रेवती नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से सबसे अंत में आता है. यह नक्षत्र छोटे छोटे 32 नक्षत्रों से मिलकर बना है. ये 32 नक्षत्र या तारे मिलकर एक मृदंग की आकृति बनाते है. आकाश में यही मृ्दंग की आकृ्ति रेवती नक्षत्र कहलाती है. उत्तरा भाद्रपद के

इस उपरत्न की खोज 1906 में हुई है. यह अत्यंत ही दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न सारे विश्व में केवल सैन बेनिटो में बेनिटो नदी के किनारे, कैलीफोर्निया में पाया गया था. इसलिए इसका नाम बेनीटोइट पड़ गया. वर्तमान समय में इस उपरत्न की वन खान बन्द हो

ज्योतिष के इतिहास में ऋषि मनु को विशेष आदर-सम्मान प्राप्त है, मनु ऋषि ने कई ज्योतिष ग्रन्थों की रचना करने के साथ साथ कई धार्मिक ग्रन्थों की भी रचना की. इनके द्वारा लिखे गये कुछ ग्रन्थों में से मनु संहिता, मनुसमृ्ति प्रमुख है. ऋषि मनु के

जेड उपरत्न को उर्दू में मरगज कहा जाता है. प्राचीन समय में कई शताब्दियों तक जेड को एक ही प्रकार का रत्न समझा जाता था. सन 1863 में जेड की दो किस्में स्वीकार की गई - जेडाइट और नेफ्राइट. दोनों का ही उपयोग गहने तथा पूजा की वस्तुएँ बनाने में

यह उपरत्न हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए हल्के गुलाबी रंग में पाया जाता है.(This substone is found in light pink color with a hue of light yellow). लेकिन सबसे अच्छा उपरत्न हल्का गुलाबी रंग का माना गया है. इस उपरत्न को प्यार का प्रतीक माना

27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान दिखाई देता हैं.

जन्म कुण्डली में कुछ योग इस प्रकार के बनते हैं जिनमें उन योग का फल सीधे न मिलकर विपरीत रुप से फल मिलता है, इसका अर्थ हुआ की कष्ट तो मिलेगा लेकिन उसके बाद राहत भी मिलनी संभव हो पाएगी. विपरित राजयोग के अन्तर्गत सरल नामक योग बनता है. दु:स्थान

रत्नों तथा उपरत्नों के उपयोग के बारे में सभी जानते हैं. ज्योतिष तथा आयुर्वेद दोनों में ही प्रमुख नौ रत्नों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हैं. आयुर्वेद में रत्नों का औषधि के रुप में भी उपयोग किया जाता है. वैदिक ग्रंथों में रत्नों

क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है. यह फिरोजा से

नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि

ज्योतिष शास्त्र में छठे, आंठवें ओर बारहवें भाव और इसके स्वामियों की सदैव से आलोचना होती आई है. इन भावों के स्वामियों के विषय में यह तक कहा गया है, कि अगर इन भावों का स्वामी किसी अन्य भाव में शामिल होता है, तो उस भाव के कारकतत्वों की शुभता

संतान के प्रश्न में कई बार प्रश्न कुण्डली में गर्भपात होने के योग भी बने होते हैं. योग बहुत से हैं आपको मुख्य योगों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. बाकी आप प्रश्न कुण्डली का जितना अभ्यास करेंगें, आपकी प्रश्न कुण्डली पर पकड़

विमल नामक विपरित राजयोग, सकारात्मक फल देने में सहायक होता है. इस राजयोग में जातक को बहुत सी संभावनाएं मिलती हैं. इन संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठाकर जातक अपने जीवन में आने वाले व्यवधानों से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है. जन्म कुण्डली में बनने

कुण्डली में अशुभ योग जितने कम हो, उत्तम रहता है, और शुभ योग अधिक हो तो व्यकि के धन, संपति, और सुख में वृ्द्धि करते है. शुभ योग अधिक होने से अशुभ योगों भी कई बार निष्क्रय हो रहे होते है. शुभ योगों की श्रेणी में से एक योग है. गरूड योग. गरूड

सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी जाती है. यह एक पीला

दण्ड योग अपने नाम के अनुसार अशुभ योग है. इस योग से युक्त व्यक्ति का जीवन किसी दण्डित व्यक्ति के समान होता है. यह 1800 प्रकार के नभस योगों में से एक है. तथा इस योग से मिलने वाले फल प्रात: कुण्डली में बन रहे अन्य शुभ योगों के प्रभाव से

चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान का भी उल्लेख मिलता

यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि यह दिन में हरा और रात

भचक्र में 12 राशियां है. ये 12 राशि अपने गुण, विशेषताओं, प्रकृ्ति और स्वभाव के अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करती है. व्यक्ति का स्वभाव और व्यक्ति की प्रकृ्र्ति उसकी जन्म राशि और लग्न राशि दोनों के अनुसार होता है. व्यक्ति के जीवन में घटने

नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के स्वामित्व या उसकी दशा