विवाह समय के योग (Some Combinations To Predict The Time of Your Marriage Through Vedic Astrology)
अक्सर बच्चों के बड़े होने पर उनके माता-पिता उनकी शादी के लिए चिंतित होते हैं कि बच्चों की शादी कब होगी. वास्तव में संसार में हर कार्य अपने निश्चित समय पर होता है. मतलब यह है कि व्यक्ति की शादी कम होगी यह भी ईश्वर जन्म के साथ लिखकर भेजता है.
व्यक्ति चाहे तो किसी अच्छे ज्योतिषी से अपनी कुण्डली दिखवाकर जान सकता है कि शादी कब होगी. कुण्डली में ग्रहों के अच्छे योग होने पर जल्दी विवाह की उम्मीद रहती है जबकि विवाह से सम्बन्धित भाव एवं ग्रह पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर शादी देर से हो सकती है.
- जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों तथा किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संम्बन्ध बना रहे हों अथवा सप्तम में उच्च का हों तो 21 वर्ष की आयु में विवाह होने की संभावना बनती है. (Jupiter in Seventh House suggests marriage in 21st Year)
- अगर कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है. (Venus in own-house signifies early marriage)
- लग्नेश व सप्तमेश का आपस में स्थान या दृष्टि संबन्ध शुभ ग्रहों से बने, विशेष रुप से गुरु से तो स्त्री का विवाह 18 से 20 वर्ष व पुरुष का विवाह 21 से 23 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनती है.
- इसके अलावा सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में प्रवेश के साथ ही होने की संभावना बनती है.
- जब लग्नेश कुण्डली में बलशाली होकर स्थित हो (Ascendant-lord in powerful position) और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह शीघ्र होने के योग बनते है. इस योग के व्यक्ति का विवाह सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
- अगर किसी स्त्री की कुण्डली में चन्द्र उच्च अंश क स्थित हो तो स्त्री व उसके जीवनसाथी की आयु में अन्तर अधिक होने की संभावना बनती है. (Higher longitude of Moon means difference in the age of marriage partners)
- अगर सप्तमेश वक्री हो तथा मंगल षष्ठ भाव में हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. सप्तमेश के वक्री होने के कारण वैवाहिक जीवन कि शुभता में भी कमी हो सकती है.
- इसके अलावा चन्द्र अगर सप्तम में अकेला या शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो ऎसे व्यक्ति का जीवनसाथी सुन्दर व यह योग विवाह के मध्य की बाधाओं में कमी करता है.
- अगर लग्न, सप्तम भाव, लग्नेश और शुक्र चर स्थान में स्थित हों तथा चन्द्रमा चर राशि में स्थित हों तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने के योग बनते है. (Venus in a Moveable sign gives delayed marriage)
- जब सप्तमेश छठे, आठवें और बारहवें भाव, लग्न भाव या सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है.
- इसके अतिरिक्त जब शनि और शुक्र लग्न से चतुर्थ भाव में हों तथा चन्द्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह तीस वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है.
- किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहु और शुक्र जब प्रथम भाव में हों तथा मंगल सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 28 से 30 वर्ष की आयु में होने की संभावनाएं बनती है. (Rahu and Venus in the first house and Mars in seventh gives marriage in late 20s)
- अगर शुक्र कर्क, वृश्चिक, मकर में से किसी राशि में सप्तम भाव में स्थित हों तथा चन्द्रमा व शनि एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 32 वर्ष के बाद होने कि संभावना बनती है.
- कुण्डली में सप्तमेश बलहीन हो तथा शनि व मंगल एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश में हों तो व्यक्ति का विवाह 30 वर्ष की आयु के बाद होने के योग बनते है.
- इसके अतिरिक्त मंगल या शुक्र एक साथ पंचम या सप्तम भाव में स्थित हो एवं दोंनो को गुरु देख रहे हों, तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में होने की संभावना बनती है.
विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता है. ये तीनों शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
इसके विपरीत जब सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनों किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव में हों तो विवाह में विलम्ब की संभावना बनती है. विवाह के समय का निर्धारण करने में कुण्डली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते है.
किसी व्यक्ति को जीवन में कितना सुख मिलेगा यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित हों, तथा अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं.
आईये देखे कि कुण्डली के योग विवाह समय को किस प्रकार प्रभावित करते है.
- जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. अष्टम भाव व इस भाव के स्वामी का संबन्ध जिन भावों से बनता है. उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है.
- इसके अलावा जब जन्म कुण्डली में सूर्य व चन्द्र शनि से पूर्ण दृष्टि संबन्ध रखते हों तब भी व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है. इस योग में सूर्य व चन्द्र दोनों में से कोई सप्तम भाव का स्वामी हो या फिर सप्तम भाव में स्थित हों तभी इस प्रकार की संभावना बनती है.
- शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती है.
- शनि सप्तमेश होकर एकादश भाव में स्थित हों और एकादशेश दशम भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 से 23 वर्ष में होने की उम्मीद रहती है.
- अगर शुक्र चन्द्र से सप्तम भाव में स्थ्ति हो और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो भी व्यक्ति का विवाह शीघ्र हो सकता है.
- इसके अतिरिक्त सप्तमेश और शुभ ग्रह द्वितीय भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में हो सकती है.
- जब जन्म कुण्डली में शुभ ग्रह प्रथम, द्वितीय या सप्तम भाव में हों तब व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष के आसपास होने के योग बनते है.
- चन्द्र जब कुण्डली में शुक्र से सप्तम भाव में हो व बुध चन्द्र से सप्तम भाव में और अष्टमेश पंचम में हो तो व्यक्ति का विवाह 22 वें वर्ष में होने की संभावना बनती है.
- इसके अतिरिक्त जब शुक्र द्वितीय में और मंगल अष्टमेश के साथ हों तो व्यक्ति बाईस से सताईस वर्ष की आयु में विवाह करता है.
- चन्द्र शुक्र से सप्तम में और लग्नेश शुक्र एकादश भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 27 वें वर्ष में होने की संभावनाएं बनती है.
- अगर कुण्डली में सप्तमेश नवम में हो, शुक्र तीसरे में हो तो व्यक्ति का विवाह 27 से 30 के मध्य की आयु में होने के योग बनते है.
- अष्टमेश स्व-राशि में स्थित हों और लग्नेश शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बढ़ जाती है.
- सप्तमेश त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रहों के साथ हों और शुक्र भी पाप ग्रहों से पीड़ित होकर द्वितीय भाव में स्थित हों तो 30 वर्ष के बाद विवाह की संभावना रहती है.
- लग्नेश या सप्तमेश स्वराशि में स्थित होकर पंचम या छठे भाव से दूर स्थित हो तो व्यक्ति की शादी देर से हो सकती है.
सप्तम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार विवाह समय का निर्णय:-
- अगर सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हों तो व्यक्ति का विवाह 24 से 26 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनती है.
- चन्द्र सप्तमेश होने पर व्यक्ति का विवाह 21 से 22 वें वर्ष के मध्य होने का योग बनाता है.
- मंगल सप्तमेश हो तो 24 से 27 के मध्य की आयु में विवाह संभव है.
- बुध सप्तमेश होने पर 28 से 30 की आयु में विवाह का योग बनता है.
- जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तमेश हो उस व्यक्ति का विवाह 22 से 24 वर्ष की आयु में होने की संभावना बनती है.
- शुक्र के सप्तमेश होने पर 21 से 23 वर्ष की आयु में विवाह हो सकता है.
- शनि सप्तमेश होने पर 30 वर्ष के पश्चात विवाह होने की उम्मीद रहती है.
इन योगों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार विवाह समय में परिवर्तन हो सकता है. अगर सप्तमेश उच्च हो, बलवान हो, शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा अशुभ ग्रहों के पाप प्रभाव से मुक्त हो तो विवाह की आयु में परिवर्तन होना संभव है.