व्यवसाय क्षेत्र में व्यक्ति का रुझान किस ओर रह सकता है या कौन सा ग्रह जातक के व्यवसाय के लिए अनुकूल रह सकता है इन बातों को जानने से पूर्व ग्रहों की व्यवसाय क्षेत्र में महत्ता को समझने की आवश्यकता होती है. कौन सा ग्रह किस व्यवसाय के लिए
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मेषगत चंद्रमा योग फल | Moon Aspecting Aries Sign मेषगत चंद्रमा के होने पर चंद्रमा इसके तत्वों में स्वयं को समाहित पाता है. चंद्रमा के साथ इसका समायोजन होने से व्यक्ति में सौंदर्य का आगमन होता है. वह आकर्षक रंग रूप का और गौरवर्ण का होता है.
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कर्क लग्न का चौथा नवांश तुला राशि का होता है. यह नवांश जातक के सुख स्थान संबंधी परिस्थितियों का स्थान बी होता है जिससे जुडी़ सभी बातें जातक के लिए आवश्यक होती हैं और जीवन भर वह इन सभी के विषय में अधिक सोच-विचार भी करता है. कर्क लग्न के
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होटल व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता का निर्धारण कुण्डली के दूसरे भाव, चौथे भाव और एकादश भाव से करना चाहिए. यह स्थान जातक के लिए विशेष प्रभावशाली माने जाते हैं. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में सफलता के लिए शुक्र का होना महत्वपूर्ण माना जाता है.
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कर्क लग्न का आठवां नवांश कुम्भ राशि का होता है, इस राशि के स्वामी शनि हैं यह नवांश राशि शनि की मूलत्रिकोण राशि भी है जिस कारण इस नवांश का प्रभाव शनि की शुभता को अधिक विस्तार से दर्शाने में सहायक होता है. कर्क लग्न में यदि जातक का आठवां
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आज हम आपको शनि का फल विभिन्न भावों में बताने का प्रयास करेगें. शनि का फल हम मेष से कन्या राशि में बताने का प्रयास करेगें कि किस तरह के फल शनि प्रदान करते हैं. शनि का फल मेष राशि में | Saturn’s effects in Aries sign आइए मेष राशि के शनि से
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ज्योतिष में चिकित्सा विज्ञान पर कई शोध किए गए हैं जिनके द्वारा जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कौन सा रोग अधिक प्रभावित कर सकता है. इसी के साथ नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता
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कर्क लग्न का तीसरा नवांश कन्या राशि का होता है. इस नवांश के स्वामी बुध हैं. इस नवांश के होने से जातक का रंग साफ और गोरा होता है. आंखें सुंदर तथा पैनी दृष्टि होती है व शरीर कोमल होता है. जातक में अधिक परिश्रम करने कि चाह नहीम होती अधिकतर
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सूर्य के तुलागत होने के कारण इसे संगती दोष लगता है, इस स्थिति में सूर्य अपनी शक्ति से क्षीण होता है, इस स्थिति सूर्य की निर्बल स्थिति मानी जाती है. जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को अनुकूल फल नहीं मिल पाते हैं. उसे सूर्य के मिलने वाले शुभ फलों में
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कर्कगत सूर्य का फल | Results For Sun Aspecting Cancer कर्क गत सूर्य के होने से सूर्य का चंद्रमा की राशि में होना और अपने मित्र राशि में होना माना जाता है. यह एक अच्छी स्थिति ही मानी जाती है जिसमें व्यक्ति को कार्यों को करने में चपलता
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इंदु लग्न को धन लग्न भी कहा जाता है अष्टकवर्ग में इसका विशेष उपयोग देखा जा सकता है. वृहतपराशर होरा शास्त्र में इसे चंद्र योग के नाम से संबोधित किया गया है. इंदु अर्थात चंद्रमा इस विशेष लग्न का उपयोग जातक की आर्थिक स्थित को जानने के लिए
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मेषगत सूर्य का फल | Result of Sun Aspecting Aries मेषगत सूर्य के होने से जातक शास्त्रों का अच्छा जानकार बनता है. जातक को इस स्थिति में उच्चता की प्राप्ति होती है जिसके फलस्वरूप सूर्य के गुणों में भी वृद्धि होना स्वाभाविक है. इसलिए यहां पर
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सूर्य और चंद्रमा का युतिफल | Combination of Sun and Moon सूर्य के साथ चंद्रमा की स्थिति में जातक स्त्रियों के नियंत्रण में रहने वाला होता है और उनकी बात को समझता है. इसलिए स्त्रियों का साथ इन्हें पसंद भी आता है. आर्थिक रूप से जातक संपन्न
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आज इस लेख के माध्यम से हम मुहूर्त से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर विचार करना चाहेगें कि कौन सा मुहूर्त कब अच्छा होता है और इसमें किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. गोधूलि लग्न | Godhuli Lagna गोधूलि लग्न का अर्थ है कि सूर्योदय के समय
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जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि बारहवें भाव में आता है तब व्यक्ति की साढ़ेसाती का प्रभाव आरंभ हो जाता है. यह साढ़ेसाती का पहला चरण माना जाता है. अब जन्म चंद्र के ऊपर शनि आता है तब दूसरा चरण और जन्म चंद्र से दूसरे भाव में शनि का गोचर होने पर
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ज्योतिष में कई प्रकार की युतियां और संबंध बनते हैं जिनके बनने से कई प्रकार से कुण्डली का आंकलन करने में सहायता प्राप्त होती है. जातक के जीवन में इन सभी का प्रखर प्रभाव पड़ता है जिससे जीवन में अनेक उतार-चढाव उत्पन्न होते हैं. इसी प्रकार
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वैदिक ज्योतिष में राहु/केतु का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है हालांकि दोनो ही छाया ग्रह हैं लेकिन तब भी मानव जीवन पर इनका बहुत प्रभाव पड़ता है. आज हम राहु का प्रभाव मेष से मीन राशि तक में करेगें. राहु मेष व वृष राशि में | Rahu in Aries and
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वैदिक ज्योतिष में हर ग्रह का अपना स्वतंत्र महत्व होता है. ग्रह किस राशि में और किस भाव में क्या फल देगें, यह विस्तार का विषय है. जिसे हम धीरे-धीरे समझ सकते हैं. आज हम सूर्य की विभिन्न राशियों मेष, वृष, मिथुन और कर्क में स्थिति पर विचार
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कर्क लग्न का दूसरा नवांश सिंह राशि का होता है, जिसके स्वामी सूर्य होते हैं. इस नवांश में जन्मा जातक सौंदर्य व जोश से युक्त होता है. जातक का रंग गुलाबीपन लिए हुए साफ होता है.आंखें मोटी व तेजवान होती हैं. शरीर से मजबूत व ताकतवर होता है.
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कर्क लग्न का पहला नवंश वर्गोत्तम होता है. यह कर्क राशि का ही होता है. इस नवांश में जन्में जातक के जीवन में स्वयं की स्थिति का ही आधार बना रहेगा. अर्थात वह कुध के विषयों से ही अधिक सोच विचार करेगा. अन्य स्थिति पर उसका अधिक ध्यान कम ही रहेगा