मेष लग्न के लिए बुध महादशा का प्रभाव कैसे डालता है अपना असर

मेष लग्न के लिए बुध ग्रह की महादशा कैसे परिणाम देगी इस तथ्य पर कुंडली में बुध के भाव अधिग्रह के साथ बुध के भाव स्थान की महत्ता विशेष होती है. जिसका अर्थ हुआ की मेष लग्न के लिए बुध किन भावों का स्वामी होता है और बुध कुंडली में किस स्थान पर बैठा हुआ है. सफलताओं और उपलब्धियों के मध्य बुध की भूमिका काफी महत्वपूर्ण बन जाती है मेष लग्न के लिए. मेष लग्न के लिए बुध महादशा का फल समझने के लिए बुध की स्थिति और उसके भाव स्थान को समझ कर विशेष परिणाम जाना जा सकता है. 

मेष लग्न के लिए बुध तीसरे भाव और छठे भाव का स्वामी होता है. तीसरे भाव में मिथुन राशि आती है और छठे भाव में कन्या राशि आती है. इसके अतिरिक्त बुध स्वयं कुंडली में कौन से स्थान में बैठा है इस तथ्य को देख कर मेष लग्न के लिए बुध महादशा को जान पाना संभव हो सकता है. 

बुध महादशा का तीसरे भाव से संबंध 

मेष लग्न के लिए बुध तीसरे भाव का स्वामी होता है और  तीसरे घर को पारंपरिक रूप से भाई-बहनों का भाव माना गया है. इसे पराक्रम का भाव भी कहा जाता है. इसी के साथ यह भाव चरित्र की ताकत, इच्छाशक्ति, आंतरिक शक्ति, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और महत्वाकांक्षा, जो हमें लक्ष्य की ओर ले जाती है उन सभी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. अब ऎसी स्थिति में बुध की स्थिति इन सभी के लिए विशेष हो जाती है. 

तीसरा घर, उपचय घर भी होता है और एक ऐसा भाव है जिसमें किसी भी अशुभ ग्रह के लिए परिवर्तन का अवसर होता है. तीसरे घर में किसी भी प्रतिकूल ग्रह के पास चीजों को बेहतर करने का सुधार का मौका होता है. जब बुध इस घर का स्वामी बनता हैतो उसकी दशा के दौरान धीरे-धीरे, साल-दर-साल बुध ग्रह के सर्वोत्तम गुणों को प्रकट करने में आगे रह सकता है. इस भाव में बुध की स्थिति महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व को इंगित करती है जो जीवन से सब कुछ प्राप्त कर सकता है. बुध की महादशा का प्रभाव व्यक्ति को लक्ष्य-उन्मुख और अति महत्वाकांक्षी बना सकता है. इस समय व्यक्ति अपने जीवन में सार्थक परिणाम प्राप्त करने की अधिक संभावना रखता है कुंडली में तीसरे भाव की कोई भी अभिव्यक्ति सफलता और लक्ष्यों की प्राप्ति का आश्वासन देने वाली होती है. 

बुध का प्रभाव रोजमर्रा की जिंदगी में भी हमारी योजनाओं को साकार करने की शक्ति प्रदान देता है. अपने या अपने प्रियजनों के खिलाफ निष्कर्ष और आरोप लगाने में जल्दबाजी भी कर सकता है. आलस्य अक्सर महत्वपूर्ण प्राण की कमी के कारण होता है, अर्थात व्यक्ति की ऊर्जा निम्न स्तर पर हो सकती है, जो कुंडली के तीसरे घर की कमजोरी में प्रकट होती है. लेकिन बुध की स्थिति का प्रभाव व्यक्ति को आलस्य से मुक्ति दिलाने वाला होगा.  

तीसरा भाव गतिविधि और अवधि जिसमें कार्यों की परिणीति होती है. किसी के पास अधिक शक्तिशाली शक्त है, किसी के पास शुरू में बहुत कमजोर शक्ति है. अक्सर यही कारण होता है कि कुछ व्यक्ति कई कार्य करते हैं और परिणामस्वरूप, जीवन में बहुत कुछ सीखते हैं, जबकि अन्य बहुत कम होते हैं क्योंकि उनके भीतर उतनी शक्ति नहीं लेकिन बुध के स्वामित्व का प्रभाव इस भाव में जोश ओर उत्साह को देने वाला होता है. यहां मिथुन राशि आती है जो युवा उत्साह को दर्शाती है अब इस कारण इस दशा में व्यक्ति के भीतर काफी उत्साह भी मौजूद होता है. 

छठे भाव की बुध महादशा प्रभाव 

बुध के छठे भाव का स्वामी होने पर व्यक्ति कई मायनों में अपने जीवन के संघर्ष और सफलता को लेकर काफी सजग दिखाई देगा. ज्योतिष में तीसरे भाव पर विस्तार से विचार करना और उसकी ताकत का मूल्यांकन करना, छठे भाव की ताकत के साथ जोड़ कर देखा जाता है. ऎसे में जब इन दोनों स्थानों पर बुध का अधिकार होता है तब स्थिति महत्वपूर्ण बन जाती है.  बुध महादशा में व्यक्ति कई कठिनाइयों और समस्याओं को देखेगा लेकिन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की उसकी अनुभूति भी विशेष होगी.  यदि तीसरा घर कमजोर है और छठा मजबूत है, तो एक व्यक्ति को खुद को काफी मजबूती से और लगभग हमेशा, आलस्य और उदासीनता से लड़ने वाला होगा. बुध महादशा में उसे इसी ओर अधिक काम करने की आवश्यकता होगी. बुध महादशा में उसे लगातार प्रेरित होना होगा. 

छठे भाव को रोग, स्वास्थ्य, विवाद, प्रतिस्पर्धा, साहस, इरादे की दृढ़ता, रचनात्मकता प्रतिभा, समाज में एक अच्छी प्रतिष्ठा, मनोदशा और विचारों का परिवर्तन, बहुमुखी प्रतिभा और क्षमताएं, संचार, अभिव्यक्ति, साहसिकता, साहस, जोखिम उठाना, जुआ और यात्राओं की बहुतायत भी इसी से समझ सकते हैं ऎसे में बुध महादशा का होना व्यक्ति के जीवन में इन चीजों की बहुतायत को देने वाला होगा. बुध महादशा के समय लक्ष्यों को प्राप्त करने में दृढ़ता मिलेगी, मजबूत चरित्र, अक्सर खेल और शारीरिक सहनशक्ति में सफलता, खेल के प्यार, यात्रा, चलने, भाई-बहनों के साथ समस्याएं संभव हो सकती हैं, महत्वाकांक्षा और बहुत प्रेरणा, किसी के प्रयासों के माध्यम से परिणाम प्राप्त करना भी इस महादशा में दिखाई देगा. 

बुध की स्थिति 

अब कुंडली में बुध जिस भी भाव में बैठता है ओर जिस भी स्थिति में होता है उसका असर भी बुध महादशा में मिलती है. अगर बुध कमजोर होगा कुंडली में तो तीसरा भाव और छठा भाव भी कमजोर हो जाएगा ऎसे में जड़ता अधिक परेशानी देने वाली हो सकती है. यात्रा करना सफल नहीं हो सकता है या व्यक्ति यात्रा करना पसंद नहीं करेगा. संचार कठिन होगा क्योंकि अन्य लोगों के विवाद अधिक रह सकते हैं. खेलकूद, दैनिक व्यायाम, व्यायाम, सख्त आहार और दैनिक दिनचर्या का पालन, सहनशक्ति यह सब शक्ति भी इस समय कमजोर हो जाएंगी. पर इसके विपरित यदि बुध अच्छी स्थिति में होगा तो वह कुछ सकारात्मक परिणाम दे पाएगा. इस समय नकारात्मक स्थितियों से लड़ने की अच्छी क्षमता भी व्यक्ति को प्राप्त होने लगती है. 

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नौकरी या व्यवसाय में कारकांश कुण्डली की भूमिका

करियर के क्षेत्र में हम अपने लिए नौकरी का चयन करते हैं या फिर व्यवसाय का इन का पता लगाने के लिए कई तरह की पद्धितियां ज्योतिष में मौजूद हैं. इन्हीं में से एक विचार कारकांश के द्वारा भी प्राप्त होता है. कारकांश का संबंध जैमिनि ज्योतिष से होता है जिसमें नवांश कुंडली की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. कारकांश रुप में जो लग्न या जो राशि ग्रह के साथ संबंध बनाती है उसका करियर पर असर पड़ता है. कारकांश ग्रह के रुप में सूर्य, मंगल, चंद्रमा, बुध, शनि, शुक्र या बृहस्पति कोई भी हो सकता है. वहीं मेष से लेकर मीन तक किसी भी राशि में कारकांश ग्रह विराजमान हो सकता है. अब ग्रह के साथ राशि प्रभाव एवं दशम भाव के साथ इसका संबंध इन सभी के अनुसार करियर में होने वाले परिणामों को जान पाना संभव हो सकता है. 

कारकांश कुंडली में ग्रह एवं राशि प्रभाव 

कारकांश कुंडली में यदि सूर्य विशेष बनता है तब उस स्थिति में व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में सरकार की ओर से अच्छा सहयोग मिल सकता है. व्यक्ति अपने कार्यों में चिकित्सक हो सकता है, राजकीय कार्यालय में किसी पोस्ट पर हो सकता है. सुरक्षा परिषद का सदस्य बन सकता है. वह शिक्षण, नेतृत्व कुशलता के कामों में अच्छा कर सकता है. अपने करियर के लिए उसके पास बहुत से अवसर भी हो सकते हैं. यदि सूर्य की स्थिति कुंडली में हर प्रकार से अच्छी होगी तो इसके द्वारा वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्ति में सफल होता है. यदि कारोबार करता है तो वहां उसका वर्चस्व अच्छा होता है. 

चंद्रमा के कारकांश होने पर व्यक्ति को ऎसे कार्यों में अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है जिनमें पोषण की संभावना होती है. जो भावनाओं से जुड़े होते हैं. जिनमें जल तत्व की प्रधानता होती है. व्यापार में वह जलीय उत्पादों के क्षेत्र में बडी़ सफलता प्राप्त कर सदशम भाव आजीविका और करियर के लिए माना जाता है. यदि दशम भाव खाली हो तो दशमेश जिस ग्रह में नवम भाव में हो उसके अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है. यदि ग्रह दूसरे और ग्यारहवें भाव में मजबूत स्थिति में है, तो यह आजीविका में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में दशम भाव शुभ स्थान में मजबूत स्थिति में होता है.

जैमिनी पद्धति के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कारकांश कुण्डली में लग्न में सूर्य या शुक्र हो तो व्यक्ति राजनीतिक पक्ष से संबंधित व्यवसाय करता है या सरकारी विभाग में नौकरी करता है. कारकांश कुण्डली में लग्न में चन्द्रमा और शुक्र की दृष्टि है. ऐसे में अध्यापन कार्य में सफलता व सफलता मिलती है. लग्न में चंद्रमा कारकांश में हो और बुध उस पर दृष्टि डाले तो चिकित्सा के क्षेत्र में करियर की बेहतर संभावनाएं दर्शाता है. कारकांश में मंगल लग्न स्थान में होने से व्यक्ति शस्त्र प्राप्त करता है, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की बुलंदियों को छूता है. 

कारकांश कुण्डली के लग्न में बुध होता है वह कला या व्यवसाय को अपनी आजीविका का माध्यम बनाता है तो वह आसानी से सफलता की ओर अग्रसर होता है. कारकांश लग्न में शनि या केतु हो तो सफल व्यवसायी बन सकता है. सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति केमिस्ट या डॉक्टर बन सकता है.

कारकांश कुण्डली में ग्रहों का योग प्रभाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कारकांश से तीसरे या छठे भाव में पाप ग्रह स्थित हों या दृष्टि डाल रहे हों तो ऐसी स्थिति में इसे कृषि और कृषि व्यवसाय में जीविकोपार्जन का संकेत माना जाना चाहिए. कारकांश कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु जातक मशीनरी के कार्य में सफल होता है. इस स्थान पर राहु हो तो लोहा व्यवसाय में सफलता देता है. कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा लग्न से पंचम स्थान में है तथा बृहस्पति शुक्र से दृष्ट या युति कर रहा है, अत: लेखन एवं कला के क्षेत्र में अच्छे मौके दे सकता है.   

सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह करियर की स्थिरता के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं. सूर्य लाभेश या कर्मेश हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी दिलाने वाला और उच्च प्रशासनिक अधिकारी के पद को प्रदान करने में बेहद सहायक होता है. 

सूर्य और बुध की युति हो तो व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होता है इसके अलावा तथा प्रशासनिक, न्यायाधीश, अधिवक्ता आदि के क्षेत्र में करियर बना सकता है.

यदि जन्म कुण्डली में कर्मेश या लाभेश कोई भी हो अगर उनके साथ मंगल की युति हो या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति भवन, भूमि के काम से भी लाभ अर्जित कर सकता है. भवन ठेकेदार के कार्य में शामिल भी हो सकता है.

सूर्य और मंगल की युति उसे तहसीलदार, पटवारी आदि के कार्यों में सफलता दिलाती है. इसी के साथ सैन्य कार्यों में भी ये युति काफी अच्छे से अपना प्रभाव दिखाती है. साहस का योग इसके कारण मिलता है.  

बुध, बृहस्पति ये दोनों ग्रह भी जातक को उच्च स्थान देते हैं और बुद्धि, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में सफलता दिलाते हैं. इन दोनों ग्रहों के मजबूत होने से व्यापार में भी सफलता मिलती है. बुध और गुरु दोनों ही व्यावसायिक कारक हैं. जन्म कुंडली में इनका शुभ स्थान नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित होना व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है. 

व्यक्ति को इन शुभ ग्रहों के द्वारा परिश्रमी, भाग्यवान और धार्मिक, धनवान होने का सुख मिलता है. शुक्र के साथ राहु  का योग होने पर व्यक्ति तकनीक में अच्छा कर सकता है इसके अलावा फैशन या सिनेमा जगत में सफलता प्राप्त करने के उसे अवसर भी मिलते हैं. 

शुक्र उच्च का हो या स्वराशि में स्थित हो तो व्यक्ति को  ग्लैमरस से जुड़ा काम देगा इस व्यवसाय में अधिक सफलता मिलती है. इसमें राहु का भी महत्व है.राहु व्यक्ति को टेक्नीशियन, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, गणितज्ञ आदि बनने में मदद करता है. यदि राहु कर्मेश से दशम भाव में स्थित है तो वह एक सर्जन बनने की क्षमता रखता है. इसी के साथ शुभ ग्रहों का प्रभव व्यक्ति को रचनात्मक क्षेत्रों में ले जाने वाला हो सकता है. 

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सूर्य महादशा प्रभाव मंगल की अंतर्दशा प्रभाव

महादशा में अन्य ग्रहों की दशाओं का आना अंतरदशा प्रत्यंतरदशा रुप में होता है. दशाओं का प्रभाव सूक्ष्म रुप में पड़ता है. हर दशा का असर अपने भव स्वामित्व ग्रह स्थिति के आधार पर ही होता है. सूर्य की महादशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में उत्साह और तीव्रता देने वाला होता है. जीवन के सभी क्षेत्र में व्यक्ति को कई अवसर प्राप्त होते हैं और कई तरह के विपरित कार्य मिलते हैं. सूर्य कुंडली में अपने भाव स्थिति के अनुसार फल प्रदान करता है वहीं सूर्य के अपने गुण भी इसमें काम करते हैं. इसके साथ ही मंगल की अंतरदशा जब सूर्य की महादशा में मिलती है तो वहीं यह स्थिति का काफी बदलावों को दर्शाने वाली होती है. 

सूर्य और मंगल दशा का गुण प्रभाव 

सूर्य और मंगल की भूमिका का साथ में होगा अग्नि तत्व से जुड़े कामों को बढ़ा देने वाला होता है. यह अनूठी ज्योतिषीय विशेषता के साथ दशाओं में अपना असर दिखाते हैं. इस योग के अलग-अलग प्रभाव हैं क्योंकि ग्रहों की प्रत्येक जोड़ी एक दूसरे के साथ अलग तरह से बातचीत करती है. दशाओं में अत्यधिक प्रेरित दिखाई दे सकते हैं और चीजों को हासिल करने के लिए आगे रहते हैं. इसके अलावा खुद को खतरे में डालकर भी इच्छाओं पर भी काम कर सकते हैं. दोनों ग्रह व्यक्ति को आवेगी और हठी बनाने वाले होते हैं. सूर्य महादशा में मंगल अंतरदशा व्यक्ति में ऊर्जा और उत्साह को भर देने में सहायक होती है. अक्सर छोटी योजना या पूर्वविवेक के साथ किसी प्रयास में सिर झुकाते हैं.

सूर्य सभी ग्रहों का राजा है. यह अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होता है और इसलिए यह एक तारा है. हिंदू पौराणिक कथाओं में, हम इसे भगवान विष्णु कहते हैं जो ब्रह्मांड के स्वामी हैं. सूर्य शक्ति और प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए यह सभी सरकारी प्राधिकरणों, सत्ता के पदों, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, संसद सदस्यों जैसे सत्ता के उच्च पदों पर आसीन लोगों और उन लोगों से संबंधित है जो सरकार साथ संबंधित होते हैं. शक्तिशाली सूर्य वाले लोग हमेशा किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं और इसलिए वे किसी और के अधीन काम करके खुश नहीं होते हैं. यदि वे व्यवसाय भी करते हैं, तो वे एकाधिकार व्यवसाय करना पसंद करते हैं. सूर्य ग्रह पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है. मानव और पृथ्वी पर कई अन्य जीवन रूपों के लिए आवश्यक है.

सूर्य चेतना पर मंगल शक्ति पर डालता है प्रभाव 

 सूर्य हमारी आत्मा का भी प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए शक्तिशाली सूर्य वाले व्यक्ति की आत्मा अच्छी होती है, वहीं मंगल शक्ति को दर्शाता है. इन दोनों का संगम व्यक्ति को उसके कार्यो को करने के लिए बेहद मजबूत बनाता है. कर्म के प्रति अनुकरणीय होते हैं और वह हमेशा दूसरों की मदद करता है. दूसरी ओर कमजोर सूर्य महादशा में मंगल अंतरदशा के कारन व्यक्ति बहुत लालची, आत्मकेंद्रित और घमंडी स्वभाव का हो सकता है और उसकी कुंडली में सूर्य की स्थिति के आधार पर उसे कई स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं. किंतु यदि मंगल की स्थिति कुछ बेहतर होगी तो उसका लाभ मिलेगा.  सूर्य हमें जीवन शक्ति और प्रतिरोध और प्रतिरक्षा की शक्ति देता है. यह हमारी शारीरिक शक्ति को निर्धारित करता है. सूर्य को जीवन शक्ति और इच्छा शक्ति, बुद्धि, तेज, समृद्धि और सांसारिक मामलों में सफलता का दाता माना जाता है. यह हमारी महत्वाकांक्षाओं और प्रसिद्धि से भी जुड़ा है. सूर्य हमारी चेतना पर अधिकार रखता है. 

सूर्य और मंगल दशा का कुंडली में भाव प्रभाव 

सूर्य महादशा में मंगल की अंतदरशा का समय कुंडली में मौजूद इन दोनों ग्रहों की स्थिति को देख कर समझा जा सकता है. अगर कुंडली में यह दोनों ग्रह शुभ होंगे तो शुभ फल मिलेंगे. वहीं खराब होंगे तो अच्छे फल नहीं मिल पाएंगे. इसी के अनुसर एक अच्छा और दूसरा खराब है तो मिलेजुले असर मिलते हैं. इसलिए इन दोनों ग्रहों की शक्ति कुंडली में निहित इनकी शक्ति पर भी निर्भर करती है. 

सूर्य हमारी मूल पहचान है, और आत्म-साक्षात्कार का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य एक मनोवैज्ञानिक कारक है जो हमारे कार्यों पर हावी होता है. इसका कुंडली में शुभ होना महादशा में शुभता दिलाएगा वहीं अगर शुभ मंगल अंतरदशा भी मिल रही होगी तो जीवन में सकारात्मक बदलावों को प्राप्त कर सकते हैं. सूर्य ही है जो यह तय करता है कि हम वास्तव में क्या हैं और मंगल के द्वारा अपनी इच्छाओं को पाने के लिए हमारा प्रयास होता है. हम अपने जीवन के उन क्षेत्रों में चमकते हैं जो उस घर से संबंधित होते हैं जहां सूर्य हमारी कुंडली में स्थित होता है. वहीं मंगल हमें अपने जीवन को आगे बढ़ाने का साधक बनता है. 

राज्य से लाभ और सम्मान प्राप्त हो सकता है 

सूर्य और मंगल की स्थिति राज्य से संबंधित प्रभाव देने वाली होती है. सूर्य में मंगल की अंतरदशा का प्रभाव व्यक्ति को अपने काम के लिए यह समय काफी आगे रखने वाला होता है. जीवन के क्षेत्र में सूर्य के साथ मंगल का प्रभाव आने पर व्यक्ति अपने आस पास की स्थिति से लाभ अर्जित करने में सक्षम होता है. इसके द्वारा व्यक्ति कार्यक्षेत्र में परिणाम देखता है. वह कई मायनों में जीवन के उन कार्यों से भी लाभ अर्जित कर पाने में सक्षम होता है जहां अन्य का जा पाना संभव नहीं होता है. व्यक्ति के लिए यह दशा उसके काम के स्त्रोत में वृद्धि करने वाली होती है. 

इस समय के दौरान पद-प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है. सोना, जवाहरात और वस्त्रों की प्राप्ति होती है और धन की वृद्धि होती है. घर में शुभ आयोजन होते हैं और भाइयों का साथ भी प्राप्त होता है. कुछ मामलों में अपनों एवं दूसरों के सदस्यों का विरोध हो सकता है. शरीर में अम्लता और अन्य बीमारियों से कष्ट हो सकता है. इस दशा में शुभ प्रभाव जैसे भूमि लाभ, धन-धान्य की प्राप्ति, घर की प्राप्ति हो सकती है. यह सभी बातें इन दोनों ग्रहों की दशा के गुण धर्म एवं कुंडली में स्थिति के अनुसार प्राप्त होती हैं. 

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शुक्र का विवाह मिलान पर क्या प्रभाव होता है

शुक्र का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विवाह पर विशेष भूमिका को दर्शाता है. शुक्र ग्रह को विवाह के कारक रुप में देखा जाता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुखों की प्राप्ति के लिए यह विशेष रहता है. जन्म कुंडली में शुक्र की शुभता दांपत्य जीवन के सुख एवं रिश्तों के संपर्क में मजबूती दिखाने वाली होती है. विवाह मिलान में जब कुडली मिलान होता है तो शुक्र कुंडली के द्वारा भी मिलान किया जाता है. इसमें शुक्र की स्थिति एवं उसके प्रभाव को देख कर दो लोगों के आपसी संबंधों एवं सुख को समझा जा सकता है. शुक्र कुंडली अनुसार इसे बेहतर रुप से जाना जा सकता है. 

शुक्र कुंडली विश्लेष्ण

कुडली के हर भाव में शुक्र भी बेहद खास स्थिति में होता है. कुंडली में शुक्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और व्यक्तियों के कुंडली मिलान के लिए यह निश्चित रूप से उपयोगी होता है. इसके लिए हमें कुंडली में शुक्र की भूमिका, महत्व, कुंडली और ज्योतिष में विभिन्न भावों में शुक्र का क्या अर्थ है और विभिन्न भावों में शुक्र का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानने की आवश्यकता है.  

मिलान में कुंडली में शुक्र का महत्व 

कुंडली में शुक्र विपरीत लिंग के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताता है. यह जीवन साथी, पत्नी, बड़ी बहन और बुजुर्ग महिलाओं, यौन सुख, यौवन और वीरता का प्रतिनिधित्व करता है. यह प्रसिद्धि की भी बात करता है. इसके अलावा व्यक्ति में जुनून का गुण भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. यह यौन सुख को दिखाता है अर्थात प्रेम करने की क्षमता या हद को भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति बताती है कि संबंध कैसा रहेगा. भोग की सीमा या व्यक्ति अपने जीवन का कितना आनंद उठाएगा यह भी इस ग्रह के माध्यम से देखा जाता है. आमतौर पर, विवाह सुख में व्यक्ति कितना भाग्यशाली होगा इसकी गणना अक्सर कुंडली में शुक्र की स्थिति से की जाती है.

कुंडली में शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से पढ़ा जा सकता है, और उन सभी कारकों का मूल्यांकन किया जा सकता है जिनके बारे में शुक्र विशेष होता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति के माध्यम से. यदि शुक्र बिना किसी नकारात्मक या अशुभ प्रभाव के अच्छी स्थिति में है, तो उपरोक्त सभी कारक जिनके बारे में शुक्र है, वे सर्वोत्तम या इष्टतम परिणाम देता है. जबकि, यदि कुंडली में शुक्र अनुकूल नहीं है या उस पर अशुभ प्रभाव पड़ा है और वे प्रभाव काफी अधिक हैं, तो जो सकारात्मकता उपरोक्त प्रकार की चीजों में कमी प्राप्त होती है, यह विवाह के लिए मुश्किल उत्पन्न कर सकता है. उदाहरण के लिए, यदि हम पत्नी और पत्नी के साथ संबंधों के बारे में बात करते हैं और सकारात्मकता जो एक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से आकर्षित करेगा, तो कुंडली में शुक्र की स्थिति का अत्यधिक महत्व है. शुक्र एक छोटा और सुंदर ग्रह होने के कारण सुंदरता और आनंद का ग्रह है.

शुक्र का 6-8-12 भाव में होना विवाह के सुख में बाधा 

शुक्र की स्थिति कुंडली के कुछ विशेष भावों में होना अनुकूल नहीं माना गया है.  शुक्र पारंपरिक रूप से रोमांस का अग्रदूत है और सभी चीजों में प्रेम आकर्षण को भर देने के लिए जिम्मेदार होता है. शुक्र की स्थिति के अशुभ और लाभकारी दोनों परिणाम देने वाली हो सकती है लेकिन जब विवाह मिलान में शुक्र की स्थिति को देखा जाता है तो इसकी छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव की स्थिति विशेष होती है यह ऎसा स्थान है जहां शुक्र के परिणाम अलग फल देने वाले होते हैं.  अलग-अलग घरों में शुक्र हमारे रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: चाहे वह वैवाहिक जीवन हो या जीवन के किसी भी मोर्चे पर अन्य मानवीय रिश्ते की बात हो लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए इसका इन भावों में होना शुभता को कमजोर कर देने वाला भी होता है. 

शुक्र के छठे भाव में होना शुक्र की कोमलता के लिए अनुकूल नहीम होता है. यहां शुक्र की क्षमता विकार के रुप में अधिक प्रभावित कर सकती है. व्यक्ति अपने जीवन साथी के साथ विवादों में फंस सकता है. प्रेम संबंधों की कमी एवं उनसे दूरी का दर्द भी झेल सकता है. यहां स्थित शुक्र का प्रभाव व्यक्ति को जीवन साथी के रोग के प्रभाव से पिड़ा दे सकता है. 

आठवें भाव में शुक्र की स्थिति व्यक्ति को अपने रिश्तों में संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाती है. व्यक्ति को यह स्थिति आलसी और गैर जिम्मेदार बना सकती है. प्रेम जीवन भी सुख से वंचित रहेगा. व्यक्ति डार्क एनर्जी और डार्क मिस्ट्री की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं. जिसमें रहस्य, कामुकता भरी हो वहां उसका ध्यान अधिक होगा. आठवें भाव में शुक्र वाले लोग बहुत ही आकर्षक होने का एक भारी प्रभाव देते हैं. आठवें भाव में शुक्र का होना यौन संबंधों में सुख की कमी दे सकता है. व्यक्ति अनैतिक कार्यों में फंस सकता है. रिश्तों में असंतोष बना रह सकता है. एक से अधिक रिश्ते जीवन पर अपना असर डालते हैं. वैवाहिक जीवन के लिए यह स्थिति अधिक अनुकूल नहीं रह पाती है. 

शुक्र के बारहवें भाव की स्थिति भी वैवाहिक जीवन के सुखों को कमजोर कर देने वाली होती है. यहां स्थित श्युक्र का प्रभाव व्यक्ति को आपसी संबंधों का अलगाव एवं अन्य रिश्तों की ओर आकर्षण देने वाला होता है. यहां शुक्र नीचस्थ हो तब अतिरिक्त संबंधों को देने वाला हो सकता है. 

शुक्र कुंडली में शुक्र के कमजोर होने की स्थिति

शुक्र यदि कुंडली में नीचस्थ हो, वक्री हो या अस्त हो अथवा राहु केतु शनि के द्वारा प्रभावित हो रहा होगा तब भी वैवाहिक जीवन के आनंद को कमजोर कर देने वाला हो सकता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाली चीजों का अभाव उसके जीवन पर असर डालता है. यह स्थिति चीजों के प्रति अरुचि एवं अनिच्छा को दिखाने वाली भी होती है. यह असंतुष्ट संबंधों को दिखाने वाला होता है.  वैवाहिक जीवन में शुक्र की कुंडली पर विचार करते हुए इन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है. यदि कुंडली में शुक्र कमजोर होगा तो उसके उपाय द्वारा ही सकारात्मक फलों को प्राप्त कर पाना संभव हो सकता है. 

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यात्रा के लिए शुभ मुहूर्त विचार कैसे किया जाता है ?

मुहूर्त शास्त्र में कार्यों की शुभता के लिए विशेष विचार किया जाता है. प्रत्येक कार्य को सकारात्मक रुप से पाने एवं सफल होने के लिए मुहूर्त का उपयोग होता रहा है. ऎसे में जब यात्रा का विचार करना हो तो उसके लिए भी शुभ मुहूर्त का विचार किया जा सकता है. किसी भी जरुरी काम पर जाने हेतु यात्रा का विचार होता है ऎसे में यदि यात्रा के लिए शुभ समय का निर्धारण किया जाए तो उसका बेहद शुभ फल प्राप्त होते हैं. 

यात्रा मुहूर्त का विचार करने कि आवश्यकता  

जीवन में जब हम किसी काम को करते हैं तो उसमें सफलता या असफलता का फल मिलता ही है. जब किसी काम के लिए यात्रा करते हैं तो उसमें किसी भी तरह का परिणाम हमें मिल सकता है. इन यात्राओं में कभी सफलता तो कभी असफलता हाथ लगती है. यात्रा कभी-कभी इतनी अच्छी हो सकती है कि भागदौड़ भरी जिंदगी की सारी थकान दूर हो जाती है. लेकिन कई बार हादसे के कारण यात्रा कष्टमय बन जाती है. जब यात्रा काफी महत्वपूर्ण हो जाती है जिसमें सफलता एवं सकारात्मक फल की प्राप्ति की चाह अधिक हो जाती है तो उस समय यदि मुहूर्त पर विचार किया जाए तो यह एक अनुकूल स्थिति के लिए उपयोगी बन जाती है. 

सही समय का चयन कर पाना आसान नहीं होता है. समय की कमी या जल्दबाजी के कारण लोग अक्सर मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं. ऎसे में शुभ मुहूर्त का स्मरण तब अधिक ध्यान आता है जब यात्रा व्यर्थ, निष्फल और हानिकारक सिद्ध होने लगती है. तब यह विचार अधिक तेजी से सोचने के विवश करता है कि यदि  शुभ मुहूर्त में अपनी यात्रा प्रारंभ की जाती तो परेशानी या कष्ट से बचाव हो सकता है. यात्रा में हानि, मानसिक या शारीरिक कष्ट से मुक्ति पाने में मुहूर्त का विचार बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है.  

यात्रा में तिथि विचार 

यात्रा को शुरु करने से पहले अगर शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखा जाए तो उसके द्वारा कई तरह के बेहतर प्रभाव मिल पाने संभव होते हैं. अपनी योजना बना कर शुभ मुहूर्त के चयन के द्वारा यात्रा एवं प्रवास के दौरान होने वाले मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाना बहुत अधिक संभव होता है. यात्रा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त करना बहुत संभव इस शुभ मुहूर्त के द्वारा संभव हो पाता है. 

यात्रा मुहूर्त के लिए कई तरह की बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है. इस के लिए दिशाशूल, नक्षत्रशूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रबल, ताराबल, नक्षत्रशुद्धि आदि का विचार किया जाता है. किसी भी यात्रा मुहूर्त का पता लगाने के लिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना उचित होता है. इसके साथ जिस दिन यात्रा करनी है उस दिन कि तिथि शुद्धि को सबसे पहले माना जाता है. तिथि शुद्धि के लिए कुछ विशेष तिथियों को अनुकूल माना गया है यह तिथियां शुभ मानी गई हैं जिनमें से ये इस प्रकार हैं. किसी भी पक्ष के कृष्ण पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और केवल प्रतिपदा तिथियां महत्वपूर्ण रुप से विचार में रखी जाती हैं. यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि इन तिथियों में भद्रा दोष का विचार भी करना आवश्यक होता है इसमें भद्रा नहीं होना चाहिए. अर्थात यदि इन तिथियों में विष्टि करण हो तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा. 

नक्षत्र शुद्धि विचार 

यात्राओं की शुभता में तिथि की शुद्धि के पश्चात नक्षत्र पर विचार करने की बात कहीं जाती है. जब हम तिथियों को लेते हैं तब ली गई तिथियों के अनुरुप नक्षत्र माना जाता है. यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित रहते हैं. इसमें अश्विनी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र और रेवती नक्षत्र श्रेष्ठ माने गए हैं. इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण किया जाता है अर्थात जिन नक्षत्रों में सभी दिशाओं में भ्रमण करना शुभ होता है वे निम्नलिखित हैं- अश्विनी नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और हस्त नक्षत्र. अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे भी हैं जिन्हें यात्रा का माध्यम माना गया है. वे इस प्रकार हैं: रोहिणी नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्र पर विचार होता है. इसके साथ ही नक्षत्रशूल विचार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. नक्षत्रशूल को भी दिशा के समान ही माना जाता है. दिशाशूल में इसे अशुभ माना गया है

किसी दिशा विशेष के लिए विशेष वार होना शुभ होता है जबकि नक्षत्रशूल में किसी दिशा विशेष के लिए विशिष्ट नक्षत्रों का होना अशुभ माना जाता है. जिस दिशा में आप यात्रा करना चाहते हैं, उस दिशा में नक्षत्रों पर विचार करना भी आवश्यक है. योगिनी वास का विचार यात्रा करते समय योगिनी किस दिशा में रहती है, यह जानना भी आवश्यक है. यात्रा के दौरान योगिनी का सामने या दाहिनी ओर होना अशुभ माना जाता है. योगिनीवास का विचार तिथि और दिशा के अनुसार निर्धारित होता है, चंद्र दिशा विचार के अनुसार यात्रा के समय चन्द्रमा सामने या दाहिनी ओर होना उपयुक्त माना गया है.

शुभ ग्रह प्रभाव 

यात्राओं के लिए शुभ ग्रहों की स्थिति का विचार भी बेहद जरुरी है लेकिन इसी के साथ पाप ग्रहों का विचार कार्य की प्रकृत्ति को देख कर लिया जाता है. शुभ ग्रह में चंद्र, बुध, बृहस्पति और शुक्र. ग्रहों का विचार और इन  ग्रहों की होरा में भ्रमण करना श्रेष्ठ माना गया है. पर यदि यात्रा कोई विजय जैसे युद्ध में और संघर्ष में विजय के लिए है तो उसमें मंगल की शुभता भी बहुत सहायक बनती है किसी भी युद्ध की सफलता लड़ाई में विजय की प्राप्ति के लिए मंगल का सहयोग बेहद अहम होता है. अत: यात्रा किस प्रयोजन के लिए है इस पर ध्यान देना बहुत जरुरी होता है और उसी के अनुरुप फल का निर्धारण संभव हो पाता है. 

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शुक्र-शनि युति से बनता है युक्त योग

जब दो ग्रह एक ही राशि के अंतर्गत युति योग बनाते हैं, तो कुंडली में कई तरह के फलों का मिलाजुला फल मिलता है. यह सफलता और कठिनाई दोनों को दिखाने वाला भी हो सकता है. भाग्य पर इस तरह के शनि शुक्र योग का गहरा असर भी देखने को मिलता है. इन योग के जीवन में  परिणाम अक्सर अप्रत्याशित और अनिश्चित से मिलते हैं. युक्त योग करियर, वित्त और सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन से संबंधित अनुभव, पारस्परिक कौशल और प्रबंधन कौशल के आधार पर कई अवसर दिखाता है.जीवन में सफल होने के अवसर को निर्धारित भी होते हैं. यह क्षमताओं को बढ़ाता है और सफलता की ओर ले जाने वाला एक नया मार्ग बनाता है.

इस में शनि के साथ शुक्र का होना इस योग के कई प्रभाव हमारे सामने रख सकता है. व्यावहारिक, दृढ़निश्चयी और कूटनीतिक दृष्टिकोण इस शनि के साथ शुक्र के योग से प्राप्त होता है. शनि के साथ शुक्र की स्थिति शुक्र के आकर्षण, कूटनीति और व्यावहारिकता के साथ-साथ शनि के अनुशासन और दृढ़ संकल्प को दर्शाने वाली होती है. इस अद्वितीय परिवर्तन होने पर व्यावहारिकता का गुण दिखाई देता है. अच्छे सलाहकार के रुप में व्यक्ति आगे बढ़ने में सफल होता है. इसके द्वारा जीवन की प्रगति होती है. महान व्यावसायिक समझ और भाग्य इन दोनों के मेल से संभव हो पाता है. व्यवसायिक समझ अच्छी होती है. कड़ी मेहनत से भाग्य और धन उत्पन्न करने में मदद करने वाला योग बनता है. इन दोनों ग्रहों का योग चातुर्य और दृढ़ संकल्प के साथ, आर्थिक समृद्धि भी प्रदान करता है व्यक्ति अपने जीवन में किसी ऎसे से भी मिलता है जिसके साथ से वह सफलताओं को पाने में सक्षम होता है. 

शनि और शुक्र विरोधाभास का योग 

शुक्र प्रेम, संबंध, जीवन में आनंद, प्रेम करने की क्षमता और प्रसन्नता का ग्रह है. कामुक इच्छा के माध्यम से आनंद, लोगों की सेवा, सामान्य विनम्र स्वभाव और आपसी सम्मान. पुरुष की कुंडली में शुक्र प्रेमिका है, और शानदार वस्तुएं है वीर्य है. शुक्र पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक सामान्य संबंध ग्रह है. शुक्र कामुकता का प्रमुख ग्रह है और निम्न रूप में यह इन्द्रिय सुखों में अधिक लिप्त रहने की ओर दिशा दिखाता है, उच्च रूप में यह सभी की सेवा और प्रेम करना पसंद करता है और बिना किसी कारण के खुश रहना जानता है. वहीं दूसरी ओर शनि मर्यादाओं का ग्रह है, यह व्यक्ति को समय का बोध कराता है और शनि सभी को जीवन की सच्चाई दिखाता है. यह वास्तविकता के साथ जीना सिखाता है, शनि अनुशासित, व्यावहारिकता और जीवन में एक दीर्घकालिक लक्ष्य है. शनि जीवन में कठोरता देकर लोगों को विनम्र बनाता है. शनि ग्रह मन की स्थिरता, एकांत में रहने की शक्ति और ध्यान में अच्छा प्रभाव दिखाता है.

शुक्र और शनि की युति होती है तो इसे मित्र भाव का प्रभाव कहा जा सकता है. ज्योतिष में शनि और शुक्र अच्छे मित्र माने गए हैं. इन दोनों को का प्रभाव काफी विपरित होता है लेकिन फिर भी इनमें मित्रता भी विशेष होती है. किंतु गुणों की भिन्नता शुक्र के शनि के साथ होने पर शुक्र संतुष्ट नहीं हो पाता है. शनि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति के अपने प्रिय मित्र शुक्र से मिलने आने जैसी स्थिति है. क्या होता है जब हमारा सबसे अच्छा दोस्त जो बीमार होता है हमसे मिलने आता है, हम भी बीमार हो जाते हैं नहीं अपितु हम उसके लिए सहायक भी होते हैं. शनि शुक्र में अपने सभी गुणों का संचार करता है. शनि उन सभी चीजों से संबंधित निराशा देता है जिनका प्रतिनिधित्व शुक्र करता है, किंतु शुक्र का प्रभाव भी व्यक्ति को नई दिशा को दिखा देने वाला होता है. 

शनि भय का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र प्रेम का, इसलिए ये लोग अपनी प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करने में भय महसूस कर सकते हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें दूसरे लोगों द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है. यह व्यक्ति किसी भी तरह के रिश्ते में पड़ने से डर सकता है. व्यक्ति प्रेम और संबंधों में निराश होता है और यह व्यक्ति को ऐसा साथी दिलाता है जो प्रेम और संबंधों में बहुत ठंडा और रूढ़िवादी हो सकता है. व्यक्ति स्वयं प्रेम और संबंधों को लेकर बहुत यथार्थवादी होता है. परिवार के प्रति कर्तव्य और उत्तरदायित्व द्वारा प्रदर्शित प्रेम की उनकी अभिव्यक्ति. आमतौर पर ये लोग हर तरह के रिश्तों में प्यार की कमी महसूस करते हैं, और ये अपनी भावनाओं को लेकर बहुत सुरक्षात्मक होते हैं और अपनी कमजोर भावनाओं को दूसरे लोगों को नहीं दिखाते हैं.

शनि और शुक्र युति का कब मिलता है लाभ 

शनि परिपक्व और वृद्ध साथी या व्यक्ति को अपने से बड़ी उम्र के साथी का सहयोग दिलाने वाला होता है. यदि सप्तम भाव में इन का योग होता है तो व्यक्ति को अपने साथी चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उन्हें ऐसा साथी मिल सकता है जो अपमानजनक हो सकता है. वहीं इसका असर विवाह होने में देरी को दर्शाता है. शनि देरी के ग्रह और धैर्य के शिक्षक हैं ओर ऎसे में यदि जल्दी शादी होती है तो उसमें कई तरह के विवाद झेलने पड़ सकते हैं. व्यक्ति को अपने साथी के साथ अलगाव सहना पड़ सकता है और विवाह में  लोगों को कष्ट हो सकता है. व्यक्ति का साथी बहुत मेहनती हो सकता है लेकिन उसमें रोमांस की कमी भी देखने को मिल सकती है. जीवन में यथार्थवादी दृष्टिकोण वाला अधिक देखने को मिल सकता है. ये लोग रिश्ते में समझौता करने को तैयार रहते हैं.  

शुक्र रचनात्मकता का मुख्य ग्रह है, इसलिए यह युति लोगों को फोटोग्राफी, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, क्राफ्टिंग आदि जैसे कई रचनात्मक क्षेत्रों में हाथ आजमाने का गुण प्रदान करने वाली होति है. बहुत रचनात्मक और प्रतिभाशाली स्थिति भी प्राप्त हो सकती है. लोगों की व्यावसायिक समझ अच्छी होती है क्योंकि शुक्र कूटनीति का ग्रह है और शनि कठोर कर्म का, वित्त और कला के क्षेत्रों में अच्छा नाम कमाने का अवसर प्राप्त होता है. अगर इन दोनों ग्रहों की युति कुछ विशेष भाव स्थान जैसे दूसरे भाव, नवम भाव, एकादश भाव इत्यादि में होने पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है. आर्थिक लाभ की प्राप्ति का अच्छा मौका भी प्राप्त होता है. 

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राहु का मेष राशि में होने का प्रभाव

राहु एक ऎसा छाया ग्रह है जो अपनी शक्ति के द्वारा किसी भी ग्रह को प्रभावित कर पाने में सक्षम होता है. यह एक ऎसा ग्रह है जिसका असर व्यक्ति के जीवन में उन घटनाओं को लाने के लिए जिम्मेदार होता है जिनके होने पर जीवन में हर ओर बदलाव की स्थिति देखने को मिलती है. राहु में शक्ति है और भ्रम का मायाजाल है जिसके द्वारा वह कुछ भी घटित कर सकता है ये गुण अन्य किसी ग्रह में नहीं है. राहु जब किसी राशि में मेल करता है तो वह उस राशि के गुण अपने आप में समावेश कर लेता है. राहु के ये गुण दूरगामी असर डालते हैं और राशियों के अनुरुप इनका प्रभाव भी अत्यंत ही सघन रुप में पड़ता है. राहु वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण छाया ग्रह है. एक खगोलीय दृष्टिकोण से, राहु को चंद्रमा के उत्तरी नोड के रूप में जाना जाता है. जहां चंद्रमा का उत्तर की ओर का मार्ग पृथ्वी के क्रांतिवृत्त तल को काटता है वहीं राहु बन जाता है.  

राहु के मेष राशि में होने का प्रभाव 

मेष राशि में राहु का होना वैसे कई मायनों में काफी क्रियात्मक हो सकता है. मेष राशि क्रियाशील राशि है, जिसमें ऊर्जा का विशाल स्त्रोत होता है. जो एक जगह रुकना पसंद नहीं करती है. जिसमें साहस है निडरता है भय से मुक्त है. मेष राशि वाले आमतौर पर साहसी होते हैं और जीवन में बहुत जोखिम उठाना पसंद करते हैं. जोखिम उठाने की यह कुशलत और उन्हें कई मायनों में बेहतर परिणाम दिलाने में सक्षम हो सकती है. मेष राशि वालों में खुद का भाग्य बनाने की कलाभी होती है बस जरुरी है की वह इस बात पर ध्यान दें. 

अब जब राहु इस राशि में होता है तो वह व्यक्ति के भीतर गजब का जुनून दे सकता है. राहु वाले लोग आमतौर पर बहुत भाग्यशाली हो सकते हैं क्योंकि जोखिम उठाना उनके लिए ज्यादातर समय फायदेमंद साबित हो सकता है. इनमें उतावलापन भी होता है, पर इस कारण कुछ खराब तो कुछ अच्छे परिणाम भी प्राप्त कर सकते हैं. इनके भीतर की तीव्रता प्रेम के लिए बहुत अवसर देने वाली हो सकती है. अपनी व्यवहार कुशलता में निपुण होते हैं लेकिन क्रोध एवं जिद के चलते संघर्ष भी देखते हैं.  मेष राशि में राहु व्यक्ति को किसी भी परेशानी से खुद को बचाने का भाव भी देता है. मेष राशि में राहु आत्म-विश्वास और एक प्रगतिशील स्वभाव को प्रदान करने वाला होता है. इस राशि के लोगों में स्वतंत्र होने की इच्छा बहुत होती है. इनके भीतर कुछ नया ओर अलग कर दिखाने की चाह भी खूब होती है. अपने विचारों द्वारा दुनिया को बदल देने की चाह रखते हैं. विचारों पर टिके रहना चाहते हैं लेकिन बदलावों के चलते ऎस होना मुश्किल दिखाई देता है. 

मेष राशि में राहु के लक्षण

मेष राशि में राहु का होना व्यक्ति के भीतर कई तरह की चीजों को दर्शाता है. कुंडली में राहु का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह मेष राशि के साथ किस भाव में स्थित है. इसके अलावा अन्य ग्रहों के साथ-साथ अन्य कारकों के संबंध में इसकी स्थिति विभिन्न प्रकार के असर दिखाने वाली होती है. व्यक्ति स्वयं संचालित होता है वह दूसरों के कहे से अधिक स्वयं के द्वारा काम करना पसंद करता है. व्यक्ति अपने उद्देश्यों के लिए अत्यधिक प्रेरित होता है. जीवन का आनंद लेना पसंद करता है. जो चाहेगा उसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार रहने वाला होगा. 

मेष राशि में पहले भाव में 

पहले घर में शारीरिक बल देने वाला होगा. धनवान बना सकता है. रोमांटिक संबंध कमजोर हो सकते हैं. क्रूर प्रवृत्ति दे सकता है ओर विवाद में अधिक उलझा सकता है. जीवन में कठोर कार्यों रोमांच में अधिक शामिल रख सकता है. 

मेष राशि में दूसरे भाव में 

आर्थिक रुप से खर्चों की अधिकता देता है. घर से दूर ले जा सकता है. परंपराओं से अलग कर सकता है. चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत देने वाला होता है.  

मेष राशि में तीसरे भाव में 

तीसरा घर भाई-बहनों, साहस और साहित्यिक कार्यों का प्रतीक है इस घर में राहु का मेशः में होना साहसिक बनाता है. भाई बहनों के साथ विवाद या अलगाव दे सकता है. दृढ़ निश्चयी और आत्मविश्वासी बनाता है. 

मेष राशि में चौथे भाव में 

यहां राहु पारिवारिक संबंधों में कष्ट दे सकता है. घर से दूर जाने और निवास बनाने वाला हो सकता है. सुख में सदैव किसी न किसी कारण से कमी को दर्शाने वाला होता है. 

मेष राशि में पांचवें भाव में 

मेष राशि में पांचवें घर में राहु व्यक्ति को चतुर और आप बुद्धिमान बनाता है. उत्सुक शिक्षार्थी की तरह हर चीज को समझने जानने की इच्छा उसमें रहती है. 

मेष राशि में छठे भाव में   

छठे में मेष राशि में बैठा राहु साहसी बनाता है. व्यक्ति कई शत्रुओं का सामना करने में सक्षम होता है. विजयी भी होता है. स्वास्थ्य समस्याएं देता है लेकिन सुधार भी देता है. 

मेष राशि में सातवें भाव में 

मेष राशि में सप्तम भाव पर राहु  जीवनसाथी, वैवाहिक सुख को कमजोर कर सकता है. अतिरिक्त यौन संबंधों को प्रदान करने वाला होता है. 

मेष राशि में आठवें भाव में

शारीरिक या मानसिक रूप से परेशानी दे सकता है. संतान का सुख प्रभावित करता है. रोग प्रभाव डाल सकते हैं. 

मेष राशि में नवम भाव में 

नवम भाव में मेष राशि में बैठ कर निड़र बनाता है. धर्म के विपरित काम करवा सकता है. नैतिकता के प्रति अलग सोच देता है. भाई बंधुओं से विवाद दे सकता है. 

मेष राशि में दशम भाव में 

राहु का मेष राशि में दसवें घर में होना पिता के सुख को प्रभावित कर सकता है. करियर और प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है. मेहनती और निडर बनता है. 

मेष राशि में एकादश भाव में 

एकादश भाव में मेष राशि में राहु का होना लाभ, आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायक होता है. मित्रता का प्रतीक बनता है. 

मेष राशि में बारहवें भाव में 

बारहवां भाव में मेष राशि में होने पर हानि, दुर्भाग्य का प्रतीक बन सकता है. कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. 

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ज्योतिष अनुसार जानें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता

ज्योतिष अनुसार स्वास्थ्य के विषय में कई तरह के मुद्दों को समझ पाना संभव होता है. यदि सेहत अच्छी हो तो व्यक्ति एक लम्बी आयु का सुख अच्छे स्वास्थ्य के रुप में देख पाता है. स्वास्थ्य ही धन है, अच्छे स्वास्थ्य के बिना, कुछ भी स्वस्थ नहीं हो सकता. ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे ग्रह हैं जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं तो कुछ ऎसे ग्रह है जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा बनाने में सक्षम होते हैं. कई बार सेहत में लम्बे समय तक उप्चार पश्चात भी जब स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता है तो ऎसे समय में ज्योतिषीय परामर्श लेना अनुकूल रहता है. 

रोग प्रभावित भाव 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों के साथ साथ भाव की स्थिति भी बहुत विशेष होती है. कुंडली में दूसरा भाव, तीसरा भाव, छठा भाव, आठवां भाव, सातवां भाव, एकादश भाव और बरहवां भाव रोग की स्थिति को दर्शाने वाला होता है. इस भाव के अधिपति एवं इसमें बैठे ग्रहों की दशाओं में रोग से संबंधित परेशानियों से प्रभावित होने की स्थिति अधिक प्रभावी दिखाई देती है. एक राशि और कुंडली में स्थिति के अनुसार ग्रह काम करते हैं. भाव के साथ ग्रह का संबंध प्राप्त होने वाली परिस्थितियों को दर्शाने वाला होता है. कुंडली में एक बाधक या अशुभ ग्रह स्वभाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है.  

स्वास्थ्य समस्या का निदान विशेष रूप से ग्रहों के स्वभाव से होता है. उदाहरण के लिए शुभ ग्रह अगर कुंडली में किसी ऎसे भाव स्थान में हो जहां उसके लिए स्थिति अनुकूल नहीं है, तो ग्रह की शुभता कमजोर हो सकती है. जिसका असर स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसे हम किसी कुंडली के अनुसार भी समझ सकते हैं कर्क लग्न में बृहस्पति शुभ है और भाग्य भी है लेकिन गुरु छठे भाव का स्वामी भी है ओर लग्नेश के साथ गुरु का होना जहां शुभ योग बनाएगा वहीं वह स्वास्थ्य के लिए परेशानी भी देगा. इस स्थिति में गुरु काफी संघर्षपूर्ण समय दे सकता है.  व्यक्ति सर्दी-खांसी जैसे रोगों से जल्द प्रभावित हो सकता है. 

इसी प्रकार कुंडली में जब दूसरे भाव में कोई ग्रह न हो तो जो ग्रह दूसरे भाव के स्वामी के साथ स्थित होता है वह अपनी दशा में जातक को मार सकता है, स्वास्थ्य संबंधी चिंता जानने के लिए किसी ग्रह का गोचर भी बहुत महत्वपूर्ण है, आम तौर पर, लग्नेश का गोचर जीवन के सभी क्षेत्रों में अच्छे परिणाम देता है जैसे स्वास्थ्य और पाप ग्रहों का गोचर उनके गोचर के दौरान समस्याएं और बीमारी देता है. आठवा भाव जीवन शक्ति और जीवन काल का प्रतिनिधित्व करता है, इस घर के स्वामी का स्थान लंबी उम्र के लिए मजबूत होना चाहिए, लेकिन बेहतर और स्वस्थ जीवन के लिए यह स्थान बुरे प्रभावों से मुक्त भी होना चाहिए. छठा घर ऋण, बीमारी और कर्ज के लिए जाना जाता है, यदि इस घर के स्वामी की स्थिति कमजोर हो और उसका प्रभाव कम हो तो यह जीवन और स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, आम तौर पर यह माना जाता है कि छठे भाव में पाप ग्रह की स्थिति स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है,

मेष राशि

मेष राशि का स्वास्थ्य एक अच्छी श्रेणी में आता है. इस राशि का स्वामी मंगल होता है और इन लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता अच्छी होती है. लेकिन यह दुर्घटनाओं से प्रभवैत होने वाली राशि है जो जोखिम की स्थिति को बताती है.  इस राशि के लोगों को सिर, दिमाग और चेहरे के रोग होने की संभावना रहती है, गंजापन, शारीरिक और मानसिक तनाव की संभावना है, जिससे सिरदर्द, माइग्रेन और स्ट्रोक जैसी परेशानी अधिक हो सकती है.

वृष राशि 

वृष राशि वालों को जल तत्व से संबंधित रोग अधिक प्रभावित कर सकते हैं. इस राशि केवालों को गर्दन, कान और गले से संबंधित रोग होने की संभावना है. सर्दी-खांसी, गले में खराश और कानों में परेशानी होने की संभावना अधिक बढ़ सकती है. संक्रमण रोगों के होने का भी खतरा अधिक बढ़ सकता है. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि वालों के लिए त्रिदोष की समस्या रहती है. इस राशि के लोगों को फेफड़े, कंधे, हाथों-बांहों में परेशानी हो सकती है. सर्दी और खांसी के अलावा तंत्रिका का भी खतरा रहेगा, इस राशि में चिंता, अनिद्रा और नसों से संबंधित समस्याएं भी परेशानी दे सकती है.    

कर्क राशि 

इस राशि में जल तत्व की प्रकृति अधिक होती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को छाती के रोगों का खतरा अधिक होता है. ब्रेस्ट और पेट से जुड़ी समस्याएं भी जल्द प्रभाव  होती हैं. चंद्रमा मन का कारक होता है. यह हमारी सभी मानसिक अनुभूतियों पर असर डालता है जल तत्व से युक्त है इस कारण जल से उत्पन्न होने वाले रोग भी इसके प्रभाव के चलते अधिक प्रभाव डाल सकते हैं. अवसाद और भावनात्मक असंतुलन जैसे मानसिक मुद्दे भी कर्क राशि वालों को प्रभावित करते हैं. क्षय रोग मधुमेह की स्थिति, भोजन एवं जल संबंधी विषाक्तता भी सेहत को कमजोर करने वाली होती है. 

सिंह राशि 

सिंह राशि अग्नि प्रधान राशि है. इस राशि के प्रभाव का भी रोग प्रतिरोधक क्षमता में बेहतर होता है. इस राशि वालों को विशेष रुप से पित्त प्रकृत्ति की अधिकता के कारण परेशानी हो सकती है. हृदय, पीठ और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गैस्ट्रिक समस्या ओर रक्त संबंधी रोग कष्ट दे सकते हैं. उच्च रक्तचाप, धमनियों का अवरुद्ध होना और दिल की धड़कन का अनियमित होना, ज्वर, शरिर में जलन जैसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि वालों को संक्रमण एवं जल से संबंधित रोग अधिक परेशान कर सकते हैं. स्नायु तंत्र की दिक्कत रह सकती है. माइग्रेन की स्थिति थाइराइड का प्रभाव भी रह सकता है. इस राशि के लोगों को पेट और आंतों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अक्सर अपने वजन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा अल्सर, एसिडिटी और कब्ज जैसी पेट की समस्याएं भी परेशानी देने वाली होती हैं. 

तुला राशि 

तुला राशि के लोगों के लिए स्थिति कई तरह के असर दिखाने वाली होती है. संक्रमण से संबंधित रोग परेशानी दे सकते हैं. गुर्दे, अधिवृक्क ग्रंथियों और त्वचा के रोग समस्या दे सकते हैं. पेट के रोग ओर कफ की समस्या भी परेशानी दे सकती है. कब्ज का सामना करना पड़ सकता है, मूत्राशय, मलाशय, जननांग, अंडाशय और वृषण के रोग इन्हें बहुत परेशान कर सकते हैं. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि वालों की रोगों से लड़ने की अच्छी क्षमता देखने को मिलती है. गुप्त रोग, यौन संक्रमण, रक्त संबंधी विकार परेशानी दे सकते हैं. पेट के रोग. गैस की शिकायत, दुर्घटनाओं की संभावना भी इनकी सेहत को प्रभावित कर सकती है. 

धनु राशि 

धनु राशि वालों की भी रोगों से लड़ने कि अच्छी क्षमता होती है. इन लोगों को अपने पैरों को लेकर दिक्कत रह सकती है.  घुटनों एवं जोड़ों के दर्द की शिकायत कर सकते हैं. इस राशि के लोगों को कूल्हे, जांघों और दृष्टि से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. नेत्र रोगों के अलावा कुछ पित्त की अधिकता से उत्पन्न होने वाले रोग भी अपना असर डालते दिखाई देते हैं. दुर्घटनाओं का असर भी अधिक रहता है. दृष्टि खराब होने से दुर्घटना हो सकती है,

मकर राशि

मकर राशि वालों के लिए हड्डियों, घुटनों, दांतों, त्वचा और जोड़ों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक रह सकती है. मकर राशि वालों को गैस्ट्रिक की परेशानी रह सकती है. हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं. माइग्रेन एवं दिमागी रोग परेशान कर सकते हैं. वात की अधिकता का प्रभाव रहता है. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि के लोगों को वात कफ की समस्या हो सकती है. पैरों के निचले हिस्से और टखनों में परेशानी होने की संभावना भी अधिक रह सकती है. जोड़ों के रोगों का असर भी पड़ सकता है. स्नायु तंत्र की समस्या भी प्रभावित कर सकती है. नसों से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है,

मीन राशि 

मीन राशि वालों को गैस्ट्रिक समस्या, पेट के रोग अधिक परेशानी देने वाले हो सकते हैं. इनकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता कुछ कमजोर अधिक दिखाई दे सकती है. पैरों के रोग भी उभर सकते हैं. कफ की अधिकता, माइग्रेन, रक्त के विकार परेशानी दे सकते हैं. 

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मंगल के आत्मकारक होने पर क्या मिल पाती है सफलता

जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह कुंडली में का विशेष ग्रह होता है जो अपने प्रभाव द्वारा कुण्डली के फलों को बदल देने में काफी सक्षम होता है. आत्मकारक ग्रह एक प्रकार से कुंडली में सभी ग्रहों को अपने द्वारा प्रभावित करता है. आत्मकारक ग्रह यदि शक्ति संपन्न होगा और शुभ होता तो उसके असर द्वारा कुंडली की हर स्थिति अपनी विशिष्ट स्थिति के अनुसार असर दिखाएगी. अगर इस आत्मकारक भूमिका में मंगल को स्थान मिलता है तो मंगल कुंडली में मजबूत ग्रह बनेगा. यह कुंडली की आत्मा के सरीखा काम करने वाला होगा. कुंडली को विशेष बल इसी के द्वारा प्राप्त होगा. 

कुण्डली में की स्थिति को जीवन में साहस एवं पराक्रम की शक्ति के रुप में देखा जाता है. ज्योतिष अनुसार हर ग्रह अपने प्रभव में जीवन के उस पक्ष पर असर डालता है जो जीवन को संपूर्णता प्रदान करने में सहायक बनता है इसी क्रम में मंगल भी अपना विशेष असर डालता है. मंगल हमें जीवन में वो शक्ति प्रदान करता है जिसके द्वारा हम अपने फैसलों को आगे ले जाने में सफल होते हैं. मंगल की शक्ति का असर इतना व्यापक है की यह शक्ति के द्वारा विजय दिलाने में सक्षम है तो तर्क की कुशलता से स्थिति को बदल देने में भी सक्षम होता है. 

मंगल किसी कुंडली में शक्ति, साहस, ताकत की सामर्थ्यता को दिखाने का काम करता है. अगर भाग्य को बदल देने का सामर्थ्य किसी में हो तो मंगल ग्रह हमेशा उसमें अपना योगदान देने वाला ग्रह होता है. यह साहस और शक्ति देता है. यह ग्रह, ऊर्जा, गतिविधि, स्वतंत्रता और संगठनात्मक कौशल की निर्णायकता के लिए जिम्मेदार माना जाता है. मंगल छोटे भाई बहनों का कारक होता है. यह कामुकता और यौन शक्ति के लिए भी विशेष बनता है. मंगल विभिन्न दुर्घटनाओं, चोटों और झटकों का कारण भी बनता है. यह विभिन्न प्रकार की तीक्ष्ण वस्तुओं और रक्त को दर्शाता हैं. यह युद्ध और शत्रुता के लिए मुख्य होता है. शरिर में रक्त, मूत्राशय, जननांग क्षेत्र और मांसपेशियां भी इसके अधिकार क्षेत्र में आती हैं.

आत्मकारक मंगल का करियर पर असर 

ज्योतिष अनुसार मंगल शुष्क और उग्र स्वभाव वाला ग्रह है. मंगल यदि आत्मकारक होकर अनुकूल है तो यह व्यक्ति को कई कार्यों में अच्छे परिणाम दिलाने में सहायक हो सकता है. मंगल यदि काफी मजबूत है तो ऎसे काम में जोड़ सकता है जहं शक्ति एवं साहस का प्रदर्शन होगा. प्रबंधन के कामों किसी दल का नेतृत्व करने में या सक्रिय रूप से कार्य करना इसके गुण का प्रभाव होगा. सेना, पुलिस, एथलीट, अग्निशामक, मंत्रालय, स्टंटमैन, सर्जन, लोहार, धातुओं के साथ संबंध, कसाई, रसोइया और खाना पकाने से जुड़ी हर चीज, मैकेनिक, सर्विस स्टेशन, बिल्डर, अचल संपत्ति के कामों, वास्तु विशेषज्ञ के काम, तकनीक से जुड़े काम, बिजली के काम, केमिस्ट और सर्जन भी बना सकता है. एथलीट के रुप में प्रसिद्धि भी दिला सकता है. एक अनुकूल और अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत उदार हो सकता है.लेकिन जब वह अपना आपा खो देता है तो उसे नियंत्रण में कर पाना असंभव हो जाता है.

आत्मकारक मंगल का प्रभाव ज्योतिष में प्रभाव

आत्मकारक मंगल यदि अपनी उच्च अवस्था में है अपनी प्रबल राशि में स्थित है तो ऎसे में यह कुंडली के कई तरह के प्रभाव में बदलाव को दिखाने वाला होता है. व्यक्ति में उग्रता अधिक दिखई देगी. वह अधिक क्रोधि एवं जिद्दी हो सकता है. ऎसे में जरुरी है कि व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए, मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. किंतु यदि व्यक्ति अधिक उत्साहित होगा तो जोखिम भरे कामों में शामिल होकर काम करने में आगे रहेगा ऎसे में यह स्थिति उसके लिए दुर्घटनाओं की संभावना में भी वृद्धि करने वाली होगी. 

व्यक्ति में ऊर्जा स्तर काफी अधिक होता है, यह शरीर में हड्डियों के अंदर पदार्थ जिसे अस्थि मज्जा कहा जाता है उस पर नियंत्रण रखता है. कुंडली में मंगल बली हो तो व्यक्ति अपनी उम्र से छोटा दिखेगा, मंगल एक क्रूर ग्रह है, आक्रामक भी है और आसानी से हार नहीं मानता है. ऎसे में वह ज्यादा सोचने का समय भी नहीं देता है. वह केवल क्रिया की प्रतिक्रिया में अधिक विश्वस रखना चाहेगा. 

व्यक्ति को मिलती है विजय की गारंटी

आत्मकारक मंगल के रुप में उच्च स्थिति का शुभस्थ मंगल विजय दिलाने वाला होता है. माना जाता है कि मंगल व्यक्ति को सफलता दिलाने की क्षमता प्रदान करता है, आत्मकारक मंगल की उपस्थिति के कारण व्यक्ति में हर लड़ाई जीतने की प्रबल इच्छा होती है. व्यक्ति अपनी ताकत का प्रदर्शन साबित करने में भी काफी सफल होता है. आत्मकारक मंगल वाले लोग महान योद्धा के रुप में उभर सकते हैं. अपने कार्यों को जल्द से करना और जल्द से जल्द निर्णयों तक पहुंचना ही उसका उद्देश्य भी होता है. आत्मकारक मंगल के मजबूत होने पर व्यक्ति ऎसे कार्यों में अधिक शामिल रहता है जहां शक्ति का प्रदर्शन हो तथा स्वतंत्रता पूर्वक फैसलों को लिया जा सके. 

आत्मकारक होने पर मंगल का प्रभाव व्यक्ति को निडर, ऊर्जावान और आज्ञाकारी भी बनाता है. मंगल ऊर्जा का एक ग्रह है जो एक अच्छे आत्म सम्मान से भरे जीवन को जीने के लिए बहुत आवश्यक होता है. यह जीवन के प्रति एक बहुत ही स्वस्थ और सहज दृष्टिकोण रखता है, कुंडली में शुभ तरह से स्थित मंगल किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक बल प्रदान करता है चाहे वह खेल हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि. आत्मकारक मंगल अच्छी शिक्षा का मौका भी देता है. व्यक्ति में आत्मबल काफी होता है वह दूसरों पर निर्भर और किसी प्रकार की शारीरिक सुरक्षा नहीं चाहता है. आत्मकारक मंगल व्यक्ति के भीतर नेतृत्व का बेहतरीन गुण विकसित करता है. व्यक्ति में समाज को बदलने की क्षमता होती है. 

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शुक्र ग्रह का नकारात्मक एवं खराब प्रभाव क्यों है इतना घातक

शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार देना एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थितो है. शुक्र के खराब होने के बुरे प्रभावों को जानकर यह समझ पाना इसके मिलने वाले फलों को दिखाने वाला होता है. यह भी पता होना चाहिए कि शुक्र ग्रह का इतना महत्व क्यों रखता है. 

शुक्र बृहस्पति के पश्चात सबसे शुभ ग्रह है. किसी भी व्यक्ति के लिए, यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह भौतिक वस्तुओं, आनंद और विलासिता के सुख को देता है, बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी गुरु की उपाधी प्राप्त है. यह इच्छाओं और व्यसनों पर नियंत्रण और अधिकार रखता है. शुक्र प्रेम, ग्लैमर और संतुष्टि को दिलाने वाला ग्रह है. शुक्र एक चमकीला, स्त्री गुणों से भरपूर ग्रह है. प्रेम, विवाह, सौंदर्य और हर प्रकार के सुख का आधार इसे माना जाता है. शुक्र की अवधि भी लम्बी होती है अपनी महादशा में यह बीस वर्षों तक अपना असर दिखाता है. किसी कुण्डली में शुक्र अनुकूल स्थिति में है तो उसकी दशा में जीवन में प्रचुरता, आनंद और आराम जरुर मिलता है. शुक्र ग्रह कुंडली में स्त्री पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. सप्तम भाव का कारक होता है जो विवाह और व्यापारिक साझेदारी का भाव भी होता है, यदि कुंडली में शुक्र  खराब होगा तो यह एक असफल विवाह और प्रेम संबंध देने वाला होगा. 

शुक्र का प्रभाव किसी के जीवन में उसके आत्मविश्वास, भावनात्मक सुरक्षा और आंतरिक खुशी के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार माना गया है.  यदि बाहरी आत्मविश्वास के लिए सूर्य जिम्मेदार है तो आंतरिक आत्मविश्वास के लिए शुक्र का प्रभाव अत्यंत विशेष हो जाता है. शुक्र जीवन में आंतरिक भावनात्मक सुरक्षा के लिए विशेष होता है. शुक्र बताता है कि हम खुद से कितना प्यार करते हैं और कितनी नफरत. इसलिए शुक्र व्यक्ति के जीवन में आंतरिक शांति और अशांति के लिए विशेष ग्रह बन जाता है. जिस प्रकार चंद्रमा का असर मन को आंदोलित करता है उसी प्रकात शुक्र का असर व्यक्ति की भीतरी सजगता उसकी अभिव्यक्ति पर अपना असर डालता है. 

जब जीवन आपको नीचे गिराता है, तो शुक्र का प्रभाव ही है जो आपको वापस लड़ने का बल देता है. आंतरिक विश्वास इसी से मिलता है. यह शुक्र ग्रह जीवन का वास्तविक सुख देता है. शुक्र ही भीतर की बुरी भावनाओं को दूर करने के लिए जिम्‍मेदार है. हम जैसे हैं वैसे ही खुद को प्यार करने के लिए शुक्र ही भाव देता है. बाहरी नकारात्मकता से प्रभावित हुए बिना जीवन में सफलता की राह पर बढ़ने के लिए जितनी आसानी से नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकते हैं वह हमें शुक्र से प्राप्त होती हैं. 

शुक्र के शुभ और अशुभ असर का भावनात्मक रुप से प्रभाव  

शुक्र इतना मजबूत है कि वह व्यक्ति को काफी समझदार एवं बौद्धिक बनाता है. किसी भी प्रकार के नकारात्मक असर को व्यक्ति आसानी से अपने ऊपर हावि नहीं होने देगा यदि शुक्र कुंडली में मजबूत है. शुक्र के मजबूत होने पर व्यक्ति का भावनात्मक संतुलन बहुत मजबूत होता है. किसी भी प्रकार का भावनात्मक प्रदर्शन व्यक्ति को आसानी से अपने जाल में नहीं फंसा सकता है. यह शुक्र की वास्तविक शक्ति है. सूर्य एक प्रकार का शुद्ध अहंकार है. लेकिन शुक्र के द्वारा इसके भी दो पक्ष दिखाई दे सकते हैं. शुक्र अगर खराब है तो बाहरी आत्मविश्वास तो बहुत होता है लेकिन अंदर से असुरक्षित अनुभव किया जा सकता है. ऎसे व्यक्ति की कमजोरी भी आसानी से नजर नहीं आती है. एक मजबूत शुक्र द्वारा ही नकारात्मक भावनाओं से अप्रभावित रहने में सहायता मिल सकती है. एक मजबूत शुक्र वाला व्यक्ति जीवनसाथी को अपने स्वाभिमान से धोखा नहीं देने देता है, लेकिन जब शुक्र भावनात्मक सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त रूप से स्थिर नहीं है, तो व्यक्ति अन्य संबंधों की तलाश करना चाहते हैं,

शुक्र खराब होता है तो इसके विपरित असर दिखाता है. आत्मविश्वास की कमी देखने को मिल सकती है. कोई भी व्यक्ति आपको आसानी से भावनात्मक चोट पहुंचा सकता है. अपने दिल में एक बड़ा भावनात्मक बोझ लेकर चल सकते हैं. नकारात्मकता से इतनी आसानी से प्रभावित हो जाते हैं की स्वयं को व्यक्ति बहुत अधिक असुरक्षित महसुस कर सकता है.  दोस्ती, रोमांटिक रिश्तों और आस-पास के माहौल को लेकर असुरक्षित महसूस कर सकता है. खराब शुक्र इतना मजबूत नहीं है कि खुशी का एहसास करा सके, खराब शुक्र बहुत खराब मिजाज देता है, रोमांस में असुरक्षितता बेवफाई की ओर ले जा सकता है. हेराफेरी करवा सकता है. 

शुक्र के नकारात्मक पक्ष में कई तरह की स्थितियां देखने को मिल सकती हैं. 

शुक्र का असर यदि नकारात्मक रुप से दिखाई देने लगे तो यह विष की भांति कार्य करने वाला होता है.  शुक्र के विषैले प्रभाव द्वारा व्यक्ति में न केवल असुरक्षित भावनात्मक स्थिति होती है अपित गलत चीजों के प्रति आकर्षण भी होता है. जीवन में असंतुलित हो सकते हैं. व्यक्ति दूसरों की पीठ में छुरा घोंपने की हद तक चला जा सकता है. ऐसा इस कारण से भी होता है क्योंकि शुक्र की कुछ बातें व्यक्ति को अपने बारे में इतना हीन महसूस कराती हैं, कि वह ईर्ष्या से बाहर दूसरों के साथ कुछ बुरा करके दूसरों की खुशियों को नष्ट करने की चाह रखेगा. खराब शुक्र व्यक्ति को खुशी और भावनात्मक स्थिरता और भाग्य से वंचित कर देने वाला होता है. कमजोर निर्बल पाप प्रभावित शुक्र व्यक्ति में इतनी नकारात्मकता भर सकता है कि वह दूसरों के सुख से ईर्ष्या करने वाला बना सकता है. ऎसे में व्यक्ति हर ओर व हर जगह नफरत उगलते दिखाई दे सकता है. यह जीवन के कई पहलूओं पर दिखाई देसकता है. 

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