जन्म कुण्डली के लग्न भाव के बाद दूसरा भाव आता है. दूसरे भाव को द्वितीय भाव, धनभाव, कुटुम्ब स्थान, वाणी स्थान, पनफर और मारक स्थान भी कहा जाता है. दूसरे भाव की कई बाते हैं जिनके द्वारा कुण्डली को समझने में सहायता प्राप्त होती है और उसके द्वारा जातक को अनेक बातों का पता चलता है.
दूसरे भाव को धन भाव कहते हैं अत: इस भाव से जातक को परिवार से मिलने वाला धन देखा जाता है उसकी पारिवारिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है. एक जातक जिस परिवार में पैदा होता है वह उस परिवार की धन संपत्ति क भागिदार बन जाता है इसलिए इस भाव से कुटुभ्ब का धन पता चलता है. इसी के साथ यह भाव वाणी और दाईं आंख के विषय में भी बताता है.
दूसरे भाव की स्वाभाविक विशेषताएं | Natural Characteristics of Second House
दूसरे भाव का कारक ग्रह गुरु को माना जाता है इस भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का विचार किया जाता है. यह भाव परिवार और धन का प्रतिनिधित्व करता है. कुछ अन्य बातें जैसे मृत्यु, परिवार, विचार, संचित सम्पति, शिक्षा, प्रथम स्कूली शिक्षा, स्वयं के द्वारा संचित धन, चेहरा, भौतिक कल्याण, दूसरा विवाह, अध्यापक, मित्र, रोकड, प्रलेख, गिरवी वस्तुएं.
बैंक में जमा धन, जवाहरात, आभूषण, धन से जुडे मामलें, वकील, बैंकर्स, बाँण्ड, जमापूंजी, स्टाक और शेयर बाजार, स्व-प्रयासों से संचित धन, नाखुन, संसारिक, प्राप्तियां, दान्त, जीभ इत्यादि के बारे में भी इसी भाव से देखा जाता है. द्वितीय भाव से व्यक्ति के परिवार से संबन्ध की जांच की जाती है. इसी भाव से छोटे भाई के द्वारा उपहार आदि का विश्लेषण भी किया जा सकता है. द्रेष्कोणों के अनुसार इस भाव से दाईं आंख, दायां कन्धा, जननांग का दायां भाग आदि की जांच में भी इसकी सहायता ली जाती है.
दूसरे भाव की शुभ स्थिति | Conditions for Auspiciousness of Second House
- दूसरे भाव में जब शुभ ग्रह बैठे हो.
- दूसरे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो.
- दूसरा भाव शुभ ग्रहों के मध्य स्थित हो.
- दूसरे भाव को द्वितीयेश देखता हो.
- द्वितीयेश में द्वितीय में ही स्थित हो.
- दूसरा भाव शुभ कर्तरी में हो.
- वर्ग कुण्डली में अनुकूल स्थिति में हो.
- दूसरे भाव पर किसी की दृष्टि नहीं हो.
इनमें से कोई भी स्थिति कुंण्डली में बन रही हो तो लग्न भाव मजबूती को पाता है. जब यह स्थितियां जातक की जन्म कुण्डली में बन रही हों तो जातक को धन लाभ दिलाने में सहायक होती हैं तथा जातक की भाषा भी मधुरता पाती है. व्यक्ति दूसरों का मन मोह सकता है और परिवार में आदरणीय स्थिति पाता है.
व्यक्ति के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होती है. द्वितीयेश शुभ ग्रहों के मध्य हों, शुभ ग्रहों से दृष्टि या युति संबंध बनाता हो या वह उच्च राशि में स्थित हो, मित्र नवांश में, मित्र ग्रह के द्रेष्कोण, केन्द्र या त्रिकोण भाव में, मित्र ग्रह की राशि में हो तो यह दूसरे भाव को मजबूती देने वाले बनते हैं. कुण्डली के दूसरे भाव में स्वगृही स्थिति होने पर जातक को बल व साहस की प्राप्ति होती है.
दूसरे भाव की अशुभ स्थिति | Conditions for Inauspiciousness of Second House
- दूसरा भाव पाप कर्तरी में हो.
- अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो.
- शत्रु राशि में.
- अशुभ ग्रहों की युति में हो.
- अशुभ ग्रहों के मध्य स्थित हो.
- नीच राशिस्थ या अस्त हो.
- बाधक ग्रह का प्रभाव हो,
- शत्रु नवांश या द्रेष्कोण में हो तो यह स्थितियां भाव को कमजोर बनाती हैं.