मिथुन लग्न के लिए बाधक ग्रह और बाधकेश प्रभाव

मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए सातवां भाव बाधक बनता है. मिथुन लग्न के लिए सातवें भाव का स्वामी बाधकेश हो जाता है. गुरु का प्रभाव अनुकूल होने पर भी बाधक के कारण वह अपना संपूर्ण प्रभाव देने में सक्षम नहीं होता है. बाधकेश जिस भाव में बैठा होता है उस फलों को भी प्रभावित करता है. बाधक होने के कारण कुछ न कुछ परेशानियां रह सकती हैं. आइये जान लेते है मिथुन लग्न के लिए बाधक गुरु का सभी भावों पर प्रभाव.

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पहले भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति

मिथुन लग्न में पहले भाव में बैठा गुरु बाधक होने के कारण व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करने वाला होता है. व्यक्ति का स्वाभिमान, मनोबल काफी मजबूत होता है. जिद और अपने अभिमान के कारण परेशानी होती है. गुरु सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखता है, अत: उसे पत्नी से भी सुख प्रभावित होता है . पंचम भाव को पंचम शत्रु दृष्टि से देखने के कारण संतान के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो सकती है, शिक्षा व बुद्धि के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो.नवम भाव को नवम शत्रु दृष्टि से देखने पर भाग्य व धर्म के क्षेत्र में भी कुछ बदलाव देता है.

दूसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति

जब बाधक बृहस्पति मिथुन लग्न के दूसरे भाव में होते हैं तो धन संग्रह में मुश्किल होती है. परिवार में सामंजस्य कम ही रह पाता है. वाणी में ओज के साथ-साथ धैर्य गंभीरता होती है. बाधकेश सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखें तो बाधाओं के कारण चिंता होती है. नवम दृष्टि उसके दशम भाव पर पड़ती है तो बाधक बृहस्पति देव यहां द्वितीय भाव में बैठकर दशम भाव से संबंधित सभी कमजोर फल प्रदान करने वाले होते हैं.

तीसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पराक्रम एवं भाई-बहन के तीसरे भाव में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से साहस में कमीहोती है तथा भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है. यहां से बाधक बृहस्पति धनु राशि में सप्तम भाव को पंचम दृष्टि से देखता है पत्नी के साथ सुख कम मिलता है तथा व्यापार के क्षेत्र में बदलाव होते हैं. एकादश भाव पर मित्र की नवम दृष्टि होने से लगातार धन के प्रति ध्यान रहता है.

चतुर्थ भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
कन्या राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से माता, भूमि, मकान आदि का पर्याप्त सुख मिलता है तथा सुख में कमी होती है. अष्टम भाव पर पंचम नीच दृष्टि होने से आयु और पैतृक संपति में कुछ हानि और अशांति का सामना करना पड़ता है. दशम भाव पर सप्तम दृष्टि होने से पिता और राज्य से पर्याप्त सहयोग, सफलता और यश में कमी आती है. द्वादश भाव पर नवम दृष्टि होने से व्यय में वृद्धि होती है तथा बाहरी स्थानों से विशेष सम्बन्ध बने रहते हैं. मिथुन लग्न के चतुर्थ भाव में बैठा बाधक बृहस्पति सुख को बाहरी रुपों में ही दिलाता है.

पंचम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पंचम त्रिकोण और शिक्षा एवं संतान भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से संतान के क्षेत्र में कुछ हानि होती है या फिर शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में सफलता के लिए प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं. नवम भाव पर पंचम शत्रु दृष्टि होने से भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है. पहले भाव पर नवम मित्र दृष्टि होने से शारीरिक सौन्दर्य, प्रभाव एवं स्वाभिमान में अभिमान की वृद्धि होती है.

छठे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
छठे शत्रु एवं रोग भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से शत्रुओं से परेशानी अधिक हो स्कती है. साथ ही पत्नी पक्ष में कुछ मतभेद के साथ सफलता मिलती है. बाधक बृहस्पति पंचम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, मान-सम्मान एवं उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं. द्वादश भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से व्यय की अधिकता होती है तथा बाहरी स्थानों से संबंधों से काम मिलता है. दूसरे भाव पर नवम उच्च दृष्टि होने से परिश्रम से ही धन में वृद्धि होती है.

सातवें भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
सप्तम भाव में अपनी ही राशि धनु में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से विवाह में देरी या सुख का कमजोर हो सकता है. पिता और राज्य से सहयोग, सम्मान मिलता है लेकिन सुख नहीं मिल पाता है. पंचम मित्र दृष्टि से एकादश भाव को देखता है, अत: इच्छाओं को बढ़ा देता है. प्रथम भाव को देखने से खुद पर अतिविचारशील बना देता है. तृतीय भाव को देखने से साहस और पराक्रम में वृद्धि होती है.

अष्टम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
आठवें भाव में बाध गुरु का प्रभाव धर्म के पालन में अरुचि को लाता है. साथ ही पत्नी और पिता के पक्ष के पशुओं में असंतोष रहता है. यहां से बाधक बृहस्पति शारीरिक सौंदर्य और सम्मान की प्राप्ति के लिए संघर्ष दे सकता है. साहस में कमी होती है तथा भाई-बहनों का सहयोग कम मिल पाता है. संतान से कुछ असंतोष रहता है तथा गुढ़ विषयों की शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त होती है.

नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति कुंडली के भाग्य भाव को कुछ कम कर सकती है. पिता से अच्छे संबंध होते हैं लेकिन दूरी रहती है. राज्य कार्यों में सफलता के लिए संघर्ष होता है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त करने वाला होता है. नवम दृष्टि से द्वादश भाव को देखने के कारण बाधक बृहस्पति धार्मिक कार्यों पर धन व्यय करने वाला बनाता है. शनि की कुंभ राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों के साथ उन्नति कमजोर होती है.

दशम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
दशम भाव में बाधक गुरु का प्रभाव करियर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्त्री, पिता और व्यवसाय के मामले में भी परेशानियां आती हैं. व्यय अधिक रहता है और परिवार बाहरी स्थानों से छल-कपट वाले संबंधों के सहारे चलता है. अपने धन में वृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहता है. कार्य क्षेत्र में बदलाव अधिक होते हें.

एकादश भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
लाभ स्थान में बाधक इच्छाओं को बढ़ा देता है. अपने आस पास के लोगों से सहयोग कम मिल पाता है. व्यापार और पिता से भी पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है. बाधक बृहस्पति पंचम मित्र दृष्टि को देखता है, मेहनत में कमी आती है, भाई-बहनों का सुख भी कम प्राप्त होता है. पंचम भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से संतान से कुछ असंतोष रहता है. बहुत अधिक ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति होती है. स्त्री व व्यापार के मामले में विशेष सुख की कमी होती है.

बाधक बृहस्पति की द्वादश भाव में स्थिति
बाधकेश बृहस्पति के व्यय भाव में द्वादश भाव में होने से जातक अधिक व्यय करता है तथा बाहरी स्थानों से सम्मान व लाभ प्राप्त करता है. अपने परिवार के सुख में भी कुछ कमी रहती है तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है. माता व घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि का बल मिलता है. सेहत प्रभावित होती है. लाभ के संबंध में कुछ हानि उठानी पड़ती है.

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वृष लग्न के लिए बाधक ग्रह और बाधकेश प्रभाव

वृषभ लग्न की कुंडली में बाधकेश शनि का प्रभाव
वृषभ लग्न के लिए नवम भाव बाधक का काम करता है. नवम भाव का स्वामी बाधकेश कहलाता है. बाधकेश के रुप में भाग्य भाव की स्थिति कुछ अलग तो लगती है लेकिन इसका प्रभाव बाधक बन ही जाता है. वृष लग्न में शनि शुभ होकर भी उस के बाधक रुप में अपना असर डालने वाला होता है. बाधकेश होकर शनि हर भाव में अपना असर डालने वाला होता है.

प्रथम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पहले भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव काफी विशेष होता है. अपने मित्र शुक्र की राशि में स्थित शनि के प्रभाव से सौभाग्यशाली बन सकता है. शनि का प्रभाव दशम दृष्टि से राज्य व पिता भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से तृतीय भाव को देखने से भाई-बहनों का सुख कम होता है. सप्तम शत्रु दृष्टि से छठे भाव को देखने से स्त्रियों के व्यापार पक्ष में कठिनाई बढ़ती है.

द्वितीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
दूसरे भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव कुटुम्ब को प्रभावित करता है. इस भाव में अपने मित्र बुध की राशि मिथुन में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को धन व कुटुम्ब में वृद्धि होती है. सुख में थोड़ी कमी आती है. राज्य के क्षेत्र में प्रभाव व सम्मान में वृद्धि होती है. शनि दशम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है माता के सुख में कमी आती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखता है.

तृतीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
तीसरे भाव में शनि का प्रभाव बाधक होकर अपना असर डालता है. पराक्रम एवं भाई-बहन के तृतीय भाव में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि में शनि के प्रभाव के कारण जातक एवं उसके भाई-बहनों में सामान्य शत्रुता रह सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से अपनी स्वराशि में नवम भाव को देखता है. तृतीय मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने के कारण संतान एवं शिक्षा के क्षेत्र में प्रभाव होती है. व्यय में वृद्धि का योग बनता है, बाहरी स्थानों के संबंध में भी लापरवाही रहेगी.

चतुर्थ भाव में बाधक शनि की स्थिति
चौथे भाव का प्रभाव माता, सुख और भूमि से शत्रुता देता है. भूमि और संपत्ति के सुख में कमी हो सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, जो पिता, राज्य और व्यापार के क्षेत्र में सफलता और सम्मान दिलाता है. धर्म के पालन में कुछ उदासीनता रह सकती है. छठे भाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष में बहुत प्रभाव रहेगा और मामा पक्ष में तनाव रह सकता है. प्रथम भाव को देखने के कारण भौतिक स्थिति की इच्छा अधिक रहत है जो दिक्कत देती है.

पंचम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पंचम भाव में शनि का प्रभाव संतान का सुख प्रभावित कर सकता है. शिक्षा एवं बुद्धि के स्थान पर स्थित शनि के प्रभाव से इसमें कमी का असर देखने को मिल सकता है. शनि अपनी तीसरी दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है जिसके कारण स्त्री एवं व्यापार के क्षेत्र में कुछ असंतोषजनक स्थिति रह सकती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखने से आय के साधनों में सामान्य असंतोष रहेगा तथा दशम मित्र दृष्टि से दूसरे भाव को देखने से धन एवं कुटुंब को कम बल मिलता है.

छठे भाव में बाधक शनि की स्थिति
छठे भाव में शत्रु एवं रोग भाव में उच्च राशिस्थ शनि के प्रभाव से बाधकेश अधिक विरोधियों को दे सकता है. व्यापार पक्ष में भी संघर्ष रह सकता है. पिता से कुछ दुश्मनी रह सकती है. धर्म का आचरण दिखावे में अधिक ढ़ल सकता है. शनि अष्टम भाव को तीसरी शत्रु दृष्टि से देखता है, अतः आयु के प्रभाव में कुछ चिंताएं भी रहती हैं. सप्तम नीच दृष्टि द्वादश भाव को देखने से व्यय सम्बन्धी परेशानी रह सकती है. बाहरी स्थानों से सम्बन्ध असंतोषजनक रह सकता है. दशम शत्रु दृष्टि तीसरे भाव को देखने से परेशानी भी होती है. भाई-बहनों से भी असंतुष्ट रहता है.

सप्तम भाव में बाधक शनि की स्थिति
सप्तम भाव में बाधकेश शनि के प्रभाव से व्यापार में उन्नति तथा सफलता प्राप्त करता है. व्यापार और परिवार को बेहतर बनाने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. शनि अपनी स्वराशि में तृतीय दृष्टि से नवम भाव को देखता है, अत: भाग्यबल को प्रभावित करता है. सप्तम मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से शरीर प्रभावित होता है. दशम शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने से माता, भूमि और मकान आदि के सुख में कुछ कमी आ सकती है.

अष्टम भाव में बाधक शनि की स्थिति
अष्टम भाव में शनि बाधकेश होकर गुरु की धनु राशि में शनि का प्रभाव आयु भाव को कठिनाइयों के साथ बढ़ाता है. भाग्य और पिता के भाव में गिरावट आती है और धर्म का पालन भी वैसा नहीं होता जैसा होना चाहिए. पिता और मान-सम्मान के क्षेत्र में दोषपूर्ण सफलता मिलती है. भाग्य की उन्नति के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ता है तथा कठोर परिश्रम करना पड़ता है.

नवम भाव में बाधक शनि की स्थिति
नवम भाव में बाधकेश शनि अपनी स्वराशि मकर में होने से मिलेजुले असर देगा. धार्मिक स्थिति प्रभावित रह सकती है. पिता से पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. राज्य से यश, लाभ तथा मान-सम्मान प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है. शनि तृतीय शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. आय के साधनों से कुछ अप्रिय लाभ होता है. तृतीय भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से पुरुषार्थ प्रबल होता है. भाई-बहनों से असंतोषजनक तरीके से सहायता प्राप्त होती है. परिश्रम से उन्नति तथा लाभ पाता है, धनवान, यशस्वी, धार्मिक तथा सुखी होता है.

दशम भाव में बाधक शनि की स्थिति
दशम भाव में स्थिति का प्रभाव राज्य, पिता तथा व्यवसाय के दशम भाव में अपनी स्वराशि कुंभ में शनि के प्रभाव से पिता, व्यवसाय तथा राज्य से पर्याप्त लाभ, यश तथा प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है. धर्म-कर्म का पालन भी करता है. व्यय के मामले में कुछ परेशानी होती है तथा बाहरी स्थानों के संबंध में मुश्किलें होती है. चतुर्थ भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से माता, भूमि, संपत्ति तथा घरेलू सुख से असंतोष रहता है.

एकादश भाव में बाधक शनि की स्थिति
एकादश भाव में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों का सामना करने के बाद आय के रास्ते में सफलता मिलती है. असंतोष रहता है, एकादश भाव में क्रूर ग्रह विवादित बना सकते हैं. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से मानसिक रुप में उथल पुथल बनी रह सकती है. सप्तम मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने से शिक्षा, बुद्धि और संतान के पक्ष में सफलता मिलती है. दशम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखने से दैनिक जीवन और पुरातत्व में कुछ कठिनाइयों का अनुभव होता है. बारहवें भाव में शनि की स्थिति

बारहवें भाव में बाधक शनि की स्थिति
व्यय एवं बाहरी संबंधों के बारहवें भाव में मेष राशि में स्थित नीच के शनि के प्रभाव से जातक को व्यय एवं बाहरी स्थानों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. राज्य, व्यापार, भाग्य एवं धर्म के क्षेत्र में भी कमी रहती है. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है अतः धन एवं जन सामान्य सफलता प्राप्त करता है. छठे भाव को देखने से शत्रुओं पर प्रभाव पड़ता है तथा लड़ाई-झगड़ों से संबंधित मामलों में उलझ सकता है यश एवं मान-सम्मान में कमी रहती है.

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कुंभ संक्रांति : सूर्य का शनि के घर में प्रवेश और शुभता का प्रभाव

कुंभ संक्रांति का समय सूर्य देव के शनि की राशि कुंभ में प्रवेश का खास समय होता है. कुंभ संक्रांति के दौरान सुर्य देव की स्थिति उत्तरायण की ओर होती है जो विशेष प्रभाव देने वाली होती है.  कुंभ संक्रांति का समय 13 फरवरी 2025 में होगा. सूर्य की कुंभ संक्रांति का समय आध्यात्मिक कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है. कुंभ संक्रांति में सूर्य का प्रभाव बाहर आने और दुनिया से जुड़ने का समय होता है. 

कुंभ संक्रांति समय 2025

कुंभ संक्रांति समय 13 फरवरी 2025, को बृहस्पतिवार के दिन 01:34 बजे होगा तब सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करेगा.  

कुंभ संक्रांति पूजा विधि  

कुंभ संक्रांति समय में दिन बड़े होने लगते हैं और उत्तरायण लगभग छह महीने तक रहता है. कुंभ संक्रांति त्योहार से जुड़े रीति-रिवाज अलग-अलग हों, लेकिन इसे पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. कुंभ संक्रांति पूजा विधि में घर में पूजा करने वाला व्यक्ति संक्रांति के दिन सुबह-सुबह तेल से स्नान करते हैं. घर को रंगोली से सजाया जाता है, खासकर प्रवेश द्वार पर, और दरवाजों को फूलों और आम के पत्तों की माला से सजाया जाता है. पूजा कक्ष में, पूजा के लिए भगवान सूर्य की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है. कुम्भ संक्रांति सूर्योदय से शाम तक मनाया जाने वाला एक शुभ समय है. इस दौरान, पवित्र स्नान का एक विशेष अर्थ होता है. सबसे अधिक पुण्य उन लोगों को प्राप्त होता है जो गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के किनारे स्थित पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं. 

हिंदू धर्म में सूर्य को देवता ही नहीं बल्कि नौ ग्रहों का अधिपति भी माना जाता है. व्यक्ति पर सूर्य देव की कृपा हो तो उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुंडली में सूर्य अगर मजबूत हो तो व्यक्ति को जीवन में सुख, धन और यश की प्राप्ति होती है. कुंभ संक्रांति के समय सूर्य उपासना द्वारा सूर्य के शुभ फल मिलते हैं. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य को देखते हुए जल अर्पित करना चाहिए. 

सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल अर्पित करते हैं और सूर्य मंत्रों का जाप करते हैं  “ॐ सूर्याय नमः”  मंत्र का जाप करना शुभ होता है. ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है और आपके सभी काम बनने लगते हैं. इस दिन गुड़ के साथ तिल का दान किया जाता है कि यह शनि और सूर्य देव के नकारात्मक प्रभावों को खत्म करने में सहायक होता है. इस दिन लोग घर पर शनि शांति ग्रह पूजा भी करते हैं. अगर सूर्य आपकी कुंडली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है, तो दान देकर इसके प्रभाव को शुभ कर सकते हैं. 

कुंभ संक्रांति का सभी 12 राशियों पर प्रभाव 

जब सूर्य, कुंभ राशि में होता है तो यह जीवन में बदलाव शुरू करता है. सूर्य के कुंभ राशि में गोचर के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर असर दिखाई देता है. 

मेष राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य पांचवे भाव का स्वामी है जो एकादश भाव में अपना असर डालता है. ग्यारहवां भाव मित्रों और सामाजिक परिचितों, इच्छाओं और सपनों का प्रतिनिधित्व करता है.इस चरण के दौरान आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी. लाभ भाव में सूर्य का प्रभाव यात्रा के प्रबल संकेत देता है, जो तीर्थयात्रा के रूप में प्रकट हो सकता है. व्यावहारिक मुद्दों की अनुमति मिलने पर, आप खुद को विदेश यात्रा पर भी पा सकते हैं. कुल मिलाकर, यह एक प्रगतिशील अवधि होती है. 

वृषभ राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य चौथे भाव का स्वामी होता है और इस समय दशम भाव से गोचर करता है दशम भाव करियर, प्रसिद्धि और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.यह अवधि आपके लिए अनुकूल प्रतीत होती है, और इस चरण में आप अपने क्षितिज का विस्तार करने की संभावना रखते हैं. आप अपने उन गुणों को सामने ला सकते हैं जो लंबे समय से दबे हुए थे. सभी लंबित परियोजनाओं के उचित निष्कर्ष पर पहुंचने की संभावना है. आपको नौकरी या व्यवसाय के मोर्चे पर अपने ईमानदार प्रयासों के लिए पदोन्नति और मान्यता मिल सकती है. 

मिथुन राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य तीसरे भाव का स्वामी है जो नववें भाव से गोचर करते हुए धर्म, तीर्थयात्रा और अंतर्ज्ञान पर असर डालता है. मिथुन राशि के लोग इस दौरान पा सकते हैं कि उनकी संचार क्षमताओं में सुधार हुआ है. संबंध बनाने और नेटवर्किंग करने में बहुत अच्छे हो सकते हैं, जो सीखने और टीम वर्क के लिए नए दरवाजे खोल सकता है. 

कर्क राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य दूसरे भाव का स्वामी है जो आठवें भाव से गोचर करेगा. आठवां भाव विरासत, गुप्त विद्या और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य के गोचर का आपके करियर से जुड़े मामलों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है. गणेशजी को लगता है कि यह अवधि आपके करियर के लिए काफी घटनापूर्ण हो सकती है.कुछ क्षेत्रों में सुधार करने या कुछ गलतियों को सुधारने के संकेत मिल सकते हैं. यदि आप बदलाव से इनकार करते हैं या कुछ नया सीखने से बचते हैं तो इस अवधि के दौरान यह आपके लिए मुश्किल हो सकता है.

सिंह राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सिंह सूर्य पहले घर का स्वामी है जो सातवें घर में गोचर करेगा. सातवां घर साझेदारी, खुले दुश्मनों और मुकदमों का प्रतीक है. आप खुद को संकटमोचक की तरह महसूस कर सकते हैं क्योंकि संभावना है कि समस्याएं हर समय सामने आती रहती हैं. जैसे ही आप एक मुद्दे से निपटते हैं, दूसरी समस्या सामने आने की संभावना होती है.  चीजों की अनदेखी करने से कठोर परिणाम या दर्दनाक परिवर्तन प्रक्रिया हो सकती है.

कन्या राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य बारहवें भाव का स्वामी है जो छठे भाव से गोचर करेगा. छठा भाव स्वास्थ्य, दैनिक दिनचर्या और ऋण से जुड़ा हुआ है. आपको आर्थिक जोखिम लेने से बचना चाहिए क्योंकि इस अवधि के दौरान लाभ मिलने की संभावना नहीं है. इस बात की संभावना है कि आपका कोई करीबी आपको धोखा दे सकता है. धर्म के बारे में आपके विचार उदास होने की संभावना है

तुला राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य एकादश भाव का स्वामी है जो पांचवें भाव से गोचर करेगा. पंचम भाव को प्रेम संबंधों, रचनात्मक आत्म-अभिव्यक्ति और आनंद का भाव माना जाता है. यह गोचर आपको अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में औसत परिणाम देगा. कुंभ संक्रांति के दौरान, तुला राशि के लोग अपने सामाजिक नेटवर्क को बढ़ाने और नए परिचित बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. 

वृश्चिक राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य दशम भाव का स्वामी है जो चौथे भाव से गोचर करेगा. चौथा भाव घरेलू मामलों, परिवार और संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है.इस समय के दौरान, वृश्चिक राशि के लोग अन्य लोगों के साथ अपने भावनात्मक बंधन को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस कर सकते हैं.  इस अवधि के दौरान आपको भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. 

धनु राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य नवम भाव का स्वामी है जो तीसरे भाव से गोचर करेगा. तीसरा भाव मानसिक झुकाव, संचार और स्थानीय यात्रा को दर्शाता है. आपके सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है. काम पर संघर्ष का सामना करने की संभावना है या आपको स्थानांतरित होना पड़ सकता है. 

मकर राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य आठवें भाव का स्वामी है जो दूसरे भाव से गोचर करेगा. यह भाव व्यक्तिगत आय, संपत्ति और आत्म-मूल्य से जुड़ा हुआ है. इस चरण के दौरान परिवार और करीबी लोगों के साथ अधिक दिखाई देंगे. स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी, आप सिरदर्द, जोड़ों के दर्द या रक्त संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. मूड स्विंग के कारण आप चिड़चिड़े महसूस कर सकते हैं. 

कुंभ राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य सातवें भाव का स्वामी है जो पहले भाव से गोचर करेगा. पहला भाव स्वयं, सांसारिक दृष्टिकोण और आत्मा के उद्देश्य का भाव है. यह गोचर आपको मिश्रित परिणाम देने की संभावना है. इस चरण के दौरान आपका मुख्य ध्यान परिवार और वित्त को ठीक से व्यवस्थित करने पर होगा.

मीन राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य छठे भाव का स्वामी है जो बारहवें भाव से गोचर करेगा. बारहवां भाव अप्रत्याशित परेशानियों, खर्चों, पीड़ाओं का प्रतिनिधित्व करता है. इस अवधि के दौरान, आप पूरी तरह से खुद पर ध्यान केंद्रित रख सकते हैं. व्यस्तता का सामना करना पड़ सकता है और  जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हो सकते हैं. विदेश योग का लाभ भी मिल सकता है.

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मीन राशि में शनि : वृश्चिक राशि पर शनि के गोचर का प्रभाव

शनि वृश्चिक राशि वालों के लिए तीसरे और चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह है. मीन राशि में शनि का प्रवेश होने पर यह यह वृश्चिक राशि वालों के पंचम भाव में गोचर करता है. शनि का वृश्चिक राशि वालों के लिए केन्द्र भाव के स्वामी होते हैं जिसके कारण कुछ अनुकूल रह सकते हैं ओर गोचर में भी यह त्रिकोण का संबंध सकारात्मक प्रभाव देने में सहायक बनता है. 

वृश्चिक राशि के लिए शनि का मीन राशि गोचर समय 

शनि का बदलाव 29 मार्च, 2025 को रात 9 बजकर 44 मिनट पर कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में होगा. वृश्चिक राशि के लिए शनि 29 मार्च को ही पंचम भाव में चले जाएंगे.  

वृश्चिक राशि पर शनि गोचर का प्रभाव

गोचर गणना के अनुसार शनि को सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में लगभग तीस साल का समय लग जाता है. इसी वजह से शनि को राशि चक्र की सभी बारह राशियों में से यात्रा करने में लगभग 30 वर्ष ही लगते हैं. इस कारण लिहाज से शनि को किसी एक राशि का चक्कर पूरा करने में पूरे ढाई वर्ष लगते हैं. वर्तमान में शनि कुंभ राशि में गोचर करने के बाद 29 मार्च 2025 को शनि अपनी राशि बदलकर मीन राशि में प्रवेश का प्रभाव देंगे. अपने स्वभाव के अनुसार शनि भी ढाई साल तक मीन राशि में भ्रमण करेंगे. इस प्रकार शनि के मीन राशि में भ्रमण की अवधि का वृश्चिक राशि के जीवन पर गहरा प्रभाव होगा. 

शनि के राशि परिवर्तन का प्रभाव हर राशि पर पड़ेगा. जिस राशि के लिए शनि जिस भाव तत्व के अलावा, मित्रता-शत्रुता इत्यादि भाव रखने वाले होंगे वैसे ही फल देने वाले होंगे.

वृश्चिक राशि का पंचम भाव होगा प्रभावित

वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि पंचम भाव को प्रभावित करेगा. वैदिक ज्योतिष में कुंडली का पांचवां भाव रचनात्मकता, रोमांस और बच्चों से जुड़ा हुआ होता है. यह इस बारे में बताता है कि आपको क्या अच्छा लगता है. खुशी अक्सर उन रचनात्मक गतिविधियों का परिणाम होती है जिनमें आप शामिल होते हैं. तो इस स्थिति में शनि बातों पर असर डालेगा. 

शनि बताएगा कि लॉटरी जैसे जुए के खेल में आपका प्रदर्शन कैसा रहेगा. यह भाव दिल के मामलों से भी जुड़ा हुआ है. पंचम भाव में ग्रहों की स्थिति और राशियों का विश्लेषण करने से पता चल सकता है कि आप इन मामलों से कैसे निपटते हैं. शनि का प्रभाव संतान सुख को भी प्रभावित करेगा क्योंकि बच्चों का जन्म भी इस भाव से जुड़ा है. पंचम भाव पहली बार गर्भाधान या गर्भावस्था का प्रतीक है. 

शनि इसके अलावा पंचम भाव की अन्य बातों को प्रभावित करेगा. जैसे पंचम का संबंध कलात्मक प्रतिभा, कल्पना, स्वाद और पत्नी या व्यापारिक साझेदार के भाग्य से प्राप्त संपत्ति से भी है. यह भाव मनोरंजन, खेल, रोमांस, मनोरंजन और इसी तरह की अन्य रुचियों को भी दर्शाता है. कुंडली में त्रिकोण भाव होने के कारण, पंचम भाव पूर्व पुण्य स्थान को दर्शाता है जो व्यक्ति के पिछले जीवन के पुण्य कर्मों को दर्शाता है. लॉटरी, जुआ, शेयर, सट्टा और स्टॉक एक्सचेंज जैसे मौकों के खेल पंचम भाव से देखे जाते हैं. पंचम भाव से जुड़ा शरीर का अंग पेट है, जीवन से भरा हुआ, रचनात्मक और संतुष्ट महसूस करना पंचम भाव है जैसा कि इस शरीर के अंग से पता चलता है. पंचम भाव मन और मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है. दिल की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो इस भाव के माध्यम से कार्य करते हैं. कुछ बनाना, जो आपको पसंद है उसे सिखाना या सीखना, प्रेम संबंध, ज्ञान वर्धन जैसी बातीं इसी भाव का मुख्य प्रभाव देती हैं. 

वृश्चिक राशि वालों की कुंडली के अनुसार शनि चौथे ओर तीसरे भाव के स्वामी हैं. वृश्चिक राशि की जन्म कुंडली के अनुसार शनि वर्तमान में पंचम भाव में गोचर करने जा रहे हैं. पंचम भाव संतान, गूढ़ ज्ञान, विद्या, प्रेम संबंध, प्रसिद्धि, कलात्मक कौशल, वैभव और अन्य प्रमुख क्षेत्रों से संबंधित होता है. यह भाव आपके वैवाहिक जीवन से भी संबंधित है, इसलिए शनि का वर्तमान गोचर आपके लिए काफी संवेदनशील रहने वाला है. 

शनि का मकर राशि में गोचर आपके वैवाहिक या प्रेम संबंधों में दरार या मतभेद पैदा करने की क्षमता रखता है. इसके साथ ही यह गोचर आपके व्यवसाय में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है. इस समय जीवन के प्रति अधिक सतर्क और गंभीर होना होगा. शनि का गोचर मीन राशि में होने जा रहा है, इस गोचर का वृश्चिक राशि के जातकों पर मिलाजुला प्रभाव पड़ने वाला है. इस राशि परिवर्तन का वृश्चिक राशि पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव देखने को मिलेगा. इस दौरान की गई मेहनत आपको अपने करियर में तरक्की दिलाएगी. शनि आपको अनुशासन में रहते हुए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करते हैं. शनि का आपको धैर्य रखना और जल्दबाजी में निर्णय न लेना भी सिखाएगा.

करियर पर शनि गोचर का प्रभाव

इस दौरान कार्यक्षेत्र में आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, लेकिन आप व्यावहारिक रहते हुए इन समस्याओं को आसानी से सुलझा पाएंगे. शनि गोचर करियर के लिए काफी फायदेमंद रहने वाला है. इस दौरान प्रमोशन भी मिल सकता है. काम का बोझ लगातार बढ़ेगा, साथ ही समय सीमा के भीतर काम खत्म करने का दबाव भी रहेगा. इस स्थिति से निपटने के लिए काम को प्राथमिकता के आधार पर बांटना होगा और उसे पूरा करने के लिए एकाग्रता के साथ काम करना होगा. इस दौरान की गई मेहनत का उचित फल भी मिलेगा.

व्यापार पर शनि गोचर का प्रभाव 

इस दौरान आप अनुशासन और एकाग्रता की कमी से ग्रसित रहने वाले हैं. छोटे और सरल कार्यों को भी पूरा करना मुश्किल हो सकता है. व्यापारी वर्ग पर इस गोचर का प्रभाव कुछ विपरीत परिस्थितियों को जन्म दे सकता है, संभवतः इस दौरान आपकी योजनाएं मंदी के दौर से गुजर सकती हैं. यह व्यवसाय विकास योजनाओं में अर्जित अनुभव का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है. इस दौरान आपकी तर्क शक्ति स्थिति को मजबूत बनाने में मदद करेगी. काम में लगनशील रहना होगा. शनि का यह गोचर किसी भी निर्णय को अंतिम रूप देने से पहले बहुत अधिक ध्यान और तार्किक दृष्टिकोण की मांग करता है इससे मनचाही सफलता प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.

आर्थिक स्थिति पर शनि गोचर का प्रभाव

शनि गोचर के दौरान कुछ व्यर्थ के खर्च अधिक होने की संभावना है इसलिए ऐसे में अपने बजट प्लान पर टिके रहने की कोशिश करनी होगी अन्यथा आर्थिक मंदी आ सकती है. इस दौरान जमा-पूंजी से असंतुष्ट रह सकते हैं. जरूरतों और आर्थिक सुरक्षा के लिए अधिक बचत करनी होगी. धन से जुड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक मेहनत करेंगे. बेहतर आर्थिक स्थिति और स्थिरता के लिए लंबी अवधि के निवेश की योजना पर काम कर सकते हैं. 

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मेष लग्न के लिए बाधक ग्रह और प्रभाव

मेष लग्न के लिए बाधक ग्रह

मेष लग्न के लिए ग्यारहवां भाव बाधक भाव होता है और इस भाव का स्वामी शनि होता है. शनि यहां बाधक ग्रह की भूमिका निभाता है. शनि की दशा या अंतर्दशा के दौरान व्यक्ति को करियर, आर्थिक स्थिति और सामाजिक प्रतिष्ठा में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. शनि का प्रभाव देरी, रुकावट और असफलता के रूप में भी प्रकट हो सकता है. व्यक्ति को मानसिक तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ सकता है.

मेष लग्न के लिए जब बात आती है तो शनि दशा बाधक के रुप में अपना असर दिखाती है. मेष लग्न के लिए इसे अनुकूल नहीं माना गया है.  मेष लग्न अग्नि तत्व युक्त राशि है, जिस पर मंगल का अधिकार है. मंगल के साथ शनि का प्रभाव वैसे भी शुभ नहीं माना जाता है ओर एकादश भाव का स्वामी बन कर शनि बाधक ग्रह बन जाता है. इस प्रकार मेष लग्न की कुंडली में शनि के परिणाम अधिकतर कमजोर ही मिलते हैं.

मेष लग्न के लिए बाधक शनि प्रभाव 

मेष राशि के लिए यह अत्यंत खास ग्रह भी है क्योंकि यह दशम भाव का भी स्वामी है जो एक केन्द्र भाव स्थान है. नीचस्थ शनि की महादशा अशुभ हो सकती है. यदि शनि राहु, केतु और मंगल से पीड़ित है तो जीवन में कई अवांछित घटनाएं घट दे सकता है. शनि प्रभाव के दौरान स्वास्थ्य समस्याएं, शत्रु और ऋण होने की संभावना रह सकती है. यदि शनि ग्रह अच्छी स्थिति में है तो यह सहायक भी होता है लेकिन पूर्ण रुप से अपना असर नहीं दे पाता है. 

मेष लग्न के लिए शनि बाधक दशा का फल

मेष लग्न के लिए शनि का प्रभाव अधिक शुभ नहीं माना जाता है. यह किसी बुरे ग्रह का प्रभाव अधिक दिखाता है. शनि की महादशा के कारण कार्यक्षेत्र पर काफी परेशानी हो सकती है, नौकरी छूटने का भी डर रहता है. महादशा के दौरान व्यक्ति का जीवन कर्ज और बीमारियों से घिर जाता है. इस समय मेहनत तो अधिक होती है लेकिन लाभ कम रहता है  शनि सेवक, कर्मचारियों, नशे या गलत चीजों का सेवन, क्रोध, भ्रम, पुरुषार्थ, साहस, पराक्रम, योग आदि का प्रतिनिधि है. कमजोर एवं अशुभ होने पर इन फलों में कमी एवं अशुभता प्रदान कर सकता है.

शनि धार्मिक गतिविधियों के प्रति रुझान बढ़ाता है. व्यक्ति चीजों को जल्दी खत्म करना चाहता है. व्यक्ति को अपने काम में टालमटोल या देरी पसंद नहीं होती. काम में समय सीमा को पूरा करने में अच्छा प्रदर्शन करते हैं. उनका संचार भी मजबूत होता है, जो उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में मदद करता है. हालाँकि, यह स्थिति कभी-कभी बेचैन, अनैतिक और चंचल दिमाग का बना सकती है.

मेष लग्न के लिए बाधक शनि का भाव फल 

शनि अधिक पित्त वाला, सभी प्रकार का भोजन करने वाला, उदार, कुल का दीपक तथा स्त्रियों के प्रति कम प्रेम रखने वाला, धीमा ग्रह है. मेष लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति शनि के बाधक होने के कारण शारीरिक कष्ट तथा धन की हानि का सामना करना पड़ सकता है.  बाधकेश होकर शनि जिस भी भाव से संबंध बनाता है उसे भी प्रभावित करता है. 

प्रथम केन्द्र और शरीर भाव में अपने शत्रु मंगल की मेष राशि में स्थित शनि के प्रभाव से शारीरिक सौन्दर्य, मान-सम्मान और आय में कुछ कमी आती है, साथ ही राज्य क्षेत्र में भी परेशानियां आती हैं.  

द्वितीय धन और कुटुंब भाव में अपने मित्र शुक्र की वृष राशि में स्थित शनि के प्रभाव से आर्थिक क्षेत्र में सफलता के लिए संघर्ष अधिक करना पड़ता है और धन और कुटुंब में वृद्धि होती है. इस स्थान से शुक्र चतुर्थ भाव को तृतीय शत्रु दृष्टि से देखता है.

तृतीय पराक्रम भाव में अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से पराक्रम में वृद्धि होती है और उसे अपने भाई-बहनों से पर्याप्त सुख नहीं मिलता है. इसके साथ ही उसे पिता और राज्य क्षेत्र से भी सहयोग मिलता है. 

चतुर्थ केन्द्र, माता, सुख एवं भूमि भाव में अपने शत्रु चन्द्र की कर्क राशि में स्थित शनि के प्रभाव से माता एवं भूमि के सम्बन्ध में सफलता से कुछ असंतोष मिलता है, किन्तु सुख के साधन बढ़ते रहते हैं. 

पंचम त्रिकोण एवं शिक्षा एवं बुद्धि के क्षेत्र में अपने शत्रु सूर्य की सिंह राशि में स्थित शनि के प्रभाव से शिक्षा एवं बुद्धि द्वारा व्यापार के क्षेत्र में सफलता पाता है, किन्तु संतान से मतभेद बना रहता है. 

छठे शत्रु भाव में अपने मित्र बुध की कन्या राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक का अपने पिता से बैर होता है तथा सरकारी क्षेत्र में कठिन प्रयासों के बाद सफलता मिलती है. छठे भाव में क्रूर ग्रह की उपस्थिति प्रभावी मानी जाती है, अत: जातक की आय अच्छी रहेगी तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता रहेगा. 

शनि सप्तम भाव में है तो अपने मित्र शुक्र की तुला राशि पर उच्च का होकर स्त्री और व्यापार के भाव में बैठा हो तो इसके प्रभाव से व्यक्ति को व्यापार और स्त्रियों में विशेष सफलता मिलती है. पिता और राज्य से भी उसे बहुत लाभ मिलता है. यहां से शनि तृतीय शत्रु दृष्टि से नवम भाव को देखता है, अतः भाग्य वृद्धि में कुछ कठिनाइयां आएंगी.

शनि अष्टम भाव में होने पर अपने शत्रु मंगल की वृश्चिक राशि में स्थित शनि के प्रभाव से आय के क्षेत्र में कमजोरी रहती है, परन्तु पुरातत्व में लाभ होता है तथा आयु के सम्बन्ध में भी बहुत बल मिलता है.  ऐसी ग्रह स्थिति क्रोधी, वाणी में तीक्ष्ण तथा अल्प लाभ पाने वाली होती है.

शनि नवम भाव में होने पर शत्रु गुरु की धनु राशि में बैठे शनि के प्रभाव से भाग्य आरम्भ में थोड़ा सुधरता है, धर्म का भी थोड़ा पालन होता है. पिता और राज्य की शक्ति भी होती है और उनसे लाभ भी प्राप्त होता है.

बाधक शनि दशम भाव में होने पर अपनी स्वराशि मकर में अनुकूलता दे सकता है. पिता और राज्य से विशेष शक्ति मिलती है तथा उनसे लाभ मिलता है. शनि गुरु की मीन राशि में व्यय भाव को तीसरी दृष्टि से देखता है, अतः व्यय अधिक होगा तथा बाहरी संबंधों से असंतोष प्राप्त होता है.

एकादश लाभ भाव में अपनी कुंभ राशि में स्थित बाधक शनि के प्रभाव से आय के क्षेत्र में उत्तम सफलता कम मिलती है. पिता एवं राज्य से भी अच्छा सुख एवं लाभ प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है. शारीरिक सौन्दर्य में कमी आ सकती है. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण सफलता नहीं मिलती है. 

बाधक शनि के द्वादश व्यय भाव में होने पर अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से व्यय बहुत अधिक रहते हैं. साथ ही पिता और सरकार से भी हानि उठानी पड़ती है. धन और कुटुंब की वृद्धि के लिए विशेष प्रयास करने होते हैं. 

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मीन लग्न में बाधक ग्रह और इसका प्रभाव

मीन लग्न के लिए बाधक ग्रह सातवें भाव का स्वामी होता है. सातवें भाव में आने वाली कन्या राशि का स्वामी बुध मीन लग्न के लिए बाधक का काम करता है. मीन लग्न के लिए बुध की स्थिति बाधक के रुप में अपना असर दिखाती है. बाधक की स्थिति कई मायनों में अस्पना असर डालने वाली है. आइये जान लेते हैं कैसे मीन लग्न के लिए बाधक अपना असर डालता है और इसके क्या प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. 

मीन लग्न के लिए कौन सा ग्रह और भाव बाधक होता है

मीन लग्न के लिए बुध ग्रह बाधक होता है और सातवां भाव बाधक बनता है.  

मीन लग्न में बुध के बाधकेश होने का प्रभाव 

मीन लग्न के लिए बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होने से शुभ फल देने में सहायक होता है. इसके अलावा बुध सप्तम भाव का स्वामी होकर विवाह, साझेदारी, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, दान जैसी चीजों के लिए विशेष हो जाता है. कुंडली में बुध की स्थिति व्यक्ति को वह सुख प्रदान करती है जिसके लिए व्यक्ति काफी संघर्ष करता है. 

व्यक्ति की कुंडली में बुध की दशा अवधि में बुध के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं. लेकिन अगर बुध कमजोर हो तो कमजोर परिणाम देखने को मिलते हैं. 

बुध के बाधकेश होने पर इसकी दशा और इसके प्रभाव उपयुक्त रुप से नहीं मिल पाते हैं. 

बाधकेश बुध के साथ जो ग्रह युति योग में होते हैं तो उन ग्रहों पर भी बाधकेश बुध का अधिक असर पड़ता है. 

बुध के बाधकेश होने पर बुध से मिलने वाले कारक तत्व कमजोर हो जाते हैं. 

बुध के बाधकेश होने पर महादशा और दशा पर बाधकेश का असर पड़ता है.

बाधकेश बुध की ग्रहों के साथ दृष्टि संबंध भी बाधक वाल अप्रभाव डालती है.

मीन लग्न में शुभ अशुभ ग्रह 

मीन लग्न को  शुभ, सौम्य और उदार लग्न के रूप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति है जिसे बहुत ही शुभ ग्रह माना गया है. मीन लग्न का असर व्यवहार और गुणों पर मीन राशि के साथ साथ गुरु के गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है. इस लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है. मीन लग्न के भाव की स्थिति और राशि की स्थिति के अनुसार सभी ग्रह अपना प्रभाव दिखाते हैं. मीन लग्न में प्रत्येक ग्रह का प्रभाव इस प्रकार देखा जा सकता है:-

मीन लग्न और गुरु 

मीन लग्न के लिए गुरु लग्नेश होता है ओर अच्छे परिणाम देता है. इसके अतिरिक्त गुरु शुभ स्थित है तो जीवन में निखार आता है तथा मजबूती भी आती है. गुरु के प्रभाव में या उसकी दशा अवधि में शुभ फल प्राप्त होते हैं, लेकिन गुरु के कमजोर होने से अच्छे परिणाम कमजोर हो जाते हैं.   

मीन लग्न और सूर्य 

मीन लग्न के लिए सूर्य छठे भाव का स्वामी होता है. इस कारण सूर्य इस लग्न के लिए ये सभी चीजें प्रदान करने वाला ग्रह भी बन जाता है. अधिकार मिलता है, व्यापारिक दृष्टिकोण मिलता है. किसी भी अच्छी या बुरी लत से निपटने में इसकी कुशलता सूर्य के माध्यम से पाई जा सकती है. इस स्थान पर सूर्य के स्वामित्व का प्रभाव व्यक्ति में चीजों से लड़ने का साहस भी देता है.   

मीन लग्न और चन्द्रमा 

मीन लग्न के लिए चन्द्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. भाव के प्रभाव का स्वामी होने से चन्द्रमा की शुभता प्राप्त होती है. चन्द्रमा शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, दान, छल, कपट, अंतःकरण की स्थिति के लिए भी जिम्मेदार बनता है. चन्द्रमा जलीय पदार्थ, संचित धन, झूठे आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां यह ऐसी चीजों से जुड़ता है जिसके कारण व्यक्ति भावनात्मक रूप से अधिक उन्नत होता है.  

मीन लग्न और मंगल

मीन लग्न के लिए मंगल द्वितीय भाव का स्वामी होता है. मंगल का परिवार पर गहरा प्रभाव पड़ता है. वहीं नवम भाव का स्वामी होने के कारण मंगल धर्म, गुण, भाग्य, गुरु, ब्राह्मण, भगवान, तीर्थ यात्रा, भक्ति, दृष्टिकोण, भाग्य को प्रभावित करता है. मंगल की दशा के दौरान मंगल के मजबूत और शुभ प्रभाव मिलते हैं, लेकिन मंगल कमजोर है, तो बुरे परिणाम और अधिक संघर्ष देखने को मिलता है.

मीन लग्न और शुक्र 

मीन लग्न के लिए शुक्र तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. इन दोनों भावों का स्वामी होने के कारण यह बुरे परिणाम देने के लिए अधिक जाना जाता है. तीसरे भाव का स्वामी होने के कारण यह जातक अपने साहस के लिए इस पर निर्भर रहता है. शुक्र एक शुभ ग्रह है, इसलिए इन बुरे भावों का स्वामी होने के कारण यह अपने शुभ फल अनुकूल ढंग से नहीं दे पाता है. 

मीन लग्न और शनि 

मीन लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. शनि व्यक्ति के सामाजिक प्रभाव को भी दर्शाता है. इसके अलावा शनि जीवन में होने वाले खर्चों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा. शनि नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग विलास, वासना, व्यभिचार, बेकार की चीजों का प्रतिनिधित्व करेगा. विदेश यात्रा आदि के लिए भी शनि की स्थिति महत्वपूर्ण होगी. 

मीन लग्न और राहु-केतु 

राहु और केतु को किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है, इसलिए ऐसी स्थिति में ये ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं, उसके अनुसार परिणाम देते हैं.इसी तरह, इसके सामने बैठा केतु भी भाव, राशि और ग्रह स्थिति के अनुसार अपना प्रभाव दिखाएगा. अगर कुंडली में ये दोनों ही सही स्थान पर हैं तो सकारात्मक प्रभाव देंगे, लेकिन अगर इसके विपरीत है तो ये दोनों कई नकारात्मक परिणाम दे सकते हैं.  

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सूर्य से बनने वाले विशेष ज्योतिषीय योग

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को विशेष महत्व दिया गया है और इसे सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है. इसके अलावा सूर्य को पिता का कारक भी माना जाता है. ज्योतिष के आधार पर बात करें तो व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की शुभ या अशुभ स्थिति उसके पिता के साथ उसके संबंधों को निर्धारित करती है. इसके अलावा कुंडली में सूर्य को सफलता और सम्मान का कारक भी माना गया है. जिन लोगों की कुंडली में सूर्य शुभ स्थिति में होता है, वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं. आइए जानते हैं सूर्य ग्रह और महत्वपूर्ण सूर्य से बनने वाले ज्योतिषीय

ज्योतिष अनुसार शुभ अशुभ सूर्य
सूर्य की ऊर्जा के बल पर ही हम ऊर्जावान बने रहते हैं. इसके अलावा, कुंडली में सूर्य ग्रह का प्रभाव महत्वपूर्ण है. ज्योतिष के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के लग्न में सूर्य ग्रह मौजूद है, तो ऐसे में प्रभावशाली व्यक्तित्व प्राप्त होता है. यदि कुंडली में मजबूत सूर्य मौजूद है, तो ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं, अपने जीवन में सभी लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं. ऐसे लोगों का जीवन खुशियों से भरा रहता है और वे स्वभाव से दयालु होते हैं. इसके विपरीत, जिन लोगों की कुंडली में सूर्य पीड़ित होता है, वे स्वभाव से अहंकारी होते हैं और ऐसे लोगों का गुस्सा उनका सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. वे अपने किसी भी लक्ष्य या प्रोजेक्ट को पूरा करने में असमर्थ होते हैं और ऐसे व्यक्ति जीवन में हर छोटी-छोटी बात को लेकर उदास हो जाते हैं. पीड़ित सूर्य के कारण व्यक्ति

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है. सूर्य का संबंध पिता, राज्य, राजकीय सेवा, मान-सम्मान, वैभव से होता है. इसके साथ ही मनुष्य के शरीर में पाचन तंत्र, आंखें और हड्डियां सूर्य से संबंधित होती हैं. सूर्य की शुभ स्थिति जहां जीवन में यश और समृद्धि लाती है, वहीं कमजोर सूर्य दरिद्रता, मान-सम्मान में कमी और खराब स्वास्थ्य का कारण बनता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से संबंधित मुख्य रूप से तीन प्रकार के शुभ योग बताए गए हैं. ये योग व्यक्ति को अपार मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं. तो आइए जानते हैं वे योग कौन से हैं.

कमजोर सूर्य से होने वाले रोग ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सभी नौ ग्रह या नवग्रह व्यक्ति के जीवन पर शुभ या अशुभ दोनों तरह के प्रभाव डालते हैं. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह मजबूत स्थिति में है तो उस ग्रह से संबंधित व्यक्ति को शुभ परिणाम मिलते हैं, जबकि इसके विपरीत यदि कोई ग्रह कमजोर है तो व्यक्ति को बुरे या नकारात्मक परिणामों का सामना करना पड़ता है. इनमें से एक परिणाम बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं या बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन व्यक्ति को जो भी छोटी या गंभीर बीमारियां होती हैं, वे कुछ हद तक नौ ग्रहों और उनके प्रभाव से संबंधित होती हैं.जब कुंडली में कमजोर सूर्य होता है तो व्यक्ति कुछ बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है. आंखों से जुड़ी समस्याएं, सिर से जुड़ी समस्याएं या हड्डियों से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं. इतना ही नहीं, कई मामलों में कमजोर सूर्य के कारण हृदय रोग और पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियां भी व्यक्ति को जीवन भर परेशान कर सकती हैं.

सूर्य से बनने वाले योग
सूर्य के द्वारा बनने वाले कुछ विशेष योगों की अगर बात की जाए तो यह कुंडली में सूर्य की स्थिति के द्वारा दिखाई देते हैं. इनमें से कुछ योग इस प्रकार हैं.

वेशी योग
वेशी योग तब बनता है जब राहु, केतु और चंद्रमा को छोड़कर कोई भी ग्रह सूर्य से दूसरे स्थान पर स्थित हो, तो उसे वेशी योग कहते हैं. यह योग सत्यनिष्ठ, निष्ठावान और पवित्र व्यक्तित्व देता है. इस योग से आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने का मार्ग मिलता है.संवाद और वाद-विवाद में भी अच्छे होते हैं. वाणी हमेशा तर्क पर आधारित होती है. यह योग आय के एक से अधिक स्रोत भी देता है.

वाशी योग
वाशी योग तब बनता है जब राहु, केतु और चंद्रमा को छोड़कर कोई भी ग्रह सूर्य से बारहवें स्थान पर स्थित हो, तो वाशी योग बनता है. इस स्थिति में, व्यक्ति प्रशासन में आधिकारिक पद का आनंद लेता है. राजसी जीवन जीते हैं. बहुत ही कुशल और बौद्धिक होते हैं.याददाश्त तेज होती है और इच्छाशक्ति मजबूत होती है. व्यक्ति बहुत मेहनती होते हैं, बहुत उदार होते हैं और दान-पुण्य में भी बहुत अधिक लिप्त रहते हैं.

उभयचारी योग
उभयचारी योग तब बनता है जब सूर्य के पीछे एक भाव में राहु, केतु और चंद्रमा को छोड़कर कोई भी ग्रह हो, तो उसे उभयचारी योग कहते हैं, अर्थात, जब राहु, केतु और चंद्रमा को छोड़कर कोई भी ग्रह सूर्य से दूसरे और बारहवें भाव में हो. ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व परिष्कृत होता है. व्यक्ति व्यवहार कुशल, साहसी होता है और उसका सामाजिक जीवन भी अच्छा होता है. यह योग व्यक्ति को प्रचुर धन और नौकरों का सुख प्रदान करता है. व्यक्ति एक संतोषजनक जीवन का आनंद लेता है और समाज से उसे भरपूर सहयोग मिलता है.

बुध आदित्य योग
यह योग तब बनता है जब सूर्य बुध के साथ किसी भाव में बिना किसी पीड़ा के युति में होता है, तो जो योग बनता है, उसे बुध आदित्य योग कहते हैं. इस युति के परिणाम तब अधिक सकारात्मक होते हैं जब यह कन्या, सिंह, मेष और मिथुन राशि में होता है. सूर्य और बुध जितने करीब होंगे, योग उतना ही प्रभावशाली होगा. यह योग लग्न या दसवें भाव में होने पर और भी शक्तिशाली हो जाता है. बुध आदित्य योग व्यक्ति को सुख-सुविधाएं, धन, वैभव और खुशियां प्रदान करता है. यह योग व्यवसाय में बेहतर कमाई की सुविधा भी देता है. व्यक्ति बहुत बुद्धिमान, प्रसिद्ध, तेज दिमाग वाला और मानसिक रूप से मजबूत होता है. व्यक्ति व्यवसाय, वाद-विवाद और सरकारी क्षेत्र में उत्कृष्ट होते हैं. कुंडली में इस योग वाले लोग अच्छी शिक्षा पाते हैं.

ग्रहों के साथ सूर्य का योग
ज्योतिष में गुरु और सूर्य को माना जाता है. ऐसे में अगर किसी की कुंडली में इन दोनों का योग बन रहा है तो यह अपने साथ बड़े बदलाव और जीवन में बदलाव लेकर आता है. सूर्य के साथ चंद्रमा का योग होने पर ऐसे व्यक्ति अधिक विचारशील होते हैं वाले लेकिन कुशल व्यवसायी हो सकते हैं. सूर्य के साथ मंगल का योग होने पर व्यक्ति हमेशा सच्चाई का साथ देते हैं और अपने भाइयों के साथ उनके संबंध मजबूत होते हैं. सूर्य के साथ बुध का योग ऐसे व्यक्ति बौद्धिक और अच्छे विद्वान होते हैं और उच्च सम्मान प्राप्त करते हैं. सूर्य के साथ शुक्र होने पर सम्मानित होते हैं, मित्र, शिक्षक हमेशा अच्छे होते हैं. व्यक्ति ज्ञानी, शास्त्रों के ज्ञाता और नृत्य कला में निपुण होते हैं. सूर्य के साथ शनि का योग ज्ञानी और विद्वान बनाता है. सूर्य के साथ राहु का योग मानसिक समस्याओं से ग्रस्त होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति स्वभाव से थोड़े जिद्दी भी हो सकते हैं. सूर्य केतु का योग नेत्र रोग, स्वभाव से जिद्दी लेकिन बुद्धिमान होते हैं.

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शुक्र केतु युति योग का विवाह पर प्रभाव

शुक्र केतु युति योग का विवाह पर प्रभाव 

शुक्र और केतु की युति के प्रभाव से विशेष गुण फलों की प्राप्ति होती है. शुक्र और केतु का योग सभी भावों में राशि और भाव अनुसार फल देने वाला होता है. शुक्र और केतु का प्रभाव व्यक्ति को इच्छाओं और विरिक्ति के मध्य उठा-पटक की स्थिति देने वाला होता है. शुक्र और केतु की युति वित्तीय संकट का कारण बन सकती है. वैवाहिक जीवन अशांत हो सकता है. उसे अपने साथी या प्रियजन या करीबी व्यक्ति द्वारा वित्तीय धोखाधड़ी या धोखा दिया जा सकता है.

शुक्र सुख, भोग, लाभ, विलासिता, यौन इच्छाओं, खुशी, प्रेम संबंधों, सुंदरता का प्रतीक है. कुंडली में शुक्र की अच्छी स्थिति किसी भी सांसारिक संपत्ति से संबंधित संतुष्टि के लिए विशेष होता है. केतु चंद्रमा का दक्षिणी नोड है और यह भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि यह एक छाया ग्रह है, इसलिए केतु के प्रभाव में किसी भी घटना के बारे में तर्कसंगत रूप से सोचना मुश्किल हो जाता है. 

यह हमेशा भौतिकवादी दुनिया से अलग करके स्वयं के लिए आलोचनात्मक होने की ओर ले जाता है. शुक्र और केतु की युति यह दर्शाती है कि संबंधों में केतु के कारण पैदा होने वाले भ्रम के कारण शुक्र अंधा हो जाता है. भ्रम इतने प्रबल होते हैं कि व्यक्ति घटनाओं के वास्तविक उत्साह को तब तक नहीं देख पाता जब तक कि उसे सुधारने के लिए बहुत देर न हो जाए.

शुक्र केतु युति दिशा परिवर्तन का समय 

शुक्र विलासिता का मुख्य कारक है जब यह कर्म ग्रह केतु के साथ युति करता है, तो यह भौतिकवादी विलासिता से भी असंतोष देता है. दिशाहीन केतु प्रेम के ग्रह शुक्र को रिश्तों में विभिन्न दिशाओं में ले जाता है. प्रेम और वैवाहिक संबंधों में संघर्ष, गलतफहमियां पैदा करता है जब तक का अनुभव न हो जाए कि विचारशीलता के सभी रास्ते बंद हो गए हैं. 

प्रेम या वैवाहिक संबंधों में प्रेमी अथवा साथी इस भ्रम में रहते हैं कि कोई एक ही है जो रिश्ते में प्रयास और त्याग कर रहा है और यह प्रेम की गर्मजोशी में अहंकार-परेशानी पैदा करने के लिए पर्याप्त मजबूत है.

ये सभी बातें कुंडली में शुक्र-केतु युति की शक्ति को दिखाती हैं. 

शुक्र केतु जीवन में चुनौतियों का कारण 

शुक्र और केतु की युति सबसे खराब युति मानी जा सकती है. शुक्र और केतु एक दूसरे के सबसे बड़े शत्रु माने जाते हैं, शुक्र और केतु का महत्व एक दूसरे के विपरीत है. व्यक्ति का जीवन चुनौतियों से भरा हो सकता है. व्यक्ति को पारिवारिक सुख और आराम की कमी होती है. वह हताशा से ग्रस्त हो सकता है. प्रथम भाव में शुक्र और केतु की युति उसे दिखने में सुंदर बनाती है. व्यक्ति का रंग गोरा और कद लंबा हो सकता है. उसकी आंखों में प्राकृतिक आकर्षण और आकर्षण हो सकता है. 

वह अपनी उम्र से कम दिख सकता है, लेकिन उसके चेहरे पर कठोरता है. उसका आकर्षक व्यक्तित्व विपरीत लिंग को आकर्षित कर सकता है. केतु के कारण उसके चेहरे पर कट के निशान हो सकते हैं. प्रथम भाव में शुक्र के साथ केतु व्यक्ति को कामुक स्वभाव का बना सकता है. व्यक्ति की यौन इच्छाएं बहुत अधिक होती हैं. उसे अपनी पत्नी के साथ यौन सुख की कमी होती है. उसकी दोहरी मानसिकता और चुलबुला स्वभाव होता है. लेकिन वह अपने रिश्ते के प्रति कभी प्रतिबद्ध नहीं होता. शुक्र केतु प्रथम भाव संतुष्टि

शुक्र और केतु युति वैवाहिक जीवन में अशांति पैदा कर सकती है 

शुक्र के प्रभाव से पहले केतु प्रेम और रिश्तों में कई भ्रम पैदा करता है, इससे पहले कि शुक्र का प्रभाव आपको यह एहसास करा दे कि अपने प्रेम साथी या जीवनसाथी के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखना आसान नहीं है. दोनों पार्टनर इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि वे ही हैं जो आपके रिश्ते को कामयाब बनाने के लिए त्याग कर रहे हैं. केतु के सामने शुक्र दृष्टिहीन और दिशाहीन हो जाता है और रिश्तों में स्पष्टता खत्म हो जाती है. शुक्र भौतिक सुख का ग्रह है और केतु भौतिक सुख से दूर रहने की प्रवृत्ति रखता है जो प्रेम संबंधों में रुकावट का कारण बन सकता है और दो आत्माओं के भविष्य को प्रभावित कर सकता है. 

शुक्र और केतु की युति जीवन की युवा अवधि में आपको बहुत भावुक स्वभाव का बना सकती है, लेकिन बाद में परिपक्व उम्र में, भौतिकवादी दुनिया से अलग ले जाने वाली हो सकती है. व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि के साथ आध्यात्मिक रूप से प्रवृत्त हो सकता है. शक्तिशाली शुक्र का प्रभाव जब शुक्र-केतु युति में केतु पर शुक्र ग्रह की मजबूत भूमिका होती है, तो शुक्र से संबंधित कारकों, विलासिता, अच्छे रिश्ते और यौन इच्छाओं की पूर्ति का आनंद ले पाता है. जीवन के युवा चरण में शुक्र के सकारात्मक प्रभाव होंगे और जीवन के बाद के चरण में शुक्र ग्रह के लाभों का आनंद मिलेगा. 

शुक्र केतु युति का जीवन साथी पर प्रभाव 

शुक्र केतु युति का प्रभाव कई तरह से जीवन साथी पर पड़ स्कता है. इसके अलावा व्यक्ति के जीवन विवाह से जूड़े मुद्दे परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति के विवाह में देरी हो सकती है, या उसे वैवाहिक सुख की कमी हो सकती है. उसके वैवाहिक जीवन में कई तरह की परेशानियां होती हैं. इससे जीवन साथी से तलाक या अलगाव हो सकता है. 

व्यक्ति का साथी किसी कम संपन्न परिवार से, पारंपरिक विचारवादी हो सकता है. जीवन साथी का स्वभाव से झगड़ालू और तर्कशील हो सकती है. उसका साथी विवाद हो सकता है या यौन संबंध में परेशानी हो सकती है. जीवन साथी अधिक रुढ़ीवादी, स्वभाव से धार्मिक हो सकता है. धन संचय और मितव्ययिता की ओर झुकाव रख सकता है.

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शनि का मीन राशि प्रवेश : सभी राशियों के लिए प्रभाव

मीन राशि में अब शनि का गोचर लाएगा शनि साढ़ेसाती और शनि ढ़ैया प्रभाव. शनि लोगों के सामने आने वाले कल की रुपरेखा रखेगा. नई जिम्मेदारियों को संभालने और योजनाओं को क्रियान्वित करने का आत्मविश्वास देगा. मीन में जब शनि कुंभ राशि में वक्री होगा, तो यह खुद को पहचानने के मौके देगा साथ ही व्यक्तिगत और करियर जीवन पर अचानक बदलाव लाएगा.

29 मार्च 2025 को शनि मीन राशि में गोचर करेगा. मीन राशि में शनि के साथ, अगले 27 महीनों में बड़े बदलावों कासमय होगा. यह गोचर समाज, राष्ट्र विश्व जगत सभी को प्रभावित करने वाला होगा. शनि का प्रवेश इच्छाओं की पूर्ति को तब देगा जब दृढ़ निश्चयी, अनुशासित और कड़ी मेहनत करने वाले होगे.

इस गोचर का आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा? मेष से मीन तक शनि गोचर का फल

मेष राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि का यह गोचर बारहवें भाव में होगा. इस समय के दौरान आपको नए रास्ते और अवसरों के बारे में बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है. द्वादश में शनि का गोचर खर्चों के साथ साथ अवसरों की एक श्रृंखला लाएगा. इस समय आप विदेशी कार्य क्षेत्र और भूमि का लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इस समय की अवधी में आपको जमीन पर बने रहने और नई परियोजनाओं या निवेश योजनाओं में शामिल होने के मौके मिलेंगे जिनका सावधानी पूर्वक चयन करना होगा. दिखावे से बचने की आवश्यकता है. इस समय अपनी उन योजना को जारी रखें जो आप पहले से ही अपना रहे थे. यह अवधि धन की खपत करेगी और इसलिए जब तक आप वित्तीय जोखिम से बच सकते हैं, तब तक आप अच्छा करेंगे. अपने प्रयासों से प्रतिस्पर्धा पर विजय पाने का अवसर मिलेगा.
नए व्यावसायिक संबंध बनेंगे, लेकिन शनि कुछ विलंब का कारण बन सकता है और आपको अपने आराम क्षेत्र से बाहर आने के लिए मजबूर कर सकता है. परिवार और घर पर कुछ अनियोजित खर्च होंगे. इस अवधि में स्वास्थ्य पर भी आपका ध्यान रहेगा.

वृष राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि आपके एकादश भाव में गोचर करेगा जो आपके लाभ को विस्तार दे सकता है, आय के कुछ नए अवसर आपको मिल सकते हैं. दोस्तों का सहयोग मिलेगा. नए रिश्तों की शुरुआत का समय भी है. कई अच्छी चीजों और जीवन के भौतिक पहलुओं को नियंत्रित करता है. आपकी आय में वृद्धि, जीवन का जश्न मनाने और दोस्तों के साथ अपने समय का आनंद लेने के कई कारण देखने को मिलेंगे. पिछले दो वर्षों की कड़ी मेहनत और संघर्ष से विकास, लाभ और चारों ओर कई सकारात्मकता का मार्ग प्रशस्त होगा. आपको वर्तमान में जीने की कोशिश करनी चाहिए और इस अवधि से सभी खुशियां प्राप्त करनी चाहिए. बड़ों और वरिष्ठों के मार्गदर्शन से आपको आय के नए स्रोत बनाने में मदद मिलेगी. यह अवधि योजनाओं को क्रियान्वित करने में कुछ बाधाएं और देरी भी पैदा करेगी, लेकिन यह आपको नींव बनाने में मदद करेगी.

मिथुन राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
मिथुन राशि वालों के दशम भाव में गोचर होगा. कुछ महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लिए जाएंगे. बड़ों और वरिष्ठों के मार्गदर्शन से आपको आय के नए स्रोत बनाने में मदद मिलेगी. यह अवधि योजनाओं को क्रियान्वित करने में कुछ बाधा और देरी भी पैदा करेगी, लेकिन यह करियर की नींव बनाने में मदद करेगी. कड़ी मेहनत, ढेर सारे अवसर, काम के लिए कई विदेश यात्राएं और एक नई तरह की शक्ति जो पिछले कुछ वर्षों में महसूस नहीं हुई थी, अब काम करेगी. यह गोचर आपके काम करने के तरीके को बदल देगा. विवाह संबंधों में समय की कमी परेशानी देने वाली है.

कर्क राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
कर्क राशि वालों के लिए भाग्य भाव में बैठा शनि अब नए रंग दिखाएगा. घर में लोगों के साथ बॉन्डिंग को बेहतर बनाने का समय देगा. माता-पिता क अप्रेम मिलेगा. आपके खिलाफ गुप्त रूप से काम करने वाले लोगों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के लिए यह आदर्श समय है. कार्यक्षेत्र में अहंकार के टकराव से तनाव हो सकता है. यह अवधि कार्यभार ला सकती है और कुछ नवीनीकरण संबंधी खर्चे भी होंगे. आपको अपने खान-पान और स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा, जिससे आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी.

सिंह राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
सिंह राशि के लिए शनि का गोचर भाग्य बदलेगा और आप शनि की इस नई भूमिका के लिए ईश्वर के अधिक समीप होंगे जिससे आपको राहत मिलेगी. रुकी हुई विदेश यात्राएं और विकास होगा. शनि के इस गोचर के कारण आप कड़ी मेहनत और अनुशासन में रहेंगे, क्योंकि जीवन में आपको नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. साथ ही, विरासत और पैतृक संपत्ति से जुड़े कई पुराने लंबित मुद्दे सुलझने चाहिए. कड़ी मेहनत के बावजूद, पर्याप्त प्रयासों के बाद परिणाम मिल सकते हैं. भाई-बहनों के प्यार के लिए यह अच्छा समय नहीं है, जबकि आपके काम करने का नया तरीका आपको अपने प्रतिद्वंद्वियों और खुले तौर पर आपका विरोध करने वालों से निपटने में मदद करेगा. आपके व्यवहार में कुछ समस्या हो सकती है, जो आपके आस-पास के दोस्तों और परिवार को नाराज़ कर सकती हैं; इसलिए आपको अपने व्यवहार और जीवन के प्रति दृष्टिकोण पर काम करने की ज़रूरत है.

कन्या राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि का गोचर आपके दांपत्य जीवन, साझेदारी से जुड़े कामों और सामाजिक प्रतिष्ठा की स्थिति को प्रभावित करने वाला होगा. शनि आपके जीवन में एक मिलाजुला दौर लेकर आएगा. आप अधिक बदलाव को पाएंगे. धन संबंधी प्रतिबद्धताएं और व्यय आपके कुछ चुनौती देते रहेंगे. इस समय अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना चाहिए, चिड़चिड़े और अत्यधिक आलोचनात्मक हो सकते हैं, जिससे परिवार और बच्चों के साथ संबंधों में दूरियां आ सकती हैं. संपत्ति से जुड़े मामलों में देरी होगी. स्वास्थ्य आपका ध्यान खींचेगा और संभावना है कि आप बचत के मामले में फंस जाएंगे. पारिवारिक संबंधों पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी और करियर मोर्चे पर लंबित कार्यों के कारण चुनौतियां हो सकती हैं.

तुला राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि का गोचर कई बदलाव लाएगा, कुछ सकारात्मक और कुछ गंभीर. छठे भाव पर शनि का गोचर सेहत, दैनिक क्रियाओं, प्रतिस्पर्धाओं नौकरी, खर्चों इन सभी पर अपना असर डालने वाला होगा. पिछले कुछ वर्षों की बहुत तेज़ गति थोड़ी धीमी हो सकती है. यह आगे बढ़ने के लिए अपने सभी कामों में परिश्रम की मांग करेगा. संयुक्त कार्य और नई साझेदारियों का एक पूरा चरण होगा. विवाह या कर्म संबंधी दीर्घकालिक संबंध एक बहुत बड़ी संभावना है. यह एक ऐसा समय है जब आपका स्वभाव कठोर और अति-आलोचनात्मक होगा. परिवार के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं और माँ का स्वास्थ्य कुछ खराब हो सकता है.

वृश्चिक राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि का गोचर होगा विशेष. शनि आपकी सोच को बदलने वाला है और आपके व्यक्तित्व में भी कुछ बदलाव लाएगा. आप भविष्य के लिए बड़ी योजनाएं बना सकते हैं. अभी आशावादी और सकारात्मक बने रहने वाले हैं. रिश्तों और वैवाहिक मुद्दों पर तनाव बढ़ सकता है और आप पाएंगे कि आपका स्वभाव सख्त हो रहा है. हाल ही में किए गए निवेशों के कारण वित्तीय तनाव हो सकता है और ये कुछ चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं. परिवार और बच्चों से जुड़े मामलों में अब कई बदलाव और परिवर्तन होंगे. आप अपने जीवन के अगले 27 महीनों के दौरान कई बदलावों की शुरुआत करेंगे.

धनु राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
धनु राशि के लिए शनि का गोचर घर परिवार पर रहेगा. रिश्तों में दूरी की आवश्यकता होगी और विचारों के टकराव के कारण कुछ तनाव देखने को मिलेगा. काम का बोझ रहेगा. आपको अपने विचारों को सही से व्यक्त करने में कठिनाई होगी, जो चुनौतियों का कारण बन सकती है. स्पष्टता की कमी के कारण यात्रा संबंधी योजनाओं में कुछ विलंब हो सकता है. तनाव आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. शनि इस स्थिति में आपको ऊर्जा प्रदान करने वाला है और आपको शानदार प्रदर्शन करने और सीमाओं का परीक्षण करने के लिए प्रेरित करेगा. यह एक बहुत ही व्यस्त अवधि है, जब कड़ी मेहनत और गतिशीलता आपको आगे बढ़ाएगी.

मकर राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि का गोचर आपको परिश्रम के लिर प्रेरित करेगा. आप प्रतिस्पर्धा को मात देने और सभी बाधाओं को पार करने की ऊर्जा विकसित करेंगे. काम काज में अधिकता रहने वाली है. पुरानी स्वास्थ्य समस्याएँ फिर से आपके पास आ सकती हैं, इसलिए सावधान रहें. पारिवारिक संपत्ति और अचल संपत्ति के कारण कुछ परेशानी हो सकती है. यह आपके वित्त को फिर से तैयार करने का समय है और सभी पुराने मुद्दों को हल किया जा सकता है. सामाजिक मानदंडों से बाहर के रिश्ते विकसित होने की संभावना है, जबकि भाई-बहनों के साथ संबंध सामान्य से कम हो सकते हैं. घर से दूर जा कर काम इत्यादि करने के अवसर मिल सकते हैं. छात्र अपनी शिक्षा हेतु इस समय परिवार से अलग रहने के लिए आगे बढ़ने वाले हैं.

कुंभ राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि का गोचर आपको इस समय स्थान बदलाव विदेश निवास के योग देता है. परिवार और सहकर्मियों के साथ संबंध चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं. आपको पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. कानूनी काम और सहकर्मियों के साथ संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं.
संपत्ति के मामले में अपेक्षित परिणामों में देरी होगी. सहायता और उपचार के माध्यम से स्वास्थ्य के मामले में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे. पेशेवर मोर्चे पर कुछ लंबित कार्य होंगे, जिन्हें कार्यभार से उबरने के लिए प्राथमिकता के रूप में पूरा करने की आवश्यकता है.

मीन राशि पर शनि गोचर का प्रभाव
शनि आपकी जीवनशैली में बदलाव और बदलाव के युग की शुरुआत करता है. घरेलू सुख और सुविधाओं में आएगा बदलाव. काम करने के तरीके से जुड़े बदलावों और चुनौतियों का रास्ता बनरा चला जाएगा. विवाह बंधन में बंध सकते हैं. इस समय विचार प्रक्रिया में बदलाव और परिपक्वता लाएगी. कार्य क्षेत्र पर बदलाव आएंगे. हालाँकि बदलाव संघर्ष ला सकते हैं, लेकिन चुनौतियाँ अपने आप में भविष्य के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकती हैं. जीवन में अधिक आक्रामक भूमिका निभाएँगे और अपने प्रतिद्वंद्वियों को उनके सामने खड़ा करेंगे और साथ ही उन लोगों को हटाएँगे जो पर्दे के पीछे आपके खिलाफ़ काम कर रहे थे. परिवार से दूर जाने का योग बनेगा.

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दूसरे भाव में शुक्र: धन के स्त्रोत होते हैं विकसित

शुक्र का दूसरे भाव में होना अनुकूल माना जाता है.शुक्र का धन भाव में होना भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति का संकेत भी होता है. आपके दूसरे भाव में शुक्र के होने से आप जीवन में अपनी इनकम को अधिक बनाने के लिए इच्छुक होंगे. अच्छी स्थिति में शुक्र आपकी आर्थिक  स्थिति के लिए भी अनुकूलता देने में सहयोग करता है. सकारात्मक दृष्टि वाला शुक्र लाभदायक साबित होगा जबकि नकारात्मक दृष्टि वाला शुक्र हानिकारक साबित होगा. तो ऎसे में शुक्र दूसरे भाव में जिस तरह का होगा उसका वैसा फल मिलेगा. 

शुक्र ग्रह प्रेम, सौंदर्य, संस्कृति, पत्नी या पति का प्रतिनिधित्व करता है. यह सौंदर्यशास्त्र, अच्छी सुख सुविधाओं और फैशन के बारे में भी संकेत देता है. इसलिए, जब शुक्र दूसरे भाव जो वाणी, परिवार और धन का भाव है में होता है, तो व्यक्ति के जीवन के भौतिकवादी पक्ष से जुड़ने की संभावना होती है. भौतिकवाद वास्तव में जीवन में एक आवश्यकता है. अगर कोई व्यक्ति जीवन में अत्यधिक भौतिकवादी हो जाता है, तो अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को नुकसान होने की संभावना है. शानदार जीवनशैली का शौक रिश्तों और नैतिकता की कीमत पर नहीं होना चाहिए, जो कि दूसरे भाव में शुक्र के जातकों के जीवन में एक संभावना है.

दूसरे भाव में शुक्र के सामान्य प्रभाव

दूसरे भाव में शुक्र आपको आभूषण और रत्न, कपड़े, सौंदर्य और कॉस्मेटिक उत्पादों को इकट्ठा करने की ओर प्रेरित करता है. शुक्र आपको एक सुखद, सुखदायक और सुंदर अच्छी वाणी देता है. गायक, सार्वजनिक वक्ता, कॉस्मेटोलॉजिस्ट और कलाकार बना सकता है. शुक्र स्त्री का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति स्त्री पक्ष के माध्यम से कमाने के लिए और जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम होता है. आय के विभिन्न स्त्रोत फैशन से जुड़े होते हैं इसके अलावा कलात्मक क्षेत्र से संबंधित स्रोतों में भी आगे बढ़ाने के लिए उत्साहित करने वाली स्थिति है. दूसरे भाव में शुक्र एक ऎसे व्यक्ति का उदाहरण है जो शीशे के सामने बैठ कर अपनी सुंदरता की सराहना कर रहा है.

दूसरा भाव धन, वित्त, बचत और संपत्ति का भाव है. जब शुक्र दूसरे भाव में होता है परिवार के साथ अच्छे रिश्ते और खुशी और पारिवारिक व्यवसाय के माध्यम से धन का आशीर्वाद देता है. ईश्वर द्वारा आपको दी गई हर चीज को कृतज्ञता के साथ महसूस करेंगे और स्वीकार करेंगे, और यह आपकी ग्रहणशीलता को खोलता है.

व्यक्ति को बाहर जाना, रोमांश, शानदार भोजन अनुभव पसंद है. दूसरे भाव में शुक्र का स्थान आपको एक अनूठा स्वाद देता है और आपको भोजन प्रेमी बनाता है. अद्भुत रंग, सुगंध, स्वाद, प्रस्तुति, सजावट और माहौल वाला भोजन आपको खुश कर देगा. शुक्र आपको रचनात्मक बनाता है और हर पल जीवन के स्वाद का आनंद लेने को उत्साहित बनाता है.  

दूसरे भाव में सकारात्मक प्रभाव

दूसरे भाव में शुक्र धन और जीवन के भौतिक सुखों की ओर आकर्षित बनाता है. इस कारण पूरी संभावना है कि उन्हें वह मिलेगा जो व्यक्ति चाहता है. जीवन को उसके सभी समृद्ध सुखों के साथ पसंद करेंगे. एक सुखद जीवन जीने की इच्छा महत्वाकांक्षी बनाएगी, और अपने सपनों और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बहुत सारा पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. खर्चों का एक बड़ा हिस्सा कला, संगीत, सौंदर्य आदि से संबंधित चीजों पर होगा. कुछ रचनात्मक प्रतिभा विकसित कर सकते हैं, कला में अधिक संभावना है. वे इन प्रतिभाओं पर निर्माण कर सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकता है. प्रतिभा बहुत सारा पैसा कमाने का स्रोत भी बन सकती है, जो उन्हें अमीर और लोकप्रिय बना सकती है. दूसरी ओर, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, दूसरे घर में शुक्र के अनुसार, शुक्र का वक्री होना व्यक्ति को स्वार्थी बना सकता है.

दूसरे भाव में शुक्र के नकारात्मक प्रभाव

शुक्र के नकारात्मक प्रभाव में व्यक्ति खर्चिला अधिक बनता है. कभी-कभी, उन चीजों पर अत्यधिक या फिजूलखर्ची कर सकते हैं जो महत्वपूर्ण नहीं हैं. इससे वे परेशानी में पड़ सकते हैं. महंगी चीजें खरीदने में अपना बहुत सारा पैसा खो सकते हैं, जिनका वास्तविक या व्यावहारिक उपयोग नहीं है. शुक्र जीवन साथी का प्रतीक है और दूसरा भाव धन का भी प्रतीक है, इसलिए दूसरे भाव में शुक्र की स्थिति का अर्थ है कि व्यक्ति को अपने जीवन साथी से धन, संपत्ति और संपत्ति मिल सकती है. दूसरे भाव में शुक्र वाले जातक जीवन के भौतिक पहलुओं से जुड़े होते हैं. जब शुक्र वक्री होता है, तो व्यक्ति के बहुत अधिक भौतिकवादी होने की संभावना होती है. इसके अलावा, खुशी इस बात से भी संबंधित होती है कि भौतिक लाभ और विकास में सफल होते हैं.

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