27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान दिखाई देता हैं.
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जन्म कुण्डली में कुछ योग इस प्रकार के बनते हैं जिनमें उन योग का फल सीधे न मिलकर विपरीत रुप से फल मिलता है, इसका अर्थ हुआ की कष्ट तो मिलेगा लेकिन उसके बाद राहत भी मिलनी संभव हो पाएगी. विपरित राजयोग के अन्तर्गत सरल नामक योग बनता है. दु:स्थान
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रत्नों तथा उपरत्नों के उपयोग के बारे में सभी जानते हैं. ज्योतिष तथा आयुर्वेद दोनों में ही प्रमुख नौ रत्नों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हैं. आयुर्वेद में रत्नों का औषधि के रुप में भी उपयोग किया जाता है. वैदिक ग्रंथों में रत्नों
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क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है. यह फिरोजा से
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नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि
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ज्योतिष शास्त्र में छठे, आंठवें ओर बारहवें भाव और इसके स्वामियों की सदैव से आलोचना होती आई है. इन भावों के स्वामियों के विषय में यह तक कहा गया है, कि अगर इन भावों का स्वामी किसी अन्य भाव में शामिल होता है, तो उस भाव के कारकतत्वों की शुभता
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संतान के प्रश्न में कई बार प्रश्न कुण्डली में गर्भपात होने के योग भी बने होते हैं. योग बहुत से हैं आपको मुख्य योगों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. बाकी आप प्रश्न कुण्डली का जितना अभ्यास करेंगें, आपकी प्रश्न कुण्डली पर पकड़
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विमल नामक विपरित राजयोग, सकारात्मक फल देने में सहायक होता है. इस राजयोग में जातक को बहुत सी संभावनाएं मिलती हैं. इन संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठाकर जातक अपने जीवन में आने वाले व्यवधानों से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है. जन्म कुण्डली में बनने
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कुण्डली में अशुभ योग जितने कम हो, उत्तम रहता है, और शुभ योग अधिक हो तो व्यकि के धन, संपति, और सुख में वृ्द्धि करते है. शुभ योग अधिक होने से अशुभ योगों भी कई बार निष्क्रय हो रहे होते है. शुभ योगों की श्रेणी में से एक योग है. गरूड योग. गरूड
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सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी जाती है. यह एक पीला
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दण्ड योग अपने नाम के अनुसार अशुभ योग है. इस योग से युक्त व्यक्ति का जीवन किसी दण्डित व्यक्ति के समान होता है. यह 1800 प्रकार के नभस योगों में से एक है. तथा इस योग से मिलने वाले फल प्रात: कुण्डली में बन रहे अन्य शुभ योगों के प्रभाव से
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चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान का भी उल्लेख मिलता
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यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि यह दिन में हरा और रात
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भचक्र में 12 राशियां है. ये 12 राशि अपने गुण, विशेषताओं, प्रकृ्ति और स्वभाव के अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करती है. व्यक्ति का स्वभाव और व्यक्ति की प्रकृ्र्ति उसकी जन्म राशि और लग्न राशि दोनों के अनुसार होता है. व्यक्ति के जीवन में घटने
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नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के स्वामित्व या उसकी दशा
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मिथुन राशि वालों के लिए मंगल ग्यारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है. ये योजनाएं सफल भी होंगी. यदि आप बेरोजगार हैं तो रोजगार प्राप्त होगा. और यदि आप नौकरी में है तो प्रमोशन की प्रबल संभावना.मिथुन राशि वालों के लिए यह मंगल लाभ का
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इस उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1855 में जी.ए.केनगोट(Kenngott) द्वारा की गई थी. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द "एनस्टेट" से लिया गया है जिसका अर्थ घटक अथवा अवयव है. यह उपरत्न प्रोक्सीन समूह का खनिज है. इस उपरत्न के प्रिज्मीय दरार की दो दिशाओं
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धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता है. तथा वह धार्मिक
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महादशा | Maha Dasha जैमिनी स्थिर दशा की गणना सीधी तथा सरल है. कुण्डली में जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होते हैं उस भाव से स्थिर दशा का दशा क्रम आरम्भ होता है. इस गणना में चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशियों की गणितीय गणना करने की आवश्यकत नहीं
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प्रश्न कुण्डली के लिए कई तरीकों का उपयोग विभिन्न स्थानों पर किया जाता है. इस बारे में आपको आरम्भ के अध्याय में बताया गया है. कई बार प्रश्नकर्त्ता मजाक में प्रश्न में भी प्रश्न कर लेता है और कई बार कई मूर्ख तथा अज्ञानी व्यक्ति ज्योतिषी के