चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में गजकेसरी योग (Placement of Gaja Kesari Yoga in Moveable, Fixed and Dual Signs)

गजकेसरी योग में गुरु-चन्द का बल निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?

गजकेसरी योग को धन योगों की श्रेणी में रखा जाता है. इस योग का निर्माण गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर होता है. यह योग जब केन्द्र भावों में बने तो सबसे अधिक शुभ माना जाता है. गजकेसरी योग व्यक्ति को धन, सम्मान व उच्च पद देने वाला माना गया है.

गजकेसरी योग से मिलने वाले फल भाव, ग्रह, दृष्टि व ग्रहयुति के साथ साथ राशियों की विशेषताओं से भी प्रभावित होते है. गजकेसरी योग के फल चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में किस प्रकार के हो सकते है. आईये यह जानने का प्रयास करते है.

1. "गजकेसरी ' चर राशियों में (Gaja Kesari Yoga in Moveable Sign)

अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु अपनी उच्च राशि में अर्थात कर्क राशि में स्थित होकर गजकेसरी योग बना रहे है तो इस स्थिति में उस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र की स्थिति मेष, कर्क, तुला व मकर में रहेगी. क्योकि कर्क राशि से यही राशियां केन्द्र भाव में पडती है. अर्थात इस स्थिति में गुरु व चन्द्र दोनों ही चर राशियों में स्थित हो यह योग बनायेगें.

चर राशियों में बनने वाले गजकेसरी योग के फलों में भी कुछ स्थिरता की कमी रहने की संभावना बनती है. यह योग एक ओर जहां व्यवसायिक क्षेत्र में व्यक्ति की गतिशीलता को बढायेगा. वही इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के जीवन में तरल धन की कमी न रहने की संभावनाएं भी बनायेगा.

2. "गजकेसरी ' स्थिर राशियों में (Gaja Kesari Yoga in Fixed Sign)

इसी प्रकार गजकेसरी योग में जब गुरु स्थिर राशियां अर्थात वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ में हों तो चन्द्र की स्थिति भी इनमें से किसी एक राशि में ही होनी चाहिए.

इन राशियों में से सिंह व वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी गुरु व चन्द्र के मित्र है. इसलिये जब गजकेसरी योग इन दोनों राशियों में बन रहा हों तो मिलने वाले फल अधिक शुभ होते है. स्थिर राशियों में गजकेसरी योग बनने पर व्यक्ति के धन में स्थिरता का भाव रहने की संभावनाएं बनती है.

3. 'गजकेसरी" द्विस्वभाव राशियों में:- (Gaja Kesari Yoga in Dual Sign)

यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु किसी भी द्विस्वभाव राशि अर्थात (मिथुन, कन्या, धनु व मीन) में स्थिति होकर गजकेसरी योग का निर्माण कर रहा हों तो ऎसे में चन्द्र भी द्विस्वभाव राशि में ही स्थित होगा. तभी इस योग का निर्माण हो सकता है. अन्यथा योग बनने की संभावनाएं नही है.

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 'गजकेसरी योग' में गुरु व चन्द्र दोनों चर, स्थिर या द्विस्वभाव राशियों में होते है. ऎसा न होने पर यह योग नहीं बनता है.

गजकेसरी योग में गुरु-चन्द्र के बल का मूल्यांकन (Assessment of Jupiter-Moon's Strength in Gaja Kesari Yoga) /

"गजकेसरी' योग गुरु व चन्द्र बली - (Gaja Kesari Yoga with Moon and Jupiter of high strength)


गजकेसरी योग बना रहे दोनों ग्रह गुरु व चन्द्र दोनों कभी भी एक साथ उच्च के नहीं हो सकते है. क्योकि गुरु कर्क में उच्च के होते है तथा चन्द्र वृ्षभ में उच्च के होते है. और ये दोनों राशि एक -दूसरे से तृ्तीय़ व एकादश भाव की राशि होती है.

ऎसे में गुरु से चन्द्र केन्द्र स्थान में होने के स्थान पर एकादश भाव में आते है. जो गजकेसरी योग के नियम विरुद्ध है. इन दोनों ग्रहों की राशियों का परस्पर केन्द्र में न होना भी इस योग की शुभता को कम करता है. गजकेसरी योग में गुरु या चन्द्र दोनों में से कोई भी ग्रह उच्च राशि में स्थित हों तो व्यक्ति को इस योग के सर्वोतम, शुभ फल प्राप्त होते है.

"गजकेसरी' योग गुरु व चन्द्र निर्बली:- (Gaja Kesari Yoga with Moon and Jupiter of Low Strength)

जिस प्रकार गुरु व चन्द्र गजकेसरी योग में उच्च राशियों में स्थित नहीं हो सकते है, ठिक उसी प्रकार इस योग में दोनों ग्रह अपनी नीच राशियों में भी स्थित नहीं हो सकते है. गुरु मकर राशि में नीचता प्रात्प करते है तो चन्द्र की नीच राशि वृ्श्चिक है. दोनों राशियां फिर परस्पर तृ्तीय व एकादश भाव की राशियां होती है.

गजकेसरी योग के नियम के अनुसार गुरु से चन्द्र केन्द्र भावों में होना चाहिए. इसलिये जब कुण्डली में गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा हों तो गुरु या चन्द्र दोनों में से कोई एक ग्रह ही नीच का हो सकता है. योग में सम्मिलित जो भी ग्रह नीच का होकर स्थित होगा उस ग्रह के कारकतत्वों की प्राप्ति की संभावनाओं में कमी होगी.

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