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मंगल का आर्द्रा नक्षत्र में जाना दो शक्तिशाली तत्वों का एक साथ होने का योग बनता है. आर्द्रा नक्षत्र में मौजूद होने के कारण मंगल व्यक्ति को कड़ी मेहनत करके लाभ प्राप्त करने की शक्ति, देता है. आर्द्रा नक्षत्र परिवर्तन और
कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके
शादी से पहले कुंडली मिलान करने के कारण जिनसे विवाह में नही आती बाधाएं ज्योतिष शास्त्र में एक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने में मदद मिलती है. इसी में एक महत्वपूर्ण चीज विवाह भी है. विवाह एक ऎसा संस्कार है जो
ज्योतिष शास्त्र विज्ञान पर आधारित शास्त्र होता है. इन्हीं पर आधारित होता है हमारे जीवन का सभी फल इसी में एक तथ्य नाड़ि ज्योतिष से जुड़ा है. नाड़ी दोष विशेष रुप से कुंडलियों के मिलान के समय पर अधिक देखा जाता है. नाड़ी का
मृ्गशिरा नक्षत्र को किसान नक्षत्र कहा जाता है. सरल शब्दों में उसे हिरनी या खटोला भी कहा जाता है. राशिचक्र को 27 समान भागों में विभाजित करने के बाद बाद 27 नक्षत्रों बनते है. इनमें से प्रत्येक नक्षत्र 13 अंश और 20 मिनट का
उत्तराषाढा नक्षत्र 21 वां नक्षत्र है, तथा इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में कृ्तज्ञता की भावना विशेष रुप से पाई जाती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति धार्मिक आस्था के होते है. इन्हें धर्म क्रियाओं में विशेष आस्था
विवाह करने से पूर्व वर-वधू की कुण्डलियों का मिलान करते समय आठ प्रकार के मिलान किये जाते है. इस मिलान को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. इन्हीं अष्टकूट मिलान में से एक गण मिलान है. इस मिलान में वर वधु के व्यवहार और
27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी
चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मंगल ग्रह से प्रभावित होते है. इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने के कारण. 27 नक्षत्रों में से चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है. किसी भी नक्षत्र पर उसके स्वामी और नक्षत्र जिस राशि
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित 27 नक्षत्रों में से अश्विनी नक्षत्र पहला नक्षत्र है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है. केतु एक रहस्यमयी ग्रह है. अश्विनी नक्षत्र,
भरणी नक्षत्र तीन तारों के समूह से मिलकर बना है. यह तीन तारे स्त्री की योनि के आकार की तरह दिखाई देते हैं. सभी नक्षत्रों की आकृति और आकारों की तुलना पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थों से की गई है. भरणी नक्षत्र मेष राशि में
ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक कहा गया है. इसके साथ सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में
आकाश मे तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता है और भारतीय ज्योतिष में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है. नक्षत्रों की गणना प्राचीन काल से ही होती आ रही है और जिस व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसके अनुसार उसके
बच्चे के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वह उसका जन्म नक्षत्र कहलाता है. अभिजीत सहित कुल 28 नक्षत्रों का उल्लेख सभी ग्रंथों में किया गया है. जन्म नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है.
जन्म के समय जातक कई प्रकार के अच्छे योग तथा कई बुरे योग लेकर उत्पन्न होता है. उन योगों तथा दशा के आधार पर ही जातक को अच्छे अथवा बुरे फल प्राप्त होते हैं. योगों में शामिल ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आने पर ही इन योगों का फल
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है. अगर नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र की भी गणना की जाती है, तो यह 27वां नक्षत्र होता है. राशिचक्र में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की स्थिति मीन राशि में आती है. इस नक्षत्र
पूर्वाषाढा नक्षत्र को जल नक्षत्र कहा जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शुक्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव और आचार-विचार पर शुक्र का प्रभाव देखने में आता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति
विशाखा नक्षत्र ज्योतिष शास्त्र के 27 नक्षत्रों में से 16वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र के स्वामी गुरु है. गुरु का स्वामित्व होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को ज्ञान अर्जन में विशेष रुचि होती है. इस
हस्त नक्षत्र चन्द्र का नक्षत्र है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में चन्द्र के गुण स्वत: होते है. 27 नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र 13वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से बुद्धिमान प्रकृति का
सौरमण्डल के सन्दर्भ में कुछ आवश्यक बातों को आपके लिए समझना आवश्यक है. ग्रह और नक्षत्रों के विभाजन के विषय में आपने पिछले अध्यायों में जानकारी हासिल की है. इसके अतिरिक्त सौरमण्डल से जुडी़ कुछ बातों को आप और समझ लें जिनका
वैदिक ज्योतिष में 28 नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. सभी नक्षत्रों का अपना विशिष्ट महत्व है. 28 नक्षत्रों में से कोई भी नक्षत्र व्यक्ति विशेष के लिए शुभ तथा अशुभ हो सकता है. जो एक नक्षत्र किसी व्यक्ति के लिए अशुभ है वही
हिन्दू धर्म में विवाह करने से पूर्व वर-वधू दोनों की कुण्डलियों का मिलान किया जाता है. कुण्डलियों के इस मिलन को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. कुण्डली मिलान का प्रचलन उत्तरी भारत और दक्षिण भारत दोनों में ही मुख्य
11 करणों में तैतिल करण तीसरे क्रम में आता है. तैतिल करण को मिलाकर कुल 11 करण है. ज्योतिष का मुख्य भाग समझने जाने वाले पंचाग ज्ञात करने के लिए करण की गणना कि जाती है. विभिन्न कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए भी
जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के
वर-वधू की कुण्डली का मिलान करते समय मांगलिक दोष व अन्य ग्रहों दोषों के साथ साथ अष्टकूट मिलान भी किया जाता है. अष्टकूट मिलान के अलावा इसे कूट मिलान भी कहा जाता है. कूट मिलान करते समय आठ मिलान प्रकार के मिलान किए जाते है.
ज्योतिष शास्त्र मे नक्षत्रों की गणना का विधान आदिकाल से चला आ रहा है. नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति के जन्म से ही शुरू हो जाता है, और उस व्यक्ति के आचार -विचार को निर्धारित करता है. नक्षत्र के फलस्वरूप ही व्यक्ति के गुण एवं
27 नक्षत्रों की श्रृंखला में आर्द्रा नक्षत्र का स्थान छठा है. आर्द्रा से पहले मृगशिरा नक्षत्र आता है और इसके बाद में पुनर्वसु नक्षत्र आता है. आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है. यह नक्षत्र मिथुन राशि में आता है. यह
रेवती नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से सबसे अंत में आता है. यह नक्षत्र छोटे छोटे 32 नक्षत्रों से मिलकर बना है. ये 32 नक्षत्र या तारे मिलकर एक मृदंग की आकृति बनाते है. आकाश में यही मृ्दंग की आकृ्ति रेवती नक्षत्र कहलाती है.
27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान
शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहू है. 27 नक्षत्रों में से इस नक्षत्र का 24वां स्थान है. यह नक्षत्र कुम्भ राशि में आता है. इस नक्षत्र को पांच अशुभ नक्षत्रों में गिना जाता है. शतभिषा नक्षत्र काल में कोई भी शुभ कार्य शुरु करना
यह उपरत्न पीले रंग से लेकर सुनहरे रंग तक की आभा वाले रंगों में पाया जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न को देखने पर यह पुखराज का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न को पहनने की शुरुआत प्राचीन समय में ग्रीक देश से हुई
जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के
जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम बिलकुल भिन्न होता है. इस पद्धति में कुल बारह दशाएँ होती हैं जो बारह राशियों पर आधारित होती हैं. आइए सबसे पहले आप बारह राशियों के बारे में जान लें. बारह राशियाँ हैं :- (1) मेष राशि (2) वृष अथवा