हिंदु शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का दिन माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के आधार पर हिंदु पंचांग की चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव हैं. इसी के साथ पौराणिक मान्यताओं में दिव्य ज्योर्तिलिंग
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परब्रह्म सता को प्रदर्शित करता है शास्त्रों द्वारा उस अनंत, अव्यक्त तत्व को समझने का प्रयास किया गया है जिसे संन्यास धर्म का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है. संन्यास के शुद्ध कर्मों द्वारा एवं योग साधना के मंत्रों अभिमंत्रित होकर ही उस
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आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष देवशनी एकादशी 06 जुलाई 2025 के दिन मनाई जानी है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी माना गया है. देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा के नाम से भी
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जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र के रुप में हुआ था. जमदग्नि जिनकी गणना 'सप्तऋषियों' में होती है इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं. भृगुवंशीय जमदग्नि ने अपनी तप्सया एवं साधना द्वारा उच्च स्थान को प्राप्त किय अथा उनके
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धर्म ग्रंथों के अनुसार मंगलवार को आने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है. भौमवती अमावस्या के समय पितृ तर्पण कार्यों को करने का विधान माना जाता है. अमावस्या को पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण किया जाता है मान्यता है कि भौमवती
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आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा का शुभारंभ होता है. उड़ीसा में मनाया जायाने वाला यह सबसे भव्य पर्व होता है. पुरी के पवित्र शहर में इस जगन्नाथ यात्रा के इस भव्य समारोह में में भाग लेने के लिए प्रतिवर्ष
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चतुर्मास के चार महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते है इसलिए ये समय भक्तों, साधु संतों सभी के लिए अमूल्य होता है. यह चार महीनों में होनेवाला एक वैदिक यज्ञ है जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है जिसे चौमासा भी कहा जाता है. कात्यायन श्रौतसूत्र
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आषाढ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत का विधान है. इस वर्ष 22 जून 2025 के दिन योगिनी एकादशी का व्रत किया जाना है. इस शुभ दिन के उपलक्ष्य पर विष्णु भगवान जी की पूजा उपासना की जाती है. इस एकादशी के दिन पीपल के पेड की
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प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किए जाने का विधान रहा है. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष बहुला चतुर्थी का त्यौहार 12 अगस्त 2025 को मनाया
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प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है. इस वर्ष गंगा दशहरा 05 जून 2025, के दिन मनाया जाएगा. स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए. इससे
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सावन के माह में शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता सा लगा रहता है. पूरे ही माह शिव मंदिरों में मेला सा लगा रहता है. भक्तजन दूर स्थानों से काँवड़ में जल भरकर लाते हैं और उस जल से शिवजी का जलाभिषेक करते हैं. सावन का यह माह शिवभक्ति और आस्था
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श्री गणेश को सभी देवताओं में सबसे पहले प्रसन्न किया जाता है. श्री गणेश विध्न विनाशक है. श्री गणेश जी बुद्धि के देवता है, इनका उपवास रखने से मनोकामना की पूर्ति के साथ साथ बुद्धि का विकास व कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है. श्री गणेश को
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27 मई , 2025 के दिन ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाएगी. इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है. शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं.
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एकादशी दो तरह की होती है. विद्धा एकादशी और शुद्धा एकादशी. सूर्योदयकाल में यदि दशमी तिथि का वेध हो या अरुणोदयकाल में एकादशी में दशमी का वेध हो तब यह एकादशी विद्धा कहलाती है. यदि अरुणोदयकाल में दशमी के वेध से रहित एकादशी हो तब उसे शुद्धा
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देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं. इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है. माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है.
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मां शक्ति की दस महा विद्या का पूजन वर्ष के विभिन्न मासों में किया जाता है और यह दस महा विद्याओं का पूजन गुप्त साधना के रुप में भी जाना जाता है. धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है. काले वस्त्र में काले तिल बांधकर
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गणेश का अनुसरण मात्र ही सभी संकटों का हरण कर देता है तथा सभी कार्य सफलता पूर्वक पूर्ण हो जाते हैं. गज जैसा सिर होने के कारण यह गजानन भी कहे जाते हैं. गणपति आदिदेव हैं अपने भक्तों के समस्त संकटों को दूर करके उन्हें मुक्त करते हैं गणों के
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वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह व्रत 26 मई को मनाया जाएगा. यह व्रत सौभाग्य की कामना एवं संतान की प्राप्ति हेतु फलदायी माना जाता है. वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की स्मरण
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अपरा या अचला एकादशी वर्त 23 मई 2025 के दिन ज्येष्ठ मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी. यह व्रत पुण्यों को प्रदान करने वाला एवं समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपार धन संपदा प्राप्त होती है. इस
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सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना. सिद्धि को प्राप्त करने का मार्ग एक कठिन मार्ग हो ओर जो इन सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि'