कजली तीज 2024 : जाने इसकी कथा और पूजा विधि
सौभाग्य और सुख की प्राप्ति में एक और व्रत है जिसे कजली तृतीया के रुप में मनाया जाता है. भाद्रपद माह में आने वाला यह व्रत सुख एवं सौभाग्य को देने वाला होता है. भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कज्जली तृतीया का पर्व मनाते हैं. कजली तृतीया को कजरी, सातुड़ी तीज जैसे अनेकों नामों से पुकारा जाता है. कज्जली तृतीया का त्यौहार भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है. देश के कई भागों में कज्जली तीज के दिन व्रत धारण किया जाता है इस दिन माता पार्वती का पूजन भी होता है.
कज्जली तृतीया व्रत शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कज्जली तृतीया व्रत का पर्व 21 अगस्त 2024 को बुधवार के दिन किया जाएगा.
- तृतीया तिथि आरंभ - 21 अगस्त 2024 पर 17:07.
- तृतीया तिथि समाप्त - 22 अगस्त 2024 पर 13:47.
वैवाहिक संबंधों की शुभता, अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति और जीवन साथी के साथ रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत रखा जाता है. दूसरी तीज की तरह यह भी हर सुहागन के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन भी पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है व कुंआरी लड़कीयां अच्छा वर प्राप्ति के लिए यह व्रत अत्यंत ही शुभदायक होता है.
तृतीया तिथि की देवी पार्वती को बताया गया है, पुराण अनुसार यह व्रत महिलाओं को सौभाग्य, संतान एवं गृहस्थ जीवन का सुखदायक बनाने वाला होता है.
क्यों मनाया जाता है कज्जली तीज
- कज्जली तीज का पर्व सुहागन स्त्रियां पति की लम्बी आयु के लिए करती हैं.
- इस व्रत को करने से मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है.
- वैवाहिक जीवन में कलश कलेश दूर होते हैं और जीवन सुखमय बनता है.
- संतान एवं परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है .
- विवाह में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करता है यह व्रत.
- पैराणिक मान्यताओं के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती ने ही इस व्रत को सबसे पहले किया था. अत: इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव का पूजन किया जाता है.
कज्जली तृतीया पूजा विधि
कज्जली तीज के दिन प्रात:काल उठ कर पूजन आरंभ होता है. इस दिन पूर्व या उत्तर मुख होकर हाथ में जल, चावल, पुष्प और पैसे लेकर इस व्रत का संकल्प लेना चाहिए. शुद्ध एवं सात्विक आचरण करना चाहिए. इससे आन्तरिक शक्ति मजबूत होती है. व्रत करते हुए दिन में सोना नहीं चाहिए. पूजा में धूप, दीप, चन्दन, फूल-माला, चावल, शहद का प्रयोग करना चाहिए. पूजन के दौरान माता पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं और लाल रंग की चुनरी चढ़ानी चाहिए.
धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन घर या मन्दिर को मण्डप बना कर सुंदर तरीके से सजाना चाहिए. पूजा के मण्डप के स्थान पर कलश स्थापना करनी चाहिए. शिव- गौरी की स्थापना करके मंत्रों से देवी पार्वती और शिव का पूजन करना चाहिए. पूजा के बाद गुड़ और आटे से बने मालपुओं का भोग भगवान को अर्पित करना चाहिए. देवी दुर्गा को इस व्रत में शहद अर्पित करने का भी विधान बताया गया है. अगले दिन सामर्थ्य और क्षमता अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा देनी चाहिए और भोजन कराने के पश्चात स्वयं व्रत का पारण करना चाहिए.
कज्जली तृतीया कथा
कज्जली तृतीया से अनेकों पौराणिक एवं लोक जनश्रुति के आधार पर कथाएं भी मिलती हैं. पौराणिक कथा में इसके अलावा एक और कथा इस तीज से जुडी है. यह कथा भगवान शिव के देवी पार्वती के साथ विवाह की है. माता पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन भगवान शिव वैरागी ही रहना चाहते थे. तब देवी पार्वती ने शिव को प्रसन्न करने और उन्हें पाने के लिए कठोर तप किया कई शस्त्रों वर्षों तक तपस्या की. अपनी तपस्या में उन्होंने आहार बिना तप किया जिस कारण भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें जीवन संगनी के रुप में स्वीकार करते हैं. भगवान शिव और देवी पार्वती के एक साथ होने के पर्व को ही कज्जली तीज के रुप में मनाया जाता है.
अखंड सौभाग्य और दांपत्य सुख के लिए किया जाता है कज्जली व्रत
मान्यता अनुसार इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव का पूजन करने से प्रेम ओर जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह व्रत अत्यंत ही प्रभावशाली माना गया है. इस व्रत के करने से मनपसंद जीवन साथी की प्राप्ति होती है. जिस प्रकार माता का सुहाग अखंड है उसी प्रकार सुहागन स्त्रीयां इस दिन व्रत पूजा करके अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना करती हैं और आशीर्वाद पाती हैं.
कहा जाता है कि शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज के दिन देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा किया था. इसलिए इसे कज्जली तीज कहा जाता है.
कज्जली तृतीया व्रत महात्म्य
कज्जली तृतीया की इतनी महत्ता को बताया गया है की इसकी प्रमाणिकता और प्रभावशालिता स्वयं धर्म ग्रंथों द्वारा लक्षित होती है. मान्यताओं अनुसार कज्जली तृतीया का व्रत को देवताओं के राजा इंद्र की पत्नी शचि ने भी किया था. अपने पति की रक्षा एवं उसके सुख की प्राप्ति के लिए यह व्रत किया. इसी व्रत के प्रभाव से शचि को संतान सुख प्राप्त होता है.
महाभारत में भी इस व्रत के विषय में कुछ तथ्य प्राप्त होते हैं. इस में युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महिमा के बारे में बताया. श्री कृष्ण कहते हैं कि हे कुंति पुत्र, भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती की पूजा करने के लिए सात अनाजों से माता की मूर्ति बनाकर पूजा करनी चाहिए. इस दिन दुर्गा की भी पूजा होती है. कज्जली तृतीया व्रत नियम का पालन करने से वाजपेयी यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है. व्रत के प्रभाव से कभी जीवनसाथी का वियोग नहीं मिलता है.