ज्योतिष अनुसार जानें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता

ज्योतिष अनुसार स्वास्थ्य के विषय में कई तरह के मुद्दों को समझ पाना संभव होता है. यदि सेहत अच्छी हो तो व्यक्ति एक लम्बी आयु का सुख अच्छे स्वास्थ्य के रुप में देख पाता है. स्वास्थ्य ही धन है, अच्छे स्वास्थ्य के बिना, कुछ भी स्वस्थ नहीं हो सकता. ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे ग्रह हैं जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं तो कुछ ऎसे ग्रह है जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा बनाने में सक्षम होते हैं. कई बार सेहत में लम्बे समय तक उप्चार पश्चात भी जब स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता है तो ऎसे समय में ज्योतिषीय परामर्श लेना अनुकूल रहता है. 

रोग प्रभावित भाव 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों के साथ साथ भाव की स्थिति भी बहुत विशेष होती है. कुंडली में दूसरा भाव, तीसरा भाव, छठा भाव, आठवां भाव, सातवां भाव, एकादश भाव और बरहवां भाव रोग की स्थिति को दर्शाने वाला होता है. इस भाव के अधिपति एवं इसमें बैठे ग्रहों की दशाओं में रोग से संबंधित परेशानियों से प्रभावित होने की स्थिति अधिक प्रभावी दिखाई देती है. एक राशि और कुंडली में स्थिति के अनुसार ग्रह काम करते हैं. भाव के साथ ग्रह का संबंध प्राप्त होने वाली परिस्थितियों को दर्शाने वाला होता है. कुंडली में एक बाधक या अशुभ ग्रह स्वभाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है.  

स्वास्थ्य समस्या का निदान विशेष रूप से ग्रहों के स्वभाव से होता है. उदाहरण के लिए शुभ ग्रह अगर कुंडली में किसी ऎसे भाव स्थान में हो जहां उसके लिए स्थिति अनुकूल नहीं है, तो ग्रह की शुभता कमजोर हो सकती है. जिसका असर स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसे हम किसी कुंडली के अनुसार भी समझ सकते हैं कर्क लग्न में बृहस्पति शुभ है और भाग्य भी है लेकिन गुरु छठे भाव का स्वामी भी है ओर लग्नेश के साथ गुरु का होना जहां शुभ योग बनाएगा वहीं वह स्वास्थ्य के लिए परेशानी भी देगा. इस स्थिति में गुरु काफी संघर्षपूर्ण समय दे सकता है.  व्यक्ति सर्दी-खांसी जैसे रोगों से जल्द प्रभावित हो सकता है. 

इसी प्रकार कुंडली में जब दूसरे भाव में कोई ग्रह न हो तो जो ग्रह दूसरे भाव के स्वामी के साथ स्थित होता है वह अपनी दशा में जातक को मार सकता है, स्वास्थ्य संबंधी चिंता जानने के लिए किसी ग्रह का गोचर भी बहुत महत्वपूर्ण है, आम तौर पर, लग्नेश का गोचर जीवन के सभी क्षेत्रों में अच्छे परिणाम देता है जैसे स्वास्थ्य और पाप ग्रहों का गोचर उनके गोचर के दौरान समस्याएं और बीमारी देता है. आठवा भाव जीवन शक्ति और जीवन काल का प्रतिनिधित्व करता है, इस घर के स्वामी का स्थान लंबी उम्र के लिए मजबूत होना चाहिए, लेकिन बेहतर और स्वस्थ जीवन के लिए यह स्थान बुरे प्रभावों से मुक्त भी होना चाहिए. छठा घर ऋण, बीमारी और कर्ज के लिए जाना जाता है, यदि इस घर के स्वामी की स्थिति कमजोर हो और उसका प्रभाव कम हो तो यह जीवन और स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, आम तौर पर यह माना जाता है कि छठे भाव में पाप ग्रह की स्थिति स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है,

मेष राशि

मेष राशि का स्वास्थ्य एक अच्छी श्रेणी में आता है. इस राशि का स्वामी मंगल होता है और इन लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता अच्छी होती है. लेकिन यह दुर्घटनाओं से प्रभवैत होने वाली राशि है जो जोखिम की स्थिति को बताती है.  इस राशि के लोगों को सिर, दिमाग और चेहरे के रोग होने की संभावना रहती है, गंजापन, शारीरिक और मानसिक तनाव की संभावना है, जिससे सिरदर्द, माइग्रेन और स्ट्रोक जैसी परेशानी अधिक हो सकती है.

वृष राशि 

वृष राशि वालों को जल तत्व से संबंधित रोग अधिक प्रभावित कर सकते हैं. इस राशि केवालों को गर्दन, कान और गले से संबंधित रोग होने की संभावना है. सर्दी-खांसी, गले में खराश और कानों में परेशानी होने की संभावना अधिक बढ़ सकती है. संक्रमण रोगों के होने का भी खतरा अधिक बढ़ सकता है. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि वालों के लिए त्रिदोष की समस्या रहती है. इस राशि के लोगों को फेफड़े, कंधे, हाथों-बांहों में परेशानी हो सकती है. सर्दी और खांसी के अलावा तंत्रिका का भी खतरा रहेगा, इस राशि में चिंता, अनिद्रा और नसों से संबंधित समस्याएं भी परेशानी दे सकती है.    

कर्क राशि 

इस राशि में जल तत्व की प्रकृति अधिक होती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को छाती के रोगों का खतरा अधिक होता है. ब्रेस्ट और पेट से जुड़ी समस्याएं भी जल्द प्रभाव  होती हैं. चंद्रमा मन का कारक होता है. यह हमारी सभी मानसिक अनुभूतियों पर असर डालता है जल तत्व से युक्त है इस कारण जल से उत्पन्न होने वाले रोग भी इसके प्रभाव के चलते अधिक प्रभाव डाल सकते हैं. अवसाद और भावनात्मक असंतुलन जैसे मानसिक मुद्दे भी कर्क राशि वालों को प्रभावित करते हैं. क्षय रोग मधुमेह की स्थिति, भोजन एवं जल संबंधी विषाक्तता भी सेहत को कमजोर करने वाली होती है. 

सिंह राशि 

सिंह राशि अग्नि प्रधान राशि है. इस राशि के प्रभाव का भी रोग प्रतिरोधक क्षमता में बेहतर होता है. इस राशि वालों को विशेष रुप से पित्त प्रकृत्ति की अधिकता के कारण परेशानी हो सकती है. हृदय, पीठ और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गैस्ट्रिक समस्या ओर रक्त संबंधी रोग कष्ट दे सकते हैं. उच्च रक्तचाप, धमनियों का अवरुद्ध होना और दिल की धड़कन का अनियमित होना, ज्वर, शरिर में जलन जैसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि वालों को संक्रमण एवं जल से संबंधित रोग अधिक परेशान कर सकते हैं. स्नायु तंत्र की दिक्कत रह सकती है. माइग्रेन की स्थिति थाइराइड का प्रभाव भी रह सकता है. इस राशि के लोगों को पेट और आंतों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अक्सर अपने वजन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा अल्सर, एसिडिटी और कब्ज जैसी पेट की समस्याएं भी परेशानी देने वाली होती हैं. 

तुला राशि 

तुला राशि के लोगों के लिए स्थिति कई तरह के असर दिखाने वाली होती है. संक्रमण से संबंधित रोग परेशानी दे सकते हैं. गुर्दे, अधिवृक्क ग्रंथियों और त्वचा के रोग समस्या दे सकते हैं. पेट के रोग ओर कफ की समस्या भी परेशानी दे सकती है. कब्ज का सामना करना पड़ सकता है, मूत्राशय, मलाशय, जननांग, अंडाशय और वृषण के रोग इन्हें बहुत परेशान कर सकते हैं. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि वालों की रोगों से लड़ने की अच्छी क्षमता देखने को मिलती है. गुप्त रोग, यौन संक्रमण, रक्त संबंधी विकार परेशानी दे सकते हैं. पेट के रोग. गैस की शिकायत, दुर्घटनाओं की संभावना भी इनकी सेहत को प्रभावित कर सकती है. 

धनु राशि 

धनु राशि वालों की भी रोगों से लड़ने कि अच्छी क्षमता होती है. इन लोगों को अपने पैरों को लेकर दिक्कत रह सकती है.  घुटनों एवं जोड़ों के दर्द की शिकायत कर सकते हैं. इस राशि के लोगों को कूल्हे, जांघों और दृष्टि से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. नेत्र रोगों के अलावा कुछ पित्त की अधिकता से उत्पन्न होने वाले रोग भी अपना असर डालते दिखाई देते हैं. दुर्घटनाओं का असर भी अधिक रहता है. दृष्टि खराब होने से दुर्घटना हो सकती है,

मकर राशि

मकर राशि वालों के लिए हड्डियों, घुटनों, दांतों, त्वचा और जोड़ों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक रह सकती है. मकर राशि वालों को गैस्ट्रिक की परेशानी रह सकती है. हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं. माइग्रेन एवं दिमागी रोग परेशान कर सकते हैं. वात की अधिकता का प्रभाव रहता है. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि के लोगों को वात कफ की समस्या हो सकती है. पैरों के निचले हिस्से और टखनों में परेशानी होने की संभावना भी अधिक रह सकती है. जोड़ों के रोगों का असर भी पड़ सकता है. स्नायु तंत्र की समस्या भी प्रभावित कर सकती है. नसों से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है,

मीन राशि 

मीन राशि वालों को गैस्ट्रिक समस्या, पेट के रोग अधिक परेशानी देने वाले हो सकते हैं. इनकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता कुछ कमजोर अधिक दिखाई दे सकती है. पैरों के रोग भी उभर सकते हैं. कफ की अधिकता, माइग्रेन, रक्त के विकार परेशानी दे सकते हैं. 

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मंगल के आत्मकारक होने पर क्या मिल पाती है सफलता

जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह कुंडली में का विशेष ग्रह होता है जो अपने प्रभाव द्वारा कुण्डली के फलों को बदल देने में काफी सक्षम होता है. आत्मकारक ग्रह एक प्रकार से कुंडली में सभी ग्रहों को अपने द्वारा प्रभावित करता है. आत्मकारक ग्रह यदि शक्ति संपन्न होगा और शुभ होता तो उसके असर द्वारा कुंडली की हर स्थिति अपनी विशिष्ट स्थिति के अनुसार असर दिखाएगी. अगर इस आत्मकारक भूमिका में मंगल को स्थान मिलता है तो मंगल कुंडली में मजबूत ग्रह बनेगा. यह कुंडली की आत्मा के सरीखा काम करने वाला होगा. कुंडली को विशेष बल इसी के द्वारा प्राप्त होगा. 

कुण्डली में की स्थिति को जीवन में साहस एवं पराक्रम की शक्ति के रुप में देखा जाता है. ज्योतिष अनुसार हर ग्रह अपने प्रभव में जीवन के उस पक्ष पर असर डालता है जो जीवन को संपूर्णता प्रदान करने में सहायक बनता है इसी क्रम में मंगल भी अपना विशेष असर डालता है. मंगल हमें जीवन में वो शक्ति प्रदान करता है जिसके द्वारा हम अपने फैसलों को आगे ले जाने में सफल होते हैं. मंगल की शक्ति का असर इतना व्यापक है की यह शक्ति के द्वारा विजय दिलाने में सक्षम है तो तर्क की कुशलता से स्थिति को बदल देने में भी सक्षम होता है. 

मंगल किसी कुंडली में शक्ति, साहस, ताकत की सामर्थ्यता को दिखाने का काम करता है. अगर भाग्य को बदल देने का सामर्थ्य किसी में हो तो मंगल ग्रह हमेशा उसमें अपना योगदान देने वाला ग्रह होता है. यह साहस और शक्ति देता है. यह ग्रह, ऊर्जा, गतिविधि, स्वतंत्रता और संगठनात्मक कौशल की निर्णायकता के लिए जिम्मेदार माना जाता है. मंगल छोटे भाई बहनों का कारक होता है. यह कामुकता और यौन शक्ति के लिए भी विशेष बनता है. मंगल विभिन्न दुर्घटनाओं, चोटों और झटकों का कारण भी बनता है. यह विभिन्न प्रकार की तीक्ष्ण वस्तुओं और रक्त को दर्शाता हैं. यह युद्ध और शत्रुता के लिए मुख्य होता है. शरिर में रक्त, मूत्राशय, जननांग क्षेत्र और मांसपेशियां भी इसके अधिकार क्षेत्र में आती हैं.

आत्मकारक मंगल का करियर पर असर 

ज्योतिष अनुसार मंगल शुष्क और उग्र स्वभाव वाला ग्रह है. मंगल यदि आत्मकारक होकर अनुकूल है तो यह व्यक्ति को कई कार्यों में अच्छे परिणाम दिलाने में सहायक हो सकता है. मंगल यदि काफी मजबूत है तो ऎसे काम में जोड़ सकता है जहं शक्ति एवं साहस का प्रदर्शन होगा. प्रबंधन के कामों किसी दल का नेतृत्व करने में या सक्रिय रूप से कार्य करना इसके गुण का प्रभाव होगा. सेना, पुलिस, एथलीट, अग्निशामक, मंत्रालय, स्टंटमैन, सर्जन, लोहार, धातुओं के साथ संबंध, कसाई, रसोइया और खाना पकाने से जुड़ी हर चीज, मैकेनिक, सर्विस स्टेशन, बिल्डर, अचल संपत्ति के कामों, वास्तु विशेषज्ञ के काम, तकनीक से जुड़े काम, बिजली के काम, केमिस्ट और सर्जन भी बना सकता है. एथलीट के रुप में प्रसिद्धि भी दिला सकता है. एक अनुकूल और अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत उदार हो सकता है.लेकिन जब वह अपना आपा खो देता है तो उसे नियंत्रण में कर पाना असंभव हो जाता है.

आत्मकारक मंगल का प्रभाव ज्योतिष में प्रभाव

आत्मकारक मंगल यदि अपनी उच्च अवस्था में है अपनी प्रबल राशि में स्थित है तो ऎसे में यह कुंडली के कई तरह के प्रभाव में बदलाव को दिखाने वाला होता है. व्यक्ति में उग्रता अधिक दिखई देगी. वह अधिक क्रोधि एवं जिद्दी हो सकता है. ऎसे में जरुरी है कि व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए, मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. किंतु यदि व्यक्ति अधिक उत्साहित होगा तो जोखिम भरे कामों में शामिल होकर काम करने में आगे रहेगा ऎसे में यह स्थिति उसके लिए दुर्घटनाओं की संभावना में भी वृद्धि करने वाली होगी. 

व्यक्ति में ऊर्जा स्तर काफी अधिक होता है, यह शरीर में हड्डियों के अंदर पदार्थ जिसे अस्थि मज्जा कहा जाता है उस पर नियंत्रण रखता है. कुंडली में मंगल बली हो तो व्यक्ति अपनी उम्र से छोटा दिखेगा, मंगल एक क्रूर ग्रह है, आक्रामक भी है और आसानी से हार नहीं मानता है. ऎसे में वह ज्यादा सोचने का समय भी नहीं देता है. वह केवल क्रिया की प्रतिक्रिया में अधिक विश्वस रखना चाहेगा. 

व्यक्ति को मिलती है विजय की गारंटी

आत्मकारक मंगल के रुप में उच्च स्थिति का शुभस्थ मंगल विजय दिलाने वाला होता है. माना जाता है कि मंगल व्यक्ति को सफलता दिलाने की क्षमता प्रदान करता है, आत्मकारक मंगल की उपस्थिति के कारण व्यक्ति में हर लड़ाई जीतने की प्रबल इच्छा होती है. व्यक्ति अपनी ताकत का प्रदर्शन साबित करने में भी काफी सफल होता है. आत्मकारक मंगल वाले लोग महान योद्धा के रुप में उभर सकते हैं. अपने कार्यों को जल्द से करना और जल्द से जल्द निर्णयों तक पहुंचना ही उसका उद्देश्य भी होता है. आत्मकारक मंगल के मजबूत होने पर व्यक्ति ऎसे कार्यों में अधिक शामिल रहता है जहां शक्ति का प्रदर्शन हो तथा स्वतंत्रता पूर्वक फैसलों को लिया जा सके. 

आत्मकारक होने पर मंगल का प्रभाव व्यक्ति को निडर, ऊर्जावान और आज्ञाकारी भी बनाता है. मंगल ऊर्जा का एक ग्रह है जो एक अच्छे आत्म सम्मान से भरे जीवन को जीने के लिए बहुत आवश्यक होता है. यह जीवन के प्रति एक बहुत ही स्वस्थ और सहज दृष्टिकोण रखता है, कुंडली में शुभ तरह से स्थित मंगल किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक बल प्रदान करता है चाहे वह खेल हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि. आत्मकारक मंगल अच्छी शिक्षा का मौका भी देता है. व्यक्ति में आत्मबल काफी होता है वह दूसरों पर निर्भर और किसी प्रकार की शारीरिक सुरक्षा नहीं चाहता है. आत्मकारक मंगल व्यक्ति के भीतर नेतृत्व का बेहतरीन गुण विकसित करता है. व्यक्ति में समाज को बदलने की क्षमता होती है. 

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शुक्र ग्रह का नकारात्मक एवं खराब प्रभाव क्यों है इतना घातक

शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार देना एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थितो है. शुक्र के खराब होने के बुरे प्रभावों को जानकर यह समझ पाना इसके मिलने वाले फलों को दिखाने वाला होता है. यह भी पता होना चाहिए कि शुक्र ग्रह का इतना महत्व क्यों रखता है. 

शुक्र बृहस्पति के पश्चात सबसे शुभ ग्रह है. किसी भी व्यक्ति के लिए, यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह भौतिक वस्तुओं, आनंद और विलासिता के सुख को देता है, बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी गुरु की उपाधी प्राप्त है. यह इच्छाओं और व्यसनों पर नियंत्रण और अधिकार रखता है. शुक्र प्रेम, ग्लैमर और संतुष्टि को दिलाने वाला ग्रह है. शुक्र एक चमकीला, स्त्री गुणों से भरपूर ग्रह है. प्रेम, विवाह, सौंदर्य और हर प्रकार के सुख का आधार इसे माना जाता है. शुक्र की अवधि भी लम्बी होती है अपनी महादशा में यह बीस वर्षों तक अपना असर दिखाता है. किसी कुण्डली में शुक्र अनुकूल स्थिति में है तो उसकी दशा में जीवन में प्रचुरता, आनंद और आराम जरुर मिलता है. शुक्र ग्रह कुंडली में स्त्री पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. सप्तम भाव का कारक होता है जो विवाह और व्यापारिक साझेदारी का भाव भी होता है, यदि कुंडली में शुक्र  खराब होगा तो यह एक असफल विवाह और प्रेम संबंध देने वाला होगा. 

शुक्र का प्रभाव किसी के जीवन में उसके आत्मविश्वास, भावनात्मक सुरक्षा और आंतरिक खुशी के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार माना गया है.  यदि बाहरी आत्मविश्वास के लिए सूर्य जिम्मेदार है तो आंतरिक आत्मविश्वास के लिए शुक्र का प्रभाव अत्यंत विशेष हो जाता है. शुक्र जीवन में आंतरिक भावनात्मक सुरक्षा के लिए विशेष होता है. शुक्र बताता है कि हम खुद से कितना प्यार करते हैं और कितनी नफरत. इसलिए शुक्र व्यक्ति के जीवन में आंतरिक शांति और अशांति के लिए विशेष ग्रह बन जाता है. जिस प्रकार चंद्रमा का असर मन को आंदोलित करता है उसी प्रकात शुक्र का असर व्यक्ति की भीतरी सजगता उसकी अभिव्यक्ति पर अपना असर डालता है. 

जब जीवन आपको नीचे गिराता है, तो शुक्र का प्रभाव ही है जो आपको वापस लड़ने का बल देता है. आंतरिक विश्वास इसी से मिलता है. यह शुक्र ग्रह जीवन का वास्तविक सुख देता है. शुक्र ही भीतर की बुरी भावनाओं को दूर करने के लिए जिम्‍मेदार है. हम जैसे हैं वैसे ही खुद को प्यार करने के लिए शुक्र ही भाव देता है. बाहरी नकारात्मकता से प्रभावित हुए बिना जीवन में सफलता की राह पर बढ़ने के लिए जितनी आसानी से नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकते हैं वह हमें शुक्र से प्राप्त होती हैं. 

शुक्र के शुभ और अशुभ असर का भावनात्मक रुप से प्रभाव  

शुक्र इतना मजबूत है कि वह व्यक्ति को काफी समझदार एवं बौद्धिक बनाता है. किसी भी प्रकार के नकारात्मक असर को व्यक्ति आसानी से अपने ऊपर हावि नहीं होने देगा यदि शुक्र कुंडली में मजबूत है. शुक्र के मजबूत होने पर व्यक्ति का भावनात्मक संतुलन बहुत मजबूत होता है. किसी भी प्रकार का भावनात्मक प्रदर्शन व्यक्ति को आसानी से अपने जाल में नहीं फंसा सकता है. यह शुक्र की वास्तविक शक्ति है. सूर्य एक प्रकार का शुद्ध अहंकार है. लेकिन शुक्र के द्वारा इसके भी दो पक्ष दिखाई दे सकते हैं. शुक्र अगर खराब है तो बाहरी आत्मविश्वास तो बहुत होता है लेकिन अंदर से असुरक्षित अनुभव किया जा सकता है. ऎसे व्यक्ति की कमजोरी भी आसानी से नजर नहीं आती है. एक मजबूत शुक्र द्वारा ही नकारात्मक भावनाओं से अप्रभावित रहने में सहायता मिल सकती है. एक मजबूत शुक्र वाला व्यक्ति जीवनसाथी को अपने स्वाभिमान से धोखा नहीं देने देता है, लेकिन जब शुक्र भावनात्मक सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त रूप से स्थिर नहीं है, तो व्यक्ति अन्य संबंधों की तलाश करना चाहते हैं,

शुक्र खराब होता है तो इसके विपरित असर दिखाता है. आत्मविश्वास की कमी देखने को मिल सकती है. कोई भी व्यक्ति आपको आसानी से भावनात्मक चोट पहुंचा सकता है. अपने दिल में एक बड़ा भावनात्मक बोझ लेकर चल सकते हैं. नकारात्मकता से इतनी आसानी से प्रभावित हो जाते हैं की स्वयं को व्यक्ति बहुत अधिक असुरक्षित महसुस कर सकता है.  दोस्ती, रोमांटिक रिश्तों और आस-पास के माहौल को लेकर असुरक्षित महसूस कर सकता है. खराब शुक्र इतना मजबूत नहीं है कि खुशी का एहसास करा सके, खराब शुक्र बहुत खराब मिजाज देता है, रोमांस में असुरक्षितता बेवफाई की ओर ले जा सकता है. हेराफेरी करवा सकता है. 

शुक्र के नकारात्मक पक्ष में कई तरह की स्थितियां देखने को मिल सकती हैं. 

शुक्र का असर यदि नकारात्मक रुप से दिखाई देने लगे तो यह विष की भांति कार्य करने वाला होता है.  शुक्र के विषैले प्रभाव द्वारा व्यक्ति में न केवल असुरक्षित भावनात्मक स्थिति होती है अपित गलत चीजों के प्रति आकर्षण भी होता है. जीवन में असंतुलित हो सकते हैं. व्यक्ति दूसरों की पीठ में छुरा घोंपने की हद तक चला जा सकता है. ऐसा इस कारण से भी होता है क्योंकि शुक्र की कुछ बातें व्यक्ति को अपने बारे में इतना हीन महसूस कराती हैं, कि वह ईर्ष्या से बाहर दूसरों के साथ कुछ बुरा करके दूसरों की खुशियों को नष्ट करने की चाह रखेगा. खराब शुक्र व्यक्ति को खुशी और भावनात्मक स्थिरता और भाग्य से वंचित कर देने वाला होता है. कमजोर निर्बल पाप प्रभावित शुक्र व्यक्ति में इतनी नकारात्मकता भर सकता है कि वह दूसरों के सुख से ईर्ष्या करने वाला बना सकता है. ऎसे में व्यक्ति हर ओर व हर जगह नफरत उगलते दिखाई दे सकता है. यह जीवन के कई पहलूओं पर दिखाई देसकता है. 

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बुध का आत्मकारक होना वाणिज्य में देता है सफलता

बुध को वैश्य वर्ग का माना गया है, अर्थात व्यापार से संबंधित ग्रह के रुप में बुध को विशेष रुप से देखा जाता है. बुध की स्थिति कुंडली में एक अच्छे वाणिज्य को दर्शाने वाली होती है. बुध एक ऎसा ग्रह है जो बिड़ पर अपना गहरा असर डालने में सक्षम होता है. जब बात आती है आत्मकारक रुप में बुध की तब यह बेहद ही शुभता को दिखाने वाली होती है. बुध आत्मकारक होकर अवसरों को देने में सहायक होगा. व्यक्ति अपने काम के क्षेत्र में उपलब्धियों को पाने में सफल होगा. 

बुध को मिथुन राशि और कन्या राशि का स्वामित्व प्राप्त है. कई पौराणिक कथाओं में बुध की भक्ति एवं उसकी कठोर साधना का शुभ फल भी जीवन में देखने को मिलता है. बुध ग्रह स्वतंत्र अभिव्यक्ति और संचार का ग्रह है. बुध एक अवसरवादी ग्रह भी माना गया है. जब कुंडली में बुध अच्छा होता है तो लोग अच्छे वक्ता होते हैं और चापलूसी भरे शब्दों की बौछार करने में भी उन्हें कोई पकड़ नहीं सकता है.  व्यक्ति में मीठे शब्दों को कहने की कला भी अच्छी होती है.  बुध का असर हर ओर देखने को मिलता है. संचार ही एकमात्र ऐसी चीज नहीं है जो बुध का गुण है इसके अलावा लोगों के मध्य तालमेल को आगे बढ़ाने का काम भी यह करता है. एक मजबूत बुध आत्मकारक होकर अच्छा विश्लेषण कौशल, अच्छा सामाजिक जीवन और मनोविनोद का गुण देने में सक्षम होता है. यदि किसी का वाक चातुर्य कमाल का है और पारिवारिक जीवन अच्छा है, तो इसका मतलब है कि बुध काफी मेहरबान है उन लोगों की कुंडली में.

ज्योतिष में बुध: सामान्य विशेषताए

ऋषि पराशर बुध ग्रह को एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले देवता के रूप में वर्णित करते हैं और अपने शब्दों की पसंद से आपको प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. ज्योतिष अनुसार बुध को अच्छी चीजों का का शौक है. बुध प्राय: हरे रंग से प्रतिध्वनित होता है जिसका अर्थ है की यह रंग उसके प्रिय रंगों में शामिल होता है. यह शांति पसंद ग्रह है. बुध कभी व्यर्थ के विवाद में पड़ने को नहीं कहता है अपितु तर्क शक्ति के आधार पर जीवन को जीने की योग्यता देता है.  हरा रंग सहजता, संतुलन और सामंजस्य से संबंधित है और इसी का असर जीवन पर जब पड़ता है तो यह शुभता काम करती है. बुध में उत्तेजित मन को शांत करने की क्षमता है. तुलसी भगवान विष्णु को अर्पित की जाती है, जो बुध के प्रतीक रुप में भी स्थान पाती है. बुध संबंधी कई समस्याओं के लिए हरी तुलसी के उपयोग की सलाह दी जाती है. बुध अपना सबसे अच्छा प्रभाव तब दिखाना शुरू करता है जब व्यक्ति अपने जीवन के आरंभिक वर्ष में होता है. बुध संचार का ग्रह है. यह एक दोहरी प्रकृति वाला ग्रह है जो कन्या और मिथुन पर अधिकार रखता है. 

ज्योतिष में बुध से प्रभावित शरीर के अंग हाथ, कान, फेफड़े और तंत्रिका तंत्र होते हैं. यह लोगों के कलात्मक और स्किल्स को भी विकसित करता है. इसलिए किसी सर्जन, पेंटर, कमेंटेटर आदि के ज्योतिष में अक्सर मजबूत बुध देखा जा सकता है. सभी राशियों में अपनी यात्रा पूरी करने में इसे बारह महीने लगते हैं, और प्रत्येक राशि पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि बुध किस घर में किस स्थिति में बैठा है. बुध के उदार प्रभाव से व्यक्ति का परिवार और समाज में मान-सम्मान ऊंचा रहेगा. लोग उन्हें पेशे और शिक्षा के क्षेत्र में एक-दूसरे के नजरिए से देखेंगे. मजबूत बुध वाला व्यक्ति अपने रिश्तेदारों के लिए आंख का तारा होगा. बुध के शुभ प्रभाव के लिए हरा पन्ना बहुत अच्छा माना गया है. . 

वैदिक ज्योतिष में बुध का विश्लेषण 

वैदिक ज्योतिष में बुध को अक्सर बुध ग्रह कहा जाता है, किंवदंतियों में, बुद्ध को चंद्रमा और तारा के पुत्र के रूप में देखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा बृहस्पति की पत्नी तारा पर आसक्त हो जाते हैं जिससे तारा को बुध की प्राप्ति होती है. इस कारण बुध को चंद्रमा और बृहपति दोनों के साथ संबंधित माना गया है. बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व का मेल भी बुध से मिलता है. बुध के विषय में एक विचार यह भी है कि 32 वर्ष की आयु में पूर्ण परिपक्वता तक पहुंचता है. ज्योतिष शास्त्र में बुध को प्राय: बुद्धि प्रमुख कहा गया है. उनकी सुंदरता और भगवान विष्णु के परप भक्त होने के कारण उन्हें भगवान विष्णु की छवि के रूप में माना जाता है. बुध ग्रह के स्वामी विष्णु हैं. बुधवार को बुध ग्रह का दिन माना जाता है और उस दिन उनकी पूजा करने से बुध के कारण आने वाली सभी बाधाएं और बाधाएं दूर हो जाती हैं.

ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को वाणी का देव कहा जाता है. यह व्यक्ति के स्वर एवं कंठ पर अपना प्रभाव डालता है. ज्योतिष में बुध को सौर मंडल का मस्तिष्क कहा जाता है. यह एक शांत और रचिनात्मकता से परिपूर्ण ग्रह है. बुध की महादशा अवधि 17 वर्ष तक रहती है. बुध वात प्रकृति का होता है और बुध के प्रभाव में आने वाले जातक अच्छे गायक, अच्छे व्यवहार वाले होते हैं. लग्न में एक मजबूत बुध बुद्धि, शिक्षा, सामाजिक और व्यावसायिक मामलों, रिश्तेदारों के साथ संबंध, हास्य आदि में वृद्धि करता है. इसके विपरित जन्म कुंडली में कमजोर बुध अन्य अशुभ ग्रहों के साथ मिलने पर परिवार और दोस्तों के बीच संबंधों में समस्या पैदा कर सकता है. धन और प्रतिष्ठा की हानि करता है . 

आत्मकारक बुध का प्रभाव 

अब जब बुध कुंडली में आत्मकारक होता है तो उसके जो भी सकारात्मक पक्ष हैं वह दो गुने रुप में हमारे सामने होते हैं. बुध का आत्मकारक होना व्यापार में व्यक्ति को सफलताओं को दिलाने में सहायक होता है. यदि बुध आत्मकारक होकर शुभ ग्रहों की दृष्टि एवं प्रभाव में होता है तो उसके कारण व्यक्ति को एक अच्छी सफलता पाने का सुख भी मिलता है. इसी प्रकार यदि आत्मकारक बुध अगर कमजोर होता है या बुध पाप ग्रहों के असर में होता है तब व्यापार में दूसरों की ओर से असहयोग अधिक मिलता है. व्यक्ति के अच्छे कार्यों को भी कोई सराहता नही हैं व्यापार में सफलता पाने के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है. 

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सूर्य के आत्मकारक होने पर प्रतिष्ठा के साथ मिलती हैं राजनीतिक सफलता

आत्मकारक ग्रह जीवन में इच्छाओं के साथ आकांक्षा को दर्शाता है. यह ग्रह मुख्य ग्रह है जिसके माध्यम से कुंडली के अन्य ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है. यदि आत्मकारक कमजोर या पीड़ित है, तो जीवन में गलत निर्णय अधिक हो सकते हैं. व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के लिए भी परेशानियां उत्पन्न कर सकता है. इस प्रकार, आत्मकारक ग्रह की उच्चतम अभिव्यक्ति को समझना और उसके अनुसार नियमों का पालन करना ही जीवन को बेहतर रुप से जीने का एकमात्र तरीका भी हो सकता है. 

यदि कुंडली में सूर्य आत्मकारक होकर मजबूत है, तो यह कुंडली के अन्य कारकों को अच्छे परिणाम देने में मदद करता है. यह कमजोर ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद करता है. लेकिन अगर सूर्य आत्मकारक ग्रह होकर कमजोर है, तो शुभ होकर भी सबसे अच्छा परिणाम देने में सक्षम नहीं हो पाता है.

ज्योतिष में आत्मकारक हमारे भीतर आत्मा को परिभाषित करता है. इसकी बाहरी अभिव्यक्ति आध्यात्मिक से अलग होती है, जिसका मतलब यह है कि हम आसानी से इच्छाओं की प्रकृति के जाल में फंस सकते हैं और सोच सकते हैं कि आत्मा केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति ही चाहती है. यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति सच्ची आत्मा के अनावरण की प्रक्रिया का हिस्सा है. आत्मा ही हमारी इच्छा के चक्र को नियंत्रित कर रही होती है. भौतिक इच्छाओं की पूर्ति अधिक से अधिक के लिए एक बढ़ती हुई भूख पैदा कर सकती है. नतीजतन, ये इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं, लेकिन सूर्य के आत्मकारक होने पर इन को नियंत्रित भी किया जा सकता है. किंतु इस के पिछे बहुत से अन्य तथ्य भी काम करने वाले होते हैं. 

सूर्य का दो रुपों में आत्मकारक होना 

आत्मकारक दो प्रकार के होते हैं – प्राकृतिक आत्मकारक और जैमिनी  आत्मकारक. यदि आत्मकारक द्वारा किए जाने वाले कार्य के पक्ष में हो तो कार्य सिद्ध होता है. यदि आत्मकारक की गतिविधि को स्वीकार नहीं करता है तो सिद्धि कठिन है. सभी जन्म कुंडली में सूर्य को प्राकृतिक आत्मकारक माना जाता है. सभी जन्म कुंडली में प्राकृतिक आत्मकारक सूर्य है. सूर्य हमारे व्यक्तित्व के केंद्र को प्रभावित करता है; इसे आत्मकारक के नाम से जाना जाता है. मानव शरीर पर सूर्य का पूर्ण प्रभाव होता है. इसलिए जब कुंडली में अन्य रुप से भी यह आत्मकारक बन जाता है तो इसका असर दोगुने रुप में हमें प्राप्त होता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्य की पहचान ब्रह्मांड की आत्मा के साथ-साथ व्यक्ति की आत्मा से की जाती है. इस प्रकार आत्मकारक, कारक कर्ता, जोड़तोड़ करने वाला और निर्देशक भी है. आत्मकारक कुंडली में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है. यह आत्मकारक से ही संभव होता है जिससे इष्ट देवता के बारे में जाना जाता है.  

आत्मकारक सूर्य के प्रभावों के बारे में सामान्य सिद्धांत 

आत्मकारक के रूप में सूर्य दर्शाता है कि व्यक्ति को अपने अहंकार पर काबू पाना सीखना होता है क्योंकि सूर्य की स्थिति व्यक्ति के भीतर अहम की भावना में वृद्धि करती है. इसलिए जब सूर्य आत्मकारक बनता है तो व्यक्ति को एक विनम्र और समझदार व्यक्ति बनने की भी आवश्यकता होती है. आत्मकारक सूर्य व्यक्ति की सफलता, प्रसिद्धि और शक्ति को पूरा करने की इच्छा को इंगित करता है. इसलिए, ये सब तभी प्राप्त हो सकते हैं जब व्यक्ति अहंकार को त्याग देता है और विनम्रता बनाए रखता है.

ज्योतिष में आत्मकारक आत्मा के संघर्ष को दर्शाता है, लेकिन सही रास्ता भी दिखाता है. यह हमें जीवन के अनुभवों को समझने में मदद करता है. ये अनुभव शिक्षाएं आमतौर पर आत्मकारक दशाओं और भुक्तियों के दौरान ही अधिक प्राप्त होती है. भौतिकवादी लक्ष्यों की पहचान आवश्यक है और हमें इन आवश्यकताओं को कम करके नहीं आंकना चाहिए. पृथ्वी पर एक आत्मा का जन्म दर्शाता है कि आत्मा को उच्च स्व को समझने के लिए तैयार होने से पहले पूरा करने के लिए एक सांसारिक मिशन है. ज्योतिष में आत्मकारक आपको आत्मा के भौतिक लक्ष्यों और आध्यात्मिक लक्ष्यों दोनों को दिखाएगा. इन लक्ष्यों को पूरी तरह समझना मुश्किल है. हालाँकि, हम एक हद तक प्रबुद्ध हो सकते हैं.

सूर्य आत्मकारक : लाभ और नकारात्मक प्रभाव 

यदि सूर्य जन्म कुंडली में उच्चतम डिग्री पर मौजूद होता है तो इस कारण सूर्य कुंडली में आत्मकारक, या आत्मा सूचक बन जाता है. लेकिन, यह स्थिति जैमिनी के स्तर पर विशेष रुप से अपना असर दिखाने वाली होती है. क्योंकि अधिकतम डिग्री में कोई ग्रह यदि 27 से अधिक दिखाई देगा आत्मकारक के रूप में हो सकता है ऎसे में ग्रह की ये स्थिति दो भावों के साथ साथ दो राशियों का असर भी दिखाने वाली होगी. उज्ज्वल पक्ष के रुप में आत्मकारक का असर विशेष बन जाता है लेकिन जीवन देने वाले सूर्य का क्या अर्थ रखता है. सूर्य आत्मा का सूचक है, यह सूर्य के लिए एक प्राकृतिक स्थिति है. सूर्य सभी के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रह है. 

सूर्य इच्छाशक्ति और रोशनी से भरा है, और आत्मकारक के रूप में यह एक व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए प्रेरित करता है. सूर्य एक श्रेष्ठ ग्रह है, और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होने के साथ-साथ जीवन के मूल अर्थ का अनुसरण करना चाहता है. प्रत्येक दिन सूर्य उगता है और पृथ्वी पर सभी सृष्टि के साथ अपनी गर्मी और प्रकाश उत्पन्न करता है. सूर्य का ये गुण भी उसे एक उदार और रचनात्मक ग्रह बनाता है एक क्षत्रिय ग्रह के रूप में, सूर्य आत्मा लोगों में नेतृत्व करने, अपने आदर्शों को बढ़ावा देने और अपने से कमजोर लोगों की रक्षा करने की एक सहज इच्छा प्रदान करता है.  बहादुरी, नेतृत्व, दुनिया में अपनी रचनात्मक शक्ति का उपयोग करना और अपने धर्म का पालन करना जीवन की मूलभूत बातों में देखा जाता है. 

सूर्य के द्वारा अधिकार, अहंकार और शक्ति को सीखने की बात प्रमुख होती है. सूर्य की गरिमा और स्थिति यह बताती है कि हम शक्ति का उपयोग कैसे करते हैं. फिर चाहे आप इसका उचित उपयोग करते हैं या इसका दुरुपयोग करते हैं. जरुरी है कि हम अधिकार को कैसे संभालते हैं. सूर्य आपके पिता का प्रतिनिधित्व करता है, आपके अपने पिता के साथ अतिरिक्त घनिष्ठ संबंध हो सकते हैं, पिता के साथ संबंधों के बारे में सबक सीखने की जरूरत है, या आपके पिता आपके रास्ते में आपकी मदद कर सकते हैं. यदि सूर्य आत्मिक ग्रह है, तो इसकी शक्ति जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

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शनि का सभी लग्नों पर असर और इससे मिलने वाले प्रभाव

शनि का प्रभाव प्रत्येक लग्न के लिए विशेष होता है. किसी लग्न में शनि बेहद खराब हैं तो किसी के लिए बेहद उत्तम होते हैं वहीं किसी के लिए सम भाव के साथ दिखाइ देते हैं. अब शनि हम पर कैसा असर डालता है वह कई बातों के आधार से समझा जाता है जिसका एक पक्ष शनि का लग्न प्रभाव भी होता है. शनि व्यक्ति को जीवन में अनुशासित रहना और न्याय का सम्मान करना सिखाता है. शनि एक शिक्षक की भाम्ति होता है जो ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करने के लिए तैयार करता है. 

मेष लग्न के लिए शनि 

मेष लग्न के लिए शनि दसवें और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. इस लग्न के लिए दशम भाव नौकरी व्यवसाय एवं कर्म का होता है तो एकादश भाव, आय का भाव माना जाता है. इन भाव में सबसे उपयोगी माने जाने वाले शनि का प्रभाव मेष लग्न के लिए मिलाजुला रहता है. आय में अप्रत्याशित वृद्धि होने की संभावना रहती है. एक से अधिक स्रोत से आमदनी भी प्राप्त होती है. जो भी चुनौतियां झेली हैं और जितनी मेहनत की है, वह सब शनि के प्रभाव द्वारा ही होती है जिनका पूरा फल भी मिलता है. सभी इच्छाएं और महत्वाकांक्षाएं पूरी होती हैं यदि प्रयास सदैव बने रहते हैं. 

वृष लग्न के लिए शनि 

वृष लग्न के लिए शनि नवम और दशम भाव का स्वामी ग्रह होता है. इस कारण काफी शुभ माना जाता है. शनि इनके भाग्य स्थान का स्वामी भी होता है. कर्म भाव के प्रभाव दिखाने वाला होता है. इस लग्न के लिए शनि भाग्य और कर्म भाव दोनों का स्वामी होने के कारण अनुकूल अवसरों का प्रबल कारक भी बन जाता है. अप्रत्याशित विजय दिलाने में सहायक भी बनता है. कर्मों के स्वामी होकर यह परिणाम को प्रभावित करता है. 

मिथुन लग्न के लिए शनि 

शनि मिथुन लग्न के लिए अष्टम और नवम भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि का मिथुन लग्न पर अच्छा और खराब दोनों तरह का फल देखने को मिलता है. भाग्य भाव का स्वामी होकर शनि दूर की यात्रा के योग बनाता है. लंबी यात्राएं आपके जीवन में सफलता के योग ला सकती हैं. वहीं अष्टम का स्वामी होने के कारण हालाँकि ये यात्राएँ आपको थकान और बेचैनी से भी प्रभावित करने वाली भी हो सकती हैं. पिता के साथ आपके संबंध प्रभावित होते हैं, यह स्थिति पिता की सेहत के लिए भी विशेष होती है. अपनी मेहनत से अपना भविष्य बनाने का मौका देता है. इसलिए मिथुन लग्न वाले जितनी मेहनत करते हैं उतना ही अधिक फल पाते हैं. 

कर्क लग्न के लिए शनि 

कर्क लग्न के लिए शनि सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी ग्रह होता है. कर्क राशि के लिए शनि अच्छा नहीं माना जाता है. कामकाज में सदैव चुनौतियां आती हैं. पूरे प्रयास करने पर ही सफल हो सकते हैं. काम को लेकर दबाव के साथ मानसिक तनाव भी रहता है. वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव रहता है. कर्क लग्न के लिए शनि की ढैय्या साढेसाती बेहद खराब होती है. मेहनत और चतुराई से जीवन की परेशानी से निकलने में कामयाब होते हैं. अचानक धन लाभ होने के योग भी बनते हैं. स्वास्थ्य को लेकर भी अधिक ध्यान रखना होता है. 

सिंह लग्न के लिए शनि 

सिंह लग्न के लिए शनि छठे और सातवें भाव का स्वामी ग्रह होता है. सिंह के लिए भी शनि खराब ग्रह ही होता है. वैवाहिक जीवन को लेकर काफी अव्यवस्थित महसूस करवाता है. स्वभाव या तानाशाही रवैया जीवन में परेशानी का सबब बनता है. प्रेम संबंधों का सुख भी साधारण ही मिलता है. कार्यक्षेत्र में व्यापार में सफलता मिलने के योग संघर्ष के पश्चात ही मिलते हैं. कार्यकुशलता  सफलता दिलाने में सहायक बनती है. शत्रुओं एवं रोग का प्रभाव पड़ता है. 

कन्या लग्न के लिए शनि

शनि कन्या लग्न के लिए पंचम भाव और षष्ठ भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि इन पर मिलाजुला असर डालता है. विरोधियों को देता है और उनसे लड़ने की क्षमता भी देता है. अपने शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम बनाता है. आर्थिक क्षेत्र में कर्ज इत्यादि से प्रभावित कर सकता है. संतान सुख को लेकर अधिक चिंता दे सकता है. अपने जीवन में कर्म एवं परिश्रम को करने से ही शनि बेहतर परिणाम देता है.

तुला लग्न के लिए शनि 

शनि तुला लग्न के लिए चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी ग्रह होता है. तुला लग्न के लिए शनि बेहद शुभ ग्रह माना गया है. अच्छे भावों का स्वामी होकर जीवन में सुख समृद्धि को प्रदान करने वाला ग्रह होता है. पंचम भाव का स्वामी होकर शनि प्रेम संबंधों के लिए परीक्षा का समय देता है और अगर अपने रिश्ते में ईमानदार और वफादार होते हैं तो रिश्ता बहुत खूबसूरत बनाता है. शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा अर्जित करने का अवसर भी देता है. भौतिक सुख साधनों को प्रदान करता है. 

वृश्चिक लग्न के लिए शनि 

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तीसरे और चौथे भाव का स्वामी होता है. चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शनि का प्रभाव परिवार से दूर ले जाने का काम करता है. व्यक्ति को अपना जन्म स्थान बदलना होता है. घर परिवार से दूर जा कर ही सफलता मिलने के अधिक अवसर होते हैं. 

धनु लग्न के लिए शनि 

धनु लग्न के लिए शनि दूसरे और तीसरे भाव का स्वामी ग्रह होता है. धनु लग्न पर इसका प्रभाव परिश्रम और अत्यधिक प्रयासों के लिए होता है. साढ़ेसाती का असर अधिक पड़ता है. व्यक्ति अपने काम को करने में धीमा होता है, लेकिन जो भी काम करना चाहता है उसे पूरी शिद्दत से करता है. सफलता पाने में सामाजिक रुप से सफल रहता है. व्यक्ति के दोस्त हों, पड़ोसी, रिश्तेदार या भाई-बहन, सभी काम में सहयोग देने वाले होते हैं. 

मकर लग्न के लिए शनि 

मकर लग्न के लिए शनि  लग्न और दूसरे भाव का स्वामी ग्रह होता है. शनि का प्रभाव मिश्रित परिणाम लेकर आता है. परिवार में तनाव का माहौल मिलता है. बड़ा परिवार प्राप्त होता है. अपनों के साथ कुछ मनमुटाव महसूस करता है. व्यक्ति का बैंक बैलेंस स्थिर होता है. धन संचय करने में सफल रहता है. प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से भी अच्छा मुनाफा पाता है. परिवार की जरूरतों को पूरा करने में खुद को सीमित रखता है. 

कुंभ लग्न के लिए शनि 

कुम्भ लग्न के लिए शनि बारहवें ओर लग्न भाव का स्वामी होता है. शनि के प्रभाव के कारण व्यक्ति को अपने कार्यों को सही दिशा में करना होता है. अपने कार्यक्षेत्र में मेहनत अधिक रहती है ओर सफलता सामान्य होती है. जितनी अधिक मेहनत करता है व्यक्ति उतने ही अच्छे परिणाम पाने में सक्षम होता है. जीवन में नवीनताओं से जुड़ाव पाता है और उन्मुक्त होकर जीने की चाह रखता है. 

मीन लग्न के लिए शनि 

मीन लग्न के लिए शनि एकादश भाव और बारहवें भाव का स्वामी ग्रह होता है. इनके लिए शनि मिलेजुले प्रभाव देने वाला ग्रह होता है. जीवन में स्वास्थ्य पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. शनि का प्रभाव पैरों में दर्द, टखनों में दर्द या पैर में किसी तरह की चोट या मोच दे सकता है. नेत्र संबंधी विकार भी कुछ अपना असर डाल सकते हैं. यात्राओं को प्रदान करता है और इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता भी देता है. 

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मंगल केतु का एक साथ होना क्यों होता है नकारात्मक

मंगल और केतु यह दोनों ही ग्रह काफी क्रूर माने जाते हैं. इन दोनों का असर जब एक साथ कुंडली में बनता है तो यह काफी गंभीर ओर नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है. इन दोनों ग्रहों की प्रकृति का स्वरुप ऎसा है की यह तोड़फोड़ की स्थिति को दिखाने वाले होते हैं. मंगल यह ऊर्जावान, अधीर, शीघ्र निर्णय लेने वाला और जोखिम लेने वाला होता है. वहीं केतु विरक्ति से पूर्ण अलगाव, अकेलापन, आध्यात्मिक चिंतन का ग्रह होता है.

यदि दोनों ग्रह सकारात्मक हैं तो यह आपको जीत अवश्य दिलाते हैं लेकिन इसके विपरीत कमजोर मंगल अनुकूल फल नहीं दे पाता है. मंगल केतु के साथ होने पर का होना भाव स्थिति के अनुसार एवं राशि प्रभाव अनुसार अपना असर दिखाता है. केतु ग्रह का स्वभाव मंगल ग्रह से काफी मिलता-जुलता है जिस कारण कुजवत केतु कहा जाता है. केतु उच्च का होता है तो व्यक्ति का भाग्य बदल देता है. मंगल की तरह केतु ग्रह को भी साहस और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है.

कुंडली के प्रथम भाव में मंगल और केतु का असर 

कुंडली के प्रथम भाव में मंगल और केतु का होना व्यक्ति को उग्र होने के साथ साथ आक्रामक भी बना सकता है. इस का प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव एवं उसके आचरण की तीव्रता को दर्शाने वाला होता है. स्वतंत्र होकर काम करने का असर व्यक्ति में अधिक होता है. व्यक्ति में शक्ति को प्रदर्शित करना दिखावा करना भी होता है. धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में आगे रह सकता है. व्यर्थ  की चिंताएं घेर सकती हैं. गलत फैसले लेने के कारण दूसरों के कारण अपमान भी झेलना पड़ता है. जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो सकती है तथा अलगाव की स्थिति असर डालती है. .

कुंडली के दूसरे भाव में मंगल और केतु

दूसरे भाव में मंगल और केतु का प्रभाव व्यक्ति को उग्र भाषा शैली प्रदान करने वाला होता है. ऎसे में वाणी में संयम रखना चाहिए. परिवार से अलगाव की स्थिति रह सकती है. बचपन में परेशानी अधिक जेलनी पड़ सकती है. स्वास्थ्य समस्याएं भी अधिक परेशानी देने वाली हो सकती हैं. इस दौरान आपको सामाजिक स्तर पर सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि विवाद में फंसने की स्थिति अधिक रहती है. धन का निवेश सोच समझ कर ही करना उचित होता है. अनुभवी व्यक्ति की सलाह लेकर ही आगे बढ़ना उचित होता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में मंगल और केतु

तीसरे भाव में मंगल और केतु का असर काफी अच्छे असर दिखा सकता है. इसके प्रभाव  को साहसी बनाता है. कार्यक्षेत्र में सहयोग की कमी रहने पर भी व्यक्ति अपने बल पर आगे बढ़ने में सक्षम होता है. खर्चे भी अधिक होता है लेकिन इसके साथ ही बचत के लिए कई तरह की योजनाओं का लाभ मिलता है. भाई-बहनों के मामले में सुख की कमी रह सकती है या विवाद हो सकता है. इस दौरान छोटी दूरी की यात्राएं लाभकारी हो सकती हैं. नौकरी व्यवसाय में सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त होता है. सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा की प्राप्ति का योग बनता है. 

कुंडली के चौथे भाव में मंगल और केतु

चतुर्थ भाव में मंगल और केतु का होना अप्रत्याशित चिंताओं को दे सकता है. अपने परिवार से दूर जाकर निवास करना पड़ सकता है. सेहत के मामले में भी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है.  इस योग के प्रभाव से हृदय के रोग अधिक परेशानी दे सकते हैं. माता के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता अधिक रहती है. जमीन से संबंधित विवाह अधिक झेलने को मिल सकते हैं. कोर्ट केस या कानूनी मामले परेशानी का सबब बनते हैं. 

कुंडली के पंचम भाव में मंगल और केतु 

पंचम भाव में मंगल और केतु का होना शिक्षा को कमजोर करता है. शिक्षा के क्षेत्र में मिश्रित परिणाम देखने को मिल सकते हैं. खेलकूद से संबंधित गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं. उच्च शिक्षा में कुछ बाधा हो सकती है. संतान पक्ष से भी कुछ चिंताएं हो सकती हैं. प्रेम जीवन में संतुलन लाने के लिए आपको प्रयास करने पड़ सकते हैं. व्यक्ति को दोस्तों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

कुंडली के छठे भाव में मंगल और केतु  

छठे भाव में मंगल और केतु का होना अनुकूल माना जाता है. इसके प्रभाव से सफलताएं प्राप्त होती हैं. शत्रुओं को परास्त करने में सफलता मिलती है. व्यक्ति को करियर क्षेत्र में अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. अपने विरोधियों पर हावी रहते हैं. स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना होता है कोई सर्जरी इत्यादि की संभावना अधिक रह सकती है. पारिवारिक जीवन में मिलेजुले परिणाम की प्राप्ति होती है. कानूनी मसलों के लिए यह योग बेहतर माना गया है. 

कुंडली के सातवें भाव में मंगल और केतु  

सप्तम भाव में मंगल और केतु का योग साझेदारी से जुड़े कामों को कमजोर बनाता है. वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डलता है. अलगाव एवं विवाह में तलाक की स्थिति झेलने पड़ सकती है. जीवनसाथी थोड़े आक्रामक स्वभाव का भी हो सकता है. वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाने के लिए अधिक कोशिशें करने पड़ती हैं. साझेदारी के व्यवसाय में कदम सूझबूझ से उठाने की जरुरत होती है. सामाजिक स्तर पर विवादों से बचने की कोशिश करनी चाहिए. 

कुंडली के आठवें भाव में मंगल और केतु

अष्टम भाव में मंगल और केतु का होना आध्यात्मिक एवं गुढ़ ज्ञान के लिए अनुकूल होता है. तंत्र इत्यादि कामों से जुड़ सकते हैं. लेकिन सेहत के लिए खराबी देने वाली स्थिति होती व्है. अचानक होने वाली दुर्घटनाएं जीवन पर गहरा असर डालती हैं. आपसी संबंधों में अलगाव अधिक रह सकता है. 

कुंडली के नवें भाव में मंगल और केतु

नवम भाव में मंगल और केतु का होना व्यक्ति को अलग विचारधारा प्रदान करने वाला होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अपनी परंपराओं से अलग सोच रख सकता है. धार्मिक कार्यों से दूरी बना सकते हैं. करियर के मामले में लाभ मिलने की संभावना अचानक से ही मिल पाती है. जीवनसाथी के साथ प्रेम और तालमेल कमजोर रह सकता है. पिता के साथ सुख का अभाव हो सकता है. 

कुंडली के दसवें भाव में मंगल और केतु

दशम भाव में मंगल और केतु का प्रभाव व्यक्ति को संघर्ष अधिक देता है लेकिन करियर क्षेत्र में तरक्की भी मिल सकती है. अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ तालमेल में कमी का अनुभव हो सकता है. दूसरे लोग छवि को कमजोर करने में लगे रह सकते हैं. परिवार में लोगों के साथ आपके संबंध मिलेजुले रुप में ही अधिक दिखाई देते हैं. 

कुंडली के ग्यारहवें भाव में मंगल और केतु

दशम भाव में मंगल और केतु का योग अनुकूल माना गया है. अपने जीवन में प्रगति को लेकर संघर्ष करना और सफलता पाने की उम्मीद भी बनी रहती है. व्यक्ति को करियर क्षेत्र में तरक्की को पाने में सक्षम होता है.  प्रेम संबंधों में रोमांचक महसूस करता है. दोस्तों का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है लेकिन अपने परिश्रम द्वारा सफलता मिलती है. 

कुंडली के बारहवें भाव में मंगल और केतु

बारहवें भाव में मंगल और केतु का योग विदेशी मामलों में अच्छे लाभ दिलाता है. धन खर्च अधिक रह सकता है. सेहत में कमी बनी रहती है. अचानक होने वाली दुर्घटनाओं के कारण मानसिक चिंता अधिक होती है. नौकरी या व्यवसाय में काम करने वालों से विवाद होने की संभावना अधिक प्रभाव डालने वाली होती है.

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मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का समय कार्यक्षेत्र एवं महत्वाकांक्षाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाला होता है. मेष लग्न का स्वामी मंगल है और शनि इस लग्न के लिए दशम भाव के साथ एकादश भाव का स्वामी बनता है. अब इन दो स्थानों के स्वामित्व को पर शनि इस लग्न के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला होता है. अब मंगल के साथ शनि का संबंध अनुकूल न होने के कारण यह इसके लिए कम सकारात्मक स्थिति को भी दिखा सकता है. लग्न के अनुसार शनि की स्थिति एवं लग्न स्वामी के साथ शनि का संबंध, शनि की कुंडली में स्थिति इन सभी को ध्यान में रख कर ही अपना असर दिखाती है. कोई भी फल जो शनि से उसकी दशा में प्राप्त होता है उस सब का आधारा कुंडली में मौजूद शनि की स्थिति के कारण ही प्राप्त होता है. 

मेष लग्न के लिए शनि 

शनि का दशम भाव का स्वामी होना – शनि महादशा का प्रभाव विशेष रुप से इस समय कर्म को प्रभावित करने वाला होगा. जीवन में होने वाले बदलाव तथा नई जिम्मेदारियों को देखने का समय होता है. काम किस प्रकार का होगा, काम में किस प्रकार की स्थितियां जीवन में हमारे सामने होंगी ये बातें शनि महादशा के दोरान काफी सक्रिय होती हैं. इस दशा के समय पर व्यक्ति को अपने लिए किए जाने वाले कामों को लेकर अधिक सजग भी होता है. दशम भाव जीवन की गतिविधियों और नियमित क्रियाओं पर अपना प्रभाव डालने वाला होता है. शनि महादशा के समय पर व्यक्ति को इस दशा में कई तरह से इसके फल मिलते हैं जो शनि महादशा के साथ अन्य ग्रहों के साथ संबंधों की स्थिति के अनुसार प्रभाव देने वाले होते हैं. शनि महा दशा के दौरान व्यक्ति अपने करियर, व्यवसय अथवा अपने प्रतिष्ठा को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करता है. इस दशा के समय फल प्राप्ति को लेकर समय लगता है लेकिन प्राप्ति भी कर्म अनुसार होती है. 

दशम भाव को केन्द्र भाव कहा जाता है, यह एक शुभ भाव होता है. इस भाव का स्वामी होकर शनि अपने शुभ फल देने वाला होता है. शनि महादशा के समय पर केन्द्र भाव से जुड़े फल मिलते हैं. इन में लोगों के साथ संपर्क, सामाजिक स्थिति, कार्यक्षेत्र में मिलने वाले शुभ अशुभ प्रभाव. शनि ग्रह दसवें घर का स्वामी है जो करियर और नौकरी पर अधिकार करके विशेष बन जाता है.  पराशर होरा शास्त्र, सर्वार्थ चिंतामणि और सारावली आदि जैसे अधिकांश प्राचीन शास्त्रों का मत है कि मेष लग्न के लिए शनि ग्रह एक अशुभ ग्रह है लेकिन केन्द्र स्वामी का स्वामी होकर संघर्ष के तैयार करता है. इस महादशा के समय करियर और नौकरी से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ये समय आसान नहीं होता है. जीवन में लगातार संघर्ष बने रहते हैं. कई बार यह नुकसान को भी दिखाती है तो कई बार इसमें लाभ भी हमें मिलता है.   

एकादश भाव का स्वामी शनि – इस लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव का स्वामी बनता है. इस स्थान का स्वामित्व पाकर यह लाभ को दिखाता है लेकिन साथ ही इच्छाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर भी शनि महादशा में देखने को मिलते हैं. शनि महादशा के समय सामाजिक स्थिति एवं अपने वरिष्ठ लोगों से मिलने वाले लाभ की प्राप्ति किस रुप में होगी वह इसी दशा के समय में देखने को मिलती है. 

मेष लग्न के लिए उच्च शनि महादशा – शनि महादशा का असर शनि के कुंडली में स्थिति के अनुसार भी मिलता है. यदि कुंडली में शनि उच्च स्थिति का होगा तो उस दशा में वह व्यक्ति को कुछ अधिक अवसरों को दिलाने में सहायक बनता है. व्यक्ति की कार्यक्सुहलता में परिश्रम का आगमन होता है. अपनी कोशिशों के लिए वह कुछ सम्मानित भी होता है. सामाजिक रुप से उसके द्वारा किए जाने वाले कामों को प्रतिष्ठा एवं नाम भी प्राप्त होता है. अब यहां शनि के प्रभाव से व्यक्ति सामाजिक रुप से अपनी पहचान को पाने में काफी सक्षम होता है. अब इस उच्च स्थिति का असर मेष लग्न के सातवें भाव में बनेगा इस घर में इस के कारण जीवन साथी और साझेदारी पर भी ये महादशा का असर भी पड़ने वाला है. 

मेष लग्न में शनि महादशा में अन्य ग्रहों की दशा प्रभाव 

शनि की महादशा में शनि की अंतर्दशा

शनि की महादशा में शनि की ही अन्तर्दशा तीन वर्ष की होती है. दोनों ही स्थानों में शनि की उपस्थिति आपको बहुत ही मिश्रित परिणाम देने वाली होती है. इस अवधि में करियर और नौकरी से जुड़े मामलों में भी लाभ मिलता है.  इस समय पर व्यक्ति इच्छाओं को लेकर काफी उत्साहित होता है. इस समय पर परिश्रम की अधिकता बढ़ जाती है.

शनि की महादशा में बुध की अंतर्दशा

शनि की महादशा में बुध की अंतर्दशा दो साल, आठ महीने और नौ दिनों तक रहती है. इस अवधि में आपको करियर और पैसों के मामले में बदलाव देखने को मिलते हैं. बुध की अन्तर्दशा में होने के कारण यह शनि के साथ मिलकर मिलेजुले परिणाम देती है. संघर्ष कि अधिकता अभी बनी रहता है.   

शनि की महादशा में केतु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में केतु की अन्तर्दशा एक वर्ष एक माह और नौ दिन की होती है. शनि के साथ केतु की युति होने से जातकों को लाभ मिलता है. इस अवधि में जातक को विदेश जाने का भी मौका मिल सकता है, वहीं आय में वृद्धि होने की भी संभावना है.  आध्यात्मिक रुप से ये समय अधिक प्रभावित कर सकता है.

शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा तीन साल दो महीने तक रहती है. शनि की महादशा में जब शुक्र की अंतर्दशा होती है तो व्यक्ति का जीवन पटरी पर आने लगता है और बिगड़ी हुई चीजें सुधरने लगती हैं.

शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा

शनि की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा ग्यारह महीने बारह दिन की होती है.  शनि और सूर्य एक दूसरे के परम शत्रु माने जाते हैं, इसलिए शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा अशुभ फल ही देती है

शनि की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा

शनि की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा एक वर्ष सात माह की होती है. यह योग अशुभ फल देने वाला माना जाता है. इस अवधि में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जातक को अधिक परेशान करती हैं और वैवाहिक जीवन में भी तनाव रहता है. 

शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

शनि की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा एक वर्ष, एक माह और नौ दिनों की होती है. मंगल को आक्रामक और क्रूर भी माना जाता है. शनि की महादशा होने पर जीवन में कठिनाइयां आती हैं. स्वभाव में आक्रामकता और गुस्सा बढ़ने लगता है.  

शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में राहु की अन्तर्दशा दो वर्ष दस माह छह दिन तक रहती है. इस दौरान वहां  जातक के जीवन में कठिन संघर्ष होते हैं और कड़ी मेहनत के बाद भी जातक को सफलता नहीं मिलती है. मानसिक परेशानी के साथ-साथ आर्थिक पक्ष भी परेशानी देता है.

शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा दो वर्ष, छह महीने और बारह दिनों की होती है. बृहस्पति ग्रह आपको शुभ फल देने वाला है. यह ज्ञान और आध्यात्मिकता से भी दृढ़ता से जुड़ा हुआ है. यह अवधि जातकों के करियर में नई ऊंचाईयां लेकर आती है. फलस्वरूप आपको हर काम में सफलता मिलती है. 

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सप्तम भाव में सूर्य कैसे प्रभाव डालता है

सूर्य की स्थिति सातवें भाव में होने को कई मायनों में विशेष बन जाता है. कुंडली का सातवां भाव कई मायनों में जीवन पर प्रेम एवं सहयोग की स्थिति को दिखाने वाला होता है. ज्योतिष के बारह भाव हैं जिन पर सूर्य अपना असर डालता है लेकिन जब वह सातवें घर पर होता है तो यहां उसकी ऊर्जा एवं शक्ति का जीवन पर एक अलग पहलू दिखाई देता है. सूर्य का यहां होना ऊर्जाओं का सीमित होना भी होता है. यह वह स्थान है जहां सूर्य कालपुरुष कुंडली अनुसार यह स्थान उसके नीच बिंदु का भी होता है और जिसके असर द्वारा  ब्रह्मांड का केंद्र होकर सूर्य इस स्थान पर अपनी शक्ति को कई तरह से दिखाता है.  

सप्तम भाव को संबंध और विवाह और साझेदारी से होता है. इसे साझा संबंधों का भाव कहा जाता है. यह पहले भाव जिसे लग्न भी कहते हैं उसके ठीक विपरीत है, पहला भाव स्वयं का भाव है, और सप्तम भाव उसके प्रतिस्पर्धी का होता है. अपने समतुल्य या अपने विरोधी को देखने का स्थान भी यही भाव होता है. विपरीत लिंग को आकर्षित करना, साथी पाने की इच्छा, कामुक रिश्ते, सनक, जुनून, स्वामित्व, दूसरों के प्रति समझ का स्तर हम इसी भाव से देखते हैं. अब इस भाव के द्वारा जीवन के अन्य भाव भी प्रभावित होते हैं. सातवें भाव में सूर्य वाले लोगों में जबरदस्त क्षमता होती है, लेकिन उन्हें अपने सपनों को साकार करने के लिए साझेदारों के सहयोग या समर्थन की आवश्यकता होती है. 

सातवें सूर्य पार्टनरशिप पर इसका असर    

सातवां घर हमारे हर प्रकार की पार्टनर्शिप का स्थान भी है. इसका महत्व हमारे हर प्रकार के उन संबंधों से है जो आपसी रिश्तों पर आधारित होता है. जब सूर्य सातवें भाव में बैठा होता है, तो यह शेयरिंग, केयरिंग और बॉन्डिंग की तीव्र आवश्यकता को महसूस करता है जिसमें अधिकार की इच्छा भी होती है. अगर जीवन में योग्य पार्टनर मिल जाता है, तो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में वह बहुत अच्छा कर पाने में सक्षम होता है. दूसरी ओर, सहभागी अगर अनुकूल स्वभाव का नहीं हो , तो यह जीवन के प्रति अपेक्षाकृत अनियंत्रित और निराशावादी स्थिति को देने वाला होता है. रिश्ते में बहुत समय और ऊर्जा को देने वाले होते हैं, अपने पार्टनर से व्यक्ति को बहुत अधिक प्रतिबद्धता और सकारात्मकता की उम्मीद इच्छा रहती है. साझेदारी चाहे काम में हो या निजी जीवन की हो दोनों के मामले में व्यक्ति काफी निर्भरता को देखता है. अपने जीवन में एक अच्छे पार्टनर को पाने के लिए व्यक्ति काफी अधिक संघर्ष करता है. यदि सूर्य कुछ सकारात्मक है तब इसमें कुछ उम्मीद अच्छे से पूरी होती है लेकिन अगर सूर्य खराब हो तब सहभागियों से धोखा या मतभेद ही अधिक देखने को मिलता है. 

सामाजिक स्थिति एवं कार्यक्षेत्र पर सप्तम सूर्य का प्रभाव 

सप्तम भाव में स्थित सूर्य जीवन और करियर में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. जिन लोगों की कुंडली में यह योग होता है उन्हें अपने जीवन में अपने परिश्रम के द्वारा सफलता को पाने में सक्षम होते हैं. व्यक्ति सामाजिक स्थिति पर कई बार खुद को स्थापित करने के लिए अधिक संघर्शः भी करता है.  व्यक्ति में नेतृत्व के गुण होते हैं और वे काम पर और यहां तक कि निजी जीवन में भी अपने सहयोगियों के लिए तत्पर रहता है. दूसरों के लिए मार्ग प्रशस्त करने में वह निपुण होता है. वैदिक ज्योतिष में सातवें घर में सूर्य के प्रभाव के रूप में, दूसरों से गर्मजोशी से मिलते हैं नैतिकता एवं ईमानदारी से अपने रिश्तों को निभाने की इच्छा भी इनमें अधिक होती है. 

वैवाहिक दांपत्य जीवन पर सप्तम सूर्य का प्रभाव   

सप्तम भाव में सूर्य की स्थिति होने से व्यक्ति के प्रेम जीवन में वास्तविक रूप से कोई न कोई कमी देखने को मिल सकती है. सूर्य एक अग्नि युक्त ग्रह है लेकिन प्रेम और एकाधिकार की इच्छा भी इसमें अत्यधिक दिखाई दे सकती है. कई बार यह असंगति निश्चित रूप से प्रबल तर्ह से परेशान कर सकती है. प्रेम में समर्पण की इच्छ इनमें बहुत होती है. लोगों का दिल भी जल्द टूट जाता है. अपने जीवनसाथी को खोजने से पहले उनके लिए कुछ रिश्तों में शामिल होने की संभावना भी हो सकती है. धोखा और बेवफाई से सावधान रहना जरुरी होता है क्योंकि यह जीवन के किसी पड़ाव पर अपना असर डालने वाला होता है.  सूर्य सबसे बलवान ग्रह है और पिता समान माना जाता है ऎसे में सप्तम का सूर्य व्यक्ति को ऎसा दिखा सकता है की उसमें अधिकार एवं अभिमान   अधिक हो सकता है, जो वैवाहिक जीवन में व्यर्थ के अलगाव को जन्म दे सकता है और यह स्थिति लंबे समय के लिए असर डने वाली हो सकती है. सप्तम भाव में सूर्य का होना एक धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति को जीवन साथी के रुप में प्रदान करने में सक्षम होता है.साथी का प्रभाव हावी रह सकता है, इस योग के कारण विवाह में थोड़ी देरी हो सकती है. 

 सूर्य व्यवहार में कुछ हद तक अहंकार और कठोरता भी दे सकता है. सुर्य के साथ कौ पाप ग्रह है तो यह स्थिति वैवाहिक संबंधों में गड़बड़ी पैदा कर सकती है.  शारीरिक अंतरंगता को प्रभावित कर सकती है. पार्टनर से अलगाव के लिए भी जिम्मेदार हो सकती है. स्त्री की कुण्डली में यह स्थिति संतान प्राप्ति में समस्या दे सकती है विवाह के सुख को कमजोर कर सकती है. जीवन साथी के स्वास्थ्य  के बारे में कुछ अधिक चिंता दे सकती है.   

सूर्य, जीवनशक्ति है और जब सातवें घर में होता है तो यहां की कालपुरुष राशि में नीच का हो जाता है. सूर्य अपनी शक्ति खो देता है उस पर दूसरों का नियंत्रण होता है. सूर्य अहंकार और अभिमान है और जब यह सातवें भाव में होता है तो लोग आपकी मेहनत के लिए आपका सम्मान नहीं करते हैं जिसके कारण स्वाभिमान धूमिल होने लगता है. आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सप्तम भाव में  सकारात्मक सूर्य आपको जबरदस्त क्षमता दे सकता है बस आवश्यकता है लगातार एकाग्रत एवं परिश्रम की. 

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कुंडली में ब्रेकअप का होता है यह ज्योतिषिय कारण

जीवन में रिश्तों को लेकर हर व्यक्ति काफी अधिक भावनात्मक होता है. अपने जीवन में वह रिश्तों की स्थिति को अच्छे से निभाने की हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन कई बार असफल होते चले जाते हैं. कई बार जीवन में ऎसे भी क्षण आते हैं जब रिश्तों का बार बार टूटना व्यक्ति को तोड़ देता है. आखिर क्यों रिश्तों में व्यक्ति सफल नही हो पाता है यह बात कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति के अनुसार देखने को मिलती है. जन्म कुंडली में सभी ग्रहों का असर अलग-अलग रुप में हमारी इच्छाओं, चाहतों एवं संबंधों के लिए विशेष जिम्मेदार बनता है. 

यदि कुंडली में ज्योतिषीय कारणों की और देखा जाए तो कई तरह के कारण कुंडली में रिश्तों के टूटने या ब्रेकअप का असर दिखाता है, तो यह कुछ व्यक्तित्व लक्षणों या रिश्ते की स्थिति को दिखाता है. इसके अलावा कुंडली से हम इस बात को समझ सकते हैं जिसके द्वारा रिश्ता बार-बार खत्म होने का कारण बन रहा हो. कुंडली में लग्न ओर सप्तम भाव उन प्रतिमानों को दिखाने  और भविष्य के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए अधिक आत्म-प्रतिबिंब और विकास की आवश्यकता का सुझाव देता है. इसके अलावा, कुंडली में ग्रह के रुप में कुछ अन्य कारक भी दिखाई देते हैं जो चुनौतीपूर्ण स्थिति को दिखाते हैं सातवें भाव में ग्रहों की दृष्टि और असर रिश्ते की कठिनाइयों को दिखाता है. जानिए कुंडली में किन कारणों से हो सकता है टूटने की स्थिति दिखाई देती है.

कुंडली में ब्रेकअप के लिए जिम्मेदार ग्रह और भाव फल

वैदिक ज्योतिष में, कई ग्रह संभावित ब्रेकअप या रिश्ते की चुनौतियों का संकेत दे सकते हैं. इसी के साथ कुंडली के कुछ विशेष भाव इस स्थिति पर अपना गहरा असर डालते हैं. 

शुक्र ग्रह – शुक्र प्रेम, संबंधों और रिश्तों का ग्रह है. कुंडली में शुक्र की स्थिति हर प्रकार के सुख को दिखाने वाली होती है. यदि शुक्र कमजोर है या पीड़ित है, तो यह ब्रेकअप सहित रिश्ते की चुनौतियों का संकेत दे सकता है. शुक्र की पीड़ा रिश्तों के बीच आपसी समझ और स्नेह की कमी का कारण बन सकती है. शुक्र ही जीवन में इच्छाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है. शुक्र जब कुंडली में अच्छा होता है तो रिश्तों में आगे बढ़ने के लिए सहायक बनता है. शुक्र का जन्म कुंडली में स्वराशि में होना, उच्च राशि में होना या फिर मूल त्रिकोण में होना रिश्तों की सफलता को देने में सहायक बनता है. 

मंगल ग्रह – मंगल भी रिश्तों के लिए बेहद आवश्यक ग्रह माना जाता है. मंगल कामुकता एवं यौन संबंधों के लिए विशेष होता है. मंगल ऊर्जा, जुनून और आक्रामकता का ग्रह है. जब मंगल पीड़ित होता है, तो यह गलतफहमियों और संघर्षों का कारण बन सकता है जो ब्रेकअप का कारण बनता है. खराब स्थिति में मंगल आवेगी निर्णय और क्रोध पर नियंत्रण की कमी का कारण बन सकता है, जिससे संबंधों में समस्याएं पैदा हो सकती हैं. मंगल की स्थिति अगर अच्छी हो तब व्यक्ति अपने रिश्ते में रोमांच बना रहता है. मंगल की शक्ति कम होने के कारण व्यक्ति अपने रिश्ते में नीरसता के कारण अधिक परेशानी झेल सकता है. 

चंद्रमा ग्रह – कुंडली में चंद्रमा की स्थिति भावनाओं के लिए विशेष मानी जाती है. यदि कुंडली में चंद्रमा की स्थिति अनुकूल न हो तो व्यक्ति अपनी भावनाओं को लेकर काफी भ्रम में रहता है. व्यक्ति को इस के कारण अपनों के लगव की कमी आत्मविश्वास की कमी परेशानी देती है. व्यक्ति छोटी छोटी बातों को लेकर काफी घबराता भी है यह बातें रिश्तों को पूर्णता नहीं देने ती हैं. इसी आधार पर जब कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है तो व्यक्ति रिश्ते में प्रबल रुप से सामने आता है. वहीं वह अपने रिश्ते को अनुकूल बनाने के लिए बहुत कोशिश करती है. 

राहु और केतु 

रिश्तों के अलगाव या बदलाव में इन दो ग्रहों का असर बेहद महत्वपूर्ण होता है. राहु जुनून, व्यसन और भ्रम से जुड़ा हुआ है. राहु के मजबूत होने पर यह रिश्तों की प्रबल इच्छा का संकेत देता है. यह अपेक्षाएँ और भावनात्मक अस्थिरता भी पैदा कर सकता है, जिससे रिश्ता टूट सकता है. केतु वैराग्य, आध्यात्मिक विकास और अंत के साथ जुड़ा हुआ है. जब केतु मजबूत होता है, तो यह भावनात्मक रूप से अलग होने की प्रवृत्ति का संकेत दे सकता है, जिससे रिश्ते में मुश्किलें आ सकती हैं.

पंचम भाव – कुंडली का यह भाव प्रेम के लिए विशेष रुप से देखा जाता है. पंचम भाव हमारे प्रेम संबंधों की जकारी देता है. इसका असर ही व्यक्ति के जीवन में होने वाले रिश्तों को दर्शाता है. इसके कारण ही जीवन में आने वाले रिश्ते और उनकी भूमिका समझी जाती है. अगर पंचम भाव या पंचम भाव का स्वामी खराब स्थिति में य अकमजोर है तब रिश्तों के टूटने की स्थिति अधिक असर डालने वाली होती है. इस भाव का और इसके स्वामी का अच्छा होना एक लम्बे रिश्ते की भूमिका में सहायक बनता है. 

सप्तम भाव – सप्तम भाव को पार्टनरशीप और विवाह के भाव के रूप में जाना जाता है. किसी भी प्रकार की साझेदारी इसी भाव से देखने को मिलती है. हमारे रिश्ते किसी के साथ कैसे बनेंगे यह इसी भाव की स्थिति से देखने को मिलते हैं. सप्तम भाव या इसके भाव का स्वामी अगर खराब स्थिति या पीड़ित अवस्था में होगा तो रिश्ते में कठिनाइयों का संकेत करने वाला होगा. जिससे ब्रेकअप या अलगाव हो सकता है. उदाहरण के लिए, यदि सप्तम भाव में शनि, राहु या केतु जैसे पाप ग्रह हैं, तो यह रिश्तों में चुनौतियों और संघर्ष का संकेत दे सकता है.

आठवां भाव – रिश्ते में अलगाव ओर टूटन की स्थिति के लिए ये भाव काफी गअधिक असर डालने वाला होता है. यह भाव अंतरंगता, साझा संबंधों की स्थिति, परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है. पीड़ित आठवां घर अंतरंग संबंधों में चुनौतियों का संकेत देता है. इसके अलावा, यह ब्रेकअप या अलगाव का कारण बन सकता है. उदाहरण के लिए, आठवें भाव में मंगल या शनि जैसे अशुभ ग्रह रिश्तों में सद्भाव और विश्वास की कमी का संकेत देने वाले होते हैं. 

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