ज्येष्ठ माह का महत्व और इसकी महिमा के बारे में जानिए विस्तार से

हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह है. हिन्दी माह में हर माह की एक विशेषता रही है. सभी की कोई न कोई खासियत होती ही है. जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में ये सभी माह कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते ही हैं. मौसम में होने वाले जबरदस्त बदलाव को भी इन सभी 12 माह के दौरान देखा जा सकता है.

ज्येष्ठ माह को सबसे गर्म माह की श्रेणी में रखा जाता है. इसे सामान्य बोल-चाल की भाषा में जेठ का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि ये सबसे गर्म महीना होता है. इसी माह में सबसे अधिक ऎसी वस्तुओं के दान की बात कही जाती है जो ठंडक और छाया देने वाली होती हैं जैसे कि – छाता, पंखा, पानी इत्यादि वस्तुओं का दान देने की जरुरत होती ही है.

ज्येष्ठ माह में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और पूजन करने का विधि-विधान है. इस माह में आने वाले पर्वों में गंगा दशहरा और इस माह में आने वाली ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी और निर्जला एकादशी प्रमुख पर्व है. गंगा नदी का एक अन्य नाम ज्येष्ठा भी है. गंगा को गुणों के आधार पर सभी नदियों में सबसे उच्च स्थान दिया गया है.

ज्येष्ठ माह के व्रत व त्यौहार

ज्येष्ठ मास के त्यौहारों में गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी, वटसावित्री व्रत, ज्येष्ठ पूर्णिमा, योगिनी एकादशी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं. इन त्यौहारों का महत्व ही हमारे जीवन में एक नई चेतना और विकास देने वाला होता है. इस माह के दौरान तीर्थ स्थलों पर जाकर नदियों में स्नान करने और लोगों को ठंडा पानी इत्यादि बांटा जाता है. जग-जगह पर लोगों को पानी पिलाने के लिए मटकों इत्यादि की व्यवस्था भी की जाती है.

इस माह के दौरान मौसम का प्रकोप इतना अधिक प्रचंड रहता है कि मनुष्य तो क्या जीव जन्तु भी इस समय में गर्मी की अधिकता से व्याकुल हो जाते हैं. ऎसे में इस तपन को शांत करने के लिए ही पशु-पक्षिओं के लिए पानी इत्यादि की व्यवस्था की जाती है. लोग मीठा पानी इत्यादि चीजों को सभी में बांटते हैं.

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा पृथ्वी पर पवित्र नदी गंगा के आगमन होने के उपलक्ष पर मनाया जाता है. इस त्यौहार के समय गंगा पूजन और व्रत इत्यादि करने का विशेष महत्व रहा है. साथ ही गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. इस के साथ ही इस दिन जप – तप – दान का भी बहुत महत्व माना गया है. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है.

गंगा नदी को भारत में एक बहुत ही पवित्र नदी के रुप में पूजा जाता है. जन्म से मृत्य तक के सभी कर्मों में गंगा की महत्ता सभी के समक्ष उल्लेखनीय भी रही है. जब माँ गंगा धरती पर आती हैं तो वो दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी का था इसलिए गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से मनाया जाता है.

निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ मास का एक अन्य महत्वपूर्ण त्यौहार निर्जला एकादशी है. यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन संपन्न होता है. निर्जला एकादशी के दिन व्रत एवं पूजा पाठ करने का नियम भी रहता है. इस दिन देश भर में लोगों को, राहगीरों को मीठा पानी पिलाया जाता है जिसे कुछ स्थानों पर छबील भी कहा जाता है. इस एकादशी के दिन भी तीर्थ स्थलों पर स्नान करने का विशेष महत्व रहा है. इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा कि जाती है. इस दिन किए गए जप-तप और दान का कई गुना फल मिलता है.

वटसावित्री व्रत

ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रुप में मनाया जाता है. ये व्रत सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है. वट के वृक्ष को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. इस वृक्ष पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास माना गया है. इसी के समक्ष सावित्री और सत्यवान की कथा का श्रवण किया जाता है और पूजन, व्रत कथा श्रवण आदि के पश्चात व्रत संपन्न होता है.

ज्येष्ठ पूर्णिमा

ज्येष्ठ माह कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. इस दिन प्रात:काल समय पर पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करने के पश्चात पूजा-पाठ किया जाता है. ब्राह्मण को भोजन कराना, गरीबों को दान करना और सत्यनारायण कथा श्रवण करना मुख्य कार्य होते हैं ये सभी इस पूर्णिमा के दिन किए जाने पर व्यक्ति के शुभ कर्मों में वृद्धि होती है. पौराणिक मान्यताओं अनुसार भी यह माह बहुत गर्म माह होता है ऐसे में इस माह में पूर्णिमा के दिन जल का दान अत्यंत उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. इस दान के अलावा गरीबों को खाना खिलाने और वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान देने का भी अक्षय फल मिलता है. ज्येष्ठ पूर्णमा के दिन संत कबीर का भी जन्म दिवस मनाया जाता है.

ज्येष्ठ मास व्यक्ति स्वभाव | Jyeshta Month : Persons Behavior

ज्येष्ठ माह में जन्मे जातक के विषय में ज्योतिष ग्रंथों में बहुत सी बातें कहीं गई हैं. जैसे कि जिस व्यक्ति का जन्म ज्येष्ठ मास में हुआ हो, उस व्यक्ति को परदेश में रहना पडता है. उसे विदेश से लाभ मिल सकता है. अपने घर से दूर रहने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. ऎसा व्यक्ति शुद्ध विचार युक्त होता है. उसके मन में किसी के लिए किसी प्रकार का कोई बैर-भाव नहीं रहता है. इस योग से युक्त व्यक्ति धन से समृद्ध होता है. उसकी आयु दीर्घ होती है. बुद्धि को उतम कार्यों में लगाने की प्रवृति उसमें होती है.

जातक में गंभीरता होती है. वह क्रोध और कुछ जिद अधिक करने वाला हो सकता है. मेहनत से भाग्य का निर्माण करने वाला और जीवन के संघर्षों के प्रति जागरुक भी होता है. वह कोशिश करता है की अपने प्रयासों से दूसरों के लिए और खुद के लिए कुछ बेहतर कर सके.

विशेष:

इस माह के विषय में धर्म ग्रंथों में भी विशेष रुप से बहुत कुछ लिखा गया है. भारतीय सभयता के हर चीज के पिछे कोई न कोई महत्वपूर्ण बात छुपी हुई है और जो भी नियम या जो कुछ भी बताया गया है उसके पिछ एक मजबूत तर्क का आधार भी मौजूद रहता है. ऎसे में इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है और इस कारण पानी के महत्व को इस माह से जोड़ा गया है. इसी समय पर प्यासों को पानी पिलाने की और सेवा भाव की भावना पर बल दिया गया है.

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सप्तांश कुण्डली तथा नवाँश कुण्डली | Saptamansha Kundali and Navmansha Kundali

सप्तमांश कुण्डली या D-7 | Saptamansha Kundali or D-7

इस कुण्डली से संतान का अध्ययन किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के सात बराबर भाग किए जाते हैं. जो ग्रह विषम राशि में होगें उनकी गिनती वहीं से आरम्भ होगी जिस राशि में वह ग्रह स्थित होगें. जो ग्रह जन्म कुण्डली में सम राशि में स्थित होगें उनकी गिनती स्थित राशि से, सातवीं राशि से होगी. माना कोई ग्रह सम राशि, वृष में तीसरे सप्ताँश में स्थित है. अब ग्रह की गणना वृष से सातवीं राशि यानि वृश्चिक से गिनती आरम्भ होगी. वृश्चिक राशि से तीसरा सप्ताँश मकर राशि है. इस प्रकार ग्रह सप्ताँश कुण्डली में मकर राशि में लिखा जाएगा.  

30 अंश के सात बराबर भाग निम्न प्रकार से हैं :- 

0 अंश से 4अंश 17 मिनट 8 सैकण्ड का पहला सप्ताँश होगा. 

4अंश 17मिनट 8 सैकण्ड से 8 अंश 34 मिनट 16 सैकण्ड तक दूसरा सप्ताँश होगा. 

8 अंश 34 मिनट 16 सैकण्ड से 12 अंश 51 मिनट 24 सैकण्ड तक तीसरा सप्ताँश होगा. 

12 अंश 51 मिनट 24 सैकण्ड से 17 अंश 08 मिनट 32 सैकण्ड तक चतुर्थ सप्ताँश होगा. 

17 अंश 08 मिनट 32 सैकण्ड से 21 अंश 25 मिनट 40 सैकण्ड तक पांचवाँ सप्ताँश होगा. 

21 अंश 25 मिनट 40 सैकण्ड से 25 अंश 42 मिनट 48 सैकण्ड तक छठा सप्ताँश होगा. 

25 अंश 42 मिनट 48 सैकण्ड से 30 अंश तक सातवाँ सप्ताँश होगा. 

आप ग्रह को देखें कि वह जन्म कुण्डली में कितने अंशों पर स्थित है और कौन से सप्ताँश में आता है 

नवाँश कुण्डली या D-9 | Navamansha Kundali or D-9

लग्न कुण्डली के बाद यह अत्यधिक महत्वपूर्ण कुण्डली है. इससे वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है. जीवन के सभी क्षेत्रों का अध्ययन भी किया जाता है. इस कुण्डली का निर्माण करते समय सबसे पहले तो कुछ बातों पर ध्यान देना होगा. सभी बारह राशियों को तीन भागों में बाँटा गया है. 

1,5,9 राशियाँ अग्नि तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में इन राशियों में स्थित है तो गिनती का आरम्भ मेष राशि से होगा. माना कोई ग्रह धनु राशि में है तो मेष राशि से गिनती आरम्भ होगी. 

2,6,10 राशियाँ पृथ्वी तत्व राशियाँ हैं. कोई ग्रह जन्म कुण्डली में जब पृथ्वी तत्व राशि में होगा तो गिनती का आरम्भ मकर राशि से होगा. माना कोई ग्रह वृष राशि में स्थित है तो मकर राशि से गिनती आरम्भ करेंगें. 

3, 7, 11 राशियाँ वायु तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में वायु तत्व राशि में होगा तो गिनती का आरम्भ तुला राशि से होगा. कोई ग्रह कुम्भ राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से होगी. 

4, 8, 12 राशियाँ जल तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में जल तत्व राशि में स्थित है तो गिनती का आरम्भ कर्क राशि से होगा. जैसे कोई ग्रह वृश्चिक में है तो कर्क राशि से गिनती आरम्भ होगी. 

नवाँश कुण्डली को बनाने के लिए सबसे पहले 30 अंश को नौ बराबर भागों में बाँटा जाएगा. एक भाग 3 अंश 20 मिनट का होगा. 30 अंश के नौ बराबर भाग निम्न प्रकार से है :- 

* 0 से 3 अंश 20 मिनट तक पहला नवाँश 

* 3 अंश 20 मिनट से 6 अंश 40 मिनट तक दूसरा नवाँश 

* 6 अंश 40 मिनट से 10 अंश तक तीसरा नवाँश 

* 10 अंश से 13 अंश 20 मिनट तक चतुर्थ नवाँश 

* 13 अंश 20 मिनट से 16 अंश 40 मिनट तक पांचवाँ  नवाँश 

* 16 अंश 40 मिनट से 20 अंश तक छठा नवाँश 

* 20 अंश से 23 अंश 20 मिनट तक सातवाँ नवाँश 

* 23 अंश 20 मिनट से 26 अंश 40 मिनट तक आठवाँ नवाँश 

* 26 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक नौवाँ नवाँश होगा. 

नवाँश कुण्डली बनाने की विधि | Method of preparing a Navamansha Kundali

आइए अब नवाँश कुण्डली बनाना सीखें. सर्वप्रथम आप जन्म कुण्डली में लग्न के अंश तथा ग्रहों के अंश को नोट कर लें. माना लग्न में कर्क राशि है और लग्न 4 अंश 15 मिनट का है. अब यह देखें कि कर्क लग्न किस तत्व में आता है. कर्क राशि जलतत्व राशि है और लग्न के अंश दूसरे नवाँश में आते हैं. जल तत्व राशियों की गणना कर्क राशि से होती है. कर्क राशि से दो राशि आगे तक गिनती करने पर सिंह राशि आती है. (temismarketing.com) इस प्रकार नवाँश कुण्डली में सिंह नवाँश उदय होता है. 

अब नवाँश कुण्डली में ग्रहों की स्थापना करें. चन्द्रमा कुण्डली में धनु राशि में 15 अंश पर स्थित है. धनु राशि अग्नि तत्व राशि है. इसलिए गिनती का आरम्भ मेष राशि से होगा. चन्द्रमा धनु राशि में 15 अंश पर स्थित होने पर वह छठे नवाँश में आता है. अब जन्म कुण्डली में मेष राशि से छठी राशि देखेगें कि कौन सी है. मेष से छठी राशि कन्या राशि आती है. नवाँश कुण्डली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित होगा. इस प्रकार आप सभी ग्रहों की स्थापना नवाँश कुण्डली में करें. 

आइए एक बार फिर से नवाँश को दोहरा लें. नवाँश कुण्डली बनाने के लिए आपको ग्रहों को देखना है कि वह कौन से तत्व में है. जिस तत्व में ग्रह स्थित हैं उस तत्व की दी राशि से गणना आरम्भ करेंगें. जैसे अग्नि तत्व राशि की गणना मेष से शुरु होगी. पृथ्वी तत्व की गणना मकर राशि से आरम्भ होगी. वायु तत्व की गणना तुला से आरम्भ होगी. जल तत्व राशियों में स्थित ग्रहों की गणना कर्क राशि से शुरु होगी. 

माना कोई ग्रह मेष राशि में प्रथम नवाँश में स्थित है तो वह नवाँश में मेष राशि में ही जाएगा. कोई ग्रह मकर के पहले नवाँश में स्थित है तो वह भी मकर राशि में स्थित होगा. तुला राशि में पहले नवाँश में ग्रह स्थित है तो वह नवाँश कुण्डली में तुला राशि में ही जाएगा. कोई ग्रह कर्क राशि के पहले नवाँश में स्थित है तो वह नवाँश कुण्डली में कर्क राशि में स्थित होगा.  

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पंचांग गणना | Parts of Panchang

पंचांग शब्द का अर्थ है – पाँच अंग. तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है. इन सभी की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. आपको पंचाँग के पांचों अंगों की गणना की विधि सरल तथा आसान तरीके से समझाई जाएगी. 

(1) नक्षत्र | Nakshatra

व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो, उसे जन्म नक्षत्र कहते हैं. किसी कार्य के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होगा, वह उस समय का नक्षत्र होगा. नक्षत्र की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. पिछले अध्यायों में आपने नक्षत्र के बारे में पढा़ था. कुल 27 नक्षत्र होते हैं और अभिजीत को गिनने पर कुल 28 नक्षत्र होते हैं. गणना की विधि :- जन्म के समय अथवा किसी कार्य के समय चन्द्रमा की स्थिति देखें और नोट करें कि चन्द्रमा का भोगाँश क्या है. 

माना चन्द्रमा का भोगाँश है : 9 राशि 6 अंश 05 मिनट. इसे अब अपनी सुविधानुसार मिनटों में बदल लेगें. मिनटों में बदलने पर 16565मिनट आता है. इस संख्या को 800 मिनट से भाग देंगें. भाग देने पर 20.70625 संख्या प्राप्त होती है. इसका अर्थ यह हुआ कि 20 नक्षत्र समाप्त हो चुके हैं और 21वाँ नक्षत्र अभी चल रहा है. 21वाँ नक्षत्र उत्तराषाढा़ है. इसी प्रकार आप अन्य नक्षत्रों के बारे में गणना कर सकते हैं. दशमलव से पहले की संख्या को बीते हुए नक्षत्र मानेंगें. यदि दशमलव से पहले 5 आता है तो इसका अर्थ है कि पाँच नक्षत्र बीत चुके हैं और छठा नक्षत्र चल रहा है. 

(2) वार | Day

एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक वार होता है. सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार तक वार कहलाते हैं. इनकी संख्या 7 होती है. 

(3) तिथि | Tithi

तिथि की गणना भी गणितीय विधि पर आधारित है. एक तिथि सूर्य और चन्द्रमा के मध्य का कोण है. 12 अंश के कोण को एक तिथि कहा जाता है. सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों ही गति करते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य से दूर जाता है तब बढ़ता हुआ दिखाई देता है. सूर्य से दूर जाने वाले समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य के नजदीक आता है तब घटता हुआ दिखाई देता है और इसे कृष्ण पक्ष कहते हैं. तिथि की गणना का एक नियम बन जाता है जो इस प्रकार है :- 

तिथि = चन्द्र का भोगाँश – सूर्य का भोगाँश 

      12 अंश  

उपरोक्त फार्मूले के आधार पर तिथि की गणना की जाती है. जिस दिन की तिथि ज्ञात करनी है उस दिन के चन्द्रमा तथा सूर्य के भोगाँश को नोट कर लें. अब चन्द्रमा के भोगाँश में से सूर्य के भोगाँश को घटा दें. जो संख्या प्राप्त होगी उसे 12 से भाग दें. भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होगी वह वाँछित दिन की तिथि होगी. यदि प्राप्त संख्या 1 से 15 दिन के मध्य है तब यह कृष्ण पक्ष की तिथियाँ होगीं. यदि प्राप्त संख्या 15 से अधिक हैं तब यह शुक्ल पक्ष की तिथियाँ होंगी. माना उपरोक्त विधि से तिथि की गणना करने पर आपको 17 संख्या प्राप्त हुई. इसका अर्थ है कि शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है. 

पाठकों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उत्तर भारत में कृष्ण पक्ष से नए माह का आरम्भ माना जाता है. 

(4) योग | Yoga

पंचाँग का चौथा अंग योग है. इसकी गणना का आधार सूर्य तथा चन्द्र है. योग को ज्ञात करने के लिए गणितीय विधि से गणना की जाती है. कुल 27 प्रकार के योग होते हैं. यह योग अपने नाम के अनुसार फल देने वाले होते हैं. योग की गणना के लिए चन्द्र तथा सूर्य के  भोगाँश का जोड़ करेंगें और फिर 13 अंश 20 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग देगें. आप 13 अंश 20 मिनट को मिनटों में बदल सकते हैं. मिनटों में बदलने पर 800 मिनट प्राप्त होते हैं. 800 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग दे. 

एक बार फिर समझें कि जिस दिन का योग आपको ज्ञात करना है उस दिन के चन्द्र तथा सूर्य के भोगाँश को जमा करें. जो संख्या प्राप्त होती है उसे 800 मिनट अथवा 13 अंश 20 मिनट से भाग दें. भाग देने पर अब जो संख्या प्राप्त होती है वह उस दिन का योग होगा. माना आपको 15 . 56 संख्या प्राप्त होती है तो इसका अर्थ हुआ कि 15 योग बीत चुके हैं और 16वाँ योग अभी चल रहा है. 16वाँ योग सिद्धि योग है. 

27 योगों के नाम निम्नलिखित हैं :- 

(1) विष्कुंभ 

(2) प्रीति 

(3) आयुष्मान 

(4) सौभाग्य 

(5) शोभन 

(6) अतिगण्ड 

(7) सुकर्मा 

(8) धृति 

(9) शूल 

(10) गण्ड 

(11) वृद्धि 

(12) ध्रुव 

(13) व्याघात 

(14) हर्षण 

(15) वज्र

(16) सिद्धि 

(17) व्यतीपात 

(18) वरीयान 

(19) परिघ 

(20) शिव 

(21) सिद्धा

(22) साध्य 

(23) शुभ 

(24) शुक्ल 

(25) ब्रह्म 

(26) इन्द्र अथवा ऎन्द्र 

(27) वैधृति 

(5) करण |Karana

यह पंचाँग का पांचवाँ अंग है. करण की गणना भी गणितीय आधार पर की जाती है. करण तिथि का आधा भाग होता है. एक दिन में दो करण आते हैं. करणों की कुल संख्या 11 होती है. जिनमें से चार करण स्थाई होते हैं. यह स्थाई करण महीने में एक बार आते हैं. 7 करणों की पुनरावृत्ति बार-बार होती रहती है. एक करण माह में आठ बार आता है. 

स्थाई करण | Sthir Karana 

इनकी संख्या 4 होती है. यह चारों करण अशुभ होते हैं. 

(1) शकुनि 

(2) चतुष्पद 

(3) नाग 

(4) किन्तुघ्न 

चर करण | Char Karana 

इनकी संख्या 7 होती है. इसमें भद्रा का कुछ भाग अशुभ माना जाता है. 

(1) बव 

(2) बालव 

(3) कौलव 

(4) तैतिल 

(5) गर 

(6) वणिज 

(7) विष्टि या भद्रा

करणों की table बनानी है.                                                           

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भद्र योग का महत्व

किसी जातक की जन्म कुण्डली में बनने वाला पंच महापुरुष योग एक बेहद ही प्रभावशाली और शुभ फलदायक योग माना गया है. इस योग के प्रभाव स्वरुप जातक को जीवन में सफलता और संघर्षों से आगे निकल कर जीवन में अपने लिए एक बेहतर स्थान भी पाता है.

जन्म कुण्डली में बनने वाले शुभ योग जातक के जीवन में संघर्ष से उसे बचाने का काम करते हैं. किसी भी जातक के जीवन में मौजूद संघर्ष उसके कर्मों का ही प्रभाव होते हैं ऎसे में जब कुण्डली में कुछ अच्छे शुभ योग बनते हैं तो उम्मीद की जा सकती है कि व्यक्ति अपने जीवन में सफलता भी पा सकता है.

कैसे बनता है पंच महा पुरुष योग

पंच महा पुरुष योग में – बुध, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह आते हैं. इन पांच ग्रहों से योग के बनने के कारण ही इसे पंच महापुरुष योग कहा जाता है. यह योग कुण्डली में तब बनता है जब ये पांच ग्रह जन्म कुण्डली में केन्द्र भावों में अपनी-अपनी राशि में स्थित हों या अपनी उच्च राशि में बैठे हुए हों. तब जातक की कुण्डली में पंचमहापुरुष योग बनता है.

बुध ग्रह से बनने वाला योग भद्र नामक पंच महा पुरुष योग कहलाता है. बुध से बनने वाले इस योग में जातक बौद्धिक योग्यता और अच्छी ज्ञान शक्ति को पाता है. पांच महापुरुष योगों में से एक योग है भद्र योग, यह योग बहुत ही शुभ योगों की श्रेणी में आता है तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है.

भद्र योग कब बनता है

जन्म कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है. साथ ही बुध का केन्द्र में होना भी आवश्यक होता है. कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है. यहां केन्द्र से मतलब होगा कि जन्म कुण्डली का पहला भाव, चौथा भाव, सातवां भाव, दसवां भाव जिसमें बुध अपनी ही स्वराशि में अगर बैठा हुआ है तो कुण्डली में भद्र नामक योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुछ ग्रंथों के अनुसार चंद्र कुडली से भी इसी प्रकार अगर बुध 1,4,7,10 भाव में अपनी राशि का बैठा हुआ हो तो भद्र नामक योग बनता है. भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है.

भद्र योग फल

भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है. उसकी चाल हाथी के समान कही गई है. वक्षस्थल पुष्ट होता है. गोलाकारक सुडौल मजबूत बाहें होती हैं, कामी या कहें रसिक प्रवृति का हो सकता है, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है. सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा से युक्त होता है.

इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल, बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते हैं. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृकुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान-सम्मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है.

भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है. अपने लोगों को भी क्षमा करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है. जातक हंसमुख और लोगों के साथ मेल-जोल करने वाला होता है. उसका मन कोमल होता है और प्रेम की इच्छा उसके मन में सदैव बनी रहती है. व्यक्ति कोमल और सौम्य काम करने की इच्छा अधिक रखता है. मेहनत से अधिक वो अपनी बुद्धि से काम करना अधिक पसंद करता है.

भद्र योग का करियर के क्षेत्र में प्रभाव

भद्र योग का विशेष गुण व्यक्ति में कौशलता को उभारने का होता है. व्यक्ति अपनी भाषा शैली से दूसरों पर प्रभाव जमाने में सफल होता है. जातक काफी प्रभावशाली और अपनी जीवन शैली जीने में उन्मुक्तता चाहने वाला होता है. व्यक्ति अपने चातुर्य से काम निकलवाने में भी माहिर होता है. अपने जीवन में अपने इसी कौशल को अपना कर जिंदगी को जीता है. जातक एक प्रतिभाशाली शिक्षक हो सकता है या एक प्रभावशाली कथा वाचक भी बन सकता है.

मुख्य रुप से जातक संचार जैसे क्षेत्र में अपनी पैठ जमा सकता है. उसकी काबिलियत को इस स्थान पर ही पहचाना जा सकता है और वह निखर कर सामने आती भी है. एक प्रकार के सलाहकार के रुप में अथवा लेखन और बोलने में योग्य जैसे की पत्रकारिता के क्षेत्र में संवाद कर्मी के रुप में कानून के क्षेत्र में जज या वकालत के कार्य में आगे बढ़ सकता है. भद्र योग में जन्मा जातक व्यवहार कुशल और लोगों के मध्य प्रसिद्ध भी होता.

भद्र योग कब देता है शुभ फल

जन्म कुण्डली में कोई योग कितना शुभ होगा और किस तरह से फल देने में सक्षम होगा, ये जन्म कुण्डली की मजबूती पर भी निर्भर करता है. जन्म कुण्डली में अगर योग शुभता से युक्त हो और ग्रह भी मजबूत हो और किसी भी प्रकार के पाप अथवा खराब प्रभाव से मुक्त हो तो योग जातक को अपना शुभ फल प्रभावशाली रुप से देने वाला होता है.

दूसरी ओर अगर ग्रह किसी पाप प्रभाव में हो कमजोर हो तो ऎसी स्थिति में योग अपना शुभ फल देने में सक्षम होता है. इसलिए भद्र योग में जातक को इसी प्रभाव के कारण अच्छे फल मिलते हैं. बुध की कमजोर स्थिति के कारण भद्र योग अपने खराब न प्रभाव देने वाल बन सकता है. व्यक्ति की वाणी प्रभावित हो सकती है और वह छल-कपट से आगे बढ़ने वाला होता है.

कुण्डली में बनने वाला कोई भी योग अपनी शुभता को तब बेहतर रुप से पा सकता है. जब कुण्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी बन रहे हों तो ऎसे में कुण्डली मजबूत बन जाती है और व्यक्ति को सकारात्मक फल भी मिलते हैं. इसी के साथ अगर जो योग कुण्डली में बन रहा हो उस योग के ग्रह की दशा मिल रही हो तो उस योग का फल भी जातक को अवश्य मिलता है.

कई बार कुण्डली में योग तो बनते हैं लेकिन ग्रह की दशा समय पर नहीं मिल पाने पर जातक उस योग का प्रभाव उचित रुप से भोग भी नही पाता है. इसलिए ग्रहों की दशा का प्रभाव भी जातक को योग की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है.

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केमद्रुम योग फल | Kemadruma Yoga Result | How is Kemadruma Yoga Formed | Kemadruma Bhanga Yoga

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है, कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है, और ऎसे में व्यक्ति में चिन्ता करने की प्रवृ्ति अधिक होती है.  ठिक इसी प्रकार के फल केमद्रुम योग देता है. 

केमद्रुम योग कैसे बनता है | How is Kemadruma Yoga Formed

केमद्रुम योग कुण्डली में तब बनता है. जब सूर्य के सिवाय चन्द्रमा के साथ कोई ग्रह न हों, न ही उसके बारहवें या द्वितीय भाव में कोई ग्रह हो तो ऎसी स्थिति में केमन्द्रुम योग बनता है.  एक अन्य मत के अनुसार जब लग्न से केन्द्र में कोई ग्रह न हो तो तब भी केमन्द्रुम योग बनता है. इस योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति अशिक्षित, या कम पढा लिखा, निर्धन व मूर्ख होता है. लोगों से उसे घृ्णा प्राप्त होती है.  

यह भी कहा जाता है, कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष से सुखरहित होता है. वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है. परिजनों को सुख देने में प्रयास रत रहता है. व्यर्थ बात करने वाला होता है. उसके स्वभाव में नीचता का भाव हो सकता है. 

Kemadruma Bhanga Yoga in D9 Chart

जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र से चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केन्द्रुम योग भंग माना जाता है.  योग भंग होने पर केमन्द्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.  

कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे अगर कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है. परन्तु अगर चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है. और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.  

नवांश योगों से- केमद्रुम भंग योग | Kemadruma Bhanga Yoga in D9 Chart 

कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है.  

चन्द्र शुभ ग्रह राशि में- केमद्रुम भंग योग | Kemadruma Bhanga Yoga 

केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है. तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है.  

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मूंगा रत्न के फायदे और नुकसान

मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में सहयोग करता है. 

मूंगा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Moonga Stone

मूंगा रत्न जब व्यक्ति अपने लग्न की जांच कराने के बाद धारण करता है, तो यह धारणकर्ता को शुभ और अनुकुल फल देता है. इस स्थिति में यह व्यक्ति को व्यर्थ के विवादों से बचाता है, क्रोध में कमी करता है, और पहल करने का गुण देता है. परन्तु अगर यह धारण करने वाले व्यक्ति के लग्न के लिये शुभ नहीं हो तो इसे धारण करने के फल इसके विपरीत प्राप्त हो सकते है.   

मेष लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल लग्नेश और अष्टमेष होते है. इस लग्न के लिये लग्नेश होने के कारण मंगल शुभ है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों का मूंगा रत्न धारण करना शुभ है. इसे धारण करने से इन्हें, स्वास्थय, मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.  

वृ्षभ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न में मंगल 7वे ओर 12 वें भाव के स्वामी है. जो शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को मंगल रत्न मूंगा नहीं धारण करना चाहिए. विशेष स्थिति में इसे मंगल महादशा में धारण किया जा सकता है.  

मिथुन लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Gemini Lagna

इस लग्न के लिये मंगल की स्थिति 6वें व 11वें भाव के स्वामी के रुप में होती है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को केवल मंगल महादशा में ही धारण करे, तो इससे मिलने वाले फल व्यक्ति के लिये शुभ रहते है. 

कर्क लग्न-मूंगा रत्न | Moonga effect on Cancer Lagna

कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र और मंगल दोनों मित्र है. इस लग्न में मंगल 5वें व 10वें भाव के स्वामी है. ऎसे में कर्क लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न धारण करना शुभ फल देता है. इन व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बुद्धिबल, कैरियर की बाधाओं में कमी और शिक्षा का सहयोग आजीविका क्षेत्र में प्राप्त होता है.  

सिंह लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone Benefits for Leo Lagna

सिंह लग्न में मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी है. लग्नेश सूर्य के मित्र भी है. इस कारण से सिंह लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. और जीवन में सुख-संपति बनी रहती है.   

कन्या लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये मंगल तीसरे व आंठवे भाव के स्वामी है. ये दोनों भाव अशुभ है. इसलिये कन्या लग्न के व्यक्तियों को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.   

तुला लग्न-मूंगा रत्न | Red Coral for Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल दूसरे और सांतवें भाव के स्वामी है. दोनों ही भाव मारक भाव है. जहां तक हो सके इस लग्न के व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बचना चाहिए. मंगल महादशा में व्यक्ति को यह रत्न आर्थिक स्थिति और वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करेगा. साथ ही शारीरिक कष्ट बढा देगा. 

वृ्श्चिक लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone – Influence on Scorpio Lagna

वृ्श्चिल लग्न में मंगल लग्नेश होते है. इसलिए वृ्श्चिक लग्न के व्यक्ति मूंगा अवश्य धारण करें. 

धनु लग्न-मूंगा रत्न | Impact of Moonga Ratna – Effect on Sagittarius Lagna

इस लग्न के लिये ये 5वें और 12वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का मंगल रत्न मूंगा धारण करना अनुकुल रहता है. इसे धारण करने से संतान सुख, बुद्धिबल, यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.   

मकर लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Capricorn Lagna

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण कर सकते है.  

कुम्भ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में मंगल तीसरे व दशवें भाव के स्वामी है. मध्यम स्तर के शुभ होने के कारण इसे केवल मंगल महादशा में ही धारण करना चाहिए. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण न करके नीळम रत्न धारण करने तो अधिक शुभ रहेगा.   

मीन लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Pisces Lagna

मीन लग्न में मंगल दूसरे व नवम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को हमेशा मूंगा रत्न धारण करके रहना चाहिए. यह रत्न इस लग्न के व्यक्तियों के भाग्य की बाधाओं को हटाने में सहयोग करेगा.    

मूंगा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Moonga Stone?

मूंगा रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में मोती, माणिक्य और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. 

मूंगा रत्न के साथ क्या न पहने? | What not to wear with Moonga Stone

मूंगा रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मूंगा रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

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जानिये द्रेष्काण कुण्डली और चतुर्थांश कुण्डली के बारे में विस्तार से

ज्योतिष में जन्म कुण्डली के अतिरिक्त बहुत सी वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. ये वर्ग कुण्डलियां जातक के जीवन के किसी न किसी क्षेत्र को बारीकी से जांचने के लिए उपयोग की जाती है. वर्ग कुण्डली से धन, संतान, स्वास्थ्य, जीवन साथी इत्यादि के विषय में अलग-अलग रुप से विचार किया जाता है.

इन वर्ग कुण्डलियों में जो द्रेष्काण कुण्डली है, वह भाई बहनों के सुख एवं रोग इत्यादि को समझने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसके अतिरिक्त दूसरी चतुर्थांश वर्ग कुण्डली घर और धन संपदा के लिए देखी जाती है.

द्रेष्काण कुण्डली

द्रेष्काण कुण्डली जातक के भाई-बहनों का अध्ययन करने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसी के साथ इस द्रेष्काण कुण्डली को रोग इत्यादि के लिए भी देखा जाता है. इस वर्ग कुण्डली में 30 अंश को तीन बराबर भागों में बाँटा जाता है.

0 से 10 अंश.

10 से 20 अंश

20 से 30 अंश

पहला द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में 0 से 10 अंश के बीच में कोई ग्रह है तो वह द्रेष्काण कुण्डली में उसी राशि में लिखा जाएगा जिस राशि में वह जन्म कुण्डली में है. माना जन्म कुण्डली में कोई ग्रह वृष राशि में 0 से 10 अंश पर स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में भी वह ग्रह वृषभ कुण्डली में जाएगा.

पहला द्रेष्काण नारद कहलाता है, इस के प्रभाव स्वरुप जातक में भी ऋषि नारद जैसे गुणों का प्रभाव देखने को मिलता है. लग्न या लग्न के स्वामी अगर पहले द्रेष्काण में हो तो जातक में सभी प्रकार की बातों एवं ज्ञान को बटोरने की इच्छा होती है. वह सूचना का संग्रह करना जानता है. अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांटने की भी बेहतर योग्यता होती है. जातक में दूसरों का कल्याण करने की भावना भी होती है. जातक के मन में अधिक समय तक बात रह भी नहीं पाती हैं. वह बातों का धनी होता है कई बार चुगलखोर भी हो सकता है. इस द्रेष्काण में जन्मा जातक सहनशील और धैर्यवान होता है. कार्य करने में निपुण और प्रतिभाशाली होता है.

दूसरा द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में10 से 20 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो वह अपनी राशि से पाँचवीं राशि में जाएगा. माना सूर्य जन्म कुण्डली में 17 अंश का धनु राशि में स्थित है. धनु राशि से पांचवीं राशि देखी जाएगी कौन सी है. धनु राशि से पाँचवीं राशि मेष राशि है. द्रेष्काण कुण्डली में सूर्य मेष राशि में लिखा जाएगा. द्रेष्काण कुण्डली का लग्न भी इसी तरह से निर्धारित किया जाएगा.

दूसरा द्रेष्काण अगस्त कहलाता है. इस द्रेष्काण में जन्मा जातक ज्ञानी और प्रतिभावान होता है. अगस्त द्रेष्काण के लग्न या लग्नेश में जन्मा जातक प्रतिभावान और मेधावी होता है. उसमें कार्यों को कर सकने की कुशलता भी होती है. अपने कामों को पूरा कर लेने की योजनाओं को पूरा करने की अच्छी योग्यता भी होती है. जातक अपने लक्ष्यों के प्रति एकाग्रचित भी होता है. अपने निर्णय को पूरा करने की लगन और जनून भी जातक में होता है.

तीसरा द्रेष्काण

जन्म कुण्डली में 20 से 30 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में वह ग्रह अपनी राशि से नवम राशि में जाएगा. माना शनि जन्म कुण्डली में मीन राशि में स्थित है. मीन राशि से नवम राशि वृश्चिक राशि होती है तो शनि द्रेष्काण कुण्डली में वृश्चिक राशि में लिखे जाएंगे.

जन्म कुण्डली का तीसरा द्रेष्काण दुर्वासा कहलाता है. किसी भी जातक के लग्न या लग्नेश के तीसरे द्रेष्काण में होने पर व्यक्ति में क्रोध की अधिकता होती है. वह अपने मनोकूल काम करना अधिक पसंद करता है. काम में अपनी निष्ठ का पालन करता है और चाहता है की बिना किसी गलती के अपने काम को पूर्ण रुप से उचित प्रकार से कर सके. भावनाओं में बहने वाला कुछ लापरवाह और कठिन परिस्थितियों में जीवन जीने वाला भी हो सकता है.

चतुर्थांश कुण्डली या D-4 | Chaturthansha Kundali or D-4

इस कुण्डली से जातक की चल-अचल सम्पत्ति तथा भाग्य का अनुमान लगाया जाता है. इस वर्ग को चतुर्थांश या पदमांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 4 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 7 अंश 30 मिनट का होता है.

जन्म कुण्डली में ग्रह यदि पहले चतुर्थांश में स्थित है तो वह उसी राशि में चतुर्थांश कुण्डली में जाएगा.

ग्रह दूसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है, उससे चौथी राशि में जाएगा.

ग्रह यदि तीसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में है उससे सातवीं राशि में जाएगा.

ग्रह यदि चौथे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है उससे दसवीं राशि में जाएगा.

माना जन्म कुण्डली में कोई ग्रह या लग्न वृष राशि में पहले चतुर्थांश में स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में वृष राशि में ही जाएगा. यदि वृष राशि में कोई ग्रह या लग्न दूसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में सिंह राशि में जाएगा. यदि कोई ग्रह या लग्न जन्म कुण्डली में तीसरे चतुर्थांश में स्थित है तो बुध या लग्न चतुर्थांश कुण्डली में वृश्चिक राशि में जाएगा. यदि कोई ग्रह या लग्न जन्म कुण्डली में चौथे चतुर्थांश में वृष राशि स्थित है तो वह चतुर्थांश कुण्डली में कुम्भ राशि में जाएगा.

आइए आपको चतुर्थांश कुण्डली का वर्गीकरण करना बताएँ :-

पहला चतुर्थांश

0 से 7 अंश 30 मिनट तक पहला चतुर्थांश होता है इस चतुर्थांश को सनक कहा जाता है. इस चतुर्थांश में जन्मा जातक सभी को आदर देने वाला और उदारता से भरपूर होता है. व्यक्ति अपने कार्यों से दूसरों के मध्य लोकप्रियता पाता है. लोगों के सहयोग से जीवन में सफलता भी पाता है.

दूसरा चतुर्थांश

7 अंश 30 मिनट से 15 अंश तक दूसरा चतुर्थांश होगा. इस चतुर्थांश को सनन्दन कहा जाता है. इस चतुर्थांश का प्रभाव व्यक्ति को आनंदित बनाता है. जातक दूसरों का दुख दूर करने वाला होता है. जातक अपनी मुस्कान को दूसरों के चेहर पर भी लाने की कोशिश रहती है.

तीसरा चतुर्थांश

15 अंश से 22 अंश 30 मिनट तक तीसरा चतुर्थांश होगा. यह चतुर्थांश सनत कुमार बच्चे के जैसा और निष्कपट व्यवहार वाला होता है. दूसरों को सहज रुप से आकर्षित करता है. जातक लक्ष्यों को पाने में बहुत तेज होता है और यही उसका गुण होता है.

चौथा चतुर्थांश

22 अंश 30 मिनट से 30 अंश तक चौथा चतुर्थांश होगा. इस चतुर्थांश को सनातन के नाम से जाना जाता है. य्दि जातक का लग्न अथवा लग्नेश अगर इस अंतिम चतुर्थांश में हो तो व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होता है. ऎसे कामों को करने वाला जिनमें स्थिरता होनी आवश्यक होती है.

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तुला राशि क्या है. । Libra Sign Meaning | Libra – An Introduction | Which is the lucky stone for the Libra people

तुला राशि के व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते है. जीवन की कठिन परिस्थितियों को भी सहजता से लेते है. उनमें सिद्धान्तों पर रहकर कार्य करने का गुण देखा जा सकता है. इस राशि का व्यक्ति स्वभाव से सुलझा हुआ होता है. तथा उसमें कूटनितिज्ञता देखी जा सकती है. तुला राशि के व्यक्तियों की यह विशेषता है, कि इस राशि के व्यकि निर्णय लेने से विषय पर खूब सोच-विचार कर लेना उचित समझते है. आईये तुला राशि का विस्तृ्त परिचय लेते है.  

तुला राशि के स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Libra sign

तुला राशि के स्वामी शुक्र ग्रह है. 

तुला राशि का चिन्ह कौन सा है. | What is the Symbol of the Libra Sign .

तुला राशि का चिन्ह तराजू है.

तुला राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है. | Which planets are considered auspicious for the Libra sign

तुला राशि के लिए शुक्र, मंगल, बुध, शनि शुभ फल देने वाले ग्रह है.  

तुला राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है.  | Which Planets are inauspicious for the Libra sign 

तुला राशि के लिए सूर्य, चन्द्रमा, गुरु अशुभ फल देते है.  

तुला राशि के लिए कौन सा ग्रह सम फल देता है.| Which are Neutral planets for the Libra sign

इस राशि के लिए कोई ग्रह ऎसा नहीं है, जो सम फल देता है. 

तुला राशि के लिए मारक ग्रह कौन सा है.| Which  are the Marak planets for the Libra sign

तुला राशि के लिए गुरु, शुक्र व मंगल मारक ग्रह है. 

तुला राशि के लिए बाधक स्थान कौन सा है. | Which is the Badhak Bhava for the Libra sign

तुला राशि के लिए एकादश भाव बाधक स्थान होता है. 

तुला राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी कौन सा ग्रह होता है. | Which planet is Badhkesh for the Libra sign

तुला राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी सूर्य है. 

तुला राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक ग्रह है.| Which planet is YogaKaraka for the Libra sign 

तुला रासि के लिए शनि योगकारक ग्रह है. 

तुला राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of the Libra sign, is placed in exalted position

तुला राशि में शनि 20 अंश पर होने पर उच्च का होता है. 

तुला राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि प्राप्त करता है. | Which planet is debilitated in Libra  sign

तुला राशि में सूर्य 10 अंश पर नीच राशि का होता है. 

तुला राशि किस ग्रह की मूलत्रिकोण राशि है. | This sign is which Planet’s Multrikon.

तुला राशि शुक्र ग्रह की मूलत्रिकोण राशि है, इस राशि में शुक्र 0 अंश से 15 अंश के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है. 

तुला राशि में चन्द्र किस अंश पर शुभ फल देने वाला होता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Libra. 

तुला राशि में चन्द्र 24 अंश का होने पर शुभ फल देता है. 

तुला राशि में चन्द्र कौन से अंशो पर अशुभ फल देने वाला ग्रह होता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Libra. 

तुला राशि में चन्द्र 4अंश और 26 अंशों पर अशुभ अंशो पर होता है.  

तुला राशि के व्यक्तियों के लिए किस इत्र का प्रयोग करना शुभ रहता है. | Which fragrance is auspicious for the Libra sign

तुला राशि के व्यक्तियों को गलबनम इत्र का प्रयोग करना शुभ रहता है. 

तुला राशि के लिए शुभ अंक कौन से है.|  Which are the Lucky numbers for the Libra sign

राशि के लिए 1, 2, 4, 7 अंक शुभ होते है. 

तुला राशि के लिए कौन सा वार शुभ है. | Which are the lucky days for the Libra people

तुला राशि के लिए रविवार, सोमवार, शनिवार, मंगलवार, बुधवार शुभ है. 

तुला राशि के लिए कौन सा रत्न शुभ है. | Which is the lucky stone for the Libra people

तुला राशि के लिए हीरा, नीलम शुभ है. 

तुला राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | On which day should the Libra people fast

तुला राशि के लिए मंगलवार के व्रत करना शुभ रहता है.  

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कार्यसिद्धि के नियम | Rules for Success of Prashna

प्रश्न की पहचान के लिए कई नियम आपको पिछले अध्याय में बताए गए हैं. इस अध्याय में भी कुछ और नियमों की चर्चा की जाएगी. सबसे पहले हम षटपंचाशिका के नियमों की चर्चा करेंगें. यह नियम हैं :-

(1) जिस ग्रह का नवाँश लग्न में है वह ग्रह अपने नवाँश में बैठकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव को देखे तो धातु चिन्ता होगी. 

(2) जिस ग्रह का लग्न में नवाँश है, वह ग्रह किसी और ग्रह के नवाँश में बैठकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव को देखे तो जीव चिन्ता होगी. 

(3) जिस ग्रह का नवाँश लग्न में नहीं है वह ग्रह अपने नवाँश में ना हो और लग्न, पंचम अथवा नवम भावों से संबंध बना रहा हो तो मूल चिन्ता होगी. 

उपरोक्त नियम षटपंचाशिका के आधार पर हैं. वर्तमान समय के अनुसार भी कुछ नियम प्रश्न की पहचान के लिए निर्धारित किए गए हैं. वह नियम हैं :- 

(1) चन्द्रमा का नक्षत्रेश अर्थात प्रश्न कुण्डली के चन्द्रमा का नक्षत्र स्वामी जिस भाव में स्थित है, उस भाव या उस ग्रह से संबंधित प्रश्न होगा. (ग्रह के कारकत्व के अनुसार प्रश्न होगा) प्रश्न कुण्डली के लग्नेश के नक्षत्र के अनुसार भी प्रश्न का विश्लेषण कर सकते हैं. 

(2) जो ग्रह लग्न को निकटतम पराशरी दृष्टि से देखता हो उस ग्रह के कारकत्व से संबंधित प्रश्न होगा. 

(3) प्रश्न कुण्डली में जिस ग्रह का लग्नेश के साथ निकटतम इत्थशाल हो उस ग्रह से संबंधित प्रश्न अथवा चिन्ता हो सकती है. चन्द्रमा का निकटतम इत्थशाल भी देख लेना चाहिए. 

(4) प्रश्न कुण्डली के लग्न में जिन ग्रहों के अंश लग्न अथवा चन्द्रमा के अत्यधिक नजदीक हो उनसे संबंधित प्रश्न भी हो सकता है. 

जैसे प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश का इत्थशाल सप्तम भाव अथवा पंचम भाव से हो रहा है तो प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न जीवनसाथी अथवा संतान से संबंधित हो सकता है. इसके अतिरिक्त सप्तम तथा पंचम भाव के कारकत्वों के अनुसार और अन्य बातों का विचार भी किया जा सकता है. 

कार्यसिद्धि के आरम्भिक नियम | Initial Rules for Success of Prashna

प्रश्न कुण्डली में किसी भी प्रश्न का जवाब प्रश्नकर्त्ता को तुरन्त मिल जाता है. जिस भी क्षेत्र से प्रश्न का संबंध हो उस क्षेत्र से संबंधित कार्य बनेगा अथवा नहीं बनेगा उसके लिए कुछ नियम मोटे तौर पर बनाए गए हैं जिन्हें समझना आपके लिए आरम्भिक स्तर पर आवश्यक है. आने वाले पाठों में आपको प्रश्न कुण्डली के सिद्ध होने के नियमों को विस्तार से समझाया जाएगा. 

(1) यदि प्रश्न कुण्डली का शीर्षोदय लग्न(3, 5, 6, 7, 8 अथवा 11) हो और यह शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब कार्यसिद्धि अवश्य होगी. 

(2) प्रश्न कुण्डली का पृष्ठोदय लग्न (1, 2, 4, 9 अथवा 10 ) हो और यह लग्न पाप दृष्ट हो तब कार्य सिद्धि नहीं होगी. 

(3) प्रश्न कुण्डली में यदि चन्द्रमा शुभ भाव में है, शुभ दृष्ट है तब कार्यसिद्धि होगी. 

(4) प्रश्न कुण्डली में यदि लग्न शुभ दृष्ट है और लग्न शुभ ग्रहों के प्रभाव में है तब कार्यसिद्धि होगी. 

(5) प्रश्न कुण्डली की नवाँश कुण्डली भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में तथा शुभ दृष्ट हो तब कार्यसिद्धि होगी. 

(6) प्रश्न कुण्डली में कार्य भाव का स्वामी अर्थात कार्येश लग्न में स्थित है और शुभ दृष्ट है तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(7) कुण्डली में लग्नेश, प्रश्न संबंधित भाव को देखे और प्रश्न संबंधित भावेश लग्न को देखे तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(8) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा भावेश की युति हो अथवा दोनों की परस्पर दृष्टि हो तो कार्य सिद्धि होगी. 

(9) प्रश्न कुण्डली में केन्द्र तथा त्रिकोण भावों में शुभ ग्रह हों और 3,6,11 भावों में अशुभ ग्रह हों तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(10) लग्नेश तथा भावेश में ताजिक योग का कोई शुभ योग बन जाए तो कार्यसिद्धि होगी. 

उपरोक्त नियम में से यदि कोई नियम लगता है तो उसके साथ ताजिक के योगों को भी अवश्य देखें कि वह कार्यसिद्धि के लिए अनुकूल हैं अथवा नहीं. यदि नियमानुसार कार्यसिद्धि हो रही है लेकिन ताजिक के खराब योग भी बन रहें हैं तब कार्यसिद्धि नहीं होगी. 

अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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3rd भाव-धन भाव क्या है.| Prakrama Bhava Meaning | Third House in Horoscope | 3rd House in Indian Astrology

तृ्तीय भाव पराक्रम भाव भी कहलाता है. इस भाव के अन्य कुछ नाम अपिक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषडय भाव है. तृ्तीय भाव से व्यक्ति की ताकत, साहस, दीर्घायु, छोटे भाई, दृ्ढता, छोटी यात्राएं, लेखन, सम्बन्ध, दिमागी उलझने, आनन्द, बाजू, नौकर, अच्छे गुण, बडे कार्य, पडोसी, दलाली, कमीशन, क्षमता, स्मरणशक्ति, साक्षात्कार, मानसिक रुझान, भौतिक प्रगति,  छोटा दिमाग, पढाई में रुचि, पत्र लेखन करता है. व 

परिवर्तन, समझौता , बस, ट्राम, रेलवे पेपर, मुनीम, तोल-मोल, साईकल, गणित, सम्पादक, खबर देने वाला, संदेशवाहक, पत्रकार, पुत्रकालय, सम्पति का बंटवारा, छपाईखाना, सम्पर्क, डाकघर, पत्र पेटी, दूरभाष, टेलीग्राफ, दूरदर्शन, टेलीविजन, हवाईपत्र, वास्तुकार, ज्योतिष, लेखक पद, पत्रकारिता, पत्राचार, प्रकाशन आदि विषयों का विश्लेषण किया जाता है. 

तीसरे भाव कौन सी वस्तुओं का कारक भाव है. | What are the characteristics of Third House.  

तीसरे भाव की कारक वस्तुओं में मंगल इस भाव से भाई, साहस, हिंसा और दीर्घायु देता है. शनि दुर्दशा और लम्बी आयु देता है. शुक्र परिवार, बुध संपर्क व संचार, पडोसी, रेलवे परिवहन, पडोसी देशों का कारक भाव है. 

स्थूल रुप में तीसरे भाव से क्या देखा जाता है. |  What does the house of Third House explains physically. 

स्थूल रुप में तीसरे भाव से भाईयों का विश्लेषण किया जाता है. 

सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव का प्रकट करता है. | What does the House of Third House accurately explains

सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव से व्यक्ति का साहस भाव देखा जाता है.  

तीसरे भाव से कौन से सगे-सम्बन्धी देखे जा सकते है. | Third House represents which  relationships. 

तीसरे भाव से छोटे भाई-बहन, नाना के भाई, पडोसी, माता का बडा भाई, मां का चाचा, पिता के ममेरे भाई आदि रिश्तेदार देखे जाते है. 

तीसरा भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Third House is the Karak House of which body parts. 

तीसरा भाव गलाल, गरदन, भुजाएं, छाती का ऊपरी भाग, कान, स्नायु प्रणाली, थाइमस ग्रन्थी, वासनली, खाद्यानली का प्रतिनिधित्व करता है. द्रेष्कोण के अनुसार यह भाव दायें कान, दायें बाजू, जननांग का दायें भाव की व्याख्या करता है. 

तृ्तीयेश का अन्य भाव के स्वामियों के साथ परिवर्तन होने पर कौन से योग बनते है. |  3rd Lord Privartan Yoga results 

तृ्तीयेश और चतुर्थेश का परिवर्तन योग खलयोग बनाता है. यह योग व्यक्ति उत्तम श्रेणी का नेता बनाती है. इस योग के व्यक्ति को सेना या पुलिस में नौकरी मिलती है. निवास स्थान में परिवर्तन हो सकता है. माता के साथ रहने का सुख कम ही प्राप्त हो पाता है. व व्यक्ति की शिक्षा भी बाधित होती है. 

तृ्तीयेश और पंचमेश से बनने वाला परिवर्तन योग भी एक अन्य प्रकार का खल योग है, यह खल योग व्यक्ति को बुद्धिमता कि कमी देता है. इस योग के व्यक्ति की संतान स्वतन्त्र  प्रकृ्ति की होती है. व्यक्ति की संतान को अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है. वह अपनी मेहनत से धन अर्जित करने में सफल होती है. और अपने माता-पिता की देखभाल कम करती है. साथ ही व्यक्ति की संतान को साहसिक विषयों में रुचि होती है. 

तृतीयेश और षष्टेश का परिवर्तन होने पर यह योग मामाओं के कल्याण के लिए अनुकुल नहीं रहता है. व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढती है. नौकरी में अच्छी स्थिति, भाई एक खिलाडी हो सकता है. 

तृ्तीयेश और सप्तमेश का भाव परिवर्तन होने पर एक प्रकार का खलयोग बनता है. यह खलयोग व्यक्ति को बुरे स्वभाव वाला जीवन साथी दिला सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी साहसी होता है. और ऎसे व्यक्ति को अपने जीवन साथी को खोना पड सकता है. 

तृ्तीयेश और अष्टमेश के परिवर्तन से बनने वाला योग व्यक्ति की दीर्घायु होती है. व ऎसे व्यक्ति को कानों की परेशानियां लगी रहती है. यह योग व्यक्ति के साह्स में कमी करता है. 

तृ्तीयेश और नवमेश का परिवर्तन होने पर भी एक प्रकार का खल योग बनता है. इस योग में दोनों भावों कें स्वामी अपने भाव को देखते होने चाहिए. ऎसे में कुण्डली का तीसरा व नवम दोनों ही भाव बली हो जाते है. और दोनों ही भावों के फल व्यक्ति को पूर्ण रुप से प्राप्त होते है.  

तृ्तीयेश और दशमेश में परिवर्तन योग बनने वाला यह खलयोग, व्यक्ति को आजीविका के क्षेत्र में उन्नति देता है. उसे आजीविका में भाईयों का सहयोग प्राप्त होता है. साथ ही इस योग का व्यक्ति साहसपूर्ण निर्णय लेने में कुशल होता है. और जोखिम लेना उसके स्वभाव का विशेष अंग होता है. 

तृ्तीयेश और एकादशेश का परिवर्तन योग बन रहा हो, तो व्यक्ति को भाई-बहनों के द्वारा धन -सम्पति प्राप्त होती है. उसके संबन्ध अपने बडे भाईयों से मधुर रहते है. यह भी एक प्रकार का खलयोग है.  

तृ्तीयेश और द्वादशेश परिवर्तन योग में शामिल हो तब, व्यक्ति को अत्यधिक विदेशी यात्राएं करने के अवसर प्राप्त होते है. वह व्यक्ति अपने भाई-बहनों पर अत्यधिक व्यय करता है.  

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