कुंभ लग्न जो अपने आप में एक व्यापक और विस्तृत रुप से सामने आता है. कुंभ लग्न शनि के प्रभाव का लग्न है यह लग्न जीवन के लाभ क्षेत्र पर विशेष असर दिखाने वाली होती है. मस्तमौला और गहरी विचारधारा सोच को लेकर इसकी अलग ही दिशा होती है. शनि के लिए कुम्भ मूलत्रिकोण राशि भी है जहां शनि भी आकर अपने लग रुप में निखार पाता है. किसी भी लग्न के लिए तीसरे, छठे, आठवें और द्वादश भाव के स्वामी अशुभ होते हैं. केन्द्र स्थान और त्रिकोण शुभ होते हैं. इसी आधार पर सभी ग्रहों की स्थिति को इसके द्वारा जान पाना विशेष होता है.यदि आपका जन्म कुम्भ लग्न में हुआ है तो आइए देखें कि ग्रह कुंडली को किस प्रकार प्रभावित करते हैं.
कुम्भ लग्न में सूर्य
कुम्भ लग्न की कुण्डली में सूर्य सातवें भाव का स्वामी होता है. इसे केंद्र भाव में रखने से शुभ फल मिलते हैं. कुम्भ लग्न में सूर्य व्यक्ति को सुंदर और आकर्षक बनाता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जीवनसाथी सहयोगी और सुंदर रह सकता है, लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए कभी-कभार विवाद हो सकता है. इस स्थिति में सूर्य व्यक्ति को व्यवसाय में सफल बनाने में सहायक बनता है, और उसे एक स्थिर आर्थिक स्थिति देने में सहायक होता है. व्यक्ति को मित्रों की मदद करने का सौभाग्य मिल सकेगा और भागीदारों से सक्रिय सहयोग मिल सकता है.
कुम्भ लग्न में चन्द्रमा
कुम्भ लग्न की कुण्डली में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी होने के कारण अशुभ हो जाता है. प्रथम भाव में स्थित चंद्रमा के कारण व्यक्ति सर्दी, खांसी और पाचन संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है. यह एक अस्थिर और अशांत स्वभाव भी देता है. परिवार में विवाद और लड़ाई-झगड़ा हो सकता है. चंद्रमा की दृष्टि सूर्य की स्वराशि सिंह पर है जो सप्तम भाव में है. इस के कारण जीवनसाथी सुंदर और आत्म निर्भर हो सकता है.
कुम्भ लग्न में मंगल
कुम्भ लग्न की कुण्डली में मंगल तीसरे और सप्तम भाव का स्वामी होता है. कुम्भ लग्न में मंगल अशुभ फल देता है. इस लग्न में मंगल के कारण व्यक्ति अत्यंत बलवान और कठोर होता है. ये लोग बहुत बहादुर होते हैं और अपने सामने आने वाली किसी भी कठिनाई का मुकाबला करने और उसे दूर करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे. पिता का पूरा सहयोग इन्हें प्राप्त होता है. समाज में उनका सम्मान होता है. गुस्सैल स्वभाव के कारण ये झगड़ों में पड़ सकते हैं.
कुम्भ लग्न में बुध
कुम्भ लग्न की कुण्डली में बुध पंचम भाव और अष्टम भाव का स्वामी होता है. बुध आठवें भाव का स्वामी होने के कारण इसका अशुभ प्रभाव होता है. लग्न में इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और ज्ञानी होता है. शिक्षा के क्षेत्र में उसे सफलता प्राप्त होगी. व्यक्ति दूसरों को शब्दों से प्रभावित करने की शक्ति देता है. व्यक्ति को जल के प्रति स्वाभाविक प्रेम होगा और वह नाव की सवारी और पानी की यात्रा करना पसंद कर सकता है. अष्टमेश बुध को रोग कारक कहा गया है, बुध की दशा अवधि में व्यक्ति को मानसिक समस्याएं हो सकती हैं. बुध ज्ञान एवं दर्शन को जानने की जिज्ञासा भी प्रदान करने वाला होता है.
कुम्भ लग्न में बृहस्पति
कुम्भ लग्न की कुण्डली में बृहस्पति दूसरे और एकादश भाव का स्वामी बनता है. इस लग्न में बृहस्पति अनुकूल नहीं माना गया है. इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और शिक्षित होता है. गुरु का प्रभाव अगर लग्न में हो इसके लग्न में होने के कारण व्यक्ति आत्मविश्वासी और आत्म निर्भर हो सकता है. मन: स्थिति अस्थिर और अस्थिर होगी. इन्हें संगीत और गायन में रुचि होती है. आमतौर पर अच्छे वक्ता हो सकते हैं. धन बचाने की कला में माहिर होते हैं और इस वजह से इन्हें कभी भी किसी आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.
शुक्र कुम्भ लग्न में लग्न में
कुम्भ लग्न की कुण्डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी है. शुक्र इस लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर महत्वपूर्ण शुभ प्रभाव देता है. इस लग्न में शुक्र की उपस्थिति के कारण व्यक्ति सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व का होता है. व्यक्ति चतुर और गुणी हो सकता है और शिक्षा और अध्ययन में इनकी गहरी रुचि हो सकती है. पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में इनकी रुचि रह सकती है. मित्रों से स्नेह और सहयोग मिल सकता है. भूमि, वाहन और मकान की प्राप्ति हो सकती है. शुक्र सातवें भाव का स्वामी होने के कारण यह सिंह राशि पर दृष्टि डालता है जिससे वैवाहिक जीवन में अधिक सुख नहीं आ पाता है. जीवन साथी से अनबन हो सकती है. भौतिक सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.
कुम्भ लग्न में शनि
कुम्भ लग्न में शनि लग्न और बारहवें भाव का स्वामी बनता है. शनि का प्रभाव व्यक्ति को धीर गंभीर बनाता है. शनि अपनी राशि में जातक को निरोगी काया प्रदान करता है. यह व्यक्ति को आत्मविश्वासी बनाता है. वह अपने स्वभाव और आत्म निर्भरता के कारण समाज में सम्मान प्राप्त करने में सक्षम होगा. शनि का असर व्यक्ति को बहुत से मामलों में आगे बढ़ने की हिम्मत देता है. कार्यों को करने में मेहनती होता है. अपने एवं आस पास के लोगों के साथ उसका सहयोग काफी रह सकता है.
राहु – केतु कुम्भ लग्न
राहु केतु का प्रभाव कुंभ लग्न के जिस भाव स्थान में होगा उसका असर व्यक्ति को देखने को मिल सकता है. लग्न में राहु की उपस्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करती है. राहु की महादशा में पेट से संबंधित समस्या होने की संभावना बनती है. व्यापार में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इन लोगों के लिए व्यवसाय से बेहतर नौकरी है. राहु की दृष्टि सातवें भाव में स्थित सूर्य की राशि सिंह पर है. शत्रु ग्रह की राशि पर राहु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों में कमी लाती है. साझेदारी से कोई लाभ मिलने की संभावना कम ही देखने को मिल सकती है.
गुप्त कलाओं और अध्ययन में इनकी रुचि रह सकती है. आत्मविश्वास की कमी के कारण इन्हें अपना निर्णय लेने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. केतु कुम्भ लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर अस्थिरता देता है. इस युति वाले लोगों की विशेष रुचि विपरीत लिंग के लोगों में होती है. कई प्रेम संबंध हो सकते हैं और यह विलासिता का आनंद लेना पसंद करते हैं. माता-पिता से अनबन हो सकती है. सप्तम भाव पर केतु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों को कम करती है. व्यक्ति का अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध परिवार में कलह उत्पन्न करता है. केतु या किसी दृष्टि के साथ शुभ ग्रहों की युति हो तो केतु का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है.