मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए सातवां भाव बाधक बनता है. मिथुन लग्न के लिए सातवें भाव का स्वामी बाधकेश हो जाता है. गुरु का प्रभाव अनुकूल होने पर भी बाधक के कारण वह अपना संपूर्ण प्रभाव देने में सक्षम नहीं होता है. बाधकेश जिस भाव में बैठा होता है उस फलों को भी प्रभावित करता है. बाधक होने के कारण कुछ न कुछ परेशानियां रह सकती हैं. आइये जान लेते है मिथुन लग्न के लिए बाधक गुरु का सभी भावों पर प्रभाव.
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पहले भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
मिथुन लग्न में पहले भाव में बैठा गुरु बाधक होने के कारण व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करने वाला होता है. व्यक्ति का स्वाभिमान, मनोबल काफी मजबूत होता है. जिद और अपने अभिमान के कारण परेशानी होती है. गुरु सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखता है, अत: उसे पत्नी से भी सुख प्रभावित होता है . पंचम भाव को पंचम शत्रु दृष्टि से देखने के कारण संतान के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो सकती है, शिक्षा व बुद्धि के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो.नवम भाव को नवम शत्रु दृष्टि से देखने पर भाग्य व धर्म के क्षेत्र में भी कुछ बदलाव देता है.
दूसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
जब बाधक बृहस्पति मिथुन लग्न के दूसरे भाव में होते हैं तो धन संग्रह में मुश्किल होती है. परिवार में सामंजस्य कम ही रह पाता है. वाणी में ओज के साथ-साथ धैर्य गंभीरता होती है. बाधकेश सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखें तो बाधाओं के कारण चिंता होती है. नवम दृष्टि उसके दशम भाव पर पड़ती है तो बाधक बृहस्पति देव यहां द्वितीय भाव में बैठकर दशम भाव से संबंधित सभी कमजोर फल प्रदान करने वाले होते हैं.
तीसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पराक्रम एवं भाई-बहन के तीसरे भाव में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से साहस में कमीहोती है तथा भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है. यहां से बाधक बृहस्पति धनु राशि में सप्तम भाव को पंचम दृष्टि से देखता है पत्नी के साथ सुख कम मिलता है तथा व्यापार के क्षेत्र में बदलाव होते हैं. एकादश भाव पर मित्र की नवम दृष्टि होने से लगातार धन के प्रति ध्यान रहता है.
चतुर्थ भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
कन्या राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से माता, भूमि, मकान आदि का पर्याप्त सुख मिलता है तथा सुख में कमी होती है. अष्टम भाव पर पंचम नीच दृष्टि होने से आयु और पैतृक संपति में कुछ हानि और अशांति का सामना करना पड़ता है. दशम भाव पर सप्तम दृष्टि होने से पिता और राज्य से पर्याप्त सहयोग, सफलता और यश में कमी आती है. द्वादश भाव पर नवम दृष्टि होने से व्यय में वृद्धि होती है तथा बाहरी स्थानों से विशेष सम्बन्ध बने रहते हैं. मिथुन लग्न के चतुर्थ भाव में बैठा बाधक बृहस्पति सुख को बाहरी रुपों में ही दिलाता है.
पंचम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पंचम त्रिकोण और शिक्षा एवं संतान भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से संतान के क्षेत्र में कुछ हानि होती है या फिर शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में सफलता के लिए प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं. नवम भाव पर पंचम शत्रु दृष्टि होने से भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है. पहले भाव पर नवम मित्र दृष्टि होने से शारीरिक सौन्दर्य, प्रभाव एवं स्वाभिमान में अभिमान की वृद्धि होती है.
छठे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
छठे शत्रु एवं रोग भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से शत्रुओं से परेशानी अधिक हो स्कती है. साथ ही पत्नी पक्ष में कुछ मतभेद के साथ सफलता मिलती है. बाधक बृहस्पति पंचम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, मान-सम्मान एवं उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं. द्वादश भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से व्यय की अधिकता होती है तथा बाहरी स्थानों से संबंधों से काम मिलता है. दूसरे भाव पर नवम उच्च दृष्टि होने से परिश्रम से ही धन में वृद्धि होती है.
सातवें भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
सप्तम भाव में अपनी ही राशि धनु में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से विवाह में देरी या सुख का कमजोर हो सकता है. पिता और राज्य से सहयोग, सम्मान मिलता है लेकिन सुख नहीं मिल पाता है. पंचम मित्र दृष्टि से एकादश भाव को देखता है, अत: इच्छाओं को बढ़ा देता है. प्रथम भाव को देखने से खुद पर अतिविचारशील बना देता है. तृतीय भाव को देखने से साहस और पराक्रम में वृद्धि होती है.
अष्टम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
आठवें भाव में बाध गुरु का प्रभाव धर्म के पालन में अरुचि को लाता है. साथ ही पत्नी और पिता के पक्ष के पशुओं में असंतोष रहता है. यहां से बाधक बृहस्पति शारीरिक सौंदर्य और सम्मान की प्राप्ति के लिए संघर्ष दे सकता है. साहस में कमी होती है तथा भाई-बहनों का सहयोग कम मिल पाता है. संतान से कुछ असंतोष रहता है तथा गुढ़ विषयों की शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त होती है.
नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति कुंडली के भाग्य भाव को कुछ कम कर सकती है. पिता से अच्छे संबंध होते हैं लेकिन दूरी रहती है. राज्य कार्यों में सफलता के लिए संघर्ष होता है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त करने वाला होता है. नवम दृष्टि से द्वादश भाव को देखने के कारण बाधक बृहस्पति धार्मिक कार्यों पर धन व्यय करने वाला बनाता है. शनि की कुंभ राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों के साथ उन्नति कमजोर होती है.
दशम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
दशम भाव में बाधक गुरु का प्रभाव करियर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्त्री, पिता और व्यवसाय के मामले में भी परेशानियां आती हैं. व्यय अधिक रहता है और परिवार बाहरी स्थानों से छल-कपट वाले संबंधों के सहारे चलता है. अपने धन में वृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहता है. कार्य क्षेत्र में बदलाव अधिक होते हें.
एकादश भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
लाभ स्थान में बाधक इच्छाओं को बढ़ा देता है. अपने आस पास के लोगों से सहयोग कम मिल पाता है. व्यापार और पिता से भी पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है. बाधक बृहस्पति पंचम मित्र दृष्टि को देखता है, मेहनत में कमी आती है, भाई-बहनों का सुख भी कम प्राप्त होता है. पंचम भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से संतान से कुछ असंतोष रहता है. बहुत अधिक ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति होती है. स्त्री व व्यापार के मामले में विशेष सुख की कमी होती है.
बाधक बृहस्पति की द्वादश भाव में स्थिति
बाधकेश बृहस्पति के व्यय भाव में द्वादश भाव में होने से जातक अधिक व्यय करता है तथा बाहरी स्थानों से सम्मान व लाभ प्राप्त करता है. अपने परिवार के सुख में भी कुछ कमी रहती है तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है. माता व घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि का बल मिलता है. सेहत प्रभावित होती है. लाभ के संबंध में कुछ हानि उठानी पड़ती है.