त्रिशांश कुण्डली तथा खवेदाँश कुण्डली | Trishansha Kundali and Khavedansha Kundali

त्रिशाँश कुण्डली या D-30 | Trishansha or D-30

 इस कुण्डली का अध्ययन जीवन में होने वाली बीमारी तथा दुर्घटनाओं के लिए किया जाता है. इस कुण्डली का अध्ययन जातक के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए किया जाता है. बीमारी तथा दुर्घटना किसी भी रुप में यह जातक के सामने आ सकते हैं. त्रिशाँश कुण्डली के बनाने में एक भिन्न तरीके का प्रयोग किया जाता है.  इस कुण्डली को बनाने में सम राशि तथा विषम राशियों की गणना अलग-अलग की जाती है. आइए सम राशि और विषम राशि का विभाजन करना सीखें. 

विषम राशि की गणना  | Counting of Odd Signs

(1) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 0 से 5 अंश के मध्य स्थित है तो वह ग्रह त्रिशाँश कुण्डली में “मेष” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(2) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 5 अंश से 10 अंश के मध्य स्थित हैं तो वह ग्रह त्रिशाँश कुण्डली में “कुम्भ” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(3) जन्म कुण्डली में यदि कोई ग्रह 10 अंश से 18 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “धनु” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(4) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 18 अंश से 25 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मिथुन” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(5) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 25 अंश से 30 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “तुला” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

सम राशि की गणना | Counting of an Even Signs

(1) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 0 से 5 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “वृष” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(2) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 5 अंश से 12 अंश के मध्य स्थित हैं तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “कन्या” राशि में स्थापित होगें. 

(3) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 12 अंश से 20 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मीन” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(4) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 20 अंश से 25 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मकर” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(5) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 25 अंश से 30 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “वृश्चिक” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

त्रिशाँश कुण्डली बनाने की विधि बाकी कुण्डलियों से कुछ भिन्न हैं. माना जन्म कुण्डली का कन्या लग्न है और लग्न 13 अंश 23 मिनट का है. लग्न सम राशि में है तो गणना के लिए सम राशि का अध्ययन करेंगें. सम राशि की गणना में लग्न के अंश 12 से 20 के मध्य आते हैं तो त्रिशाँश कुण्डली का मीन लग्न होगा. क्योंकि उपरोक्त नियम के अनुसार सम राशि में 12 से 20 अंश के मध्य आने वाले ग्रह अथवा लग्न मीन राशि में स्थापित होगें. 

खवेदांश कुण्डली अथवा चत्वारिशांश कुण्डली या D-40 | Khavedansha Kundali or Chaturvishansha Kundali or D-40

इस वर्ग कुण्डली को चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली से व्यक्ति विशेष के शुभ या अशुभ फलों का विश्लेषण किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंशों को 40 बराबर भागों में बाँटा जाता है. एक भाग 0 अंश 45 मिनट का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि विषम राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. ग्रह यदि सम राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से आरम्भ होगी. माना कोई ग्रह या लग्न मिथुन राशि में सोलहवें खवेदांश में स्थित है तो खवेदांश कुण्डली में ग्रह कन्या राशि में जाएगा. (clubdeportestolima)  

खवेदांश कुण्डली के 40 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :-

(1) 0 से 45 मिनट

(2) 45 मिनट से 1अंश 30 मिनट 

(3) 1अंश 30 मिनट से 2 अंश 15 मिनट 

(4) 2 अंश 15 मिनट से 3 अंश 

(5) 3 अंश से 3 अंश 45 मिनट 

(6) 3 अंश 45 मिनट से 4 अंश 30 मिनट 

(7) 4 अंश 30 मिनट से 5 अंश 15 मिनट 

(8) 5 अंश 15 मिनट से 6 अंश 

(9) 6 अंश से 6 अंश 45 मिनट 

(10) 6 अंश 45 मिनट से 7 अंश 30 मिनट 

(11) 7 अंश 30 मिनट से 8 अंश 15 मिनट 

(12) 8 अंश 15 मिनट से 9 अंश 

(13) 9 अंश से 9 अंश 45 मिनट 

(14) 9 अंश 45 मिनट से 10 अंश 30 मिनट 

(15) 10 अंश 30 मिनट से 11 अंश 15 मिनट 

(16) 11 अंश 15 मिनट से 12 अंश 

(17) 12 अंश से 12 अंश 45 मिनट 

(18) 12 अंश 45 मिनट से 13 अंश 30 मिनट 

(19) 13 अंश 30 मिनट से 14 अंश 15 मिनट 

(20) 14 अंश 15 मिनट से 15 अंश 

(21) 15 अंश से 15 अंश 45 मिनट 

(22) 15 अंश 45 मिनट से 16 अंश 30 मिनट 

(23) 16 अंश 30 मिनट से 17 अंश 15 मिनट 

(24) 17 अंश 15 मिनट से 18 अंश 

(25) 18 अंश से 18 अंश 45 मिनट 

(26) 18 अंश 45 मिनट से 19 अंश 30 मिनट 

(27) 19 अंश 30 मिनट से 20 अंश 15 मिनट 

(28) 20 अंश 15 मिनट से 21 अंश 

(29) 21 अंश से 21 अंश 45 मिनट 

(30) 21 अंश 45 मिनट से 22 अंश 30 मिनट 

(31) 22 अंश 30 मिनट से 23 अंश 15 मिनट 

(32) 23 अंश 15 मिनट से 24 अंश 

(33) 24 अंश से 24 अंश 45 मिनट 

(34) 24 अंश 45 मिनट से 25 अंश 30 मिनट 

(35) 25 अंश 30 मिनट से 26 अंश 15 मिनट 

(36) 26 अंश 15 मिनट से 27 अंश 

(37) 27 अंश से 27 अंश 45 मिनट 

(38) 27 अंश 45 मिनट से 28 अंश 30 मिनट 

(39) 28 अंश 30 मिनट से 29 अंश 15 मिनट 

(40) 29 अंश 15 मिनट से 30 अंश 

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डायोप्टेज उपरत्न | Dioptase Gemstone | Dioptase – Metaphysical Properties | Dioptase – Healing Crystal

यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न का भ्रम पैदा करता है. यह संरचना तथा बनावट के आधार पर बिलकुल पन्ना रत्न का आभास देता है. कोई दूसरा खनिज पन्ना उपरत्न के समान नहीं लगा है जबकि यह उपरत्न थोडा़ सा गहरा और पन्ना से कम पारदर्शी है. यह तांबे खनिज में उपलब्ध सिलिकेट है. डायोप्टेज शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्दों को जोड़कर हुई है. डाय(dia) और ओप्टोज(optos). डाय का अर्थ है – के द्वारा और ओप्टोज का अर्थ है – दिखाई देना. 

यह एक बहुत ही खूबसूरत उपरत्न है. डायोप्टेज उपरत्न के क्रिस्टल बहुत ही साफ होते हैं परन्तु कई बार अत्यधिक गहरे रंग के कारण यह साफ नहीं दिखता. अच्छे किस्म के डायोप्टेज बाजार में काफी मात्रा में उपलब्ध हैं. लेकिन इस उपरत्न के स्त्रोत कम हैं. यदि इस उपरत्न की माँग बढ़ती रही तो कुछ ही दिनों में भविष्य में इसकी आपूर्त्ति पूरी करना मुश्किल हो सकता है.

डायोप्टेज के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Dioptase

यह एक शक्तिशाली उपरत्न है, जो प्यार तथा करुणा को जगाने के लिए भावनात्मक तनाव को दूर करता है. इस उपरत्न की सुंदर हरी किरण कई स्तरों पर इसे दिल का उपरत्न बनाती है. यह दिल की भावनओं को सहारा देता है. यह भावुक दिल का समर्थन करता है. शारीरिक दिल को शक्तिशाली बनाता है. आध्यात्मिक दिल को जगाता है. दैनिक दिनचर्या में व्यक्ति को उसकी भूमिका समझने में सहायता करता है.

साथ ही यह व्यक्ति विशेष को अन्य व्यक्तियों की स्वयं के जीवन में भूमिका समझने में भी मदद करता है. यह व्यक्ति को उसके जीवन में घटित होने वाली दुखदायी घटनाओं से उबरने में मदद करता है. जातक को, दूसरों को क्षमा प्रदान करने के लिए उत्तेजित करता है. भावनात्मक घावों को भरने में सहायक होता है. यह उपरत्न सभी चक्रों की ऊर्जा को नियंत्रित करता है. इस उपरत्न को यदि आज्ञा चक्र के ऊपर रखें तो व्यक्ति विशेष की मानसिक दृष्टि का विकास होता है. आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है. यह अंदरूनी शक्ति में बढ़ोतरी करता है. इस उपरत्न के साथ ध्यान लगाने से यह अन्तदृष्टि को खोलने में मदद करता है.

यह संकीर्ण मानसिकता को दूर करता है. इस उपरत्न के उपयोग से दुख, दर्द, विश्वासघात आदि से पहुँचने वाली तकलीफें दूर होती हैं. मानसिक तनाव दूर होता है. प्यार को बढा़वा देता है. व्यक्ति को सुकून पहुंचाता है. सकारात्मक सोच को बनाए रखने में सहायक होता है. भावनाओं को अभिव्यक्त करने में व्यक्ति को सक्षम बनाता है. यह धारणकर्त्ता को वर्तमान क्षणों को जीने के लिए प्रोत्साहित करता है और पूर्व की यादों को बनाए रखता है.

डायोप्टेज के चिकित्सीय गुण | Healing Abilities Of Dioptase

जिन व्यक्तियों को अत्यधिक सिर दर्द अथवा जिन्हें माइग्रेन रहता है उनके लिए यह उपरत्न राम बाण का काम करेगा. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के शरीर में कोशिकाओं की कमी नहीं होने देता. रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक होता है. दिल की गतिविधियों को सुचारु रुप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह उपरत्न व्यसनों तथा तनाव पर काबू पाने के लिए जातक की सहायता करता है. इस उपरत्न को गहनों के रुप में इस्तेमाल करने पर भी यह खुशहाली लाता है. स्वास्थ्य ठीक रखता है. रचनात्मक कार्यों में जातक की दिलचस्पी जगाता है. केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र को सुचारु रुप से काम करने के लिए प्रेरित करता है.

यह उपरत्न वृद्ध व्यक्तियों के लिए लाभदायक है. वृद्धावस्था के कारण उनकी हार्मोन्स सुचारु रुप से काम करना बंद कर देते हैं, यह उपरत्न हार्मोन्स की गतिविधियों को सुचारु रुप से कार्य करने को बाधित करता है. यह शरीर के उत्तकों को शुद्ध रखता है और उन्हें सड़ने से बचाता है. इस उपरत्न को लाल एवेनच्यूरीन के साथ धारण करने से कैंसर से छुटकारा मिलता है. शरीर में गर्मी के कारण होने वाली बीमारियों को रोकता है. लीवर से जुडे़ विकारों को रोकता है.

यह उपरत्न दर्द तथा हर प्रकार की थकान से राहत पहुंचाता है. जहरीले पदार्थों से कष्ट होने से रोकता है. एड्स से रोकथाम करने में सहायक है. फेफड़ों में संक्रमण होने से बचाव करता है. मांस-पेशियों को मजबूत बनाए रखता है. वात-स्फीति से बचाव करता है. शरीर में रक्त संचार को सुचारु रुप से काम करने को प्रेरित करता है. महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को दृढ़ बनाता है और माहवारी पूर्व सिन्ड्रोम के लक्षणों को आसान बनाता है.  

कहाँ पाया जाता है | Where Is Dioptase Gemstone Found

यह उपरत्न इरान, रुस, उत्तरी अफ्रीका, अमेरीका, चिली, नामीबिया, पेरु, जायरे तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के एरीजोना क्षेत्र में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Dioptase

इस परत्न को व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं.

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ज्योतिष्करण्डक – ज्योतिष का इतिहास | Jyotishkarandka | Jyotisha History | Jyotishkarandka Texts Details

ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत वृ्त के लग्न नक्षत्र माने गये है. इस ग्रन्थ में राशि की अवस्थाओं के अनुसार नक्षत्रों का लग्न माना जाता है. इस ज्योतिष ग्रन्थ में व्यक्ति के जन्म नक्षत्र को लग्न मानकर फलित करने के नियम का प्रतिपादन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ विवरण | Jyotishkarandka  Texts Details 

यह ग्रन्थ प्राकृ्ति भाषा में लिखा गया है, जैन न्याय, ज्योतिष और दर्शन का ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ में माना जाता है, कुल 167 गाथाएं दी गई है. इस ग्रन्थ का उल्लेख कल्प, सूत्र, निरुक्त और व्याकरण नामक ग्रन्थों में मिलता है. सोलह संस्कारों में प्रयोग होने वाले मूहुर्तों का भी यहां वर्णन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ में कृ्तिका नक्षत्र, घनिष्ठा, भरणी, श्रवण, अभिजीत आदि नक्षत्रों में गणना का विश्लेषण किया गया है. यह ग्रन्थ विवाह संबन्धी नक्षत्रों में उत्तराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढा, श्रवण, घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्चिनी आदि नक्षत्र विवाह के नक्षत्र बताये गये है.  

यह ग्रन्थ ई. पू़ 300 से 400 का है.  इस समय के अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में राशियों की विशेषताओं का विस्तृ्त रुप में वर्णन किया गया है. इन ग्रन्थों में दिन-रात्रि,शुक्ल-कृ्ष्ण पक्ष, उत्तरायण, दक्षिणायन का कई स्थानों पर वर्णन किया ग्या है. संवत्सर, अयन, चैत्रादि, मास, दिवस, मुहूर्त, पुष्य, श्रवण, विशाखा आदि नक्षत्रों की व्याखा की गई है. 

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शत्रु संबंधी प्रश्न | Questions Related to Enemy

कई बार प्रश्नकर्त्ता को अपने शत्रुओं से भय रहता है. वह डरते हैं कि क्या शत्रु नुकसान पहुंचाएंगें? आजकल यह प्रश्न किसी भी सन्दर्भ में पूछा जा सकता है. यह प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रुओं के लिए भी पूछा जा सकता है. इस प्रश्न कुण्डली को बनाने में कुछ नियमों का ध्यान रखना होगा. अभी तक आप यह समझते आए हैं कि लग्न से प्रश्नकर्त्ता का विश्लेषण किया जाता है लेकिन इस कुण्डली को बनाने के लिए कुछ बातों का आप ध्यान रखें. जैसे यहाँ लग्न से शत्रु का आंकलन किया जाता है और सप्तम भाव से प्रश्नकर्त्ता का आंकलन किया जाता है. प्रश्नकर्त्ता को कई स्थानों स्थाई राजा से सम्बोधित किया जाएगा. आइए इसे समझें. 

  • लग्न से यायी राजा(Attacker) को देखेंगें और सप्तम भाव से स्थायी राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता को देखते हैं. 
  • प्रश्न के समय चर लग्न होने पर प्रश्नकर्त्ता के लिए खराब है. हमला करने वाले के लिए अच्छा है. 
  • शत्रु का आंकलन छठे भाव से किया जाएगा क्योंकि शत्रु प्रत्यक्ष नहीं है. (प्रत्यक्ष शत्रु का आंकलन सप्तम भाव से होता है.) 
  • कोई यह प्रश्न करे कि क्या शत्रु आएगा तो यह लग्न से देखा जाएगा. 
  • यदि 4,8,12 या 11 राशि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो शत्रु की पराजय होगी. 
  • मेष, वृष, सिंह, मकर राशि का पूर्वार्ध या धनु राशि का उत्तरार्ध चतुर्थ भाव में स्थित हो तो शत्रु मार्ग से वापिस चला जाएगा. 
  • यदि प्रश्न के समय चर लग्न हो और चन्द्रमा प्रश्न कुण्डली तथा प्रश्न की नवाँश कुण्डली दोनों में ही स्थिर राशि में होगा तो शत्रु हमला करेगा. 
  • यदि द्वि-स्वभाव लग्न है और चन्द्रमा स्थिर राशि में है तो हमला कमजोर होगा. 
  • चर लग्न तथा चन्द्रमा भी चर राशि में होगा तो शत्रु पलायन करेगा. 
  • स्थिर लग्न तथा चन्द्रमा चर राशि में होने से आक्रमण नहीं होगा. यदि आक्रमण होगा तो शत्रु की हार होगी. 
  • यदि स्थिर लग्न तथा द्वि-स्वभाव राशि में चन्द्रमा है तो हमला मामूली होगा. 
  • चर लग्न यदि शुभ प्रभाव में है, युति या दृष्टि संबंध किसी से भी, आक्रमणकारी के लिए अच्छा है. यदि चर लग्न अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है तो प्रश्नकर्त्ता के लिए अच्छा होगा. 
  • यदि स्थिर लग्न है और शुभ ग्रहों का प्रभाव है हमला ना करने पर ही आक्रमणकारि को लाभ रहेगा. हमला करने पर वह हानि प्राप्त करेगा. 
  • स्थिर लग्न अशुभ दृष्ट है तो अस्थाई राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता को नुकसान होगा. 
  • प्रथम, सप्तम या दशम भाव में शुभ ग्रह हैं तो स्थाई राजा की जीत होगी. 
  • यदि मंगल तथा शनि नवम भाव में स्थित है तो स्थाई राजा के लिए खराब है.  
  • बुध, शुक्र तथा बृहस्पति नवम भाव में स्थित है तो स्थाई राजा के लिए अच्छा है. 
  • प्रश्न कुण्डली में तीसरे भाव से आठवें भव तक शुभ ग्रह हैं तो स्थाई राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता की जीत होगी. 
  • यदि प्रश्न कुण्डली में नवम भाव से दूसरे भाव तक शुभ ग्रह हैं तो यायी राजा अर्थात आक्रमणकर्त्ता की जीत होगी. 
  • यदि नर राशि(3,6,7,11) का लग्न है और एकादश तथा द्वादश भावों में शुभ ग्रह है तो दोनों पक्षों में संधि हो जाएगी. 
  • प्रश्न के समय यदि द्वि-स्वभाव राशियों में पाप ग्रह है तो आपस में घोर विरोध होगा. यदि पाप ग्रह आमने-सामने हैं तो हिंसा जरूर होगी. 
  • नर राशि का लग्न है और केन्द्र में शुभ ग्रह है तो संधि हो जाएगी.  

क्या शत्रु आएगा? | Will Enemy Come

कई बार प्रश्नकर्त्ता का यह प्रश्न भी होता है कि क्या शत्रु आएगा? शत्रु के आने या ना आने के योग निम्नलिखित हैं. 

  • यदि चर लग्न है और चन्द्रमा स्थिर राशि में है तो शत्रु अवश्य आएगा. 
  • यदि स्थिर लग्न और चर चन्द्रमा है तो शत्रु नहीं आएगा. 
  • यदि द्वि-स्वभाव लग्न और चन्द्रमा चर राशि में है तो शत्रु आधे रास्ते से वापिस चला जाएगा.
  • चर लग्न तथा द्वि-स्वभाव चन्द्रमा है तो आक्रमण कमजोर होगा तथा आक्रमण करने वाले का नुकसान होगा. 
  • स्थिर लग्न तथा स्थिर चन्द्रमा है तो आक्रमणकारी केवल आक्रमण के बारे में सोचेगा लेकिन करेगा नहीं. 
  • चर लग्न है और लग्न में सूर्य, शनि, बुध तथा शुक्र स्थित हैं तो आक्रमण शीघ्र होगा. यदि बुध, शुक्र या शनि वक्री हों या इनमें से कोई एक ग्रह भी वक्री है तो आक्रमण नहीं होगा. 
  • यदि स्थिर लग्न है और बृहस्पति या शनि उसमें स्थित हैं या लग्न को देख रहें हैं तो कुछ नहीं होगा अर्थात हमला नहीं होगा. 
  • यदि प्रश्न कुण्डली में तीसरे भाव, पांचवें भाव तथा छठे भाव में पाप ग्रह हैं तो शत्रु अवश्य आएगा लेकिन हार-जीत का फैसला नहीं होगा. 
  • चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हैं तो शत्रु आएगा और जीत के जाएगा. 
  • चतुर्थ भाव में सूर्य तथा चन्द्रमा हैं तो शत्रु नहीं आएगा. 
  • चतुर्थ भाव में बृहस्पति, बुध तथा शुक्र है तो शत्रु शीघ्र आएगा. 
  • यदि 1,2,5 या 9 राशि चतुर्थ भाव में है तो शत्रु वापिस लौट जाएगा. 
  • यदि चर लग्न है और सूर्य तथा बृहस्पति लग्न में है तो शत्रु आएगा. 

  अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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5वां भाव-संतान भाव क्या है. | Prem Bhava Meaning | Fifth House in Horoscope | 5th House in Indian Astrology

पंचम भाव प्रेम भाव है, इसे शिक्षा का भाव भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव को पणफर और कोण भाव भी कहा जाता है. पंचम भाव सन्तान, बुद्धिमता, बुद्धिमानी, सट्टेबाजी, प्रसिद्धि, पदवी, बुद्धि, भावनाएं, पहला गर्भाशय, अचानक धन-सम्पति की प्राप्ति, अच्छे सिद्धान्त, पिता के धर्मपरायण कार्य, दूरदृ्ष्टि, स्मरणशक्ति, अन्दाजा लगाने की प्रवृ्ति, इश्क, प्रेम सम्बन्ध, सदाचार, इष्ट, देवी-देवता, भक्ति, भविष्य के जीवन का ज्ञान, प्रतिष्ठा. 

व सरकारी सहायता, मंत्री पद नौकरी, प्रकाशन, भार्या का लाभ, उत्सव सम्बन्धित अवसर, खेल, मनोरंजन, रोमांच,भार्या या साझेदार का भाग्य, प्रेमालाप, क्रीडा, नाटक, संगीत, नृ्त्य, गीत-नाटत, लाटरी, जुआ खेलना, दांव लगाना, ताश, घोडों की दौड, शेयर, शेयर बाजार, शब्द वर्ग, पहेली, प्रेम संबन्ध, प्रणय निवेदन, अपहरण, धार्मिक सोच, आध्यात्मिक, अभ्यास, बलात्कार, समाज, रोमांस, मंत्र सिद्धि, दैहिक सुख, कपडे, पेट, उपासना. 

पंचम भाव का कारक ग्रह कौन सा है. | What are the Karaka things of 5th Bhava   

पंचम भाव का कारक ग्रह गुरु है. गुरु इस भाव का कारक होकर संतान, ज्ञान, इष्ट, देवी-देवता, शिक्षा, राजसम्मान देता है. बुध कारक ग्रह होकर बुद्धिमत्ता, शेयर, लाटरी व बैठे बिठायें मिलने वाला धन. 

पंचम भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. |  What does the House of Education Explain.  

पंचम भाव विशेष रुप संतान प्राप्ति के लिए देखा जाता है.

पंचम भाव को सूक्ष्म रुप में क्या देखा जाता है. |  What does the House of Love accurately explains.

पंचम भाव को बुद्धिमता भाव का विश्लेषण करने के लिए देखा जाता है.  

पंचम भाव से कौन से सगे-सम्बन्धियों का विश्लेषण किया जा सकता है. | 5th House represents which  relationships. 

यह भाव व्यक्ति की प्रथम संतान, दादा, भार्या का बडा भाई या बहन का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है.  

पंचम भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | 5th House is the Karak House of which body parts. 

पंचम भाव से ह्र्दय के निचले भाग का दायां कोष, उदर, जिगर, गाल ब्लेडर, पीयूश ग्रन्थी, आन्तें, ह्रदय. 

द्रेष्कोणों के अनुसार दायां गाल, ह्रदय के निचले भाग का दायां कोष, और ह्रदय का बहिकर्ण का दायां भाग, दायां घुटना आदि अंगों का निरिक्षण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. 

पंचमेश अन्य भाव स्वामियों के साथ मिलकार कौन से परिवर्तन योग बनाता है. |  6th Lord Privartan Yoga Results 

पंचमेश और षष्टेश का भाव परिवर्तन होने पर व्यक्ति के स्वास्थय में कमी बनी रहती है. व्यक्ति अधिक बुद्धिमान नहीं होता, उसकी शिक्षा भी बाधित होती है. साथ ही वह एक अच्छा खिलाडी बन सकता है.  

पंचमेश और षष्ठेश भावेश परिवर्तन योग में हों, तो व्यक्ति के जीवन साथी की आयु में कमी होती है.  साथ ही यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को भी प्रभावित करता है. इस योग की अशुभता से व्यक्ति को अपनी संतान से वियोग का सामना भी करना पड सकता है.  

पंचमेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति की संतान के लिए शुभ योग नहीं है. यह योग व्यक्ति की संतान को मिलने वाले पैतृक सम्पति को प्रभावित करता है. व्यक्ति को अपने जीवन में स्वयं के द्वारा किए गये कार्यो से अप्रसन्नता होती है. साथ ही यह योग व्यक्ति के स्वास्थय को भी प्रभावित करता है. 

पंचमेश और नवमेश में परिवर्तन योग होने पर व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति धर्म और धार्मिक विश्वास वाला होता है. व्यक्ति का स्वास्थय अनुकुल रहता है. व्यक्ति धनवान होता है. ओर सभी प्रकार से समृ्द्धशाली होता है़ इसके साथ ही यह योग व्यक्ति को उच्च शिक्षा दिलाने में भी सहयोग करता है. 

पंचमेश और दशमेश आपस में परिवर्तन योग हो रहा हो तो व्यक्ति एक बौद्धिक व्यवसाय करता है. बच्चों के स्वास्थय सम्बधी चिन्ताओं में बढोतरी होती है. 

पंचमेश और एकादशेश भावेश परिवर्तन योग बना रहे हों, तो व्यक्ति को पंचम भाव से जुडे सभी कारकतत्वों कि प्राप्ति होती है, यह योग व्यक्ति को शिक्षा, धन, संतान और प्रेम विषयों में सफलता देता है. साथ ही इस योग में एकादश भावेश के शामिल होने से एकादश भाव भी बली हो जाता है,इसके फलस्वरुप व्यक्ति की आय में बढोतरी होती है.  

पंचमेश और द्वादश भाव के स्वामी में परिवर्तन योग बनने पर व्यक्ति को संतान के कारण चिन्ताएं होती है, यह योग संतान के जीवन के व्यस्थित होने में कठिनाईयां देता है. उसके बच्चों के मध्य सौहार्द नहीं पाया जाता, और बच्चे भी विदेश में कार्यरत होते है.  

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कृष्णमूर्ती पद्धति | Krishnamurti Paddhati | 1st House in Krishnamurti Paddhati | Pratham Bhav in Krishnamurti

कृष्णमूर्ती पद्धति की गणना नक्षत्रों पर आधारित होती है. प्रत्येक भाव के नक्षत्र तथा उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में परम्परागत प्रणली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव से बहुत सी बातों का विचार किया जाता है. लग्न में स्थित ग्रह और उन ग्रहों के साथ अन्य शुभ तथा अशुभ योगों का विचार किया जाता है. प्रथम भाव पर जिन ग्रहों की दृष्टि होती है उन सभी के आधार पर प्रथम भाव का विश्लेषण किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ती प्रणाली में सभी भावों तथा ग्रहों के नक्षत्र, उपनक्षत्र तथा उप-उपनक्षत्र स्वामी को अधिक महत्व दिया गया है. 

कृष्णमूर्ति पद्धति में प्रथम भाव | 1st House in Krishnamurti Paddhati

कृष्णमूर्ति पद्धति में हर भाव का अध्ययन करने के लिए भाव के उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन करना आवश्यक होता है. किसी भी भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों का कार्येश होता है तो जातक को उसी से संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. कृष्णमूर्ती पद्धति में प्रथम भाव को महत्वपूर्ण माना गया है. प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों का कार्येश होता है, जातक को उस भाव से संबंधित फलों की ओर आकर्षण तथा रुचि रहती है. इन सभी बातों का गहनता से अध्ययन करना अति आवश्यक है. इसके लिए सर्वप्रथम प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी कौन से भाव के उपनक्षत्र स्वामी में है, यह देखना जरूरी है. उस नक्षत्र के स्वामी से भी सूक्ष्म जानकारी हासिल हो सकती है. 

उपरोक्त बात का सार यह है कि प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिस भी ग्रह के नक्षत्र में है, उस ग्रह के कारकत्व से कुण्डली का प्रत्येक भाव किस प्रकार जुडा़ हुआ है, इसका अध्ययन किया जाता है और उसके आधार पर फल कथन किया जाता है. प्रथम भाव के उपनक्षत्र स्वामी का विभिन्न भावों का कार्येश होना, निम्नलिखित फलों की ओर जातक का रुझान पैदा करता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वित्तीय का कार्येश | Karyesh of 2nd House is Lord of Subnakshatra of 1st House

कृष्णमूर्ति पद्धति में प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी यदि द्वित्तीय भाव का कार्येश है तब जातक का रुझान धन की ओर अधिक होता है. अपने परिवार की ओर होता है. उसका रुझान खान-पान की ओर भी अत्यधिक होता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी तृतीय का कार्येश | Karyesh of 3rd House is Lord of Subnakshatra of 1st House

यदि प्रथम भाव का उपनक्षत्र तृतीय भाव का कार्येश है तो जातक अपनी बहन-भाईयों की ओर झुका रह सकता है. उसे यात्रा करना अधिक पसन्द होगा. जातक को सदा बदलाव करते रहना पसन्द होगा. उसे लेखन कार्य में रुचि रहेगी. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ का कार्येश | Karyesh of 4th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ भाव का कार्येश हो तब जातक का आकर्षण अपनी शिक्षा की ओर, अपने घर के सुख तथा अपनी माता की ओर होता है. वाहन की ओर भी वह आकर्षित रहता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी पंचम का कार्येश | Karyesh of 5th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी, पंचम भाव का कार्येश हो तो जातक का झुकाव संतान की ओर होता है और संतान के प्यार की ओर होता है. वह पूजा-पाठ में मग्न रहेगा. ध्यान लगाएगा. सट्टा बाजार में निवेश करने में रुचि अधिक रखेगा. उसे चित्रकला, नाटक तथा कला के अन्य क्षेत्रों में रुचि रहेगी.   

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे का कार्येश | Karyesh of 6th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे भाव का कार्येश है तब जातक को बीमारी हो सकती है. नौकरी में अधिक रुचि रखेगा. नौकरी का पाबंद होगा. व्यक्ति में सेवा भावना रहेगी. पालतू जानवरों को पालेगा. अपने ननिहाल पक्ष की ओर जातक का अधिक झुकाव रहेगा. वहाँ के सदस्यों के प्रति अधिक लगाव रखेगा. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी सप्तम का कार्येश | Karyesh of 7th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी सातवें भाव का कार्येश है तो पति-पत्नी में प्रेम अधिक रहेगा.  व्यक्ति की सोच कारोबारी रहेगी. साझेदारी के व्यवसायों में रुचि अधिक रहेगी. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम का कार्येश | Karyesh of 8th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम भाव का कार्येश है तो जातक कई बातें छुपाकर रखता है. विचारों में स्पष्टता नहीं होती. उलझी हुई प्रवृति का होता है. डरपोक होता है. कामचोर होता है. उसे किसी भी कार्य में रुचि नहीं रहती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम का कार्येश | Karyesh of 9th House is Lord of Subnakshatra of 1st House 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम भाव का कार्येश हो तो व्यक्ति को अपने पिता से अत्यधिक प्रेम होता है. अपने गुरुओं के प्रति निष्ठा रहती है. ईश्वर के प्रति श्रद्धा रहती है. जातक को यात्राएँ करना पसन्द होता है. जातक का आकर्षण अध्यात्म, पुराण, धर्म अथवा न्यायसंस्था आदि की ओर होता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी दशम का कार्येश | Karyesh of 10th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी दशम भाव का कार्येश हो तब जातक अधिकार पसन्द होता है. वह सम्मान से जीना पसन्द करता है. अभिमानी होता है. वह हर बात को कारोबारी नजरिए से देखता है. उसे राजनीति में रुचि रहती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी एकादश का कार्येश | Karyesh of 11th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी एकादश भाव अर्थात लाभ भाव का कार्येश हो तो जातक के कई मित्र होते हैं. वह उन व्यवसायों में निवेश करना अधिक पसन्द करता है जिनमें मुनाफा अधिक मिलता है. जातक शीघ्रता से सफलता हासिल करने के तरीके अपनाता है. जातक की प्रवृति सदा खुश रहने की होती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वादश का कार्येश | Karyesh of 12th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी व्यय भाव अर्थात द्वादश भाव का उपनक्षत्र स्वामी है तो उसे बहुत देर तक सोना पसन्द होता है. आलसी होता है. उसे अकेला रहना पसन्द होता है. वह घूमना -फिरना पसन्द करता है. विदेश जाना जातक का आकर्षण केन्द्र बना होता है. उसकी सोच बैरागियों जैसी होती है. 

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रोहिणी नक्षत्र की पहचान और महत्व

27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी और चंद्रमा के संबंध और आकर्षण के प्रति बहुत सी कथाएं भी प्रचलित रही हैं. पौराणिक ग्रंथों में रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा के संबंध में अनेकों बातें मिलती हैं. रोहिणी नक्षत्र के विषय में ग्रीक लोग इसे पाई के नाम से बुलाते हैं. इसके साथ ही रोहिणी को बलराम की माता के नाम से भी जोड़ा जाता है. रोहिणी को चंद्रमा की पत्नी के रुप में जाना गया है.

इस नक्षत्र में पाँच ताराएँ होती है. इन पाँच ताराओं की आकृति बैलगाडी़ या रथ के पहिए के समान दिखाई देती है. इसी कारण प्राचीन वैदिक साहित्य में रोहिणी योग के समय को संहिता ग्रंथों में रोहिणी शकट भेदन के नाम से जाना गया है. दक्षिण भारतीय मान्यता अनुसार रोहिणी नक्षत्र को वट वृक्ष के आकार का भी कहा गया है.

रोहिणी नक्षत्र की स्थिति

यह नक्षत्र भचक्र के 27 नक्षत्रों में से एक है. नक्षत्रों में इसका चौथा स्थान है. यह नक्षत्र तुला राशि में 10 अंश से 23 अंश 20 मिनट तक रहता है. रोहिणी नक्षत्र को चन्द्रमा का सबसे अधिक प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र का स्वामी ब्रह्मा अर्थात प्रजापति को माना गया है. यह भचक्र के चमकीले तारों में से एक तारा समूह है. रोहिणी नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह एक बैलगाडी़ है जिसे दो बैल खींच रहें हैं. यह बैलगाडी़ उर्वरकता का प्रतीक है.

रोहिणी नक्षत्र जातक की विशेषताएँ

इस नक्षत्र का जातक अच्छे संस्कारों से युक्त होता है. सभ्य तथा सुसंस्कृत होता है. व्यक्ति की बडी़-बडी़ आँखें होती है. यह जातक सभी प्रकार की परिस्थितियों से बाहर निकलने में कमयाब रहते हैं. यह अपने विचारों को आसानी से दूसरों के साथ बाँटने में संकोच करते हैं, लेकिन नए विचारों से भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते और नए विचारों को जीवन में अपनाते भी हैं. जातक सत्यवादी होता है. सदाचारी होता है. व्यक्ति काम, क्रोध, मद तथा लोभ आदि को नियंत्रित रखने में कामयाब होता है. समय के महत्व को समझता है. इसलिए कम समय में अधिक बात को कहने में विश्वास रखता है.

रोहिणी नक्षत्र के जातक के विचारों में स्थिरता होती है. व्यक्ति तेजस्वी होता है. इन जातकों को प्रेम में अधिक रुचि होती है. यह सांसारिक भोग-विलास को अधिक भोगते हैं. यह बोलने में कोमल तथा नम्र होते हैं. काम में कुशलता होती है. चरित्रवान होते हैं. यह व्यक्ति शब्दों के अच्छे खिलाडी़ होते हैं. यह बातों ही बातों में सामने वाले व्यक्ति के मन की बात को पढ़ लेते हैं. इन्हें कृषि संबंधी या बागवानी से संबंधित कार्यों में रुचि होती है.

सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं. यह अपने वचन के पक्के होते हैं. मेहनती तथा लगनशील होते हैं. यह जीवन में धन जुटाने में कामयाब होते हैं. यदि रोहिणी नक्षत्र पीड़ित है तब इसके गुणों में कमी हो जाती है.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे पुरुष जातक का प्रभाव

पुरुष जातक का शरीर पतला होगा. आकर्षण से भरी हुई आंखें बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. कई बार ग्रहों की चंद्रमा के साथ स्थित और दृष्टि प्रभाव के असर के कारण व्यक्ति स्थूल शरीर का या छोटे कद का भी हो सकता है. कंधे अच्छे चौड़े और बलिष्ठ बुजाएं होती हैं. अगर जन्म कुण्डली में नक्षत्र स्वामी पर किसी पाप ग्रह प्रभाव का असर न हो तो ये जातक के लिए बहुत ही सकारात्मक हो सकती है.

पुरुष जातक कोमल स्वभाव का और प्रेमी हृदय वाला होता है. जातक अपने प्यार और परिवार दोनों के साथ रहने की इच्छा रखता है, अर्थात उसे परिवार से अलग रहना पसंद नही होता है. वह चाहता है की अपने साथी के साथ-साथ ही उसे अपने लोगों का साथ भी मिल सके. कई मामलों में चिड़चिडा़हट से भी भर जाता है. वैसे गुस्सा नही करता है पर क्रोध आने पर जल्दी शांत भी नहीं होता है.

नकारात्मक रुप में ये जिद्दी होते हैं, अपनी सोच को आगे रखने वाला है. अपनी बात को हमेशा आगे रखने की कोशिश भी करता है. कई बार दूसरों की बुराइयों को ढूढने में ऎसे लगे रहते हैं की स्वयं ही गलत काम कर बैठते हैं. मन की बात अधिक मानते हैं. जिनसे प्रेम करते हैं उनके लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले होते हैं और जिससे नफरत करते हैं उसको नष्ट कर देने की इच्छा रखते हैं.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिला जातिका का प्रभाव

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिला जातिका सुंदर और प्रभावशाली होती है. मध्यम कद की हो सकती है और सुंदर नैन नक्श वाली होती है. अपने खान पान और पहनावे को लेकर काफी सजग होती हैं. महिला पक्ष में भी एक प्रकार का द्वेष देखने को मिल सकता है. अधिक उत्तेजित भी हो सकती हैं. अपने प्रेमी के प्रति समर्पण का भाव रखने वाली होगी.

काम के लिहाज से महिलाएं अधिक मेहनती न हों पर अपने मनोबल से ये कठिन परिस्थितियों को झेलने की हिम्मत भी रखती हैं. परिवारिक जीवन सामान्य रहेगा. अपने जीवन साथी की ओर से प्रेम मिलेगा. कई बार शनि की दृष्टि चंद्रमा पर होने के कारण जातिका में शक्क करने की प्रवृत्ति भी देखने को मिल सकती है.

रोहिणी नक्षत्र कैरियर

इस नक्षत्र के व्यक्ति व्यापार करना पसन्द करते हैं. कुशल व्यापारी होते हैं. सरकार या सरकार से संबंधित बडे़ ओहदों पर कार्य करते हैं. योग साधना से जुडे़ काम करते है. योग साधना केन्द्र की स्थापना से धन कमाते है. ड्राइवर या गाडी़ चलाने का व्यवसाय इस नक्षत्र के अधीन आता है. ट्राँसपोर्टर, पशुओं से संबंधित कार्य, कृषि कार्य करने वाले रोहिणी नक्षत्र के अंदर आते हैं. फैशन इण्डस्ट्री के लिए कपडे़ बनाने के कार्य रोहिणी नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं.

इस नक्षत्र का महत्वपूर्ण कर्य सौंदर्य से जुड़े कामों में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक फैशन से संबंधित काम पर भी अच्छी पकड़ बना सकता है. जीवन के 37 वें वर्ष के बाद सकारात्मक और अच्छे परिणाम मिलते हैं और 60 के बाद भी जातक को जीवन में शुभता देखने को मिलती है.

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सेलेस्टाईट उपरत्न अथवा सेलेस्टाईन उपरत्न | Celestite Gemstone Or Celestine Gemstone Meaning

यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं तो कई इसे लैटिन शब्द आकाश से भी जोड़ते हैं. इस उपरत्न के नीले रंग के कारण इसका संबंध आकाश या स्वर्ग से माना जाता है. यह उपरत्न आंतरिक जागरुकता के लिए उपयुक्त माना जाता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को अत्यधिक हल्केपन का अहसास कराता है. ऎसा लगता है कि वह बादलों के बीच उड़ रहा हो.

उपरत्न अवसादी चट्टानों में क्रिस्टल के रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न के नमूने बलुआ पत्थर या चूना पत्थर में पाए जाते हैं. इस उपरत्न की बाजारों में माँग भी अधिक है. अवसादी चट्टानों में यह उपरत्न सारणीबद्ध तरीके से अथवा बारीक दानेदार क्रिस्टल के रुप में या तंतुमय शिराओं के रुप में पाया जाता है. सर्वप्रथम सेलेस्टाईट की खोज 1791 में फ्रैंक्सटाउन के नजदीक पेंसिल्वेनिया में हुई थी. एक जर्मन खनिज विज्ञानी ए.जी. वार्नर ने की थी.

यह उपरत्न बैराईट उपरत्न का भ्रम पैदा करता है जबकि दोनों एकदम भिन्न हैं. यदि इस उपरत्न को लेकर भ्रम रहते हैं तो दोनों को गर्म करने पर भ्रम दूर हो जाते हैं क्योंकि बैराईट गर्म करने पर पीलेपन की आभा लिए हरा दिखाई देता है और सेलेस्टाईट उपरत्न लाल रंग का दिखाई पड़ता है.

सेलेस्टाईट – आध्यात्मिक तथा अदभुत गुण | Celestite Crystal – Metaphysical And Spiritual Properties

यह उपरत्न धारक के भीतर एक प्रभावी संचार माध्यम का विकास करता है. व्यक्ति के अंदर देवदूत के समान गूढ़ विचारों का संचार करता है. यह उपरत्न धारक की अलौकिक क्षमताओं के साथ मानसिक क्षमताओं का भी विकास करता है. बुद्धि को तेज बनाता है. अनुशासन का पालन करन सिखाता है. यह उपरत्न शयन कक्ष के लिए उपयुक्त रत्न है. ध्यान कक्ष अथवा ध्यान करने वाले स्थान पर इस उपरत्न को रखने से यह वातावरण को शुद्ध रखने का कार्य करता है. यह आध्यात्मिक तथा  भौतिक दोनों ही रुप से अच्छा उपरत्न है. इसकी सकारात्मक तरँगें चारों ओर फैलती हैं. 

यह उपरत्न सौम्य होते भी बहुत शक्तिशाली है. यह धारक के मन को शांत रखता है और चिन्ताओं को दूर करता है. मस्तिष्क को स्पष्टता प्रदान करने करता है. मानसिक क्षमताओं को बढा़ने का काम करता है. यह सौम्य होकर शक्तिशाली आंतरिक शक्ति का विकास करता है. धारक को जटिल विचारों के विश्लेषण में सहायता प्रदान करता है. विचारों की जटिलता को समाप्त करता है. यह रचनात्मक कार्यों के लिए बढा़वा देता है. जो रचनात्मक होते भी शांत होते हैं उनमें कला के प्रति आकर्षण जगाने का कार्य करता है. यह ध्यान तथा चिन्तन करने के लिए बहुत ही लाभकारी उपरत्न है.  

मानसिक क्रिया-कलापों के लिए अच्छा उपरत्न है. व्यक्ति विशेष की ऊर्जा को संतुलित रखता है. यह संतुलन बनाए रखने के लिए उपयुक्त उपरत्न है. इसमें स्वाभाविक ज्ञान समाहित होता है और यह ईश्वरीय लोकों से परिचित कराता है. सूक्ष्म यात्रा कराता है. सपनों को हकीकत में बदलने के लिए सहायता करता है. धारक की भावनाओं को शुद्ध करता है. जब मन में अत्यधिक क्रोध भर जाता है तब यह उपरत्न उस क्रोध को शांत रखने में मदद करता है. यह समाज में रहने वाले प्राणियों के मध्य अच्छे संबंध बनाने में सहायक होता है. 

पारस्परिक संबंध स्थापित करने के लिए यह एक उपयुक्त उपरत्न है. पारस्परिक संबंधों को यह उपरत्न बढा़वा देता है. जब यह संबंध बिगड़ने लगते हैं तब यह उपरत्न एक अच्छी दिशा प्रदान करता है.  यह दुखी तथा उदास मन की भावनाओं को नियंत्रित रखता है. यह आत्मघाती भावनाओं को मन में आने से रोकता है. जीने के लिए धारक को प्रेरित करता है. तनाव के समय एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाए रखने में सहायक होता है. यह कार्य में सफलता प्रदन करने की शक्ति प्रदान करता है. किसी अभियान को सफल बनाने में यह उपरत्न सहायता प्रदान करता है.

इस उपरत्न को यदि आज्ञा चक्र के मध्य रखा जाए तो यह आध्यात्मिक जागरुकता को उच्च बनाने में सहायक सिद्ध होता है. यह विशुद्ध चक्र को भी नियंत्रित रखने में सहायक होता है. यह इन चक्रों को बढा़वा देता है. इस उपरत्न को गले के मध्य धारण करने से संचार माध्यम को बेहतर बनाया जा सकता है. इस उपरत्न की देखभाल भी अति आवश्यक है. इसे सूर्य की रोशनी में रखने से इसका रंग फीका पड़ जाता है. इसे तेज धूप से बचाना चाहिए. यह आसानी से टूटने वाला उपरत्न है. इसे सावधानी से धारण करना चाहिए.

सेलेस्टाईट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Celestite

चिकित्सा पद्धति के लिए यह चमत्कारिक उपरत्न है. आँखों से संबंधित विकारों को नियंत्रित करता है. श्रवण शक्ति को सही रखने में मदद करता है. पाचन तंत्र से संबंधित समस्याओं को होने से रोकता है. धारणकर्त्ता के अंदर विषाक्त पदार्थों को समाप्त करता है. 

सेलेस्टाईट के रंग | Colors Of Celestite Or Celestine Gemstone

यह उपरत्न मुख्य रुप से हल्के नीले रंग में और रँगहीन अवस्था में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह हरे, लाल, सफेद, ग्रे, पीले, संतरी तथा लाल-भूरे रँग में भी पाया जाता है. यह पारदर्शी तथा पारभासी दोनों ही अवस्थाओं में मिलता है. इसमें शीशे तथा मोम दोनों प्रकार की चमक पाई जाती है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Celestite Found

यह उपरत्न मुख्य रुप से ओहियो, मिशीगन, मैडागास्कर, सिसिली, जर्मनी, मेक्सिको, स्पेन, टर्की और ईरान में पाया जाता है. 

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रोग, भाव और शरीर अंग | Disease, Expressions and Body Parts

रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ  इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग किए जाएं तो वे सूचनाएं आगे शोध के लिए प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है. इस अध्याय में उन विशेष मूल नियमों को बताया गया है जो रोग का स्थान निश्चित करने में सहायक हों तथा अगले अध्याय में दिए गए नियमों के साथ रोग की प्रकृति निश्चित करने में भी निर्णायक हो.

कालपुरुष विचार | Kaalpurush Views

कालपुरुष शब्द का प्रयोग प्राय: ज्योतिष में होता है. समस्त भचक्र को आवृत करते हुए एक अलौकिक मानव की कल्पना की गई है. जिसे कालपुरुष कहा गया है. भचक्र की विभिन्न राशियां जिस अंग पर पड़ती है. वह राशि उसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है.

वामन पुराण में भचक्र की विभिन्न राशियां भगवान शिव के शरीर को किस प्रकार इंगित करती है, उसके विषय में बताया गया है. भगवान शिव का शरीर वहां कालपुरुष का प्रतिनिधित्व करता है. (theclickreader.com) अधिकांश ज्योतिष ग्रन्थ मुख्य रूप से थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ वामन पुराण में बताए गए वर्णन से सहमत है.

कालपुरुष के शारीरिक अंग |Body parts of Kaalpurush

मेष – सिर

वृषभ – चेहरा

मिथुन – कंधे, गर्दन तथा स्तनमध्य

कर्क – ह्रदय

सिंह – पेट

कन्या – नाभि क्षेत्र (कमर और आंते)

तुला – निचला उदर

वृश्चिक – बाहरी जननांग

धनु – जांघे

मकर – दोनों घुटने

कुम्भ – टांगें

मीन- पैर

यह देखा जा सकता है कि थोड़ा विवाद इन मुख्य भागों में है. मुख्य अंतर यह है कि वराहमिहिर के अनुसार ह्रदय का क्षेत्र कालपुरुष के चौथे भाव पर पड़ता है जो कर्क राशि है, जबकि वामनपुराण के अनुसार यह कालपुरुष के पांचवें भाव पर पड़ता है, यहाँ सिंह राशि है. वराहमिहिर का राशि विभाग आसान है.

चिकित्सा जगत में भावों के कारक तत्व | Factors and Elements of Emotions in the Medical World

चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा. यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर का दायां भाग कुंडली के प्रथम से सप्तम भाव तक तथा बायां भाग सप्तम से प्रथम भाव तक के भावों से प्रदर्शित होता है.

प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.

द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.

तृतीय भाव : कान (दायाँ कान),  गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.

चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.

पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.

छठा भाव : छोटी आंत,  आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.

सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश,  मूत्रनली.

अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.

नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.

दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.

एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.

द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक  व्याधियां, अस्पताल में भर्ती  होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.

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जानिए क्यों है इतना महत्वपूर्ण माघ माह और इसके महव के बारे में

हिन्दूओं का एक अन्य पवित्र माह माघ मास है, इस माह का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. इस माह के दौरान हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा, पाठ, जप, तप, दान इत्यादि की महत्ता को विस्तार रुप से बताया गया है. इस माह में आने वाले पर्वों का और व्रतों का महत्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनो ही रुपों से महत्वपूर्ण है. इस माह में ठंड की समाप्ति का आगमन देखने को मिलता है. इसी माह के दौरान सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर होते हैं और गर्माहट का आगमन शुरु होने लगता है. दिन लम्बे और रातें छोटी होने लगती हैं.

माघ माह विशेष

माघ माह में विशेष रुप से नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है. इस माह में पूर्ण श्रद्वा और विश्वास के साथ नदियों में स्नान करने पर व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते है. यह माना जाता है, कि इस माह का प्रत्येक दिन किसी उत्सव से कम महत्व नहीं रखता है.

इस माह में आने वाली अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. उस दिन तीर्थ स्थलों पर दर्शन और तर्पण करने से कल्याण की प्राप्ति होती है. इस माह में स्नान-दान की परम्परा के साथ तिल, गुड़ के दान और सेवन का महत्व कहा गया है. इसके अतिरिक्त इस माह में किए गए विवाह भी विशेष रुप से शुभ और सफल रहते है.

माघ माह में जन्मा जातक

माघ मास में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्वान होता है. ऎसे व्यक्ति को धन-संपति की कोई कमी नहीं होती है. साहसी और जोखिम के कार्य करने में उसे महारत प्राप्त होती है. उसकी भाषा में कटुता होने की संभावना बन रह सकती है. अपने इस स्वभाव के कारण उसके संबन्ध अपने आस-पास के लोगों से मधुर नहीं रहते है. इसके अतिरिक्त वह कामी भी होता है. प्रतियोगियों को परास्त करने का गुण उसे आता है.

माघ माह में जन्मा जातक भाग्य का सहयोग पाता है. जातक अपनी मेहनत और भाग्य के सहयोग से आगे बढ़ता है. इस माह में जन्मे जातक कठोर संघर्ष भी करते हैं और जीवन में अच्छा स्थान स्थान पाने की लालसा भी रखते हैं. अपनी सोच और विश्वास के साथ आगे बढ़ता है. अपने करियर को लेकर एक अलग तरह का जोश रहता है. जातक में नेतृत्व क्षमता भी बहुत अच्छी होती है. जातक संस्कारी और परिवार की नियमों को मानने वाला भी होता है.

इस माह में जन्मा जातक कुछ जिद्दी भी हो सकता है. वह अपनी मनमानी करने वाला हो सकता है. जातक दूसरों को अपनी बातों में इस प्रकार घुमा सकता है कि दूसरे उसकी बात को मानने पर भी मजबूर हो जाते हैं. सभी के साथ घुल मिल कर रहने की आदत भी होती है. अकेला पसंद अच्छा नहीं लगता है वह चाहता है की दोस्तों के साथ या किसी न किसी के साथ सदैव रहे.

सूर्य के उत्तरायण होने का समय

माघ माह का आरंभ सूर्य के उत्तरायण के साथ आरंभ हो जाता है. सूर्य का उत्तरायण होना धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. भारत में इस समय को मकर संक्रान्ति के पर्व रुप में, पोंगल, गुडी़ पड़वा और न जाने अलग अलग नामों के रुप में किसी न किसी तरह से मनाया ही जाता है. ये समय धार्मिक रुप से स्नान दान, पूजा-पाठ के साथ संपन्न होता है. इस दिन दान की जाने वाली वस्तुओ में गुड, तिल, गेंहूं इत्यादि है. इससे शरीर को गर्मी प्राप्त होती है और रोगों से लड़ने की क्षमता भी शरीर में विकसित होती है.

माघ माह के पर्व

षटतिला एकादशी

माघ माह के दौरान दो एकादशियों का आगमन होता है जिसमें से एक षटतिला एकादशी होती है. इस दिन व्रत का विधान होता है. एकादशी का व्रत मोक्ष की प्राप्ति देने वाले माने गए हैं. इसी कारण यह बहुत अधिक शुभ कहे जाते हैं. ये दो एकादशी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के दौरान आती है. माघ माह के दोनों पक्षों की एकादशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है.

माघ मास अमावस्या

माघ मास की अमावस्या को विशेष रुप से महत्व रखती है इस अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस अमावस्या के दिन मौन रहने का महत्व बताया गया है. यह मौन हमे आत्मिक रुप से मजबूती देने वाला होता है. हमारे पापों का शमन करने वाला होता है. इस मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी जहां तीन नदियां गंगा,यमुना और सरस्वती का संगम बताया गया है उस स्थान पर मौन व्रत करने से अनेकों पाप समाप्त होते हैं. इस दिन स्नान दान और पितरों के नाम से भी दान किया जाता है.

बसन्त पंचमी

इस माघ माह में बसंत पंचमी का त्यौहार भी आता है. यह पर्व मौसम में होने वाले बदलाव और उसके सुंदर रुप के दर्शन का समय भी होता है. इस समय के दौरान खेतों में फसल भी पकने लगती है और उस्की सुंदरता से सारा माहौल खुशी और रंग से भर जाता है. यह त्यौहार माघ माह, के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है और बसंत के आगमन के उल्लास को भी दिखाता है. प्रकृति की खूबसूरत छटा हमें इस समय देखने को मिलती है.

सरस्वती जयन्ती

इस माह में विद्या का आशिर्वाद देने वाली देवी मा सरस्वती की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है. सरस्वती पूजा प्म्चमी तिथि के दिन की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और सरस्वती पूजन होता है. विद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं में सरस्वती पूजन पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये जाते है. माता सरस्वती विधा और संगीत की देवी है. इस दिन इनका पूजन करने से माता प्रसन्न होती है. (rentalry.com) कला एवं रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े लोग भी इस दिन विशेष उत्सव का आयोजन करते हैं.

श्री गणेशचतुर्थी व्रत

माघ माह के समय गणेश चतुर्थी का त्यौहार भी मनाया जाता है. इस समय पर गणेश चतुर्थी का त्यौहार संकष्ट चतुर्थी नाम से मनाया जाता है. इस चतुर्थी का व्रत रखने से जीवन में मौजूद संकटों का नाश होता है. इस चतुर्थी के दिन प्रात:समय स्नान के पश्चात भगवान गणेश की पूजा करती हुई पूरे दिन व्रत किया जाता है. शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं और गणेश जी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना से व्रत संपन्न होता है. ये व्रत संतान प्राप्ति, सौभाग्य प्राप्ति एवं सुख की कामना हेतु किया जाता है.

माघ का महिना गंगा स्नान के विशेष महत्व से भी जुड़ा हुआ है. इसी के साथ पवित्र स्थलों में स्नान-दान, पूजा-पाठ करने का कई गुना फल इस माह के दौरान प्राप्त होता है. यह माह धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों के आरंभ होने का सुत्रपात भी करता है.

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