अष्टम भाव आयु भाव है इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है. आयु का निर्धारण करने के लिए इस भाव को विशेष महत्ता दी जाती है. इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है. उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान, पदच्युति, शोक, ऋण, मृत्यु और इसके कारण है. इस भाव से व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटें देखी जाती है. आयु भाव होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के दीर्घायु और अल्पायु का विचार किया जाता है.

अष्टम भाव आयु को दर्शाता है यह भाव क्रिया भाव भी है. इसे रंध्र अर्थात छिद्र भी कहते हैं क्योंकि यहा जो भी कुछ प्रवेश करता है वह रहस्यमय हो जाता है. जो वस्तु रहस्य में होती है वह परेशानी व चिंता का कारण स्वत: ही बन जाती है. बली अष्टम भाव लम्बी आयु को दर्शाता है. साधारणत: अष्टम भाव में कोई ग्रह नही हो तो अच्छा रहता है. यदि कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठ जाये चाहे वह शुभ हो या अशुभ  कुछ न कुछ बुरे फल तो अवश्य ही देता है.

ग्रह कैसे फल देगा यह तो ग्रह के बल के आधार पर ही निर्भर करता है. इस अवस्था में अगर किसी ग्रह को आठवें भाव में देखा जाए तो वह उस भाव का स्वामी ही हो. कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठता है तो अपने शुभ स्वभाव को खो देता है. ऎसे में शनि को अपवाद रूप में आठवें भाव में शुभ माना गया है. क्योंकि वह आयु प्रदान करने में सहायक बनता है. अष्टमेश आठवें भाव की रक्षा करता है. अष्टमेश की मजबूती का निर्धारण उस पर पड़ने वाली दृष्टियों अथवा संबंधों के द्वारा होता है.

कुछ अन्य तथ्यों द्वारा देखा जाए तो अष्टमेश अचानक आने वाले प्रभाव दिखाता है. यह भाव जीवन में आने वाली रूकावटों से रूबरू कराता है. जहां - जहां अष्टमेश का प्रभाव पड़ता है उससे संबंधित अवरोध जीवन में दिखाई पड़ते हैं. अष्टमेश जिस भाव में स्थित होता है उस भाव के फल अचानक दिखाई देते हैं और वह अचानक से मिलने वाले फलों को प्रदान करता है.

व्यक्ति अपने जीवन में जो उपहार देता है, उन सभी की व्याख्या यह भाव करता है. इस भाव से व्यक्ति के द्वारा कमाई, गुप्त धन-सम्पति, विदेश यात्रा, रहस्यवाद, स्त्रियों के लिए मांगल्यस्थान, दुर्घटनाएं, देरी खिन्नता, निराशा, हानि, रुकावटें, तीव्र, मानसिक चिन्ता, दुष्टता, गूढ विज्ञान, गुप्त सम्बन्ध, रहस्य का भाव देखा जा सकता है.

अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है. आयु के लिए इस भाव से शनि का विचार किया जाता है.  अष्टम भाव से स्थूल रुप में मुख्य रुप में आयु का विचार किया जाता है. अष्टम भाव सूक्ष्म रुप में जीवन के क्षेत्र की बाधाएं देखी जाती है. अष्टमेश व नवमेश का परिवर्तन योग बन रहा हों, तो व्यक्ति पिता की पैतृक संपति प्राप्त करता है. अष्टमेश व दशमेश आपस में परिवर्तन योग बना रहा हों, तो व्यक्ति को कार्यों में बाधा, धोखा प्राप्त हो सकता है. उसे जीवन में उत्तार-चढाव का सामना करना पडता है.