आनंदादि योग जानें इसके शुभ-अशुभ प्रभाव

आनन्दादि योग का उल्लेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र में विशेष रूप से किया जाता है.  ज्योतिष में, योग का मतलब होता है विभिन्न नक्षत्र, योग तिथि वार इत्यादि की स्थितियों और उनके आपसी संबंधों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली विशेष परिस्थितियां. जब जो आनन्दादि योग बनता है, तो उस अनुसार उसका फल मिलता है. यह व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने का कारण बन सकता है या फिर मुश्किल और चुनौतियों को दिखा सकता है.  इस लेख में हम आनन्दादि योग के महत्व, इसके बनने के कारण, और इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे.

ज्योतिष शास्त्र में बनने वाले कुछ खास योग में आनंदादि योग समूह का विशेष स्थान रहा है. ये योग वार और नक्षत्र पर आधारित है. यह योग व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता और अन्य घटनाओं को प्रभावित करता है.  इसमें कुल 28 योग हैं, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग प्रभाव होता है. इन योगों को किसी विशेष दिन के लिए शुभ या अशुभ माना जाता है. पंचांग में तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार के पांच अंग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इसके साथ ही मास, मुहूर्त, आनंदादि योग और संवत्सर को भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो मिलकर संपूर्ण फलादेश देते हैं. आइए जानते हैं कि कितने योग होते हैं और आनंदादि योग क्या है 

आनंदादि योग होते हैं?

सात दिन और अभिजीत व अश्विनी सहित अट्ठाईस नक्षत्रों को मिलाकर 28 योग बनते हैं. सूर्य और चंद्रमा की राशियों के संयोग से 27 योग बनते हैं. इसी प्रकार, दिन और नक्षत्रों के विशेष संयोग से 28 योग बनते हैं, जिन्हें ‘आनंददि’ योग कहते हैं. 

आनंदादि योगों के प्रभाव इस प्रकार हैं:

  1. आनन्द- सिद्धि: यह योग सुख और सफलता की प्राप्ति का सूचक है.
  2. कालदण्ड- मृत्यु: यह योग मृत्यु के निकट होने का संकेत देता है.
  3. धुम्र- असुख: इस योग से कष्ट और दुख की स्थिति उत्पन्न होती है.
  4. धाता/प्रजापति- सौभाग्य: यह योग सौभाग्य और समृद्धि का संकेत है.
  5. सौम्य- बहुसुख: यह योग सुख-समृद्धि और संतोष प्रदान करता है.
  6. ध्वांक्ष- धनक्षय: यह योग धन का नुकसान होने का संकेत देता है.
  7. केतु/ध्वज- सौभाग्य: यह योग सौभाग्य और सफलता का योग है.
  8. श्रीवत्स- सौख्यसम्पत्ति: यह योग समृद्धि और शारीरिक सुख की प्राप्ति का सूचक है.
  9. वज्र- क्षय: यह योग शारीरिक या मानसिक क्षति का संकेत करता है.
  10. मुद्गर- लक्ष्मीक्षय: यह योग धन-हानि का कारण बनता है.
  11. छत्र- राजसन्मान: यह योग राजकीय सम्मान और प्रतिष्ठा का सूचक है.
  12. मित्र- पुष्टि: यह योग मित्रों से सहयोग और पुष्टि प्राप्त करने का संकेत देता है.
  13. मानस- सौभाग्य: यह योग मानसिक सुख और अच्छे समय का प्रतीक है.
  14. पद्म- धनागम: यह योग धन की प्राप्ति का संकेत है.
  15. लुम्बक- धनक्षय: यह योग धन की हानि का सूचक है.
  16. उत्पात- प्राणनाश: यह योग जीवन में गंभीर संकट और मृत्यु का संकेत है.
  17. मृत्यु- मृत्यु: यह योग व्यक्ति की मृत्यु को सूचित करता है.
  18. काण- क्लेश: यह योग क्लेश और मानसिक संकट का प्रतीक है.
  19. सिद्धि- कार्यसिद्धि: यह योग कार्यों में सफलता प्राप्त होने का सूचक है.
  20. शुभ- कल्याण: यह योग शुभ और कल्याणकारी परिणामों की प्राप्ति का सूचक है.
  21. अमृत- राजसन्मान: यह योग राजकीय सम्मान और सम्मान प्राप्ति का संकेत है.
  22. मुसल- धनक्षय: यह योग धन की हानि का कारण बनता है.
  23. गद- भय: यह योग शारीरिक या मानसिक भय का संकेत है.
  24. मातङ्ग- कुलवृद्धि: यह योग कुल की वृद्धि और सम्मान का प्रतीक है.
  25. राक्षस- महाकष्ट: यह योग कष्ट और संकट का संकेत है.
  26. चर- कार्यसिद्धि: यह योग कार्यों में सफलता का प्रतीक है.
  27. स्थिर- गृहारम्भ: यह योग स्थिरता और घर की नींव का प्रतीक है.
  28. वर्धमान- विवाह: यह योग विवाह और पारिवारिक वृद्धि का संकेत है.

रविवार को अश्विनी नक्षत्र से गिने, सोमवार को मृगशिरा से गिने, मंगलवार को आश्लेषा से गिने, बृहस्पतिवार को अनुराधा से गिने, शुक्रवार को उत्तराषाढ़ा से गिने और शनिवार को शतभिषा से गिने. रविवार को अश्विनी हो तो आनन्द योग, भरणी हो तो कालदण्ड इत्यादि इस क्रम में योग जानेंगे.

इसी प्रकार से सोमवार को मृगशिरा हो तो आनन्द, आर्द्रा हो तो कालदण्ड इत्यादि क्रम से जानें.शुभ कार्यों की योजना बनाते समय पंचांग में योग का अध्ययन किया जाता है.अशुभ योग के समय विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए योग के साथ ग्रहों और नक्षत्रों का भी ध्यान रखना आवश्यक है.

आनंदादि योग का सही इस्तेमाल जीवन को सरल और सफल बनाने में सहायक होता है. शुभ योगों में कार्य करने से लाभ होता है, जबकि अशुभ योगों में कार्य करने से बचाव और उपाय आवश्यक है. इसलिए पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं का ध्यान रखते हुए ही महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए.

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चंद्रमा मंगल युति : ज्योतिष का एक खास योग जो बदल सकता है आपका भविष्य

चंद्रमा-मंगल युति एक सामान्य ज्योतिष के उन खास युति योगों में से एक है जो आर्थिक स्थिति को बेहतर बनने वाले और व्यक्ति को काफी आत्मविश्वास से भर देता है. मंगल ग्रह क्रोध, साहस और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं, चंद्रमा इमोशन, शांति और विचारों से संबंधित होता है. इसे भाग्य योग और धन योग के रुप में भी देखा जाता है. चंद्र मंगल योग व्यक्ति को लाभ और सफलता का आशीर्वाद देता है.  

गोचर की दृष्टि से चंद्रमा और मंगल का युति योग हर महीने होता है और ढाई दिन तक चलता है. ज्योतिषीय रूप से, चंद्रमा और मंगल का संगम तब होता है जब मित्र ग्रह मंगल और चंद्रमा किसी व्यक्ति की कुंडली में एक ही राशि में बैठते हैं. इसे भाग्य योग या चंद्र मंगल योग के नाम से भी जाना जाता है, चंद्रमा-मंगल का मिलन व्यक्ति को नए अनुसंधानों से जोड़ता है, लेकिन साथ ही वह कठोर और अहंकारी भी बनाता है. चंद्रमा-मंगल के मिलन के समग्र प्रभाव आमतौर पर लाभकारी होते हैं, क्योंकि चंद्रमा और मंगल दोनों ही ग्रह मित्रवत बंधन का आनंद लेते हैं. आइए समझते हैं कि यह किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है.

चंद्र मंगल का राशि तत्व पर प्रभाव

अग्नि राशियों में चंद्रमा और मंगल की युति का होना व्यक्ति को ऊर्जावान और आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करता है. मंगल के साथ चंद्रमा की युति का प्रभाव अग्नि राशियों को भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त और अपने प्रियजनों के प्रति सुरक्षात्मक बनाता है. चंद्रमा-मंगल के संगम से जुड़ी एक नकारात्मक विशेषता अधीरता है जो अग्नि राशियों के रोमांटिक रिश्तों को प्रभावित करती है.

इन दो ग्रहों के योग में तकनीकी विशेषज्ञता आती है. परिणामस्वरूप, तकनीक से संबंधित व्यवसायों जैसे कि आईटी, डेटा साइंस, सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट और बहुत कुछ में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं. हालाँकि, उनके पेशेवर संबंध समस्याएँ पैदा करते हैं. सहकर्मियों या वरिष्ठों के साथ मतभेद पृथ्वी राशियों के लिए आम बात है.

वायु राशियों पर चंद्रमा और मंगल के संगम का एक सामान्य प्रभाव उत्कृष्ट संचार कौशल या लोगों का ध्यान खींचने की शक्ति है. चंद्रमा-मंगल का युति योग वायु राशियों को बहुत अधिक ध्यान और धैर्य भी देता है, खासकर जब उनके आस-पास के कठिन लोगों से निपटना होता है.

चंद्र मंगल के योग वाली जल तत्व राशियां बाहर से शक्तिशाली और निडर दिखाई दे सकती हैं, लेकिन अपनी भावनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं. अधिकांश समय, वे अपनी भावनाओं को दबाने और नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं और बोल्ड दिखाई देते हैं. ये व्यक्तित्व लक्षण उनके रिश्तों और करियर में समस्याएँ पैदा करते हैं.

चंद्र-मंगल की युति का भाव प्रभाव 

केंद्र भाव में चंद्र मंगल योग 

 प्रथम भाव व्यक्ति को उसके सामाजिक दायरे में अपार प्रसिद्धि, नाम और सम्मान प्रदान करता है. हालाँकि, साथ ही, व्यक्ति अपने रिश्तों में उतार-चढ़ाव का सामना भी करता है.चतुर्थ भाव में चंद्रमा और मंगल के संगम वाले व्यक्ति अपने परिवार और करीबी दोस्तों के प्रति अत्यधिक सुरक्षात्मक होते हैं. वे अपनी माताओं के साथ एक कर्म बंधन का भी आनंद लेते हैं. कुंडली में मंगल का अधिक निर्णायक प्रभाव पारिवारिक समस्याओं का कारण बन सकता है. 

इन दोनों ग्रहों का सातवें भाव में मिलन व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में अस्थिरता और अनुकूलता के मुद्दे लाता है. अपने साथी के सामने अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त न कर पाना रिश्ते में समस्या पैदा करता है. दसवें भाव में चंद्रमा और मंगल के संगम में अस्थिर करियर या कई करियर बदलाव जैसी समस्याएँ आम हैं. लेकिन अगर अवसर दिया जाए, तो ये व्यक्ति नेतृत्व की भूमिकाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं. सफलता और स्थिरता प्रदान करते हैं.

त्रिकोण भावों में चंद्रमा-मंगल की युति  

पांचवें भाव में चंद्रमा और मंगल की युति वाले व्यक्ति का समग्र व्यक्तित्व दूसरों को आकर्षित करना या हमेशा सुर्खियों में बने रहना होता है. अपने करिश्माई व्यक्तित्व के अलावा, ऐसे व्यक्ति हमेशा नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक रहते हैं. नए विषयों की खोज करने की यह आदत उन्हें अकादमिक रूप से लाभ पहुंचाती है. ज्योतिष में नौवां भाव व्यक्ति के गुरु या शिक्षक का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, जब यह युति नौवें भाव में होती है, तो व्यक्ति के शिक्षण में सफल होने की संभावना बढ़ जाती है. जो कोई भी उन्हें सलाह देने की कोशिश करता है, उसके साथ मतभेद उनके रिश्तों को प्रभावित करता है.

उपचय भाव में चंद्र मंगल युति 

तीसरे भाव में चंद्रमा और मंगल की युति वाले व्यक्ति के महत्वपूर्ण गुणों में से एक है अपनी बातों या बेहतरीन संचार कौशल से दूसरों को प्रभावित करना. ऐसे व्यक्ति अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने खुलकर व्यक्त करने से नहीं कतराते. इसलिए, कभी-कभी, उनका बहुत सीधा या रूखा स्वभाव उनके रिश्तों को प्रभावित करता है.  छठे भाव में चंद्रमा और मंगल की युति व्यक्ति को अपने विवादों को शालीनता से निपटाने के लिए प्रोत्साहित करती है.

यही कारण है कि ये व्यक्ति वकील या अधिवक्ता होते हुए भी सफल करियर का आनंद लेते हैं. लेकिन ग्रहों की यह सटीक स्थिति उच्च रक्तचाप और माइग्रेन जैसी स्वास्थ्य समस्याएं लाती है. ग्यारहवें भाव में चंद्रमा और मंगल की युति से व्यक्ति के नेतृत्व या प्रबंधकीय पदों पर सफल होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे प्रभावशाली पदों पर रहने के बावजूद, ये व्यक्ति अपने सहकर्मियों, खासकर अपने वरिष्ठों के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए संघर्ष करते हैं.

चौथा, आठवां और बारहवां

आठवें भाव में इन ग्रहों का संगम व्यक्ति के वित्त के लिए अत्यधिक लाभकारी प्रतीत होता है. उनकी ठोस और व्यावहारिक निर्णय लेने की क्षमता उन्हें मुख्य रूप से निवेश संबंधी निर्णय लेने में मदद करती है. करियर की संभावनाओं के बारे में, ये व्यक्ति ज्योतिष और चिकित्सा में स्थिर करियर का आनंद लेते हैं. 

चंद्रमा-मंगल का योग बारहवें भाव में वित्तीय उतार-चढ़ाव लाता है. लगातार वित्तीय नुकसान व्यक्ति को बेचैन और अधीर बनाता है और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और असुरक्षाओं का कारण बनता है. उनका दृढ़-इच्छाशक्ति वाला स्वभाव उन्हें इस कठिन दौर से बाहर निकलने में मदद करता है और उन्हें स्थिरता की ओर ले जाता है. 

मारकस्थान भाव दूसरा और सातवां भाव –  दूसरे भाव में चंद्रमा-मंगल का संगम व्यक्ति को वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा पर केंद्रित बनाता है. हालाँकि, समस्याएँ तब आती हैं जब ऐसा व्यक्ति अपने पारिवारिक व्यवसाय को संभालता है. उनका रूखा स्वभाव दूसरों के साथ उनके रिश्तों को भी प्रभावित करता है.  

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कर्क राशि में वक्री मंगल : मंगल कर्क राशि में वक्री सभी 12 राशियों पर इसका प्रभाव

वक्री मंगल कर्क राशि में

नव ग्रहों में मंगल को जोश और साहस का ग्रह माना जाता है. मंगल जब भी गोचर में बदलाव करता है उसका असर सभी पर होता है. जब मंगल कर्क राशि में वक्री होता है तो ये स्थिति मिलेजुले असर दिखा सकती है. कुछ मामलों में मंगल की ये स्थिति सकारात्मक भी होती है क्योंकि कर्क राशि में मंगल नीच का होता है और वैसे ही पीड़ा में होता है अब जब वो वक्री होता है तो परिस्थितियां कुछ सुधार को भी दिखाती हैं. मंगल जैसे पाप ग्रह का नीच का होकर वक्री होना मिश्रित असर देने वाला होता है. 

कर्क राशि में मंगल का वक्री असर इमोशन, रिलेशन घरेलू जीवन को प्रभावित करता है. यह घटना भावनात्मक संवेदनशीलता, अंतर्ज्ञान और देखभाल में शुभता लाती है. इसका प्रभाव सभी 12 राशियों पर पड़ता है. ज्योतिष में, किसी ग्रह को तब वक्री माना जाता है, जब वह आकाश में पीछे की ओर चलता हुआ दिखाई देता है. मंगल वक्री हर 26 महीने में होता है, और कर्क राशि में इसका होना महत्वपूर्ण है. जब मंगल कर्क राशि में वक्री होता है, तो यह भावनाओं, रिश्तों और घरेलू जीवन को प्रभावित कर सकता है. 

मेष राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

पारिवारिक समस्याओं के कारण आराम और खुशी की कमी का अनुभव कर सकते हैं. करियर के लिहाज से, आपको वरिष्ठों और सहकर्मियों के साथ संबंधों के मुद्दों सहित उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है. बढ़ती प्रतिस्पर्धा और पुरानी रणनीतियों के कारण व्यवसाय की वृद्धि में बाधा आ सकती है, जिससे संभावित नुकसान हो सकता है. आर्थिक रूप से, आपको अपने पैसे के प्रबंधन में लाभ होगा. 

वृषभ राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

वृषभ राशि वालों को अधिक खर्च और चुनौतियों से निपटना होगा. व्यक्तिगत रुप से आप जोश में होंगे. स्वास्थ्य के लिहाज से, आपको पीठ दर्द और फेफड़ों के संक्रमण से सावधान रहना चाहिए. ज़रूरत पड़ने पर सहायता लेने और आत्म-देखभाल को प्राथमिकता देने पर ध्यान देने से लाभ होगा. नए रिश्तों में आगे बढ़ सकते हैं. कुछ मांगलिक कामों का आयोजन परिवार में चहल-पहल को देने वाला होगा. 

मिथुन राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

मिथुन राशि वाले इस समय यात्रा में शामिल रह सकते है. साहस और दृढ़ संकल्प भी बेहतर होगा. कम्युनिकेशन के कारण संबंधों में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो संभावित रूप से आपकी साझेदारी को प्रभावित कर सकती हैं. किसी नए स्थान पर स्थानांतरित किए जाने का मौका मिलेगा. नौकरी में अस्थिरता का अनुभव होगा. व्यवसाय में, नए कौशल विकसित करने में सफल होने से आपके लाभ में वृद्धि हो सकती है. 

कर्क राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

आर्थिक रूप से, यात्रा करते समय लाभ के अच्छे अवसर होंगे. निजी तौर पर, गलतफहमियां दूर होंगी. आपके साथी के साथ आपके रिश्ते को बेहतर हो सकते हैं. स्वास्थ्य समस्याओं में सुधार का समय होगा. चुनौतियों से निपटने के लिए, संचार में सुधार, नए कौशल विकसित करने का समय होगा. जीवन में संतुलन बनाए रखने पर ध्यान दे पाएंगे. करियर पर अधिक ध्यान केंद्रित करने और अपने बच्चों के विकास में निवेश करने की संभावना रखते हैं. काम में आप बेहतर संतुष्टि और उच्च रिटर्न पाने के लिए बदलाव की तलाश कर सकते हैं.

सिंह राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

अपने काम में या व्यवसाय में, आप नई चीजों को शामिल कर सकते हैं. नौकरी पर्याप्त लाभ दे पाएगी. आर्थिक रूप से, आप व्यापार और स्मार्ट बचत आदतों के माध्यम से लाभ की उम्मीद कर सकते हैं. अपने रिश्ते में सुरक्षित भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं. चीजों में संतुलन बनाए रखने के लिए आत्म-देखभाल को प्राथमिकता दे सकते हैं. अपने रिश्तों को बेहतर बना पाएंगे. कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति का समय होगा . लंबी दूरी की यात्रा पर जाना पड़ सकता है. 

कन्या राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

सहकर्मियों और वरिष्ठों के साथ तालमेल का समय होगा. आपके प्रदर्शन और उत्पादकता की स्थिति अच्छी होगी. व्यावसायिक रणनीतियाँ पुरानी हो सकती हैं, जिसमें बदलाव करना होगा. आपको बेहतर योजना और रुचि के साथ काम के मौके मिलेंगे. खर्चों का प्रबंधन करने की आवश्यकता होगी. निजी तौर पर, अपने साथी के साथ अच्छा रिश्ता बना पाएंगे. बातचीत में ध्यान रखें क्योंकि कड़वे शब्द आपके रिश्ते को खराब कर सकते हैं. 

तुला राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

भाग्य आपके पक्ष में हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप लाभ होगा. निजी तौर पर, आप बेहतर महसूस कर सकते हैं, जो आपके रिश्तों को प्रभावित कर सकता है. इसके अतिरिक्त, अपने शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार पाएंगे. बदलावों के अनुकूल बनेंगे. चुनौतियों से निपटने के लिए खुद की देखभाल को प्राथमिकता देंगे. मुश्किलों से पार पाने के लिए, अपनी रणनीतियों को अपडेट करने से बेहतर लाभ होगा. प्रभावी ढंग से अपने रिश्तों को बेहतर बनाने में कामयाब होंगे.

वृश्चिक राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

ज्ञान और विकास की तलाश में लंबी दूरी की यात्राए हो सकती हैं. नए करियर पथ तलाशने के लिए इस अवसर का लाभ उठा पाएंगे. व्यवसाय में, योजना और व्यावसायिकता में लाभ के योग होंगे. अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक है. आर्थिक रूप से, स्थिति आपके लिए बेहतर होगी. अपनी इच्छाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर पाएंगे. अच्छा कम्युनिकेशन आपको सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है. आपकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प आपके करियर में रंग लाएगा, जिससे आपको उपलब्धियां मिलेंगी. 

धनु राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

इस समय पर आध्यात्मिकता में गहरी रुचि जाग सकती है, जिससे आप अपने आध्यात्मिक पक्ष को तलाशने में सफल होंगे. चीजों को बेहतर करने का मौका मिल पाएगा. कड़ी मेहनत संभावित पदोन्नति और अतिरिक्त लाभों को देने वाली होगी. कारोबार में, अच्छी योजना और नीतियों के कारण लाभ हो सकता है. आर्थिक रूप से, आप अपने बच्चों की प्रगति और विकास में निवेश कर सकते हैं. आपका पार्टनर भी बच्चों के कल्याण और भलाई पर ध्यान केंद्रित करेगा. 

मकर राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

इस समय आप अपनी भलाई को प्राथमिकता देकर और सोच-समझकर निर्णय ले पाएंगे. आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकेंगे और आने वाले अवसरों का अधिकतम लाभ उठा सकेंगे. व्यवसाय में, शेयर मार्किट और विरासत से लाभ हो सकता है. आर्थिक रूप से, आप आय और व्यय का मिश्रण अनुभव करेंगे. व्यक्तिगत मोर्चे पर, आप आनंद लेंगे.अपने साथी के साथ अच्छी बातचीत में शामिल होंगे. मधुर, प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण रख पाएंगे. 

कुंभ राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

आपका साहस और ऊर्जा समग्र अच्छे काम में योगदान देगी. सक्रिय और सकारात्मक रहकर, आप जीवन की चुनौतियों का सामना करेंगे और इन अवसरों का अधिकतम लाभ उठाएंगे. आप काम से संबंधित यात्रा पर जाने की संभावना रखते हैं, जिससे सफल परिणाम मिलेंगे. नौकरी के नए अवसर सामने आएंगे, जिससे आपको संतुष्टि और तृप्ति मिलेगी. व्यवसाय में, आप नई साझेदारी बनाएंगे, जिससे लाभदायक परिणाम मिल सकते हैं. 

मीन राशि के लिए कर्क राशि में वक्री मंगल का असर 

आपकी कमाई की क्षमता बढ़ेगी, और आप आय में वृद्धि का आनंद लेंगे. आपका आकर्षक दृष्टिकोण सकारात्मक बातचीत और संबंधों को बढ़ावा देगा. उच्च ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ, आप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखेंगे. कुल मिलाकर, यह अवधि विकास, सफलता और सकारात्मक संबंधों का वादा करती है, इसलिए सक्रिय रहें, अवसरों का लाभ लें और इन अनुकूल परिस्थितियों का अधिकतम लाभ उठाएं.  नई शुरुआत, आध्यात्मिक विकास और भाग्य के दौर में प्रवेश कर रहे हैं. यात्रा आपको समृद्धि और खुशी लाएगी, जबकि आध्यात्मिक रूप से समृद्ध अनुभव आपकी आत्मा को पोषण देंगे. 

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सिंह लग्न के लिए बाधक ग्रह और उसका प्रभाव

सिंह लग्न के लिए बाधक ग्रह और उसका प्रभाव
सूर्य सिंह लग्न को शक्ति प्रदान करता है, जो स्वयं में केन्द्रित होने से ही मिलती है. सिंह लग्न के लिए नवम भाव बाधक बनता है और नवम भाव का स्वामी बाधकेश बनता है. सिंह लग्न में बाधक मेष राशि होती है और मेष राशि का स्वामी मंगल बाधकेश की भूमिका को निभाता है. आइये जान लेते हैं बाधक मगल कैसे सभी भावों पर अपना असर डाल सकता है

प्रथम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सिंह लग्न में प्रथम भाव में बैठा मंगल बाधक होता है तथा व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करता है. व्यक्ति का स्वाभिमान तथा मनोबल बहुत मजबूत होता है. हठ तथा अहंकार के कारण परेशानी होती है. मंगल सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखता है, अतः पत्नी से सुख भी प्रभावित होता है. संतान के क्षेत्र में कुछ परेशानियां हो सकती हैं, शिक्षा तथा बुद्धि के क्षेत्र में कुछ परेशानियां हो सकती हैं. भाग्य तथा धर्म के क्षेत्र में भी कुछ परिवर्तन होता है.

द्वितीय भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सिंह लग्न के द्वितीय भाव में बाधक मंगल होने पर धन संग्रह में कठिनाई होती है. परिवार में सामंजस्य कम होता है. वाणी में ओज के साथ धैर्य तथा गंभीरता होती है. बाधक स्वामी देखता है तो बाधाओं के कारण चिंता होती है. बाधक मंगल दशम भाव से संबंधित सभी कमजोर फल देता है.

तीसरे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
पराक्रम और भाई-बहन के तीसरे भाव में अपने शत्रु की राशि में बाधक मंगल के प्रभाव से साहस में कमी आती है और भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है. यहां से बाधक मंगल भाई बंधुओं का मित्रों का सुख कम मिलता है और व्यापार के क्षेत्र में परिवर्तन होते हैं. धन पर लगातार ध्यान रहता है.

चौथे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
कन्या राशि में स्थित बाधक मंगल के प्रभाव से माता, भूमि, मकान आदि का पर्याप्त सुख मिलता है और सुख में कमी आती है. आयु और पैतृक संपत्ति में कुछ हानि और अशांति का सामना करना पड़ता है. पिता और राज्य से पर्याप्त सहयोग, सफलता और यश में कमी आती है. व्यय में वृद्धि होती है तथा बाहरी स्थानों से विशेष संबंध बनते हैं. बाधक मंगल बाह्य रूपों में ही सुख देता है.

पंचम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
पंचम त्रिकोण तथा शिक्षा एवं संतान भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से संतान के क्षेत्र में कुछ हानि होती है अथवा शिक्षा एवं बुद्धि के क्षेत्र में सफलता के लिए अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं. भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है. शारीरिक सौन्दर्य पर अभिमान, प्रभाव एवं स्वाभिमान में वृद्धि होती है.

छठे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
छठे शत्रु एवं रोग भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से शत्रुओं से अधिक परेशानी हो सकती है. साथ ही पत्नी से कुछ मतभेद के साथ सफलता मिलती है. बाधक मंगल मान-सम्मान एवं उन्नति के अवसर मिलते हैं. व्यय अधिक होता है तथा बाहरी स्थानों से संबंधों के माध्यम से कार्य प्राप्त होता है. परिश्रम से ही धन में वृद्धि होती है.

सप्तम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सप्तम भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से विवाह में विलम्ब अथवा सुख में कमी आ सकती है. पिता तथा राज्य से सहयोग तथा सम्मान मिलता है, किन्तु सुख प्राप्त नहीं होता. कामनाओं में वृद्धि करता है. व्यक्ति अपने बारे में अधिक सोचता है. साहस तथा पराक्रम में वृद्धि होती है.

अष्टम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
अष्टम भाव में बाधक मंगल का प्रभाव धर्म पालन में अरुचि लाता है. साथ ही पिता पक्ष की पत्नी तथा पशुओं में असंतोष रहता है. यहां से बाधक मंगल शारीरिक सौन्दर्य तथा सम्मान प्राप्ति के लिए संघर्ष करा सकता है. साहस में कमी आती है तथा भाई-बहनों से सहयोग कम मिलता है. संतान से कुछ असंतोष रहता है तथा शिक्षा के क्षेत्र में निपुणता होती है तथा गूढ़ विषयों में बुद्धि होती है.

बाधक मंगल की नवम भाव में स्थिति
बाधक मंगल की नवम भाव में स्थिति कुंडली के भाग्य भाव को कम कर सकती है. पिता से अच्छे संबंध होते हैं, लेकिन दूरी बनी रहती है. राजकीय कार्यों में सफलता के लिए संघर्ष करना पड़ता है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त करता है. मंगल व्यक्ति को धार्मिक कार्यों पर धन व्यय करवाता है. बाधक मंगल के प्रभाव से उन्नति कुछ कठिनाइयों के साथ कमजोर होती है.

दशम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
दशम भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से करियर में कठिनाइयां आती हैं. इसके साथ ही पत्नी, पिता और व्यापार से जुड़े मामलों में परेशानियां आती हैं. खर्च अधिक होते हैं और परिवार बाहरी स्थानों से छल-कपट के सहारे चलता है. अपने धन को बढ़ाने के प्रयास होते हैं. कार्य क्षेत्र में बदलाव अधिक होते हैं.

एकादश भाव में बाधक मंगल की स्थिति
लाभ भाव में बाधक मंगल इच्छाओं में वृद्धि करता है. आपको अपने आस-पास के लोगों से कम सहयोग मिलता है. व्यापार और पिता से भी आपको पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है. बाधक मंगल पंचम मित्र दृष्टि को देखता है, मेहनत कम होती है, भाई-बहनों से सुख भी कम मिलता है. पंचम भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि के कारण संतान से कुछ असंतोष रहता है. आपको खूब ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है. स्त्री एवं व्यापार के मामले में विशेष सुख की कमी रहती है.

बाधक मंगल की बारहवें भाव में स्थिति
बाधक मंगल के बारहवें भाव में होने से व्यक्ति अधिक खर्च करता है तथा बाहरी स्थानों से मान-सम्मान एवं लाभ प्राप्त करता है. परिवार के सुख में कुछ कमी रहती है तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है. माता से बल मिलता है तथा घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि से लाभ मिलता है. स्वास्थ्य प्रभावित रहता है. लाभ के सापेक्ष कुछ हानि उठानी पड़ती है.

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कुंडली में ग्रह राशि भाव दृष्टि प्रभाव और विशेषता

कुंडली में ग्रह राशि भाव दृष्टि सूत्र 

ज्योतिशष में ग्रहों की दृष्टि विशेष प्रभाव रखती है. राशि दृष्टि को समझ कर कुंडली के मुख्य पहलूओं पर विचार कर पाना संभव होता है. ग्रह दृष्टि का प्रभाव विशेष प्रभाव देता है. ग्रह दृष्टि से कुंडली के फल को बिना किसी भ्रम के अच्छी तरह से समझा जा सकता है. एक दृष्टि लगभग हर ग्रह के पास होती है जिसे सामने की दृष्टि के सातवी दृष्टि के नाम से जाना जाता है. ग्रह की दृष्टि का प्रभाव पराशर और जैमिनी ज्योतिष में भी विशेष प्रभाव बताया जाता है.  

जैमिनी ज्योतिष अनुसार दृष्टि प्रभाव 

चल राशि उनके लिए 8वीं राशि और उनके समीप राशि को देखती है जो 11वीं और 5वीं राशि है.

स्थिर राशि उनके लिए 6वीं राशि और उनके समीप राशि को देखती है जो 3वीं और 9वीं राशि है.

चर राशि उनसे 7वीं राशि और उनकी समीप राशि जो 4वीं और 10वीं है, को देखती है.

विशेष :  चर राशि उनसे दूसरी राशि को छोड़कर सभी स्थिर राशि को देखती है, स्थिर राशि उनसे बारहवीं राशि को छोड़कर सभी चल राशि को देखती है, द्विस्वभाव राशि अन्य सभी द्वैत राशियों को देखती है.

राशि में स्थित ग्रह भी राशि दृष्टि से देखता है.

राशि दृष्टि से विशेष के रुप में राशि दृष्टि हमेशा पूर्ण होती है. लोग केतु जैसे ग्रहों या मृत्यु जैसे उपग्रह या धूम जैसे अप्रकाश ग्रह की दृष्टि को लेकर भ्रमित दिखाई देते हैं. राशि में कोई भी चीज राशि दृष्टि से संबंध रखती है. इसका मतलब यह है कि अगर आपको गुलिका की दृष्टि की जांच करने की आवश्यकता है तो उस राशि की राशि दृष्टि देखें जहां गुलिका स्थित है और आपको गुलिका का दृष्टि प्रभाव मिलेगा.

जब कोई जैमिनी ज्योतिष को देखेगा तो पाएगा कि जैमिनी ने राशि दृष्टि को अत्यधिक महत्व दिया था क्योंकि एक भाव में आरुढ़ भी राशि दृष्टि से ही संबंध रखता है इसका मतलब यह है कि राशि में कुछ भी राशि दृष्टि से संबंध रखेगा.

दृष्टि भेद और असर 

दृष्टि के भी कई भेद होते हैं, क्योंकि इसमें चार भेद हो सकते हैं, पाप ग्रह की दृष्टि, जो राशि के स्वामी का मित्र है, पाप ग्रह की दृष्टि, जो राशि के स्वामी का शत्रु है. शुभ ग्रह की दृष्टि, जो राशि के स्वामी का शत्रु है, शुभ ग्रह की दृष्टि, जो राशि के स्वामी का मित्र है.  

ग्रह दृष्टि के लिए पाराशर होरा शास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रत्येक ग्रह की 1/4 दृष्टि स्वयं से 3-10 घरों पर होती है, 2/4 दृष्टि स्वयं से 5-9 घरों पर होती है. 3/4 दृष्टि स्वयं से 4-8 घरों पर होती है और 4/4 दृष्टि स्वयं से 7वें घर पर होती है. शनि, बृहस्पति और मंगल की विशेष दृष्टि है क्योंकि शनि अपने से 3-10 तक पूर्ण 4/4 दृष्टि से देखता है, मंगल अपने से 4-8 तक पूर्ण 4/4 दृष्टि से देखता है और बृहस्पति अपने से 5-9 तक पूर्ण 4/4 दृष्टि से देखता है.

शनि, बृहस्पति और मंगल को छोड़कर सभी ग्रहों की सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि होती है और शनि, बृहस्पति और मंगल की इन भावों पर विशेष दृष्टि होती है क्योंकि उनकी पूर्ण दृष्टि होती है और सातवें भाव पर उनकी दृष्टि पूर्ण नहीं बल्कि आंशिक होती है.

ग्रह दृष्टि विशेष 

ग्रह त्रिकोण जिसमें पंचम भाव और नवम भाव है. चतुर्थ अष्टम में चतुर्थ भाव और आठवां भाव शामिल है, सप्तम में सातवां भाव शामिल है और उपचय में तीसरा और दसवां भाव शामिल है. 

शनि 1/4 2/4 3/4 पूर्ण दृष्टि

बृहस्पति पूर्ण 1/4 2/4 3/4

मंगल 3/4 पूर्ण 1/4 2/4

अन्य 2/4 3/4 पूर्ण 1/4

कोई यह भी देख सकता है कि नाड़ी ज्योतिष का रहस्य यहीं छिपा है. मान लीजिए कि दो ग्रह त्रिकोण में हैं सूर्य और चंद्रमा तो सूर्य चंद्रमा पर 2/4 दृष्टि डालता है और चंद्रमा चंद्रमा पर 2/4 दृष्टि डालता है. इस कारण से ग्रहों के बीच संबंध को परिभाषित करते समय मंत्रेश्वर ने अपनी फलदीपिका में ग्रहों के बीच संबंध जोड़ा.

ग्रहों के बीच संबंध चार तरीकों से बनते हैं. एक दूसरे की राशि में होने से, परस्पर दृष्टि में होने से, जमाकर्ता द्वारा दृष्टि होने से, एक ही राशि में होने से लेकिन व्यवहार में, हम पाते हैं कि कई मामलों में परस्पर दृष्टि एक मजबूत संबंध नहीं बनाती है, क्योंकि केवल सूर्य, चंद्रमा, बुध, शुक्र की सातवीं पर पूर्ण दृष्टि है जो पारस्परिक दृष्टि संबंध में भाग लेते हैं अन्य ग्रह सातवें भाव पर आंशिक दृष्टि डालते हैं इस प्रकार योग लागू हो भी सकता है और नहीं भी.

पहले और सातवें में बृहस्पति और मंगल बृहस्पति मंगल को 2/4 दृष्टि से और मंगल को 1/4 दृष्टि से देखता है. यह केवल 3/4 दृष्टि बनाता है.  बृहस्पति और शनि 1-7 में हैं. बृहस्पति शनि को 2/4 दृष्टि से और शनि को 3/4 दृष्टि से देखते हैं, जो 5/4 है, जिसका अर्थ है संबंध. इस तरह से अंतर को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं.

ग्रह और भाव दृष्टि के बीच अंतर

ग्रह दृष्टि मूल रूप से दो ग्रहों के बीच संबंध के लिए है, केवल जब यह पूर्ण हो तो इसे ध्यान में रखना चाहिए. भाव दृष्टि भाव और ग्रह के बीच संबंध है और यहां सभी प्रकार के पहलुओं पर विचार किया जा सकता है. जो भाव पर उनके प्रभाव की सीमा पर उन्हें अलग करता है.

भाव दृष्टि

यह स्पष्ट करते हुए कि भाव दृष्टि भाव और ग्रह के बीच संबंधों का न्याय करने के लिए पूर्ण और आंशिक दोनों पहलुओं को ध्यान में रखेगी जबकि ग्रह दृष्टि केवल दो ग्रहों के बीच पूर्ण होती है.

भाव षड्बल के बारे में जानने के लिए हमें दृष्टि बल की गणना करनी होती है.

भाव दृष्टि की गणना: दृष्टि देने वाले ग्रह को “द्रष्टा” कहा जाता है, दृष्टि देने वाले ग्रह/भाव को “दृश्य” कहा जाता है

उनका देशांतर “राशि-डिग्री-मिनट” लें और द्रष्टाA-दृश्यB = यदि 6 से अधिक है तो 10 राशि से घटाएँ और 2 से भाग दें.

यदि 5 से अधिक है तो राशि छोड़ दें और डिग्री और मिनट को दोगुना करें

यदि 4 से अधिक है लेकिन 5 से कम है तो इसे 5 से घटाएं और शेष डिग्री और मिनट दृष्टि देंगे

यदि 3 से अधिक है, तो 4 से घटाएँ, 2 से भाग दें और 30 जोड़ें.

यदि 2 से अधिक है, तो राशि छोड़ दें और डिग्री में 15 जोड़ें

यदि 1 से अधिक है, तो राशि छोड़ दें और डिग्री को आधा करें. इससे दृष्टि पहलुओं की मात्रा मिलती है.

शनि, मंगल और बृहस्पति के लिए दृष्टि प्रभाव महत्व 

शनि के लिए तीसरे और दसवें घर पर दृष्टि में 45 और जोड़ें. बृहस्पति के लिए पांचवें और नौवें घर पर दृष्टि में 30 और जोड़ें. मंगल के लिए चौथे और आठवें घर पर दृष्टि में 15 और जोड़ें. ग्रह दृष्टि ग्रहों की डिग्री को ध्यान में नहीं रखती है. भाव/राशि में एक ग्रह उनकी डिग्री के बावजूद उनके दृष्टि संबंध के अंतर्गत आता है. लेकिन भाव दृष्टि में भाव की डिग्री को ध्यान में रखना चाहिए.

यही कारण है कि मंत्रेश्वर ने अपनी फल-दीपिका में कहा है कि लग्न की डिग्री के बराबर किसी भी भाव में स्थित ग्रह उस भाव का पूरा प्रभाव देगा और अन्य स्थानों पर उन्नति देगा. यह उनकी दृष्टि पर भी लागू होता है. एक भाव में स्थित होना अन्य भावों की दृष्टियों को सम्मिलित करता है.

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क्या होता है केन्द्राधिपति दोष ?

ज्योतिष में अनेकों योगों का उल्लेख मिलता है जिनके आधार पर कुंडली की शुभता या निर्बलता को समझ पाना संभव होता है. इन्हीं में से एक योग है केन्द्राधिपति दोष. यह यह ऎसा दोष है जब शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध और शुभ चन्द्रमा केन्द्र प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम के स्वामी हो तो केन्द्राधिपति दोष से दूषित होते है. शुभ ग्रहों के द्वारा बनने वाला य्ह दोष बहुत ही विशेष होता है. 

केन्द्राधिपति दोष योग में होने वाले ग्रह अपने प्रभाव में कमी देते हैं लेकिन यह बहुत कष्टप्रद नहीं होता है. इसमें शुभ फल के बहुत अच्छे फल कुछ कम रुप में मिलते हैं. 

शुभ ग्रह बनाते हैं केन्द्राधिपति दोष 

कुंडली में जब शुभ ग्रहों की बत आती है तो इनमें गुरु चंद्रमा जैसे शुभ ग्रहों का मुख्य स्थान होता है वहीं पाप ग्रह में मंगल शनि का स्थान दिखाई देता है. लेकिन इस क्रम में जब केन्द्राधिपति दोष को देखा जाए तो इसका प्रभाव शुभ ग्रहों के होने से बनना महत्वपूर्ण घटना होती है जो कुंडली में कई तरह से अपना असर भी डालती है. 

कुंडली में जब यह दोष बनता है तो इसके कारण कई दूरगामी प्रभाव देखने को मिलते हैं. जब यह बनता है दोष तो व्यक्ति को किसी अशुभ बात का भय बना रहता है. केन्द्राधिपति दोष में इन शुभ ग्रहों की शुभता थोड़ी कम हो जाती है. ऎसे में इनसे भय का कोई अर्थ इतना गहरा नहीं है. 

केन्द्राधिपति दोष और केन्द्र में ग्रहों का प्रभाव 

केवल मिथुन, कन्या, धनु, मीन राशि में ही चारों केन्द्र पहला भाव, चतुर्थ भाव, सातवां भाव, दसवें भाव के स्वामी बुध और बृहस्पति दोषग्रस्त होते हैं. दोनों शुभ ग्रह द्विस्वभाव राशियों के स्वामी भी हैं.

केन्द्राधिपति दोष के कारण द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु और मीन में बुध और बृहस्पति दोनों ही इस दोष से प्रभावित हो सकते हैं. 

दोनों ग्रह केन्द्र में हों तो तब केन्द्राधिपति दोष अपना असर डाल सकता है लेकिन इस प्रभाव की स्थिति कई मायनों में विशेष बन जाती है. 

दोनों ग्रह अपने ही भाव में हों या उच्च या नीच के हों तब भी वे केन्द्राधिपति दोष से प्रभावित होते हैं. 

दोनों ग्रहों का राशि परिवर्तन योग यानि परस्पर आश्रय योग केंद्र में ही हो, तब भी वे केंद्राधिपति दोष से प्रभावित होते हैं.

इस दोष को लेकर कई तरह की अवधारणाएं मिलती हैं जिसके आधार पर इस दोष की स्थिति को अलग अलग तरह से देखा जाता है. केंद्राधिपति दोष ज्योतिष का विवादास्पद विषय है. अलग-अलग ग्रंथों ने अलग-अलग परिणाम दिए हैं. विद्वानों में भी इस पर मतभेद है. कुछ विद्वान केवल बुध और बृहस्पति को ही केंद्राधिपति दोष मानते हैं. यदि राशि स्वामी भी केंद्र में हो, तो केंद्राधिपति दोष होगा. 

पराशर के अनुसार, यदि नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रहों की राशि केंद्र में हो और नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह भी केंद्र में हों, तो दोष होता है. ऐसा माना जाता है कि बृहस्पति सबसे अधिक प्रभावित होता है. बृहस्पति के बाद शुक्र, बुध और चंद्रमा में दोष की तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जाती है. शुभ ग्रह की शुभता कम होती जाती है.

केंद्राधिपति दोष से मिलने वाले प्रभाव 

व्यक्ति व्यक्तिगत और व्यावसायिक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में देरी, बाधाओं या निराशा का अनुभव कर सकते हैं. परिवार, दोस्ती और रोमांटिक साझेदारी सहित व्यक्तिगत संबंधों को आगे बढ़ाने में अप्रत्याशित बाधाओं या जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. धन का प्रबंधन, धन संचय करना या वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करना चुनौतियों का सामना कर सकता है. बार-बार होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ या कमज़ोरी और सुस्ती की सामान्य भावना कभी-कभी दोष से जुड़ी होती हैं. नकारात्मकता के कारण चिंता, हताशा या असहायता की भावना पैदा हो सकती है।

केंद्राधिपति दोष कैसे भंग होता 

पाप ग्रहों में केंद्राधिपति दोष नहीं होता. जब कृष्ण पक्ष, कमजोर चंद्रमा पापी हो जाता है, तो उसे केंद्राधिपति दोष नहीं होता.

जब कोई भी ग्रह केंद्र में होता है तो वह अपना स्वाभाविक स्वभाव त्याग देता है. जैसे पापी ग्रह अपना पाप त्याग देता है, क्रूर ग्रह अपनी क्रूरता त्याग देता है और शुभ ग्रह अपनी शुभता त्याग देता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे ग्रह विपरीत परिणाम देने लगेंगे.

यदि चंद्रमा अपनी राशि में, उच्च केंद्र में हो तो केंद्राधिपति दोष नहीं होगा. इसी प्रकार यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र स्वगृही केंद्र में हों तो पंचमहापुरुष योग बनने से केंद्राधिपति दोष भंग हो जाता है.

जब कोई भी ग्रह अपनी राशि में होता है तो उस भाव के लिए प्रबल शुभता देता है. तब केंद्र सरकार को दोष नहीं लगेगा.

जब ग्रह की एक राशि केंद्र में और दूसरी राशि त्रिकोण में हो तो केंद्राधिपति दोष भंग हो जाता है. ऐसा केवल मकर लग्न और कुंभ लग्न में ही होगा. ऐसा केवल शुक्र के साथ होगा. मकर लग्न में पंचम व दशम भाव में तथा कुम्भ लग्न में चतुर्थ व नवम भाव में शुक्र होने से शुक्र दोष मुक्त होगा.

अगर लग्न में शुभ ग्रह हो तो केन्द्राधिपति दोष भंग हो जाता है, क्योंकि लग्न केन्द्र व त्रिकोण दोनों है.

केन्द्राधिपति दोष में अगर ग्रहों का राशि परिवर्तन हो यानि अनन्या आश्रय योग हो तो केन्द्राधिपति दोष नहीं होगा.

केन्द्राधिपति दोष के प्रतिकूल प्रभाव उसके भंग होने पर अपना असर नहीं देते हैं.

केन्द्राधिपति दोष का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता.

अगर ग्रह केन्द्राधिपति दोष से दूषित हो जाए तो उसके शुभ फलों में थोड़ी कमी आ जाती है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं की कोई शुभ फल प्राप्त ही नहीं होगा.

केन्द्राधिपति दोष से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शुभ ग्रह शुभ ही रहेगा. केवल शुभ फलों में थोड़ी कमी आएगी.

केन्द्र भाव के स्वामी भगवान विष्णु हैं. जब केन्द्राधिपति दूषित ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा आये तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें, पूजन करें. उस ग्रह से सम्बंधित बीज मंत्र का जप करें. उस ग्रह से सम्बंधित मंत्रों का जाप अनुकूल होता है. 

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कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र और बाधकेश प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र और बाधकेश प्रभाव 

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र बनता है. शुक्र कर्क लग्न के लिए बाधकेश होता है. शुक्र एक अनुकूल शुभ ग्रह होने पर भी कर्क लग्न के लिए बाधक का काम करता है. शुक्र की स्थिति कई मायनों में अपना असर डालता है. कर्क राशि एक जल राशि है, जिसका स्वामी चंद्रमा है, जो एक जलीय ग्रह है. चंद्रमा के साथ शुक्र के संबंध अनुकूल नहीं माने जाते हैं. वैसे तो दोनों ग्रह शुभ हैं लेकिन इन दोनों ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे के लिए शत्रुतापूर्ण संबंध साझा करता है. 

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वहीं शुक्र बाधक बन कर और अधिक परेशानी देने वाला होता है. इस प्रभाव से लग्न के लोग जल तत्व के प्रबल प्रभाव में होते हैं और उनमें भावनाओं की भी स्थिति काफी जोश से भरी होती है. होता है. शुक्र का प्रभाव संवेदनशील बनाता है और बहुत जल्दी लोगों से जुड़ जाते हैं लेकिन दूसरों से उतना लगाव नहीं मिल पाता है. वे प्यार में विशेष रूप से कमज़ोर होते हैं क्योंकि वे आसानी से मीठी-मीठी बातें करके आहत हो सकते हैं. दूसरों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं और प्यार के मामलों में काफी आशावादी होते हैं. दूसरों के प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं.

बाधकेश शुक्र का कर्क लग्न के लिए प्रभाव 

कर्क राशि में शुक्र व्यक्ति को सामाजिक और व्यावसायिक सफलता के मामले में बुद्धिमान, विद्वान, मजबूत, गुणी और शक्तिशाली बनाता है. यह रचनात्मक और कलात्मक गतिविधियों के लिए एक मजबूत प्रवृत्ति भी देता है. ऎसे में शुक्र का बाधकेश होना दिक्कत भी बना जाता है. लोग कला और सौंदर्य जैसे रचनात्मक क्षेत्रों में अच्छा करने का सोचते हैं वो बाधकेश के कारण ही परेशानी झेलते हैं. बाधकेश का प्रभाव नशे या फिर गलत संबंधों की ओर झुकाव भी देता है. इन संबंध के कारण आमतौर पर परेशानी में पड़ जाते हैं.  काफी मूडी और अप्रत्याशित भी हो सकते हैं नाराज़ होने और सारा दोष खुद पर डालने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए. कर्क लग्न के लिए बाधकेश शुक्र महादशा के परिणाम.

बाधकेश शुक्र इस लग्न कुंडली में शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है. शुक्र को इस लग्न कुंडली में सम ग्रह माना गया है क्योंकि यह दो शुभ भावों का स्वामी है. बाधकेश शुक्र यदि लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो अपनी क्षमता के अनुसार अपना फल देता है. तृतीय, षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देता है. बाधकेश शुक्र यदि अच्छे भाव में स्थित हो तो उसकी दशा में उसका रत्न धारण करने से उसकी अनुकूलता में वृद्धि होती है. बाधकेश शुक्र यदि अशुभ भाव में स्थित हो तो उसका दान जपने से इस ग्रह की अशुभता कम होती है.

कर्क लग्न में शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है. चतुर्थ भाव का स्वामी होने के कारण यह माता, भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी, संपत्ति इत्यादि की स्थिति, अफवाह, प्रेम विवाह और प्रेम प्रसंग जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं एकादश भाव का स्वामी होने के कारण यह लोभ, लाभ, रिश्वतखोरी, गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतान, सगे-संबंधी इत्यादि बातों के लिए विशेष होता है.

कर्क लग्न पर बाधकेश शुक्र की महादशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बाधक शुक्र का प्रभाव जब महादशा में मिलता है तो इसके अकरण कई तरह के असर दिखाई देते हैं. बाधकेश शुक्र ग्रह जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव और एकादश भाव का स्वामी है. इसलिए इसे कर्क लग्न के लिए अशुभ ग्रह माना जाता है. यह कर्क लग्न के जातकों के लिए नकारात्मक ग्रह है, लेकिन शुभ भाव में और शुभ ग्रहों के साथ होने पर अनुकूल परिणाम देने में सहयोग भी करता है. विशेष रुप से बाधकेश शुक्र जब उच्च स्थिति में हो जैसे मीन राशि में उच्च का है, तो यह धन, व्यावसायिक स्थिति और सांसारिक उपलब्धियों में असामान्य वृद्धि लाएगा. 

लेकिन बाधकेश शुक्र कन्या राशि में अशुभ है और अशुभ शनि, राहु, केतु और मंगल से पीड़ित है, तो यह व्यवसाय, करियर में विफलता ला सकता है. यह आर्थिक रुप से कमजोर बना सकता है. बाधकेश शुक्र महादशा के दौरान परिणाम बेहद खराब होंगे.  कन्या राशि शुक्र की नीच राशि है. अत: कन्या राशि में आने पर छोटे-बड़े भाई-बहनों से कष्ट उत्पन्न होने की संभावना रहती है. 

पिता से मन मुटाव रहता है, धर्म में आस्था नहीं रहती, विदेश यात्रा से लाभ नहीं मिलता, सुख-सुविधाओं में कमी रहती है तथा काफी मेहनत के बाद भी लाभ में कमी रहती है. प्रतियोगिता में विजय काफी मेहनत के बाद ही मिलती है, कोर्ट-कचहरी के मामले होते हैं तथा माता और बड़े भाई-बहन को कष्ट रहता है. शुक्र की महादशा में कोई न कोई खर्च होता रहता है. विदेश में सेटलमेंट के योग बनते हैं. हर काम में रुकावट, देरी, धन की कमी और रोग हो सकते हैं.

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मिथुन लग्न के लिए बाधक ग्रह और बाधकेश प्रभाव

मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए सातवां भाव बाधक बनता है. मिथुन लग्न के लिए सातवें भाव का स्वामी बाधकेश हो जाता है. गुरु का प्रभाव अनुकूल होने पर भी बाधक के कारण वह अपना संपूर्ण प्रभाव देने में सक्षम नहीं होता है. बाधकेश जिस भाव में बैठा होता है उस फलों को भी प्रभावित करता है. बाधक होने के कारण कुछ न कुछ परेशानियां रह सकती हैं. आइये जान लेते है मिथुन लग्न के लिए बाधक गुरु का सभी भावों पर प्रभाव.

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पहले भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति

मिथुन लग्न में पहले भाव में बैठा गुरु बाधक होने के कारण व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करने वाला होता है. व्यक्ति का स्वाभिमान, मनोबल काफी मजबूत होता है. जिद और अपने अभिमान के कारण परेशानी होती है. गुरु सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखता है, अत: उसे पत्नी से भी सुख प्रभावित होता है . पंचम भाव को पंचम शत्रु दृष्टि से देखने के कारण संतान के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो सकती है, शिक्षा व बुद्धि के क्षेत्र में कुछ परेशानी हो.नवम भाव को नवम शत्रु दृष्टि से देखने पर भाग्य व धर्म के क्षेत्र में भी कुछ बदलाव देता है.

दूसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति

जब बाधक बृहस्पति मिथुन लग्न के दूसरे भाव में होते हैं तो धन संग्रह में मुश्किल होती है. परिवार में सामंजस्य कम ही रह पाता है. वाणी में ओज के साथ-साथ धैर्य गंभीरता होती है. बाधकेश सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखें तो बाधाओं के कारण चिंता होती है. नवम दृष्टि उसके दशम भाव पर पड़ती है तो बाधक बृहस्पति देव यहां द्वितीय भाव में बैठकर दशम भाव से संबंधित सभी कमजोर फल प्रदान करने वाले होते हैं.

तीसरे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पराक्रम एवं भाई-बहन के तीसरे भाव में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से साहस में कमीहोती है तथा भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है. यहां से बाधक बृहस्पति धनु राशि में सप्तम भाव को पंचम दृष्टि से देखता है पत्नी के साथ सुख कम मिलता है तथा व्यापार के क्षेत्र में बदलाव होते हैं. एकादश भाव पर मित्र की नवम दृष्टि होने से लगातार धन के प्रति ध्यान रहता है.

चतुर्थ भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
कन्या राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से माता, भूमि, मकान आदि का पर्याप्त सुख मिलता है तथा सुख में कमी होती है. अष्टम भाव पर पंचम नीच दृष्टि होने से आयु और पैतृक संपति में कुछ हानि और अशांति का सामना करना पड़ता है. दशम भाव पर सप्तम दृष्टि होने से पिता और राज्य से पर्याप्त सहयोग, सफलता और यश में कमी आती है. द्वादश भाव पर नवम दृष्टि होने से व्यय में वृद्धि होती है तथा बाहरी स्थानों से विशेष सम्बन्ध बने रहते हैं. मिथुन लग्न के चतुर्थ भाव में बैठा बाधक बृहस्पति सुख को बाहरी रुपों में ही दिलाता है.

पंचम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
पंचम त्रिकोण और शिक्षा एवं संतान भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से संतान के क्षेत्र में कुछ हानि होती है या फिर शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में सफलता के लिए प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं. नवम भाव पर पंचम शत्रु दृष्टि होने से भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है. पहले भाव पर नवम मित्र दृष्टि होने से शारीरिक सौन्दर्य, प्रभाव एवं स्वाभिमान में अभिमान की वृद्धि होती है.

छठे भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
छठे शत्रु एवं रोग भाव में बाधक बृहस्पति के प्रभाव से शत्रुओं से परेशानी अधिक हो स्कती है. साथ ही पत्नी पक्ष में कुछ मतभेद के साथ सफलता मिलती है. बाधक बृहस्पति पंचम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, मान-सम्मान एवं उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं. द्वादश भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से व्यय की अधिकता होती है तथा बाहरी स्थानों से संबंधों से काम मिलता है. दूसरे भाव पर नवम उच्च दृष्टि होने से परिश्रम से ही धन में वृद्धि होती है.

सातवें भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
सप्तम भाव में अपनी ही राशि धनु में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से विवाह में देरी या सुख का कमजोर हो सकता है. पिता और राज्य से सहयोग, सम्मान मिलता है लेकिन सुख नहीं मिल पाता है. पंचम मित्र दृष्टि से एकादश भाव को देखता है, अत: इच्छाओं को बढ़ा देता है. प्रथम भाव को देखने से खुद पर अतिविचारशील बना देता है. तृतीय भाव को देखने से साहस और पराक्रम में वृद्धि होती है.

अष्टम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
आठवें भाव में बाध गुरु का प्रभाव धर्म के पालन में अरुचि को लाता है. साथ ही पत्नी और पिता के पक्ष के पशुओं में असंतोष रहता है. यहां से बाधक बृहस्पति शारीरिक सौंदर्य और सम्मान की प्राप्ति के लिए संघर्ष दे सकता है. साहस में कमी होती है तथा भाई-बहनों का सहयोग कम मिल पाता है. संतान से कुछ असंतोष रहता है तथा गुढ़ विषयों की शिक्षा और बुद्धि के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त होती है.

नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
नवम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति कुंडली के भाग्य भाव को कुछ कम कर सकती है. पिता से अच्छे संबंध होते हैं लेकिन दूरी रहती है. राज्य कार्यों में सफलता के लिए संघर्ष होता है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त करने वाला होता है. नवम दृष्टि से द्वादश भाव को देखने के कारण बाधक बृहस्पति धार्मिक कार्यों पर धन व्यय करने वाला बनाता है. शनि की कुंभ राशि में स्थित बाधक बृहस्पति के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों के साथ उन्नति कमजोर होती है.

दशम भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
दशम भाव में बाधक गुरु का प्रभाव करियर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्त्री, पिता और व्यवसाय के मामले में भी परेशानियां आती हैं. व्यय अधिक रहता है और परिवार बाहरी स्थानों से छल-कपट वाले संबंधों के सहारे चलता है. अपने धन में वृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहता है. कार्य क्षेत्र में बदलाव अधिक होते हें.

एकादश भाव में बाधक बृहस्पति की स्थिति
लाभ स्थान में बाधक इच्छाओं को बढ़ा देता है. अपने आस पास के लोगों से सहयोग कम मिल पाता है. व्यापार और पिता से भी पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है. बाधक बृहस्पति पंचम मित्र दृष्टि को देखता है, मेहनत में कमी आती है, भाई-बहनों का सुख भी कम प्राप्त होता है. पंचम भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से संतान से कुछ असंतोष रहता है. बहुत अधिक ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति होती है. स्त्री व व्यापार के मामले में विशेष सुख की कमी होती है.

बाधक बृहस्पति की द्वादश भाव में स्थिति
बाधकेश बृहस्पति के व्यय भाव में द्वादश भाव में होने से जातक अधिक व्यय करता है तथा बाहरी स्थानों से सम्मान व लाभ प्राप्त करता है. अपने परिवार के सुख में भी कुछ कमी रहती है तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है. माता व घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि का बल मिलता है. सेहत प्रभावित होती है. लाभ के संबंध में कुछ हानि उठानी पड़ती है.

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वृष लग्न के लिए बाधक ग्रह और बाधकेश प्रभाव

वृषभ लग्न की कुंडली में बाधकेश शनि का प्रभाव
वृषभ लग्न के लिए नवम भाव बाधक का काम करता है. नवम भाव का स्वामी बाधकेश कहलाता है. बाधकेश के रुप में भाग्य भाव की स्थिति कुछ अलग तो लगती है लेकिन इसका प्रभाव बाधक बन ही जाता है. वृष लग्न में शनि शुभ होकर भी उस के बाधक रुप में अपना असर डालने वाला होता है. बाधकेश होकर शनि हर भाव में अपना असर डालने वाला होता है.

प्रथम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पहले भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव काफी विशेष होता है. अपने मित्र शुक्र की राशि में स्थित शनि के प्रभाव से सौभाग्यशाली बन सकता है. शनि का प्रभाव दशम दृष्टि से राज्य व पिता भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से तृतीय भाव को देखने से भाई-बहनों का सुख कम होता है. सप्तम शत्रु दृष्टि से छठे भाव को देखने से स्त्रियों के व्यापार पक्ष में कठिनाई बढ़ती है.

द्वितीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
दूसरे भाव में बाधकेश शनि का प्रभाव कुटुम्ब को प्रभावित करता है. इस भाव में अपने मित्र बुध की राशि मिथुन में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को धन व कुटुम्ब में वृद्धि होती है. सुख में थोड़ी कमी आती है. राज्य के क्षेत्र में प्रभाव व सम्मान में वृद्धि होती है. शनि दशम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. तृतीय शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है माता के सुख में कमी आती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखता है.

तृतीय भाव में बाधक शनि की स्थिति
तीसरे भाव में शनि का प्रभाव बाधक होकर अपना असर डालता है. पराक्रम एवं भाई-बहन के तृतीय भाव में अपने शत्रु चन्द्रमा की कर्क राशि में शनि के प्रभाव के कारण जातक एवं उसके भाई-बहनों में सामान्य शत्रुता रह सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से अपनी स्वराशि में नवम भाव को देखता है. तृतीय मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने के कारण संतान एवं शिक्षा के क्षेत्र में प्रभाव होती है. व्यय में वृद्धि का योग बनता है, बाहरी स्थानों के संबंध में भी लापरवाही रहेगी.

चतुर्थ भाव में बाधक शनि की स्थिति
चौथे भाव का प्रभाव माता, सुख और भूमि से शत्रुता देता है. भूमि और संपत्ति के सुख में कमी हो सकती है. शनि सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखता है, जो पिता, राज्य और व्यापार के क्षेत्र में सफलता और सम्मान दिलाता है. धर्म के पालन में कुछ उदासीनता रह सकती है. छठे भाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष में बहुत प्रभाव रहेगा और मामा पक्ष में तनाव रह सकता है. प्रथम भाव को देखने के कारण भौतिक स्थिति की इच्छा अधिक रहत है जो दिक्कत देती है.

पंचम भाव में बाधक शनि की स्थिति
पंचम भाव में शनि का प्रभाव संतान का सुख प्रभावित कर सकता है. शिक्षा एवं बुद्धि के स्थान पर स्थित शनि के प्रभाव से इसमें कमी का असर देखने को मिल सकता है. शनि अपनी तीसरी दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है जिसके कारण स्त्री एवं व्यापार के क्षेत्र में कुछ असंतोषजनक स्थिति रह सकती है. सप्तम शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखने से आय के साधनों में सामान्य असंतोष रहेगा तथा दशम मित्र दृष्टि से दूसरे भाव को देखने से धन एवं कुटुंब को कम बल मिलता है.

छठे भाव में बाधक शनि की स्थिति
छठे भाव में शत्रु एवं रोग भाव में उच्च राशिस्थ शनि के प्रभाव से बाधकेश अधिक विरोधियों को दे सकता है. व्यापार पक्ष में भी संघर्ष रह सकता है. पिता से कुछ दुश्मनी रह सकती है. धर्म का आचरण दिखावे में अधिक ढ़ल सकता है. शनि अष्टम भाव को तीसरी शत्रु दृष्टि से देखता है, अतः आयु के प्रभाव में कुछ चिंताएं भी रहती हैं. सप्तम नीच दृष्टि द्वादश भाव को देखने से व्यय सम्बन्धी परेशानी रह सकती है. बाहरी स्थानों से सम्बन्ध असंतोषजनक रह सकता है. दशम शत्रु दृष्टि तीसरे भाव को देखने से परेशानी भी होती है. भाई-बहनों से भी असंतुष्ट रहता है.

सप्तम भाव में बाधक शनि की स्थिति
सप्तम भाव में बाधकेश शनि के प्रभाव से व्यापार में उन्नति तथा सफलता प्राप्त करता है. व्यापार और परिवार को बेहतर बनाने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. शनि अपनी स्वराशि में तृतीय दृष्टि से नवम भाव को देखता है, अत: भाग्यबल को प्रभावित करता है. सप्तम मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से शरीर प्रभावित होता है. दशम शत्रु दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने से माता, भूमि और मकान आदि के सुख में कुछ कमी आ सकती है.

अष्टम भाव में बाधक शनि की स्थिति
अष्टम भाव में शनि बाधकेश होकर गुरु की धनु राशि में शनि का प्रभाव आयु भाव को कठिनाइयों के साथ बढ़ाता है. भाग्य और पिता के भाव में गिरावट आती है और धर्म का पालन भी वैसा नहीं होता जैसा होना चाहिए. पिता और मान-सम्मान के क्षेत्र में दोषपूर्ण सफलता मिलती है. भाग्य की उन्नति के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ता है तथा कठोर परिश्रम करना पड़ता है.

नवम भाव में बाधक शनि की स्थिति
नवम भाव में बाधकेश शनि अपनी स्वराशि मकर में होने से मिलेजुले असर देगा. धार्मिक स्थिति प्रभावित रह सकती है. पिता से पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. राज्य से यश, लाभ तथा मान-सम्मान प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है. शनि तृतीय शत्रु दृष्टि से एकादश भाव को देखता है. आय के साधनों से कुछ अप्रिय लाभ होता है. तृतीय भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से पुरुषार्थ प्रबल होता है. भाई-बहनों से असंतोषजनक तरीके से सहायता प्राप्त होती है. परिश्रम से उन्नति तथा लाभ पाता है, धनवान, यशस्वी, धार्मिक तथा सुखी होता है.

दशम भाव में बाधक शनि की स्थिति
दशम भाव में स्थिति का प्रभाव राज्य, पिता तथा व्यवसाय के दशम भाव में अपनी स्वराशि कुंभ में शनि के प्रभाव से पिता, व्यवसाय तथा राज्य से पर्याप्त लाभ, यश तथा प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है. धर्म-कर्म का पालन भी करता है. व्यय के मामले में कुछ परेशानी होती है तथा बाहरी स्थानों के संबंध में मुश्किलें होती है. चतुर्थ भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि होने से माता, भूमि, संपत्ति तथा घरेलू सुख से असंतोष रहता है.

एकादश भाव में बाधक शनि की स्थिति
एकादश भाव में अपने शत्रु गुरु की मीन राशि में स्थित शनि के प्रभाव से कुछ कठिनाइयों का सामना करने के बाद आय के रास्ते में सफलता मिलती है. असंतोष रहता है, एकादश भाव में क्रूर ग्रह विवादित बना सकते हैं. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से प्रथम भाव को देखने से मानसिक रुप में उथल पुथल बनी रह सकती है. सप्तम मित्र दृष्टि से पंचम भाव को देखने से शिक्षा, बुद्धि और संतान के पक्ष में सफलता मिलती है. दशम शत्रु दृष्टि से अष्टम भाव को देखने से दैनिक जीवन और पुरातत्व में कुछ कठिनाइयों का अनुभव होता है. बारहवें भाव में शनि की स्थिति

बारहवें भाव में बाधक शनि की स्थिति
व्यय एवं बाहरी संबंधों के बारहवें भाव में मेष राशि में स्थित नीच के शनि के प्रभाव से जातक को व्यय एवं बाहरी स्थानों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. राज्य, व्यापार, भाग्य एवं धर्म के क्षेत्र में भी कमी रहती है. शनि तृतीय मित्र दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है अतः धन एवं जन सामान्य सफलता प्राप्त करता है. छठे भाव को देखने से शत्रुओं पर प्रभाव पड़ता है तथा लड़ाई-झगड़ों से संबंधित मामलों में उलझ सकता है यश एवं मान-सम्मान में कमी रहती है.

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कुंभ संक्रांति : सूर्य का शनि के घर में प्रवेश और शुभता का प्रभाव

कुंभ संक्रांति का समय सूर्य देव के शनि की राशि कुंभ में प्रवेश का खास समय होता है. कुंभ संक्रांति के दौरान सुर्य देव की स्थिति उत्तरायण की ओर होती है जो विशेष प्रभाव देने वाली होती है.  कुंभ संक्रांति का समय 13 फरवरी 2025 में होगा. सूर्य की कुंभ संक्रांति का समय आध्यात्मिक कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है. कुंभ संक्रांति में सूर्य का प्रभाव बाहर आने और दुनिया से जुड़ने का समय होता है. 

कुंभ संक्रांति समय 2025

कुंभ संक्रांति समय 13 फरवरी 2025, को बृहस्पतिवार के दिन 01:34 बजे होगा तब सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करेगा.  

कुंभ संक्रांति पूजा विधि  

कुंभ संक्रांति समय में दिन बड़े होने लगते हैं और उत्तरायण लगभग छह महीने तक रहता है. कुंभ संक्रांति त्योहार से जुड़े रीति-रिवाज अलग-अलग हों, लेकिन इसे पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. कुंभ संक्रांति पूजा विधि में घर में पूजा करने वाला व्यक्ति संक्रांति के दिन सुबह-सुबह तेल से स्नान करते हैं. घर को रंगोली से सजाया जाता है, खासकर प्रवेश द्वार पर, और दरवाजों को फूलों और आम के पत्तों की माला से सजाया जाता है. पूजा कक्ष में, पूजा के लिए भगवान सूर्य की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है. कुम्भ संक्रांति सूर्योदय से शाम तक मनाया जाने वाला एक शुभ समय है. इस दौरान, पवित्र स्नान का एक विशेष अर्थ होता है. सबसे अधिक पुण्य उन लोगों को प्राप्त होता है जो गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के किनारे स्थित पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं. 

हिंदू धर्म में सूर्य को देवता ही नहीं बल्कि नौ ग्रहों का अधिपति भी माना जाता है. व्यक्ति पर सूर्य देव की कृपा हो तो उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुंडली में सूर्य अगर मजबूत हो तो व्यक्ति को जीवन में सुख, धन और यश की प्राप्ति होती है. कुंभ संक्रांति के समय सूर्य उपासना द्वारा सूर्य के शुभ फल मिलते हैं. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य को देखते हुए जल अर्पित करना चाहिए. 

सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल अर्पित करते हैं और सूर्य मंत्रों का जाप करते हैं  “ॐ सूर्याय नमः”  मंत्र का जाप करना शुभ होता है. ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है और आपके सभी काम बनने लगते हैं. इस दिन गुड़ के साथ तिल का दान किया जाता है कि यह शनि और सूर्य देव के नकारात्मक प्रभावों को खत्म करने में सहायक होता है. इस दिन लोग घर पर शनि शांति ग्रह पूजा भी करते हैं. अगर सूर्य आपकी कुंडली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है, तो दान देकर इसके प्रभाव को शुभ कर सकते हैं. 

कुंभ संक्रांति का सभी 12 राशियों पर प्रभाव 

जब सूर्य, कुंभ राशि में होता है तो यह जीवन में बदलाव शुरू करता है. सूर्य के कुंभ राशि में गोचर के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर असर दिखाई देता है. 

मेष राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य पांचवे भाव का स्वामी है जो एकादश भाव में अपना असर डालता है. ग्यारहवां भाव मित्रों और सामाजिक परिचितों, इच्छाओं और सपनों का प्रतिनिधित्व करता है.इस चरण के दौरान आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी. लाभ भाव में सूर्य का प्रभाव यात्रा के प्रबल संकेत देता है, जो तीर्थयात्रा के रूप में प्रकट हो सकता है. व्यावहारिक मुद्दों की अनुमति मिलने पर, आप खुद को विदेश यात्रा पर भी पा सकते हैं. कुल मिलाकर, यह एक प्रगतिशील अवधि होती है. 

वृषभ राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य चौथे भाव का स्वामी होता है और इस समय दशम भाव से गोचर करता है दशम भाव करियर, प्रसिद्धि और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.यह अवधि आपके लिए अनुकूल प्रतीत होती है, और इस चरण में आप अपने क्षितिज का विस्तार करने की संभावना रखते हैं. आप अपने उन गुणों को सामने ला सकते हैं जो लंबे समय से दबे हुए थे. सभी लंबित परियोजनाओं के उचित निष्कर्ष पर पहुंचने की संभावना है. आपको नौकरी या व्यवसाय के मोर्चे पर अपने ईमानदार प्रयासों के लिए पदोन्नति और मान्यता मिल सकती है. 

मिथुन राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य तीसरे भाव का स्वामी है जो नववें भाव से गोचर करते हुए धर्म, तीर्थयात्रा और अंतर्ज्ञान पर असर डालता है. मिथुन राशि के लोग इस दौरान पा सकते हैं कि उनकी संचार क्षमताओं में सुधार हुआ है. संबंध बनाने और नेटवर्किंग करने में बहुत अच्छे हो सकते हैं, जो सीखने और टीम वर्क के लिए नए दरवाजे खोल सकता है. 

कर्क राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य दूसरे भाव का स्वामी है जो आठवें भाव से गोचर करेगा. आठवां भाव विरासत, गुप्त विद्या और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य के गोचर का आपके करियर से जुड़े मामलों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है. गणेशजी को लगता है कि यह अवधि आपके करियर के लिए काफी घटनापूर्ण हो सकती है.कुछ क्षेत्रों में सुधार करने या कुछ गलतियों को सुधारने के संकेत मिल सकते हैं. यदि आप बदलाव से इनकार करते हैं या कुछ नया सीखने से बचते हैं तो इस अवधि के दौरान यह आपके लिए मुश्किल हो सकता है.

सिंह राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सिंह सूर्य पहले घर का स्वामी है जो सातवें घर में गोचर करेगा. सातवां घर साझेदारी, खुले दुश्मनों और मुकदमों का प्रतीक है. आप खुद को संकटमोचक की तरह महसूस कर सकते हैं क्योंकि संभावना है कि समस्याएं हर समय सामने आती रहती हैं. जैसे ही आप एक मुद्दे से निपटते हैं, दूसरी समस्या सामने आने की संभावना होती है.  चीजों की अनदेखी करने से कठोर परिणाम या दर्दनाक परिवर्तन प्रक्रिया हो सकती है.

कन्या राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य बारहवें भाव का स्वामी है जो छठे भाव से गोचर करेगा. छठा भाव स्वास्थ्य, दैनिक दिनचर्या और ऋण से जुड़ा हुआ है. आपको आर्थिक जोखिम लेने से बचना चाहिए क्योंकि इस अवधि के दौरान लाभ मिलने की संभावना नहीं है. इस बात की संभावना है कि आपका कोई करीबी आपको धोखा दे सकता है. धर्म के बारे में आपके विचार उदास होने की संभावना है

तुला राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य एकादश भाव का स्वामी है जो पांचवें भाव से गोचर करेगा. पंचम भाव को प्रेम संबंधों, रचनात्मक आत्म-अभिव्यक्ति और आनंद का भाव माना जाता है. यह गोचर आपको अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में औसत परिणाम देगा. कुंभ संक्रांति के दौरान, तुला राशि के लोग अपने सामाजिक नेटवर्क को बढ़ाने और नए परिचित बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. 

वृश्चिक राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य दशम भाव का स्वामी है जो चौथे भाव से गोचर करेगा. चौथा भाव घरेलू मामलों, परिवार और संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है.इस समय के दौरान, वृश्चिक राशि के लोग अन्य लोगों के साथ अपने भावनात्मक बंधन को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस कर सकते हैं.  इस अवधि के दौरान आपको भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. 

धनु राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य नवम भाव का स्वामी है जो तीसरे भाव से गोचर करेगा. तीसरा भाव मानसिक झुकाव, संचार और स्थानीय यात्रा को दर्शाता है. आपके सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है. काम पर संघर्ष का सामना करने की संभावना है या आपको स्थानांतरित होना पड़ सकता है. 

मकर राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य आठवें भाव का स्वामी है जो दूसरे भाव से गोचर करेगा. यह भाव व्यक्तिगत आय, संपत्ति और आत्म-मूल्य से जुड़ा हुआ है. इस चरण के दौरान परिवार और करीबी लोगों के साथ अधिक दिखाई देंगे. स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी, आप सिरदर्द, जोड़ों के दर्द या रक्त संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. मूड स्विंग के कारण आप चिड़चिड़े महसूस कर सकते हैं. 

कुंभ राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य सातवें भाव का स्वामी है जो पहले भाव से गोचर करेगा. पहला भाव स्वयं, सांसारिक दृष्टिकोण और आत्मा के उद्देश्य का भाव है. यह गोचर आपको मिश्रित परिणाम देने की संभावना है. इस चरण के दौरान आपका मुख्य ध्यान परिवार और वित्त को ठीक से व्यवस्थित करने पर होगा.

मीन राशि पर कुंभ संक्रांति प्रभाव 

सूर्य छठे भाव का स्वामी है जो बारहवें भाव से गोचर करेगा. बारहवां भाव अप्रत्याशित परेशानियों, खर्चों, पीड़ाओं का प्रतिनिधित्व करता है. इस अवधि के दौरान, आप पूरी तरह से खुद पर ध्यान केंद्रित रख सकते हैं. व्यस्तता का सामना करना पड़ सकता है और  जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हो सकते हैं. विदेश योग का लाभ भी मिल सकता है.

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