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ज्योतिष में सूर्य पिता का प्रतीक है, जिसे अक्सर ग्रहों के राजा के रूप में दर्शाया जाता है. वैदिक ज्योतिष में इसे प्रमुख स्थान दिया गया है. यह व्यक्ति की पहचान और चेतना का मूल है. सूर्य को अक्सर आत्मकारक कहा जाता है,
विजया एकादशी हिन्दू धर्म में विशेष रूप से महत्व रखने वाला व्रत है, जो हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से विजय, सफलता और समृद्धि के लिए जानी जाती है। विजया एकादशी का पालन
ज्योतिष में लव इमोशन के लिए शुक्र मुख्य ग्रह मान अगया है. शुक्र के बिना किसी के जीवन में प्रेम का अंकुर जन्म नहीं ले सकता है. शुक्र अगर अच्छा है तो फिर प्यार की कमी नहीं होगी लेकिन अगर शुक्र कमजोर है तो फिर जीवन भर अपने
ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न प्रकार के योगों का विशेष स्थान है, जो किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर असर डालते हैं. इन योगों में से एक महत्वपूर्ण योग है "शोभन योग", जो व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की विशेष स्थिति
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में एक दर्श अमावस्या होती है. दर्श अमावस्या का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह चंद्रमा के अदृश्य होने का दिन होता है, जब सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के समीप होते हैं.
तीसरे भाव में बैठा शुक्र प्रभावशाली बातों से जोड़ सकता है. व्यक्ति की बोलचल उसकी बात करने की क्षमता दूसरों पर जबरदस्त तरीके से असर डालने वाली होती है. शुक्र, प्रेम, सौंदर्य और शांति का ग्रह, हमारे व्यक्तित्व और रिश्तों
ज्योतिष के 27 योगों में से चतुर्थ स्थान में सौभाग्य योग को स्थान प्राप्त होता है. चौथा नित्य एवं नैसर्गिक योग होने के साथ ही ये एक बहुत शुभ योग माना जाता है. इस योग को ज्योतिष में उन कुछ शुभ योगों में स्थान प्राप्त है
वेदिक ज्योतिष में ग्रहों के हर स्थिति का विश्लेषण करने के लिए कई महत्वपूर्ण पक्ष हैं। ग्रहों का अस्त होना विशेष रुप से शुक्र का अस्त होना भी गोचर के विषय में महत्वपूर्ण घटना है। शुक्र जब अस्त होता है तो उसके प्रभाव के
आयुष्मान योग भारतीय ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण योग माना जाता है. यह योग किसी व्यक्ति के जीवन में दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक होता है. यह विशेष रूप से तब बनता है जब कुंडली में किसी विशिष्ट ग्रह स्थिति का
ज्योतिष में बनने वाले सत्ताईस योगों में से एक योग है विष्कुंभ योग, विष्कुम्भ योग एक ऐसा दुर्लभ और शक्तिशाली योग है, जो ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह योग तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति की कुंडली में
आनन्दादि योग का उल्लेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र में विशेष रूप से किया जाता है. ज्योतिष में, योग का मतलब होता है विभिन्न नक्षत्र, योग तिथि वार इत्यादि की स्थितियों और उनके आपसी संबंधों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली विशेष
वक्री मंगल कर्क राशि में नव ग्रहों में मंगल को जोश और साहस का ग्रह माना जाता है. मंगल जब भी गोचर में बदलाव करता है उसका असर सभी पर होता है. जब मंगल कर्क राशि में वक्री होता है तो ये स्थिति मिलेजुले असर दिखा सकती है. कुछ
सिंह लग्न के लिए बाधक ग्रह और उसका प्रभाव सूर्य सिंह लग्न को शक्ति प्रदान करता है, जो स्वयं में केन्द्रित होने से ही मिलती है. सिंह लग्न के लिए नवम भाव बाधक बनता है और नवम भाव का स्वामी बाधकेश बनता है. सिंह लग्न में
कुंडली में ग्रह राशि भाव दृष्टि सूत्र ज्योतिशष में ग्रहों की दृष्टि विशेष प्रभाव रखती है. राशि दृष्टि को समझ कर कुंडली के मुख्य पहलूओं पर विचार कर पाना संभव होता है. ग्रह दृष्टि का प्रभाव विशेष प्रभाव देता है. ग्रह
ज्योतिष में अनेकों योगों का उल्लेख मिलता है जिनके आधार पर कुंडली की शुभता या निर्बलता को समझ पाना संभव होता है. इन्हीं में से एक योग है केन्द्राधिपति दोष. यह यह ऎसा दोष है जब शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध और शुभ चन्द्रमा
कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र और बाधकेश प्रभाव कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र बनता है. शुक्र कर्क लग्न के लिए बाधकेश होता है. शुक्र एक अनुकूल शुभ ग्रह होने पर भी कर्क लग्न के लिए बाधक का काम करता है. शुक्र की स्थिति कई
वृषभ लग्न की कुंडली में बाधकेश शनि का प्रभाव वृषभ लग्न के लिए नवम भाव बाधक का काम करता है. नवम भाव का स्वामी बाधकेश कहलाता है. बाधकेश के रुप में भाग्य भाव की स्थिति कुछ अलग तो लगती है लेकिन इसका प्रभाव बाधक बन ही जाता
कुंभ संक्रांति का समय सूर्य देव के शनि की राशि कुंभ में प्रवेश का खास समय होता है. कुंभ संक्रांति के दौरान सुर्य देव की स्थिति उत्तरायण की ओर होती है जो विशेष प्रभाव देने वाली होती है. कुंभ संक्रांति का समय 13 फरवरी
शनि वृश्चिक राशि वालों के लिए तीसरे और चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह है. मीन राशि में शनि का प्रवेश होने पर यह यह वृश्चिक राशि वालों के पंचम भाव में गोचर करता है. शनि का वृश्चिक राशि वालों के लिए केन्द्र भाव के स्वामी होते
मेष लग्न के लिए बाधक ग्रह मेष लग्न के लिए ग्यारहवां भाव बाधक भाव होता है और इस भाव का स्वामी शनि होता है. शनि यहां बाधक ग्रह की भूमिका निभाता है. शनि की दशा या अंतर्दशा के दौरान व्यक्ति को करियर, आर्थिक स्थिति और
मीन लग्न के लिए बाधक ग्रह सातवें भाव का स्वामी होता है. सातवें भाव में आने वाली कन्या राशि का स्वामी बुध मीन लग्न के लिए बाधक का काम करता है. मीन लग्न के लिए बुध की स्थिति बाधक के रुप में अपना असर दिखाती है. बाधक की
वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को विशेष महत्व दिया गया है और इसे सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है. इसके अलावा सूर्य को पिता का कारक भी माना जाता है. ज्योतिष के आधार
शुक्र केतु युति योग का विवाह पर प्रभाव शुक्र और केतु की युति के प्रभाव से विशेष गुण फलों की प्राप्ति होती है. शुक्र और केतु का योग सभी भावों में राशि और भाव अनुसार फल देने वाला होता है. शुक्र और केतु का प्रभाव व्यक्ति
मीन राशि में अब शनि का गोचर लाएगा शनि साढ़ेसाती और शनि ढ़ैया प्रभाव. शनि लोगों के सामने आने वाले कल की रुपरेखा रखेगा. नई जिम्मेदारियों को संभालने और योजनाओं को क्रियान्वित करने का आत्मविश्वास देगा. मीन में जब शनि कुंभ
चंद्रमा की शुभता हर भाव को विशेष बनाती है. चंद्रमा का प्रभाव कुंडली में वो स्थान रखता है जिसके द्वारा कुंडली को बल मिलता है. कुंडली में दूसरे भाव का चंद्रमा धन के साथ साथ मान प्रतिष्ठा देने में भी सहायक बनता है. चंद्रमा
मीन राशि स्वामी बृहस्पति का गोचर वार्षिक राशिफल के लिए होता है बेहद विशेष. बृहस्पति की स्थिति के अलावा अन्य ग्रहों का गोचर करियर से लेकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर डालेगा अपना असर. इस समय नौकरी में बदलाव के साथ साथ घर
मकर राशि अपने व्यक्तित्व और दृढ़ता के लिए जानी जाती है. इस राशि के जातकों दक्षता और कुशलता बेहतरीन होती है. मकर राशि शनि के प्रभाव की राशि और इसी कारण 2025 इन राशियों के लिए होने वाला है बेहद विशेष. इस बार एक बार फिर से
धनु राशिफल बृहस्पति की राशि है. यह एक बेहद ही आकर्षक, एकाग्र, परिश्रमी और साहस से ओत-प्रोत राशि है. गुरु का गोचर जब भी बदलाव में आता है धनु राशियों के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. इस साल भी गुरु एक राशि से निकल
ज्योतिष में कई भाव मंगल ग्रह के लिए खास माने गए हैं. मंगल की स्थिति जिन भावों में होती है उस अनुरुप फल मिलते हैं, लेकिन जब मंगल कुछ खास भाव स्थान में होता है तब उसका फल बिलकुल ही अलग तरह से मिलता है. दूसरे भाव में मंगल
तुला राशि बेहद आकर्षक एवं प्रतिभाशाली राशि है. इस राशि के स्वामी शुक्र हैं और इस तुला राशि के लिए शनि देव योगकारक होते हैं. शुक्र के स्वामित्व वाली तुला राशि के लिए इस साल का समय अच्छा रहेगा. इस साल तुला राशि वाले अपने
कन्या राशि राशि चक्र में छठे स्थान पर आती है, कन्या राशि के स्वामी बुध हैं और बुध का प्रभाव ही कन्या राशि के लिए विशेष होता है. वार्षिक राशिफल के अनुसार बुध ग्रह की स्थिति, बुध के वक्री अस्त मार्गी, उदय, होने वाले
कुंडली में चंद्रमा का असर उसकी स्थिति पर निर्भर करता है. चंद्रमा कुंडली में जैसा होगा वैसा ही फल देगा. अब जब हम बात करते हैं पहले भाव में चंद्रमा के होने की तब चंद्रमा के हर अच्छे बुरे पक्ष को देख कर उसके परिणामों को
सिंह राशि सूर्य के स्वामित्व की राशि है ओर बेहद प्रभावशालि राशियों कि श्रेणी में स्थान पाती है. सिंह राशि वालोम के लिए वार्षिक राशिफल की स्थिति राशि स्वामी सूर्य की स्थिति के साथ साथ अन्य ग्रहोम के गोचर पर निर्भर करती
वृषभ वार्षिक राशिफल 2025 वृषभ राशि के लोगों के लिए 2025 राशिफल के अनुसार इस वर्ष अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. आपका व्यावहारिक क्षेत्र में सफल होंगे. इस समय मानसिक रुप से कुछ बातें चिंता देंगे लेकिन आपका स्वभाव
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का बहुत महत्व है. शनि जन्म कुंड्ली के जिस भाव में होगा उस भाव को काफी गहरे असर डालता है. कुंडली के पहले घर में शनि उन कुछ प्रभावों को देता है जिसके कारण उसका सारा जीवन प्रभावित होता है.