझना होगा की गोचर में सूर्य कुण्डली के सभी भावों में अलग- अलग फल देते हैं. जन्म कुण्डली में चंद्रमा जिस भाव में स्थित होता है, उस भाव को लग्न मानकर गोचर
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चिकित्सा ज्योतिष में हम जन्म कुण्डली का अध्ययन तो करते ही है साथ ही वर्ग कुण्डलियाँ भी बहुत महत्व रखती हैं. कई बार जन्म कुण्डली में स्वास्थ्य के नजरिये से कोई परेशानी दिखाई नहीं देती है लेकिन जब हम वर्ग कुण्डली को देखते हैं तब उसमें बहुत
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पराशर होरा शास्त्र में महर्षि पराशर जी कहते हैं कि विभिन्न लग्नों के लिए तात्कालिक शुभ और अशुभ ग्रह होते हैं जिनके द्वारा फलित को समझने में आसानी होती है. यह कई बार देखने में आता है कि ग्रह किसी विशेष लग्न के लिए शुभ या अशुभ फल देने वाला
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कुण्डली का सप्तम भाव विवाह का प्रमुख स्थान होता है. यदि आपकी कुण्डली में सप्तम भाव या सप्तमेश का संबंध लग्न या लग्नेश, पंचम भाव या पंचमेश और नवम भाव या नवमेश से नहीं बनता है तब प्रेम संबंध विवाह में नहीं बदल पाते हैं. जन्म कुण्डली में कई
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वैदिक ज्योतिष में मेडिकल ज्योतिष का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान माना गया है. इसके द्वारा व्यक्ति की जन्म कुण्डली से उसके स्वास्थ्य का आंकलन बेहतर तरीके से किया जा सकता है. कई बार चिकित्सक जातक की बीमारी को ढूंढ ही नहीं पाते हैं, ऎसे में एक
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नक्षत्रों द्वारा गोचर के महत्व को समझने में सहायता मिलती है. अष्टकवर्ग में इनका उपयोग करके फलित के संदर्भ को जाना जा सकता है. नक्षत्रों को क्रमश: जन्म, सम्पत, विपत, क्षेम, प्रत्येरि, साधक, वध, मित्र और अति मित्र के रूप में नौ वर्गों में
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सर्वाष्टक बनाने के लिए आप प्रस्तारक वर्ग न बनाना चाहें तो यहां दि गई विधि से आप आसानी से सर्वाष्टक बना सकते हैं. कभी कभी किसी विशेष कार्य के लिए केवल सर्वाष्टकवर्ग की ही आवश्यकता होती है. इसलिए ऎसे में भिन्नाष्टक को बनाए बिना भी इस सारणी
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अष्टकवर्ग कुण्डली बनाने के लिए आठ वर्ग कुण्डलियां बनाई जाती हैं. जिसमें सभी सात ग्रह होते हैं और लग्न होता है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले ग्रहों का प्रस्तारक वर्ग बनाया जाता है. जिसमें सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और इन
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अष्टकवर्ग के नियमों के अनुसार हर ग्रह के भिन्नाष्टक में दोनों शोधनों त्रिकोण शोधन और एकाधिपत्य शोधन एवं मंडल शोधन को करने के बाद शोध्य पिण्ड की गणना करनी पड़ती है. ग्रहों के शोध्य पिण्ड निकालने के लिए प्रत्येक ग्रह के भिन्नाष्टकवर्ग में
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जन्म कुण्डली में दूसरे भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में बैठे हुए ग्रहों के कारकों को समझना आना चाहिए तभी उनके फलों को समझना आवश्यक होगा. ग्रह अपने कारक तत्व के अनुसार फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस
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जिस प्रकार लग्न व चंद्रमा से ग्रहों के द्वादशभाव शुभाशुभ फल बताए गए हैं उसी प्रकार अन्य ग्रहों से भी भावों के शुभाशुभ फल कहे गए हैं इसलिए सूर्य व अन्य ग्रह तथा लग्न द्वारा इन आठों के क्रम से अशुभ स्थान को बिन्दुरूप से और शुभ भाव को रेखा
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ज्योतिष हो, हस्तरेखा हो, अंकशास्त्र हो या फिर अन्य विद्या हो, सभी में ग्रहों की भूंमिका ही मुख्य मानी गई है. ग्रह मनुष्य जीवन पर प्रत्यक्ष रुप से अपना प्रभाव डालते हैं. व्यक्ति का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है लेकिन कई बार परिस्थितियाँ
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जन्म कुण्डली में किसी भी घटनाओं को अध्ययन करने के संदर्भ में प्रत्येक भाव का आंकलन किया जाता है. कुण्डली से संबंधित फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने
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अष्टकवर्ग में राहु-केतु को छोड़कर सभी सातों ग्रह और लग्न का उपयोग किया जाता है. अष्टकवर्ग में एक नियम सदैव लागू होता है कि कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि तथा स्वराशि में स्थित होने पर भी तब तक पूर्णरूप से शुभ फल नही दे पाता जब तक कि उसे अपने
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ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और योग के निर्माण से प्रेम संबंधों के विषय में भी जाना जाता है. रिश्तों की मजबूती तथा स्थिरता को समझने में ज्योतिष एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कुण्डली में प्रेम संबंधों को देखने के लिए भाव एवं ग्रहों की दशा
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ग्रह सदैव चलायमान रहते हैं और इस कारण सौरमण्डल में इनकी स्थिति निरंतर बदलती रहती है. ग्रहों कि यही चलायमान स्थिति गोचर कहलाती है. अष्टकवर्ग पद्धति गोचर अध्ययन की विभिन्न पद्धतियों में से एक है. इसके ज्ञान के लिए सर्वप्रथम ग्रहों की गति को
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अष्टकवर्ग की पद्धति प्राचीन काल से ही ज्योतिषशास्त्र में अपनी एक सशक्त भूमिका दर्शाती आई है. इस विद्या के नियमों को समझने से पूर्व हमें यह जानने की आवश्यकता है कि हम इसमें उपयुक्त होने वाले शब्दों को समझें तभी हम इसके उपयोग को उचित प्रकार
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अष्टक वर्ग भावों और ग्रहों के बल को जानने की एक विधि है. यह एक गणितिय संरचना है जिसमें ग्रहों को अंक प्राप्त होते हैं और उनका बलाबल निकलता है. अष्टकवर्ग का शाब्दिक अर्थ आठ से होता है जिसमें लग्न एवं सात ग्रहों का समावेश होता है. इसके
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अष्टक वर्ग में ग्रहों के अच्छे फलों की प्राप्ति में यह अंक बहुत निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और आने वाले गोचर के निष्पादन हेतु प्रक्रिया में सहायक होते हैं. समस्त ग्रह 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर कमजोर मान लिए जाते हैं. इसी के साथ
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अष्टकवर्ग के द्वारा हम बहुत सी बातों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं. उसके बिन्दुओ से हमें व्यक्ति के जीवन के सुख व दुख के बारे में पता चलता है. जीवन का कौन सा काल खण्ड शुभ रहेगा और कौन सा काल खण्ड अशुभ रहेगा आदि बातो की जानकारी हमें