कुम्भ लग्न के लिए सभी ग्रहों का प्रभाव

कुंभ लग्न जो अपने आप में एक व्यापक और विस्तृत रुप से सामने आता है. कुंभ लग्न शनि के प्रभाव का लग्न है यह लग्न जीवन के लाभ क्षेत्र पर विशेष असर दिखाने वाली होती है. मस्तमौला और गहरी विचारधारा सोच को लेकर इसकी अलग ही दिशा होती है. शनि के लिए कुम्भ मूलत्रिकोण राशि भी है जहां शनि भी आकर अपने लग रुप में निखार पाता है. किसी भी लग्न के लिए तीसरे, छठे, आठवें और द्वादश भाव के स्वामी अशुभ होते हैं. केन्द्र स्थान और त्रिकोण शुभ होते हैं. इसी आधार पर सभी ग्रहों की स्थिति को इसके द्वारा जान पाना विशेष होता है.यदि आपका जन्म कुम्भ लग्न में हुआ है तो आइए देखें कि ग्रह कुंडली को किस प्रकार प्रभावित करते हैं.

कुम्भ लग्न में सूर्य

कुम्भ लग्न की कुण्डली में सूर्य सातवें भाव का स्वामी होता है. इसे केंद्र भाव में रखने से शुभ फल मिलते हैं. कुम्भ लग्न में सूर्य व्यक्ति को सुंदर और आकर्षक बनाता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जीवनसाथी सहयोगी और सुंदर रह सकता है, लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए कभी-कभार विवाद हो सकता है. इस स्थिति में सूर्य व्यक्ति को व्यवसाय में सफल बनाने में सहायक बनता है, और उसे एक स्थिर आर्थिक स्थिति देने में सहायक होता है. व्यक्ति को मित्रों की मदद करने का सौभाग्य मिल सकेगा और भागीदारों से सक्रिय सहयोग मिल सकता है. 

कुम्भ लग्न में चन्द्रमा

कुम्भ लग्न की कुण्डली में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी होने के कारण अशुभ हो जाता है. प्रथम भाव में स्थित चंद्रमा के कारण व्यक्ति सर्दी, खांसी और पाचन संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है. यह एक अस्थिर और अशांत स्वभाव भी देता है. परिवार में विवाद और लड़ाई-झगड़ा हो सकता है. चंद्रमा की दृष्टि सूर्य की स्वराशि सिंह पर है जो सप्तम भाव में है. इस के कारण जीवनसाथी सुंदर और आत्म निर्भर हो सकता है.

कुम्भ लग्न में मंगल

कुम्भ लग्न की कुण्डली में मंगल तीसरे और सप्तम भाव का स्वामी होता है. कुम्भ लग्न में मंगल अशुभ फल देता है. इस लग्न में मंगल के कारण व्यक्ति अत्यंत बलवान और कठोर होता है. ये लोग बहुत बहादुर होते हैं और अपने सामने आने वाली किसी भी कठिनाई का मुकाबला करने और उसे दूर करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे. पिता का पूरा सहयोग इन्हें प्राप्त होता है. समाज में उनका सम्मान होता है. गुस्सैल स्वभाव के कारण ये झगड़ों में पड़ सकते हैं.  

कुम्भ लग्न में बुध 

कुम्भ लग्न की कुण्डली में बुध पंचम भाव और अष्टम भाव का स्वामी होता है. बुध आठवें भाव का स्वामी होने के कारण इसका अशुभ प्रभाव होता है. लग्न में इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और ज्ञानी होता है. शिक्षा के क्षेत्र में उसे सफलता प्राप्त होगी. व्यक्ति दूसरों को शब्दों से प्रभावित करने की शक्ति देता है. व्यक्ति को जल के प्रति स्वाभाविक प्रेम होगा और वह नाव की सवारी और पानी की यात्रा करना पसंद कर सकता है. अष्टमेश बुध को रोग कारक कहा गया है, बुध की दशा अवधि में व्यक्ति को मानसिक समस्याएं हो सकती हैं. बुध ज्ञान एवं दर्शन को जानने की जिज्ञासा भी प्रदान करने वाला होता है.

कुम्भ लग्न में बृहस्पति

कुम्भ लग्न की कुण्डली में बृहस्पति दूसरे और एकादश भाव का स्वामी बनता है. इस लग्न में बृहस्पति अनुकूल नहीं माना गया है. इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और शिक्षित होता है. गुरु का प्रभाव अगर लग्न में हो इसके लग्न में होने के कारण व्यक्ति आत्मविश्वासी और आत्म निर्भर हो सकता है. मन: स्थिति अस्थिर और अस्थिर होगी. इन्हें संगीत और गायन में रुचि होती है. आमतौर पर अच्छे वक्ता हो सकते हैं. धन बचाने की कला में माहिर होते हैं और इस वजह से इन्हें कभी भी किसी आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

शुक्र कुम्भ लग्न में लग्न में

कुम्भ लग्न की कुण्डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी है. शुक्र इस लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर महत्वपूर्ण शुभ प्रभाव देता है. इस लग्न में शुक्र की उपस्थिति के कारण व्यक्ति सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व का होता है. व्यक्ति चतुर और गुणी हो सकता है और शिक्षा और अध्ययन में इनकी गहरी रुचि हो सकती है. पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में इनकी रुचि रह सकती है. मित्रों से स्नेह और सहयोग मिल सकता है. भूमि, वाहन और मकान की प्राप्ति हो सकती है. शुक्र सातवें भाव का स्वामी होने के कारण यह सिंह राशि पर दृष्टि डालता है जिससे वैवाहिक जीवन में अधिक सुख नहीं आ पाता है. जीवन साथी से अनबन हो सकती है. भौतिक सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. 

कुम्भ लग्न में शनि

कुम्भ लग्न में शनि लग्न और बारहवें भाव का स्वामी बनता है. शनि का प्रभाव व्यक्ति को धीर गंभीर बनाता है. शनि अपनी राशि में जातक को निरोगी काया प्रदान करता है. यह व्यक्ति को आत्मविश्वासी बनाता है. वह अपने स्वभाव और आत्म निर्भरता के कारण समाज में सम्मान प्राप्त करने में सक्षम होगा. शनि का असर व्यक्ति को बहुत से मामलों में आगे बढ़ने की हिम्मत देता है. कार्यों को करने में मेहनती होता है. अपने एवं आस पास के लोगों के साथ उसका सहयोग काफी रह सकता है. 

राहु – केतु कुम्भ लग्न  

राहु केतु का प्रभाव कुंभ लग्न के जिस भाव स्थान में होगा उसका असर व्यक्ति को देखने को मिल सकता है. लग्न में राहु की उपस्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करती है. राहु की महादशा में पेट से संबंधित समस्या होने की संभावना बनती है. व्यापार में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इन लोगों के लिए व्यवसाय से बेहतर नौकरी है. राहु की दृष्टि सातवें भाव में स्थित सूर्य की राशि सिंह पर है. शत्रु ग्रह की राशि पर राहु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों में कमी लाती है. साझेदारी से कोई लाभ मिलने की संभावना कम ही देखने को मिल सकती है. 

गुप्त कलाओं और अध्ययन में इनकी रुचि रह सकती है. आत्मविश्वास की कमी के कारण इन्हें अपना निर्णय लेने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. केतु कुम्भ लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर अस्थिरता देता है. इस युति वाले लोगों की विशेष रुचि विपरीत लिंग के लोगों में होती है. कई प्रेम संबंध हो सकते हैं और यह विलासिता का आनंद लेना पसंद करते हैं. माता-पिता से अनबन हो सकती है. सप्तम भाव पर केतु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों को कम करती है. व्यक्ति का अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध परिवार में कलह उत्पन्न करता है. केतु या किसी दृष्टि के साथ शुभ ग्रहों की युति हो तो केतु का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है.

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आठवें भाव में शनि कैसे देता है अपना प्रभाव

कुंडली में यदि आठवें भाव को एक चुनौतिपूर्ण स्थान माना गया है वहीं शनि की आठवें भाव उपस्थिति को बेहद अनुकूल माना गया है. वैदिक ज्योतिष में एक विशेष स्थान माना जाता है. आठवां घर परंपरागत रूप से परिवर्तन, मृत्यु, छिपे हुए रहस्य और अचानक घटनाओं से जुड़ा हुआ है. दूसरी ओर, शनि अनुशासन, कड़ी मेहनत और प्रतिबंध का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, आठवें भाव में शनि का होना कठिनाई, बाधाओं और चुनौतियों से निपटने का अच्छा संकेत देता है. 

अष्टम भाव में शनि के कुछ संभावित प्रभाव इस प्रकार हैं:

परिवर्तन और बदलाव का ग्रह

आठवें घर में शनि महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए जाना जाता है. शनि का यहां होना परिवर्तन की अवधि को कुछ लम्बा भी बना सकता है. जीवन में कई तरह के बदलाव मनोकूल रुप से नही हो पाते हैं. व्यक्ति बड़ी उथल-पुथल या चुनौतियों का अनुभव कर सकता है जो उन्हें अपने डर और सीमाओं का सामना करने के लिए मजबूर करता है. शनि यहां बैठ कर धैर्य का गुण भी देता है जो चीजों को शांत रहकर झेलने की शक्ति को देने में सहायक बनता है. व्यक्ति के लिए जीवन काफी संघर्षशील रहने वाला होगा. 

विरासत एवं संसाधनों पर प्रभाव

आठवां भाव संसाधनों, विरासत और अन्य लोगों के धन से भी जुड़ा हुआ है. इस घर में शनि इन क्षेत्रों के साथ कठिनाइयों का संकेत दे सकता है, जैसे विरासत में देरी या बाधाओं या संयुक्त संपत्ति पर विवाद देने वाला हो सकता है. यहां जितना संभव हो तो किसी के साथ साझेदारी से काम करने से बचा जाए अन्यथा उनके कारण परेशानी बनी रह सकती है. यदि अपने आस पास के माहौल के कारण परेशानी है तो ऎसे में अस्थिरता का असर जीवन पर लगा रहता है. पैतृक विवाद कर्म के पुराने अनुबंधों के कारण ही मिलता है. 

अज्ञात का भय

आठवें भाव में स्थित शनि अज्ञात का भय और चिंता की प्रवृत्ति का संकेत दे सकता है. यहां विचारधारा इतनी सघन होती है कि स्वयं के अस्तित्व को लेकर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है. व्यक्ति जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में अधिक सतर्क हो सकता है, और जोखिम लेने या परिवर्तन को गले लगाने के लिए संघर्ष कर सकता है. आसानी से बदलाव को लेकर आगे नहीं बढ़ पाता है. यहां चीजें मन को बहुत ज्यादा परेशानी देने वाली हो जाती है. 

आंतरिक विकास और आत्म-जागरूकता का गुण

शनि के इस भाव में होने से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद, आठवें भाव में शनि आंतरिक विकास और आत्म-जागरूकता के लिए भी अच्छा संकेत देता है. व्यक्ति अधिक आत्मविश्लेषी और चिंतनशील बन सकता है, और अपने स्वयं के भय और सीमाओं की गहरी समझ विकसित कर सकता है. आध्यात्मिक रुप से अथवा दर्शन के प्रभाव से व्यक्ति बहुत अधिक प्रभावित दिखाई दे सकता है. 

आठवें भाव के शनि करियर ओर घरेलू पर डालता है विशेष प्रभाव 

घरेलू जीवन में जटिलता रहेगी, परेशानी भरा जीवन रहेगा. व्यक्ति आर्थिक समस्याओं को देख सकता है. युवावस्था में कई तरह के प्रयास बेहतर उपलब्धियों को देने में सहायक होगा. सहायता मिल पाना मुश्किल होगा लेकिन माता-पिता और परिवार के सदस्य सहायक बन सकते हैं बाहरी संपर्क से अधिक अपने सहायक होंगे. व्यक्ति अपने भाई-बहनों के साथ गहरा बंधन पाता है.  भाई-बहन उनके प्रयासों में उनकी सहायता करेंगे.  इस घर में शनि शेयर बाजार और व्यक्ति को लॉटरी से भी धन प्रदान करने वाला होता है. इस भाव में शनि साझेदारी व्यवसाय में अनुकूल फल प्रदान करता है लेकिन स्वरोजगार से लाभ देता है. इस भाव में स्थित शनि 35 वर्ष की आयु तक संघर्ष जीवन देता है. उसके बाद रोजगार में राजस्व और मुनाफा कमाना शुरू करता है.

आय में सुधार होता है. उद्योग या शेयर बाजार से विरासत लाभ मिलता आय में वृद्धि के लिए व्यक्ति गुप्त विद्या के द्वारा भी धन पाता है.इस घर में शनि किसी भी प्रकार की अवैध अनैतिक गतिविधि और धोखाधड़ी का असर दिखाती है. व्यक्ति तंत्र-मंत्र के अभ्यास में शामिल हो सकता है. अष्टम भाव में स्थित शनि जातक को तपस्वी, घुमक्कड़ बना सकता है. आठवें भाव में शनि बहुत उत्साह, आपसी समझ और बहुत गहरी पैठ देता है. जातक हार्डवेयर इंजीनियरिंग या नेचुरल इंजीनियरिंग में नौकरी या कर्तव्य प्राप्त करता है. यदि अष्टमेश और दशमेश शक्तिशाली और अच्छी स्थिति में हों तो जातक को अपने करियर से बहुत ध्यान, उपलब्धि और काफी समृद्धि प्राप्त होती है.

आठवें भाव में शनि का होना प्रेम का अभाव 

व्यक्ति का प्रेम जीवन शुष्क रहता है. वह हमेशा आवेशपूर्ण कार्यों के पीछे रह सकता है. व्यक्ति के जीवन में कोई महत्वपूर्ण भावनात्मक संबंध नहीं होगा और बिना किसी भावनात्मक जुड़ाव के अपनी किशोरावस्था और युवावस्था को जीते हुए आने वाले समय में अवसाद का सामना करना पड़ सकता है. शनि बहुत ही दृढ़ या समर्पित जीवनसाथी प्रदान नहीं करता है. कुछ मामलों में, धोखाधड़ी की साजिशों या किसी भी तरह की कभी-कभी शर्मिंदगी के साथ रिश्तों को जीना पड़ सकता है. साथी के साथ गहन प्रेम की प्राप्ति नही हो पाती है.  व्यक्ति को साथी से सहयोग की आवश्यकता होगी लेकिन वह कभी नहीं मिलेगा. वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि का भाव सदैव रहता है

आठवें भाव में शनि देता है दीर्घायु

आठवें भाव में शनि को विशेष रुप से आयु के लिए बहुत ही शुभ माना गया है. शनि का यहां होना अपवाद रुप से सकारात्मक माना गया है. शनि की स्थिति यहां जीवन को लम्बे समय तक ले जाने वाली तथा शोध से जोड़ने के लिए देती है. आठवां भाव आयु का भाव होता है ओर शनि की उपस्थिति व्यक्ति को लम्बे जीवन का आशीर्वाद देने वाली मानी गई है.

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कारकांश और उसका कुण्डली में भाव महत्व

कारकांश आत्मकारक और नवमांश का आपसी संबंध दर्शाता है. इस कुंडली की मजबूती और नवांश की शक्ति के आपसी संबंध की भी व्याख्या करने वाला होता है. कारकांश D9 में वह राशि है जहां D1 का आत्मकारक ग्रह स्थित है, जिस प्रकार नवांश हमें लग्न कुंडली की बारीकियां बताता है, उसी प्रकार कारकांश हमें आत्मकारक और व्यक्ति के बारे में अधिक बताता है. 

जब नवमांश राशि जिसमें डी 1 अर्थात लग्न स्वामी को रखा जाता है और कारकांश में केवल शुभ ग्रह होते हैं और केवल शुभ ग्रहों से देखा जाता है, तो व्यक्ति राजा के समान होगा. यदि कारकांश से केंद्र और त्रिकोण केवल शुभ हैं और कोई अशुभ दृष्टि नहीं है तो व्यक्ति के पास न केवल धन होगा बल्कि विद्या भी होगी. यदि इन भावों में शुभ और अशुभ दोनों भाव हों तो मिश्रित परिणाम होंगे.

कारकांश से भाव का फल कैसे जानें

नवांश को लग्न के रूप में कारकांश के साथ एक चार्ट के रूप में अध्ययन किया जा सकता है. इनमें से प्रत्येक घर में मौजूद ग्रहों का व्यक्ति पर बहुत महत्व होता है. इसके प्रत्येक भाव में कारकांश के प्रभाव में बदलाव होगा जो कुंडली के द्वारा समझा जा सकता है. कारकांश से प्रयेक भाव की स्थिति को उसके स्वामी राशि एवं उस पर पड़ने वाले प्रभावों को जानकर इसे समझा जा सकता है. 

पहला भाव स्थान 

जब पहले भाव में कारकांश होगा तो उसकी अन्य ग्रहों के साथ युति एवं दृष्टि का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होगा. कारकांश में सूर्य होने पर व्यक्ति को सरकार से काम मिलता है. चंद्रमा कामुकता के साथ-साथ विद्वता भी देता है. मंगल व्यक्ति को शस्त्रों के प्रति रुचि पैदा करता है. जब इस मंगल पर अशुभ दृष्टि हो तो व्यक्ति के पास रखे शास्त्र नियम विरुद्ध हो सकते हैं. बुध कला, शिल्प और व्यवसाय में शिक्षा, बुद्धि और प्रतिभा प्रदान करता है. बृहस्पति विद्या, अध्यात्म और अच्छे कर्मों में रुचि देता है. शुक्र दीर्घायु, कामुकता और सरकारी मामलों के लिए जिम्मेदारी देता है. शनि व्यक्ति को पारिवारिक व्यवसाय का पालन कराता है जबकि राहु व्यक्ति को डॉक्टर, मशीनों का निर्माता और चोर बनाता है. केतु जातक को चोर और बड़े वाहनों का सौदागर बनाता है.

द्वितीय भाव स्थान

कारकांश से दूसरा भाव धन को दर्शाता है. इसके अलावा उसे रिश्तों इसकी प्रवृत्ति के बारे में सूचना देता है. यदि कारकांश से दूसरा घर शुक्र या मंगल के स्वामित्व वाले घर में है तो व्यक्ति के किसी अन्य व्यक्ति के जीवनसाथी के साथ संबंध होंगे. दूसरे भाव पर मंगल और शुक्र की दृष्टि इसे जीवन भर चलने वाली प्रवृत्ति बनाती है. इस घर में बृहस्पति प्रवृत्ति को बढ़ाता है जबकि केतु इसे प्रतिबंधित करता है. इस स्थिति में राहु धन का नाश करता है.कारकांश में राहु और सूर्य की युति इंगित करती है कि व्यक्ति को सांपों का भय होगा. अशुभ की दृष्टि सर्प से हानि का संकेत देती है. शुभ षडवर्ग में यह युति व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति चिकित्सक बनाती है. मंगल की दृष्टि हो तो आग लगाने वाला होता है. करकांश में गुलिका पर पूर्णिमा की दृष्टि चोर या चोरी के कारण परेशानी का असर दिखाई देता है.

तृतीय भाव स्थान 

कारकांश से तीसरा भाव व्यक्ति के साहस के बारे में बताता है. इस घर में एक अशुभ व्यक्ति व्यक्ति को अधिक साहसी बनाता है जबकि एक शुभ ग्रह इसके विपरीत करता है. यहां का मंगल साहस को बहुत बढ़ाता है. यहां पर बैठा राहु व्यक्ति में चालाकी और चपलता देने वाला होता है. व्यक्ति अपने को लेकर काफी अग्रसर होता है. भौतिक चीजों की प्राप्ति में सक्षम होता है. बृहस्पति यहां हो तो अभिमान से भर देने वाला होता है. 

चतुर्थ भाव स्थान 

कारकांश से चौथा भाव व्यक्ति के घर के स्थानीवं उसकी संपत्ति बारे में अधिक बताता है. जब इस घर में शुभ हों जैसे शुक्र और चंद्रमा की स्थिति या दृष्टि हो तो व्यक्ति का घर काफी सुंदर हो सकता है. उसमें सुविधाओं की अधिकता हो सकती है. इसके अलग अगर यहां शनि और राहु का प्रभाव होगा तो घर में पुरानी और नवीन चीजों का समावेश देखने को मिल सकता है. केतु और मंगल ईंट के घर का संकेत देते हैं जबकि बृहस्पति लकड़ी के घर का संकेत देते हैं. सूर्य का प्रभाव भवन की शुभता एवं चमक को दर्शाने वाला होता है. इस पर शुभ अशुभ ग्रह का प्रभाव अलग अलग रुप में देखने को मिल सकता है.

पंचम भाव स्थान 

पंचम भाव स्थान व्यक्ति की रुचि के साथ साथ उसकी बौद्धिकता के लिए भी विशेष हो जाता है. इस घर में पाप ग्रहों का प्रभाव क्रोध एवं जल्दबाजी दे सकता है ओर शुभ ग्रह क अप्रभाव चिचारशीलता के साथ आगे बढ़ने की क्षमता देने वाला होता है.इस भाव में मौजूद ग्रहों का असर व्यक्ति के जीवन के आनंद एवं उसके आत्मिक रुप पर अधिक असर डालता है जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन के उचित पक्ष को जान पाने में सफल भी हो सकता है

छठा भाव स्थान 

छठा कारकांश से देखने पर व्यक्ति की इच्छा शक्ति एवं उसके कार्यों का परिणाम दर्शाता है. यह कुछ मामलों में तीसरे भाव से समानताएं दिखाता है. प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि जब यहां शुभ ग्रह होगा तो व्यक्ति आत्मिक रुप से कमजोर एवं पराधीन भी हो सकता है. वह प्रयास करने की कोशिश तो करेगा लेकिन उसे लेकर बहुत अधिक ज्वलंत नहीं बनता है. इसके विपरित  कारकांश से छठे भाव में पाप ग्रह व्यक्ति को बेहतर असर दिलाने वाले होते हैं यहां व्यक्ति परिश्रम द्वारा भाग्य को निर्मित कर पाने में सफल होता है. 

सातवां भाव स्थान 

कारकांश से सप्तम भाव का असर व्यक्ति के जीवन में उसके हमसफर और उसके साथ जुड़े साझेदारों के लिए उत्तरदायी होता है. यहां व्यक्ति अपने जीवन के उस पक्ष को प्राप्त करता है जिसके समक्ष उसे समान बल मिलता है. वह एक समान क्षमता को पाता है. शुभ ग्रहों का होना इस बल को सकारात्मक दिशा देता है और नकारात्मक ग्रहों का होना इसे अलगाव और कठोरता के गुण से भर देने वाला होता है. 

आठवां भाव स्थान 

कारकांश से आठवां भाव जीवन के उन पक्षों को दर्शाता जो व्यक्ति दूसरों के समक्ष आसानी से नहीं लाना चाहता है. यह व्यक्ति का आंतरिक स्थान होता है. जिसमें शुभ ग्रहों की स्थिति कमजोर बना देती है. अशुभ ग्रह मजबूती देते हुए बचाव देने वाले होते हैं लेकिन अपने फलों को अवश्य प्रदान करते हैं. 

नौवां भाव स्थान 

नवम भाव कारकांश से वह स्थान होता है जो कर्म से अधिक हमारे भाग्य का परिणाम देने वाला होता है. यह धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बारे में बताता है. जब नवम भाव पर शुभ ग्रह या शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्थिति काफी सकारात्मक रहती है व्यक्ति परंपराओं के साथ बेहतर रुप से जुड़ता है. यदि यहां अशुभ प्रभाव होगा तो रुढ़ता बढ़ सकती है. विचारों में क्रांतिकारी बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं. अपने अनुसार परंपराएं स्थान पाती हैं.

दसवां भाव स्थान 

कारकांश से दशम भाव स्थान व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण भाग होता है. यह व्यक्ति के जीवन का निर्धारण करने में सक्षम होता है. यही भविष्य की दिशा को स्थापित करता है. शुभ ग्रह व्यक्ति को बुद्धिमान और समृद्ध बनाता है. यहां अशुभ होने से व्यापार में हानि होती है साथ ही पिता के सुख से भी वंचित होना पड़ता है.  

एकादश भाव स्थान 

यह कारकांश से जीवन के लाभ को दर्शाता है. एकादश भाव में शुभ ग्रह हों या उन पर दृष्टि हो तो बड़े वरिष्ठ लोगों से लाभ और सुख मिलना संभव होता है व्यक्ति अपनी इच्छाओं के प्रति बंधन को नहीं पाता है. पाप ग्रहों का होना व्यक्ति को बंधन में डालता है. सामाजिक अस्थिरता अधिक दिखाई दे सकती है. 

द्वादश भाव स्थान 

कारकांश से बारहवां भाव स्थान व्यक्ति के लिए बाहरी संपर्क से जुड़ने का साधन बनता है. यह नवीन संस्कृतियों का रहस्य दिखलाता है. जीवन की विचारधारा को भौतिकता एवं आध्यात्मिकता के साथ जोड़ने और समझने की क्षमता देता है. जीवन का व्यय होगा या उसकी प्राप्ति इसी से देखी जाती है. 

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मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव

मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव

मीन लग्न को एक शुभ, कोमल उदार लग्न के रुप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति होता है जो ज्ञान का सूचक है. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति का व्यवहार एवं गुणों पर मीन राशि के गुण और बृहस्पति के प्रभाव को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. इस लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव विशेष रुप में दिखाई दे सकता है. लग्न के अनुरुप भाव की स्थिति और राशि स्थिति के अनुरुप सभी ग्रह अपना असर दिखाने वाले होते हैं. मीन लग्न का प्रभाव व्यक्ति को चिंतनशील बना सकता है, अपने आस पास की चीजों पर नियंत्रण का प्रभाव दे सकता है. सभी कुछ को पाने की चाह ओर लगाता प्रयास करने का गुण भी देता है. ईश्वर के प्रति भक्ति रखते हैं और सामाजिक रीति-रिवाजों का कट्टरता से पालन करने में भी आगे रह सकता है. व्यावहारिक होकर भी संवेदनशील कुछ अधिक हो सकता है. दूरदर्शी होने के साथ साथ गुणवान होते हैं. आशावादी होते हैं लेकिन इनमें निराशावादी स्वभाव भी होता है. चीजों को लेकर अस्थिरता होने का भाव भी होता है. 

मीन लग्न में जिसे मीन राशि के रुप में जाना जाता है इसमें नक्षत्रों की स्थिति भी इस के असर पर गहरा प्रभाव डालने वाली होती है. लग्न किस नक्षत्र में उस नक्षत्र के गुण धर्म भी व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं.  इसमें हर नक्षत्र अपना अलग गुण देगा, इसके विपरित इस लग्न के में प्रत्येक ग्रह का असर निम्न रुप से दिखाई दे सकता है : – 

 मीन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

मीन लग्न के लिए सूर्य की स्थिति मिलेजुले फलों को प्रदान करने वाली होती है. मीन लग्न के लिए सूर्य छठे भाव का स्वामी होता है. छठे भाव को रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, प्रतिस्पर्धा, स्वास्थ्य परेशानी जैसी चीजों से जोड़ कर देखा जाता है. इस कारण सुर्य इस लग्न के लिए इन सभी चीजों को प्रदान करने वाला ग्रह भी बन जाता है. इसके अलावा शंका, पीड़ा, झूठ जैसी चीजें जीवन को प्रभावित करती हैं. लेकिन सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को अधिकार भी देता है, व्यापारी रवैया प्राप्त होता है,  वकालत का गुण भी वह पाता है. किसी भी अच्छे बुरे व्यसन से निपटने में इसकी कुशलता सूर्य के द्वारा मिल सकती है. सूर्य के इस स्थान के स्वामित्व के प्रभाव से व्यक्ति में चीजों से लड़ने का साहस भी मिलता है. सूर्य दशा काल में सूर्य के प्रबल एवं खराब प्रभाव के कारण उपरोक्त विषयों का असर पड़ता है लेकिन यदि सूर्य मजबूत होता है तो सफलता प्राप्त होती है,. 

मीन लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव

मीन लग्न में चंद्रमा का प्रभाव काफी शुभस्थ माना गया है. मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. पंचम भाव को त्रिकोण स्थान माना गया है इस भाव के प्रभाव के स्वामी होने पर चंद्रमा की शुभता प्राप्त होती है. यह भाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों पर असर डालने वाला होता है. इस भाव का स्वामी होकर चंद्रमा भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी जैसे मसलों के लिए जिम्मेदार होता है. शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल, छल, अंतरात्मा की स्थिति के लिए भी चंद्रमा उत्तरदायी बनता है. चंद्रमा जलीय पदार्थ, संचित धन, झूठे आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम  विवाह आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां वह ऎसी चीजों से जोड़ता है जिसके द्वारा व्यक्ति भावनात्मक रुप से अधिक आगे रहता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली या उसकी दशा अवधि में चंद्रमा के मजबूत प्रभाव के कारण व्यक्ति को उपरोक्त में शुभ फल मिलते हैं.  

मीन लग्न में मंगल का प्रभाव

मीन लग्न के लिए मंगल की स्थिति द्वितीय भाव और नवम भाव के स्वामी रुप में होती है. व्यक्ति के लिए मंगल उसके धन के साथ साथ उसके भाग्य पर भी असर डालने वाला होता है. इसके अलावा दूसरे भाव का स्वामी होकर व्यक्ति के परिवार, आर्थिक मसलों, संब्म्धों, नेत्र, नाक, कंठ, कान, उसकी बोलचाल के रुख को प्रभावित करने वाला होता है. कुटुम्ब पर मंगल गहरा असर डालता है. वहीं नवम भाव का स्वामी होकर धर्म, गुण, भाग्य, गुरु, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ, भक्ति, मनोवृत्ति, भाग्य पर मंगल अपना असर डालता है. यह पितृ सुख, तीर्थ, दान को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. व्यक्ति अपने जीवन के इन पक्षों में काफी मजबूती के साथ विचार रखने वाला होता है. कुण्डली में मंगल की दशा काल में मंगल के प्रबल एवं शुभ प्रभाव मिलते हैं लेकिन साथ ही इसके कुछ खराब फल भी देखने को मिल सकते हैं यदि मंगल निर्बल होता है तो खराब फल और संघर्ष अधिक मिलता है. 

मीन लग्न में शुक्र का प्रभाव

मीन लग्न के लिए शुक्र काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस ग्रह का असर अनुकूल नहीं माना गया है इस लग्न के लिए. मीन लग्न के लिए शुक्र तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. इन दो भाव स्थान का स्वामी होकर खराब परिणाम देने के लिए अधिक जाना जाता है. तीसरे का स्वामी होने के कारण यह व्यक्ति अपने साहस के लिए इस पर निर्भर होता है, भाई-बहनों, पदार्थों के सेवन, क्रोध, भ्रम, लेखन, कम्प्यूटर, लेखा-जोखा,पुरुषार्थ, शौर्य का प्रतीक बनकर शुक्र अपना असर दिखाता है. शुक्र एक शुभ ग्रह है इस कारण इन खराब भावों का स्वामी होकर अपने शुभ फलों को अनुकूल रुप से नहीं दे पाता है.  इसके अलावा आठवें भाव का स्वामी होकर रोग का कारण, जीवन आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्री यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, छिपी हुई जगह, जेल यात्रा, अस्पताल, गंभीर ऑपरेशन, झाड़-फूंक, जादू-टोना, जीवन में होने वाले उतार-चढ़ावों को दर्शाता है. कुण्डली में शुक्र की दशा में व्यक्ति को अकस्मात होने वाले फल अधिक मिल सकते हैं. 

मीन लग्न में बुध का प्रभाव

मीन लग्न के लिए बुध का स्था अनुकूलता वाला होता है. बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शुभ फल देने में सहायक बन जाता है. व्यक्ति को माता, भूमि, भवन, वाहन इत्यादि के सुख की प्राप्ति बुध के द्वारा ही संभव हो पाती है. इसके अलावा बुध सातवें भाव का स्वामी बनकर विवाह,, साझेदारी, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार जैसी चीजों के लिए भी विशेष बन जाता है. पबुध की स्थिति कुंडली में व्यक्ति को उन सुखों का उपभोग दिलाने वाली होती है जिसके लिए व्यक्ति संघर्ष अधिक करता है. व्यक्ति की कुंडली बुध की दशा अवधि में बुध के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं. लेकिन यदि निर्बल हुआ बुध तब कमजोर फल दिखाई देते हैं. 

मीन लग्न में गुरु का प्रभाव

मीन लग्न के लिए बृहस्पति शुभ ग्रह होता है. मीन लग्न के लिए बृहस्पति लग्न भाव और दशम भाव का स्वामी होता है. इन दोनों भावों के स्वामित्व को पाकर बृहस्पति व्यक्ति के जीवन की प्रमुख रुपरेखा को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. इस भाव के प्रभाव द्वारा व्यक्ति को अपने जीवन के अनेक अच्छे और खराब फल देखने को मिल सकते हैं. व्यक्ति के राज्य, प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, संप्रभुता, व्यवसाय, अधिकार, हवन, कर्मकांड, ऐश्वर्य भोग, प्रसिद्धि, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति आदि का प्रतिनिधित्व बृहस्पति ही करता है. बृहस्पति यदि शुभ होगा तो व्यक्तित्व में निखार के साथ साथ मजबूती प्राप्त होती है. कुण्डली में बृहस्पति के प्रभाव या उनकी दशा काल में शुभ फल प्राप्त होते हैं जबकि निर्बल होकर गुरु के अशुभ प्रभाव में होने पर अशुभ फल मिलते हैं.

मीन लग्न में शनि का प्रभाव

मीन लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव और बारहवें भाव का स्वामी होता है. शनि की स्थिति इस लग्न के लिए धन और धन के खर्च की होती है. एकादश भाव का स्वामी होने के कारण शनि का प्रभाव इच्छाओं, लाभ, स्वार्थ, जैसे विषयों पर रहता है इसके अलावा सामाजिक रुप से व्यक्ति के प्रभाव को भी यह दर्शाने वाली होती है. इसके अलावा जीवन में होने वाले व्ययों के लिए भी शनि महत्वपूर्ण होगा. नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड,  मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग, ऐश्वर्य, वासना, व्यभिचार, व्यर्थ की चीजों का प्रतिनिधित्व शनि को प्राप्त होगा. विदेश यात्रा आदि के लिए भी शनि की स्थिति महत्वपूर्ण होगी. व्यक्ति की कुण्डली में शनि दशा काल में शनि के प्रबल प्रभाव पड़ेंगे जो जीवन को कई तरह से प्रभावि करने वाले होंगे. 

मीन लग्न में राहु ओर केतु का प्रभाव

राहु केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है अत: ऎसे में यह ग्रह जिस भी भाव में जिस राशि में बैठते हैं वैसा फल ही देते हैं. मीन लग्न में राहु जिस भाव में जिस भी ग्रह के साथ होगा उसके परिणाम बदलाव लिए होंगे. इसी प्रकार उसके सामने बैठा केतु भी भाव राशि ग्रह स्थिति के अनुसार अपना असर दिखाने वाला होगा. यदि कुंडली में उचित स्थान पर यह दोनों होंगे तो सकारात्मक प्रभाव देंगे लेकिन इसके विपरित होने पर इन दोनों के द्वारा कई तरह के नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं. कुछ विचारकों के अनुसार राहु को मीन लग्न में सप्तम भाव पर अधिक असर डालने का उत्तरदायित्व प्राप्त होता है जिसके कारण यह इस भाव के कारक तत्वों पर असर डालता है उसी प्रकार केतु लग्न का दायित्व पाता है. इस तरह से इन दोनों की भूमिका इन भावों को लेकर भी विशेष बन जाती है. 

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मेष लग्न के लिए बुध महादशा का प्रभाव कैसे डालता है अपना असर

मेष लग्न के लिए बुध ग्रह की महादशा कैसे परिणाम देगी इस तथ्य पर कुंडली में बुध के भाव अधिग्रह के साथ बुध के भाव स्थान की महत्ता विशेष होती है. जिसका अर्थ हुआ की मेष लग्न के लिए बुध किन भावों का स्वामी होता है और बुध कुंडली में किस स्थान पर बैठा हुआ है. सफलताओं और उपलब्धियों के मध्य बुध की भूमिका काफी महत्वपूर्ण बन जाती है मेष लग्न के लिए. मेष लग्न के लिए बुध महादशा का फल समझने के लिए बुध की स्थिति और उसके भाव स्थान को समझ कर विशेष परिणाम जाना जा सकता है. 

मेष लग्न के लिए बुध तीसरे भाव और छठे भाव का स्वामी होता है. तीसरे भाव में मिथुन राशि आती है और छठे भाव में कन्या राशि आती है. इसके अतिरिक्त बुध स्वयं कुंडली में कौन से स्थान में बैठा है इस तथ्य को देख कर मेष लग्न के लिए बुध महादशा को जान पाना संभव हो सकता है. 

बुध महादशा का तीसरे भाव से संबंध 

मेष लग्न के लिए बुध तीसरे भाव का स्वामी होता है और  तीसरे घर को पारंपरिक रूप से भाई-बहनों का भाव माना गया है. इसे पराक्रम का भाव भी कहा जाता है. इसी के साथ यह भाव चरित्र की ताकत, इच्छाशक्ति, आंतरिक शक्ति, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और महत्वाकांक्षा, जो हमें लक्ष्य की ओर ले जाती है उन सभी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. अब ऎसी स्थिति में बुध की स्थिति इन सभी के लिए विशेष हो जाती है. 

तीसरा घर, उपचय घर भी होता है और एक ऐसा भाव है जिसमें किसी भी अशुभ ग्रह के लिए परिवर्तन का अवसर होता है. तीसरे घर में किसी भी प्रतिकूल ग्रह के पास चीजों को बेहतर करने का सुधार का मौका होता है. जब बुध इस घर का स्वामी बनता हैतो उसकी दशा के दौरान धीरे-धीरे, साल-दर-साल बुध ग्रह के सर्वोत्तम गुणों को प्रकट करने में आगे रह सकता है. इस भाव में बुध की स्थिति महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व को इंगित करती है जो जीवन से सब कुछ प्राप्त कर सकता है. बुध की महादशा का प्रभाव व्यक्ति को लक्ष्य-उन्मुख और अति महत्वाकांक्षी बना सकता है. इस समय व्यक्ति अपने जीवन में सार्थक परिणाम प्राप्त करने की अधिक संभावना रखता है कुंडली में तीसरे भाव की कोई भी अभिव्यक्ति सफलता और लक्ष्यों की प्राप्ति का आश्वासन देने वाली होती है. 

बुध का प्रभाव रोजमर्रा की जिंदगी में भी हमारी योजनाओं को साकार करने की शक्ति प्रदान देता है. अपने या अपने प्रियजनों के खिलाफ निष्कर्ष और आरोप लगाने में जल्दबाजी भी कर सकता है. आलस्य अक्सर महत्वपूर्ण प्राण की कमी के कारण होता है, अर्थात व्यक्ति की ऊर्जा निम्न स्तर पर हो सकती है, जो कुंडली के तीसरे घर की कमजोरी में प्रकट होती है. लेकिन बुध की स्थिति का प्रभाव व्यक्ति को आलस्य से मुक्ति दिलाने वाला होगा.  

तीसरा भाव गतिविधि और अवधि जिसमें कार्यों की परिणीति होती है. किसी के पास अधिक शक्तिशाली शक्त है, किसी के पास शुरू में बहुत कमजोर शक्ति है. अक्सर यही कारण होता है कि कुछ व्यक्ति कई कार्य करते हैं और परिणामस्वरूप, जीवन में बहुत कुछ सीखते हैं, जबकि अन्य बहुत कम होते हैं क्योंकि उनके भीतर उतनी शक्ति नहीं लेकिन बुध के स्वामित्व का प्रभाव इस भाव में जोश ओर उत्साह को देने वाला होता है. यहां मिथुन राशि आती है जो युवा उत्साह को दर्शाती है अब इस कारण इस दशा में व्यक्ति के भीतर काफी उत्साह भी मौजूद होता है. 

छठे भाव की बुध महादशा प्रभाव 

बुध के छठे भाव का स्वामी होने पर व्यक्ति कई मायनों में अपने जीवन के संघर्ष और सफलता को लेकर काफी सजग दिखाई देगा. ज्योतिष में तीसरे भाव पर विस्तार से विचार करना और उसकी ताकत का मूल्यांकन करना, छठे भाव की ताकत के साथ जोड़ कर देखा जाता है. ऎसे में जब इन दोनों स्थानों पर बुध का अधिकार होता है तब स्थिति महत्वपूर्ण बन जाती है.  बुध महादशा में व्यक्ति कई कठिनाइयों और समस्याओं को देखेगा लेकिन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की उसकी अनुभूति भी विशेष होगी.  यदि तीसरा घर कमजोर है और छठा मजबूत है, तो एक व्यक्ति को खुद को काफी मजबूती से और लगभग हमेशा, आलस्य और उदासीनता से लड़ने वाला होगा. बुध महादशा में उसे इसी ओर अधिक काम करने की आवश्यकता होगी. बुध महादशा में उसे लगातार प्रेरित होना होगा. 

छठे भाव को रोग, स्वास्थ्य, विवाद, प्रतिस्पर्धा, साहस, इरादे की दृढ़ता, रचनात्मकता प्रतिभा, समाज में एक अच्छी प्रतिष्ठा, मनोदशा और विचारों का परिवर्तन, बहुमुखी प्रतिभा और क्षमताएं, संचार, अभिव्यक्ति, साहसिकता, साहस, जोखिम उठाना, जुआ और यात्राओं की बहुतायत भी इसी से समझ सकते हैं ऎसे में बुध महादशा का होना व्यक्ति के जीवन में इन चीजों की बहुतायत को देने वाला होगा. बुध महादशा के समय लक्ष्यों को प्राप्त करने में दृढ़ता मिलेगी, मजबूत चरित्र, अक्सर खेल और शारीरिक सहनशक्ति में सफलता, खेल के प्यार, यात्रा, चलने, भाई-बहनों के साथ समस्याएं संभव हो सकती हैं, महत्वाकांक्षा और बहुत प्रेरणा, किसी के प्रयासों के माध्यम से परिणाम प्राप्त करना भी इस महादशा में दिखाई देगा. 

बुध की स्थिति 

अब कुंडली में बुध जिस भी भाव में बैठता है ओर जिस भी स्थिति में होता है उसका असर भी बुध महादशा में मिलती है. अगर बुध कमजोर होगा कुंडली में तो तीसरा भाव और छठा भाव भी कमजोर हो जाएगा ऎसे में जड़ता अधिक परेशानी देने वाली हो सकती है. यात्रा करना सफल नहीं हो सकता है या व्यक्ति यात्रा करना पसंद नहीं करेगा. संचार कठिन होगा क्योंकि अन्य लोगों के विवाद अधिक रह सकते हैं. खेलकूद, दैनिक व्यायाम, व्यायाम, सख्त आहार और दैनिक दिनचर्या का पालन, सहनशक्ति यह सब शक्ति भी इस समय कमजोर हो जाएंगी. पर इसके विपरित यदि बुध अच्छी स्थिति में होगा तो वह कुछ सकारात्मक परिणाम दे पाएगा. इस समय नकारात्मक स्थितियों से लड़ने की अच्छी क्षमता भी व्यक्ति को प्राप्त होने लगती है. 

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नौकरी या व्यवसाय में कारकांश कुण्डली की भूमिका

करियर के क्षेत्र में हम अपने लिए नौकरी का चयन करते हैं या फिर व्यवसाय का इन का पता लगाने के लिए कई तरह की पद्धितियां ज्योतिष में मौजूद हैं. इन्हीं में से एक विचार कारकांश के द्वारा भी प्राप्त होता है. कारकांश का संबंध जैमिनि ज्योतिष से होता है जिसमें नवांश कुंडली की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. कारकांश रुप में जो लग्न या जो राशि ग्रह के साथ संबंध बनाती है उसका करियर पर असर पड़ता है. कारकांश ग्रह के रुप में सूर्य, मंगल, चंद्रमा, बुध, शनि, शुक्र या बृहस्पति कोई भी हो सकता है. वहीं मेष से लेकर मीन तक किसी भी राशि में कारकांश ग्रह विराजमान हो सकता है. अब ग्रह के साथ राशि प्रभाव एवं दशम भाव के साथ इसका संबंध इन सभी के अनुसार करियर में होने वाले परिणामों को जान पाना संभव हो सकता है. 

कारकांश कुंडली में ग्रह एवं राशि प्रभाव 

कारकांश कुंडली में यदि सूर्य विशेष बनता है तब उस स्थिति में व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में सरकार की ओर से अच्छा सहयोग मिल सकता है. व्यक्ति अपने कार्यों में चिकित्सक हो सकता है, राजकीय कार्यालय में किसी पोस्ट पर हो सकता है. सुरक्षा परिषद का सदस्य बन सकता है. वह शिक्षण, नेतृत्व कुशलता के कामों में अच्छा कर सकता है. अपने करियर के लिए उसके पास बहुत से अवसर भी हो सकते हैं. यदि सूर्य की स्थिति कुंडली में हर प्रकार से अच्छी होगी तो इसके द्वारा वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्ति में सफल होता है. यदि कारोबार करता है तो वहां उसका वर्चस्व अच्छा होता है. 

चंद्रमा के कारकांश होने पर व्यक्ति को ऎसे कार्यों में अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है जिनमें पोषण की संभावना होती है. जो भावनाओं से जुड़े होते हैं. जिनमें जल तत्व की प्रधानता होती है. व्यापार में वह जलीय उत्पादों के क्षेत्र में बडी़ सफलता प्राप्त कर सदशम भाव आजीविका और करियर के लिए माना जाता है. यदि दशम भाव खाली हो तो दशमेश जिस ग्रह में नवम भाव में हो उसके अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है. यदि ग्रह दूसरे और ग्यारहवें भाव में मजबूत स्थिति में है, तो यह आजीविका में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में दशम भाव शुभ स्थान में मजबूत स्थिति में होता है.

जैमिनी पद्धति के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कारकांश कुण्डली में लग्न में सूर्य या शुक्र हो तो व्यक्ति राजनीतिक पक्ष से संबंधित व्यवसाय करता है या सरकारी विभाग में नौकरी करता है. कारकांश कुण्डली में लग्न में चन्द्रमा और शुक्र की दृष्टि है. ऐसे में अध्यापन कार्य में सफलता व सफलता मिलती है. लग्न में चंद्रमा कारकांश में हो और बुध उस पर दृष्टि डाले तो चिकित्सा के क्षेत्र में करियर की बेहतर संभावनाएं दर्शाता है. कारकांश में मंगल लग्न स्थान में होने से व्यक्ति शस्त्र प्राप्त करता है, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की बुलंदियों को छूता है. 

कारकांश कुण्डली के लग्न में बुध होता है वह कला या व्यवसाय को अपनी आजीविका का माध्यम बनाता है तो वह आसानी से सफलता की ओर अग्रसर होता है. कारकांश लग्न में शनि या केतु हो तो सफल व्यवसायी बन सकता है. सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति केमिस्ट या डॉक्टर बन सकता है.

कारकांश कुण्डली में ग्रहों का योग प्रभाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कारकांश से तीसरे या छठे भाव में पाप ग्रह स्थित हों या दृष्टि डाल रहे हों तो ऐसी स्थिति में इसे कृषि और कृषि व्यवसाय में जीविकोपार्जन का संकेत माना जाना चाहिए. कारकांश कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु जातक मशीनरी के कार्य में सफल होता है. इस स्थान पर राहु हो तो लोहा व्यवसाय में सफलता देता है. कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा लग्न से पंचम स्थान में है तथा बृहस्पति शुक्र से दृष्ट या युति कर रहा है, अत: लेखन एवं कला के क्षेत्र में अच्छे मौके दे सकता है.   

सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह करियर की स्थिरता के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं. सूर्य लाभेश या कर्मेश हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी दिलाने वाला और उच्च प्रशासनिक अधिकारी के पद को प्रदान करने में बेहद सहायक होता है. 

सूर्य और बुध की युति हो तो व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होता है इसके अलावा तथा प्रशासनिक, न्यायाधीश, अधिवक्ता आदि के क्षेत्र में करियर बना सकता है.

यदि जन्म कुण्डली में कर्मेश या लाभेश कोई भी हो अगर उनके साथ मंगल की युति हो या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति भवन, भूमि के काम से भी लाभ अर्जित कर सकता है. भवन ठेकेदार के कार्य में शामिल भी हो सकता है.

सूर्य और मंगल की युति उसे तहसीलदार, पटवारी आदि के कार्यों में सफलता दिलाती है. इसी के साथ सैन्य कार्यों में भी ये युति काफी अच्छे से अपना प्रभाव दिखाती है. साहस का योग इसके कारण मिलता है.  

बुध, बृहस्पति ये दोनों ग्रह भी जातक को उच्च स्थान देते हैं और बुद्धि, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में सफलता दिलाते हैं. इन दोनों ग्रहों के मजबूत होने से व्यापार में भी सफलता मिलती है. बुध और गुरु दोनों ही व्यावसायिक कारक हैं. जन्म कुंडली में इनका शुभ स्थान नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित होना व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है. 

व्यक्ति को इन शुभ ग्रहों के द्वारा परिश्रमी, भाग्यवान और धार्मिक, धनवान होने का सुख मिलता है. शुक्र के साथ राहु  का योग होने पर व्यक्ति तकनीक में अच्छा कर सकता है इसके अलावा फैशन या सिनेमा जगत में सफलता प्राप्त करने के उसे अवसर भी मिलते हैं. 

शुक्र उच्च का हो या स्वराशि में स्थित हो तो व्यक्ति को  ग्लैमरस से जुड़ा काम देगा इस व्यवसाय में अधिक सफलता मिलती है. इसमें राहु का भी महत्व है.राहु व्यक्ति को टेक्नीशियन, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, गणितज्ञ आदि बनने में मदद करता है. यदि राहु कर्मेश से दशम भाव में स्थित है तो वह एक सर्जन बनने की क्षमता रखता है. इसी के साथ शुभ ग्रहों का प्रभव व्यक्ति को रचनात्मक क्षेत्रों में ले जाने वाला हो सकता है. 

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सूर्य महादशा प्रभाव मंगल की अंतर्दशा प्रभाव

महादशा में अन्य ग्रहों की दशाओं का आना अंतरदशा प्रत्यंतरदशा रुप में होता है. दशाओं का प्रभाव सूक्ष्म रुप में पड़ता है. हर दशा का असर अपने भव स्वामित्व ग्रह स्थिति के आधार पर ही होता है. सूर्य की महादशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में उत्साह और तीव्रता देने वाला होता है. जीवन के सभी क्षेत्र में व्यक्ति को कई अवसर प्राप्त होते हैं और कई तरह के विपरित कार्य मिलते हैं. सूर्य कुंडली में अपने भाव स्थिति के अनुसार फल प्रदान करता है वहीं सूर्य के अपने गुण भी इसमें काम करते हैं. इसके साथ ही मंगल की अंतरदशा जब सूर्य की महादशा में मिलती है तो वहीं यह स्थिति का काफी बदलावों को दर्शाने वाली होती है. 

सूर्य और मंगल दशा का गुण प्रभाव 

सूर्य और मंगल की भूमिका का साथ में होगा अग्नि तत्व से जुड़े कामों को बढ़ा देने वाला होता है. यह अनूठी ज्योतिषीय विशेषता के साथ दशाओं में अपना असर दिखाते हैं. इस योग के अलग-अलग प्रभाव हैं क्योंकि ग्रहों की प्रत्येक जोड़ी एक दूसरे के साथ अलग तरह से बातचीत करती है. दशाओं में अत्यधिक प्रेरित दिखाई दे सकते हैं और चीजों को हासिल करने के लिए आगे रहते हैं. इसके अलावा खुद को खतरे में डालकर भी इच्छाओं पर भी काम कर सकते हैं. दोनों ग्रह व्यक्ति को आवेगी और हठी बनाने वाले होते हैं. सूर्य महादशा में मंगल अंतरदशा व्यक्ति में ऊर्जा और उत्साह को भर देने में सहायक होती है. अक्सर छोटी योजना या पूर्वविवेक के साथ किसी प्रयास में सिर झुकाते हैं.

सूर्य सभी ग्रहों का राजा है. यह अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होता है और इसलिए यह एक तारा है. हिंदू पौराणिक कथाओं में, हम इसे भगवान विष्णु कहते हैं जो ब्रह्मांड के स्वामी हैं. सूर्य शक्ति और प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए यह सभी सरकारी प्राधिकरणों, सत्ता के पदों, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, संसद सदस्यों जैसे सत्ता के उच्च पदों पर आसीन लोगों और उन लोगों से संबंधित है जो सरकार साथ संबंधित होते हैं. शक्तिशाली सूर्य वाले लोग हमेशा किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं और इसलिए वे किसी और के अधीन काम करके खुश नहीं होते हैं. यदि वे व्यवसाय भी करते हैं, तो वे एकाधिकार व्यवसाय करना पसंद करते हैं. सूर्य ग्रह पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है. मानव और पृथ्वी पर कई अन्य जीवन रूपों के लिए आवश्यक है.

सूर्य चेतना पर मंगल शक्ति पर डालता है प्रभाव 

 सूर्य हमारी आत्मा का भी प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए शक्तिशाली सूर्य वाले व्यक्ति की आत्मा अच्छी होती है, वहीं मंगल शक्ति को दर्शाता है. इन दोनों का संगम व्यक्ति को उसके कार्यो को करने के लिए बेहद मजबूत बनाता है. कर्म के प्रति अनुकरणीय होते हैं और वह हमेशा दूसरों की मदद करता है. दूसरी ओर कमजोर सूर्य महादशा में मंगल अंतरदशा के कारन व्यक्ति बहुत लालची, आत्मकेंद्रित और घमंडी स्वभाव का हो सकता है और उसकी कुंडली में सूर्य की स्थिति के आधार पर उसे कई स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं. किंतु यदि मंगल की स्थिति कुछ बेहतर होगी तो उसका लाभ मिलेगा.  सूर्य हमें जीवन शक्ति और प्रतिरोध और प्रतिरक्षा की शक्ति देता है. यह हमारी शारीरिक शक्ति को निर्धारित करता है. सूर्य को जीवन शक्ति और इच्छा शक्ति, बुद्धि, तेज, समृद्धि और सांसारिक मामलों में सफलता का दाता माना जाता है. यह हमारी महत्वाकांक्षाओं और प्रसिद्धि से भी जुड़ा है. सूर्य हमारी चेतना पर अधिकार रखता है. 

सूर्य और मंगल दशा का कुंडली में भाव प्रभाव 

सूर्य महादशा में मंगल की अंतदरशा का समय कुंडली में मौजूद इन दोनों ग्रहों की स्थिति को देख कर समझा जा सकता है. अगर कुंडली में यह दोनों ग्रह शुभ होंगे तो शुभ फल मिलेंगे. वहीं खराब होंगे तो अच्छे फल नहीं मिल पाएंगे. इसी के अनुसर एक अच्छा और दूसरा खराब है तो मिलेजुले असर मिलते हैं. इसलिए इन दोनों ग्रहों की शक्ति कुंडली में निहित इनकी शक्ति पर भी निर्भर करती है. 

सूर्य हमारी मूल पहचान है, और आत्म-साक्षात्कार का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य एक मनोवैज्ञानिक कारक है जो हमारे कार्यों पर हावी होता है. इसका कुंडली में शुभ होना महादशा में शुभता दिलाएगा वहीं अगर शुभ मंगल अंतरदशा भी मिल रही होगी तो जीवन में सकारात्मक बदलावों को प्राप्त कर सकते हैं. सूर्य ही है जो यह तय करता है कि हम वास्तव में क्या हैं और मंगल के द्वारा अपनी इच्छाओं को पाने के लिए हमारा प्रयास होता है. हम अपने जीवन के उन क्षेत्रों में चमकते हैं जो उस घर से संबंधित होते हैं जहां सूर्य हमारी कुंडली में स्थित होता है. वहीं मंगल हमें अपने जीवन को आगे बढ़ाने का साधक बनता है. 

राज्य से लाभ और सम्मान प्राप्त हो सकता है 

सूर्य और मंगल की स्थिति राज्य से संबंधित प्रभाव देने वाली होती है. सूर्य में मंगल की अंतरदशा का प्रभाव व्यक्ति को अपने काम के लिए यह समय काफी आगे रखने वाला होता है. जीवन के क्षेत्र में सूर्य के साथ मंगल का प्रभाव आने पर व्यक्ति अपने आस पास की स्थिति से लाभ अर्जित करने में सक्षम होता है. इसके द्वारा व्यक्ति कार्यक्षेत्र में परिणाम देखता है. वह कई मायनों में जीवन के उन कार्यों से भी लाभ अर्जित कर पाने में सक्षम होता है जहां अन्य का जा पाना संभव नहीं होता है. व्यक्ति के लिए यह दशा उसके काम के स्त्रोत में वृद्धि करने वाली होती है. 

इस समय के दौरान पद-प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है. सोना, जवाहरात और वस्त्रों की प्राप्ति होती है और धन की वृद्धि होती है. घर में शुभ आयोजन होते हैं और भाइयों का साथ भी प्राप्त होता है. कुछ मामलों में अपनों एवं दूसरों के सदस्यों का विरोध हो सकता है. शरीर में अम्लता और अन्य बीमारियों से कष्ट हो सकता है. इस दशा में शुभ प्रभाव जैसे भूमि लाभ, धन-धान्य की प्राप्ति, घर की प्राप्ति हो सकती है. यह सभी बातें इन दोनों ग्रहों की दशा के गुण धर्म एवं कुंडली में स्थिति के अनुसार प्राप्त होती हैं. 

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शुक्र का विवाह मिलान पर क्या प्रभाव होता है

शुक्र का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विवाह पर विशेष भूमिका को दर्शाता है. शुक्र ग्रह को विवाह के कारक रुप में देखा जाता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुखों की प्राप्ति के लिए यह विशेष रहता है. जन्म कुंडली में शुक्र की शुभता दांपत्य जीवन के सुख एवं रिश्तों के संपर्क में मजबूती दिखाने वाली होती है. विवाह मिलान में जब कुडली मिलान होता है तो शुक्र कुंडली के द्वारा भी मिलान किया जाता है. इसमें शुक्र की स्थिति एवं उसके प्रभाव को देख कर दो लोगों के आपसी संबंधों एवं सुख को समझा जा सकता है. शुक्र कुंडली अनुसार इसे बेहतर रुप से जाना जा सकता है. 

शुक्र कुंडली विश्लेष्ण

कुडली के हर भाव में शुक्र भी बेहद खास स्थिति में होता है. कुंडली में शुक्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और व्यक्तियों के कुंडली मिलान के लिए यह निश्चित रूप से उपयोगी होता है. इसके लिए हमें कुंडली में शुक्र की भूमिका, महत्व, कुंडली और ज्योतिष में विभिन्न भावों में शुक्र का क्या अर्थ है और विभिन्न भावों में शुक्र का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानने की आवश्यकता है.  

मिलान में कुंडली में शुक्र का महत्व 

कुंडली में शुक्र विपरीत लिंग के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताता है. यह जीवन साथी, पत्नी, बड़ी बहन और बुजुर्ग महिलाओं, यौन सुख, यौवन और वीरता का प्रतिनिधित्व करता है. यह प्रसिद्धि की भी बात करता है. इसके अलावा व्यक्ति में जुनून का गुण भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. यह यौन सुख को दिखाता है अर्थात प्रेम करने की क्षमता या हद को भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति बताती है कि संबंध कैसा रहेगा. भोग की सीमा या व्यक्ति अपने जीवन का कितना आनंद उठाएगा यह भी इस ग्रह के माध्यम से देखा जाता है. आमतौर पर, विवाह सुख में व्यक्ति कितना भाग्यशाली होगा इसकी गणना अक्सर कुंडली में शुक्र की स्थिति से की जाती है.

कुंडली में शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से पढ़ा जा सकता है, और उन सभी कारकों का मूल्यांकन किया जा सकता है जिनके बारे में शुक्र विशेष होता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति के माध्यम से. यदि शुक्र बिना किसी नकारात्मक या अशुभ प्रभाव के अच्छी स्थिति में है, तो उपरोक्त सभी कारक जिनके बारे में शुक्र है, वे सर्वोत्तम या इष्टतम परिणाम देता है. जबकि, यदि कुंडली में शुक्र अनुकूल नहीं है या उस पर अशुभ प्रभाव पड़ा है और वे प्रभाव काफी अधिक हैं, तो जो सकारात्मकता उपरोक्त प्रकार की चीजों में कमी प्राप्त होती है, यह विवाह के लिए मुश्किल उत्पन्न कर सकता है. उदाहरण के लिए, यदि हम पत्नी और पत्नी के साथ संबंधों के बारे में बात करते हैं और सकारात्मकता जो एक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से आकर्षित करेगा, तो कुंडली में शुक्र की स्थिति का अत्यधिक महत्व है. शुक्र एक छोटा और सुंदर ग्रह होने के कारण सुंदरता और आनंद का ग्रह है.

शुक्र का 6-8-12 भाव में होना विवाह के सुख में बाधा 

शुक्र की स्थिति कुंडली के कुछ विशेष भावों में होना अनुकूल नहीं माना गया है.  शुक्र पारंपरिक रूप से रोमांस का अग्रदूत है और सभी चीजों में प्रेम आकर्षण को भर देने के लिए जिम्मेदार होता है. शुक्र की स्थिति के अशुभ और लाभकारी दोनों परिणाम देने वाली हो सकती है लेकिन जब विवाह मिलान में शुक्र की स्थिति को देखा जाता है तो इसकी छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव की स्थिति विशेष होती है यह ऎसा स्थान है जहां शुक्र के परिणाम अलग फल देने वाले होते हैं.  अलग-अलग घरों में शुक्र हमारे रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: चाहे वह वैवाहिक जीवन हो या जीवन के किसी भी मोर्चे पर अन्य मानवीय रिश्ते की बात हो लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए इसका इन भावों में होना शुभता को कमजोर कर देने वाला भी होता है. 

शुक्र के छठे भाव में होना शुक्र की कोमलता के लिए अनुकूल नहीम होता है. यहां शुक्र की क्षमता विकार के रुप में अधिक प्रभावित कर सकती है. व्यक्ति अपने जीवन साथी के साथ विवादों में फंस सकता है. प्रेम संबंधों की कमी एवं उनसे दूरी का दर्द भी झेल सकता है. यहां स्थित शुक्र का प्रभाव व्यक्ति को जीवन साथी के रोग के प्रभाव से पिड़ा दे सकता है. 

आठवें भाव में शुक्र की स्थिति व्यक्ति को अपने रिश्तों में संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाती है. व्यक्ति को यह स्थिति आलसी और गैर जिम्मेदार बना सकती है. प्रेम जीवन भी सुख से वंचित रहेगा. व्यक्ति डार्क एनर्जी और डार्क मिस्ट्री की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं. जिसमें रहस्य, कामुकता भरी हो वहां उसका ध्यान अधिक होगा. आठवें भाव में शुक्र वाले लोग बहुत ही आकर्षक होने का एक भारी प्रभाव देते हैं. आठवें भाव में शुक्र का होना यौन संबंधों में सुख की कमी दे सकता है. व्यक्ति अनैतिक कार्यों में फंस सकता है. रिश्तों में असंतोष बना रह सकता है. एक से अधिक रिश्ते जीवन पर अपना असर डालते हैं. वैवाहिक जीवन के लिए यह स्थिति अधिक अनुकूल नहीं रह पाती है. 

शुक्र के बारहवें भाव की स्थिति भी वैवाहिक जीवन के सुखों को कमजोर कर देने वाली होती है. यहां स्थित श्युक्र का प्रभाव व्यक्ति को आपसी संबंधों का अलगाव एवं अन्य रिश्तों की ओर आकर्षण देने वाला होता है. यहां शुक्र नीचस्थ हो तब अतिरिक्त संबंधों को देने वाला हो सकता है. 

शुक्र कुंडली में शुक्र के कमजोर होने की स्थिति

शुक्र यदि कुंडली में नीचस्थ हो, वक्री हो या अस्त हो अथवा राहु केतु शनि के द्वारा प्रभावित हो रहा होगा तब भी वैवाहिक जीवन के आनंद को कमजोर कर देने वाला हो सकता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाली चीजों का अभाव उसके जीवन पर असर डालता है. यह स्थिति चीजों के प्रति अरुचि एवं अनिच्छा को दिखाने वाली भी होती है. यह असंतुष्ट संबंधों को दिखाने वाला होता है.  वैवाहिक जीवन में शुक्र की कुंडली पर विचार करते हुए इन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है. यदि कुंडली में शुक्र कमजोर होगा तो उसके उपाय द्वारा ही सकारात्मक फलों को प्राप्त कर पाना संभव हो सकता है. 

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यात्रा के लिए शुभ मुहूर्त विचार कैसे किया जाता है ?

मुहूर्त शास्त्र में कार्यों की शुभता के लिए विशेष विचार किया जाता है. प्रत्येक कार्य को सकारात्मक रुप से पाने एवं सफल होने के लिए मुहूर्त का उपयोग होता रहा है. ऎसे में जब यात्रा का विचार करना हो तो उसके लिए भी शुभ मुहूर्त का विचार किया जा सकता है. किसी भी जरुरी काम पर जाने हेतु यात्रा का विचार होता है ऎसे में यदि यात्रा के लिए शुभ समय का निर्धारण किया जाए तो उसका बेहद शुभ फल प्राप्त होते हैं. 

यात्रा मुहूर्त का विचार करने कि आवश्यकता  

जीवन में जब हम किसी काम को करते हैं तो उसमें सफलता या असफलता का फल मिलता ही है. जब किसी काम के लिए यात्रा करते हैं तो उसमें किसी भी तरह का परिणाम हमें मिल सकता है. इन यात्राओं में कभी सफलता तो कभी असफलता हाथ लगती है. यात्रा कभी-कभी इतनी अच्छी हो सकती है कि भागदौड़ भरी जिंदगी की सारी थकान दूर हो जाती है. लेकिन कई बार हादसे के कारण यात्रा कष्टमय बन जाती है. जब यात्रा काफी महत्वपूर्ण हो जाती है जिसमें सफलता एवं सकारात्मक फल की प्राप्ति की चाह अधिक हो जाती है तो उस समय यदि मुहूर्त पर विचार किया जाए तो यह एक अनुकूल स्थिति के लिए उपयोगी बन जाती है. 

सही समय का चयन कर पाना आसान नहीं होता है. समय की कमी या जल्दबाजी के कारण लोग अक्सर मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं. ऎसे में शुभ मुहूर्त का स्मरण तब अधिक ध्यान आता है जब यात्रा व्यर्थ, निष्फल और हानिकारक सिद्ध होने लगती है. तब यह विचार अधिक तेजी से सोचने के विवश करता है कि यदि  शुभ मुहूर्त में अपनी यात्रा प्रारंभ की जाती तो परेशानी या कष्ट से बचाव हो सकता है. यात्रा में हानि, मानसिक या शारीरिक कष्ट से मुक्ति पाने में मुहूर्त का विचार बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है.  

यात्रा में तिथि विचार 

यात्रा को शुरु करने से पहले अगर शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखा जाए तो उसके द्वारा कई तरह के बेहतर प्रभाव मिल पाने संभव होते हैं. अपनी योजना बना कर शुभ मुहूर्त के चयन के द्वारा यात्रा एवं प्रवास के दौरान होने वाले मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाना बहुत अधिक संभव होता है. यात्रा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त करना बहुत संभव इस शुभ मुहूर्त के द्वारा संभव हो पाता है. 

यात्रा मुहूर्त के लिए कई तरह की बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है. इस के लिए दिशाशूल, नक्षत्रशूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रबल, ताराबल, नक्षत्रशुद्धि आदि का विचार किया जाता है. किसी भी यात्रा मुहूर्त का पता लगाने के लिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना उचित होता है. इसके साथ जिस दिन यात्रा करनी है उस दिन कि तिथि शुद्धि को सबसे पहले माना जाता है. तिथि शुद्धि के लिए कुछ विशेष तिथियों को अनुकूल माना गया है यह तिथियां शुभ मानी गई हैं जिनमें से ये इस प्रकार हैं. किसी भी पक्ष के कृष्ण पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और केवल प्रतिपदा तिथियां महत्वपूर्ण रुप से विचार में रखी जाती हैं. यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि इन तिथियों में भद्रा दोष का विचार भी करना आवश्यक होता है इसमें भद्रा नहीं होना चाहिए. अर्थात यदि इन तिथियों में विष्टि करण हो तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा. 

नक्षत्र शुद्धि विचार 

यात्राओं की शुभता में तिथि की शुद्धि के पश्चात नक्षत्र पर विचार करने की बात कहीं जाती है. जब हम तिथियों को लेते हैं तब ली गई तिथियों के अनुरुप नक्षत्र माना जाता है. यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित रहते हैं. इसमें अश्विनी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र और रेवती नक्षत्र श्रेष्ठ माने गए हैं. इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण किया जाता है अर्थात जिन नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण करना शुभ होता है वे निम्नलिखित हैं- अश्विनी नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और हस्त नक्षत्र. अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे भी हैं जिन्हें यात्रा का माध्यम माना गया है. वे इस प्रकार हैं: रोहिणी नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्र पर विचार होता है. इसके साथ ही नक्षत्रशूल विचार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. नक्षत्रशूल को भी दिशा के समान ही माना जाता है. दिशाशूल में इसे अशुभ माना गया है

किसी दिशा विशेष के लिए विशेष वार होना शुभ होता है जबकि नक्षत्रशूल में किसी दिशा विशेष के लिए विशिष्ट नक्षत्रों का होना अशुभ माना जाता है. जिस दिशा में आप यात्रा करना चाहते हैं, उस दिशा में नक्षत्रों पर विचार करना भी आवश्यक है. योगिनी वास का विचार यात्रा करते समय योगिनी किस दिशा में रहती है, यह जानना भी आवश्यक है. यात्रा के दौरान योगिनी का सामने या दाहिनी ओर होना अशुभ माना जाता है. योगिनीवास का विचार तिथि और दिशा के अनुसार निर्धारित होता है, चंद्र दिशा विचार के अनुसार यात्रा के समय चन्द्रमा सामने या दाहिनी ओर होना उपयुक्त माना गया है.

शुभ ग्रह प्रभाव 

यात्राओं के लिए शुभ ग्रहों की स्थिति का विचार भी बेहद जरुरी है लेकिन इसी के साथ पाप ग्रहों का विचार कार्य की प्रकृत्ति को देख कर लिया जाता है. शुभ ग्रह में चंद्र, बुध, बृहस्पति और शुक्र. ग्रहों का विचार और इन  ग्रहों की होरा में भ्रमण करना श्रेष्ठ माना गया है. पर यदि यात्रा कोई विजय जैसे युद्ध में और संघर्ष में विजय के लिए है तो उसमें मंगल की शुभता भी बहुत सहायक बनती है किसी भी युद्ध की सफलता लड़ाई में विजय की प्राप्ति के लिए मंगल का सहयोग बेहद अहम होता है. अत: यात्रा किस प्रयोजन के लिए है इस पर ध्यान देना बहुत जरुरी होता है और उसी के अनुरुप फल का निर्धारण संभव हो पाता है. 

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शुक्र-शनि युति से बनता है युक्त योग

जब दो ग्रह एक ही राशि के अंतर्गत युति योग बनाते हैं, तो कुंडली में कई तरह के फलों का मिलाजुला फल मिलता है. यह सफलता और कठिनाई दोनों को दिखाने वाला भी हो सकता है. भाग्य पर इस तरह के शनि शुक्र योग का गहरा असर भी देखने को मिलता है. इन योग के जीवन में  परिणाम अक्सर अप्रत्याशित और अनिश्चित से मिलते हैं. युक्त योग करियर, वित्त और सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन से संबंधित अनुभव, पारस्परिक कौशल और प्रबंधन कौशल के आधार पर कई अवसर दिखाता है.जीवन में सफल होने के अवसर को निर्धारित भी होते हैं. यह क्षमताओं को बढ़ाता है और सफलता की ओर ले जाने वाला एक नया मार्ग बनाता है.

इस में शनि के साथ शुक्र का होना इस योग के कई प्रभाव हमारे सामने रख सकता है. व्यावहारिक, दृढ़निश्चयी और कूटनीतिक दृष्टिकोण इस शनि के साथ शुक्र के योग से प्राप्त होता है. शनि के साथ शुक्र की स्थिति शुक्र के आकर्षण, कूटनीति और व्यावहारिकता के साथ-साथ शनि के अनुशासन और दृढ़ संकल्प को दर्शाने वाली होती है. इस अद्वितीय परिवर्तन होने पर व्यावहारिकता का गुण दिखाई देता है. अच्छे सलाहकार के रुप में व्यक्ति आगे बढ़ने में सफल होता है. इसके द्वारा जीवन की प्रगति होती है. महान व्यावसायिक समझ और भाग्य इन दोनों के मेल से संभव हो पाता है. व्यवसायिक समझ अच्छी होती है. कड़ी मेहनत से भाग्य और धन उत्पन्न करने में मदद करने वाला योग बनता है. इन दोनों ग्रहों का योग चातुर्य और दृढ़ संकल्प के साथ, आर्थिक समृद्धि भी प्रदान करता है व्यक्ति अपने जीवन में किसी ऎसे से भी मिलता है जिसके साथ से वह सफलताओं को पाने में सक्षम होता है. 

शनि और शुक्र विरोधाभास का योग 

शुक्र प्रेम, संबंध, जीवन में आनंद, प्रेम करने की क्षमता और प्रसन्नता का ग्रह है. कामुक इच्छा के माध्यम से आनंद, लोगों की सेवा, सामान्य विनम्र स्वभाव और आपसी सम्मान. पुरुष की कुंडली में शुक्र प्रेमिका है, और शानदार वस्तुएं है वीर्य है. शुक्र पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक सामान्य संबंध ग्रह है. शुक्र कामुकता का प्रमुख ग्रह है और निम्न रूप में यह इन्द्रिय सुखों में अधिक लिप्त रहने की ओर दिशा दिखाता है, उच्च रूप में यह सभी की सेवा और प्रेम करना पसंद करता है और बिना किसी कारण के खुश रहना जानता है. वहीं दूसरी ओर शनि मर्यादाओं का ग्रह है, यह व्यक्ति को समय का बोध कराता है और शनि सभी को जीवन की सच्चाई दिखाता है. यह वास्तविकता के साथ जीना सिखाता है, शनि अनुशासित, व्यावहारिकता और जीवन में एक दीर्घकालिक लक्ष्य है. शनि जीवन में कठोरता देकर लोगों को विनम्र बनाता है. शनि ग्रह मन की स्थिरता, एकांत में रहने की शक्ति और ध्यान में अच्छा प्रभाव दिखाता है.

शुक्र और शनि की युति होती है तो इसे मित्र भाव का प्रभाव कहा जा सकता है. ज्योतिष में शनि और शुक्र अच्छे मित्र माने गए हैं. इन दोनों को का प्रभाव काफी विपरित होता है लेकिन फिर भी इनमें मित्रता भी विशेष होती है. किंतु गुणों की भिन्नता शुक्र के शनि के साथ होने पर शुक्र संतुष्ट नहीं हो पाता है. शनि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति के अपने प्रिय मित्र शुक्र से मिलने आने जैसी स्थिति है. क्या होता है जब हमारा सबसे अच्छा दोस्त जो बीमार होता है हमसे मिलने आता है, हम भी बीमार हो जाते हैं नहीं अपितु हम उसके लिए सहायक भी होते हैं. शनि शुक्र में अपने सभी गुणों का संचार करता है. शनि उन सभी चीजों से संबंधित निराशा देता है जिनका प्रतिनिधित्व शुक्र करता है, किंतु शुक्र का प्रभाव भी व्यक्ति को नई दिशा को दिखा देने वाला होता है. 

शनि भय का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र प्रेम का, इसलिए ये लोग अपनी प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करने में भय महसूस कर सकते हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें दूसरे लोगों द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है. यह व्यक्ति किसी भी तरह के रिश्ते में पड़ने से डर सकता है. व्यक्ति प्रेम और संबंधों में निराश होता है और यह व्यक्ति को ऐसा साथी दिलाता है जो प्रेम और संबंधों में बहुत ठंडा और रूढ़िवादी हो सकता है. व्यक्ति स्वयं प्रेम और संबंधों को लेकर बहुत यथार्थवादी होता है. परिवार के प्रति कर्तव्य और उत्तरदायित्व द्वारा प्रदर्शित प्रेम की उनकी अभिव्यक्ति. आमतौर पर ये लोग हर तरह के रिश्तों में प्यार की कमी महसूस करते हैं, और ये अपनी भावनाओं को लेकर बहुत सुरक्षात्मक होते हैं और अपनी कमजोर भावनाओं को दूसरे लोगों को नहीं दिखाते हैं.

शनि और शुक्र युति का कब मिलता है लाभ 

शनि परिपक्व और वृद्ध साथी या व्यक्ति को अपने से बड़ी उम्र के साथी का सहयोग दिलाने वाला होता है. यदि सप्तम भाव में इन का योग होता है तो व्यक्ति को अपने साथी चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उन्हें ऐसा साथी मिल सकता है जो अपमानजनक हो सकता है. वहीं इसका असर विवाह होने में देरी को दर्शाता है. शनि देरी के ग्रह और धैर्य के शिक्षक हैं ओर ऎसे में यदि जल्दी शादी होती है तो उसमें कई तरह के विवाद झेलने पड़ सकते हैं. व्यक्ति को अपने साथी के साथ अलगाव सहना पड़ सकता है और विवाह में  लोगों को कष्ट हो सकता है. व्यक्ति का साथी बहुत मेहनती हो सकता है लेकिन उसमें रोमांस की कमी भी देखने को मिल सकती है. जीवन में यथार्थवादी दृष्टिकोण वाला अधिक देखने को मिल सकता है. ये लोग रिश्ते में समझौता करने को तैयार रहते हैं.  

शुक्र रचनात्मकता का मुख्य ग्रह है, इसलिए यह युति लोगों को फोटोग्राफी, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, क्राफ्टिंग आदि जैसे कई रचनात्मक क्षेत्रों में हाथ आजमाने का गुण प्रदान करने वाली होति है. बहुत रचनात्मक और प्रतिभाशाली स्थिति भी प्राप्त हो सकती है. लोगों की व्यावसायिक समझ अच्छी होती है क्योंकि शुक्र कूटनीति का ग्रह है और शनि कठोर कर्म का, वित्त और कला के क्षेत्रों में अच्छा नाम कमाने का अवसर प्राप्त होता है. अगर इन दोनों ग्रहों की युति कुछ विशेष भाव स्थान जैसे दूसरे भाव, नवम भाव, एकादश भाव इत्यादि में होने पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है. आर्थिक लाभ की प्राप्ति का अच्छा मौका भी प्राप्त होता है. 

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