सूर्य का छठे भाव में होना शत्रुओं एवं विरोधियों को करता है समाप्त

छठे भाव में सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय दिलाएगा. आप अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ विलय करेंगे और सौहार्दपूर्ण तरीके से एक साथ काम करेंगे. छठे भाव में स्थित सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय पाने की ओर सफल रहेगा. दैनिक कार्यों को अनुशासित रुप से करने वाला भी होता है. उन्मुक्त जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, विशेष रूप से जन संपर्क के कार्य करने में आगे रह सकता है.

मित्रों और शत्रुओं के साथ रचनात्मकता होकर प्रदर्शन करता है. अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ रणनीति के अनुसार काम कर पाता है. मुकदमेबाजी एवं कानूनी कामों में यहां बैठा सूर्य बेहतर परिणाम दिलाने वाला होता है. सूर्य का असर व्यक्ति को एक सफल वकील, राजनेता, चिकित्सक, पशु चिकित्सक, चिकित्सा व्यवसायी, डॉक्टर भी बना सकता है, सूर्य यहां पर व्यक्ति को एक अच्छा मार्गदर्शन देने वाला होता है.

सकारात्मक सूर्य प्रभाव
छठे भाव में सकारात्मक सूर्य आपके शत्रुओं को हराने में मदद्गार होता है. अपने विरोधियों के प्रति व्यक्ति जागरूक रहता है. एक सतर्क व्यक्ति होकर काम करने वाला गुण मिलता है. सूर्य की अच्छी स्थिति है जो व्यक्ति को शक्ति प्रदान करती है. काम के प्रति ईमानदार और दृढ़ भी बनाती है. व्यक्ति को अपने शत्रुओं से भी प्रशंसा प्राप्त होती है.

व्यक्ति एक साहसी और अधिकार संपन्न व्यक्तित्व को पाता है. सफलता प्राप्त कर सकता है. सर्वोच्च पदों में जाता है और अपनी इच्छाओं को पूरा करता है. पथप्रदर्शक भी बनता है दूसरे लोग इनके नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा करने वाले होते हैं. व्यक्ति प्रभावशाली और रचनात्मक कार्यों के लिए सम्मानित भी होता है. साहसी रवैया जीवन में खुशियां देने वाला होता है.

नकारात्मक प्रभाव सूर्य प्रभाव
सूर्य, अशुभ होने के कारण, यहां व्यक्ति को शत्रुओं से अधिक प्रभावित कर सकता है. व्यक्ति दूसरों की सेवा करने के लिए अधिक तत्पर दिखाई देता है ऎसे में वह स्वयं को लेकर भी उदासीन हो सकता है. छठे भाव में सूर्य उन शत्रुओं का सामना करता है जो छुप कर वार करने वाले होते हैं. साजिशों का शिकार भी बना सकता है. यदि सूर्य छठे भाव में अच्छी तरह से स्थित नहीं है, तो यह जीवन में बहुत सारी प्रतिकूलताएं दे सकता है. परिस्थितियों के प्रतिैअसंवेदनशील बना सकता है. लोगों के साथ संबंध खराब कर सकता है. अलगाव एवं जीवन साथी के साथ विरोध दे सकता है. पिता का सुख कमजोर कर सकता है. मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कोई कोर्ट केस, विवाद और कानूनी मामलों में जीतने की संभावना कम कर सकता है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से प्रभावित कर सकता है. लड़ने की क्षमता को कम करता है, आर्थिक रूप से भी कमजोर कर सकता है.

राशि चक्र की हर राशि पर सूर्य का असर अलग होता है. जन्म कुंडली के छठे भाव में सूर्य इनकी विशिष्ट विशेषताएं, आदतें, शक्ति और कमजोरियां को दर्शाता है.

मेष राशि – मेष राशि में सूर्य व्यक्ति की नौकरी के क्षेत्र में महत्व हासिल करने की इच्छा की बात करता है. ऐसे व्यक्ति की दक्षता अविश्वसनीय रूप से अधिक होती है, कभी-कभी वह अपने कार्य कर्तव्यों को छोड़कर सब कुछ भूल जाता है. काम के प्रति उसका समर्पण उसे वह काम करने के लिए आगे रखता है.

वृषभ राशि – वृष राशि में सूर्य एक व्यक्ति को रूढ़िवादी के गुणों से संपन्न करता है. परिवार और उसका स्वास्थ्य कुछ कमजोर पड़ जाता है, कठोर भाषा एवं अलगाव भी इसका असर दिखाता है. संतान के सुख पर असर पड़ता है.

मिथुन राशि – छठे भाव में सूर्य, मिथुन राशि में होने पर व्यक्ति कुशल एवं रचनात्मक बनता है. विविध प्रकार की रुचियों के साथ बहुमुखी व्यक्तित्व भी प्राप्त होता है. इसका मुख्य कार्य स्थिरता और सुरक्षा को पाने का भी होता

कर्क राशि – कर्क राशि में सूर्य परिवार और जीवन से बंधन देता है. यहां भावनाओं को लेकर वह अधिक पीड़ित रह सकता है. मानसिक रुप से किसी चीजे के प्रति उसकी ताकत अधिक लग सकती है. चीजों के प्रति आस्कत होता है, स्वास्थ्य को लेकर परेशानी झेल सकता है.

सिंह राशि – सिंह राशि पर सूर्य का प्रभाव अच्छा रहता है. व्यक्ति काम के प्रति लगाव रखता है अपने विरोधियों को परास्त कर सकता है. मान्यता और नेतृत्व के लिए प्रयास करता है. व्यक्ति की सभी गतिविधियाँ इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से होती हैं.

कन्या राशि – कन्या राशि में सूर्य का असर व्यक्ति को समाजिक कल्याण से जोड़ता है. व्यक्ति परिश्रमी ओर दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी होता है. कर्मठ एवं शत्रुओं को परास्त करने के साथ उनके साथ मित्र भाव रखने वाला होता है. व्यक्ति केवल स्वयं के लाभ के लिए नहीं, बल्कि अन्य लोगों के लाभ के लिए भी कार्य करने वाला होगा.

तुला राशि – तुला राशि में सूर्य का होना उपयोगी संपर्क और संबंध बनाने की कला देता है. व्यक्ति करियर की आकांक्षाओं को साकार करने में आगे रहता है. रिश्तों के प्रति वह काफी लगाव रखता है स्वास्थ्य को लेकर चिंता रह सकती है. शत्रुओं के द्वारा परेशानी अधिक होती है. मान सम्मान के लिए संघर्ष रहता है.

वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि में सूर्य का होना यहां विकास और परिवर्तन के लिए काम करने की प्रवृत्ति देता है. वह चालाकी से अपने शत्रुओं को हराने में सक्षम होता है. अपने गुढ़ ज्ञान द्वारा वह दूसरों को प्रभावित कर सकता है.

धनु राशि – धनु राशि में छठे भाव में सूर्य व्यक्ति को काफी प्रगतिशील बना सकता है. व्यक्ति की मुख्य जीवन आकांक्षा प्रियजनों की देखभाल करना, अपने घर की रक्षा करना और जीवन को बेहतर रुप से जीने की होती है. अपने विरोधियों को परास्त कर देने में व्यक्ति कुशल होता है.

मकर राशि – छठे भाव में सूर्य के मकर राशि में होने पर व्यक्ति कुछ मामलों में दूसरों के प्रति आक्रामकता और असहिष्णुता हो सकता है. व्यक्ति अपने आप को स्थापित करने के लिए काफी सजग एवं विचारशील होता है. परंपराओं के प्रति वह मजबूत् होता है.

कुंभ राशि – छठे भाव में स्थित सूर्य कुंभ राशि में होने पर व्यक्ति को उत्कृष्ट कार्यकर्ता बनाता है, जो एक ही समय में कई चीजों का प्रबंधन करने में सक्षम होता है. व्यक्ति कुछ लापरवाह भी हो सकता है. व्यक्ति का दृष्टिकोण काफी विस्तारित होता है.

मीन राशि – छठे भाव में सूर्य के मीन राशि में होने पर व्यक्ति काफी बातों को लेकर भावनात्मक हो सकता है. परोपकार से जुड़े कामों को करता है. जीवन में अपनों के प्रति समर्पण का भाव भी रखता है. गुप्त शत्रुओं के द्वारा परेशान हो सकता है.

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सूर्य का पंचम भाव में होना बौद्धिकता एवं ज्ञान की अभिव्यक्ति

ज्योतिष में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है, यह हमारे स्वयं को, हमारी समग्र ऊर्जा और हमारे व्यापक अस्तित्व को व्यक्त करने के तरीके को प्रभावित करता है. जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है, तो यह सूर्य नहीं है जो शारीरिक रूप से गतिमान है, बल्कि इसके बारे में हमारा दृष्टिकोण है और इसलिए, पृथ्वी से इसकी ऊर्जाओं के साथ हमारा संबंध विशेष रहता है. पौराणिक कथाओं में सूर्य, रोमन पौराणिक कथाओं में, सूर्य अपोलो, ग्रीक पौराणिक कथाओं में, हेलियोस, प्रकाश के देवता या सूर्य देवता के साथ जुड़ा हुआ है. सूर्य सिंह राशि से जुड़ा है, जैसे सूर्य सौर मंडल का केंद्र है, वैसे ही लियो सिंह को सभी के ध्यान का केंद्र बनना पसंद है. 

ज्योतिष शास्त्र में, सिंह राशि के लोगों को आकर्षण और गर्मजोशी के साथ चकाचौंध करने के लिए जाना जाता है. सूर्य इन सभी विशेषताओं का भौतिक रूप है. सूर्य अभिव्यक्ति के पंचम भाव पर स्थित होता है. पांचवां घर रचनात्मकता और मस्ती को प्रोत्साहित करता है, यह घर, सूर्य और सिंह की तरह, नए अनुभवों के लिए खुला है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य एक ग्रह है और सभी ग्रहों का राजा माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि सौरमंडल के सभी ग्रह सूर्य के प्रकाश से चमकते हैं. इसलिए, यह ज्योतिष में एक आवश्यक भूमिका निभाता है और सबसे शक्तिशाली और आधिकारिक ग्रह है.

पंचम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध

पंचम भाव के अन्य भावों को कुंडली के अन्य भावों से जोड़ा जा सकता है. इसका संबंध जीवन के उन क्षेत्रों से होता है जो जीवन की गति एवं उसके विकास में मुख्य भूमिका को निभाते हैं. पंचम भाव बच्चों के लिए विशेष स्थान होता है. यह कला, मीडिया, रचनात्मकता, मंच प्रदर्शन, सिनेमा, खुशी और मनोरंजन से संबंधित बातों को दर्शाता है. इस भाव स्थान को प्रेम एवं रोमांस के लिए भी देखा जाता है. अस्थायी आश्रय या आवास का प्रतिनिधित्व करता है. सीखने की प्रेरणा इसी पंचम भाव के द्वारा समझ आती है. पंचम भाव उन चीजों का प्रतिनिधित्व करता है जो आप इस जीवन में सीखते हैं. यह भाव गणित, विज्ञान, कला आदि का प्रतिनिधित्व करता है और इन पर विशिष्ट पकड़ देता है. कुंडली के पंचम भाव से शेयर बाजार, सट्टा लाभ, सिनेमा, धन लाभ या हानि देखी जाती है.

पंचम भाव राजनीति, मंत्रियों, अपने घर की जमीन, अचल संपत्ति, अपने परिवार की संपत्ति से कुछ कमाने की कोशिश का प्रतिनिधित्व करता है. परिवार के पास कितना धन है यह कुंडली के पांचवें भाव से देखा जाता है. पंचम भाव छोटे भाई-बहनों की बुद्धिमत्ता, अहंकार और संचार क्षमता, माता के धन और लाभ,  बच्चों के खर्च, साथी की इच्छा और लाभ,  जीवनसाथी के बड़े भाई-बहनों का प्रतिनिधित्व करता है. गुप्त हुए ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. यह धर्म का उच्चतम स्थन भी माना जाता है. दर्शन, धार्मिक विश्वास, आध्यात्मिक विश्वास और गुरुओं से प्राप्त किया जाने वाला ज्ञान भी महत्वपूर्ण है. इस घर को कर्म और पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करता है. नौकरी प्राप्त करने एवं नौकरियों में नए अवसर पाने की स्थिति को दर्शाता है. इच्छा का अंत, इच्छा को समाप्त करना, मुक्ति या मोक्ष पाने की कोशिश में बाधाएं या आध्यात्मिक प्रगति में बाधा.

वैदिक ज्योतिष में पांचवां घर आनंद के बारे में है. जो खुशी अक्सर आपके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का परिणाम रुप ही होती है, इसलिए पंचम भाव आत्म-अभिव्यक्ति से संबंधित है जो आपको प्रसन्न करता है. यह मानसिक बुद्धिमत्ता, नया करने की क्षमता, नए विचारों को पुरानी अवधारणाओं में होने का प्रतीक है. कला और लेखन सहित रचनात्मक अभिव्यक्ति के सभी रूपों पर इस घर का अधिकार होता है. पिछले जन्मों में आपके द्वारा किए गए अच्छे कर्म और यह आपकी कलात्मक क्षमताओं के रूप में कैसे प्रकट होते हैं, इसे भी पंचम भाव से देखा जा सकता है. संतान होने की क्षमता, संतान की संभावनाएं, गर्भाधान, गर्भपात, बच्चों के साथ संबंध और उनका स्वास्थ्य सभी कुंडली में पंचम भाव से नियंत्रित होता है. पुत्र जन्म का भी संकेत देता है, इसलिए वैदिक ज्योतिष में इसे पुत्र भाव कहा गया है.

अब हम सूर्य और अन्य ग्रहों के बीच संबंध को जानते हैं, कि इन ग्रहों के साथ सूर्य की युति पंचम भाव में होने पर कैसा असर दिखाती है.

पंचम भाव में सूर्य का होना और उसका प्रभाव 

पंचम सूर्य का प्रभाव जीवन को एक अलग ही रंग रुप देने वाला होता है. इस भाव में सूर्य का प्रकाश भाव के गुणों को भी प्रकाशित कर देने वाला होता है. इस भाव में सूर्य की स्थिति आध्यात्मिक रुप से विशेष फल देने वाली होती है. सुर्य जो आत्मा एवं शक्ति का प्रतिक है पंचम भाव में सूर्य शैक्षणिक क्षेत्र में अच्छा देता है. बौद्धिक क्षमताओं के प्रति अत्यधिक अच्छे होते हैं. यह भाव व्यक्ति को नेता बनाने की दिशा में काम करता है. सूर्य पंचम भाव में सहज महसूस करता है, जो कि सूर्य की स्वाभाविक राशि सिंह है. जब सूर्य पंचम भाव में स्थित होता है, तो यह अहंकार, आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है, यह विचारों, राजनीति, रचनात्मकता, दर्शन, प्राचीन पाठ, और वह सब कुछ जो आपका अवचेतन अन्वेषण करने के लिए संपन्न हो रहा है, को प्रकाशित करता है. बौद्धिक क्षेत्र में उच्च स्तर का आत्मविश्वास देता है.  ज्ञान, व्यावसायिक क्षमता, रचनात्मकता को प्रतिष्ठित तरीके से व्यक्त करते हैं. 

सूर्य और चंद्रमा पंचम भाव में

पंचम में सूर्य और चंद्रमा एक साथ होने पर व्यक्ति दृढ़निश्चयी, केंद्रित और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला हो सकता है. ऊर्जा से जीवन भरा होता है, जो कुछ भी चाहते हैं उसे पूरा करने के लिए अथक परिश्रम करने की कोशिश भी करते हैं.  

सूर्य और बुध पंचम भाव में

सूर्य और बुध पंचम भाव में होने पर अच्छा बुधादित्य योग बनता है. इस योग के द्वारा बुद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है.  सीखने और समझने की क्षमता कई क्षेत्रों में प्रगति करने में मदद करने वाली होती है.

सूर्य और मंगल पंचम भाव में

सूर्य और मंगल का पंचम में होना अंगारक दोष बनता है. व्यक्ति क्रोधी स्वभाव को पाता है. अक्सर अपना आपा खो देते हैं लेकिन गुस्सा कुछ ही समय के लिए ही रहता है. आवेगी और अचानक लिए गए फैसले किसी दिन किसी समस्या का कारण बन सकते हैं.  

सूर्य और गुरु पंचम भाव में

पंचम में सूर्य और बृहस्पति अच्छा आध्यात्मिक प्रभाव देता है. बृहस्पति वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारे आंतरिक स्व का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए यह योग जातकों में धार्मिक गतिविधियों और आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव देता है.

सूर्य और शुक्र पंचम भाव में

पंचम में सूर्य और शुक्र के होने से ऊर्जा का संचार होता है. सुख और वैभव पर अधिकार जताने की चाह एवं रिश्तों में अपना वर्चस्व पाने की इच्छा होती है. संतान सुख में थोड़ा देर भी हो सकती है. प्रेम संबंधों में कुछ असंतोष हो सकता है.  

सूर्य और शनि पंचम भाव में

सूर्य के पुत्र हैं शनि देव और उनके बीच संबंध अनुकूल नहीं हैं. अत: जब यह संयोग करता है तो श्रापित दोष बनता है. इसलिए व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. पिता और पुत्र के साथ संबंध मधुर नहीं रह सकते हैं.  

सूर्य और राहु पंचम भाव में

सूर्य के साथ छाया ग्रहों की युति शुभ नहीं मानी जाती है. यह ग्रहण दोष बनाता है. सूर्य पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करता है और पंचम भाव भी कर्म से संबंधित होता है तो, सूर्य और राहु या केतु की युति भी पितृदोष बनाती है. सफलता और विकास का मार्ग बाधाओं से भरा है

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सूर्य चतुर्थ भाव में परिवार, करियर और सुख को करता है प्रभावित

सूर्य का चतुर्थ भाव में होना, मिले-जुले फल मिलते हैं जिसमें आप को भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति तो होती है . साथ में जिम्मेदारियों को भी आप अवश्य पाते हैं. चतुर्थ भाव में सूर्य व्यक्ति को  अपने परिवार से जुड़ा हुआ पाता है लेकिन परिवार के लोगों के प्रति अधिक समर्पण कम ही मिल पाता है. लोग व्यक्ति को अभिमानी एवं अहंकारी भी समझ सकते हैं. सूर्य कुछ ऎसी स्थिति देता है की व्यक्ति स्वयं को काफी मजबूत व्यक्तित्व के रुप में स्थापित कर लेता है. सूर्य की स्थिति का प्रभव व्यक्ति के खुद के जीवन के साथ साथ ओरों पर भी पड़ता है. व्यक्ति अपने मनोकूल परिणामों को पाने के लिए संघर्ष भी अधिक करता है. 

चौथे भाव में सूर्य का विशेष प्रभाव 

चतुर्थ भाव में सूर्य घर और परिवार के सदस्यों से जोड़ता है. मकान या बड़े भूभाग की प्राप्ति का भी योग बनता है. सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए समय बेहद विशेष होता है. इस समय के दोरान व्यक्ति को कई तरह के आय के स्त्रोत भी प्राप्त हो सकते हैं. उसके पास कुछ पुराणि वस्तुओं का भी संग्रह दिखाई दे सकता है. घर को सुंदर रुप में सजाना और व्यवस्थित रखना भी व्यक्ति को पसंद होता है. व्यक्ति कुछ मामलों में अपने रहन सहन का दिखावा भी कर सकता है. 

काल पुरुष कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव में 

चतुर्थ भाव में सूर्य की स्थिति को यदि कालपुरुष कुंडली के अनुसार देखा जाए तो यह चंद्रमा का स्थान बन जाता है जहां उसका मित्र सूर्य विराजमान है. ज्योतिष में चतुर्थ भाव स्थान को खुशी एवं सुख से संबंधित माना गया है. इस घर के द्वारा जीवन की कई चीजों की पूर्ति संभव हो पाती है. इसे माता का घर भी माना जाता है. यह निजी जीवन, घर के भीतर की छवि, परिवार के लोगों के साथ संबंध, सुख-सुविधाओं और स्कूली शिक्षा को दिखाता है.  यह मन की शांति, गृहस्थ जीवन, निजी संबंधियों, घर, आत्म-समृद्धि, भोग-विलास, वाहन, भूमि और पैतृक संपत्ति, सामान्य सुख, शिक्षा, वाहन का प्रतिनिधित्व करता है. यह स्थान जड़ी बूटियों, खजाने और छिद्रों और गुफाओं में प्रवेश को दर्शाता है. 

यह घरेलू वातावरण और सामान्य स्थिति से संबंधित होता है. यह हमारे घर, गृह मामलों, रहस्यों की छिपी हुई चीजों का प्रतिनिधित्व करता है.  उत्तर कलामृत में यह भाव विद्या, माता, तेल, स्नान, संबंध, जाति, रिक्शा जैसे वाहन, छोटी नाव, छोटा कुआं, पानी, दूध, गाय, दुधारु पशुओं, अनाज, लाभ आदि को दर्शाता है. आर्द्रभूमि में, चिकित्सा, महान अलौकिक प्रभावकारिता, विश्वास, झूठा आरोप, मंडप, एक तालाब या कुआँ खोदना और सार्वजनिक उपयोग के लिए उसकी स्थापना, हवेली, कला, एक घर में प्रवेश करना, निष्कर्ष, किसी के आवास की हानि, पैतृक संपत्ति , आकाशीय भोजन, चोरी की संपत्ति कहा होगी यह पता लगाने की कला, और वैदिक ग्रंथों का विकास भी इसी से देखा जाता है. 

चौथा घर विवाह के बाद आपके परिवार, बच्चों, पत्नी आदि और आपकी संयुक्त संपत्ति का भाग्य, ससुराल वालों का भाग्य, सट्टा व्यवसाय के माध्यम से लाभ हानि, माता पक्ष के लिए लाभ, ऋण, रोग और शत्रुओं पर काबू पाने को दर्शाता है , शत्रुओं के माध्यम से लाभ. यह घर आपके जीवनसाथी के करियर या पेशे,  जीवनसाथी के बॉस, समाज में  जीवनसाथी की छवि या प्रतिष्ठा,  पिता की सर्जरी, छिपे हुए रहस्य और धन, उच्च अध्ययन या लंबे समय तक आपके नैतिक मूल्यों और विश्वास प्रणाली में परिवर्तन की यात्रा का स्थान भी होता है. मालिकों की कानूनी साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है. यह बड़े भाई-बहनों के स्वास्थ्य, ऋण और शत्रुओं का प्रतिनिधित्व करता है,  शत्रुओं के माध्यम से आशाओं और इच्छाओं की पूर्ति को भी दिखाता है.

चतुर्थ भाव में सूर्य का विशेष प्रभाव 

चतुर्थ भाव में सूर्य घर और परिवार के सदस्यों से जोड़ता है. मकान या बड़े भूभाग की प्राप्ति का भी योग बनता है. सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए समय बेहद विशेष होता है. इस समय के दोरान व्यक्ति को कई तरह के आय के स्त्रोत भी प्राप्त हो सकते हैं. उसके पास कुछ पुराणि वस्तुओं का भी संग्रह दिखाई दे सकता है. घर को सुंदर रुप में सजाना और व्यवस्थित रखना भी व्यक्ति को पसंद होता है. व्यक्ति कुछ मामलों में अपने रहन सहन का दिखावा भी कर सकता है. यहां स्थित सूर्य माता को पिता के समक्ष स्थापित कर देने का काम करत अहै. जिसके फलस्वरुप माता परिवार में पिता की भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकती है. चतुर्थ भाव में सूर्य रात के जन्म समय और सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति को दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि जीवन में पिता की ओर से कुछ कमी अनुभव हो सकती है. घर परिवार में सख्त और अनुशान भी मिल सकता है. जीवन के प्रारंभिक समय में एक कठिन जीवन शैली का समय भी प्राप्त हो सकता है. कुछ मामलों में व्यक्ति अपने लक्ष्यों से भटक सकता है. सूर्य जीवन शक्ति का स्रोत होने के कारण आत्मविश्वास भी देता है. 

चतुर्थ भाव में सूर्य का राशि प्रभाव 

सूर्य चतुर्थ में मेष राशि 

मेष राशि वाले में सूर्य व्यक्ति को साहसी नेता बनाता है, उसे जीवन का आनंद लेने के लिए आगे रखता हैं. व्यक्ति में उत्साह उन्हें लगातार सीखने और तलाशने जारी रहती है. व्यक्ति आवेगशीलता, निडरता और मित्रता के कारण लोगों के मध्य आकर्षण पाता है. प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास का गुण मिलता है.

सूर्य चतुर्थ में वृष राशि

सूर्य के चतुर्थ भाव में वृष राशि में होने पर धीमा और स्थिर बनाता है. सोच-समझकर किए गए कार्य, प्रमुख होंगे. ठोस और स्थिर ऊर्जा, और धैर्य अच्छा होगा. आसानी से संतुष्ट स्वभाव और ऐसा जीवन बनाने की इच्छा के कारण उत्कृष्ट मित्र और भागीदार भी मिलते हैं. आरामदायक और संतुलित रिश्तों को निभाने का होता है. 

सूर्य चतुर्थ में मिथुन राशि 

सूर्य हमारी आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है और स्वयं के बारे में दृढ़ता देता है. नेतृत्व करता है या ध्यान आकर्षित करने में सक्षम होता है. लोगों के साथ संबंध बनाने एवं घूमने फिरने का शौक रखता है. व्यक्ति कई तरह की रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होता है. 

सूर्य चतुर्थ में कर्क राशि 

मधुर और समर्पित रिश्तों के प्रति आकर्षण होता है. अंतर्ज्ञान और अप्रत्याशित कोमलता भी होती है. दूसरों के पोषण के लिए तत्पर रहता है. अक्सर महत्वाकांक्षी और सुरक्षा की इच्छा रखते हैं,  व्यक्ति का दूसरों पर अधिक भरोसा भी रहता है. विचारशील और सक्षम होता है.

सूर्य चतुर्थ में सिंह राशि

सूर्य के सिंह राशि में होने के कारण व्यक्ति की आभा बहुत होती है. आत्मविश्वास, साहस और आकर्षण भी होता है. व्यक्ति अक्सर बहिर्मुखी भी होता है. शिक्षा और गुरुजनों के ज्ञान को पाने के लिए ललायित भी होता है. लोगों के मध्य विशेष रहना पसंद करते हैं और अपने पार्टनर की ओर से प्रशंसा जीवन में उनकी सबसे बड़ी इच्छाओं में से एक है.

सूर्य चतुर्थ में कन्या राशि 

सूर्य के कन्या राशि में यहां होने से व्यक्ति व्यावहारिक, मेहनती और कुशल होता है.  जीवन में शांत संगठनात्मक संरचनाओं और दिनचर्या की तलाश कर सकते हैं. व्यक्ति सही काम करने में दृढ़ता से विश्वास रखता है दूसरों की देखभाल एवं समर्पण के प्रति भी जागरक होते हैं. 

सूर्य चतुर्थ में तुला राशि 

तुला राशि में सूर्य का होना व्यक्ति को निष्पक्ष, संतुलित और ईमानदार बनाता है. लोगों के साथ व्यक्ति मध्यस्था कर पाने में सक्षम होता है. उनके आचरण में शांत और सौम्य भाव भी होता है.  दूसरों को अपने तरीके से राजी करना आसान हो जाता है. व्यक्ति सत्य और ज्ञान की तलाश करने में आगे रह सकता है. भावनात्मक रुप से ये लोग कुछ कमजोर हो सकते हैं. 

सूर्य चतुर्थ में धनु राशि

सूर्य के धनु राशि में होने पर व्यक्ति साहसी और ऊर्जावान होता है. दुनिया में अपनी अलग चमक चाहता है. हर चीज से प्रेरित होता है. कुछ ऐसा करते हैं जिससे दूसरे उन पर अवश्य ध्यान देते हैं. बेपरवाह भी हो सकते हैं और कुछ जिद को दिखा सकते हैं. 

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शुक्र और शनि की युति प्रभाव

ज्योतिष के अनुसार शुक्र और शनि की युति सभी लाभ देती है और यह युति अनुकूल मानी जाती है. शुक्र और शनि की युति के मध्य में कुछ द्वंद भी देखने को मिल सकता है. यहां विचारों एवं इनकी ऊर्जाओं में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है. यह दोनों ग्रह के दूसरे से विपरित गुण धर्म के होते हैं. जहां शुक्र का कार्य भौतिकता से संबम्धित है वहीं शनि का संबंध कर्मठता एवं संघर्ष से होता है.यह योग जब कुंडली में बनता है तो जिस भाव पर इसका प्रभाव अधिक होता है उस भव से संबंधित परिणाम भी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं. कुछ भाव स्थानों में जहां इन दोनों का युति योग बेहतर परिणाम दे सकता है वहीं खराब स्थानों पर इनका होना फलों को कमजोर कर देने वाला होता है. 

जन्म कुडली के विभिन्न भाव स्थान पर शुक्र शनि का योग 

ज्यादातर मामलों में, शनि-शुक्र की युति सकारात्मक परिणाम देती है. लेकिन कभी-कभी, यह मिलन नकारात्मक परिणाम भी देने वाली हो सकती है. शुक्र का शनि के साथ मित्र भाव रहा है. जिसके फलस्वरुप कुछ अनुकूल प्रभावों को देख पाना संभव होता है. शुक्र और शनि युति होने पर व्यक्ति यथार्थवादी होता है. जमीन से जुड़ा होने पर उसकी सोच में मजबूत धारणा का असर भी दिखाई देता है. चीजों को लेकर गहराई से प्रतिबद्ध होता है. शुक्र पर शनि का परिपक्व व्यवहार चीजों को उचित रुप से करने की विचारधारा देता है. यह योग व्यक्ति को आगे बढ़ने के अवसरों पर काम करने की योग्यता देता है. 

शुक्र शुभ ग्रह और शनि अशुभ है. जिन लोगों की कुंडली में शुक्र और शनि एक साथ एक घर में होते हैं, वे अक्सर कलात्मक रूप से प्रवृत्त होते हैं. व्यक्ति को ललित कलाओं विशेषकर ड्राइंग या पेंटिंग में अच्छी निपुणता हासिल कर सकता है. शनि और शुक्र की युति भी व्यक्ति को बौद्धिक बनाती है. घूमने फिरने और दुनिया को एक्सप्लोर करने का शौक होता है. साहस अच्छा होता है और चुनौतियों से लड़ने के लिए व्यक्ति हमेशा तैयार रहता है. नकारात्मक रुप से यह योग कभी-कभी प्रियजनों से अलगाव का कारण भी बन सकता है. वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण नहीं हो पाता है. पार्टनर के साथ अक्सर अनबन और प्यार में शारीरिक संतुष्टि की कमी का अनुभव हो सकता है. व्यक्ति कई बार अपनी भावनाओं के कारण एकाकी अर्थहीन जीवन जीने को विवश हो सकता है. 

शुक्र और शनि का योग पहले भाव में

जन्म कुंडली के पहले भाव में शुक्र और शनि की युति होना विशेष होता है. यहां व्यक्ति अपनी इच्छाओं हेतु संघर्ष करने के लिए आगे रहता है. परिश्रम द्वारा धीमी गति के पश्चात कुछ अनुकूल परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन पर इसक अकुछ कमजोर पक्ष दिखाई दे सकता है. व्यक्ति बहुत परेशानियों से गुजरता है और मानसिक रुप से उसकी क्षमताएं सीमित रहती हैं.  जीवन में वह स्वयं के प्रति काफी अधिक सोच विचार रखने वाला है ओर जीवन को बेहतर स्थिति पर ले जाने की इच्छा रखता है. 

शुक्र और शनि का योग दूसरे भाव में

जन्म कुंडली के दूसरे घर में शुक्र और शनि की युति का होना व्यक्ति को काफी प्रबल स्म्चार दे सकता है. व्यवहार कुशलता का गुण भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है और उच्च पदों पर स्थापित होने का अवसर मिलता है. व्यक्ति परिवार में अपनी स्थिति को बेहतर करने में सक्षम होता है. वाहन और संपत्ति सभी सुख मिलते हैं अपने प्रयासों के द्वारा वह उन चीजों को पाने में सक्षम बनता है जो अन्य लोगों की पहुंच से दुर रहती हैं.यह योग आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छा माना जाता है.

.शुक्र और शनि का योग तीसरे भाव में

तीसरे भाव में शुक्र और शनि की युति होने से व्यक्ति अपने परिश्रम द्वारा ही धन कमाता है. उसे परिवार का सहयोग मिलता है. पैतृक संपत्ति से भी कुछ लाभ प्राप्त होता है.  ससुराल पक्ष का सहयोग काम आता है. जीवन में अपने स्म्चार के द्वारा अच्छी आय को अर्जित कर पाता है. 

शुक्र और शनि का योग चतुर्थ भाव में

चतुर्थ भाव में शुक्र और शनि की युति कुछ अच्छे और कुछ कमजोर पक्ष को दिखा सकती है. अच्छे भवन की प्राप्ति होती है लेकिन पुरातन चीजों की प्राप्ति भी होती है. व्यक्ति को अपने बड़ों की ओर से कठोर अनुशासन भी प्राप्त हो सकता है. काम काज को लेकर व्यक्ति बहुत अधिक कर्मठ भी होता है. व्यक्ति कारोबार में अच्छी स्थिति को पाने में सक्षम होता है. 

शुक्र और शनि का योग पंचम भाव में 

पंचम भाव में शुक्र के साथ शनि का योग शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे परिणाम देने वाला होता है. वह कला एवं रचनात्मक क्षेत्र में काफी अच्छे से आगे बढ़ सकता है. संतान सुख व्यक्ति का सामान्य रहता है. कई बर मनोकूल चीजों की प्राप्ति उचित रुप से नहीं हो पाती है. आर्थिक रुप से कर्मठ एवं काफी प्रगतिशील होता है.

शुक्र और शनि का योग छठे भाव में 

शुक्र के साथ शनि का युति योग छठे भाव में होने पर प्रतिस्पर्धाओं में विजय की प्राप्ति को दर्शाता है.  समृद्धि और सफलता के लिए किए जाने वाले प्रयासों का अनुकूल परिणाम मिल पाता है. . इस योग के प्रभाव स्वरुप विभिन्न स्रोतों से धन लाभ होने की संभावना होती है. पैतृक या पारिवारिक संपत्ति की प्राप्ति भी संभव है. नई व्यावसायिक संभावनाएं होंगी और इस समय आपकी वित्तीय स्थिति कुछ बेहतर होती है. 

शुक्र और शनि का योग सप्तम भाव में

सप्तम भाव में शुक्र और शनि की युति हो तो वैवाहिक सुख का मिलाजुला असर देखने को मिलता है. विवाह जल्दी या फिर देर से होने के योग निर्मित होते हैं जीवन साथी के साथ विचारों में अलगाव की स्थिति भी रहती है. साथी के सहयोग में कमी रहसकती है या फिर उसके साथ व्यर्थ की दूरी परेशानी दे सकती है. 

शुक्र शनि का योग नवम भाव में  

शुक्र के साथ शनि की युति अनुकूल रह सकति है. नवम भाव में होने पर  मेहनत का फल अपने कार्यस्थल पर मिलता है. नौकरी में प्रगति देख पाते हैं तथा उच्च पद प्राप्ति के प्रस्ताव देख पाते हैं. गे. साथ ही आपके सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी और आपको भाग्य का पूरा साथ मिलेगा. आप नई साइटों पर जाएंगे और सभी सुविधाओं का उपयोग करेंगे. अतिरिक्त निवेश की भी संभावनाएँ होंगी, और अब फर्म को आगे बढ़ाने का क्षण है.

शुक्र शनि का योग दशम भाव में  

शुक्र के साथ शनि का योग दशम भाव में होने पर यह मेहनत से अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने की प्रेरणा देने वाला होता है. शनि शारीरिक श्रम का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र कला का प्रतिनिधित्व करता है ऎसे में व्यक्ति  डिजाइनिंग, पेंटिंग और कंप्यूटर एनीमेशन से लेकर अभिनय जैसी भौतिक कला तक एक कलात्मक शिल्पकला से अपनी आजिविका को प्राप्त कर सकता है.रचनात्मक रूप से अपने समय से आगे रह सकता है.

शुक्र शनि का योग एकादश भाव में 

शुक्र के साथ शनि की युति एकादश भाव में होने पर लाभ के मौके मिलते हैं. इस स्थान को आय भाव कहा जाता है. ऐसे में खोया हुआ पैसा वापस मिलता और निवेश किया हुआ पैसा अच्छे लाभ उत्पन्न करने में सहायक बनता है. नौकरी में प्रमोशन या इंक्रीमेंट की संभावना है व्यक्ति के लिए खुली रहती है. व्यापार में मुनाफा हो सकता है. वहीं, शेयर बाजार, सट्टा या लॉटरी में पैसा लगाना बेहतर लाभ देने वाला होता है. यह युति आराम और समृद्धि को बढ़ाने का कम भी करती है. 

शुक्र शनि का योग द्वादश भाव में

शुक्र के साथ शनि का योग बारहवें भाव में होने के कारण व्यक्ति को आध्यात्मिकता और भौतिकता के मध्य संघर्ष दे सकता है. कर्म के नियमों के माध्यम से सिखाने की शनि की प्रकृति के कारण व्यक्ति कई बार अपने प्रेम से भी अलग हो जाता है और देर से विवाह का कारण भी बन सकता है. इसी के साथ व्यक्ति आर्थिक खर्चों को लेकर भी काफी ध्यान पूर्वक काम करने वाला होता है. 

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सूर्य का तीसरे भाव में फल

तीसरे भाव में सूर्य का होना प्रबलता का सूचक होता है यह सुखद स्थिति कहीं जा सकती है. एक नियम के रूप में, तीसरे भाव में सूर्य वाले लोग बहिर्मुखी होते हैं, लेकिन इनका अंतर्मन इतना प्रबल होता है की इनके भीतर को जान पाना मुश्किल होता है फिर चाहे ये बहिर्मुखी क्यों न दिखाई देते हों. सूर्य यहां बैठ कर कई तर से प्रभाव डालता है. इसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव व्यक्ति के जीवन को बदल देने वाले भी होते हैं. सूर्य यहां बैठ कर संचार से ऊर्जा को उत्सर्जित करता है और अपनी ओर खींचता है. सूर्य व्यक्ति को प्र्यासशील बनाता है.

सूर्य के यहां होने के कारण व्यक्ति हमेशा जीवन की प्रगति के लिए प्रयास करते हैं, दूसरों से प्यार करते हैं और सामाजिक नेटवर्क का बहुत सक्रिय रूप से उपयोग करते हैं. यदि ऎसे में उसके सामने वाला भाव अर्थात नवम भाव भी प्रबल हो तो ऎसा व्यक्ति संपर्क बनाने में सफल होता है. सभी के साथ मेल जोल की स्थिति को पाएगा. विश्व उसके लिए घर के समान होगा. सूर्य के साथ को पर व्यक्ति सभी के साथ में संपर्क करने वाला होता है , सक्रिय रूप से लोगों के साथ व्यवहार करता है. यात्रा करने का इच्छुक होता है. सभी ओर दोस्त ढूंढ लेता है और जहां कोई पहुंच नहीं सकता है यह वहां भी पहुंच बना सकता है. 

तीसरे भाव में सूर्य के ज्योतिषिय प्रभाव 

तीसरे भाव में सूर्य की स्थिति व्यक्ति को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाती है. व्यक्ति प्रसिद्ध, दयालु, शांत, विनम्र और राजा के समान होता है. सूर्य यहां मौजूद होकर साहस और दृढ़ मन के कारण सफलता प्राप्ति को दर्शाता है. चतुराई से काम करते हुए साधन संपन्न बनने के लिए उत्साह देता है. कभी-कभी बातूनी, बेचैन, अधीर और चिंतित भी बनाता है. तीसरे भाव में सूर्य के होने के कारण व्यक्ति बहादुर और दानी भी होता है. व्यक्ति के पास वाहन, विलासिता की सुविधाएं होती हैं. तीसरे भाव में स्थित सूर्य सुखद परिणाम देता है और कुंडली की एक शक्तिशाली संपत्ति के रूप में माना जाता है, लेकिन फिर भी भाइयों से व्यक्ति को परेशानी भी देता है. तीसरे भाव में सूर्य के होने के परिणाम राशि के अनुसार बदल सकते हैं. इसके अलावा जिस पर ग्रह की दृष्टि है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि सूर्य लग्न के लिए कितना फायदेमंद होगा. 

सकारात्मक सूर्य प्रभाव

तीसरे भाव में शुभ सूर्य यात्रा करने का शौक़ देता है और व्यक्ति अपने बारे में बात करना पसंद करता है. लोगों के साथ सामूह में रहते हैं और नेतृत्व भी मिलता है. एक ऐसा काम चुन सकते हैं जो शिक्षा और संचार, कलात्मक और नाटकीय क्षेत्रों जैसे प्रदर्शन कलाओं के प्रति प्रयासों या रुचियों को प्राथमिकता देता है. तेज़ दिमाग होता है और नेतृत्व की गुणवत्ता भी अच्छी होती है, जो दूसरों को आपकी बात सुनने के लिए झुका देती है.   सूर्य यहां बैठ कर व्यक्ति को अपनी शक्ति और स्थिति का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए ज्ञान और साहस भी देता है. अपने भाई-बहनों और चचेरे भाई-बहनों के प्रति हमेशा दयालु और सहायक व्यक्तित्व प्रदान करता है. 

नकारात्मक सूर्य प्रभाव

तीसरे भाव में एक नकारात्मक सूर्य भाई-बहनों के बीच अलगाव का कारण बनता है. परिवार में शत्रुता को उत्पन्न कर सकता है. चरित्र से कमजोर बना सकता है. गलत कार्यों में लिप्त करवा सकता है. पीड़ित अधिक होने पर व्यभिचार में भी डाल सकता है. धन और प्रतिष्ठा को खराब करने वाला होता है. परिवार में कमजोर बनाता है परिवार के सदस्यों द्वारा अपमान और शोषण का सामना करना पड़ सकता है. भावनात्मक और शारीरिक समस्याएं परेशानी देती हैं. यौन जीवन में असंतुष्ट बनाता है और बेवफाई भी दे सकता है. 

सूर्य का जीवन के आरंभिक समय पर असर 

सूर्य की स्थिति तीसरे भाव में होने पर जीवन का आरंभिक काल बेहद विशेष बन जाता है. अगर बच्चों की कुंडली में सूर्य तीसरे भाव में हो तो माता-पिता को लगातार इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनका बच्चा क्या कर रहा है. ऎसा इसलिए क्योंकि जिज्ञासा अधिक होती है और सभी से जुड़ने की ललक भी होती है. नई सूचनाओं से जुड़ने की ललक होती है ऎसे में उन पर निगरानी की भी सख्त जरूरत होती है. यदि अभी के समय को देखा जाए तो इंटरनेट पर सभी चीजों तक पहुंच आसान है ऎसे में बच्चा किसी चीज से सीमित नहीं रह पाताहै, और स्वाभाविक रूप से प्रभावशाली तरीके से हर चीज से जुड़ सकता है ओर सूर्य के तीसरे भाव में होने पर यह प्रबलता भी अपना असर डालती है. इन सभी बातों का उसके मनोविज्ञान पर असर भी पड़ेगा.  उसके विकास को प्रभावित कर सकता है, ऎसे में जरूरी है की बच्चों की इन गतिविधियों पर नजर बराबर रखी जाए. बाल्यकाल में सूर्य क आसर बच्चे के माता-पिता को भी प्रभावित करता है.  यहां पर पिता को पद प्राप्ति हो सकती है अथवा किसी नए स्थान पर जाने को मिल सकता है. 

सूर्य देता है बेहतर गुण 

सूर्य के तीसरे भाव में होने का असर व्यक्ति को गुणवान बनाता है. इन में अध्ययन करने की कला होती है.ये लोग लगातार काम करते रहने वाले होते हैं. यदि एक कारण से व्यवधान बने हुए हैं तो उन्हें दूर करने के लिए सदैव कोशिश में लगे रहते हैं. आलस्य या कठिन जीवन परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता इनमें होती है. लेकिन यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो वे जीवन में उचित स्थिति को नहीं पाते हैं. लेकिन तीसरा घर उन्हें सदैव आगे रखने में सहायक बनता है. तीसरे भाव में सूर्य के होने पर व्यक्ति आसानी से हार नहीं मानता है. समय-समय पर खुद को अच्छी तरह से व्यवस्थित करना जानते हैं .  

जिन जन्म कुंडली में सूर्य तीसरे भाव में स्थित होता है, वहां बुध की स्थिति का आकलन करना भी महत्वपूर्ण होता है. यदि यह मिथुन या कन्या राशि में स्थित है तो व्यक्ति मानसिक कार्य करने वाला, विद्वान होता है. वह हर समय अध्ययन करता है, घटनाओं से जुड़े रहने की कोशिश करता है और अक्सर उसके पास असाधारण क्षमताएं होती हैं. वह तुरंत स्थिति का आकलन कर सकता है और एक कठिन परिस्थिति से बाहर निकलने का रास्ता खोज सकता है. कभी-कभी वे बस आश्चर्यजनक होते हैं कि वे जितना जानते हैं उससे अधिक उनके दिमाग में छुपा हुआ है.

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सूर्य दूसरे भाव में जीवन को कैसे करता है प्रभावित

सूर्य की स्थिति का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में बेहद उपयोगी माना गया है. जन्म कुंडली में दूसरे भाव का प्रभाव और यहां सूर्य की स्थिति का होना बहुत अच्छे प्रभाव देने वाला होता है. जन्म कुंडली के दूसरे भाव का सूर्य नेतृत्व करवाने के लिए बहुत उपयोगी बनता है. सूर्य आत्मा का कारक है और दूसरे भाव में यहां आत्मा की स्थिति मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए उपयोगी होती है. कुंडली के दूसरे भाव में बैठा सूर्य अपने परिवार और पैतृक कर्ज से मुक्ति का आधार भी बनता है. दूसरे भाव में सूर्य आपके उदार स्वभाव को बढ़ा सकता है, आधिकारिक स्थिति और सही तरीके से पैसा बनाने की क्षमता के लिए भी यह अच्छा होता है. जीवन प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सकता है. सभी ओर  सम्मान होगा. आप अपनी आजीविका के लिए कभी भी दूसरों पर निर्भर नहीं रहेंगे और आप कई तरह के काम करने में निपुण होंगे.

सफलता और अधिकार का क्षेत्र होता है प्रभावित

सूर्य यहां धन भाव में होने के कारण व्यक्ति को पैसा कमाने के लिए उत्साहित करता है. व्यक्ति अपने जीवन में धन का अधिकांश हिस्सा महंगी चीजों पर खर्च करता है. परिवार के लिए भौतिक  साधनों को एकत्रित करने की उसकी इच्छा बहुत होती है. आर्थिक निवेश उम्मीद के मुताबिक मुनाफ़ा भी देता है. प्रभावशाली लोगों से मिलने और उनके सहयोग की प्राप्ति का भी समय होता है. 

सूर्य का असर व्यक्ति को लालसा देता है, इसके कारण लगातार बड़ी मात्रा में धन कमाने की ललक बनी भी रहती है. जीवन में धन का महत्व बहुत रहता है और इसके द्वारा ही सफलता भी निर्धारित करते देखे जाते हैं. व्यक्ति धन की दौड़ में कई बार अपनों को भी उचित समय नहीं दे पाता है. 

कुंडली का दूसरा भाव और उसका असर 

वैदिक ज्योतिष में कुंडली का दूसरा घर संपत्ति का घर होता है यह धन का घर भी होता है इसलिए इसे धन भाव भी कहते हैं. यह वाणी का घर भी होता है इस कारण वाणी भाव भी कहलाता है.  यह घर उन सभी चीजों के लिए है जो हमारे पास हैं और हम उन्हें कैसे उपयोग कर पाते हैं. जैसे कि भौतिक सामान, धन और रिश्ते. इसी तरह से दूसरा भाव हमारी भावनाओं, अभिव्यक्ति का भी घर होता है. अपने भाई-बहनों और अन्य निकट  प्रिय लोगों से कैसे संबंध हैं इन बातों पर भी दूसरे घर की स्थिति विशेष मानी गई है. इस लिए जब दूसरे भाव में सूर्य मौजूद होता है, तो यह जीवन के इन सभी क्षेत्रों को प्रमुखता से प्रभावित करता है.  

व्यक्ति सूर्य के द्वारा सफलता को पाने वाला बनता है लेकिन उसके भीतर अधिकार जताने की स्थिति भी काफी महत्वपूर्ण होती है. ऎसे में लोगों के साथ रहने पर नियम अनुशासन जैसी कड़ी प्रतिबंधता जीवन पर अपना असर डालती है. सूर्य एक क्रूर ग्रह है और इसका असर व्यक्ति को काफी निडर भी बनाता है. व्यक्ति अपने वादों को कभी भी तोड़ना पसंद नहीं करता है. वाकपटुता के कारण आपकी प्रशंसा होगी. आप बौद्धिक खोज के लिए एक जुनून भी साझा करेंगे और एक अच्छी अकादमिक पृष्ठभूमि होगी. भौतिक सुख-सुविधाओं के प्रति आसक्त होने के कारण, महंगी वस्तुओं पर बहुत अधिक खर्च करना पसंद कर सकता है. धन को बचाने की समस्या भी इसी के कारण उत्पन्न हो सकती है. व्यक्ति को दूसरों के कारण सावधान रहने की आवश्यकता होती है.  

सूर्य के दूसरे भाव में होना देता है चुनौतियों 

सूर्य का दूसरे भाव में होना व्यक्ति को कई मामलों में काफी दृढ़ भी बना सकता है. अपने स्वभाव के चलते भी कई बार जोखिम लेने के कारण आर्थिक नुकसान जैसी स्थिति का सामना करना पड़ जाता है.  सूर्य के असर से कई बार पैतृक संपत्ति के मामले भी चिंता को बढ़ा सकते हैं. व्यर्थ की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. वैवाहिक जीवन में भी साथी की कठोरता के साथ परेशानी होती है.  सुखी जीवन में बाधा का सामना करना पड़ेगा. दूसरों के द्वारा छल और कपट का सामना करना पड़ सकता है. अपनों के द्वारा भी धोखे की स्थिति बन सकती है. 

आपको धोखा देने और आपके द्वारा दूसरे लोग कमाई करने के रास्ते पाएंगे. अपनों के कारण धोखे और चाल से बच पाना भी आसान नहीं होगा.  सूर्य के खराब होने या पाप प्रभवैत होने के कारण कुछ रोग भी परेशान कर सकते हैं. नेत्र के रोग परेशानी दे सकते हैं. कई कारणों से आपको आंखों की रोशनी कम होने का सामना करना पड़ सकता है.

सूर्य के दूसरे भाव में सकारात्मक और नकारात्मक फल 

 द्वितीय भाव में सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को नैतिक मूल्यों के प्रति सजग बनाता है. आर्थिक पक्ष से व्यक्ति काफी मजबूत होता है. व्यक्ति के सामाजिक रुप से खुद को अच्छे से स्थापित करने की इच्छा रखता है. उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य ही उसे बड़ी संख्या में लोगों का प्रिय बनाते हैं. अपने मित्रोम एवं लोगों के लिए वह सदैव आगे रह सकता है. मित्रों के साथ वह कई तरह के नवीन काम करता है. व्यक्ति एक अच्छे मार्गदर्शक के रुप में भी सामने होता है. काफी तार्किक और जिम्मेदार रुप से काम करने वाला होता है. 

इसके अलावा, दूसरे भाव में सूर्य का होना व्यक्ति को अच्छी धन संपदा भी प्रदान करने में सहायक बन सकता है. व्यक्ति के पास बहुत पैसा और संपत्ति भी होती है.आर्थिक उन्नति का होना व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाने का भी काम करता है. आत्म-सम्मान भी इनमें अच्छा होता है. दूसरों से अधिक सहायता की इच्छा यह नहीं रखना चाहते हैं.  अपने कार्यक्षेत्र में इनकी स्थिति बेहद मजबूत होती है. अपने धन का व्यर्थ में प्रदर्शन करना पसंद नहीं करते हैं. 

 दूसरे भाव में सूर्य का अन्य किसी पाप ग्रह से यदि प्रभावित होता है. सूर्य यहां यदि निर्बल होता है तो कई नकारात्मक रुप से काम भी करता है. इसके प्रभाव के चलते व्यक्ति को धन के प्रति अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है. संपत्तियां विवाद का कारण बन सकती हैं. अत्यधिक धन खर्च के कारण कर्ज की स्थिति भी असर डालती है. दूसरे भाव में सूर्य के कारण व्यक्ति सही काम या सही तरीके से काम करने के लिए जुनूनी हो सकता है जिसके कारण दूसरों के साथ विवाद भी होता है. लोग जब इनके विचारों से सहमत नहीं हो पाते हैं तो परस्पर विरोध की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना भी बनी रहती है.

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सूर्य ग्रह का लग्न में होना कैसे देता है परिणाम

सूर्य जब पहले भाव में होता है तो यह एक अत्यंत विशिष्ट स्थान और असर के लिए जाना जाता है. लग्न में सूर्य का होना व्यक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थिति होती है. लग्न एक ऎसा स्थान है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है. यह जीवन के हर अच्छे खराब फलों पर अपना असर डालता है. ज्योतिष में प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है. यह शरीर और संपूर्ण अस्तित्व को देखा जाता है. व्यक्ति के जन्म के समय सूर्य उदय हो रहा होता है, यह बारह घरों में से एक ऎसा स्थान है जिसमें व्यक्ति की स्थिति पर पड़ने वाले असर के लिए विशेष होता है. यह जीवन की शुरुआत का घर है, इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. व्यक्ति के जीवन पर एक बड़ा और स्थायी प्रभाव डाल सकता है. लग्न भाव अंदर और बाहर के जीवन का प्रतिनिधित्व करता है.  पहले घर पर मेष राशि का स्थान होता है जो कालचक्र कुंडली का पहला स्थान है और इसी कारण मंगल पहले घर का स्वामी है. यह बृहस्पति, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध के लिए उत्तम भाव है. 

कुंडली का पहला भाव क्यों है इतना विशेष ? 

प्रथम भाव द्वारा दर्शाए गए महत्वपूर्ण कारक व्यक्तित्व, शारीरिक बनावट, चरित्र, स्वभाव, आत्म-पहचान, ताकत, कमजोरियां और स्वास्थ्य होता है. इस प्रकार, जब लग्न में स्थित ग्रहों को देखते हैं तो व्यक्ति के बारे में अधिकांश बातें जान सकते हैं. लग्न का भाग्य निर्धारण में बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. लग्न भाव व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है. इस प्रकार रूप, आकर्षण, शारीरिक विशेषताएं और ताकत जैसे कारक इस के द्वारा निर्धारित होते हैं.  उत्साह और ऊर्जा, स्वास्थ्य इसी भाव से निर्धारित होते हैं. ज्योतिष में पहला घर शरीर के अंगों के संदर्भ में सिर और चेहरे के ऊपरी हिस्से से जुड़ा होता है जिसे वह नियंत्रित करता है. इसके अलावा, मेदिनी अनुसार ज्योतिष में, यह भाव देश और उसमें रहने वाले लोगों की समग्र स्थिति को दर्शाता है. लग्न घर यह तय करता है कि व्यक्ति जीवन में कैसे आगे बढ़ता है और चीजों को कैसे देखते हैं 

लग्न में बैठे सूर्य का विशेष गुण 

यदि सूर्य लग्न भाव में है तो यह कई तरह से अपना रंग दिखाता है. सूर्य शुभ अशुभ नीच बली जैसे असर के चलते भी विशेष होता है. सूर्य अगर नीच, शत्रु या पाप ग्रहों के साथ हो तो प्रतिकूल परिणाम देता है. सूर्य अगर शुभ दृष्टि या युति में हो तो शुभ देता है. उच्च के सूर्य पर बली ग्रह की दृष्टि हो तो विद्वान बनाता है. आचार्यों द्वारा सूर्य यदि लग्न भाव में हो तो जातक हृष्ट-पुष्ट, छोटे बालों वाला, क्रोधी, नैतिक, कटु, आलसी, नेत्रविकारयुक्त तथा काम भावना से युक्त होता है. इसके अलावा सूर्य का असर व्यक्ति के शरीर एवं बाहरी गठन पर अपना असर डालता है. इसके प्रभाव से लम्बा शरीर, नैन-नक्श उत्तम, माथा बड़ा, लाल नेत्र, नीच लोगों का सेवक, बचपन में बीमार, स्त्री, बच्चों के सुख से कमजोर हो सकता है. घूमने-फिरने से व्यापार करने वाला हो सकता है. कभी लाभ न देने वाले, स्त्री द्वारा अपमानित, प्रारब्ध, वात और पित्त से पीड़ित, काम करने में आलसी, भाइयों के साथ विरोध, पराक्रम में तेज, द्वेष रहित, बुद्धिमान, साहसी, स्वाभिमानी, निर्दयी , क्रोधी, अस्थिर धन और केश का स्वामी रोगी होता है. 

तुला राशि में सूर्य हो तो रतौंधी और हृदय रोग हो सकता है. सूर्य उच्च का या स्वग्रही हो तो व्यक्ति नेत्र-स्वस्थ होता है, सुखी, यशस्वी, विनयशील लेकिन लोभी होता है. वृष राशि, कन्या राशि या मकर राशि का हो तो अभिमानी और अहंकारी हो सकता है. मिथुन राशि, तुला राशि या कुम्भ राशि का हो तो उदार, साधुप्रिय और न्यायप्रिय हो सकता है. धनु राशि का हो तो गृहस्थ प्रेमी हो सकता है. कर्क राशि, वृश्चिक राशि या मीन राशि का हो तो व्यसनों के प्रति आस्कत हो सकता है. है. सिंह राशि में शुभ ग्रहों की कृपा या दृष्टि होने पर व्यक्ति स्वस्थ और तेजस्वी होता है.

लग्न में सूर्य के खराब परिणाम 

लग्न में सूर्य का होना यदि पाप प्रभावित होता है तो सरकारी कार्य में बाधा को झेलता है. विद्रोह या स्वयं देशद्रोही होना. कालाबाजारी या तस्कर होना, टैक्स चोरी, नशे की लत, गर्म मिजाज, झूठ बोलना या वादों पर खरा उतरना, ब्लड प्रेशर का मरीज हो सकता है, नास्तिक होना, मुकदमे में हारना, मुफ्त का माल ढूढ़ना आंखों की बीमारी से परेशान होना, घर में घर होने के कारण दक्षिण दिशा, पितृ दोष या कुंडली में सूर्य से संबंधित किसी अन्य दोष के कारण. इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों का होना विशेष रुप से अपना असर दिखाता है. सूर्य कमजोर होने के  कारणों में बहुत से अलग असर देखने को मिल सकते हैं. सूर्य के अशुभ होने के अन्य कारणों के लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती है.  

लग्न के सूर्य के शुभ फल 

सूर्य पहले भाव में होता है तो वह कमाई का कुछ हिस्सा धार्मिक कार्यों में लगाकर तरक्की करता है. व्यक्ति एक अच्छा रणनीतिकार होता है. इरादों में दृढ़ और मजबूत दिल वाला होता है. व्यक्ति चिंतनशील होता है. व्यक्ति मेहनती और मेधावी होता है. तेज और आक्रामक स्वभाव के कारण शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है. व्यक्ति आमतौर पर मीठे बोल बोलता है लेकिन उसका दिल कठोर हो सकता है. व्यक्ति अपनी मेहनत और परिश्रम से धनवान बनता है. शिक्षा से सम्बन्धित कार्यों से अपना जीवन यापन करने वाला भी होता है. सूर्य शुभ होने पर धार्मिक और परोपकारी होता है. ये लोग समाज में प्रसिद्ध होते हैं, समय-समय पर वह असहाय लोगों की सेवा करने वाला होता है. व्यक्ति का चरित्र अच्छा होता है, लेकिन दूसरों की बातों से आसानी से प्रभावित नहीं होता है. चेहरे पर रौनक रहती है. व्यक्ति तेज मिजाज और क्रोधी हो सकता है. सूर्य शुभ हो तो पराक्रम से संबंध हो तो लाभ पाता है.

लग्न में स्थित सूर्य का राशि प्रभाव 

मेष राशि लग्न में मेष राशि में बैठा सूर्य व्यक्ति को प्रबल बनाता है. जोखिम उठाने में सक्षम होता है. व्यक्ति साहसी होता है जो किसी भी चुनौती में सबसे पहले पार करने में सक्षम बनता है. अपनी चमक को बोल्ड रंगों, तेज संगीत, सहज रोमांच के द्वारा प्रकट करता है.

वृष राशि में सूर्य के होने पर यह गंभिर लेकिन आकर्षण युक्त बनाता है. किसी भी चीज़ से रोमांचित हो सकता है. अपने परिवेश से प्रेरित होता है भौतिक वस्तुओं को संचित करना पसंद करते हैं.

मिथुन राशि में सूर्य के होने पर व्यक्ति में उत्साह और जोश होता है. बौद्धिकता अच्छी होती है. अपनी रुचियों में सहज रहता है. सभी का नेतृत्व करने और सफल होने में सक्षम भी होता है. व्यक्ति जिज्ञासु, मिलनसार और चंचल होता है.   

कर्क राशि में सूर्य का होना व्यक्ति में प्रभावी क्षमता से भरपूर होता है. जीवन में अपने भौतिक लक्ष्यों को पूरा कर लेने में सक्षम होता है. रचनात्मकता नई परियोजनाओं को अर्जित करने में मदद कर सकती है जो  वित्तीय स्थिति को स्थिर कर सकती है. प्रेमी से आर्थिक मदद मिल सकती है और आपकी बुद्धिमता और रचनात्मकता मिलकर आपको अच्छा मुनाफ़ा दिला सकते हैं.

सिंह राशि में सूर्य के होने से शिक्षा के लिए अच्छी संभावनाएं प्राप्त हो सकती हैं. मान सम्मान और संपत्ति अर्जित कर सकते हैं. दूसरों पर विजय पाने में सक्षम होते हैं. किसी भी प्रकार के झगड़े में विजय होने में सक्षम होते हैं. दूसरों का नेतृत्व करने में भी अच्छी सफलता मिलती है. 

कन्या राशि में सूर्य के होने पर व्यक्ति दूसरों के प्रति अधिक संवेदनशील दिखाई देता है. विवादों से बचने के लिए सावधानी बरतने की जरुरत होती है. अपने प्रेमी के साथ या काम पर व्यवहार करते समय सहयोग कम मिल पाता है. स्वभाव से अंतरमुखी भी हो सकते हैं और इससे कठिन संघर्ष हो सकता है. चीजों को पाने के लिए संघर्ष ही बेहतर परिणाम दे पाता है. 

तुला राशि में सूर्य का होना व्यक्ति को कुछ शांति लेकिन कल्पनाशील बनाता है. दृढ़ इच्छाशक्ति होती है लेकिन कई बार धरातल पर यह उपयोग नहीं आ पाती है. कलात्मक अभिव्यक्ति में रुझान हो सकता है. अपनों के प्रति लगाव होता है लेकिन सहयोग की कमी प्राप्त होती है. वैवाहिक मुद्दों को लेकर अधिक संघर्ष करना पड़ सकता है. 

वृश्चिक राशि के लिए ये समय कई मायनों में बदलाव के साथ नवीन विचारधारा का समय होता है. व्यक्ति अपने शक्ति सामर्थ्य को पाता है. क्रोध एवं जिद अधिक रह सकती है. साथ में ये लोग किसी भी बाधा से गुजरने में सक्षम होते हैं. 

धनु राशि लग्न में धनु राशि में स्थित सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को मजबूत एवं काफी दृढ़ बनाता है. व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के लिए भी काफी कर्मठ होता है. सामाजिक रुप से मान सम्मान पाता है. नेतृत्व करने में वह कुशल रहता है. 

मकर राशि में स्थित सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को गंभीर बना सकता है. संघर्ष के द्वारा सफलता मिल पाती है. अपनों के साथ रिश्तों में अधिक तनाव भी रह सकता है. दुर्घटना एवं चिंताएं अधिक परेशानी दे सकती हैं. 

कुंभ राशि लग्न में कुंभ राशि के होने पर सूर्य का यहां होना व्यक्ति को मनमर्जी वाला बना सकता है. पारिवारिक संबंधों को निभाने की क्षमता भी देता है. दूसरों के सामने एक बहुत ही योग्य पहचान देता है. जहां भी जाते हैं ये लोग निश्चित रूप से अपनी छाप छोड़ते हैं. मान समान को पाते हैं जीवन साथी को लेकर उठा-पटक लगी रह सकती है. 

मीन राशि के लग्न में होने और सूर्य की स्थिति का असर व्यक्ति को उदार प्रकृति का बनाता है. संपत्ति से भी लाभ प्राप्त कर सक पाते हैं. अपने व्यवहार के लिए अपने वरिष्ठों का सहयोग मिल पाता है. अध्यात्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं, और अपने परिवार के साथ तीर्थ यात्रा पर जा सकते हैं. खर्च अधिक रहता है और संचय प्रभावित होता है. 

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राहु से बनने वाला लक्ष्मी योग

कुंडली में धनयोग कई तरह से बनता है लेकिन जब बात आती है राहु की तो इसके कारण जब धन योग बनता है, तो उसके मायने काफी अलग दिखाई देते हैं. राहु के साथ गुरु की स्थिति को भी इस योग में देखा जाता है. राहु के साथ गुरु का योग ही बनाता है अष्ट लक्ष्मी योग. धन की अपार स्थिति का एक बेहद ही उत्तम उदाहरण है यह योग. राहु से बनने वाला ये धन योग जीवन में धन की प्राप्ति के हर स्वरुप को दर्शाने वाला होता है. लक्ष्मी प्राप्ति में इस योग में राहु की भूमिका बेहद विशेष रहती है. 

व्यक्ति का योग जीवन में धन से संबंधोत स्थिति से अलग आर्थिक मुद्दों से भी बचाव करता है. भौतिक सुविधाओं की प्राप्ति होती है.  यदि यह धनयोग बनता है तो कई कुंडलियों में व्यक्ति अपने श्रम से ही धनवान बनता है तो कई कुंडली ऐसी भी होती है जिनमें बिना किसी मेहनत के अकस्मात ही धन मिल जाता है. जब परिश्रम से अलग बात हो तो वह राहु से बने अष्ट लक्ष्मी योग को दिखाता है.  

कुंडली में धन योग की स्थिति कब बनती है 

कुण्डली में दूसरे भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव का संबंध किसी न किसी रूप में यानी के दृष्टि, स्थिति, स्थान या लग्न के परिवर्तन से आपस में जुड़ा होता है. इसे धनयोग कहते हैं. अगर यह योग अच्छे भाव में बन रहा है तो आपको अच्छे परिणाम मिल पाते हैं. दशमेश और नवमेश का राशि परिवर्तन होने पर भी धनयोग बनता है, बशर्ते कि ये पाप पीड़ित न हों तो ये एक अच्छे धन योग दिखाने वाला होता है. 

जन्म कुंडली में एकादश भाव का स्वामी सूर्य या चंद्र हो तो जातक सरकारी नौकरी से आय प्राप्त कर सकता है. जन्म कुंडली एकादशेश का मजबूत होना अच्छे पद की प्राप्ति से धन योग देता है. कुण्डली में केन्द्र त्रिकोण भी बनाता है धन योग. धन योग गुरु हो तो धार्मिक कार्यों से धन का आगमन हो सकता है. यदि कुंडली में द्वितीय और लग्न के बीच परिवर्तन होता है, तो जीवन में अचानक धन लाभ हो सकता है. 

भाव और ग्रह की धन योग में भूमिका

कुंडली में भाव बताता है कि धन कैसे मिलेगा. दूसरा घर संचित धन को दर्शाता है, जबकि आठवां भाव अज्ञात धन को दर्शाता है. इस अज्ञात धन को प्राप्त करने की आवश्यकता राहु से पूरी होती है. जन्म कुंडली में कुछ योग मूल रूप से धन को प्रदान करने में मदद करते हैं. दूसरा भाव त्रिकोण या केंद्र भाव से जुड़ा होता है. प्रभाव लाभकारी होता है तो कुंडली में यह धन योग मनवांछित फल देता है. यदि दूसरे भाव को अष्टम भाव से शनि की दृष्टि मिल रही हो तो को अपने पूर्वजों से धन प्राप्त होने की प्रबल संभावना होती है. 

चौथा स्वामी पांचवें या नौवें स्वामी के साथ है और तब संबंधित घर में स्थित है. यह एक बहुत अच्छे धन योग को जन्म दे सकता है. यदि चंद्र दूसरे भाव में वृष राशि में स्थित है, तो यह शक्तिशाली धन योग बनाता है. लेकिन उसके लिए इसे शुभ ग्रहों से भी जोड़ा जाना चाहिए. दूसरी ओर, यदि चंद्र दुष्ट भाव के स्वामी में है और पाप ग्रहों से संबंध रखता है, तो खर्च अधिक होगा और आय कम होगी.

ग्रह और भाव धन योग के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं. लेकिन इनमें जब छठे और दशम भाव में बैठा राहु बृहस्पति धन योग बनाते हैं तो इसके कारण कई तरह के सकारात्मक परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. प्रभाव से ऐसे लोग राजनीति में खूब सफलता पाते हैं. साथ ही समाज में इनकी खूब प्रतिष्ठा होती है. 

राहु के साथ बृहस्पति से बना लक्ष्मी योग  

वैदिक ज्योतिष अनुसार इस योग का निर्माण राहु और बृहस्पति के द्वारा होता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में जब राहु कुंडली के छठे भाव में और गुरु दशम भाव में स्थित हों. इन योगों से अष्ट लक्ष्मी योग का निर्माण होता है. राहु के गुरु के साथ इस योग के द्वारा इन दोनों ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर दृष्टि प्रभव से बनता है. यदि राहु की दृष्टि को देखा जाए तो इससे ये देख पाते हैं की राहु की दृष्टि गुरु पर और गुरु की दृष्टि राहु पर होने से इस योग की प्रबलता जीवन में कई तरह के सकारात्मक देने वाली होती है. 

अब यह योग जब बनता है तो यहां छठा भाव और दशम भाव दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं. इन दोनों का संगम दर्शाता है की व्यत्कि कार्य कुशलता के द्वारा ही अपने लिए अच्छे परिणाम पाने में सफल होता है. व्यक्ति अपने धन की प्राप्ति कई रुपों में कर पाता है. यह उसके कर्म के द्वारा उसे मिलता है. यह उसके प्रारब्ध के फल द्वारा भी उसे प्राप्त होता है. जीवन में उसके द्वारा किए जाने वाले कई शुभ एवं पाप कर्म दोनों ही धन के मार्ग में सहायक बनते हैं. राहु के साथ गुरु का संबंध ही धनवान होने के लिए इतना विशेष बन कर कर्म और जीवन की चुनौतियों को भी शामिल करने वाला होता है. राहु की भूमिका धन के आकस्मिक रुप से पूर्ण होती है. वहीं गुरु उचित एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में धन को लगाने के लिए भी प्रेरित करने वाला होता है. 

इस धन योग में राशियों का प्रभाव एवं अन्य ग्रहों का असर भी देखा जाता है. यदि यह दोनों ग्रह अकेले हैं और मजबूत राशि में स्थित हैं तो धन योग में अपार संतुष्टि भी प्राप्त होती है. वहीं जब यह कमजोर स्थिति या कुछ अन्य पाप ग्रहों के संपर्क में होते हैं तो स्थिति धन पर अलग असर डालती हैं जहां खर्च धन हानि भी होती है. यह मसिक संतोष की कमी को भी अधिक प्रभावित करने वाली स्थिति हो सकती है. 

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शुक्र और सूर्य की युति का विभिन्न भावों में प्रभाव

सूर्य ग्रह आत्मा का प्रतीक है और शुक्र सौंदर्य एवं भोग का. इन दोनों ग्रहों का संबंध जीवन के कई पड़ावों पर अपना असर दिखाता है. एक अग्नि तत्व ग्रह है और दूसरा जल तत्व से भरपूर अब इन का प्रभाव एक साथ होता है तो उसके कारण विरोधाभास उत्पन्न होता है. इस विरोधाभास के होते हुए भी अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं. सूर्य आत्मा और आंतरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं शुक्र आराम, विलासिता, प्रेम और रिश्तों के बारे में अपना असर दिखाता है. इन दोनों का सभी भावों पर अलग अलग परिणाम दिखाई देता है : – 

सूर्य और शुक्र का 12 भाव प्रभाव 

प्रथम भाव में सूर्य और शुक्र की युति

सूर्य शुक्र के साथ पहले भाव में होने पर कुछ बेहतरीन गुण देता है जिसे जन्मजात गुण के रुप में भी देखा जा सकता है. व्यक्ति का शरीर से आकर्षक एवं बेहतर होता है. कई प्रकार के रचनात्मक गुणों से भी संपन्न होता है. वाणी मधुर और प्रभावित होती है. कला और संस्कृति में अच्छी रुचि रखेने की स्थिति भी होगी. अच्छे पद की प्राप्ति होती है, समूह का नेतृत्व करने वाला होगा. 

दूसरे भाव में सूर्य और शुक्र की युति

दूसरे भाव में सूर्य के साथ शुक्र का होना, परिवार से स्नेह एवं सहयोग को प्रदान करने वाला है. दूसरा घर भाषा का होता है यह वाणी में नेतृत्व का गुण भी देता है. गर्व की भावना भी व्यक्ति में होती है. व्यक्ति एक अच्छा वक्ता होता है. शुक्र और सूर्य की युति व्यक्ति को अपने भौतिक और व्यक्तिगत जीवन को समान रूप से संतुलित करने में मदद करती है. आकर्षक व्यक्तित्व मिलता है जो आसपास के लोगों का ध्यान आकर्षित करता है. व्यक्ति में अच्छे स्वाद के प्रति अधिक रुचि होने लगती है.

तीसरे भाव में सूर्य और शुक्र की युति

तीसरे भाव में सूर्य के साथ शुक्र का होना व्यक्ति को मिलेजुले परिणाम देता है. व्यक्ति मान सम्मान पाने में सफल होता है. अच्छी मानसिक शक्ति होगी और वह समाज में प्रभावशाली प्रतिष्ठा बनाए रखने में सक्षम होता है. अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है. कार्य क्षेत्र में अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त कर पाता है. अपने मल्टीटास्किंग कौशल के कारण वह एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस कर सकता है लेकिन कई चीजों को करने का गुण भी होता है. 

चतुर्थ भाव में सूर्य और शुक्र की युति

चतुर्थ भाव में शुक्र के साथ सूर्य का योग व्यक्ति के लिए कुछ मामलों में चुनौतिपूर्ण हो सकता है. यहां व्यक्ति भौतिकता का लाभ पाता है लेकिन उसका सुख पाने के लिए संघर्ष में रहता है. परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा लेकिन इसका प्रभाव माता-पिता के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा. पैतृक संपत्ति मिल सकती है. विलासिता और आराम मिल पाता है. संपत्ति की प्राप्ति होगी और जीवन में नौकरों का सुख मिलता है. 

पंचम भाव में सूर्य और शुक्र की युति

पंचम भाव में शुक्र के साथ सूर्य का होना, व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. यह भाव व्यक्ति को बहुत रचनात्मक बनाता है और विचार दर्शन से भरे होते हैं. कला, चित्रकला, कविता और मनोरंजन की ओर का रुझान भी रहता है. समूह के बीच अलग दिखने वाला व्यक्तित्व मिलता है. व्यक्ति धार्मिक विश्वास के साथ अंतर्निहित गुण के साथ पैदा होता है. विद्वान होगा और मन्त्रों का अच्छा ज्ञाता होता है.

छठे भाव में सूर्य और शुक्र की युति

छठे भाव में सूर्य के साथ शुक्र का होना व्यक्ति को नाम एवं प्रसिद्धि  दिलाने वाला होता है. व्यक्ति अपने आस पास की चीजों के प्रति अधिक सजग नहीं रह पाता है. लापरवाही के कारण दूसरों से परेशान हो सकता स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना पड़ता है. व्यक्ति शत्रुओं को समाप्त करने में सफल होता है. कानूनी एवं राजकीय मामलों में सफलता पाता है. 

सातवें भाव में सूर्य और शुक्र की युति  

सातवें घर में सूर्य के साथ बैठा शुक्र वैवाहिक जीवन के लिए मिलेजुले परिणाम देता है. साथी के साथ शयोग होता है प्रेम होता है लेकिन अलगाव भी मिलने का योग बन सकता है. पाप प्रभावित होने के कारण व्यक्ति कुछ मायनों में काफी अंतर्मुखी होता है. वित्तीय स्थिति के लिए चीजें अच्छी रहती हैं. परिवार की समृद्ध संपत्ति का समय भी मिलता है. कभी-कभी संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवादों के कारण चिंता भी हो सकती है. 

अष्टम भाव में सूर्य और शुक्र की युति 

अष्टम भाव में सूर्य के साथ शुक्र का होना व्यक्ति को कई तरह की स्थितियों को देने वाला होता है. इस योग में जन्म लेने वाले के लिए स्थिति प्रेम संबंधों के लिए खास होती है. व्यक्ति अपने परिवार के साथ संबंधों को लेकर तनाव में रह सकता है. मन की शांति कुछ कमजोर रह सकती है. इस का असर व्यक्ति की प्रतिभा को कुछ दबा देने वाला होता है. 

नवम भाव में सूर्य और शुक्र की युति 

सूर्य के साथ शुक्र का योग नवम भाव में होने पर भाग्य की स्थिति पक्ष में काम करने वाली होती है. वरिष्ठों के साथ के लिए स्थिति मान सम्मान के लिए भी अनुकूल होती है. आकर्षक व्यक्तित्व होता है और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण काफी अच्छा होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अहं केंद्रित होने वाला होता है. विवाह में कुछ समस्याएं पैदा हो सकती है. भाई बहनों के साथ अच्छे सुख एवं संबंध भी प्राप्त होते हैं. 

दशम भाव में सूर्य और शुक्र की युति  

सूर्य के साथ शुक्र का होना व्यक्ति को प्रसिद्धि दिलाने वाला होता है. व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व को पाता है. परिवार के लिए जिम्मेदारी और विश्वास की पूर्ति बनी रह सकती है. व्यक्ति को अपने आस पास की स्थिति पर नियंत्रण करने की कुशलता प्राप्त होती है. व्यक्ति सरकार एवं वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर अच्छे परिणाम पाता है. 

एकादश भाव में सूर्य और शुक्र की युति

एकादश भाव में सूर्य और शुक्र की युति का योग, महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का साहस देता है. व्यक्ति अपने काम में सामाजिक क्षेत्र में प्रसिद्धि को पाने में सफल होता है. कुछ वह स्वास्थ्य के मुद्दों विशेष रूप से मस्तिष्क से संबंधित मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है. रिश्तों में अहं की समस्या अधिक परेशानी देने वाली होती है. आपसी बातचीत में गंभीर मुद्दे पैदा हो सकते हैं. सुख सुविधा के साथ वैभव का लाभ प्राप्त होता है. 

दसवें भाव में शुक्र और सूर्य की युति

द्वादश भाव में सूर्य के साथ शुक्र का होना खर्चों की अधिकता का कारण बनता है. व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के लिए संघर्ष करता है. नेत्र संबंधी रोग होने की संभावना अधिक रहती है. बाहरी रुप से व्यक्ति को कुछ लाभ मिलते हैं. वैवाहिक जीवन में रिश्ता मिला जुला रहता है. सुख बाधित हो सकता है. 

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अंगारक योग: जानिए इसके 12 भाव में शुभ अशुभ प्रभाव

ज्योतिष में अंगारक योग को एक अशुभ पयोग के रुप में जाना जाता है. अंगारक योग एक बहुत ही कष्टदायक योग है, यदि कुंडली में राहु या केतु का मंगल से संबंध किसी भी एक भाव में  स्थापित हो जाते हैं तो इस योग का निर्माण बना रह जाता है. कुंडली में अंगारक योग का निर्माण होने पर विशेष प्रकार के असर देखने को मिलते हैं. कुंडली में अंगारक योग के अधिक अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब इस योग को बनाने वाले मंगल, राहु या केतु दोनों ही अशुभ स्थान में होते हैं. इसके अलावा यदि कुंडली में मंगल और राहु-केतु में से कोई भी शुभ स्थान में है तो  जीवन पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव से बचाव मिलता है. 

अंगारक रोग का असर 

अंगारक योग के प्रभाव से स्वभाव में आक्रात्मकता की स्थिति ही अधिक दिखाई देती है. आक्रामक, हिंसक और नकारात्मक जैसी भावनाएं व्यक्ति में अधिक देखने को मिलती हैं. इस योग के प्रभाव में आने वाले व्यक्तियों के अपने रिश्तों को लेकर भी मतभेद अधिक रह सकते हैं. भाई बंधुओं दांपत्य जीवन, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी खराब संबंध परेशान कर सकते हैं. यदि अंगारक योग खराब हो तो इसके कई घातक असर दिखाई देते हैं जो हिंसा का असर अधिक दिखाई दे सकता है. व्यक्ति अपराधी बनता है और उसे अपने अवैध कार्यों के कारण लंबे समय तक जेल या कारावास में रहना पड़ सकता है. राहु और मंगल मिलकर अंगारक योग को लाल किताब में पागल हाथी या बिगड़ैल सिंह कहा गया है, अगर यह योग किसी की कुंडली में है तो ऐसे लोगों के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, यह योग शुभ फल कम देता है और अशुभ फल अधिक ज्योतिष शास्त्र में इस योग को अशुभ माना गया है. विवाह के लिए अंगारक योग बहुत सारी बाधाएं पैदा करता है और रिश्ते को गलत बनाता है.

राहु और मंगल की युति से अंगारक योग के बनने का कारण ग्रहों के का स्वभाव ही इस के होने से दिखाई देता है. मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और राहु वायु तत्व है. दोनों ग्रहों के एक साथ होते ही वायु अग्नि को बढ़ाने का काम करती है. मंगल और राहु दोनों ही कठोर हैं पाप ग्रह हैं इस तरह से यह दोनों ही ग्रह जब एक जैसे स्वभाव के साथ साथ में होंगे तो उसके लिए स्थिति उन्मुक्त सरहती है. इस योग के कारण ही व्यक्ति क्रोध व निर्णय न कर पाने की उलझन, क्रोध, अग्नि, दुर्घटना, रक्त सम्बन्धी रोग तथा त्वचा की समस्या में फंसा रहता है. 

विभिन्न भावों में अंगारक योग का असर 

प्रथम भाव अंगारक योग

पहले भाव में यह योग व्यक्ति को गुस्सैल और जिद्दी बनाता है. वह अधिक विवेक, विचार या समझ के बिना तुरंत कार्य कर सकता है. व्यक्ति विवाद में फंस सकता है, तर्क वितर्क अधिक कर सकता है. लोगों को समझ पाना आसान नहीं होता है, व्यक्ति लापरवाह हो सकता है, चोट या दुर्घटना की संभावना रह सकती है. 

द्वितीय भाव अंगारक योग

दूसरे भाव में यह योग होने पर व्यक्ति को स्पष्टवादी हो सकता है, वाणी में कठोरता भी अधिक हो सकती है. व्यक्ति तेज आवाज में बात कर सकता है. झूठ बोलने वाला सकता है. परिवार के सदस्यों और आस-पास के लोगों के साथ विवाद रह सकता है. पैसा कमाने की तीव्र इच्छा भी होती है और ये आय के अवैध स्रोतों का उपयोग करने से भी गुरेज नहीं कर सकते हैं.


तीसरा भाव अंगारक योग

कुंडली में अंगारक योग तीसरे भाव में हो तो जातक को एक उत्कृष्ट शोधकर्ता, साहस और उत्साह प्रदान करता है.  स्पष्टवादी होकर संचार से लाभ पाता है. व्यक्ति दूसरों पर अधिकार जमाने में सक्षम होता है. डराने-धमकाने और आसानी से झगड़ों में लिप्त होने जैसी नकारात्मक गतिविधियों के प्रति भी व्यक्ति शामिल होता है. 

चौथा घर अंगारक योग

चौथे भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति को अपने घर में सुख की कमी झेलनी पड़ सकती है. माता के साथ संघर्ष दे सकता है. अपनों से दूरी देने वाला होता है. घर में तोड़फोड़ बनी रह सकती है. संपत्ति संबंधी मामले में लगातार अनबन झेलनी पड़ सकती है. जीवनसाथी के साथ तीखी नोकझोंक हो सकती है. निर्माण या जमीन के व्यवसाय में आने और संपत्ति से पैसा कमाने की संभावना है. कभी-कभी उन्हें संपत्ति पर मुकदमेबाजी के मुद्दे का सामना करना पड़ सकता है.

पंचम भाव अंगारक योग

पंचम भाव में अंगारक योग व्यक्ति को आक्रामक स्वभाव का बना सकता है. व्यक्ति अपने प्रेम संबंधों को लेकर बहुत अधिक उत्तेजित होता है. बहुत जल्दी धन कमाने की इच्छा रहती है. कई रिश्तों में लिप्त भी रह सकता है. प्रेम संबंध कई बार टूट सकते हैं. संतान के सुख को लेकर परेशानी रह सकती है. 

छठा भाव अंगारक योग

छठे भाव में अंगारक योग का होना व्यक्ति को काफी मजबूत बनाता है. कार्य स्थल पर संघर्ष और वरिष्ठों के साथ मतभेद हो सकते हैं. पैतृक संपत्ति पर अपनों के साथ समस्या हो सकती है. कानूनी संबंधों को लेकर विजय मिल सकती है. विरोधियों का सामना करना पड़ सकता है. 

सप्तम भाव अंगारक योग

सप्तम भाव में अंगारक योग का होना वैवाहिक जीवन पर असर डालने वाला होता है. यह रिश्तों में अलगाव का कारण बन सकता है. घरेलू हिंसा और दोषारोपण का कारण भी अंगारक योग बन सकता है. विवाहेतर संबंध और संबंध होते हैं.

अष्टम भाव अंगारक योग

आठवें भाव में अंगारक योग दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होता है. इस योग के कारण वैवाहिक जीवन पर परेशानी झेलनी पड़ सकती है. अचानक स्वास्थ्य मुद्दों की संभावनाओं को बढ़ा सकता है. सर्जरी से भी गुजरना पड़ सकता है. अच्छे शोधकर्ता या वैज्ञानिक होने का गुण भी इस योग से बनता है. 

नवम भाव अंगारक योग

नवम भाव में अंगारक योग जातक को उच्च शिक्षा के लिए अच्छे परिणाम देने वाला होता है. यह पिता, गुरु और शिक्षकों के साथ संघर्ष और विवाद भी सकता है. करियर में अचानक सफलता प्राप्त हो सकती है. व्यक्ति परंपराओं से आगे ले जा कर काम करने वाला होता है. 

दशम भाव अंगारक योग

दशम घर में अंगारक योग का होना व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में चुनौतियों देने वाला होता है. व्यक्ति एक साथ कई सारी गतिविधियों में शामिल हो सकता है. अपने शत्रुओं के साथ भी काम करने में व्यक्ति काफी मजबूत होता है. संघर्ष के बाद सफलता का अवसर पाता है. 

एकादश भाव अंगारक योग

एकादश भाव में अंगारक योग का प्रभाव व्यक्ति को इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करने वाला होता है. अपने भाई बंधुओं एवं वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विवाद भी बने रहते हैं. व्यक्ति अधिक मिलनसार हो सकते हैं. शेयर बाजार से लाभ प्राप्त हो सकता है. 

द्वादश भाव अंगारक योग

बारहवें भाव में जिसे द्वादश भाव भी कहा जाता है, इस भाव में अंगारक योग बनने पर व्यक्ति बाहरी तत्वों से अधिक प्रभावित रहता है. विदेश में काम करने एवं यात्रा इत्यादि के लिए जा सकता है. व्यक्ति विलासिता की वस्तुओं पर भी खर्च कर सकता है. अप्रत्याशित नुकसान होने की संभावना भी अधिक रहती है. दांपत्य जीवन की स्थिति मिलेजुले परिणाम देने वाली होती है. 

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