सिद्धान्त, संहिता और होरा शास्त्र ज्योतिष के तीन स्कन्ध ज्योतिष की तीन भाग है. इसमें भी सिद्वान्त ज्योतिष सर्वोपरि है. सिद्वान्त ज्योतिष को बनाने में पौराणिक काल के उपरोक्त 18 ऋषियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इन सभी ऋषियों के
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यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव अर्थात कुण्डली के पहले चार भावों में सभी ग्रह होने पर बनता है. यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग क्योकि लग्न, भाव, धन भाव, तृ्तीय भाव अर्थात यात्रा भाव व चतुर्थ भाव अर्थात सुख भाव के संयोग से बनता है.
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उपल उपरत्न ओपल के नाम से अधिक विख्यात है. संस्कृत में यह स्वागराज तो हिन्दी में यह सागरराज कहलाता है. मूलरुप में उपल रंगहीन होता है परन्तु रंगहीन अवस्था में इसका मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है. प्रकृति में सोलह प्रकार के ओपल पाए जाते हैं.
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योग का शाब्दिक अर्थ युति है. ज्योतिष में योग का अर्थ है, ग्रहों की एक ऎसी स्थिति है, जिसमें ग्रह विशेष परिणाम देता है. समान्यत: योग ग्रहों के एक विशेष स्थिति में बैठने पर ज्योतिष योग बनते है. ज्योतिष ज्ञान की इस श्रंखला में आज हम यहां
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सबसे पहले यह उपरत्न तंजानिया में पाया गया था इसलिए इसका नाम तंजानाइट रखा गया. यह नीले से बैंगनी रंग में पाया जाता है (It is found in colors ranging from blue to purple). हम यह भी कह सकते हैं कि यह उपरत्न नील लोहित रंग में पाया जाता है. इस
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पिछले पाठ में आपने जैमिनी कारकों के बारे में पढा़ था जिनका क्रम उनके अंशों के आधार पर होता है. जैमिनी ज्योतिष में कई विद्वान स्थिर कारकों का भी प्रयोग करते है. यह स्थिर कारक निम्नलिखित हैं. (1) सूर्य तथा शुक्र में से जो ग्रह अधिक बलशाली है
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जब जैमिनी दशा के वर्ष निर्धारित करने हों तब सबसे पहले आप सम और विषम राशियों की एक तालिका बना लें. कुण्डली में जिस राशि के दशा वर्ष निर्धारित करने है उस राशि के स्वामी से राशि तक गिनती करें. यदि दशाक्रम सव्य है तो गिनती भी सव्य क्रम में
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शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि होती है. यह
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षोडशाँश कुण्डली या D-16 | Shodhshansha Kundli or D-16 इस कुण्डली का विश्लेषण वाहन सुख के लिए किया जाता है. इस वर्ग का उपयोग वाहन से संबंधित कष्ट, दुर्घटना तथा मृत्यु का आंकलन करने के लिए भी किया जाता है. यह वर्ग कालांश के रुप में भी जाना
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पिछले पाठ में आपने जैमिनी दशा में उपयोग में आने वाले कारकों के बारे में जानकारी हासिल की है. कारकों का निर्धारण करना आपको आ गया होगा. जिस प्रकार पराशरी सिद्धांतों में प्रत्येक भाव का अपना महत्व होता है. उसी प्रकार जैमिनी ज्योतिष में कारकों
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त्रिशाँश कुण्डली या D-30 | Trishansha or D-30 इस कुण्डली का अध्ययन जीवन में होने वाली बीमारी तथा दुर्घटनाओं के लिए किया जाता है. इस कुण्डली का अध्ययन जातक के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए किया जाता है. बीमारी तथा
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यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न का भ्रम पैदा करता है. यह संरचना तथा बनावट के आधार पर बिलकुल पन्ना रत्न का आभास देता है. कोई दूसरा खनिज पन्ना उपरत्न के समान नहीं लगा है जबकि यह उपरत्न थोडा़ सा गहरा और पन्ना से कम पारदर्शी है. यह तांबे खनिज
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ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत वृ्त के लग्न नक्षत्र
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कई बार प्रश्नकर्त्ता को अपने शत्रुओं से भय रहता है. वह डरते हैं कि क्या शत्रु नुकसान पहुंचाएंगें? आजकल यह प्रश्न किसी भी सन्दर्भ में पूछा जा सकता है. यह प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रुओं के लिए भी पूछा जा सकता है. इस प्रश्न कुण्डली
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पंचम भाव प्रेम भाव है, इसे शिक्षा का भाव भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव को पणफर और कोण भाव भी कहा जाता है. पंचम भाव सन्तान, बुद्धिमता, बुद्धिमानी, सट्टेबाजी, प्रसिद्धि, पदवी, बुद्धि, भावनाएं, पहला गर्भाशय, अचानक धन-सम्पति की
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कृष्णमूर्ती पद्धति की गणना नक्षत्रों पर आधारित होती है. प्रत्येक भाव के नक्षत्र तथा उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में परम्परागत प्रणली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव से बहुत सी बातों का विचार किया जाता
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27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी और चंद्रमा के संबंध
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यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं तो कई इसे लैटिन
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रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग
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हिन्दूओं का एक अन्य पवित्र माह माघ मास है, इस माह का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. इस माह के दौरान हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा, पाठ, जप, तप, दान इत्यादि की महत्ता को विस्तार रुप से बताया गया है. इस माह में आने वाले