विंशोत्तरी दशा क्या है (What is Vimshottari dasha)

ज्योतिषशास्त्र में परिणाम की प्राप्ति होने का समय जानने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक विधि है विंशोत्तरी दशा. विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पराशर को माना जाता है. पराशर मुनि द्वारा बनाई गयी विंशोत्तरी विधि चन्द्र नक्षत्र पर आधारित है. इस विधि से की गई भविष्यवाणी कामोवेश सटीक मानी जाती है, इसलिए ज्योतिषशास्त्री वर्षों से इस विधि पर भरोसा करके फलकथन करते आ रहे हैं. दक्षिण भारत में ज्योतिषी विशोत्तरी के बदले अष्टोत्तरी विधि का भी प्रयोग कर रहे हैं परंतु, विशोत्तरी पद्धति ज्यादा लोकप्रिय एवं मान्य है.

विंशोत्तरी दशा पद्धति की विशेषता (The special qualities of Vimshottari Dasha)

विंशोत्तरी दशा पद्धति में सभी ग्रहों का एक निश्चित समय निर्धारित किया गया है. नवग्रहों की महादशा का एक चक्र 120 वर्ष में पूरा होता है. विंशोत्तरी दशा पद्धति में व्यक्ति की औसत आयु 120 वर्ष मानी गयी है. प्राचीन काल में मनुष्य की आयु संभवत: इतनी रही होगी परंतु वर्तमान में औसत आयु कम होती जा रही है. कुछ दिनों पहले तक मनुष्य की औसत आयु 60 से 70 वर्ष मानी जाती थी जो घटकर 50 से 60 वर्ष हो गयी है. यानी कुल मिलाकर प्राचीन काल के अनुपात में वर्तमान मनुष्य की औसत आयु आधी रह गयी है. इसलिए, सभी ग्रहों की महादशा एक व्यक्ति के जीवन में नहीं आ पाती है. 4-5 ग्रहों की महादशा में ही आमतौर पर व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है. ऐसे में सभी ग्रहों का फल ज्ञात करने के लिए महादशा के अन्तर्गत अन्तर्दशा का प्रावधान किया गया है. महादशा के दौरान बारी-बारी से निश्चित समय पर सभी ग्रहों की अन्तर्दशा आती है इसके अनुसार फल का विश्लेषण किया जाता है.

महादशा का निर्धारण (How to Calculate Mahadasha)

विंशोत्तरी पद्धति में महदशा का निर्धारण करने के लिए एक विशेष नियम का प्रयोग किया जाता है. इस नियम के अन्तर्गत सभी ग्रहों के तीन नक्षत्र माने गये हैं. इस तरह नक्षत्रों की कुल संख्या 27 मानी गई है. जन्म के समय चन्द्रमा जिस ग्रह के नक्षत्र में होता है उस ग्रह की महादशा में व्यक्ति का जन्म माना जाता है. जन्म के समय चन्द्रमा नक्षत्र का जितना भाग पार कर चुका हुआ है महादशा की अवधि उतनी ही शेष मानी जाती है जैसे जन्म के समय चन्द्र किसी ग्रह नक्षत्र में प्रवेश किया है तो व्यक्ति को उस ग्रह की पूरी महादशा मिलेगी अगर जन्म के समय नक्षत्र के आधे भाग में चन्द्र है तो महादशा का आधा भाग ही व्यक्ति को प्राप्त होगा.

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विंशोत्तरी दशा में फल निर्धारण (Vimshottari Dasha and its Results)

विंशोत्तरी दशा में ग्रहों का फल ज्ञात करने के सम्बन्ध में महर्षि पराशर एवं वारहमिहिर ने एक नियम यह बताया है कि लग्न के अनुरूप कुछ ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभ होते हैं जैसे मेष लग्न के लिए शनि मंगल, वृष लग्न के लिए शनि, कन्या लग्न के लिए बुध तथा कर्क लग्न के लिए मंगल. लग्न के लिए नैसर्गिक रूप से ग्रह शुभ होने के बावजूद यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि कुण्डली में वह ग्रह कितना बलवान है. अगर ग्रह कमज़ोर अथवा नीच का होगा तो वह शुभ होते हुए भी अपना शुभ फल नहीं दे पाएगा. केन्द्र स्थानों को ज्योतिष में काफी महत्व दिया गया है. आमतौर पर यह माना जाता है कि पाप ग्रह शनि, मंगल, सूर्य कष्टकारी होते हैं परंतु यदि यह केन्द्र भावों के स्वामी हों तो उनकी दशा-अन्तर्दशा में लाभ मिलता है. व्यक्ति के लिए इनकी दशा हर प्रकार से सुखकारी रहती है.

विंशोत्तरी दशा में महादशा एवं अन्तर्दशा के स्वामी ग्रह का फल (The results of Vimshottari Dasha Mahadasha and the planet-lords)

विंशोत्तरी दशा में ग्रहों का फल निर्धारण करते समय एक विचार मन में अवश्य आता है कि व्यक्ति को उस ग्रह का फल अधिक मिलेगा जिसकी महादशा चल रही है अथवा उस ग्रह का फल अधिक प्राप्त होगा जिनकी अन्तर्दशा चल रही है. इस विषय में यह माना जाता है कि कुण्डली में दोनों ग्रहों में जो बलवान होगा वह ज्यादा प्रभावी होगा, उसी ग्रह का फल अधिक प्राप्त होगा. महादशा स्वामी यदि बलवान है तो वह अन्तर्दशा स्वामी को अपने इच्छानुरूप फल देने के लिए प्रेरित करेगा इसी प्रकार अन्तर्दशा स्वामी शक्तिशाली है तो महादशा स्वामी पर प्रभाव डालेगा.

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