केतु की अन्य ग्रहों के साथ संबंधों पर एक नजर

जब बात होती है केतु की तो यह एक काफी संदेह और चिंता को दर्शाता है. इस ग्रह का प्रभाव काफी विशेष है. ग्रहों की दिशा का प्रभाव कुछ मायनों में काफी विशेष होता है. किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की उपस्थिति अकेले हो या फिर अन्य ग्रहों के साथ यह बेहद विशेष होती है. जन्म कुंडली में केतु पिछले जन्मों के कर्म ऋणों के लिए जिम्मेदार माना जाने वाला ग्रह है, यह ग्रह पिछले जन्मों को इंगित करता है, हमने पिछले जन्मों में क्या किया था, वह सभी कुछ इस जन्म में हम देख सकते हैं. कुंडली में केतु का शुभ और मजबूत होना पूर्व जन्मों के कर्मों की शुभता को दर्शाने वाला होता है. 

केतु के साथ सूर्य का संबंध 

केतु के साथ सूर्य का योग होने पर यह स्थिति शुभता में कमी का कारण बनती है. केतु और सूर्य का एक साथ होना ग्रहण का असर दिखाने वाला समय होता है. इसके अंशात्मक योग में नजदीकी होने से यह परेशानी दे सकता है. इन दोनों के सकारात्मक असर के रुप में कुछ लौकिक क्षमताएं और दर्शन पर भी व्यक्ति की अच्छी पकड़ हो सकती है.  यदि केतु और सूर्य के बीच का संबंध बहुत करीब का है तो नुकसान पहुंचा सकता है, इस कारण से बचपन में नींद में चलने की बीमारी या बुरे सपने परेशान कर सकते हैं. 

केतु के साथ चंद्रमा का संबंध 

केतु और चंद्रमा का एक साथ होना थोड.अ परेशानी को दिखाता है. यह बहुत अच्छी स्थिति नही होती है. केतु और चंद्रमा के कारण कमजोर और अत्यधिक विचारों का दबाव व्यक्ति पर बना रह सकता है. यह दोनों युति योग में खराब हों तो मनोरोग, पागलपन तक दे सकता है. पैनिक अटैक, सिज़ोफ्रेनिया और नसों से जुड़े रोग भी इसके कारण परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति गुढ़ विषयों को लेकर काफी सजग रहता है. रहस्यात्मक चीजों की ओर रुझान रहता है. 

केतु के साथ मंगल का संबंध है

मंगल के साथ केतु का प्रभाव कठोरता की अधिकता को दिखाता है. युद्ध, आक्रामकता और ताकत का प्रदर्शन कर सकता है. ,व्यक्ति के कई शत्रु हो सकते हैं, वह निरंकुश हो सकता है. अपनी इच्छा और अपनी राय को दूसरों पर थोप सकता था, और हिंसा में लिप्त रह सकता है. भाई बंधुओं के साथ संबंध परेशानी से जूझ सकते हैं. 

केतु के साथ बुध का संबंध

बुध ज्ञान, मन और वाणी है  अब केतु जब बुध के साथ युति में होता है तो व्यक्ति को चतुर और यहाँ तक कि धूर्त भी बना सकता है. बुध के साथ केतु अधिक गूढ़ मन प्रदान करता है. व्यक्ति अपनी भाषा का दुरुपयोग कर सकता था. गलत मार्ग की ओर भी व्यक्ति का झुकाव हो सकता है. अगर बुध और केतु पिड़ा में होंगे तो यह बोलने में व्यवधान देगा. व्यक्ति की बौद्धिकता भ्रमित होगी. मजबूत केतु और बुध का एक साथ होना एक प्रतिभाशाली गुण प्रदान कर सकता है, अपनी सोच से ही वह वैज्ञानिक अनुसंधान कर सकता है 

केतु के साथ बृहस्पति का संबंध   

केतु के साथ गुरु का योग होना एक बेहतरीन स्थिति का निर्माता होता है. यह योग आध्यात्मिक ज्ञान को ऊंचाईयां प्रदान करने वाला होता है केतु-बृहस्पति की युति होती है, तो यह एक व्यक्ति को बड़ी मात्रा, किसी चीज से जोड़ सकती है. उसमें अज्ञानता की अवस्था के चलते व्यक्ति कुछ चीजों का बहुत अधिक शौकिन हो सकता है. मिठाई का शौकीन हो सकता है, स्वादिष्ट भोजन का आदी हो सकता है. बृहस्पति भाग्य, धन को दर्शाता है केतु के कारव वह इन के प्रति अधिक लालसा को रख सकता है. एक शुभ रुप में उच्चतम, सकारात्मक अभिव्यक्ति में, यह संबंध ज्ञान देता है, और आध्यात्मिक ज्ञान, केतु आध्यात्मिक भाग को मजबूत करेगा और भौतिकवाद को दूर करेगा.

केतु के साथ शुक्र का संबंध  

केतु के साथ शुक्र का संबंध कुछ अच्छे और कुछ भौतिकतावादी सुखों को दर्शाने वाला योग होता है. लेकिन इसके अधिक प्रभाव के चलते सौंदर्य, भौतिक वस्तुओं, सुखों और कामुक सुखों से व्यक्ति कुछ अधिक जुड़ सकता है. व्यक्ति को प्रेम जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. कल्पनात्मक रुप से व्यक्ति अधिक रुमानियत में रहता है. यदि यह युति योग खराब रुप में बन रहा है तो इसके कारण व्यक्ति साथी के प्रति गलत व्यवहार भी कर सकता है नशे इत्यादि चीजों के कारण रोग ग्रस्त हो सकता है. 

केतु के साथ शनि का संबंध 

केतु के साथ शनि का होना एक मुश्किल और नकारात्मक प्रभाव दिखाने वाला योग अधिक होता है. इन दोनों का साथ में होना व्यक्ति को गंभीर अवसाद से ग्रस्त,  उदास और आलस्य से प्रभावित कर सकता है. अपनी भावनाओं को खुलकर न व्यक्त कर पाने के कारण व्यक्ति अधिक चिंताग्रस्त दिखाई देता है. इस योग के खराब रुप से बने होने के कारण जीवन में सब कुछ निरर्थक और अर्थहीन सा प्रतीत होता है. व्यक्ति अपनी मनो-भावनात्मक स्थिति के कारण निराशावादी भी दिखाई दे सकता है. आध्यात्मिक रुप से इस योग का प्रभाव काफी अच्छा मिलता है. व्यक्ति गुढ़ताओं के कारण एक बेहतरीन खोजकर्ता भी बन सकता है. 

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राहु का मीन लग्न के 12 भावों पर प्रभाव जानें अपनी कुंडली से

राहु का असर मीन लग्न में होना एक बेहद गंभीर एवं तेजी से होने वाले बदलावों का प्रतिनिधित्व करता है. राहु की स्थिति व्यक्ति को उन चीजों से जोड़ती है जो सीमाओं से परे की बात करती है और बृहस्पति के स्वामित्व की राशि मीन व्यक्ति को कल्पनाओं एवं चिंतन का नय स्तर देने वाली होती है. अब इस स्थिति में जब दोनों का योग होगा तब अवश्य ही खोजी रुझान अधिक होगा ओर व्यक्ति अपने आस पास की चीजों को लेकर कुछ ज्यादा ही बेचैन और उत्साहित दिखाई देगा.

मीन लग्न के लिए राहु सभी भावों में प्रभाव 

मीन राशि को आध्यात्मिकता से संबंधित माना गया है, मीन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वामी ग्रह गुरु होता है जो स्वयं में आध्यात्मिकता की श्रेष्ठा से जुड़ा है. राहु को भी आध्यात्मिकता प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है. अब इन परिस्थितियों में राहु का मीन राशि में होना कई मायनों से काफी विशेष हो जाता है. 

मीन लग्न के लिए पहले भाव में राहु

मीन लग्न में अगर राहु बैठा हुआ है तो व्यक्ति का स्वभाव काफी महत्वपुर्ण हो जाता है. इस के प्रभाव से उसमें हर चीज को जानने की इच्छा भी रहती है. मीन लग्न के पहले भाव में राहु का असर व्यक्ति को शारीरिक रूप से कुछ कोमलता दे सकता है. जातक के भीतर चीजों को ग्रहण करने की अच्छी क्षमता भी हो सकती है. व्यक्ति अपने करीबी व्यक्तियों से कुछ अलग भी हो सकता है. अपने जीवन में भौतिक इच्छाओं को लेकर वह बहुत अधिक उत्साहित भी रहता है और आध्यात्मिक आचरण में उसकी प्रवृत्ति भी बहुत होती है. 

मीन लग्न के द्वितीय भाव में राहु

मीन लग्न के दूसरे भाव में राहु का होना व्यक्ति को कुछ तेज तर्रा बनाता है. यहां होने पर व्यक्ति अपनी योजनाओं और चतुराई के बल पर दूसरों पर अपना अधिक असर डालने वाला होता है. कुछ नई बातों पर उसकी पकड़ अधिक तेज होती है. कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आर्थिक क्षेत्र पर अपव्यय अधिक बना रहता है. परिवार से लाभ कम मिलता है. 

मीन लग्न के तृतीय भाव में राहु

मीन लग्न के तीसरे घर में बैठा राहु व्यक्ति को कलात्मक क्षेत्र से अच्छा लाभ दिला सकता है. अचानक से धन की हानि भी होती है. राहु का प्रभाव व्यक्ति को बुद्धिमान और हमेशा सतर्क रहने में सहायता करता है.  व्यवसाय में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति साहसी और प्रभावशाली होता है. 

मीन लग्न के चतुर्थ भाव में राहु 

मीन लग्न के लिए चतुर्थ भाव में राहु होने पर व्यक्ति साहसी और प्रभावशाली होता है लेकिन अपनों के साथ उसका सहयोग कमजोर अधिक रहता है. छोटे भाई-बहनों के साथ विरोध का सामना करना पड़ता है. सफलता पाने के लिए सभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति अपनी संपत्ति को लेकर चिंतित रहता है.

मीन लग्न के पंचम भाव में राहु

मीन लग्न के पंचम भाव में राहु का होना व्यक्ति को कई मामलों में काम करने वाला बनाता है. भूमि और संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए उसे काफी परिश्रम करना पड़ता है. किसी संपत्ति से अप्रत्याशित तरीके से लाभ प्राप्त कर पाता है. शेयर मार्किट में शामिल हो सकता है. प्रेम संबंधों में धोखा अधिक मिलता है.  भाई-बहनों से सुख नहीं मिल पाता. व्यक्ति विदेश यात्रा करता है. शारीरिक रूप से कमजोर होता है.  

मीन लग्न के छठे भाव में राहु

मीन लग्न के छठे भाव में राहु के का होना व्यक्ति को साहसी, निडर बनाता है. प्रभावशाली होकर दूसरों पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता है. अपने शत्रुओं को परास्त करने में वह कुशल होता है. व्यर्थ के विवाद जीवन में बने रहते हैं. रोगों को होने की संभावनानी रहती है लेकिन लापवाही से अधिक परेशानी झेल सकता है. 

मीन लग्न के सातवें भाव में राहु

मीन लग्न के सातवें भाव में राहु का होना व्यक्ति को कुछ कठोर और स्वार्थी बना सकता है. राहु के कारण व्यक्ति सफलता और अच्छा मुनाफा पाता है. चतुराई से काम निकलवाने में निपुण होता है. धैर्य को नहीं जल्दी से खो सकता है.अपने व्यय पर नियंत्रण खो देता है.

मीन लग्न के आठवें भाव में राहु 

मीन लग्न के आठवें भाव में राहु के साथ व्यक्ति आलसी हो सकता है वाणी में कठोरता हो सकती है तथा झूठ बोलने की प्रवृति विकसित होती है. तंत्र जैसे कार्यों में रुझान अधिक रह सकता है.  अपने व्यवसाय में कुछ नए तरीकों का प्रयोग करते हुए आगे बढ़ता है. शत्रुओं का असर जीवन में उथल पुथल का कारण बनता है. व्यक्ति दुसरों पर 

मीन लग्न के नवम भाव में राहु

मीन लग्न के लिए जातक नवम भाव में राहु के साथ अशुभ होता है. जातक अपने भाग्य को लेकर चिंतित रहता है. मीन लग्न के नवम भाव में राहु के साथ जातक भाग्यशाली बनने की कोशिश करता है. जातक बहुत अधिक बोलता है. जातक अस्वस्थ किन्तु साहसी होता है. धन कमाने के लिए जातक अनेक योजनाओं का प्रयोग करता है. कभी-कभी इन्हें अचानक धन की प्राप्ति होती है. जातक अशांत एवं व्यवहारकुशल होता है. जातक अपने बच्चों से प्यार करता है और खुश महसूस करता है.

मीन लग्न के दशम भाव में राहु 

मीन लग्न के लिए दशम भाव में राहु वाला व्यक्ति चतुर होता है. अपने काम करने और दूसरों से आगे निकने की प्रतिभा उसमें बहुत अच्छी हो सकती है. तकनीकी कार्यों में अच्छी पकड़ होती है. संघर्ष रहता है लेकिन सफलता भी व्यक्ति को अवश्य प्राप्त होती है. सरकारी पक्ष की ओर से अटकाव परेशानी दे सकते हैं और कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. अपने भौतिक जीवन की प्रगति के लिए वह सदैव आगे रहता है. 

अधिक निर्भर दिखाई दे सकता है. गलत या शार्टकट तरीकों से लाभ अर्जित करने की प्रवृत्ति होती है. 

मीन लग्न के ग्यारहवें भाव में राहु 

मीन लग्न के एकादश भाव में राहु का असर व्यक्ति को मेहनती, सावधान और सतर्क बनाता है. व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है. अच्छे सुख एवं अधिक धन पाने की कोशिश करता है. राहु का प्रभाव व्यक्ति को बुद्धिमान और साहसी भी बनाता है. अचानक धन की प्राप्ति का योग भी फलित होता है. उच्च शिक्षा प्राप्त होती है और अच्छी रणनीतियों के द्वारा सफलता पाता है. 

राहु बारहवें भाव मीन लग्न में

मीन लग्न के बारहवें भाव में बैठा राहु खर्चों की अधिकता देता है. यह व्यक्ति को दान धर्म के कार्यों से जोड़ता है. धार्मिक यात्राएं दे सकता है आश्रम का संपर्क करा सकता है. विदेश में लाभ और निवास मिलता है. विदेश यात्रा करने का मौका भी मिलता है. शत्रुओं को परास्त करता है और अचानक धन प्राप्त करने में भी राहु सहायता करता है. कर्ज की स्थिति जीवन पर असर डालती है और सेहत को लेकर परेशानी अधिक हो सकती है. 

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श्रापित योग का कुंडली के हर भाव पर क्या पड़ता है असर

ज्योतिष के कुछ खराब योगों में श्रापित दोष का विशेष महत्व होता है. श्रापित योग का असर किसी व्यक्ति के पिछले जन्मों का प्रभाव दिखाता है, इसे एक अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. यह एक भाव में शनि और राहु के मिलन के साथ एक व्यक्ति की कुंडली में बनता होता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि राहु पर शनि का अंशात्मक योग का प्रभाव विशेष होता है. व्यक्ति के पूर्व में गलत कार्यों से उत्पन्न इस दोष का कारण बन सकता है. श्रापित दोष का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह सकारात्मक और  शुभ योगों के अच्छे परिणामों को कमजोर कर सकता है.

श्रापित योग और पूर्व जन्मों का प्रभाव 

श्रापित का अर्थ है, जो पिछले जन्म में अपने गलत कामों के कारण शापित हो. श्रापित दोष तब बनता है जब शनि और राहु एक ही भाव में मिल जाते हैं. यह हानिकारक दोष है जो काम को जीवन के क्षेत्र में लगभग हर चीज को प्रभावित कर सकता है. घटनाओं का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिल पाता है. महादशाओं के सकारात्मक प्रभावों को भी कमजोर करने की शक्ति रखता है.

शनि और राहु का संबंध होने पर यह योग बनता है, अब प्रश्न उठता है कि बनने वाले इस योग का क्या होता है, तो आइए बताते हैं अलग-अलग भावों में बनने वाले इस योग के फल:-

श्रापित कुंडली का पहले भाव पर प्रभाव 

लग्न में श्रापित योग की युति हो तो ऐसे व्यक्ति पर तांत्रिक क्रियाओं का प्रभाव अधिक होता है. जीवन में मनसिक रुप से व्यक्ति अधिक तनाव झेल सकता है. व्यक्ति हमेशा चिंतित रहता है और नकारात्मक विचार उसके मन में सबसे पहले आते हैं. स्वास्थ्य को लेकर चिंता रहती है. जीवन में कोई न कोई रोग लगातार बना रह सकता है.  

श्रापित कुंडली का दूसरे भाव पर प्रभाव 

दूसरे भाव में श्रापित योग की युति हो तो व्यक्ति के घर के लोग उसके शत्रु बने रहते हैं. अपने परिवार के साथ अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है.  वाणी में कुछ दोष भी उत्पन्न हो सकता है. धन के संचय में कठिनाई होती है. जुआ इत्यादि जैसे कार्यों से धन की हानि होती है. व्यक्ति मादक या तामसिक पदार्थ के सेवन से प्रभावित रहती है. 

श्रापित कुंडली का तीसरे भाव पर प्रभाव 

तीसरे भाव में श्रापित योग की युति हो तो व्यक्ति अपने काम को लेकर भ्रमित रह सकता है. अपने भाई बंधुओं के साथ उसका तनाव अधिक रह सकता है. छोटा भाई नहीं होता है या छोटी बहनों को किसी प्रकार की तकलीफ हो सकती है. जीवन में उतार-चढ़ाव अधिक रह सकते हैं. परिश्रम का उचित लाभ नहीं मिल पाता है. धार्मिक यात्राएं अधिक रहती हैं. 

श्रापित कुंडली का चतुर्थ भाव पर प्रभाव 

चतुर्थ भाव में श्रापित योग की युति सुख को खराब करने वाली होती है. चौथा भाव भूमि, मकान, माता और सुख का भाव होता है तो ऐसी स्थिति में यहां के लाभ मिल नहीं मिल पाता है. माता का सुख कमजोर मिलता है.  और उनके घर में नकारात्मकता आती है. वास्तु दोष भी प्रभवैत करने वाला होता है. लोगों को अपने घर का सुख मुश्किल से ही मिल पाता है. अपने घर से दूर जाने का योग भी अधिक बना रह सकता है. 

श्रापित कुंडली का पंचम भाव पर प्रभाव 

पंचम भाव में श्रापित योग की युति होने के कारण व्यक्ति के मन में नकारात्मक भाव अधिक रह सकते हैं. बुद्धि गलत चीजों की ओर अधिक आकर्षित होती है. विचार कम नहीं रहते हैं. शिक्षा भी कठिन परिस्थितियों से पूरी होती है. संतान के सुख को पाने में देरी एवं कष्ट अधिक रह सकता है. स्वास्थ्य को लेकर भी परेशानी अधिक रह सकती है. 

श्रापित कुंडली का छठे भाव पर प्रभाव 

छठे भाव में श्रापित योग की युति होने के कारण व्यक्ति शत्रुओं की अधिकता झेल सकता है. छठा भाव रोग, शत्रु और कर्ज का होता है. इस कारण से ये बातें जीवन पर असर डाल सकती हैं.  रोग इत्यादि से परेशानी अधिक लगी रह सकती है. जुए और सट्टे में अधिक मन भी लग सकता है. नशे इत्यादि के कारण धन अपव्यय अधिक रहता है. हृदय रोग, रक्त-जनित विकार, दुर्घटना और विवाद के कारण शरीर के किसी भी हिस्से में कमजोरी होने की संभावना होती है.  

श्रापित कुंडली का नवम भाव पर प्रभाव 

सप्तम भाव में श्रापित योग की युति होने पर वैवाहिक सुख कमजोर रहता है. जीवन में रिश्तों को लेकर अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. सप्तम भाव से रोजगार, जीवन साथी, दाम्पत्य जीवन, मित्र, साझेदारी आदि का योग होता है. इस दोष के कारण व्यक्ति को अपने मित्रों और साझेदारों से धोखा मिलने की संभावना बनती है. दांपत्य जीवन के मामलों में अस्थिरता बनी रहती है. 

श्रापित कुंडली का अष्टम भाव पर प्रभाव 

अष्टम भाव में इस दोष के बनने से व्यक्ति अपने जीवन का सुख भोग नहीं पाता है. पूर्व कर्मों के कारण चिंताएं अधिक देखने को मिलती है. आठवें घर से ससुराल पक्ष , आयु, मृत्यु, रहस्यमय कार्य, गूढ़ विद्या, जीवनसाथी के सुख का विचार किया जाता है. इस स्थिति में यदि अष्टम भाव में श्रापित योग की युति हो , तो वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति बनी रहती है. व्यक्तियों को जीवन में कई बार सर्जरी भी करानी पड़ सकती है. ऐसे व्यक्तियों को पेट और मूत्र संबंधी विकार भी होते हैं. 

श्रापित कुंडली का नवम भाव पर प्रभाव 

नवम भाव में इस दोष के कारण व्यक्ति धर्म के विपरीत आचरण करने वाला हो सकता है. भाग्य में निरंतर उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. पिता या वरिष्ठ व्यक्ति से साथ किसी न किसी प्रकार की परेशानी हो सकती है. व्यक्ति को ठिन संघर्ष के बाद सफलता मिलती है.

श्रापित कुंडली का दशम भाव पर प्रभाव 

दशम भाव में श्रापित योग की युति के कारण व्यक्ति को अपने कार्य क्षेत्र में चुनौतियों. इस का असर गृहस्थ सुख में कुछ कमी दे सकता है. माता-पिता को कष्ट हो सकता है. व्यवसाय में निरंतर उतार-चढ़ाव बना रहता है. साथ ही धन प्राप्ति के अच्छे योग भी मिलने.

श्रापित कुंडली का एकादश भाव पर प्रभाव 

एकादश भाव को लाभ भाव भी कहा जाता है. यहां आर्थिक स्थिति को ये प्रभावित करने वाला योग होगा. महत्वाकांक्षाएं भी अच्छी होंगी. एकादश भाव में क्रूरतम ग्रह अच्छे परिणाम देते हैं जिसके कारण व्यक्ति के पास कुछ लाभ की प्राप्ति अचानक हो सकती है. संतान सुख को लेकर चिंता अधिक रह सकती है. 

श्रापित कुंडली का द्वादश भाव पर प्रभाव 

बारहवें भाव में श्रापित योग की युति हो तो व्यक्ति विदेश में रह सकता है. व्यक्ति के अनैतिक संबंध होने की संभावना अधिक होती है. व्यक्तियों के घर के सुख में कुछ कमी रहती है और ऐसे व्यक्ति धोखा खाते हैं जीवन में कई बार किसी न किसी असाध्य रोग से ग्रसित हो सकते हैं.  आर्थिक रुप से धन संचय की स्थिति कमजोर रह सकती है. 

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गुरु चांडाल योग योग का कुंडली के 12 भाव में प्रभाव

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, राहु या केतु जैसे पाप ग्रहों के साथ बृहस्पति की युति को चांडाल दोष कही जाती है.  इस दोष को गुरु चांडाल दोष के नाम से भी जाना जाता है. बृहस्पति ग्रह को गुरु के रूप में जाना जाता है और इस योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. केतु को म्लेच्छ के रुप में जाना जाता है इस कारण यह योग दोष का निर्माण करता है. यह ज्ञान का नीच संगति के साथ योग बनाने जैसा होता है, लेकिन इस योग के अपने अलग प्रभाव भी होते हैम जिसके चलते ये अपने अच्छे और खराब दोनों तरह के परिणाम दे सकता है. कुंडली के कुछ स्थानों पर इन दोनों का योग अच्छे परिणाम भी देता है. 

संस्कृत ग्रह में बृहस्पति को गुरु जाना जाता है और चांडाल का अर्थ राक्षस होता है. इसलिए इसे गुरु चांडाल दोष कहा जाता है. यह दोष कुंडली में बृहस्पति ग्रह के कारण बनता है. केतु के साथ बृहस्पति का मिलन शुभ माना जाता है और इसे “गणेश योग” के रूप में भी जाना जाता है.बृहस्पति के साथ पाप ग्रहों की युति व्यक्ति को बदनाम कर सकती है, गलत  कार्यों में शामिल कर सकती है. जातक संकोची स्वभाव का हो सकता है. उसे जीवन काल के दौरान विभिन्न चरणों में विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यदि बृहस्पति जन्म कुंडली के कुछ शुभ भावों में होकर नकारात्मक होता है. करियर, विवाह, संतान, प्रेम संबंधों और अन्य अनेक मामले में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

विभिन्न घरों में गुरु चांडाल दोष के परिणाम

पहला भाव 

प्रथम भाव या लग्न में गुरु चांडाल योग की उपस्थिति व्यक्ति की छवि पर असर डालने वाली होती है. व्यक्ति चतुराई निपुण भी होता है. व्यक्तित्व पर एक प्रश्न चिन्ह भी लग सकता है. कठोरता एवं अधिक गंभीर विचार भी हो सकते हैं.  समृद्धि के मामले में भाग्यशाली होता है. स्वभाव से कंजूस और अहंकारी हो सकता है. परंपराओं से हटकर काम करने में रुचि हो सकती है.

दूसरा घर

दूसरे भाव में गुरु के साथ राहु का योग होने पर व्यक्ति शक्तिशाली और कठोर भाषी हो सकता है.  बृहस्पति जातक को अमीर, समृद्ध बना सकता है.  कमजोर या पीड़ित बृहस्पति परिवार के सदस्यों के बीच विवाद लाएगा और धन हानि और जीवन तनावपूर्ण दे सकता है. इस कारण परिवार से दूरी का योग बनता है. दोष का असर व्यक्ति को संघर्ष के प्रति सजग बनाता है. 

तीसरा घर

तीसरे भाव में गुरु चंडाल का योग व्यक्ति को धन और संपत्ति के साथ भाग्यशाली बना सकता है. व्यक्ति कुछ स्वार्थी और लालची हो सकता है. अध्यात्म में रुचि कम या दूसरे धर्मों के प्रति आकर्षण अधिक हो सकता है. यात्राओं का लाभ मिलता है. भ्रमण के बहुत अवसर प्राप्त होते हैं. 

चतुर्थ भाव 

जन्म कुण्डली में चतुर्थ भाव में गुरु चांडाल दोष के कारण घर और संपत्ति की प्राप्ति होती है लेकिन विवाद भी होते हैं. सुख की कमी और मानसिक अशांति अधिक रह सकती है. दोष के कारण स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है. अपनों से दूरी अधिक रह सकती है. एक स्थान पर रुक पाना मुश्किल होता है.

पंचम भाव 

पंचम भाव में गुरु चांडाल दोष के बनने के कारण व्यक्ति को रिश्तों में धोखा झेलना पड़ सकता है. उसके जीवन में अपनों का सहयोग कम रहता है. शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों को पाता है. रिसर्च से जुड़े कामों को करने में व्यक्ति आगे रहता है. 

छठा भाव 

छठे भाव में गुरु चंडाल योग का प्रभाव होने से व्यक्ति को जीवन में कई अच्छी सफलताएं मिल पाती हैं. यदि पंचम भाव में बृहस्पति ग्रह शक्तिशाली हो तो बुद्धिमानी पूर्वक फैसलों से सफल होता है. शत्रुओं को हरा देने में सक्षम होता है. संतान के सुख की प्राप्ति होती है. सेहत पर असर पड़ता है लेकिन स्वास्थ्य सुधार जल्द होता है. 

सातवां भाव 

गुरु चंडाल दोष के कारण सातवां भाव पीड़ित होने पर पारिवारिक जीवन में परेशानी आ सकती है. अपने धर्म से विमुख दिखाई दे सकता है. चतित्र की बदनामी होने की संभावना होती है. अमीर और समृद्ध बनता है लेकिन वैवाहिक जीवन में उतार-चढा़व बने रह सकते हैं. 

अष्टम भाव 

अष्टम भाव में गुरु चांडाल दोष हो तो यह जीवन को खतरनाक बना सकता है. यदि ग्रहों का कोई अन्य शुभ प्रभाव न हो तो वैवाहिक जीवन में परेशानी अधिक हो सकती है. जीवन में दुर्घटना, चोट और सर्जरी होने की संभावना बढ़ जाती है. व्यक्ति का भाग्य जन्म स्थान से दूर होकर चमकता है. 

नवम भाव 

नवम भाव में इस दोष के बनने से व्यक्ति को धार्मिक क्षेत्र में भ्रमण का मौका मिलता है. अपनी परंपराओं में बदलाव लाने की कोशिश भी व्यक्ति की बनी रहती है. आर्थिक क्षेत्र में स्थिति सामनय रहती है. संस्थाओं से जुड़ कर लोक कल्याण के कार्य भी करता है. 

दशम भाव 

यहां गुरु चांडाल दोष का प्रभाव कुछ अच्छे प्रभाव भी दे सकता है. संपत्ति, करियर और व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है. व्यक्ति के नैतिक मूल्य कम हो सकते हैं. व्यक्ति अपनों के प्रति उदासीन रह सकता है.

ग्यारहवां भाव 

एकादश भाव में भाव में गुरु चांडाल दोष शुभ माना जाता है. व्यक्ति के पास विभिन्न स्रोतों से धन आगमन हो सकता है. सामाजिक रुप से विख्यात होता है. व्यक्तिगत प्रयास से बल्कि विरासत से भी धन का सृजन कर पाता है.

बारहवां भाव 

जातक अपने धर्म और जाति के प्रति अत्यंत आलोचनात्मक हो सकता है. परिवार के सदस्यों के खिलाफ जाने की संभावना अधिक रहती है. अपने विचारों पर दृढ़ रह कर दूसरों के साथ मतवभेद झेल सकता है. 

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केतु महादशा का सभी लग्नों पर प्रभाव

केतु को छाया ग्रह के रुप में जाना जाता है.  वैदिक ज्योतिष के अनुसार, केतु दक्षिण नोड है जिसे चंद्रमा के कटान बिंदू के रुप में भी जानते हैं. राहु अपने रहस्यमय और आक्रामक गुणों के लिए जाना जाता है. इसमें छिपे हुए गुण भी होते हैं जिनका जीवन पर गहरा असर पड़ता है. केतु की महादशा का काल क्रम जब किसी पर पड़ता है तो उस समय के दोरान व्यक्ति कई तरह के संघर्षों से हो कर गुजरता है ओर कई तरह की परिस्थितियों को झेलता है. केतु अलग-अलग लग्न के साथ अलग-अलग तरह से कार्य करता है. अपनी विशेष शक्तियों से व्यक्ति की विचारधारा को प्रभावित करता है. 

केतु को भी खराब ग्रह माना जाता है, लेकिन ज्योतिष में कोई ग्रह अच्छा या बुरा नहीं होता है. यह बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है जो ग्रह और उनकी महादशा के प्रभाव को निर्धारित करते हैं. इसलिए अगर आपकी कुंडली में केतु महादशा है तो इसके सकारात्मक या नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं. केतु एक ऐसा ग्रह है जो वैराग्य, ध्यान, आध्यात्मिकता, आत्मज्ञान, मोक्ष, आत्म-साक्षात्कार आदि का प्रतिनिधित्व करता है. क्योंकि यह शरीर का निचला भाग है, इसका मतलब है कि इसकी कोई आंख नहीं है और यही कारण है कि लोग सब कुछ होते हुए भी असंतुष्ट महसूस करते हैं. केतु महादशा की अवधि 7 वर्ष होती है. इस अवधि के दौरान, व्यक्ति भौतिकवादी दुनिया से अलगाव का अनुभव करता है. वह धन और परिवार में रुचि खो देता है लेकिन यह हर समय सच नहीं हो सकता क्योंकि ज्योतिष में कई अन्य कारक हैं जिनके आधार पर गणना की जाती है. व्यापक स्तर पर, वे सभी लोग जो कुंभ, मेष, कर्क और मकर लग्न में पैदा हुए हैं, उन्हें इस महादशा से लाभ मिल सकता है. 

आइए देखें कि केतु किस लग्न पर कैसे अपना असर डालता है. 

मेष लग्न के लिए केतु महादशा 

केतु की महादशा का प्रभाव मेष लग्न वालों को मिलेजुले रुप में देखने को मिल सकता है. इस राशि वालों को इस दशा के दोरान उत्साह एवं जुनून की प्राप्ति भी होती है. ऊर्जा से भरपुर रह सकते हैं. व्यक्ति लापरवाह होगा, कुछ अविश्वासी और असामाजिक हो सकते हैं, लेकिन बुद्धिमान अच्छा रहेगा. 

वृष लग्न के लिए केतु महादशा

वृष राशि वालों के लिए केतु महादशा का समय कुछ सकारात्मक हो सकता है. शुक्र ग्रह की मित्रता होने के कारण यह समय पिता के लिए लाभकारी हो सकता है. जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. केतु  ग्रह शुक्र के साथ अनुकूल दिखाई देता है लेकिन सफलता के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. केतु सफलता की गारंटी देता है लेकिन देरी की उम्मीद करता है. भले ही अच्छी आय हो लेकिन व्यय अधिक रहते हैं. 

मिथुन लग्न के लिए केतु महादशा 

मिथुन लग्न के लिए केतु महादशा बौद्धिक एवं मन को प्रभावित करने वाली होती है. पढ़ने में व्यक्ति आगे होगा लेकिन समझ में कमी रह सकती है. गुणों का अनुभव करेगा लेकिन फिर भी बेचैन और अशांत रह सकता है. यात्राओं की अधिकता मिल सकती है. केतु मनोरंजन और मीडिया के रोजगार के क्षेत्र में लाभ प्रदान करने में सहायक हो सकता है. कुछ क्षेत्रों में प्रसिद्ध और धनवान बना सकता है. मिथुन राशि का दोहरा स्वभाव केतु को कई विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है. केतु कई पेचीदगियां पैदा कर मन को भटका भी सकता है.

कर्क लग्न के लिए केतु महादशा 

कर्क लग्न के लिए केतु महा दशा का समय नई चीजों के आकर्षण और नवीनता की खोज में होगा. चंद्रमा की केतु से शत्रुता की स्थिति मानसिक बेचैनी का कारण बनती है व्यक्ति को जीवन में कठिनाइयों और अच्छे परिणामों की कमी का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति अवसाद, तनाव और हृदय की समस्याओं का अनुभव कर सकता है. सुख-शांति में कमी बनी रह सकती है. 

सिंह लग्न के लिए केतु महादशा 

सिंह लग्न के लिए केतु महादशा का प्रभाव व्यक्ति को शिक्षा के मामले में कुछ प्रतिकूल स्थिति को दिखा सकता है. केतु की उपस्थिति से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी हो सकती है. हृदय, रक्तचाप और अस्थमा से संबंधित रोग चिंता का कारण हो सकते हैं. सिंह के साथ केतु का शत्रु भाव होने से कई तरह की व्यर्थ बातें चिंता बढ़ा सकती हैं. केतु महादशा के दौरान गर्भावस्था में देरी या गर्भपात का सामना कर सकता  

कन्या लग्न के लिए केतु महादशा 

कन्या लग्न के लिए केतु महादशा का प्रभाव बौद्धिक होता है. व्यक्ति अधिक सामाजिक भी दिखाई देता है. आध्यात्मिक रुप से रुचि में वृद्धि देखने को मिलती है. कन्या में केतु अच्छे और अनुकूल परिणाम प्रदान करने में सहायक भी होता है. जीवन सहज और सुखी होता है. पर्याप्त आय होगी और परिश्रम द्वारा भाग्य निर्मित होता है.

तुला लग्न के लिए केतु महादशा

तुला लग्न के लिए केतु महादशा कुछ कमजोर रह सकती है. जीवन में इस दशा के दौरान कुछ प्रतिकूल स्थिति का भी सामना करना पड़ता है. सप्तम भाव में केतु की उपस्थिति वैवाहिक जीवन और साझेदारी में टकराव की संभावना को बढ़ाती है. इसके अलावा मानसिक रुप से बेचैनी की अधिकता रहती है. इच्छाओं का पूर्ण हो पाना मुश्किल होता है. विवाहेतर संबंधों का प्रभाव भी जीवन पर पड़ सकता है. 

वृश्चिक लग्न के लिए केतु महादशा 

वृश्चिक लग्न के लिए केतु महादशा का समय मिलेजुले परिणाम देता है. सेहत के मुद्दे इस दशा में अधिक परेशान कर सकते हैं. इस समय क्रोध की अधिकता एवं स्वभाव में कठोरता देखने को मिलती है. व्यक्ति को गुप्त विद्याओं की जानकारी भी इस दशा के दोरान हो सकती है. सेहत के लिहाज से आंतों की खराबी, हर्निया या कुछ जननांग संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं उभर सकती हैं. जीवन साथी को लेकर अलगाव एवं विवाद उभर सकता है. सामाजिक रुप से व्यक्ति अपना स्थान पाता है. 

धनु लग्न के लिए केतु महादशा

धनु लग्न के लिए केतु महा दशा व्यक्ति को आध्य्तामिक रुप से बदलाव देने वाली होती है. आर्थिक क्षेत्र में सहायता मिलती है. नवीन लोगों का संपर्क भी बढ़ता है. आर्थिक रूप से सुदृढ़ और स्थिर होने के मौके मिलते है. लेकिन केतु की उपस्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है जैसे दुर्घटनाओं, चोटों का शिकार हो सकते हैं. व्यक्ति को धार्मिक स्थलों की यात्रा करने और धार्मिक गतिविधियों में खुद को शामिल करने के पर्याप्त अवसर मिलते हैं. 

मकर लग्न के लिए केतु महादशा

मकर लगन के लिए केतु महादशा का प्रभाव व्यक्ति को गंभीर और कुछ धीमा बना सकता है. इस लग्न के स्वामी शनि की स्थिति भी दशा पर असर डालती है. व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है. यदि जन्म कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत है, तो यह सकारात्मक और लाभकारी तरीके से काम कर सकती है. भाग्यशाली और अवसरवादी भी बना सकती है. 

कुंभ लग्न के लिए केतु महादशा 

कुंभ लग्न वालों के लिए केतु महादशा का समय सामान्य रुप से काम करता है. कुछ मामलों में भाग्य का साथ मिल पाता है. आय के कई स्रोत मिल पाते हैं. कई स्थितियों में स्वयं को भाग्यशाली पाता है व्यक्ति. चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को संभालने में सक्षम होता है. कई बार नकारात्मक पक्ष रुप से व्यक्ति साजिशों में फंस सकता है. 

मीन  लग्न के लिए केतु महादशा 

मीन लग्न के लिए केतु महादशा का समय मिश्रित परिणाम वाला होता है. यहां व्यक्ति को भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही रुपों में फल देखने को मिल सकते हैं. व्यक्ति के कर्मों का प्रभाव भी इस दशा में प्राप्त होता है. मानसिक रुप से व्यक्ति काफी अधिक विचारों में घिरा देखा जा सकता है. स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग रहने की आवश्यकता होती है. 

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सूर्य महादशा में क्या शनि दशा से होती है पीड़ा

सूर्य महादशा जीवन का एक ऎसा समय जो परिश्रम, उत्साह एवं जोश से भरा समय, जब व्यक्ति के भीतर बेहद तीव्र इच्छा शक्ति भी मौजूद होती है. यह समय व्यक्ति को कम समय के लिए मिलता है लेकिन इस समय पर यदि दशा शुभ हो तो इस समय का बेहद उत्तम समय प्राप्त होता है.  इस महादशा को राजा की दशा के रुप में भी  देखा जाता है. लेकिन इस दशा का असर यदि कुंडली में अच्छा होगा तो इसमें सुख वैभव की कमी नहीं रहेगी और विशेष रुप से सरकार का बेहद लाभ मिलेगा पद प्राप्ति होगी लेकिन अगर दशा कमजोर होगी तो उसका परिणाम व्यक्ति को अधिक भदौड़ एवं मेहनत की अधिकता देगा साथ में शरीर पर कई तरह के प्रभाव भी देखने को मिलेंगे जो रोग को प्रभावित करने वाले होंगे. 

सूर्य महादशा में शनि दशा का प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण होता है और इसके कई दूरगामी परिणाम झेलने पड़ते हैं. शनि का गहरा असर व्यक्ति अपने जीवन के अनेक पहलूओं पर देख सकता है. इस समय के दौरान व्यक्ति कई बार अपने आप ओर दूसरों के साथ ज्यादा तालमेल नहीं बिठ अपाता है. सूर्य की ऊर्जा एवं उसके गुणों का प्रभाव भी व्यक्ति को अधिक देखने को मिलता है. कई बार वह जीवन में उन चीजों को भी इग्नोर कर देता है जो उसके जीवन के लिए बेहद जरुरी होती हैं. अब अगर इस समय शनि भी दशा में शामिल हो जाए तो उसके कारण व्यक्ति कई बार परेशानियों में उलझता सा चला जाता है. 

सूर्य महादशा में शनि अंतर्दशा का सामाजिक एवं व्यक्तिगत प्रभाव

सूर्य महादशा में व्यक्ति को सामाजिक क्षेत्र में काफी कुछ प्रभाव देखने को मिलते हैं. व्यक्ति अपने आस पास के लोगों के साथ उसका गहरा रिश्ता जुड़ता है वही कुछ मामलों में व्यक्ति अपने आप को प्रतिस्पर्धा में अच्छे स्थान पर देखता है. शनि कड़ी मेहनत, दीर्घायु, कर्म, अनुशासन, सीमा और महत्वाकांक्षा, देरी और धैर्य से जुड़ा होने के कारण ये सभी असर जीवन पर डालता है. 

सूर्य महादशा में जब शनि अंतरदशा का समय आता है तो अब समय होता चीजों के सुधार का. पुरानी गलतियों को न दोहराने का ओर बेहतर विकल्प की खोज का.  शनि का आगमन होने के साथ व्यक्ति सामाजिक रुप में कार्यकुशल बनता है. लोगों के साथ मेल जोल तो बढ़ता है लेकिन साथ ही मतभेद भी इस समय पर अधिक बढ़े हुए दिखाई देते हैं. 

यह उस अवधि में सबसे अधिक अवसर लाने के लिए जाता है. शनि सभी ग्रहों का न्यायाधीश है और अन्याय को बर्दाश्त नहीं करता है और सूर्य अपने सिद्धांतों को स्थापित करने के लिए व्यक्ति को ऊर्जा देता है. सूर्य में शनि दशा की पूरी अवधि के दौरान कैरियर और व्यक्तिगत जीवन में बहुत सारी चुनौतियां का समय आता है. 

परिवार एवं संबंधों पर इस दशा का प्रभाव 

यह अवधि आपके जीवनसाथी के साथ आपके संबंध को कुछ मायनों में बदल कर रख सकती है. बच्चे और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते अन्य कामों में अटकाव झेलना पड़ता है. करियर में कई बाधाएं ला सकते हैं. आप अपने परिवार और भाई -बहनों के साथ कुछ मुद्दों का सामना कर सकते हैं. अपनों के साथ विवादों, ईर्ष्या से भी पीड़ित हो सकते हैं. गुस्से और आक्रामकता के कारण अपने दोस्तों और परिवार के साथ रिश्ते में तनाव की संभावना बढ़ जाती है. यह दशा यदि अशुभ प्रभाव में है तो जीवन में कई उतार -चढ़ाव ला सकती है. .

समाज में एक अच्छी छवि अर्जित कर सकते हैं लेकिन परिवार में बहुत अधिक सहयोग न मिल पाए. सूर्य के साथ शनि का संबंध नवम भाव से जुड़ रहा हो तो उसके कारण धर्मार्थ से जुड़े कार्य इस समय पर अधिक कर सकते हैं. कुशलता से सभी बाधाओं और चुनौतियों को संभाल सकते हैं. कुछ पदोन्नति प्राप्त कर सकते हैं इसके अलावा कैरियर और प्रगति के साथ खुद को बेहतर स्थान पर खड़ा पा सकते हैं. इस अवधि के दौरान दान और सामाजिक कार्य में लिप्त हो सकते हैं.

सूर्य में शनि दशा का पाप प्रभावित होना

बाधाएं मिल सकती हैं, और  लक्ष्यों को प्राप्त करने में देरी हो सकती है. अपने पिता के साथ कुछ तर्क और संघर्ष हो सकता है. अधिकार के साथ समस्याएं भी बढ़ती हैं. असुरक्षित महसूस कर सकते हैं. अपने परिवार के सदस्यों से झूठे आरोप प्रत्यारोप झेलने पड़ सकते है,  शत्रु जीवन में बाधाएं ला सकते हैं और नीचे खींचने की कोशिश कर सकते हैं. यह अवधि स्वास्थ्य के लिए कष्ट ला सकती है. मानसिक तनाव. आप सिरदर्द, बुखार और दिल से संबंधित समस्याओं जैसी स्वास्थ्य बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. यह समय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.   व्यक्तिगत और पेशेवर मोर्चे पर समस्याओं के कारण बेचैनी, उदासीनता, मानसिक तनाव और अवसाद का अनुभव कर सकते हैं.व्यक्ति केला और मानसिक रूप से कमजोर महसूस कर सकता है. इस अवधि में आपके दुश्मन भी बढ़ सकते हैं, और वे आपको परेशान करने की कोशिश में तेजी दिखाते है. धन के उतार -चढ़ाव का अनुभव भी कर सकते हैं. 

सूर्य में शनि अंतर्दशा शुभ होने का प्रभाव 

ज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ाव होता है. नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं, साहस होता है और अपने दुश्मनों के खिलाफ लड़ने की शक्ति होती है. ज्ञान को विस्तार मिलता है. पारिवारिक जीवन में खुशी मिलती है. करियर को सही रास्ते पर पा सकते हैं और आध्यात्मिक गतिविधियों में खुद को शामिल पा सकते हैं. 

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मंगल का आर्द्रा नक्षत्र प्रवेश क्यों होता है विशेष

मंगल जब मिथुन राशि में होता है तब आर्द्रा में जाता है. 26 अगस्त 2024 को मंगल मिथुन में प्रवेश करेगा और तब आर्द्रा नक्षत्र में स्थान पाएगा.

मंगल का आर्द्रा नक्षत्र में जाना दो शक्तिशाली तत्वों का एक साथ होने का योग बनता है. आर्द्रा नक्षत्र में मौजूद होने के कारण मंगल व्यक्ति को कड़ी मेहनत करके लाभ प्राप्त करने की शक्ति, देता है. आर्द्रा नक्षत्र परिवर्तन और विनाश के लिए खड़ा है और मंगल यहां पर होने से इन गुणों को वृद्धि मिलती है. यह नक्षत्र अवचेतन में छुपी पिछले जीवन की कुछ अपूर्ण इच्छाओं को दर्शाता है. मंगल का होना उन चीजों की पूर्ति के लिए प्रयास को दर्शाता है.

आर्द्रा नक्षत्र राहु द्वारा शासित है, और मंगल के साथ इस का संबंध शत्रुतापूर्ण देखने को मिल सकता है. इसके देवता रुद्र हैं जो  मंगल के साथ सकारात्मक मेल का असर भी दिखाता है. इस नक्षत्र में भगवान रुद्र और शिव की विनाशकारी क्षमता भी होती है. इस नक्षत्र में मंगल का होना  भावनाओं को बढ़ाता है. इसमें मंगल का होना व्यक्ति के स्वभाव में तेजी से होने वाले बदलाव दिखा सकता है. व्यक्ति या तो बहुत खुश रहेगा या बहुत गुस्से में दिखाई दे सकता है. व्यक्ति को भावनाएं संतुलित करने में मुश्किल हो सकती है. बहुत खोजी और मेहनत करने की प्रवृत्ति भी इनमें होती है. अपने लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं. 

आर्द्रा नक्षत्र एक संवेदनशील नक्षत्र है जो संवेदनशीलता और भावना से जुड़ा है. नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति को सत्यवादी, दयालु और मजबूत संचार की कुशलता देता है. 

आर्द्रा नक्षत्र में मंगल का अंशात्मक प्रभाव 

आर्द्रा नक्षत्र मिथुन राशि में 6:40 – 20:00 तक रहता है, यहीं पर मंगल का प्रभाव इस पर पड़ता है. आर्द्रा नक्षत्र का अर्थ है नम या गीलापन, यह कई मायनों में कोमल, स्थिर, मजबूत,  बहुत त्याग करने वाले, व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन जीवन में  बीमारी, भय और क्रोध का शिकार भी अधिक होता है. 

आर्द्रा नक्षत्र में मंगल का होना व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने जैसा होता है. व्यक्ति अपने काम को परिश्रम से करता चीजों को एक जिम्मेदार तरीके से करता है. लोगों को अपनी बातों एवं कार्यों से मंत्र मुग्ध करने की क्षमता रखता है. व्यक्ति का अंतर्ज्ञान तेज होता है. एक अच्छे मनोवैज्ञानिक या फिर खोज करता के रुप में भी स्थान पाता है. दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ, वह एक सौहार्दपूर्ण तरीके से व्यवहार करने वाला होता है. अवसरों में आगे बढ़ना और लोगों के प्रति कृतज्ञ होने की सक्षमता भी उसमें होती है कई तरह के समाजिक कार्यों में भी शामिल रहता है. 

कार्यक्षेत्र एवं सफलता पर इसका असर 

आर्द्रा नक्षत्र में जब मंगल होता है तो व्यक्ति सामान्य ज्ञान की एक अच्छी समझ होती है. चीजों को प्राप्त करने की क्षमता होती है. उसकी याददाश्त अच्छी होती है. वह दयालु और शांतचित्त भी होता है लेकिन दबाव में विद्रोह के लिए आगे बढ़ता है. कठिनाइयों के समय भी वह अपनी सक्षमता बनाए रख सकता है. वह किसी एक प्रकार के काम से चिपके रहना पसंद नही करता है. एक साथ कई तरह के काम में निपुणता हासिल कर सकता है.  अपने सहकर्मियों की राय का सम्मान करता है, भले ही वे उससे सहमत न हो लेकिन ऊपरी तौर पर उन्हें ये जताता नहीं है.  काम के लिए घर से दूर, या शायद विदेशों में भी बस सकता है. 

पारिवारिक जीवन और स्वास्थ्य 

आर्द्रा नक्षत्र में मंगल का होना व्यक्ति को रिश्तों में उतार-चढ़ाव की स्थिति दिखाने वाला होता है. व्यक्ति अपने रिश्ते को लेकर असुरक्षित महसुस कर सकता है प्रेम में निराशा का भाव मिल सकता है व्यर्थ के मुद्दे परेशान लरने वाले होते हैं. वैवाहिक जीवन में कई परेशानियां आ सकती हैं. व्यक्ति स्वयं के कष्टों को दूसरों के सामने अधिक उजागर नहीं करता है. स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ बीमारियों से ग्रसित होने की संभावना रह सकती है. हृदय, रक्त विकार एवं दांत की समस्याओं से सावधान रहने की आवश्यकता होती है. 

आर्द्रा नक्षत्र में मंगल के प्रवेश का नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव

यदि मंगल आर्द्रा नक्षत्र में हो तो धन के लिए अधिक क्रियाशील रह सकता है. व्यवसाय में कुशल होता है, कानूनी मामलों में सफलता को पाता है.  आर्द्रा नक्षत्र में मंगल की उपस्थिति के कारण जातक सज्जन, धन से सुखी, समाज और  प्रतिष्ठित,  कुशल, एवं शास्त्रों का ज्ञाता भी बनाती है. लोग क्रय-विक्रय में तो निपुण होते हैं, व्यापार-व्यवसाय के विशेषज्ञ होते. प्रेम संबंधों की अधिकता देखने को मिल सकती है. 

आर्द्रा नक्षत्र के 1 पद में मंगल 

इस चरण में जातक अच्छा खाने वाला और पीने की चीजों का शौकीन होगा जिसके कारण कई बार ऐसे लोग शराब भी ले आते हैं. जातक बलवान, लड़ाई-झगड़ों में आगे, भाग्यवान, वाहनों का शौकीन आदि होता है. जातक अपने जीवन में एक पथ पर चलने वाला होता है.

आर्द्रा नक्षत्र के 2 पद में मंगल  

इस अवस्था में व्यक्ति दूसरों के धन पर अधिक नजर रख सकता है. कार्यों में कुछ कठोर हो सकता है. व्यर्थ के मुद्दों में वह फंस सकता है. आपसी सहमती की कमी उसके जीवन को परेशान कर सकती है. अभिमान एवं क्रोध के कारण मुश्किल स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. दूसरों में दोष देखता है, दूसरों को परेशान करता है, गुप्त रोगों से पीड़ित हो सकता है. प्रेम संबंधों में असंतुष्ट रहता है, विदेशी भूमी पर अच्छा लाभ पाता है. 

आर्द्रा नक्षत्र के 3 पद में मंगल का  

इस अवस्था में व्यक्ति अधिक क्रोधी हो सकता. अपने विपरित लिंग के लोगों के साथ मतभेद भी अधिक रह सकते हैं. बातूनी ज्यादा होता है, मेहनती होता है. सरकार के हित में कार्य करने के कारण जातक दूसरे देशों में रहता है.

आर्द्रा नक्षत्र के 4 पद में मंगल  

इस चरण में व्यक्ति स्नेही, अनुशासन प्रिय, मजबूत, बहादुर और शांत, लेकिन क्रोधी होता है. किसी भी विषय का अच्छा ज्ञाता हो सकता है. शास्त्र में उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है. मोटापे की समस्या परेशानी दे सकती है. स्वास्थ्य को लेकर अधिक सजग रहना होता है. आर्द्रा नक्षत्र में मंगल की उपस्थिति के कारण व्यक्ति अनुशासित होता है, अनुशासन की कमी देखकर परेशान होता है. बलवान, साहसी होता है 

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प्रेम और वैवाहिक संबंधों पर शुक्र राहु का योग

कुंडली में शुक्र और राहु ग्रहों की युति बहुत ही अलग प्रकार के फल देती है. इन दोनों को रिश्तों पर असर डालने वाला योग माना गया है. इन दोनों के कारण व्यक्ति के प्रेम संबंध और वैवाहिक जीवन के सुख पर भी असर देखने को मिलता है. दोनों का प्रभाव सबसे अधिक जीवन की भौतिकता एवं आनंद पर होता है. शुक्र और राहु दोनों भौतिकता के कारक हैं. शुक्र यानि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य और राहु उनके शिष्य हैं. दोनों ग्रह विलासिता से जुड़े हैं, दोनों का योग व्यक्तिगत सुख और विलासिता पर अधिक केन्द्रित भी दिखाई देता है. जीवन में प्रेम की अनुभूति शुक्र ग्रह से ही प्राप्त होती है जबकि राहु ग्रह इनका प्रयोग असंतुष्ट इच्छाओं के रुप में करता है. कुंडली में राहु शुक्र ग्रह के साथ मिलकर प्रसन्न होता है क्योंकि दोनों का स्वभाव कई मायनों में मेल खाता है. सुख भोग दोनों की प्रधानता है, जीवन में भोग विलास सुख समृद्धि सभी शुक्र ग्रह के अधीन है. इन दोनों ग्रहों का प्राथमिक रुप सुख भोगना है.

प्रेम और विवाह सुख पर राहु और शुक्र डालता है अपना प्रभाव 

जन्म कुंडली के जिस भी भाव में ये मौजूद होते हैं उस भाव के सुख पर अपना असर डालते हैं. इसके अलावा व्यक्ति के प्रेम जीवन के लिए भी ये युति योग बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. कुंडली में मौजूद ये दोनों ग्रह केन्द्र और त्रिकोण भाव में जब बैठते हैं तो उसके प्रभाव कुछ सकारात्मक रुप से देखने को मिल सकता है लेकिन जब यह त्रिक भावों में विराजमान होते हैं तो उसके कारण सुख की अनुभूति का स्वरुप खराब एवं अतृप्त इच्छाओं के द्वारा ही अधिक झलकता है. 

अगर जन्म कुंडली के पहले घर में राहु और शुक्र की का योग बन रहा है तो  युति बहुत लाभकारी होती है. यह योग व्यक्ति को रिश्तों में आगे रहने का उत्साह देता है. मिलनसार ओर प्रेम पूर्वक काम करने की कोशिश भी होती है. व्यक्ति अपने ज्ञान और विद्वता के बल पर दूसरों को अपने साथ कर लेने में योग्य होता है. राहु-शुक्र की युति में व्यक्ति कई बार कम उम्र में ही प्रेम के प्रति आस्कत दिखाई देने लगता है. अगर कोई अन्य खराब असर पड़ रहा हो तो ब्रेकअप भी जल्द होने की संभावना रह सकती है अथवा प्रेम विवाह के योग बनते हैं लेकिन तालमेल नहीं बन पाता है.

दूसरे भाव में शुक्र और राहु की युति योग क असर प्रेम के क्षेत्र में कई तरह के उतार-चढ़ाव देने वाला होता है. आय और धन का प्रतिनिधित्व करते हुए इस भाव में प्रेम से भी लाभ की इच्छा अधिक होती है. दूसरों की ओर से अच्छा सहयोग कम मिल पाता है. व्यक्ति रिश्तों में कई बार जोखिम अधिक उठाता है. अपने प्रेम के प्रति उसका भाव काफी अधिक जुनूनी हो सकता है. वह अपने रिश्तों पर अधिकार जताने वाला हो सकता है. 

तीसरे भाव में शुक्र और राहु की युति का योग प्रेम के संदर्भ में व्यक्ति को ठहराव कम दे पाता है. व्यक्ति में नकारात्मक आत्मविश्वास के चलते अपने रिश्तों पर अधिक भरोसा करके परेशानी को झेल सकता है. 

चतुर्थ भाव में शुक्र और राहु का योग होने के कारण व्यक्ति को प्रेम विवाह का सुख प्राप्त होता है. कुछ मामलों में वह इस योग के द्वारा अपनी परंपरा से हट कर विवाह बंधन को अपनाता है. परिवार में उसके रिश्ते अधिक मजबूत नहीं होते हैं लेकिन अपने प्रेम के प्रति समर्पण बहुत अधिक होता है. 

छठे भाव में राहु और शुक्र का योग होने से प्रेम संबंधों में तो जाते हैं लेकिन इसमें सफलता के लिए संघर्ष अधिक रहता है. व्यक्ति अपने रिश्ते में मानसिक रुप से असंतुष्ट ज्यादा रहता है. अपने वैवाहिक जीवन में उसे काफी उतार-चढ़ाव जेलने पड़ते हैं. 

पंचम भाव में शुक्र और राहु का योग व्यक्ति को एक से अधिक संबंध देने वाला होता है. इसका असर प्रेम विवाह की संभावना जो बढ़ता है. व्यक्ति बौद्धिक रुप से यौन संबंधों के प्रति भी आकर्षित होता है. 

सप्तम भाव में राहु और शुक्र का होना प्रेम विवाह की संभावना बनाता है. इस के प्रभाव द्वारा व्यक्ति अपने जीवन सतही के साथ प्रेम पूर्वक जीवन का आनंद लेता है. विवाहेत्तर संबंधों का प्रभाव भी इस युति योग में देखने को मिलता है. 

अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति का होना प्रेम जीवन में गुप्त संबंधों को दर्शाता है. जीवन साथी के साथ रिश्ते में अस्थिरता अधिक बनी रह सकती है. विवाह संबंधों में यह विच्छेद की स्थिति का कारण बन सकता है.  व्यक्ति बाहरी सुंदरता से अधिक आकर्षित हो सकता है. 

नवम भाव में राहु और शुक्र का योग प्रेम संबंधों के मामले में लव मैरिज क अयोग देता है. वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव अधिक रह सकते हैं. अपने धर्म से हटकर भी वह विवाह बंधन में शामिल हो सकता है. 

दशम भाव में राहु और शुक्र की युति का असर व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए व्यक्ति का साथ देता है. अपने प्रेम संबंधों में वह एक साथी के रुप में सहयोग एवं प्रेम पूर्ण साथी को पाने में सफल रहता है. 

एकादश भाव में राहु और शुक्र की युति से आर्थिक स्थिति अच्छी बनी रहती है. इस दौरान अच्छी सुख-सुविधा रहती है. यह संयोजन बड़ी वित्तीय सफलता लाता है. थोड़ी सी मेहनत से धन कमाया जा सकता है.

बारहवें भाव में राहु और शुक्र का योग प्रेम जीवन के लिए अनुकूलता की कमी का कारण बन सकता है. इसका असर प्रेम संबंधों में धोखा मिलने की स्थिति को दिखाता है. रिश्ते में दूरी और अनैतिक संबंधों को दर्शाने वाला होता है. 

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जानिए आपके लग्न पर बुध की महादशा का प्रभाव

सभी 12 लग्नों के लिए बुध की दशा अच्छे और बुरे हर प्रकार के असर दिखाती है, लेकिन इस अच्छे और खराब की स्थिति का प्रभाव किस तरह से मिलागा उसका संबंध बुध की लग्न के साथ शुभता और अशुभता पर निर्भर करता है. ग्रहों में बुध ग्रह का महत्व बहुत व्यापक है ये अभिव्यक्ति को बल देता है.ज्योतिषियों के अनुसार बुध ग्रह की महादशा के कारण व्यक्ति के जीवन में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं एक शुभ बुध प्रसिद्धि दिलाता है तो अशुभ बुध कई तरह की परेशानियां दे सकता है. अगर कुंडली में बुध मजबूत हो तो जातक को सुखों की सौगात मिलती है. बुध कहने को एक छोटा ग्रह है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में बुध को एक महत्वपूर्ण ग्रह के रूप में गिना जाता है. बुध ठीक हो तो सब कुछ शुद्ध रहता है अर्थात सब सही ही रहता है, लेकिन यदि यह बुध खराब हो, नीच का हो या वक्री हो जाए तो अशुद्ध करता है. 

मेष लग्न के लिए बुध की महादशा

मेष लग्न के लिए बुध का असर अधिक शुभ नहीं माना जाता है. यह एक खराब ग्रह का प्रभाव अधिक दिखाता है. बुध की महादशा के कारण नौकरी में काफी परेशानी आ सकती है, नौकरी छूटने का भी डर रहता है. महादशा के दौरान व्यक्ति का जीवन कर्ज और बीमारियों में घिर जाता है. इस समय परिश्रम अधिक होता है लेकिन लाभ कम ही रहता है. 

वृष लग्न के लिए बुध की महादशा

वृष लग्न के लिए बुध की महादशा अनुकूल मानी जाती है. बुध इस लग्न के लिए धनेश बनता है ओर साथ ही जीवन में कई तरह के लाभ दिलाता है. इस दशा के आने पर व्यक्ति अपनी प्रतिभा के द्वारा मान सम्मान पाता है. जीवन सुखमय व्यतीत होता है. छोटी-मोटी परेशानियों के बावजूद अपने जीवन में रिश्तों को बेहतर रुप से निभाता है. कई मायनों में ये समय व्यक्ति के लिए प्रगति के नए दरवाजे खुलने जैसा होता है. 

मिथुन लग्न के लिए बुध महादशा

मिथुन लग्न के लिए बुध की महादशा अनुकूल होती है. बुध का लग्नेश होना ही व्यक्ति को सुख प्रदान करने वाला होता है. संघर्ष की वृद्धि रहती है लेकिन अच्छा लाभ मिलता है. जीवन में सकारात्मक कोशिशें भी आगे बढ़ने के अच्छे अवसर देती हैं. इस दौरान नौकरी में दिक्कतें आ सकती हैं. छोटी-मोटी बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है त्वचा से संबंधित रोग परेशान करते हैं. 

कर्क लग्न के लिए बुध की महादशा

कर्क राशि के लिए बुध की महादशा स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाली होती है. इस महादशा के दौरान यात्राएं परेशानी को अधिक दर्शाती है. चरित्र और बुद्धि में बदलाव आने लगती है. जीवन में विदेश यात्रा अधिक असफलता के अवसर बढ़ जाते हैं.

सिंह लग्न के लिए बुध की महादशा

सिंह राशि में बुध की महादशा के कारण धन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति अपने लिए बेहतर मौके पाने में आगे रहता है. रिश्तों को लेकर व्यक्ति को कुछ बेहतर विकल्प भी मिलते हैं. इस दौरान व्यक्ति को कई तरह के विचारों का सामना करता है. 

कन्या लग्न के लिए बुध की महादशा

कन्या लग्न के लिए बुध की महादशा अच्छा फल देने वाली होती है. व्यक्ति स्वास्थ्य को लेकर थोड़ा चिंता में रह सकता है लेकिन जीवन में सफलता के लिए प्रयास कामयाब होंगे. व्यक्ति को लेखन में सफलता के मौके मिलते हैं. करियर में आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं लोगों के साथ संपर्क बढ़ता है. 

तुला लग्न के लिए बुध की महादशा

तुला लग्न के लिए बुध की महादशा का प्रभाव व्यक्ति को भाग्य के द्वारा आगे बढ़ने का अवसर देता है. व्यक्ति का मन चंचल अधिक रहता है. इस दौरान व्यक्ति का चरित्र कमजोर हो जाता है और चरित्र पर दाग लग जाता है.

वृश्चिक लग्न के लिए बुध की महादशा

वृश्चिक लग्न के लिए बुध की महादशा का असर व्यक्ति को योग्यता अनुरुप ही सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है. व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त होती है लेकिन उसका मन बेचैन अधिक रहता है. बुध की महादशा के कारण त्वचा या वाणी संबंधी विकार अधिक परेशान कर सकते हैं. इस अवधि में इनके करियर में कोई सफलता आसानी से नहीं मिल पाती है.

धनु लग्न के लिए बुध महादशा

धनु राशि में बुध की महादशा का असर व्यक्ति को वरिष्ठ लोगों के माध्यम से सफलता का अवसर देने वाला होता है. इस समय व्यक्ति लोगों के समक्ष अपनी बौद्धिकता का बेहतर प्रदर्शन करने में सफल होता है. वैवाहिक जीवन का आरंभ हो सकता है, प्रेम संबंधों में साथी का सहयोग कम मिल पाता है. अपने लोगों के सहयोग को पाने में सक्षम होता है. व्यक्ति संघर्ष के द्वारा सफलता को पाने में सक्षम होता है. 

मकर लग्न के लिए बुध की महादशा

मकर लग्न के लिए बुध की महादशा का समय मिलेजुले प्रभाव देने वाला होता है. इस दशा के समय व्यक्ति काम काज को लेकर बहुत अधिक उत्साहित रहता है. प्रेम जीवन में साथी को सफलता मिलती है. यह समय संघर्ष का भी होता है, बुध यदि कमजोर हो तो उसका प्रभाव व्यक्ति को कर्ज की ओर ले जा सकता है. इस दौरान धन की समस्या भी परेशानी दे सकती है. नौकरी में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इस महादशा के कारण भाग्य को लेकर संघर्ष अधिक रहता है. 

कुंभ लग्न के लिए बुध की महादशा

कुंभ लग्न के लिए बुध की महादशा के कारण व्यक्ति कलात्मक एवं दक्षता के बल पर आगे बढ़ता है. मानसिक रुप से अस्थिरता का प्रभाव व्यक्ति को अधिक परेशानी दे सकता है. संतान पक्ष से समस्या उत्पन्न हो सकती है. इस दौरान जातक को कोई भी निर्णय लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

मीन लग्न के लिए बुध की महादशा

मीन लग्न में बुध की महादशा के कारण व्यक्ति को कई मायनों में बेहतर परिणाम देती है. व्यक्ति अपने घर परिवार के लिए बहुत अधिक सोच रखता है. जीवन में साथी एवं मित्रों का सुख कमजोर रह सकता है, स्वास्थ्य संबंधी परेशानी अधिक रह सकती है. वैवाहिक जीवन को लेकर अधिक उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. संपत्ति का नुकसान होता है.

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ज्योतिष से जाने आंखों से संबंधित रोग का कारण

नेत्र संबंधित रोग के लिए कौन से ग्रह और योग बनते हैं कारक 

चिकित्सा ज्योतिष में नेत्र रोग से संबंधित कई तरह के योग मिलते हैं जो आंखों की बीमारियों के होने का संकेत देते दिखाई देते हैं. ग्रह इस तथ्य को उजागर कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति किसी नेत्र रोग से पीड़ित है या नहीं. जन्म कुंडली में निर्मित विभिन्न प्रकार के योगों से आंखों की रोशनी के प्रभावित होने की स्थिति का निर्माण होता है. इसमें दो ग्रहों का उल्लेख हमें काफी विशेष रुप से पौराणिक ग्रंथों में भी प्राप्त होता है जिन्हें नेत्र ज्योति का आधार माना गया है. इन ग्रहों में सूर्य एवं शुक्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. आंखों की रोशनी के लिए इन ग्रहों की शुभता काफी सकारात्मक होती है. यदि यह जन्म कुंडली में कमजोर होते हैं पाप प्रभाव में होते हैम तब नेत्र रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है. 

ग्रहों का नेत्र रोग पर प्रभाव 

सूर्य और चंद्रमा दोनों ग्रह प्रकाश उत्सर्जक ग्रह हैं. दायीं आंख के लिए सूर्य ग्रह की स्थिति को देखा जाता है और बायीं आंख के लिए चंद्रमा को देखा जाता है. यह दो ग्रह आंखों पर गहरा असर डालते हैं. सूर्य को नेत्र और शुक्र को दृष्टि से संबंधित माना गया है. इन दोनों का प्रभाव आंखों की रोशनी को तेज या कमजोर करने वाला माना गया है. इन ग्रहों की शुभता एवं अशुभता के बल को देख कर आंखों की रोशनी ओर आंखों के रोग का पता चला पाना संभव होता है. 

जन्म कुंडली में नेत्र संबंधित भाव 

जन्म कुंडली में दूसरा भाव और बारहवां भाव आंखों को दर्शाता है. इस भाव और इस भाव के अधिपति का नेत्र ज्योति पर काफी नजदीकी संबंध होता है. इन भावों की शुभता व्यक्ति को अच्छी रोशनी प्रदान करने वाली होती है. अगर ये भाव पाप प्रभावित होते हैं तो नेत्र रोग होने की आशंका भी बढ़ सकती है. जो भाव जितना प्रभावित होता है उस आंख का कमजोर होना उतना ही प्रबल भी होता चला जाता है. यदि द्वितीय भाव में सूर्य और द्वादश भाव में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को आंखों से संबंधित कोई परेशानी होने की प्रबल संभावना होती है. शुभ शुक्र ग्रह अच्छी स्थित है तो ऐसे जातक की आंखें बेहद खूबसूरत होंगी और उसे कभी भी आंखों से संबंधित कोई रोग नहीं होगा. 

आंखों से संबंधित ज्योतिषीय योग 

आंखों के होने वाले रोगों के लिए कई प्रकार के ज्योतिष सुत्र अपना असर दिखाते हैं. अगर हम कुंडली के दूसरे भाव का योग देखें तो वहां यदि मंगल केतु का प्रभव हो सिंह राशि हो तो उसके कारण व्यक्ति को आंखों में चोट लगने के कारण नेत्र का रोग परेशान कर सकता है. 

यदि द्वितीय भाव का स्वामी कमजोर स्थिति में है या यदि वह त्रिक भाव छठे भाव, आठवें भाव अथवा व्यय भाव के साथ स्थित है तो शुक्र अपना शुभ फल देने में सक्षम नहीं होगा.

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में शनि ग्रह स्थित है तो ऐसे व्यक्ति को आंखों से संबंधित गंभीर समस्या हो सकती है. ऐसे व्यक्ति की नजर वाकई कमजोर होती है.

दूसरे भाव में स्थित ग्रह राहु और केतु भी किसी की दृष्टि को कमजोर कर सकते हैं और दुर्घटनाएं कर सकते हैं जिससे व्यक्ति की आंखें प्रभावित हो सकती हैं.

यदि मंगल ग्रह दूसरे भाव में स्थित है तो यह अशुभ है क्योंकि यह आंखों से संबंधित गंभीर समस्या दे सकता है. दूसरे भाव में मंगल की स्थिति से जातक को आंखों से संबंधित सर्जरी भी हो सकती है या उसे जीवन भर के लिए चश्मा लग सकता है.

सूर्य और बुध की स्थिति द्वादश भाव में हो और बुध वक्री अवस्था में हो तो उसके कारण भैंगापन की शिकायत हो सकती है. 

शुक्र और सूर्य का योग मकर राशि में और यहां केतु का प्रभाव भी हो तो इसके कारण व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यदि चंद्रमा, शनि, शुक्र, मंगल या सूर्य ग्रह दूसरे और बारहवें भाव में बुरी तरह से स्थित हों, तो यह आंखों की समस्याओं को जन्म देता है.सूर्य की कमजोर स्थिति से आंखों से संबंधित विकार देने वाली होती है.कुंडली में चंद्रमा की कमजोर स्थिति कमजोर दृष्टि जैसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती है. 

यदि दूसरा और 12वां भाव पाप भावों से प्रभावित है तो इसका मतलब है कि आपकी नजर कमजोर है. राहु और केतु की दूसरे भाव में स्थिति भी आंखों की समस्याओं का एक प्रमुख कारण बनती है. 

दूसरे भाव में सूर्य का होना खरब स्थिति में हो तो यह आंखों के रोग दे सकता है. सूर्य को पित्त ग्रह के रूप में जाना जाता है यदि यह दूसरे भाव में खराब स्थिति में है, तो जातक को आंखों की गंभीर समस्या और यहां तक कि अंधापन भी महसूस होता है.

बारहवें भाव में सूर्य भी आंखों की कमजोरी को दिखाता है. यदि सूर्य पाप भावों के साथ हो तो निश्चित रूप से आपको नेत्र संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.

दूसरे भाव में मंगल एक अशुभ घटना है जहां जातक को आंखों की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पाप भाव में मंगल की स्थिति का अर्थ है कि जातक को आजीवन चश्मा पहनना पड़ता है.

बारहवें भाव में पीड़त मंगल भी आंखों की समस्याओं का संकेत देता है व्यक्ति को आंखों में किसी प्रकार की कमजोरी महसूस हो सकती है या उस की आंख पर किसी प्रकार के चोट का निशान भी हो सकता है. 

दूसरे भाव में शनि अर्थात आंखों की कुछ गंभीर समस्याओं को जन्म देता है. शनि के साथ केतु, या मंगल का होना नेत्र ज्योति के लिए अनुकूलता की कमी को दर्शाने वाला होता है. यह किसी दुर्घटना के कारण आंखों की परेशानी की ओर भी इशारा करता है, व्यक्ति को चश्मा पहनना पड़ता है.

बारहवें भाव में स्थित शनि फिर से इसी बात का संकेत देता है कि व्यक्ति की आंखों की रोशनी पर कोई गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है

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