वासुकी कालसर्प दोष (Vasuki Kaal sarp dosh)
कालसर्प एक अशुभ दोष है जो राहु केतु की विशेष स्थिति से बनता है. राहु केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. यह चन्द्र के दो आभाषीय बिन्दु हैं जिन्हें ग्रहों के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह अभाषीय ग्रह किसी रूप में प्रमुख सात ग्रहों से कम नहीं हैं. शनि के बाद राहु ही वह ग्रह है कि जिसकी महादशा सबसे लम्बी होती है. माना जाता है कि राहु और केतु कुण्डली में तभी अशुभ होकर बैठता है जबकि पूर्व जन्म में आपने कुछ ग़लत कार्य किये हों. कुण्डली में कालसर्प दोष (Kaal sarp dosh) बनने का कारण भी पूर्व जन्म के कुछ पाप कर्मों को माना जाता है. यह कर्म कुछ भी हो सकता है जैसे पूर्व जन्म में पिता की उपेक्षा, उनका अनादर अथवा उनकी मृत्यु के पश्चात विधि पूर्वक कर्म नहीं करना. जीवों को सताना, सर्प को मारना आदि.
वासुकि कालसर्प दोष क्या होता है (What is Vasuki Kaal Sarp Dosh)
ज्योतिषशास्त्र में कालसर्प दोष के 12 प्रकार बताये गये हैं. इनमें से एक प्रकार है वासुकि कालसर्प (Vasuki KalSarp Yoga). वासुकि नाग का जिक्र हमारे धर्म ग्रंथों में काफी बार आया है. इन्हें नागों का राजा कहा गया है. गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि मैं सर्पों में नागराज वासुकि हूं. सागर मंथन की कथा में भी इनका नाम आता है. कथा के अनुसार सागर मंथन में इन्होंने रस्सी की भूमिका निभायी थी जिससे सागर मंथन कार्य सफल हो सका. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्मपत्री में वासुकी नाग का कालसर्प दोष उस स्थिति में बनता है जब राहु पराक्रम एवं भ्रातृ स्थान यानी तीसरे घर में होता है और केतु पिता एवं भाग्य स्थान यानी नवम भाव में विराजमान होता है. इन दोनों ग्रहों की इस स्थिति में जब सूर्य से लेकर शनि तक सभी सात ग्रह एक ओर एक गोलर्द्ध में आ जाते हैं तब कुण्डली वासुकि कालसर्प दोष के प्रभाव में मानी जाती है.अपनी कुंडली में कालसर्प दोष चैक कीजिये "Check Kalsarp Dosha in Your Kundli" एकदम फ्री
वासुकि कालसर्प दोष का फल (Effects of Vasuki Kalsarp Dosh)
वासुकी कालसर्प दोष (Vasuki Kalsarp Dosh) में राहु केतु की स्थिति क्रमश: तृतीय एवं नवम में होती है. इसलिए इस दोष में इन दोनों घरों के शुभ फल विशेष रूप से पभावित होते हैं. व्यक्ति को भाग्य का सहयोग नहीं मिलने के कारण जीवन में बार-बार बाधाओं का सामना करना होता है. व्यापार अथवा नौकरी जिससे भी व्यक्ति की आजीविका चलती है उसमें परेशानियों से गुजरना पड़ता है. व्यक्ति यदि कोई काम साझेदारी में करता है तो उसमें नुकसान की संभावना प्रबल रहती है. इस दोष के अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को अपने जीवन में हर क्षेत्र में संघर्ष के बाद ही सफलता मिलती है. मानसिक उलझनों के कारण व्यक्ति ऐसा कार्य कर बैठता है जिससे मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ जाती हैं.आर्थिक कठिनाईयां भी समय-समय पर व्यक्ति तकलीफदेय बन जाती हैं. इस दोष की वजह से भाई-बहनों एवं सगे-सम्बन्धियों के कारण कष्ट उठाना पड़ता है. इनसे सहयोग में कमी आती है. मित्रों के प्रति अधिक विश्वास कभी-कभी नुकसादेय हो जाता है. मित्र इनके विश्वास का फायदा उठाकर धोखा देने की कोशिश करते हैं. राहु केतु की दशा के समय यात्रा के दौरान नुकसान भी संभावित रहता है.