सिंह लग्न का दूसरा नवांश वृष राशि का होता है. इस राशि के नवांश स्वरूप जातक को जीवन में कार्य क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान देना होगा उसका जीवन अपएन काम के विस्तार और उसमें उन्नती पाने की चाह में व्यतीत होगा. जीवन में उसका व्यवसाय उसके लिए खूब

धर्मिष्ठमनृतभीरूं विख्यातसुतं महाभाग्यं। भौमगृहे रविदृष्टो ह्मतिरोमचितं गुरू: कुरूते ।। मेष राशि में स्थित गुरू पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक कर्म करने वाला सदाचरण से युक्त होता है. व्यक्ति सभी के साथ मित्रता पूर्ण व्यवहार करता है.

तुलागत मंगल फल | Mars Aspecting Libra तुलागत मंगल के होने पर जातक अधिकतम यात्राओं में अपना समय व्यतीत करता है. जहां एक ओर मंगल आक्रामक ग्रह के रूप में जाना जाता है इस राशि में उसका स्वरूप ऎसा नहीं रहता है. जब तक परिस्थिति अनियंत्रित न हो

सिंह लग्न का तीसरा नवांश मिथुन राशि का होता है, इस नवांश के स्वामी ग्रह बुध हैं. सिंह लग्न के तीसरे नवांश में जन्म लेने के प्रभावस्वरूप जातक की बनावट सुंदर होती है जातक के कंधे चौडे़ व भुजाएं लम्बी होती हैं, त्वचा मुलायम तथा आंखें सुंदर

मेषस्थ मंगल योगफल | Mars Aspecting Aries Sign मेष में स्थित होने पर मंगल अपने ही स्वामित्व को पाकर बली बन जाता है. यह स्थिति मंगल को अधिक बल देने में सहायक बनती है. मंगल रूक्ष व दाहक माना जाता है अत: इस स्थान पर होने पर वह अपने प्रभावों

तुलागत बुधफल | Mercury Aspecting Libra तुलागत बुध के होने पर जातक को शिल्पकला में बहुत रूचि हो सकती है और उसे इसका अच्छा ज्ञान भी होता है. जातक की वाणी में कलात्मकता का पुट साफ झलकता होगा. वह अपने कार्यों में भी काफी साज सज्जा का ख्याल

कर्कस्थ बुध योगफल | Mercury Aspecting Cancer कर्कस्थ राशिगत में बुध के होने पर जातक में वाक चातुर्य के साथ एक हास्यात्मक पुट भी आता है जो उसकी शैली को अलग ही अंदाज देता है. इस प्रभाव में जातक में हास्य और व्यंग की चाटुकारिता आती है. जिससे

जन्म कुण्डली के लग्न भाव के बाद दूसरा भाव आता है. दूसरे भाव को द्वितीय भाव, धनभाव, कुटुम्ब स्थान, वाणी स्थान, पनफर और मारक स्थान भी कहा जाता है. दूसरे भाव की कई बाते हैं जिनके द्वारा कुण्डली को समझने में सहायता प्राप्त होती है और उसके

वैदिक ज्योतिष में किसी बात के निर्धारण के लिए सबसे पहले कुंडली के योगो को देखा जाता है. फिर उस बात से संबंधित दशा/अन्तर्दशा का विश्लेषण किया जाता है. अंत में गोचर के ग्रहों को देखा जाता है कि वह कब हरी झंडी दिखाएंगे. आज हम एक महिला की

कर्क लग्न का सातवां नवांश मकर राशि का होता है यह शनि की राशि का नवांश है. जातक की कुण्डली में यह जन्म कुण्डली के नवांश में सप्तम भाव का उदय है इस स्थिति में जातक के जीवन का यह भाग उसे अधिक प्रभावित करने वाला रह सकता है. जातक का यह लग्न

वर्षफल में दशा विचार के लिए कुछ सिद्धांतों को समझते हुए वर्षफल कुण्डली को जानने में सहायता मिलती है. यदि दशा में भाव और ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो तो फल भी अच्छे प्राप्त होते हैं और जातक को जीवन में सुख एवं संतोष की प्राप्ति होती है. लग्न

वैदिक ज्योतिष में हर ग्रह अच्छे और बुरे दोनो ही प्रकार के फल प्रदान करने में सक्षम होता है. यह फल ग्रह की कुंडली में स्थित पर निर्भर करते हैं कि वह कि किसी कुंडली विशेष के लिए शुभ है या अशुभ है अथवा शुभ होकर कमजोर तो नहीं है. आज हम सूर्य

तुलागत चंद्रफल | Moon Aspecting Libra Sign चंद्रमा के तुला राशि में होने से जातक का मन ख्यालों और कल्पनाओं की उडा़न में लगा रहता है. तुलागत चंद्रमा होने से व्यक्ति अकेले रहना पसंद नहीं करता है उसे सभी के साथ तथा साझेदारी में पनपने की चाह

कर्क लग्न का पांचवां नवांश वृश्चिक राशि का होता है. जातक गम्भीर, प्रखर बुद्धि का आदर्शवादी, उत्साही व चंचल प्रकृति का होता है. इस नवांश वाले जातक सौम्य प्रकृति के होते हैं. इस नवांश का स्वामी मंगल है और यह एक जलतत्व की राशि में होने से

वैदिक ज्योतिष में हर राशि में हरेक ग्रह का अपना भिन्न प्रभाव होता है. राशि के कारकत्व तथा ग्रह के कारकत्व मिलकर ही व्यक्ति को फलों की प्राप्ति कराते हैं. कई बार शुभ तो कई बार अशुभ फलों की प्राप्ति होती है. कुछ राशि में ग्रह अनुकूल फल

जन्म कुण्डली द्वारा जातक के कैरियर के बारे में जानकारी प्राप्त करने में योगों का बहुत योगदान रहता है आज के समय में देश-विदेशों के साथ संपर्क साधना बहुत आसान हो गया है ग्लोबलाईजेशन के इस युग में हवाई जहाजों द्वारा देश विदेश मे आवागमन बढते

कर्क लग्न का छठा नवांश धनु राशि का होता है. यह नवांश गुरू के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करता है. साथ ही यह नवांश जातक के स्वरूप को भी एक ओजपूर्ण व्यक्तित्व देने वाला होता है. जातक का रंग गौरवर्ण का होता है उसकी आंखे सुंदर व बडी़ होती हैं.

मकरस्थ सूर्य का फल | Sun Aspecting Capricorn मकर में स्थित सूर्य का फल कुछ कम ही होता है. मकर जोकि शनि की राशि है अत: इस राशि में स्थित होने पर सूर्य कुछ अधिक अच्छे फल नहीं दे पाता है. मकर राशि में प्रवेश ही उत्तरायण के प्रारंभ का समय होता

वैदिक ज्योतिष में किसी भी ग्रह की शुभता या अशुभता जन्म कुंडली के लग्न पर निर्भर करती है क्योकि हर लग्न के लिए सभी ग्रहों का फल भिन्न होता है. यदि एक ग्रह किसी के लिए शुभ है तब यह जरुरी नहीं कि वह दूसरे के लिए भी शुभ ही हो. इसलिए शुभता व

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रहों की दो-दो राशियां हैं. इस प्रकार जब हम किसी एक ग्रह की दोनों राशियों का आंकलन करते हैं तो उसमें विभिन्नता स्वभाविक रूप से विद्यमान रहती है. इन राशियों की अपनी विशेषताएं होती हैं और इनके