ग्रह वक्री कब होते हैं और सूर्य चंद्रमा वक्री क्यों नहीं होते हैं ?

ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति जैसी भी हो उसका असर बहुत गहरा होता है. वक्री ग्रहों की बात की जाए तो बुध, मंगल, शुक्र, शनि, गुरु वक्री होते हैं और राहु केतु सदैव वक्री ही माने गए हैं हां ये मार्गी हो सकते हैं लेकिन इनकी प्रकृत्ति में वक्री का प्रभाव ही मूल रुप से मिलता है. वक्री ग्रहों की भूमिका में जब बात आती है सूर्य और चंद्रमा की तो ये कभी वक्री नही होते हैं बल्कि सूर्य के माध्यम से ही अन्य ग्रह वक्री होते हैं.

कौन से ग्रह मार्गी रहते हैं और कौन होते हैं वक्री
नौ प्रमुख ग्रह हैं जिन्हें फलित ज्योतिष के लिए माना जाता है. इन ग्रहों में सूर्य, चंद्र, बुध, मंगल, गुरु, शुक्र, शनि और राहु और केतु हैं सूर्य और चंद्र वैदिक ज्योतिष में प्रकाशमान ग्रह हैं और वे कभी वक्री या प्रतिगामी नहीं होते हैं. सूर्य और चंद्रमा ज्योतिष के मूल स्तंभ हैं और इन्हीं के द्वारा भविष्यवाणियों को आधार मिलता है, यही कारण है कि पंचांग सूर्य और चंद्र पर आधारित हैं.
अन्य ग्रह बुध और शुक्र, मंगल, गुरु और शनि वक्री या प्रतिगामी होते हैं. राहु और केतु सामान्य रूप से हमेशा वक्री या प्रतिगामी होते हैं, लेकिन मीन स्थिति में राहु और केतु को हमेशा वक्री माना जाता है और सच्चा(ट्रू) राहु और केतु मार्गी या सीधा भी हो जाता है.

रेट्रो या वक्री क्या है ?
वक्री का अर्थ है एक ग्रह जो पीछे की ओर बढ़ता हुआ प्रतीत होता है. ग्रह की स्थिति में कुछ वक्रता आ जाए. ग्रह पीछे की ओर जा रहा है जिसे कुंडली, गोचर में आसानी से देख सकते हैं. ग्रह वक्री होकर पीछे की ओर चलना शुरू कर देता है लेकिन वास्तव में ऎसा होता है नहीं किंतु यह स्थिति इस प्रकार प्रतीत होती है जिसमें ग्रह पीछे की ओर चलता दिखाई देता है.उदाहरण के रुप में मान लीजिए हम कार चला रहे हैं और हम दूसरी कार को ओवरटेक करते हैं तो ऐसा लगता है कि दूसरी कार पीछे की ओर जा रही है या जब हम ट्रेन में यात्रा करते हैं तो खिड़की से बाहर देखने पर सभी पेड़ बहुत तेज़ गति से पीछे की ओर जाते हुए प्रतीत होते हैं. इसी तरह जब पृथ्वी किसी ग्रह के पास से गुजरती है तो ग्रह पीछे की ओर जाता हुआ प्रतीत होता है और इसे वक्री या प्रतिगामी ग्रह कहते हैं. सभी ग्रह अपनी कक्षाओं में चक्कर लगा रहे हैं और इसलिए जब कोई ग्रह पृथ्वी के बहुत करीब होता है और गुजरता है तो ऐसा लगता है कि वह पीछे की ओर जा रहा है.

कोई बाहरी ग्रह सूर्य से कहाँ वक्री हो सकता है इसलिए कोई ग्रह वक्री हो भी सकता है और नहीं भी, अगर वह सूर्य से पंचम या नवम स्थान पर स्थित है, लेकिन कोई ग्रह 100% वक्री होता है, जब वह सूर्य से 6वें, 7वें या 8वें स्थान पर होता है. जब सभी ग्रह सूर्य के साथ होते हैं, तो वे सूर्य द्वारा अस्त हो जाते हैं. लेकिन अधिक दूरी से, सूर्य से 5वें और 9वें ग्रह के लिए यह देखा जा सकता है कि अगर वह सूर्य से 5वें स्थान पर है, तो वह पहले 15 डिग्री में वक्री नहीं हो सकता है और अगर वह सूर्य से 9वें स्थान पर है, तो वह अंतिम 15 डिग्री में वक्री नहीं हो सकता है. इसे और बेहतर तरीके से समझने पर, वक्री ग्रह की गति 3 प्रकार की होती है, जैसे,

स्थिर, वक्री, अनु वक्री

जब कोई बाहरी ग्रह सूर्य से पांचवें स्थान पर होता है तो वह कुटिला या स्थिर होता है, जब कोई ग्रह सूर्य से छठे स्थान पर होता है तो वह गति या अनु वक्री प्राप्त करना शुरू कर देता है, जब कोई ग्रह सूर्य के ठीक विपरीत या सूर्य से सातवें स्थान पर होता है तो वह ग्रह की अधिकतम गति होती है और फिर जब वह सूर्य से आठवें स्थान पर होता है तो ग्रह की गति धीमी होने लगती है और फिर सूर्य से नवें स्थान पर फिर से स्थिर हो जाता है इसलिए वास्तव में वक्री बाहरी ग्रह जो सूर्य के ठीक विपरीत है, उसमें सबसे अधिक चेष्टा बल होता है. सूर्य के ठीक विपरीत ग्रह कुंडली के आधार पर अच्छे या बुरे पूर्ण परिणाम देगा.

शुभ ग्रह वक्री ग्रह अधिक शुभ हो जाते हैं और अशुभ ग्रह अधिक अशुभ हो जाते हैं. इसलिए अगर छठे, आठवें, बारहवें स्वामी वक्री होने पर अधिक खतरनाक हो सकते हैं.

शुक्र और बुध ग्रह कब होते हैं वक्री
आंतरिक ग्रह अर्थात बुध और शुक्र ग्रह कैसे वक्री बनते हैं. आंतरिक ग्रह सूर्य से दो भाव से अधिक दूर नहीं जा सकते इनमें बुध एक भाव और शुक्र दो भाव इसका मतलब है कि वे सूर्य के साथ वक्री हो सकते हैं और सूर्य से एक या दो भाव दूर भी हो सकते हैं. इसके अलावा बुध और शुक्र दोनों अस्त और वक्री भी हो सकते हैं और केवल वक्री भी हो सकते हैं. इसलिए इन बिंदुओं पर भी भविष्यवाणी करते समय या परिणाम देने वाली शक्ति की जांच करते समय विचार किया जाना चाहिए.

सारावली अनुसार अग्र कोई शुभ ग्रह वक्री है, तो उसे बलवान माना जाता है. उसके प्रभाव से राज्य लाभ देने में सक्षम होता है, लेकिन अगर कोई अशुभ ग्रह वक्री है, तो वह अधिक अशुभ परिणाम देता है.

फलदीपिका अनुसार अगर कोई ग्रह वक्री है, तो वह बलवान हो जाता है, भले ही वह नीच राशि, नीच नवमांश, शत्रु राशि या शत्रु नवमांश में हो, इसलिए उसे बलवान माना जाता है. इसके अलावा अन्य ग्रंथ अनुसार कोई वक्री ग्रह छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है.