यात्रा के लिए शुभ मुहूर्त विचार कैसे किया जाता है ?

मुहूर्त शास्त्र में कार्यों की शुभता के लिए विशेष विचार किया जाता है. प्रत्येक कार्य को सकारात्मक रुप से पाने एवं सफल होने के लिए मुहूर्त का उपयोग होता रहा है. ऎसे में जब यात्रा का विचार करना हो तो उसके लिए भी शुभ मुहूर्त का विचार किया जा सकता है. किसी भी जरुरी काम पर जाने हेतु यात्रा का विचार होता है ऎसे में यदि यात्रा के लिए शुभ समय का निर्धारण किया जाए तो उसका बेहद शुभ फल प्राप्त होते हैं. 

यात्रा मुहूर्त का विचार करने कि आवश्यकता  

जीवन में जब हम किसी काम को करते हैं तो उसमें सफलता या असफलता का फल मिलता ही है. जब किसी काम के लिए यात्रा करते हैं तो उसमें किसी भी तरह का परिणाम हमें मिल सकता है. इन यात्राओं में कभी सफलता तो कभी असफलता हाथ लगती है. यात्रा कभी-कभी इतनी अच्छी हो सकती है कि भागदौड़ भरी जिंदगी की सारी थकान दूर हो जाती है. लेकिन कई बार हादसे के कारण यात्रा कष्टमय बन जाती है. जब यात्रा काफी महत्वपूर्ण हो जाती है जिसमें सफलता एवं सकारात्मक फल की प्राप्ति की चाह अधिक हो जाती है तो उस समय यदि मुहूर्त पर विचार किया जाए तो यह एक अनुकूल स्थिति के लिए उपयोगी बन जाती है. 

सही समय का चयन कर पाना आसान नहीं होता है. समय की कमी या जल्दबाजी के कारण लोग अक्सर मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं. ऎसे में शुभ मुहूर्त का स्मरण तब अधिक ध्यान आता है जब यात्रा व्यर्थ, निष्फल और हानिकारक सिद्ध होने लगती है. तब यह विचार अधिक तेजी से सोचने के विवश करता है कि यदि  शुभ मुहूर्त में अपनी यात्रा प्रारंभ की जाती तो परेशानी या कष्ट से बचाव हो सकता है. यात्रा में हानि, मानसिक या शारीरिक कष्ट से मुक्ति पाने में मुहूर्त का विचार बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है.  

यात्रा में तिथि विचार 

यात्रा को शुरु करने से पहले अगर शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखा जाए तो उसके द्वारा कई तरह के बेहतर प्रभाव मिल पाने संभव होते हैं. अपनी योजना बना कर शुभ मुहूर्त के चयन के द्वारा यात्रा एवं प्रवास के दौरान होने वाले मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाना बहुत अधिक संभव होता है. यात्रा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त करना बहुत संभव इस शुभ मुहूर्त के द्वारा संभव हो पाता है. 

यात्रा मुहूर्त के लिए कई तरह की बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है. इस के लिए दिशाशूल, नक्षत्रशूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रबल, ताराबल, नक्षत्रशुद्धि आदि का विचार किया जाता है. किसी भी यात्रा मुहूर्त का पता लगाने के लिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना उचित होता है. इसके साथ जिस दिन यात्रा करनी है उस दिन कि तिथि शुद्धि को सबसे पहले माना जाता है. तिथि शुद्धि के लिए कुछ विशेष तिथियों को अनुकूल माना गया है यह तिथियां शुभ मानी गई हैं जिनमें से ये इस प्रकार हैं. किसी भी पक्ष के कृष्ण पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और केवल प्रतिपदा तिथियां महत्वपूर्ण रुप से विचार में रखी जाती हैं. यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि इन तिथियों में भद्रा दोष का विचार भी करना आवश्यक होता है इसमें भद्रा नहीं होना चाहिए. अर्थात यदि इन तिथियों में विष्टि करण हो तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा. 

नक्षत्र शुद्धि विचार 

यात्राओं की शुभता में तिथि की शुद्धि के पश्चात नक्षत्र पर विचार करने की बात कहीं जाती है. जब हम तिथियों को लेते हैं तब ली गई तिथियों के अनुरुप नक्षत्र माना जाता है. यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित रहते हैं. इसमें अश्विनी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र और रेवती नक्षत्र श्रेष्ठ माने गए हैं. इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण किया जाता है अर्थात जिन नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण करना शुभ होता है वे निम्नलिखित हैं- अश्विनी नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और हस्त नक्षत्र. अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे भी हैं जिन्हें यात्रा का माध्यम माना गया है. वे इस प्रकार हैं: रोहिणी नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्र पर विचार होता है. इसके साथ ही नक्षत्रशूल विचार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. नक्षत्रशूल को भी दिशा के समान ही माना जाता है. दिशाशूल में इसे अशुभ माना गया है

किसी दिशा विशेष के लिए विशेष वार होना शुभ होता है जबकि नक्षत्रशूल में किसी दिशा विशेष के लिए विशिष्ट नक्षत्रों का होना अशुभ माना जाता है. जिस दिशा में आप यात्रा करना चाहते हैं, उस दिशा में नक्षत्रों पर विचार करना भी आवश्यक है. योगिनी वास का विचार यात्रा करते समय योगिनी किस दिशा में रहती है, यह जानना भी आवश्यक है. यात्रा के दौरान योगिनी का सामने या दाहिनी ओर होना अशुभ माना जाता है. योगिनीवास का विचार तिथि और दिशा के अनुसार निर्धारित होता है, चंद्र दिशा विचार के अनुसार यात्रा के समय चन्द्रमा सामने या दाहिनी ओर होना उपयुक्त माना गया है.

शुभ ग्रह प्रभाव 

यात्राओं के लिए शुभ ग्रहों की स्थिति का विचार भी बेहद जरुरी है लेकिन इसी के साथ पाप ग्रहों का विचार कार्य की प्रकृत्ति को देख कर लिया जाता है. शुभ ग्रह में चंद्र, बुध, बृहस्पति और शुक्र. ग्रहों का विचार और इन  ग्रहों की होरा में भ्रमण करना श्रेष्ठ माना गया है. पर यदि यात्रा कोई विजय जैसे युद्ध में और संघर्ष में विजय के लिए है तो उसमें मंगल की शुभता भी बहुत सहायक बनती है किसी भी युद्ध की सफलता लड़ाई में विजय की प्राप्ति के लिए मंगल का सहयोग बेहद अहम होता है. अत: यात्रा किस प्रयोजन के लिए है इस पर ध्यान देना बहुत जरुरी होता है और उसी के अनुरुप फल का निर्धारण संभव हो पाता है. 

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शुक्र-शनि युति से बनता है युक्त योग

जब दो ग्रह एक ही राशि के अंतर्गत युति योग बनाते हैं, तो कुंडली में कई तरह के फलों का मिलाजुला फल मिलता है. यह सफलता और कठिनाई दोनों को दिखाने वाला भी हो सकता है. भाग्य पर इस तरह के शनि शुक्र योग का गहरा असर भी देखने को मिलता है. इन योग के जीवन में  परिणाम अक्सर अप्रत्याशित और अनिश्चित से मिलते हैं. युक्त योग करियर, वित्त और सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन से संबंधित अनुभव, पारस्परिक कौशल और प्रबंधन कौशल के आधार पर कई अवसर दिखाता है.जीवन में सफल होने के अवसर को निर्धारित भी होते हैं. यह क्षमताओं को बढ़ाता है और सफलता की ओर ले जाने वाला एक नया मार्ग बनाता है.

इस में शनि के साथ शुक्र का होना इस योग के कई प्रभाव हमारे सामने रख सकता है. व्यावहारिक, दृढ़निश्चयी और कूटनीतिक दृष्टिकोण इस शनि के साथ शुक्र के योग से प्राप्त होता है. शनि के साथ शुक्र की स्थिति शुक्र के आकर्षण, कूटनीति और व्यावहारिकता के साथ-साथ शनि के अनुशासन और दृढ़ संकल्प को दर्शाने वाली होती है. इस अद्वितीय परिवर्तन होने पर व्यावहारिकता का गुण दिखाई देता है. अच्छे सलाहकार के रुप में व्यक्ति आगे बढ़ने में सफल होता है. इसके द्वारा जीवन की प्रगति होती है. महान व्यावसायिक समझ और भाग्य इन दोनों के मेल से संभव हो पाता है. व्यवसायिक समझ अच्छी होती है. कड़ी मेहनत से भाग्य और धन उत्पन्न करने में मदद करने वाला योग बनता है. इन दोनों ग्रहों का योग चातुर्य और दृढ़ संकल्प के साथ, आर्थिक समृद्धि भी प्रदान करता है व्यक्ति अपने जीवन में किसी ऎसे से भी मिलता है जिसके साथ से वह सफलताओं को पाने में सक्षम होता है. 

शनि और शुक्र विरोधाभास का योग 

शुक्र प्रेम, संबंध, जीवन में आनंद, प्रेम करने की क्षमता और प्रसन्नता का ग्रह है. कामुक इच्छा के माध्यम से आनंद, लोगों की सेवा, सामान्य विनम्र स्वभाव और आपसी सम्मान. पुरुष की कुंडली में शुक्र प्रेमिका है, और शानदार वस्तुएं है वीर्य है. शुक्र पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक सामान्य संबंध ग्रह है. शुक्र कामुकता का प्रमुख ग्रह है और निम्न रूप में यह इन्द्रिय सुखों में अधिक लिप्त रहने की ओर दिशा दिखाता है, उच्च रूप में यह सभी की सेवा और प्रेम करना पसंद करता है और बिना किसी कारण के खुश रहना जानता है. वहीं दूसरी ओर शनि मर्यादाओं का ग्रह है, यह व्यक्ति को समय का बोध कराता है और शनि सभी को जीवन की सच्चाई दिखाता है. यह वास्तविकता के साथ जीना सिखाता है, शनि अनुशासित, व्यावहारिकता और जीवन में एक दीर्घकालिक लक्ष्य है. शनि जीवन में कठोरता देकर लोगों को विनम्र बनाता है. शनि ग्रह मन की स्थिरता, एकांत में रहने की शक्ति और ध्यान में अच्छा प्रभाव दिखाता है.

शुक्र और शनि की युति होती है तो इसे मित्र भाव का प्रभाव कहा जा सकता है. ज्योतिष में शनि और शुक्र अच्छे मित्र माने गए हैं. इन दोनों को का प्रभाव काफी विपरित होता है लेकिन फिर भी इनमें मित्रता भी विशेष होती है. किंतु गुणों की भिन्नता शुक्र के शनि के साथ होने पर शुक्र संतुष्ट नहीं हो पाता है. शनि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति के अपने प्रिय मित्र शुक्र से मिलने आने जैसी स्थिति है. क्या होता है जब हमारा सबसे अच्छा दोस्त जो बीमार होता है हमसे मिलने आता है, हम भी बीमार हो जाते हैं नहीं अपितु हम उसके लिए सहायक भी होते हैं. शनि शुक्र में अपने सभी गुणों का संचार करता है. शनि उन सभी चीजों से संबंधित निराशा देता है जिनका प्रतिनिधित्व शुक्र करता है, किंतु शुक्र का प्रभाव भी व्यक्ति को नई दिशा को दिखा देने वाला होता है. 

शनि भय का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र प्रेम का, इसलिए ये लोग अपनी प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करने में भय महसूस कर सकते हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें दूसरे लोगों द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है. यह व्यक्ति किसी भी तरह के रिश्ते में पड़ने से डर सकता है. व्यक्ति प्रेम और संबंधों में निराश होता है और यह व्यक्ति को ऐसा साथी दिलाता है जो प्रेम और संबंधों में बहुत ठंडा और रूढ़िवादी हो सकता है. व्यक्ति स्वयं प्रेम और संबंधों को लेकर बहुत यथार्थवादी होता है. परिवार के प्रति कर्तव्य और उत्तरदायित्व द्वारा प्रदर्शित प्रेम की उनकी अभिव्यक्ति. आमतौर पर ये लोग हर तरह के रिश्तों में प्यार की कमी महसूस करते हैं, और ये अपनी भावनाओं को लेकर बहुत सुरक्षात्मक होते हैं और अपनी कमजोर भावनाओं को दूसरे लोगों को नहीं दिखाते हैं.

शनि और शुक्र युति का कब मिलता है लाभ 

शनि परिपक्व और वृद्ध साथी या व्यक्ति को अपने से बड़ी उम्र के साथी का सहयोग दिलाने वाला होता है. यदि सप्तम भाव में इन का योग होता है तो व्यक्ति को अपने साथी चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उन्हें ऐसा साथी मिल सकता है जो अपमानजनक हो सकता है. वहीं इसका असर विवाह होने में देरी को दर्शाता है. शनि देरी के ग्रह और धैर्य के शिक्षक हैं ओर ऎसे में यदि जल्दी शादी होती है तो उसमें कई तरह के विवाद झेलने पड़ सकते हैं. व्यक्ति को अपने साथी के साथ अलगाव सहना पड़ सकता है और विवाह में  लोगों को कष्ट हो सकता है. व्यक्ति का साथी बहुत मेहनती हो सकता है लेकिन उसमें रोमांस की कमी भी देखने को मिल सकती है. जीवन में यथार्थवादी दृष्टिकोण वाला अधिक देखने को मिल सकता है. ये लोग रिश्ते में समझौता करने को तैयार रहते हैं.  

शुक्र रचनात्मकता का मुख्य ग्रह है, इसलिए यह युति लोगों को फोटोग्राफी, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, क्राफ्टिंग आदि जैसे कई रचनात्मक क्षेत्रों में हाथ आजमाने का गुण प्रदान करने वाली होति है. बहुत रचनात्मक और प्रतिभाशाली स्थिति भी प्राप्त हो सकती है. लोगों की व्यावसायिक समझ अच्छी होती है क्योंकि शुक्र कूटनीति का ग्रह है और शनि कठोर कर्म का, वित्त और कला के क्षेत्रों में अच्छा नाम कमाने का अवसर प्राप्त होता है. अगर इन दोनों ग्रहों की युति कुछ विशेष भाव स्थान जैसे दूसरे भाव, नवम भाव, एकादश भाव इत्यादि में होने पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है. आर्थिक लाभ की प्राप्ति का अच्छा मौका भी प्राप्त होता है. 

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राहु का मेष राशि में होने का प्रभाव

राहु एक ऎसा छाया ग्रह है जो अपनी शक्ति के द्वारा किसी भी ग्रह को प्रभावित कर पाने में सक्षम होता है. यह एक ऎसा ग्रह है जिसका असर व्यक्ति के जीवन में उन घटनाओं को लाने के लिए जिम्मेदार होता है जिनके होने पर जीवन में हर ओर बदलाव की स्थिति देखने को मिलती है. राहु में शक्ति है और भ्रम का मायाजाल है जिसके द्वारा वह कुछ भी घटित कर सकता है ये गुण अन्य किसी ग्रह में नहीं है. राहु जब किसी राशि में मेल करता है तो वह उस राशि के गुण अपने आप में समावेश कर लेता है. राहु के ये गुण दूरगामी असर डालते हैं और राशियों के अनुरुप इनका प्रभाव भी अत्यंत ही सघन रुप में पड़ता है. राहु वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण छाया ग्रह है. एक खगोलीय दृष्टिकोण से, राहु को चंद्रमा के उत्तरी नोड के रूप में जाना जाता है. जहां चंद्रमा का उत्तर की ओर का मार्ग पृथ्वी के क्रांतिवृत्त तल को काटता है वहीं राहु बन जाता है.  

राहु के मेष राशि में होने का प्रभाव 

मेष राशि में राहु का होना वैसे कई मायनों में काफी क्रियात्मक हो सकता है. मेष राशि क्रियाशील राशि है, जिसमें ऊर्जा का विशाल स्त्रोत होता है. जो एक जगह रुकना पसंद नहीं करती है. जिसमें साहस है निडरता है भय से मुक्त है. मेष राशि वाले आमतौर पर साहसी होते हैं और जीवन में बहुत जोखिम उठाना पसंद करते हैं. जोखिम उठाने की यह कुशलत और उन्हें कई मायनों में बेहतर परिणाम दिलाने में सक्षम हो सकती है. मेष राशि वालों में खुद का भाग्य बनाने की कलाभी होती है बस जरुरी है की वह इस बात पर ध्यान दें. 

अब जब राहु इस राशि में होता है तो वह व्यक्ति के भीतर गजब का जुनून दे सकता है. राहु वाले लोग आमतौर पर बहुत भाग्यशाली हो सकते हैं क्योंकि जोखिम उठाना उनके लिए ज्यादातर समय फायदेमंद साबित हो सकता है. इनमें उतावलापन भी होता है, पर इस कारण कुछ खराब तो कुछ अच्छे परिणाम भी प्राप्त कर सकते हैं. इनके भीतर की तीव्रता प्रेम के लिए बहुत अवसर देने वाली हो सकती है. अपनी व्यवहार कुशलता में निपुण होते हैं लेकिन क्रोध एवं जिद के चलते संघर्ष भी देखते हैं.  मेष राशि में राहु व्यक्ति को किसी भी परेशानी से खुद को बचाने का भाव भी देता है. मेष राशि में राहु आत्म-विश्वास और एक प्रगतिशील स्वभाव को प्रदान करने वाला होता है. इस राशि के लोगों में स्वतंत्र होने की इच्छा बहुत होती है. इनके भीतर कुछ नया ओर अलग कर दिखाने की चाह भी खूब होती है. अपने विचारों द्वारा दुनिया को बदल देने की चाह रखते हैं. विचारों पर टिके रहना चाहते हैं लेकिन बदलावों के चलते ऎस होना मुश्किल दिखाई देता है. 

मेष राशि में राहु के लक्षण

मेष राशि में राहु का होना व्यक्ति के भीतर कई तरह की चीजों को दर्शाता है. कुंडली में राहु का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह मेष राशि के साथ किस भाव में स्थित है. इसके अलावा अन्य ग्रहों के साथ-साथ अन्य कारकों के संबंध में इसकी स्थिति विभिन्न प्रकार के असर दिखाने वाली होती है. व्यक्ति स्वयं संचालित होता है वह दूसरों के कहे से अधिक स्वयं के द्वारा काम करना पसंद करता है. व्यक्ति अपने उद्देश्यों के लिए अत्यधिक प्रेरित होता है. जीवन का आनंद लेना पसंद करता है. जो चाहेगा उसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार रहने वाला होगा. 

मेष राशि में पहले भाव में 

पहले घर में शारीरिक बल देने वाला होगा. धनवान बना सकता है. रोमांटिक संबंध कमजोर हो सकते हैं. क्रूर प्रवृत्ति दे सकता है ओर विवाद में अधिक उलझा सकता है. जीवन में कठोर कार्यों रोमांच में अधिक शामिल रख सकता है. 

मेष राशि में दूसरे भाव में 

आर्थिक रुप से खर्चों की अधिकता देता है. घर से दूर ले जा सकता है. परंपराओं से अलग कर सकता है. चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत देने वाला होता है.  

मेष राशि में तीसरे भाव में 

तीसरा घर भाई-बहनों, साहस और साहित्यिक कार्यों का प्रतीक है इस घर में राहु का मेशः में होना साहसिक बनाता है. भाई बहनों के साथ विवाद या अलगाव दे सकता है. दृढ़ निश्चयी और आत्मविश्वासी बनाता है. 

मेष राशि में चौथे भाव में 

यहां राहु पारिवारिक संबंधों में कष्ट दे सकता है. घर से दूर जाने और निवास बनाने वाला हो सकता है. सुख में सदैव किसी न किसी कारण से कमी को दर्शाने वाला होता है. 

मेष राशि में पांचवें भाव में 

मेष राशि में पांचवें घर में राहु व्यक्ति को चतुर और आप बुद्धिमान बनाता है. उत्सुक शिक्षार्थी की तरह हर चीज को समझने जानने की इच्छा उसमें रहती है. 

मेष राशि में छठे भाव में   

छठे में मेष राशि में बैठा राहु साहसी बनाता है. व्यक्ति कई शत्रुओं का सामना करने में सक्षम होता है. विजयी भी होता है. स्वास्थ्य समस्याएं देता है लेकिन सुधार भी देता है. 

मेष राशि में सातवें भाव में 

मेष राशि में सप्तम भाव पर राहु  जीवनसाथी, वैवाहिक सुख को कमजोर कर सकता है. अतिरिक्त यौन संबंधों को प्रदान करने वाला होता है. 

मेष राशि में आठवें भाव में

शारीरिक या मानसिक रूप से परेशानी दे सकता है. संतान का सुख प्रभावित करता है. रोग प्रभाव डाल सकते हैं. 

मेष राशि में नवम भाव में 

नवम भाव में मेष राशि में बैठ कर निड़र बनाता है. धर्म के विपरित काम करवा सकता है. नैतिकता के प्रति अलग सोच देता है. भाई बंधुओं से विवाद दे सकता है. 

मेष राशि में दशम भाव में 

राहु का मेष राशि में दसवें घर में होना पिता के सुख को प्रभावित कर सकता है. करियर और प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है. मेहनती और निडर बनता है. 

मेष राशि में एकादश भाव में 

एकादश भाव में मेष राशि में राहु का होना लाभ, आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायक होता है. मित्रता का प्रतीक बनता है. 

मेष राशि में बारहवें भाव में 

बारहवां भाव में मेष राशि में होने पर हानि, दुर्भाग्य का प्रतीक बन सकता है. कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. 

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ज्योतिष अनुसार जानें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता

ज्योतिष अनुसार स्वास्थ्य के विषय में कई तरह के मुद्दों को समझ पाना संभव होता है. यदि सेहत अच्छी हो तो व्यक्ति एक लम्बी आयु का सुख अच्छे स्वास्थ्य के रुप में देख पाता है. स्वास्थ्य ही धन है, अच्छे स्वास्थ्य के बिना, कुछ भी स्वस्थ नहीं हो सकता. ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे ग्रह हैं जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं तो कुछ ऎसे ग्रह है जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा बनाने में सक्षम होते हैं. कई बार सेहत में लम्बे समय तक उप्चार पश्चात भी जब स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता है तो ऎसे समय में ज्योतिषीय परामर्श लेना अनुकूल रहता है. 

रोग प्रभावित भाव 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों के साथ साथ भाव की स्थिति भी बहुत विशेष होती है. कुंडली में दूसरा भाव, तीसरा भाव, छठा भाव, आठवां भाव, सातवां भाव, एकादश भाव और बरहवां भाव रोग की स्थिति को दर्शाने वाला होता है. इस भाव के अधिपति एवं इसमें बैठे ग्रहों की दशाओं में रोग से संबंधित परेशानियों से प्रभावित होने की स्थिति अधिक प्रभावी दिखाई देती है. एक राशि और कुंडली में स्थिति के अनुसार ग्रह काम करते हैं. भाव के साथ ग्रह का संबंध प्राप्त होने वाली परिस्थितियों को दर्शाने वाला होता है. कुंडली में एक बाधक या अशुभ ग्रह स्वभाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है.  

स्वास्थ्य समस्या का निदान विशेष रूप से ग्रहों के स्वभाव से होता है. उदाहरण के लिए शुभ ग्रह अगर कुंडली में किसी ऎसे भाव स्थान में हो जहां उसके लिए स्थिति अनुकूल नहीं है, तो ग्रह की शुभता कमजोर हो सकती है. जिसका असर स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसे हम किसी कुंडली के अनुसार भी समझ सकते हैं कर्क लग्न में बृहस्पति शुभ है और भाग्य भी है लेकिन गुरु छठे भाव का स्वामी भी है ओर लग्नेश के साथ गुरु का होना जहां शुभ योग बनाएगा वहीं वह स्वास्थ्य के लिए परेशानी भी देगा. इस स्थिति में गुरु काफी संघर्षपूर्ण समय दे सकता है.  व्यक्ति सर्दी-खांसी जैसे रोगों से जल्द प्रभावित हो सकता है. 

इसी प्रकार कुंडली में जब दूसरे भाव में कोई ग्रह न हो तो जो ग्रह दूसरे भाव के स्वामी के साथ स्थित होता है वह अपनी दशा में जातक को मार सकता है, स्वास्थ्य संबंधी चिंता जानने के लिए किसी ग्रह का गोचर भी बहुत महत्वपूर्ण है, आम तौर पर, लग्नेश का गोचर जीवन के सभी क्षेत्रों में अच्छे परिणाम देता है जैसे स्वास्थ्य और पाप ग्रहों का गोचर उनके गोचर के दौरान समस्याएं और बीमारी देता है. आठवा भाव जीवन शक्ति और जीवन काल का प्रतिनिधित्व करता है, इस घर के स्वामी का स्थान लंबी उम्र के लिए मजबूत होना चाहिए, लेकिन बेहतर और स्वस्थ जीवन के लिए यह स्थान बुरे प्रभावों से मुक्त भी होना चाहिए. छठा घर ऋण, बीमारी और कर्ज के लिए जाना जाता है, यदि इस घर के स्वामी की स्थिति कमजोर हो और उसका प्रभाव कम हो तो यह जीवन और स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, आम तौर पर यह माना जाता है कि छठे भाव में पाप ग्रह की स्थिति स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है,

मेष राशि

मेष राशि का स्वास्थ्य एक अच्छी श्रेणी में आता है. इस राशि का स्वामी मंगल होता है और इन लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता अच्छी होती है. लेकिन यह दुर्घटनाओं से प्रभवैत होने वाली राशि है जो जोखिम की स्थिति को बताती है.  इस राशि के लोगों को सिर, दिमाग और चेहरे के रोग होने की संभावना रहती है, गंजापन, शारीरिक और मानसिक तनाव की संभावना है, जिससे सिरदर्द, माइग्रेन और स्ट्रोक जैसी परेशानी अधिक हो सकती है.

वृष राशि 

वृष राशि वालों को जल तत्व से संबंधित रोग अधिक प्रभावित कर सकते हैं. इस राशि केवालों को गर्दन, कान और गले से संबंधित रोग होने की संभावना है. सर्दी-खांसी, गले में खराश और कानों में परेशानी होने की संभावना अधिक बढ़ सकती है. संक्रमण रोगों के होने का भी खतरा अधिक बढ़ सकता है. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि वालों के लिए त्रिदोष की समस्या रहती है. इस राशि के लोगों को फेफड़े, कंधे, हाथों-बांहों में परेशानी हो सकती है. सर्दी और खांसी के अलावा तंत्रिका का भी खतरा रहेगा, इस राशि में चिंता, अनिद्रा और नसों से संबंधित समस्याएं भी परेशानी दे सकती है.    

कर्क राशि 

इस राशि में जल तत्व की प्रकृति अधिक होती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को छाती के रोगों का खतरा अधिक होता है. ब्रेस्ट और पेट से जुड़ी समस्याएं भी जल्द प्रभाव  होती हैं. चंद्रमा मन का कारक होता है. यह हमारी सभी मानसिक अनुभूतियों पर असर डालता है जल तत्व से युक्त है इस कारण जल से उत्पन्न होने वाले रोग भी इसके प्रभाव के चलते अधिक प्रभाव डाल सकते हैं. अवसाद और भावनात्मक असंतुलन जैसे मानसिक मुद्दे भी कर्क राशि वालों को प्रभावित करते हैं. क्षय रोग मधुमेह की स्थिति, भोजन एवं जल संबंधी विषाक्तता भी सेहत को कमजोर करने वाली होती है. 

सिंह राशि 

सिंह राशि अग्नि प्रधान राशि है. इस राशि के प्रभाव का भी रोग प्रतिरोधक क्षमता में बेहतर होता है. इस राशि वालों को विशेष रुप से पित्त प्रकृत्ति की अधिकता के कारण परेशानी हो सकती है. हृदय, पीठ और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गैस्ट्रिक समस्या ओर रक्त संबंधी रोग कष्ट दे सकते हैं. उच्च रक्तचाप, धमनियों का अवरुद्ध होना और दिल की धड़कन का अनियमित होना, ज्वर, शरिर में जलन जैसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि वालों को संक्रमण एवं जल से संबंधित रोग अधिक परेशान कर सकते हैं. स्नायु तंत्र की दिक्कत रह सकती है. माइग्रेन की स्थिति थाइराइड का प्रभाव भी रह सकता है. इस राशि के लोगों को पेट और आंतों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अक्सर अपने वजन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा अल्सर, एसिडिटी और कब्ज जैसी पेट की समस्याएं भी परेशानी देने वाली होती हैं. 

तुला राशि 

तुला राशि के लोगों के लिए स्थिति कई तरह के असर दिखाने वाली होती है. संक्रमण से संबंधित रोग परेशानी दे सकते हैं. गुर्दे, अधिवृक्क ग्रंथियों और त्वचा के रोग समस्या दे सकते हैं. पेट के रोग ओर कफ की समस्या भी परेशानी दे सकती है. कब्ज का सामना करना पड़ सकता है, मूत्राशय, मलाशय, जननांग, अंडाशय और वृषण के रोग इन्हें बहुत परेशान कर सकते हैं. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि वालों की रोगों से लड़ने की अच्छी क्षमता देखने को मिलती है. गुप्त रोग, यौन संक्रमण, रक्त संबंधी विकार परेशानी दे सकते हैं. पेट के रोग. गैस की शिकायत, दुर्घटनाओं की संभावना भी इनकी सेहत को प्रभावित कर सकती है. 

धनु राशि 

धनु राशि वालों की भी रोगों से लड़ने कि अच्छी क्षमता होती है. इन लोगों को अपने पैरों को लेकर दिक्कत रह सकती है.  घुटनों एवं जोड़ों के दर्द की शिकायत कर सकते हैं. इस राशि के लोगों को कूल्हे, जांघों और दृष्टि से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. नेत्र रोगों के अलावा कुछ पित्त की अधिकता से उत्पन्न होने वाले रोग भी अपना असर डालते दिखाई देते हैं. दुर्घटनाओं का असर भी अधिक रहता है. दृष्टि खराब होने से दुर्घटना हो सकती है,

मकर राशि

मकर राशि वालों के लिए हड्डियों, घुटनों, दांतों, त्वचा और जोड़ों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक रह सकती है. मकर राशि वालों को गैस्ट्रिक की परेशानी रह सकती है. हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं. माइग्रेन एवं दिमागी रोग परेशान कर सकते हैं. वात की अधिकता का प्रभाव रहता है. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि के लोगों को वात कफ की समस्या हो सकती है. पैरों के निचले हिस्से और टखनों में परेशानी होने की संभावना भी अधिक रह सकती है. जोड़ों के रोगों का असर भी पड़ सकता है. स्नायु तंत्र की समस्या भी प्रभावित कर सकती है. नसों से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है,

मीन राशि 

मीन राशि वालों को गैस्ट्रिक समस्या, पेट के रोग अधिक परेशानी देने वाले हो सकते हैं. इनकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता कुछ कमजोर अधिक दिखाई दे सकती है. पैरों के रोग भी उभर सकते हैं. कफ की अधिकता, माइग्रेन, रक्त के विकार परेशानी दे सकते हैं. 

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मंगल के आत्मकारक होने पर क्या मिल पाती है सफलता

जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह कुंडली में का विशेष ग्रह होता है जो अपने प्रभाव द्वारा कुण्डली के फलों को बदल देने में काफी सक्षम होता है. आत्मकारक ग्रह एक प्रकार से कुंडली में सभी ग्रहों को अपने द्वारा प्रभावित करता है. आत्मकारक ग्रह यदि शक्ति संपन्न होगा और शुभ होता तो उसके असर द्वारा कुंडली की हर स्थिति अपनी विशिष्ट स्थिति के अनुसार असर दिखाएगी. अगर इस आत्मकारक भूमिका में मंगल को स्थान मिलता है तो मंगल कुंडली में मजबूत ग्रह बनेगा. यह कुंडली की आत्मा के सरीखा काम करने वाला होगा. कुंडली को विशेष बल इसी के द्वारा प्राप्त होगा. 

कुण्डली में की स्थिति को जीवन में साहस एवं पराक्रम की शक्ति के रुप में देखा जाता है. ज्योतिष अनुसार हर ग्रह अपने प्रभव में जीवन के उस पक्ष पर असर डालता है जो जीवन को संपूर्णता प्रदान करने में सहायक बनता है इसी क्रम में मंगल भी अपना विशेष असर डालता है. मंगल हमें जीवन में वो शक्ति प्रदान करता है जिसके द्वारा हम अपने फैसलों को आगे ले जाने में सफल होते हैं. मंगल की शक्ति का असर इतना व्यापक है की यह शक्ति के द्वारा विजय दिलाने में सक्षम है तो तर्क की कुशलता से स्थिति को बदल देने में भी सक्षम होता है. 

मंगल किसी कुंडली में शक्ति, साहस, ताकत की सामर्थ्यता को दिखाने का काम करता है. अगर भाग्य को बदल देने का सामर्थ्य किसी में हो तो मंगल ग्रह हमेशा उसमें अपना योगदान देने वाला ग्रह होता है. यह साहस और शक्ति देता है. यह ग्रह, ऊर्जा, गतिविधि, स्वतंत्रता और संगठनात्मक कौशल की निर्णायकता के लिए जिम्मेदार माना जाता है. मंगल छोटे भाई बहनों का कारक होता है. यह कामुकता और यौन शक्ति के लिए भी विशेष बनता है. मंगल विभिन्न दुर्घटनाओं, चोटों और झटकों का कारण भी बनता है. यह विभिन्न प्रकार की तीक्ष्ण वस्तुओं और रक्त को दर्शाता हैं. यह युद्ध और शत्रुता के लिए मुख्य होता है. शरिर में रक्त, मूत्राशय, जननांग क्षेत्र और मांसपेशियां भी इसके अधिकार क्षेत्र में आती हैं.

आत्मकारक मंगल का करियर पर असर 

ज्योतिष अनुसार मंगल शुष्क और उग्र स्वभाव वाला ग्रह है. मंगल यदि आत्मकारक होकर अनुकूल है तो यह व्यक्ति को कई कार्यों में अच्छे परिणाम दिलाने में सहायक हो सकता है. मंगल यदि काफी मजबूत है तो ऎसे काम में जोड़ सकता है जहं शक्ति एवं साहस का प्रदर्शन होगा. प्रबंधन के कामों किसी दल का नेतृत्व करने में या सक्रिय रूप से कार्य करना इसके गुण का प्रभाव होगा. सेना, पुलिस, एथलीट, अग्निशामक, मंत्रालय, स्टंटमैन, सर्जन, लोहार, धातुओं के साथ संबंध, कसाई, रसोइया और खाना पकाने से जुड़ी हर चीज, मैकेनिक, सर्विस स्टेशन, बिल्डर, अचल संपत्ति के कामों, वास्तु विशेषज्ञ के काम, तकनीक से जुड़े काम, बिजली के काम, केमिस्ट और सर्जन भी बना सकता है. एथलीट के रुप में प्रसिद्धि भी दिला सकता है. एक अनुकूल और अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत उदार हो सकता है.लेकिन जब वह अपना आपा खो देता है तो उसे नियंत्रण में कर पाना असंभव हो जाता है.

आत्मकारक मंगल का प्रभाव ज्योतिष में प्रभाव

आत्मकारक मंगल यदि अपनी उच्च अवस्था में है अपनी प्रबल राशि में स्थित है तो ऎसे में यह कुंडली के कई तरह के प्रभाव में बदलाव को दिखाने वाला होता है. व्यक्ति में उग्रता अधिक दिखई देगी. वह अधिक क्रोधि एवं जिद्दी हो सकता है. ऎसे में जरुरी है कि व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए, मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. किंतु यदि व्यक्ति अधिक उत्साहित होगा तो जोखिम भरे कामों में शामिल होकर काम करने में आगे रहेगा ऎसे में यह स्थिति उसके लिए दुर्घटनाओं की संभावना में भी वृद्धि करने वाली होगी. 

व्यक्ति में ऊर्जा स्तर काफी अधिक होता है, यह शरीर में हड्डियों के अंदर पदार्थ जिसे अस्थि मज्जा कहा जाता है उस पर नियंत्रण रखता है. कुंडली में मंगल बली हो तो व्यक्ति अपनी उम्र से छोटा दिखेगा, मंगल एक क्रूर ग्रह है, आक्रामक भी है और आसानी से हार नहीं मानता है. ऎसे में वह ज्यादा सोचने का समय भी नहीं देता है. वह केवल क्रिया की प्रतिक्रिया में अधिक विश्वस रखना चाहेगा. 

व्यक्ति को मिलती है विजय की गारंटी

आत्मकारक मंगल के रुप में उच्च स्थिति का शुभस्थ मंगल विजय दिलाने वाला होता है. माना जाता है कि मंगल व्यक्ति को सफलता दिलाने की क्षमता प्रदान करता है, आत्मकारक मंगल की उपस्थिति के कारण व्यक्ति में हर लड़ाई जीतने की प्रबल इच्छा होती है. व्यक्ति अपनी ताकत का प्रदर्शन साबित करने में भी काफी सफल होता है. आत्मकारक मंगल वाले लोग महान योद्धा के रुप में उभर सकते हैं. अपने कार्यों को जल्द से करना और जल्द से जल्द निर्णयों तक पहुंचना ही उसका उद्देश्य भी होता है. आत्मकारक मंगल के मजबूत होने पर व्यक्ति ऎसे कार्यों में अधिक शामिल रहता है जहां शक्ति का प्रदर्शन हो तथा स्वतंत्रता पूर्वक फैसलों को लिया जा सके. 

आत्मकारक होने पर मंगल का प्रभाव व्यक्ति को निडर, ऊर्जावान और आज्ञाकारी भी बनाता है. मंगल ऊर्जा का एक ग्रह है जो एक अच्छे आत्म सम्मान से भरे जीवन को जीने के लिए बहुत आवश्यक होता है. यह जीवन के प्रति एक बहुत ही स्वस्थ और सहज दृष्टिकोण रखता है, कुंडली में शुभ तरह से स्थित मंगल किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक बल प्रदान करता है चाहे वह खेल हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि. आत्मकारक मंगल अच्छी शिक्षा का मौका भी देता है. व्यक्ति में आत्मबल काफी होता है वह दूसरों पर निर्भर और किसी प्रकार की शारीरिक सुरक्षा नहीं चाहता है. आत्मकारक मंगल व्यक्ति के भीतर नेतृत्व का बेहतरीन गुण विकसित करता है. व्यक्ति में समाज को बदलने की क्षमता होती है. 

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शुक्र ग्रह का नकारात्मक एवं खराब प्रभाव क्यों है इतना घातक

शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार देना एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थितो है. शुक्र के खराब होने के बुरे प्रभावों को जानकर यह समझ पाना इसके मिलने वाले फलों को दिखाने वाला होता है. यह भी पता होना चाहिए कि शुक्र ग्रह का इतना महत्व क्यों रखता है. 

शुक्र बृहस्पति के पश्चात सबसे शुभ ग्रह है. किसी भी व्यक्ति के लिए, यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह भौतिक वस्तुओं, आनंद और विलासिता के सुख को देता है, बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी गुरु की उपाधी प्राप्त है. यह इच्छाओं और व्यसनों पर नियंत्रण और अधिकार रखता है. शुक्र प्रेम, ग्लैमर और संतुष्टि को दिलाने वाला ग्रह है. शुक्र एक चमकीला, स्त्री गुणों से भरपूर ग्रह है. प्रेम, विवाह, सौंदर्य और हर प्रकार के सुख का आधार इसे माना जाता है. शुक्र की अवधि भी लम्बी होती है अपनी महादशा में यह बीस वर्षों तक अपना असर दिखाता है. किसी कुण्डली में शुक्र अनुकूल स्थिति में है तो उसकी दशा में जीवन में प्रचुरता, आनंद और आराम जरुर मिलता है. शुक्र ग्रह कुंडली में स्त्री पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. सप्तम भाव का कारक होता है जो विवाह और व्यापारिक साझेदारी का भाव भी होता है, यदि कुंडली में शुक्र  खराब होगा तो यह एक असफल विवाह और प्रेम संबंध देने वाला होगा. 

शुक्र का प्रभाव किसी के जीवन में उसके आत्मविश्वास, भावनात्मक सुरक्षा और आंतरिक खुशी के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार माना गया है.  यदि बाहरी आत्मविश्वास के लिए सूर्य जिम्मेदार है तो आंतरिक आत्मविश्वास के लिए शुक्र का प्रभाव अत्यंत विशेष हो जाता है. शुक्र जीवन में आंतरिक भावनात्मक सुरक्षा के लिए विशेष होता है. शुक्र बताता है कि हम खुद से कितना प्यार करते हैं और कितनी नफरत. इसलिए शुक्र व्यक्ति के जीवन में आंतरिक शांति और अशांति के लिए विशेष ग्रह बन जाता है. जिस प्रकार चंद्रमा का असर मन को आंदोलित करता है उसी प्रकात शुक्र का असर व्यक्ति की भीतरी सजगता उसकी अभिव्यक्ति पर अपना असर डालता है. 

जब जीवन आपको नीचे गिराता है, तो शुक्र का प्रभाव ही है जो आपको वापस लड़ने का बल देता है. आंतरिक विश्वास इसी से मिलता है. यह शुक्र ग्रह जीवन का वास्तविक सुख देता है. शुक्र ही भीतर की बुरी भावनाओं को दूर करने के लिए जिम्‍मेदार है. हम जैसे हैं वैसे ही खुद को प्यार करने के लिए शुक्र ही भाव देता है. बाहरी नकारात्मकता से प्रभावित हुए बिना जीवन में सफलता की राह पर बढ़ने के लिए जितनी आसानी से नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकते हैं वह हमें शुक्र से प्राप्त होती हैं. 

शुक्र के शुभ और अशुभ असर का भावनात्मक रुप से प्रभाव  

शुक्र इतना मजबूत है कि वह व्यक्ति को काफी समझदार एवं बौद्धिक बनाता है. किसी भी प्रकार के नकारात्मक असर को व्यक्ति आसानी से अपने ऊपर हावि नहीं होने देगा यदि शुक्र कुंडली में मजबूत है. शुक्र के मजबूत होने पर व्यक्ति का भावनात्मक संतुलन बहुत मजबूत होता है. किसी भी प्रकार का भावनात्मक प्रदर्शन व्यक्ति को आसानी से अपने जाल में नहीं फंसा सकता है. यह शुक्र की वास्तविक शक्ति है. सूर्य एक प्रकार का शुद्ध अहंकार है. लेकिन शुक्र के द्वारा इसके भी दो पक्ष दिखाई दे सकते हैं. शुक्र अगर खराब है तो बाहरी आत्मविश्वास तो बहुत होता है लेकिन अंदर से असुरक्षित अनुभव किया जा सकता है. ऎसे व्यक्ति की कमजोरी भी आसानी से नजर नहीं आती है. एक मजबूत शुक्र द्वारा ही नकारात्मक भावनाओं से अप्रभावित रहने में सहायता मिल सकती है. एक मजबूत शुक्र वाला व्यक्ति जीवनसाथी को अपने स्वाभिमान से धोखा नहीं देने देता है, लेकिन जब शुक्र भावनात्मक सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त रूप से स्थिर नहीं है, तो व्यक्ति अन्य संबंधों की तलाश करना चाहते हैं,

शुक्र खराब होता है तो इसके विपरित असर दिखाता है. आत्मविश्वास की कमी देखने को मिल सकती है. कोई भी व्यक्ति आपको आसानी से भावनात्मक चोट पहुंचा सकता है. अपने दिल में एक बड़ा भावनात्मक बोझ लेकर चल सकते हैं. नकारात्मकता से इतनी आसानी से प्रभावित हो जाते हैं की स्वयं को व्यक्ति बहुत अधिक असुरक्षित महसुस कर सकता है.  दोस्ती, रोमांटिक रिश्तों और आस-पास के माहौल को लेकर असुरक्षित महसूस कर सकता है. खराब शुक्र इतना मजबूत नहीं है कि खुशी का एहसास करा सके, खराब शुक्र बहुत खराब मिजाज देता है, रोमांस में असुरक्षितता बेवफाई की ओर ले जा सकता है. हेराफेरी करवा सकता है. 

शुक्र के नकारात्मक पक्ष में कई तरह की स्थितियां देखने को मिल सकती हैं. 

शुक्र का असर यदि नकारात्मक रुप से दिखाई देने लगे तो यह विष की भांति कार्य करने वाला होता है.  शुक्र के विषैले प्रभाव द्वारा व्यक्ति में न केवल असुरक्षित भावनात्मक स्थिति होती है अपित गलत चीजों के प्रति आकर्षण भी होता है. जीवन में असंतुलित हो सकते हैं. व्यक्ति दूसरों की पीठ में छुरा घोंपने की हद तक चला जा सकता है. ऐसा इस कारण से भी होता है क्योंकि शुक्र की कुछ बातें व्यक्ति को अपने बारे में इतना हीन महसूस कराती हैं, कि वह ईर्ष्या से बाहर दूसरों के साथ कुछ बुरा करके दूसरों की खुशियों को नष्ट करने की चाह रखेगा. खराब शुक्र व्यक्ति को खुशी और भावनात्मक स्थिरता और भाग्य से वंचित कर देने वाला होता है. कमजोर निर्बल पाप प्रभावित शुक्र व्यक्ति में इतनी नकारात्मकता भर सकता है कि वह दूसरों के सुख से ईर्ष्या करने वाला बना सकता है. ऎसे में व्यक्ति हर ओर व हर जगह नफरत उगलते दिखाई दे सकता है. यह जीवन के कई पहलूओं पर दिखाई देसकता है. 

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बुध का आत्मकारक होना वाणिज्य में देता है सफलता

बुध को वैश्य वर्ग का माना गया है, अर्थात व्यापार से संबंधित ग्रह के रुप में बुध को विशेष रुप से देखा जाता है. बुध की स्थिति कुंडली में एक अच्छे वाणिज्य को दर्शाने वाली होती है. बुध एक ऎसा ग्रह है जो बिड़ पर अपना गहरा असर डालने में सक्षम होता है. जब बात आती है आत्मकारक रुप में बुध की तब यह बेहद ही शुभता को दिखाने वाली होती है. बुध आत्मकारक होकर अवसरों को देने में सहायक होगा. व्यक्ति अपने काम के क्षेत्र में उपलब्धियों को पाने में सफल होगा. 

बुध को मिथुन राशि और कन्या राशि का स्वामित्व प्राप्त है. कई पौराणिक कथाओं में बुध की भक्ति एवं उसकी कठोर साधना का शुभ फल भी जीवन में देखने को मिलता है. बुध ग्रह स्वतंत्र अभिव्यक्ति और संचार का ग्रह है. बुध एक अवसरवादी ग्रह भी माना गया है. जब कुंडली में बुध अच्छा होता है तो लोग अच्छे वक्ता होते हैं और चापलूसी भरे शब्दों की बौछार करने में भी उन्हें कोई पकड़ नहीं सकता है.  व्यक्ति में मीठे शब्दों को कहने की कला भी अच्छी होती है.  बुध का असर हर ओर देखने को मिलता है. संचार ही एकमात्र ऐसी चीज नहीं है जो बुध का गुण है इसके अलावा लोगों के मध्य तालमेल को आगे बढ़ाने का काम भी यह करता है. एक मजबूत बुध आत्मकारक होकर अच्छा विश्लेषण कौशल, अच्छा सामाजिक जीवन और मनोविनोद का गुण देने में सक्षम होता है. यदि किसी का वाक चातुर्य कमाल का है और पारिवारिक जीवन अच्छा है, तो इसका मतलब है कि बुध काफी मेहरबान है उन लोगों की कुंडली में.

ज्योतिष में बुध: सामान्य विशेषताए

ऋषि पराशर बुध ग्रह को एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले देवता के रूप में वर्णित करते हैं और अपने शब्दों की पसंद से आपको प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. ज्योतिष अनुसार बुध को अच्छी चीजों का का शौक है. बुध प्राय: हरे रंग से प्रतिध्वनित होता है जिसका अर्थ है की यह रंग उसके प्रिय रंगों में शामिल होता है. यह शांति पसंद ग्रह है. बुध कभी व्यर्थ के विवाद में पड़ने को नहीं कहता है अपितु तर्क शक्ति के आधार पर जीवन को जीने की योग्यता देता है.  हरा रंग सहजता, संतुलन और सामंजस्य से संबंधित है और इसी का असर जीवन पर जब पड़ता है तो यह शुभता काम करती है. बुध में उत्तेजित मन को शांत करने की क्षमता है. तुलसी भगवान विष्णु को अर्पित की जाती है, जो बुध के प्रतीक रुप में भी स्थान पाती है. बुध संबंधी कई समस्याओं के लिए हरी तुलसी के उपयोग की सलाह दी जाती है. बुध अपना सबसे अच्छा प्रभाव तब दिखाना शुरू करता है जब व्यक्ति अपने जीवन के आरंभिक वर्ष में होता है. बुध संचार का ग्रह है. यह एक दोहरी प्रकृति वाला ग्रह है जो कन्या और मिथुन पर अधिकार रखता है. 

ज्योतिष में बुध से प्रभावित शरीर के अंग हाथ, कान, फेफड़े और तंत्रिका तंत्र होते हैं. यह लोगों के कलात्मक और स्किल्स को भी विकसित करता है. इसलिए किसी सर्जन, पेंटर, कमेंटेटर आदि के ज्योतिष में अक्सर मजबूत बुध देखा जा सकता है. सभी राशियों में अपनी यात्रा पूरी करने में इसे बारह महीने लगते हैं, और प्रत्येक राशि पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि बुध किस घर में किस स्थिति में बैठा है. बुध के उदार प्रभाव से व्यक्ति का परिवार और समाज में मान-सम्मान ऊंचा रहेगा. लोग उन्हें पेशे और शिक्षा के क्षेत्र में एक-दूसरे के नजरिए से देखेंगे. मजबूत बुध वाला व्यक्ति अपने रिश्तेदारों के लिए आंख का तारा होगा. बुध के शुभ प्रभाव के लिए हरा पन्ना बहुत अच्छा माना गया है. . 

वैदिक ज्योतिष में बुध का विश्लेषण 

वैदिक ज्योतिष में बुध को अक्सर बुध ग्रह कहा जाता है, किंवदंतियों में, बुद्ध को चंद्रमा और तारा के पुत्र के रूप में देखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा बृहस्पति की पत्नी तारा पर आसक्त हो जाते हैं जिससे तारा को बुध की प्राप्ति होती है. इस कारण बुध को चंद्रमा और बृहपति दोनों के साथ संबंधित माना गया है. बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व का मेल भी बुध से मिलता है. बुध के विषय में एक विचार यह भी है कि 32 वर्ष की आयु में पूर्ण परिपक्वता तक पहुंचता है. ज्योतिष शास्त्र में बुध को प्राय: बुद्धि प्रमुख कहा गया है. उनकी सुंदरता और भगवान विष्णु के परप भक्त होने के कारण उन्हें भगवान विष्णु की छवि के रूप में माना जाता है. बुध ग्रह के स्वामी विष्णु हैं. बुधवार को बुध ग्रह का दिन माना जाता है और उस दिन उनकी पूजा करने से बुध के कारण आने वाली सभी बाधाएं और बाधाएं दूर हो जाती हैं.

ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को वाणी का देव कहा जाता है. यह व्यक्ति के स्वर एवं कंठ पर अपना प्रभाव डालता है. ज्योतिष में बुध को सौर मंडल का मस्तिष्क कहा जाता है. यह एक शांत और रचिनात्मकता से परिपूर्ण ग्रह है. बुध की महादशा अवधि 17 वर्ष तक रहती है. बुध वात प्रकृति का होता है और बुध के प्रभाव में आने वाले जातक अच्छे गायक, अच्छे व्यवहार वाले होते हैं. लग्न में एक मजबूत बुध बुद्धि, शिक्षा, सामाजिक और व्यावसायिक मामलों, रिश्तेदारों के साथ संबंध, हास्य आदि में वृद्धि करता है. इसके विपरित जन्म कुंडली में कमजोर बुध अन्य अशुभ ग्रहों के साथ मिलने पर परिवार और दोस्तों के बीच संबंधों में समस्या पैदा कर सकता है. धन और प्रतिष्ठा की हानि करता है . 

आत्मकारक बुध का प्रभाव 

अब जब बुध कुंडली में आत्मकारक होता है तो उसके जो भी सकारात्मक पक्ष हैं वह दो गुने रुप में हमारे सामने होते हैं. बुध का आत्मकारक होना व्यापार में व्यक्ति को सफलताओं को दिलाने में सहायक होता है. यदि बुध आत्मकारक होकर शुभ ग्रहों की दृष्टि एवं प्रभाव में होता है तो उसके कारण व्यक्ति को एक अच्छी सफलता पाने का सुख भी मिलता है. इसी प्रकार यदि आत्मकारक बुध अगर कमजोर होता है या बुध पाप ग्रहों के असर में होता है तब व्यापार में दूसरों की ओर से असहयोग अधिक मिलता है. व्यक्ति के अच्छे कार्यों को भी कोई सराहता नही हैं व्यापार में सफलता पाने के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है. 

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सूर्य के आत्मकारक होने पर प्रतिष्ठा के साथ मिलती हैं राजनीतिक सफलता

आत्मकारक ग्रह जीवन में इच्छाओं के साथ आकांक्षा को दर्शाता है. यह ग्रह मुख्य ग्रह है जिसके माध्यम से कुंडली के अन्य ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है. यदि आत्मकारक कमजोर या पीड़ित है, तो जीवन में गलत निर्णय अधिक हो सकते हैं. व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के लिए भी परेशानियां उत्पन्न कर सकता है. इस प्रकार, आत्मकारक ग्रह की उच्चतम अभिव्यक्ति को समझना और उसके अनुसार नियमों का पालन करना ही जीवन को बेहतर रुप से जीने का एकमात्र तरीका भी हो सकता है. 

यदि कुंडली में सूर्य आत्मकारक होकर मजबूत है, तो यह कुंडली के अन्य कारकों को अच्छे परिणाम देने में मदद करता है. यह कमजोर ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद करता है. लेकिन अगर सूर्य आत्मकारक ग्रह होकर कमजोर है, तो शुभ होकर भी सबसे अच्छा परिणाम देने में सक्षम नहीं हो पाता है.

ज्योतिष में आत्मकारक हमारे भीतर आत्मा को परिभाषित करता है. इसकी बाहरी अभिव्यक्ति आध्यात्मिक से अलग होती है, जिसका मतलब यह है कि हम आसानी से इच्छाओं की प्रकृति के जाल में फंस सकते हैं और सोच सकते हैं कि आत्मा केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति ही चाहती है. यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति सच्ची आत्मा के अनावरण की प्रक्रिया का हिस्सा है. आत्मा ही हमारी इच्छा के चक्र को नियंत्रित कर रही होती है. भौतिक इच्छाओं की पूर्ति अधिक से अधिक के लिए एक बढ़ती हुई भूख पैदा कर सकती है. नतीजतन, ये इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं, लेकिन सूर्य के आत्मकारक होने पर इन को नियंत्रित भी किया जा सकता है. किंतु इस के पिछे बहुत से अन्य तथ्य भी काम करने वाले होते हैं. 

सूर्य का दो रुपों में आत्मकारक होना 

आत्मकारक दो प्रकार के होते हैं – प्राकृतिक आत्मकारक और जैमिनी  आत्मकारक. यदि आत्मकारक द्वारा किए जाने वाले कार्य के पक्ष में हो तो कार्य सिद्ध होता है. यदि आत्मकारक की गतिविधि को स्वीकार नहीं करता है तो सिद्धि कठिन है. सभी जन्म कुंडली में सूर्य को प्राकृतिक आत्मकारक माना जाता है. सभी जन्म कुंडली में प्राकृतिक आत्मकारक सूर्य है. सूर्य हमारे व्यक्तित्व के केंद्र को प्रभावित करता है; इसे आत्मकारक के नाम से जाना जाता है. मानव शरीर पर सूर्य का पूर्ण प्रभाव होता है. इसलिए जब कुंडली में अन्य रुप से भी यह आत्मकारक बन जाता है तो इसका असर दोगुने रुप में हमें प्राप्त होता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्य की पहचान ब्रह्मांड की आत्मा के साथ-साथ व्यक्ति की आत्मा से की जाती है. इस प्रकार आत्मकारक, कारक कर्ता, जोड़तोड़ करने वाला और निर्देशक भी है. आत्मकारक कुंडली में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है. यह आत्मकारक से ही संभव होता है जिससे इष्ट देवता के बारे में जाना जाता है.  

आत्मकारक सूर्य के प्रभावों के बारे में सामान्य सिद्धांत 

आत्मकारक के रूप में सूर्य दर्शाता है कि व्यक्ति को अपने अहंकार पर काबू पाना सीखना होता है क्योंकि सूर्य की स्थिति व्यक्ति के भीतर अहम की भावना में वृद्धि करती है. इसलिए जब सूर्य आत्मकारक बनता है तो व्यक्ति को एक विनम्र और समझदार व्यक्ति बनने की भी आवश्यकता होती है. आत्मकारक सूर्य व्यक्ति की सफलता, प्रसिद्धि और शक्ति को पूरा करने की इच्छा को इंगित करता है. इसलिए, ये सब तभी प्राप्त हो सकते हैं जब व्यक्ति अहंकार को त्याग देता है और विनम्रता बनाए रखता है.

ज्योतिष में आत्मकारक आत्मा के संघर्ष को दर्शाता है, लेकिन सही रास्ता भी दिखाता है. यह हमें जीवन के अनुभवों को समझने में मदद करता है. ये अनुभव शिक्षाएं आमतौर पर आत्मकारक दशाओं और भुक्तियों के दौरान ही अधिक प्राप्त होती है. भौतिकवादी लक्ष्यों की पहचान आवश्यक है और हमें इन आवश्यकताओं को कम करके नहीं आंकना चाहिए. पृथ्वी पर एक आत्मा का जन्म दर्शाता है कि आत्मा को उच्च स्व को समझने के लिए तैयार होने से पहले पूरा करने के लिए एक सांसारिक मिशन है. ज्योतिष में आत्मकारक आपको आत्मा के भौतिक लक्ष्यों और आध्यात्मिक लक्ष्यों दोनों को दिखाएगा. इन लक्ष्यों को पूरी तरह समझना मुश्किल है. हालाँकि, हम एक हद तक प्रबुद्ध हो सकते हैं.

सूर्य आत्मकारक : लाभ और नकारात्मक प्रभाव 

यदि सूर्य जन्म कुंडली में उच्चतम डिग्री पर मौजूद होता है तो इस कारण सूर्य कुंडली में आत्मकारक, या आत्मा सूचक बन जाता है. लेकिन, यह स्थिति जैमिनी के स्तर पर विशेष रुप से अपना असर दिखाने वाली होती है. क्योंकि अधिकतम डिग्री में कोई ग्रह यदि 27 से अधिक दिखाई देगा आत्मकारक के रूप में हो सकता है ऎसे में ग्रह की ये स्थिति दो भावों के साथ साथ दो राशियों का असर भी दिखाने वाली होगी. उज्ज्वल पक्ष के रुप में आत्मकारक का असर विशेष बन जाता है लेकिन जीवन देने वाले सूर्य का क्या अर्थ रखता है. सूर्य आत्मा का सूचक है, यह सूर्य के लिए एक प्राकृतिक स्थिति है. सूर्य सभी के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रह है. 

सूर्य इच्छाशक्ति और रोशनी से भरा है, और आत्मकारक के रूप में यह एक व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए प्रेरित करता है. सूर्य एक श्रेष्ठ ग्रह है, और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होने के साथ-साथ जीवन के मूल अर्थ का अनुसरण करना चाहता है. प्रत्येक दिन सूर्य उगता है और पृथ्वी पर सभी सृष्टि के साथ अपनी गर्मी और प्रकाश उत्पन्न करता है. सूर्य का ये गुण भी उसे एक उदार और रचनात्मक ग्रह बनाता है एक क्षत्रिय ग्रह के रूप में, सूर्य आत्मा लोगों में नेतृत्व करने, अपने आदर्शों को बढ़ावा देने और अपने से कमजोर लोगों की रक्षा करने की एक सहज इच्छा प्रदान करता है.  बहादुरी, नेतृत्व, दुनिया में अपनी रचनात्मक शक्ति का उपयोग करना और अपने धर्म का पालन करना जीवन की मूलभूत बातों में देखा जाता है. 

सूर्य के द्वारा अधिकार, अहंकार और शक्ति को सीखने की बात प्रमुख होती है. सूर्य की गरिमा और स्थिति यह बताती है कि हम शक्ति का उपयोग कैसे करते हैं. फिर चाहे आप इसका उचित उपयोग करते हैं या इसका दुरुपयोग करते हैं. जरुरी है कि हम अधिकार को कैसे संभालते हैं. सूर्य आपके पिता का प्रतिनिधित्व करता है, आपके अपने पिता के साथ अतिरिक्त घनिष्ठ संबंध हो सकते हैं, पिता के साथ संबंधों के बारे में सबक सीखने की जरूरत है, या आपके पिता आपके रास्ते में आपकी मदद कर सकते हैं. यदि सूर्य आत्मिक ग्रह है, तो इसकी शक्ति जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

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शनि का सभी लग्नों पर असर और इससे मिलने वाले प्रभाव

शनि का प्रभाव प्रत्येक लग्न के लिए विशेष होता है. किसी लग्न में शनि बेहद खराब हैं तो किसी के लिए बेहद उत्तम होते हैं वहीं किसी के लिए सम भाव के साथ दिखाइ देते हैं. अब शनि हम पर कैसा असर डालता है वह कई बातों के आधार से समझा जाता है जिसका एक पक्ष शनि का लग्न प्रभाव भी होता है. शनि व्यक्ति को जीवन में अनुशासित रहना और न्याय का सम्मान करना सिखाता है. शनि एक शिक्षक की भाम्ति होता है जो ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करने के लिए तैयार करता है. 

मेष लग्न के लिए शनि 

मेष लग्न के लिए शनि दसवें और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. इस लग्न के लिए दशम भाव नौकरी व्यवसाय एवं कर्म का होता है तो एकादश भाव, आय का भाव माना जाता है. इन भाव में सबसे उपयोगी माने जाने वाले शनि का प्रभाव मेष लग्न के लिए मिलाजुला रहता है. आय में अप्रत्याशित वृद्धि होने की संभावना रहती है. एक से अधिक स्रोत से आमदनी भी प्राप्त होती है. जो भी चुनौतियां झेली हैं और जितनी मेहनत की है, वह सब शनि के प्रभाव द्वारा ही होती है जिनका पूरा फल भी मिलता है. सभी इच्छाएं और महत्वाकांक्षाएं पूरी होती हैं यदि प्रयास सदैव बने रहते हैं. 

वृष लग्न के लिए शनि 

वृष लग्न के लिए शनि नवम और दशम भाव का स्वामी ग्रह होता है. इस कारण काफी शुभ माना जाता है. शनि इनके भाग्य स्थान का स्वामी भी होता है. कर्म भाव के प्रभाव दिखाने वाला होता है. इस लग्न के लिए शनि भाग्य और कर्म भाव दोनों का स्वामी होने के कारण अनुकूल अवसरों का प्रबल कारक भी बन जाता है. अप्रत्याशित विजय दिलाने में सहायक भी बनता है. कर्मों के स्वामी होकर यह परिणाम को प्रभावित करता है. 

मिथुन लग्न के लिए शनि 

शनि मिथुन लग्न के लिए अष्टम और नवम भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि का मिथुन लग्न पर अच्छा और खराब दोनों तरह का फल देखने को मिलता है. भाग्य भाव का स्वामी होकर शनि दूर की यात्रा के योग बनाता है. लंबी यात्राएं आपके जीवन में सफलता के योग ला सकती हैं. वहीं अष्टम का स्वामी होने के कारण हालाँकि ये यात्राएँ आपको थकान और बेचैनी से भी प्रभावित करने वाली भी हो सकती हैं. पिता के साथ आपके संबंध प्रभावित होते हैं, यह स्थिति पिता की सेहत के लिए भी विशेष होती है. अपनी मेहनत से अपना भविष्य बनाने का मौका देता है. इसलिए मिथुन लग्न वाले जितनी मेहनत करते हैं उतना ही अधिक फल पाते हैं. 

कर्क लग्न के लिए शनि 

कर्क लग्न के लिए शनि सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी ग्रह होता है. कर्क राशि के लिए शनि अच्छा नहीं माना जाता है. कामकाज में सदैव चुनौतियां आती हैं. पूरे प्रयास करने पर ही सफल हो सकते हैं. काम को लेकर दबाव के साथ मानसिक तनाव भी रहता है. वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव रहता है. कर्क लग्न के लिए शनि की ढैय्या साढेसाती बेहद खराब होती है. मेहनत और चतुराई से जीवन की परेशानी से निकलने में कामयाब होते हैं. अचानक धन लाभ होने के योग भी बनते हैं. स्वास्थ्य को लेकर भी अधिक ध्यान रखना होता है. 

सिंह लग्न के लिए शनि 

सिंह लग्न के लिए शनि छठे और सातवें भाव का स्वामी ग्रह होता है. सिंह के लिए भी शनि खराब ग्रह ही होता है. वैवाहिक जीवन को लेकर काफी अव्यवस्थित महसूस करवाता है. स्वभाव या तानाशाही रवैया जीवन में परेशानी का सबब बनता है. प्रेम संबंधों का सुख भी साधारण ही मिलता है. कार्यक्षेत्र में व्यापार में सफलता मिलने के योग संघर्ष के पश्चात ही मिलते हैं. कार्यकुशलता  सफलता दिलाने में सहायक बनती है. शत्रुओं एवं रोग का प्रभाव पड़ता है. 

कन्या लग्न के लिए शनि

शनि कन्या लग्न के लिए पंचम भाव और षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि इन पर मिलाजुला असर डालता है. विरोधियों को देता है और उनसे लड़ने की क्षमता भी देता है. अपने शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम बनाता है. आर्थिक क्षेत्र में कर्ज इत्यादि से प्रभावित कर सकता है. संतान सुख को लेकर अधिक चिंता दे सकता है. अपने जीवन में कर्म एवं परिश्रम को करने से ही शनि बेहतर परिणाम देता है.

तुला लग्न के लिए शनि 

शनि तुला लग्न के लिए चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी ग्रह होता है. तुला लग्न के लिए शनि बेहद शुभ ग्रह माना गया है. अच्छे भावों का स्वामी होकर जीवन में सुख समृद्धि को प्रदान करने वाला ग्रह होता है. पंचम भाव का स्वामी होकर शनि प्रेम संबंधों के लिए परीक्षा का समय देता है और अगर अपने रिश्ते में ईमानदार और वफादार होते हैं तो रिश्ता बहुत खूबसूरत बनाता है. शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा अर्जित करने का अवसर भी देता है. भौतिक सुख साधनों को प्रदान करता है. 

वृश्चिक लग्न के लिए शनि 

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तीसरे और चौथे भाव का स्वामी होता है. चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शनि का प्रभाव परिवार से दूर ले जाने का काम करता है. व्यक्ति को अपना जन्म स्थान बदलना होता है. घर परिवार से दूर जा कर ही सफलता मिलने के अधिक अवसर होते हैं. 

धनु लग्न के लिए शनि 

धनु लग्न के लिए शनि दूसरे और तीसरे भाव का स्वामी ग्रह होता है. धनु लग्न पर इसका प्रभाव परिश्रम और अत्यधिक प्रयासों के लिए होता है. साढ़ेसाती का असर अधिक पड़ता है. व्यक्ति अपने काम को करने में धीमा होता है, लेकिन जो भी काम करना चाहता है उसे पूरी शिद्दत से करता है. सफलता पाने में सामाजिक रुप से सफल रहता है. व्यक्ति के दोस्त हों, पड़ोसी, रिश्तेदार या भाई-बहन, सभी काम में सहयोग देने वाले होते हैं. 

मकर लग्न के लिए शनि 

मकर लग्न के लिए शनि  लग्न और दूसरे भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि का प्रभाव मिश्रित परिणाम लेकर आता है. परिवार में तनाव का माहौल मिलता है. बड़ा परिवार प्राप्त होता है. अपनों के साथ कुछ मनमुटाव महसूस करता है. व्यक्ति का बैंक बैलेंस स्थिर होता है. धन संचय करने में सफल रहता है. प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से भी अच्छा मुनाफा पाता है. परिवार की जरूरतों को पूरा करने में खुद को सीमित रखता है. 

कुंभ लग्न के लिए शनि 

कुम्भ लग्न के लिए शनि बारहवें ओर लग्न भाव का स्वामी होता है. शनि के प्रभाव के कारण व्यक्ति को अपने कार्यों को सही दिशा में करना होता है. अपने कार्यक्षेत्र में मेहनत अधिक रहती है ओर सफलता सामान्य होती है. जितनी अधिक मेहनत करता है व्यक्ति उतने ही अच्छे परिणाम पाने में सक्षम होता है. जीवन में नवीनताओं से जुड़ाव पाता है और उन्मुक्त होकर जीने की चाह रखता है. 

मीन लग्न के लिए शनि 

मीन लग्न के लिए शनि एकादश भाव और बारहवें भाव का स्वामी ग्रह होता है. इनके लिए शनि मिलेजुले प्रभाव देने वाला ग्रह होता है. जीवन में स्वास्थ्य पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. शनि का प्रभाव पैरों में दर्द, टखनों में दर्द या पैर में किसी तरह की चोट या मोच दे सकता है. नेत्र संबंधी विकार भी कुछ अपना असर डाल सकते हैं. यात्राओं को प्रदान करता है और इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता भी देता है. 

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मंगल केतु का एक साथ होना क्यों होता है नकारात्मक

मंगल और केतु यह दोनों ही ग्रह काफी क्रूर माने जाते हैं. इन दोनों का असर जब एक साथ कुंडली में बनता है तो यह काफी गंभीर ओर नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है. इन दोनों ग्रहों की प्रकृति का स्वरुप ऎसा है की यह तोड़फोड़ की स्थिति को दिखाने वाले होते हैं. मंगल यह ऊर्जावान, अधीर, शीघ्र निर्णय लेने वाला और जोखिम लेने वाला होता है. वहीं केतु विरक्ति से पूर्ण अलगाव, अकेलापन, आध्यात्मिक चिंतन का ग्रह होता है.

यदि दोनों ग्रह सकारात्मक हैं तो यह आपको जीत अवश्य दिलाते हैं लेकिन इसके विपरीत कमजोर मंगल अनुकूल फल नहीं दे पाता है. मंगल केतु के साथ होने पर का होना भाव स्थिति के अनुसार एवं राशि प्रभाव अनुसार अपना असर दिखाता है. केतु ग्रह का स्वभाव मंगल ग्रह से काफी मिलता-जुलता है जिस कारण कुजवत केतु कहा जाता है. केतु उच्च का होता है तो व्यक्ति का भाग्य बदल देता है. मंगल की तरह केतु ग्रह को भी साहस और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है.

कुंडली के प्रथम भाव में मंगल और केतु का असर 

कुंडली के प्रथम भाव में मंगल और केतु का होना व्यक्ति को उग्र होने के साथ साथ आक्रामक भी बना सकता है. इस का प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव एवं उसके आचरण की तीव्रता को दर्शाने वाला होता है. स्वतंत्र होकर काम करने का असर व्यक्ति में अधिक होता है. व्यक्ति में शक्ति को प्रदर्शित करना दिखावा करना भी होता है. धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में आगे रह सकता है. व्यर्थ  की चिंताएं घेर सकती हैं. गलत फैसले लेने के कारण दूसरों के कारण अपमान भी झेलना पड़ता है. जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो सकती है तथा अलगाव की स्थिति असर डालती है. .

कुंडली के दूसरे भाव में मंगल और केतु

दूसरे भाव में मंगल और केतु का प्रभाव व्यक्ति को उग्र भाषा शैली प्रदान करने वाला होता है. ऎसे में वाणी में संयम रखना चाहिए. परिवार से अलगाव की स्थिति रह सकती है. बचपन में परेशानी अधिक जेलनी पड़ सकती है. स्वास्थ्य समस्याएं भी अधिक परेशानी देने वाली हो सकती हैं. इस दौरान आपको सामाजिक स्तर पर सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि विवाद में फंसने की स्थिति अधिक रहती है. धन का निवेश सोच समझ कर ही करना उचित होता है. अनुभवी व्यक्ति की सलाह लेकर ही आगे बढ़ना उचित होता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में मंगल और केतु

तीसरे भाव में मंगल और केतु का असर काफी अच्छे असर दिखा सकता है. इसके प्रभाव  को साहसी बनाता है. कार्यक्षेत्र में सहयोग की कमी रहने पर भी व्यक्ति अपने बल पर आगे बढ़ने में सक्षम होता है. खर्चे भी अधिक होता है लेकिन इसके साथ ही बचत के लिए कई तरह की योजनाओं का लाभ मिलता है. भाई-बहनों के मामले में सुख की कमी रह सकती है या विवाद हो सकता है. इस दौरान छोटी दूरी की यात्राएं लाभकारी हो सकती हैं. नौकरी व्यवसाय में सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त होता है. सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा की प्राप्ति का योग बनता है. 

कुंडली के चौथे भाव में मंगल और केतु

चतुर्थ भाव में मंगल और केतु का होना अप्रत्याशित चिंताओं को दे सकता है. अपने परिवार से दूर जाकर निवास करना पड़ सकता है. सेहत के मामले में भी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है.  इस योग के प्रभाव से हृदय के रोग अधिक परेशानी दे सकते हैं. माता के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता अधिक रहती है. जमीन से संबंधित विवाह अधिक झेलने को मिल सकते हैं. कोर्ट केस या कानूनी मामले परेशानी का सबब बनते हैं. 

कुंडली के पंचम भाव में मंगल और केतु 

पंचम भाव में मंगल और केतु का होना शिक्षा को कमजोर करता है. शिक्षा के क्षेत्र में मिश्रित परिणाम देखने को मिल सकते हैं. खेलकूद से संबंधित गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं. उच्च शिक्षा में कुछ बाधा हो सकती है. संतान पक्ष से भी कुछ चिंताएं हो सकती हैं. प्रेम जीवन में संतुलन लाने के लिए आपको प्रयास करने पड़ सकते हैं. व्यक्ति को दोस्तों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

कुंडली के छठे भाव में मंगल और केतु  

छठे भाव में मंगल और केतु का होना अनुकूल माना जाता है. इसके प्रभाव से सफलताएं प्राप्त होती हैं. शत्रुओं को परास्त करने में सफलता मिलती है. व्यक्ति को करियर क्षेत्र में अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. अपने विरोधियों पर हावी रहते हैं. स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना होता है कोई सर्जरी इत्यादि की संभावना अधिक रह सकती है. पारिवारिक जीवन में मिलेजुले परिणाम की प्राप्ति होती है. कानूनी मसलों के लिए यह योग बेहतर माना गया है. 

कुंडली के सातवें भाव में मंगल और केतु  

सप्तम भाव में मंगल और केतु का योग साझेदारी से जुड़े कामों को कमजोर बनाता है. वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डलता है. अलगाव एवं विवाह में तलाक की स्थिति झेलने पड़ सकती है. जीवनसाथी थोड़े आक्रामक स्वभाव का भी हो सकता है. वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाने के लिए अधिक कोशिशें करने पड़ती हैं. साझेदारी के व्यवसाय में कदम सूझबूझ से उठाने की जरुरत होती है. सामाजिक स्तर पर विवादों से बचने की कोशिश करनी चाहिए. 

कुंडली के आठवें भाव में मंगल और केतु

अष्टम भाव में मंगल और केतु का होना आध्यात्मिक एवं गुढ़ ज्ञान के लिए अनुकूल होता है. तंत्र इत्यादि कामों से जुड़ सकते हैं. लेकिन सेहत के लिए खराबी देने वाली स्थिति होती व्है. अचानक होने वाली दुर्घटनाएं जीवन पर गहरा असर डालती हैं. आपसी संबंधों में अलगाव अधिक रह सकता है. 

कुंडली के नवें भाव में मंगल और केतु

नवम भाव में मंगल और केतु का होना व्यक्ति को अलग विचारधारा प्रदान करने वाला होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अपनी परंपराओं से अलग सोच रख सकता है. धार्मिक कार्यों से दूरी बना सकते हैं. करियर के मामले में लाभ मिलने की संभावना अचानक से ही मिल पाती है. जीवनसाथी के साथ प्रेम और तालमेल कमजोर रह सकता है. पिता के साथ सुख का अभाव हो सकता है. 

कुंडली के दसवें भाव में मंगल और केतु

दशम भाव में मंगल और केतु का प्रभाव व्यक्ति को संघर्ष अधिक देता है लेकिन करियर क्षेत्र में तरक्की भी मिल सकती है. अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ तालमेल में कमी का अनुभव हो सकता है. दूसरे लोग छवि को कमजोर करने में लगे रह सकते हैं. परिवार में लोगों के साथ आपके संबंध मिलेजुले रुप में ही अधिक दिखाई देते हैं. 

कुंडली के ग्यारहवें भाव में मंगल और केतु

दशम भाव में मंगल और केतु का योग अनुकूल माना गया है. अपने जीवन में प्रगति को लेकर संघर्ष करना और सफलता पाने की उम्मीद भी बनी रहती है. व्यक्ति को करियर क्षेत्र में तरक्की को पाने में सक्षम होता है.  प्रेम संबंधों में रोमांचक महसूस करता है. दोस्तों का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है लेकिन अपने परिश्रम द्वारा सफलता मिलती है. 

कुंडली के बारहवें भाव में मंगल और केतु

बारहवें भाव में मंगल और केतु का योग विदेशी मामलों में अच्छे लाभ दिलाता है. धन खर्च अधिक रह सकता है. सेहत में कमी बनी रहती है. अचानक होने वाली दुर्घटनाओं के कारण मानसिक चिंता अधिक होती है. नौकरी या व्यवसाय में काम करने वालों से विवाद होने की संभावना अधिक प्रभाव डालने वाली होती है.

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