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भगवान वराह भगवान विष्णु के अवतार हैं और इस शुभ दिन पर उनके भक्तों द्वारा उनकी पूजा की जाती है. यह त्यौहार बहुत महत्व रखता है विशेष रुप से दक्षिण भारत में इस पर्व का महत्व काफी खास माना गया है. इस्थ शुभ दिन पर भक्त भगवान
भुगुवारा प्रदोष किसी भी माह के त्रयोदशी तिथि के दिन यदि शुक्रवार पड़ रहा हो तो वह दिन शुक्र प्रदोष व्रत के रुप में जाना जाता है. प्रदोष व्रत विशेष रुप से भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का समय होता है. त्रयोदशी तिथि
हरियाली तृतीया हरियाली तीज अपने नाम अनुसार ही सावन के सबसे सुंदर परिदृष्य के रुप में दिखाई देती है. हरियाली तीज का त्यौहार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है. यह त्यौहार सौभाग्य एवं दांपत्य जीवन की
व्रत और त्यौहार की श्रेणी में प्रत्येक दिन और समय किसी न किसी तिथि नक्षत्र योग इत्यादि के कारण अपनी महत्ता रखता है. इसी के मध्य में आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन कोकिला व्रत भी मनाया जाता है. अषाढ़ मास में आने वाले अंतिम
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को "वरद कुंद चतुर्थी" के रुप में मनाया जाता है. वैसे यह चतुर्थी अन्य नामों से भी जानी जाती है. जिसमें इसे तिल, कुंद, विनायक आदि नाम भी दिए गए हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन
पौष माह की पूर्णिमा को शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है. शक्ति के अनेक अवतारों में से एक अवतार शाकंभरी माता का भी है. देवी दुर्गा के भिन्न-भिन्न अवतारों में से एक शांकंभरी अवतार सृष्टि के कल्याण और सृजन हेतु होता है. माता
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि श्री पंचमी का पर्व मनाया जाता है. पंचमी तिथि के दिन लक्ष्मी जी को "श्री" रुप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को "श्री"का स्वरुप ही माना गया है. दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में यम को मृत्यु का देवता बताया गया है. यम जिन्हें यमराज व धर्मराज के नाम से भी पुकारा जाता है. वेद में भी यम वर्णन विस्तार रुप से प्राप्त होता है. यमराज, का वाहन महिष है अर्थात भैसा. भैंसे पर
ज्योतिष शास्त्र में पंचाग गणना अनुसार माह की 30वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. इस समय के दौरान चंद्रमा और सूर्य एक समान अंशों पर मौजूद होते हैं. इस तिथि के दौरान चंद्रमा के प्रकाश का पूर्ण रुप से लोप हो जाता है अर्थात
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 23 नवंबर 2024 को भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. भैरव को भगवान शिव का ही एक रुप माना जाता है और भैरव शिव के अंशावतार हैं. भैरव का जन्म
कार्तिक मास की 30वीं तिथि को “कार्तिक अमावस्या” के नाम से मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व रहता रहा है. प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या किसी न किसी रुप में कुछ खास लिए होती है. हर महीने में एक
कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना
कुबेर देव का पूजन करना जीवन में शुभता और आर्थिक समृद्धि को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा को विशेष रुप से दिपावली के समय पर किया जाता है. कुबेर जी को धनाध्यक्ष और अपार धन दौलत का स्वामी माना गया है. यह धन के देवता
कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन विश्वकर्मा पुजन होता है. इस उत्सव पर निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा का पूजन होता है. मान्यता अनुसार विश्वकर्मा पूजन के दिन सभी प्रकार की मशीनों, शस्त्रों इत्यादि मशीनों की भी
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. संपूर्ण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों की भांति इस पूर्णिमा का भी अपना एक अलग प्रभाव होता है. आश्विन पूर्णिमा को संपूर्ण भारत
धर्म ग्रंथों में धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है. धर्म ग्रंथों में प्रत्येक देवता किसी न किसी शक्ति से पूर्ण होते हैं. किसी के पास अग्नि की शक्ति है तो कोई प्राण ऊर्जा का कारक है, कोई आकाश तो कोई हवा का संरक्षक
शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के साथ जुड़ा है. शिवरात्रि का दिन अत्यंत ही शुभ और मनोकामनाओं की पूर्ति वाला होता है. शिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता है. इस वर्ष 02 अगस्त 2024 को श्रावण शिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा.
आश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को कोजागर व्रत किया जाता है. कोजागर व्रत माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए होता है. इस दिन मुख्य रुप से लक्ष्मी पूजन करते हैं. लक्ष्मी मां के आशीर्वाद से जीवन में किसी भी प्रकार की
कार्तिक संक्रान्ति हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों मे से एक है. सूर्य जब तुला राशि में प्रवेश करते हैं, तो कार्तिक संक्रांति पर्व को मनाया जाता है. यह पर्व अक्टूबर माह के मध्य के समय पर आता है. कार्तिक संक्रान्ति का पर्व
संतान की लम्बी ऊम्र और उसके सुख की कामना के लिए किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत. जीवित्पुत्रिका व्रत इस वर्ष 25 सितंबर, 2024 को बुधवार, के दिन मनाया जाएगा. इस दिन व्रत को माताएं अपने बच्चों के आरोग्य और उनके सुखी जीवन
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को “हल षष्ठी” के रुप में मनाया जाता है. हल षष्ठी के दिन व्रत करने का विधान भी रहता है. इस अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा, बलराम जी, कृष्ण जी की पूजा, सूर्य उपासना करना अत्यंत शुभदायक होता
आषाढ़ मास को आने वाली अमावस्या तिथि “आषाढ़ अमावस्या” के नाम से जानी जाती है. इस वर्ष 05 जुलाई 2024 को शुक्रवार के दिन आषाढ़ अमावस्या संपन्न होगी. आषाढ़ मास की अमावस्या के समय स्नान - दान और पितरों के लिए दान इत्यादि
सौभाग्य और सुख की प्राप्ति में एक और व्रत है जिसे कजली तृतीया के रुप में मनाया जाता है. भाद्रपद माह में आने वाला यह व्रत सुख एवं सौभाग्य को देने वाला होता है. भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कज्जली तृतीया का
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को चंपक द्वादशी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष चम्पा द्वादशी 01 जून 2023 को मनाई जाएगी. इस तिथि में भगवन श्री विष्णु का पूजन होता है और भगवान की चंपा के फूलों से पूजा होती है.
नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व रहा है. सृष्टि में मौजूद प्रकृति ही वह शक्ति है जो जीवन के संचालन में अपना योग्दान देती है. इसी प्रकृति का सानिध्य पाकर पुरुष का जीवन भी नए चरण एवं स्वरुप को पाता है और इसी क्रम
इस वर्ष 17 जुलाई 2023 को श्रावण अमावस्या मनाई जाएगी . सावन मास में मनाई जाने वाली अमावस्या “हरियाली अमावस्या” के नाम से भी पुकारी जाती है. इसके अलावा इसे चितलगी अमावस्‍या, चुक्कला अमावस्‍या, गटारी अमावस्‍या इत्यदि नामों
2024 में 8 अप्रैल और 2/3 अक्टूबर को लगने वाला सूर्य ग्रहण कई तरह से अपना प्रभाव डालने वाला होगा. इस ग्रहण का प्रभाव दक्षिणी पूर्वी यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका कुछ कुछ क्षेत्रों, प्रशांत और हिन्द महासागर एवं मध्य पूर्वी
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी के रुप में मनाई जाती है. इस वर्ष 2024 में विवस्वत सप्तमी तिथि 13 जुलाई को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है. सूर्य के अनेकों नाम
शास्त्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दौरान किये जाने वाले बहुत से यम-नियम आदि का उल्लेख मिलता है, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दौरान दिये गए नियमों का पालन करना चाहिए और उन नियमों का पालन करने से जीवन में आती है शुभता और मनोकामनाएं
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तृतीया के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष 08 जून 2024 के दिन रम्भा तृतीया का उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन अप्सरा रम्भा की पूजा की जाती है. धर्म शास्त्रों में वेद पुराणों में
वैशाख अमावस्या का पर्व वैशाख माह की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है. वैशाख अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने व धर्म स्थलों पर जाकर दान-जप-तप इत्यादि करने का भी विशेष महत्व माना गया है. वैशाख अमावस्या पूजा
हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र माह की अमावस्या इस वर्ष 08 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी. चैत्र में आने वाली कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को उपवास एवं पितरों की शांति हेतु पूजा पाठ एवं दान इत्यादि किया जाता है. चैत्र अमावस्या पर
खरमास को मांगलिक कार्यों विशेषकर विवाह के परिपेक्ष में शुभ नहीं माना जाता है. इस कारण इस समय अवधि को त्यागने की बात कही जाती है. आईये जानते हैं की खर मास होता क्या होता है. सूर्य का धनु राशि में गोचर समय खर मास कहलाता
गणेश जी की महिमा अपने आप में अनूठी है. हाथी के मस्तक वाले अपने वाहन मूषक पर सवार विघ्नहर्ता श्री गणेश ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं. किसी भी कार्य को आरंभ करने से पूर्व इनकी अराधना कार्य को निर्विघ्न संपन्न होने का आशिर्वाद
नवरात्रों के समय गृह शांति पूजा सभी बाधाऔम को दूर करने का योग्य समय होता है. अध्यात्मिक साधना के लिए जो लोग इच्छुक होते हैं वह लोग इन दिनों साधना रत रहते है. ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति इन दस दिनों में ग्रह शांति भी कर
नवरात्रों के समय गृह शांति पूजा सभी बाधाओं को दूर करने का योग्य समय होता है. अध्यात्मिक साधना के लिए जो लोग इच्छुक होते हैं वह लोग इन दिनों साधना रत रहते है. ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति इन दस दिनों में ग्रह शांति भी कर
श्राद्ध अवसर पर पितृदोष शांति के उपाय करने से पितर दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ दोष की शांति के लिए शास्त्रों में अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जैसे कि किन कारणों से पितृ दोष होता है और पितृ दोष की शांति कैसे करें.
भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों के समस्त दुखों को दूर करने वाले समस्त जगत के स्वामी हैं. इन्हीं की कृपा दृष्टि को प्राप्त करके जीव अपने स्वरुप को जान पाता है. प्रभु की भक्ति से भक्त के समस्त कष्टों का क्षय होता है.
हमारे धर्म शास्त्रों में जीवन को सफल एवं सुखमय बनाने के लिए कई बातों का उल्लेख किया गया है. वेदों उपनिषदों एवं धर्म ग्रंथों में सुखी जीवन के कुछ सूत्र बताए गए हैं जिनपर चलकर मनुष्य़ जीवन में एक नई दिसा और सकारात्मक सोच