चंद्रमा के आत्मकारक होने का प्रभाव

जैमिनी ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व और प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि चंद्रमा मन का कारक है और बिना दिमाग के कोई भी व्यक्ति चंद्रमा के बिना वही काम नहीं कर सकता ज्योतिष कुछ भी नहीं है. चंद्रमा के आत्मकारक होने की स्थिति को अत्यंत शुभ रुप में जाना जाता है यदि कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ है तब यह आत्मकारक भूमिका में व्यक्ति को उच्च बल प्रदान करने में सहायक बनता है. 

चंद्रमा के आत्मकारक होने पर व्यक्ति की कार्यकुशलता के साथ साथ उसकी शक्ति भी अच्छी होती है. जैमिनी ज्योतिष में चंद्रमा को रानी का स्थान प्राप्त है. यह जीवन के पोषण के लिए अत्यंत आवश्यक ग्रह भी है. इसका असर इसी दशा में बहुत अच्छे से दिखाई देता है. चंद्रमा की दशा इसकी कर्क राशि से संबंधित होती है. कर्क राशि की दशा जब आत्मकारक रुप में व्यक्ति को मिलती है तो वह समय जीवन में नए अनुभवों को देने वाला होता है. आत्मकारक रुप में चंद्रमा शुभ ओर अशुभ हर फल उस रुप में देता है जब कुंडली में वह अन्य प्रकार की शुभता एवं अशुभता से प्रभावित होता है. यदि कर्क राशि एक स्वतंत्र रुप से मजबूती में होती है तथा उस पर अन्य खराब असर नहीं होता है तब ऎसे में आत्मकारक के प्रखर गुण भी मिलते हैं. यह स्थिति जीवन में माता का भरपूर स्नेह दे सकती है और व्यक्ति को मानसिक रुप से स्वस्थ एवं संतुष्ट बना सकती है. 

आत्मकारक चंद्रमा का आत्मिक एवं मानसिक प्रभाव 

चंद्रमा के आत्म कारक होने पर यह विशेष रुप से व्यक्ति के मन और उसके भीतर की भावना का प्रतीक भी बनता है. चंद्रमा को स्त्री युक्त ग्रह कहा गया है. इसके द्वारा जीवन में शीतलता एवं मजबूती को देखा जाता है. चंद्रमा के आत्मकारक होने पर यह व्यक्ति के जीवन में उन चीजों को अधिक प्रभावित करेगा जो चंद्रमा के गुणों में निहित होंगी. चंद्रमा को माता, जल, दूध और मानसिक शांति, सार्वजनिक जीवन, उच्च पद, मानसिक अवस्था, व्यवहार और विचारों का कारक है. चंद्रमा का संबंध विदेश यात्रा, परिवर्तन, औषधि, नमक आदि से भी संबंधित होता है.

जैमिनी शास्त्र में आत्मकारक चंद्रमा का बहुत महत्व और प्रभाव माना जाता है. यह समृद्धि और देवत्व से जुड़ा हुआ है. आत्मकारक चंद्रमा के होने पर व्यक्ति आकर्षक और बुद्धिमान होता है.  कभी भी धन की कमी से परेशान नहीं होता है. अपने करीबी रिश्तों के माध्यम से हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहते हैं. इनका मुख्य लक्ष्य शांति में रहना और अपनी इच्छा को प्राप्त करने के लिए लगातार काम करना है.

आत्मकारक चंद्रमा का स्वभाव एवं व्यवहार पर असर 

चंद्रमा के आत्मकारक होने पर व्यक्ति अपनी इच्छाओं के लिए अधिक जागरुक दिखाई देता है. वह अपने आस पास के लोगों के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करता है. मन का कोमल होने के कारण वह जल्द ही जुड़ाव का अनुभव भी पाता है. यदि चंद्रमा आत्मकारक होकर अपनी उच्च अवस्था का हो, या कुंडली में मूलत्रिकोण राशि या शुभ स्थिति में हो तब यह स्थिति व्यक्ति को स्वाभाविक रुप से मजबूत बनाती है. व्यक्ति में सहानुभूति का गुण मजबूत होता है. व्यक्ति को बेहतर याददाश्त मिलती है, धैर्य उसका गुण बनता है. वह देखभाल करने वाला स्वभाव पाता है.  ग्रहणशीलता जैसे शुभ परिणाम भी आत्मकारक चंद्रमा के मजबूत होने पर मिलते हैं. यह स्थिति प्रबल, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, सदाचारी, धनवान, प्रेम में स्थिर देने वाली बनाती है 

आत्मकारक व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है क्योंकि रक्त जिसमें विभिन्न तत्व होते हैं जिसके कारण वह चंद्रमा की ओर आकर्षित होता है. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि आत्मकारक चंद्रमा मानसिक शांति का प्रतिनिधित्व करता है.  ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि “चंद्रमा मनसो जयते” चंद्रमा मनसो जायते अर्थात चंद्रमा मन का प्रतीक है. मनोवैज्ञानिक परिपक्वता के आधार में चंद्रमा संपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाता है.

चंद्रमा को हमारे मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाला माना जाता है और इसलिए यह हमारी भावनाओं पर प्रभाव डालता है. यह हमारे मनोवैज्ञानिक संकाय और हमारी भावनाओं और इंद्रियों से निपटने की क्षमता को निर्धारित करता है. यह हमारी गहरी जरूरतों, आदतों और प्रतिक्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है और हमारे अवचेतन और चेतन मन को नियंत्रित करता है. शुभ सकारात्मक रुप से आत्मकारक चंद्रमा व्यक्ति को अनुकूल स्वभाव आनंद, मानसिक शांति, सहानुभूति के रचनात्मक लक्षण देता है. स्वभाव से धैर्यवान और अधिक समझदार होता है. 

आत्मकारक चंद्रमा का सकारात्मक एवं नकारात्मक असर 

आत्मकारक चंद्रमा का नकारात्मक प्रभाव चिंता और अनावश्यक चिंता का शिकार बना सकता है. यह अवसाद और तनाव को दे सकता है. यहां तक कि आत्मघाती भी बना सकता है. आत्मकारक चंद्रमा कमजोर या पीड़ित होना स्वास्थ्य के संदर्भ में भी परेशानी दे सकता है. फेफड़े, हृदय, अस्थमा, किडनी, पीलिया, गर्भाशय, महामारी, यौन समस्याएं, खून की कमी, नींद, खुजली, सूजन, गले, फेफड़ों में सूजन, बीमारी का डर पैदा कर सकता है 

आत्मकारक चंद्रमा के ज्ञातिकारक के साथ होने पर यह स्थिति संघर्ष एवं लगातार होने वाले प्रभव को दर्शाती है. इसी के साथ जब चंद्रमा शुक्र के साथ हो तब यह जैमिनी ज्योतिष के शुभ योगों का प्रभाव होता है. 

आत्मकारक चंद्रमा का धन योग 

आत्मकारक चंद्रमा का योग जब शुभ अमात्यकारक से बनता है तो ये स्थिति अच्छे धन योग के लिए अनुकूल मानी गई है. आत्मकारक चंद्रमा जब अमात्यकारक से योग बनाता है तो व्यक्ति को जीवन में आर्थिक लाभ अनुकूल रुप से मिल सकते हैं. वहीं आत्मकारक चंद्रमा के साथ यदि राहु केतु का प्रभाव बन रहा हो या फिर शनि इत्यादि का असर है तब उस स्थिति में शुभ प्रभाव कम हो सकते हैं. उस स्थिति में धन योग में कमी का असर पड़ता है. वहीं लाभ के लिए अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है. उसी प्रकार शुक्र का संबंध जब भी आत्मकारक चंद्रमा के साथ बनता है तो यह जीवन में अच्छे धनार्जन के लिए अनुकूल होती है. व्यक्ति दूसरों के द्वारा जीवन में अच्छे लाभ पाता है. 

आत्मकारक चंद्रमा का संबंध जब अमात्यकारक के साथ अनुकूल स्थिति में बनता है तो यह स्थिति करियर के लिए बहुत अनुकूल होती है. इसके द्वारा व्यक्ति अपने मनोकूल काम कर पाता है. वह करियर एवं व्यापार में अच्छे लाभ देख पाता है. व्यक्ति को सफलता प्राप्ति के अच्छे मौके मिल सकते हैं. 

आत्मकाकरक द्वारा धन योग का निर्माण जब होता है तो यह एक शुभ रुप से धन की प्राप्ति को दर्शाने वाला होता है. धन से जुड़े मसलों में सकारात्मक पक्ष पर इसकी विशेष भूमिका दिखने को मिलती है.

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