वृषभ लग्न की कुंडली में बाधकेश शनि का प्रभाव
वृषभ लग्न के लिए नवम भाव बाधक का काम करता है. नवम भाव का स्वामी बाधकेश कहलाता है. बाधकेश के रुप में भाग्य भाव की स्थिति कुछ अलग तो लगती है लेकिन इसका प्रभाव बाधक बन ही जाता है. वृष लग्न में शनि शुभ होकर भी उस के बाधक रुप में अपना असर डालने वाला होता है. बाधकेश होकर शनि हर भाव में अपना असर डालने वाला होता है.
प्रथम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पहले भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव काफी विशेष होता है. अपने मित्र शुक्र की राशि में स्थित शनि के प्रभाव से सौभाग्यशाली बन सकता है. शनि का प्रभाव दशम दृष्टि से राज्य व पिता भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से तृतीय भाव को देखने से भाई-बहनों का सुख कम होता है. सप्तम शत्रु दृष्टि से छठे भाव को देखने से स्त्रियों के व्यापार पक्ष में कठिनाई बढ़ती है.
द्वितीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
दूसरे भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव कुटुम्ब को प्रभावित करता है. इस भाव में अपने मित्र बुध की राशि मिथुन में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को धन व कुटुम्ब में वृद्धि होती है. सुख में थोड़ी कमी आती है. राज्य के क्षेत्र में प्रभाव व सम्मान में वृद्धि होती है. शनि दशम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है माता के सुख में कमी आती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखता है.
तृतीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
तीसरे भाव में शनि का प्रभाव बाधक होकर अपना असर डालता है. पराक्रम एवं भाई-बहन के तृतीय भाव में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि में शनि के प्रभाव के कारण जातक एवं उसके भाई-बहनों में सामान्य शत्रुता रह सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से अपनी स्वराशि में नवम भाव को देखता है. तृतीय मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने के कारण संतान एवं शिक्षा के क्षेत्र में प्रभाव होती है. व्यय में वृद्धि का योग बनता है, बाहरी स्थानों के संबंध में भी लापरवाही रहेगी.
चतुर्थ भाव में बाधक शनि की स्थिति
चौथे भाव का प्रभाव माता, सुख और भूमि से शत्रुता देता है. भूमि और संपत्ति के सुख में कमी हो सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, जो पिता, राज्य और व्यापार के क्षेत्र में सफलता और सम्मान दिलाता है. धर्म के पालन में कुछ उदासीनता रह सकती है. छठे भाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष में बहुत प्रभाव रहेगा और मामा पक्ष में तनाव रह सकता है. प्रथम भाव को देखने के कारण भौतिक स्थिति की इच्छा अधिक रहत है जो दिक्कत देती है.
पंचम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पंचम भाव में शनि का प्रभाव संतान का सुख प्रभावित कर सकता है. शिक्षा एवं बुद्धि के स्थान पर स्थित शनि के प्रभाव से इसमें कमी का असर देखने को मिल सकता है. शनि अपनी तीसरी दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है जिसके कारण स्त्री एवं व्यापार के क्षेत्र में कुछ असंतोषजनक स्थिति रह सकती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखने से आय के साधनों में सामान्य असंतोष रहेगा तथा दशम मित्र दृष्टि से दूसरे भाव को देखने से धन एवं कुटुंब को कम बल मिलता है.
छठे भाव में बाधक शनि की स्थिति
छठे भाव में शत्रु एवं रोग भाव में उच्च राशिस्थ शनि के प्रभाव से बाधकेश अधिक विरोधियों को दे सकता है. व्यापार पक्ष में भी संघर्ष रह सकता है. पिता से कुछ दुश्मनी रह सकती है. धर्म का आचरण दिखावे में अधिक ढ़ल सकता है. शनि अष्टम भाव को तीसरी शत्रु दृष्टि से देखता है, अतः आयु के प्रभाव में कुछ चिंताएं भी रहती हैं. सप्तम नीच दृष्टि द्वादश भाव को देखने से व्यय सम्बन्धी परेशानी रह सकती है. बाहरी स्थानों से सम्बन्ध असंतोषजनक रह सकता है. दशम शत्रु दृष्टि तीसरे भाव को देखने से परेशानी भी होती है. भाई-बहनों से भी असंतुष्ट रहता है.
सप्तम भाव में बाधक शनि की स्थिति
सप्तम भाव में बाधकेश शनि के प्रभाव से व्यापार में उन्नति तथा सफलता प्राप्त करता है. व्यापार और परिवार को बेहतर बनाने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. शनि अपनी स्वराशि में तृतीय दृष्टि से नवम भाव को देखता है, अत: भाग्यबल को प्रभावित करता है. सप्तम मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से शरीर प्रभावित होता है. दशम शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने से माता, भूमि और मकान आदि के सुख में कुछ कमी आ सकती है.
अष्टम भाव में बाधक शनि की स्थिति
अष्टम भाव में शनि बाधकेश होकर गुरु की धनु राशि में शनि का प्रभाव आयु भाव को कठिनाइयों के साथ बढ़ाता है. भाग्य और पिता के भाव में गिरावट आती है और धर्म का पालन भी वैसा नहीं होता जैसा होना चाहिए. पिता और मान-सम्मान के क्षेत्र में दोषपूर्ण सफलता मिलती है. भाग्य की उन्नति के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ता है तथा कठोर परिश्रम करना पड़ता है.
नवम भाव में बाधक शनि की स्थिति
नवम भाव में बाधकेश शनि अपनी स्वराशि मकर में होने से मिलेजुले असर देगा. धार्मिक स्थिति प्रभावित रह सकती है. पिता से पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. राज्य से यश, लाभ तथा मान-सम्मान प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है. शनि तृतीय शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. आय के साधनों से कुछ अप्रिय लाभ होता है. तृतीय भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से पुरुषार्थ प्रबल होता है. भाई-बहनों से असंतोषजनक तरीके से सहायता प्राप्त होती है. परिश्रम से उन्नति तथा लाभ पाता है, धनवान, यशस्वी, धार्मिक तथा सुखी होता है.
दशम भाव में बाधक शनि की स्थिति
दशम भाव में स्थिति का प्रभाव राज्य, पिता तथा व्यवसाय के दशम भाव में अपनी स्वराशि कुंभ में शनि के प्रभाव से पिता, व्यवसाय तथा राज्य से पर्याप्त लाभ, यश तथा प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है. धर्म-कर्म का पालन भी करता है. व्यय के मामले में कुछ परेशानी होती है तथा बाहरी स्थानों के संबंध में मुश्किलें होती है. चतुर्थ भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से माता, भूमि, संपत्ति तथा घरेलू सुख से असंतोष रहता है.
एकादश भाव में बाधक शनि की स्थिति
एकादश भाव में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों का सामना करने के बाद आय के रास्ते में सफलता मिलती है. असंतोष रहता है, एकादश भाव में क्रूर ग्रह विवादित बना सकते हैं. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से मानसिक रुप में उथल पुथल बनी रह सकती है. सप्तम मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने से शिक्षा, बुद्धि और संतान के पक्ष में सफलता मिलती है. दशम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखने से दैनिक जीवन और पुरातत्व में कुछ कठिनाइयों का अनुभव होता है. बारहवें भाव में शनि की स्थिति
बारहवें भाव में बाधक शनि की स्थिति
व्यय एवं बाहरी संबंधों के बारहवें भाव में मेष राशि में स्थित नीच के शनि के प्रभाव से जातक को व्यय एवं बाहरी स्थानों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. राज्य, व्यापार, भाग्य एवं धर्म के क्षेत्र में भी कमी रहती है. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है अतः धन एवं जन सामान्य सफलता प्राप्त करता है. छठे भाव को देखने से शत्रुओं पर प्रभाव पड़ता है तथा लड़ाई-झगड़ों से संबंधित मामलों में उलझ सकता है यश एवं मान-सम्मान में कमी रहती है.