नवरात्रों में शक्ति पूजन | Worshipping Goddess Shakti in Navratri

मान्यता है कि देवता भी शक्ति हेतु मां दुर्गा की पूजा किया करते है. नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है. मां दुर्गा को शक्ति कहा गया है. नवरात्रों में नौ दिन क्रमश शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्ययायनी, कालरात्रि, मां गौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है. देवी की शक्ति पूजा व्यक्ति को सभी संकटों से मुक्त करती है व विजय का आशिर्वाद प्रदान करती हैं.

नवरात्रों में माता की पूजा करने के लिये मां भगवती की प्रतिमा के सामने घट स्थापना की जाती है जिसमें जौ उगने के लिये रखे जाते है. इस के एक और पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है. कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है. कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अंखंड ज्योति जलाई जाती है. यह ज्योति पूरे नौ नवरात्रे दिन रात जलती रहनी चाहिए. सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. उसके बाद श्री वरूण देव, श्री विष्णु देव की पूजा की जाती है. शिव, सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह की पूजा भी की जाती है.

उपरोक्त देवताओं कि पूजा करने के बाद मां भगवती की पूजा की जाती है. नवरात्रों के दौरान प्रतिदिन उपवास रख कर दुर्गा सप्तशती और देवी का पाठ किया जाता है. इन दिनों में इन पाठों का विशेष महत्व है. माता दुर्गा को अनेक नामों से जाना जाता है. उसे ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बलपर्दा, शुभ, निशुभं हरणी, महिषासुर मर्दनी, चंद-मुंड विनाशिनी, परमेश्वरी, ब्रह्मा, विष्णु और शिव को वरदान देने वाली भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त मंत्र का भी जाप किया जा सकता है.

नवरात्रों में नवग्रह यंत्र शांति पूजा | Navgrah Yantra Puja In Navratri

नवरात्रि के नौ दिनों में नौ ग्रहों की यंत्र शान्ति पूजा की जाती है. प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शान्ति हेतू पूजा की जाती है. द्वितीया तिथि के दिन राहू ग्रह की शान्ति पूजा की जाती है. तृ्तिया के दिन बृ्हस्पति के दिन, चतुर्थी के दिन शनि ग्रह, पंचमी के दिन बुध, षष्ठी के दिन केतु, सप्तमी के दिन शुक्र, अष्टमी के दिन सूर्य व नवमी के दिन चन्द्र देव की शान्ति पूजा की जाती है. यह शान्ति क्रिया शुरु करने से पहले कलश की स्थापना और माता की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद लाल वस्त्र पर एक यंत्र बनाया जाता है. इस यंत्र में नौ खाने बनाये जाते है. पहले तीन खानों में उसमें बुध, शुक्र, चन्द्र, बीच में गुरु, सुर्य, मंगल और नीचे के खानों में केतु, शनि, राहू को स्थान दिया जाता है. इसके बाद नवग्रह बीच मंत्र की पूजा की जाती है. इसके बाद नवग्रह शात्नि संकल्प लिया जाता है. इसके बाद दिन अनुसार ग्रह के मंत्र का जा किया जाता है. दुर्गासप्तशती में सात सौ महामंत्र होने से इसे सप्तशती कहते है. सप्तशती उपासना से असाध्य रोग दूर होते है और आराधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.

नवरात्र व्रत विधान | Navratri Fast Rituals

नवरात्रों की पूजा करते समय ध्यान देने योग्य यह विशेष बात है कि एक ही घर में तीन शक्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए. देगी को कनेर और सुगन्धित फूल प्रिय है. इसलिये पूजा के लिये इन्ही फूलों का प्रयोग करें, कलश स्थापना दिन में ही करें, मां की प्रतिमा को लाल वस्त्रों से ही सजायें. साधना करने वाले को लाल वस्त्र या गर्म आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए.

नवरात्रों का व्रत करने वाले उपवासक को दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा का त्याग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नवरात्रों में बाल कटवाना, नाखून काटना आदि कार्य भी नहीं करने चाहिए. ब्रह्मचार्य का पूर्णत: पालन करना चाहिए. नवरात्रे की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लडके को भोजन करा कर साथ ही दक्षिणा देनी चाहिए.

लडके को भैरव का रुप माना जाता है. कंजनों को भोजन करवाने से एक दिन पूर्व रात्रि को हवन कराना विशेष शुभ माना जाता है. कंजकों को भोजन करवाने के बाद उगे हुए जौ और रेत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है इस प्रकार नवरात्र व्रत पूजन का उद्यापन संपन्न होता है.