रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है. सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुश्बू से महकाता है. इतना पवित्र पर्व यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए
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सम्पूर्ण भारतवर्ष में गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है. श्रावण मास की सप्तमी के दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष यह 31 जुलाई 2025 के दिन गोस्वामी तुलसीदास जयंती मनाई जाएगी. गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति
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नाग पंचमी श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन कालसर्प दोष की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन काल सर्पदोष की पूजा करने से व्यक्ति को इसके दुषप्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले उतार
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी के रुप में मनाते हैं. इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 05 अगस्त 2025 को मनाया जाना है. धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है. पवित्रा
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श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है. रक्षा बंधन का पर्व भाई - बहन के स्नेह की अट्टू डोर का प्रतीक है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है. संपूर्ण भारत में मनाया जाने वाला यह त्यौहार अपने में अनेक सौगातों
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श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है. यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं. शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. श्रावण मास अपना एक
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सावन माह में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है.
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श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 29 जुलाई 2025 के दिन मनाया जाएगा. नाग पंचमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार रहा है नाग पंचमी के दिन नाग पूजा का
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तीज का त्यौहार भारत के कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है. यह त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. सावन का आगमन ही इस त्यौहार के आने की आहट सुन्नाने लगता है समस्त सृष्टि सावन के अदभूत
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भृगु संहिता में भृगु जी ने अपने ज्ञान द्वारा ग्रहों, नक्षत्रों की गति को देख कर उनका पृथ्वी और मनुष्यों पर पड़ने वाला प्रभाव जाना और अपने सिद्धांतो को प्रतिपादित किया. शोध एवं खोज के उपरांत उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गति तथा उनके
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मंगला गौरी सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है. श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ 15 जुलाई 2025 को मंगलवार के दिन से किया जाएगा और
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कामिका एकादशी श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है. इस वर्ष कामिका एकादशी 21 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी. कामिका एकादशी विष्णु भगवान की अराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है. इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से
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आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और इसी के संदर्भ में यह समय अधिक प्रभावी भी लगता है. इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 10 जुलाई 2025, को मनाई जाएगी. गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह का स्वरुप है. हिंदु
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दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप कहे जाते हैं. प्रत्येक महाविद्या अद्वितीय रुप लिए हुए प्राणियों के समस्त संकटों का हरण करने वाली होती हैं. इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है. दस महाविद्या को उच्च
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देवी लक्ष्मी जी को धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है. लक्ष्मी जी जिस पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालतीं हैं वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, के रूपों से मुक्त हो जाता है, समस्त देवी शक्तियाँ के मूल में लक्ष्मी ही हैं जो
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भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों के समस्त दुखों को दूर करने वाले समस्त जगत के स्वामी हैं. इन्हीं की कृपा दृष्टि को प्राप्त करके जीव अपने स्वरुप को जान पाता है. प्रभु की भक्ति से भक्त के समस्त कष्टों का क्षय होता है. भगवान महादेव जिनकी
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भारत देश नदियों और मान्यताओं का देश है. यहां नदियों को विशेष सम्मान दिया गया है. गंगा नदी यहां के निवासियों के लिए माता का रुप है. यही वजह है, कि गंगा को माता के नाम से सम्बोधित किया जाता है. इस कारण हिंदुओं के लिए गंगा स्नान बहुत महत्व
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शिव पूजा-अर्चना मनोवांछित फल और कामनाओं का पूर्ण करने का अमूल्य वरदान है. शिव आराधना में प्रभु का जलाभिषेक के साथ विभिन्न उपायों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है. शिव भक्ति में पूजा-अर्चना के साथ शिव स्त्रोत का पाठ किया जाता है तो
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शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में
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हमारे धर्म शास्त्रों में जीवन को सफल एवं सुखमय बनाने के लिए कई बातों का उल्लेख किया गया है. वेदों उपनिषदों एवं धर्म ग्रंथों में सुखी जीवन के कुछ सूत्र बताए गए हैं जिनपर चलकर मनुष्य़ जीवन में एक नई दिसा और सकारात्मक सोच को पाता है. कुछ ऎसे